मैं इसमें पूरी विवेचना करूंगा । शिवलिंग पर दूध , दही, चावल , गन्ने का रस, शहद, घी आदि चढ़ाया जाता है और हल्दी, कुमकुम नहीं चढ़ाई जाती । यहाँ ध्यान देने वाली बात ये है की केवल कच्चा दूध ही चढ़ाने की परंपरा है । लोग कहते हैं कि ये दूध पूरा नाली में चला जाता है इसलिए ये गलत है लेकिन देखिए ये कितनी बड़ी साइंस है की कच्चे दूध और दही मैं एक बहुत ही लाभदायक बैक्टीरिया लैक्टोबैसिलस होता है जोकि यदि नाली मैं जायेगा तो उसकी गंदगी कीचड़ को खत्म कर देगा और फिर नाली के ज़रिये जिस जल श्रोत मैं जायेगा वहां के हानिकारक बैक्टीरिया आदि को खत्म कर देगा और अपनी संख्या बढ़ा लेगा । जमीन मैं समायेगा तो वह मिट्टी खेती के लिए अच्छी हो जाएगी , जमीन में मौजूद तत्वों को वो पौधों के इस्तेमाल होने लायक तत्वों में बदल देगा । पशु इस पानी को पियेंगे तो उनके लिए भी लाभप्रद है । इसके लिए मीठे की भी ज़रुरत होती है जिसके लिए गन्ने का रस है, यह बेक्टेरिआ के बढ़ने के लिए एक आहार है । दूध, दही, देसी घी से विटामिन B12 जल में आ जाता है क्योंकि यह जल में घुलनशील होता है और मनुष्य के लिए भी लाभकारी है । शाकाहारी मनुष्य को तो यह विटामिन B12 बहुत ही जरूरी है क्योंकि उसे यह केवल दूध, दही, देसी घी से ही मिलता है अतः: प्रसाद रूप में पंचामृत का विधान है । गंगाजल भी चढ़ता है, केवल गंगाजल मैं ही ऐसा तत्त्व है जो वायरस को कण्ट्रोल कर देता है वरना वायरस पर तो किसी भी दवा का प्रभाव नहीं होता है । अतः यह चीज़ें प्राकर्तिक रूप से गंदगी साफ़ करके जल और मिटटी में से हानिकारक चीज़ों को हटाकर लाभदायक चीज़ों में बदल देती हैं । शंकर जी पर भांग, बेलपत्र, शमी, धतूरा और आक का फूल भी चढ़ता है । सुनने में लगता है की ये क्या चीज़ें हैं लेकिन इन सबका औषधीय उपयोग है और इनसे एक बहुत अच्छा जैविक कीटनाशक तैयार होता है जो मनुष्य के लिए एकदम हानिरहित होता है । यदि ये पौधे धर्म से नहीं जुड़े होते तो मनुष्य तो इन्हें बेकार समझकर नष्ट ही कर देता । यदि दूध, दही, आदि को धर्म से न जोड़ा जाता तो कितने लोग गंदगी साफ़ करने गंदे जल श्रोत को साफ़ करने के लिए चढाते और ये सब गंदे ही रहते जिससे बीमारियां ज्यादा फैलती । ये कण्ट्रोल बायोलॉजिकल कण्ट्रोल है एकदम केमिकल फ्री यानी हानिरहित ।
लोग बिना शिवलिंग पर चढ़ाए भी इन चीज़ों का कल्चर बनाकर जल स्रोतों को साफ रख सकते हैं और अच्छी जैविक खाद तैयार कर सकते हैं इस सम्बन्ध में वैज्ञानिक भी लोगों को मार्गदर्शन दें ।
वैसे मंदिरों में , मूर्तियों में और अन्य सभी धर्मस्थलों में काफी पॉजिटिव एनर्जी होती है और धर्म से जुड़ने के कारण ये काम हो जाते हैं ।
हल्दी और कुमकुम इसलिए नहीं चढ़ाते हैं क्योंकि पहले कुमकुम भी हल्दी और चूने से ही बनती थी और हल्दी में एंटीसेप्टिक गुण होने के कारण बैक्टीरिया के कार्य में बाधा डालेगी ।
पैकेट का यानि पाश्चराईज दूध नहीं चढ़ाये ये केवल पीने के लिए ही उपयुक्त है क्योंकि इसमें जिन्दा लैक्टोबैसिलस नहीं अतः कुदरत का काम नहीं होता और यह हमेशा विश्वास रखें कि आप कुदरत का यानि पर्यावरण की रक्षा का कोई भी कार्य करेंगे तो पुण्य तो मिलेगा ही ।
ये एक मिशन है जोकि एक अकेले व्यक्ति द्वारा अपने सीमित साधनों से शुरू किया गया है । इसमें आपको धर्मों का वैज्ञानिक पक्ष बताया जायेगा अतः आप इसके प्रचार प्रसार के लिए पूर्ण रूप से सहयोग कर सकते हैं । सहयोग के लिए संपर्क करें : –
योगीराज बाबा पवन आनंद (गर्ग)
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