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जय माता दी देवभूमि हिमाचल के पाँच शक्तिपीठ: यहाँ माँ के दर पूरी होती है हर मुराद । हिमाचल प्रदेश को देवभूमि के नाम से जाना जाता है। यहां के चप्पे-चप्पे में स्थापित प्राचीन मंदिर व यहां की धार्मिक परम्पराएं हमेशा ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करती हैं। देवभूमि हिमाचल में पांच प्रसिद्ध शक्ति पीठ हैं। जहां हर साल लाखों श्रद्धालु मां के दर्शनों के लिए आते हैं। नवरात्र के दौरान यहां श्रद्धालुओं की खूब भीड़ रहती है। मां चामुंडा देवी, चिंतापूर्णी देवी, मां बज्रेश्वरी देवी, मां नयना देवी व मां ज्वालाजी के मंदिर काफी प्रसिद्ध हैं। इन मंदिरों में भक्तों की हर मुराद पूरी होती है।

१.बज्रेश्वरी देवी मंदिर
कांगड़ा का बज्रेश्वरी देवी शक्तिपीठ मां का एक ऐसा धाम है जहां पहुंच कर भक्तों का हर दुख तकलीफ मां की एक झलकभर देखने से दूर हो जाती है। 51 शक्तिपीठों में से यह मां का वह शक्तिपीठ है जहां सती का दाहिना वक्ष गिरा था। पहाड़ों के नहलाती सूर्य देव की पवित्र किरणें और भोर के आगमन पर सोने सी दमकती कांगड़ा की विशाल पर्वत श्रृंखला को देख ऐसा लगता है कि मानों किसी निपुण जौहरी ने घाटी पर सोने की चादर ही मढ़ दी हो।
कांगड़ा का प्राचीन नाम नगरकोट था। इसे नगरकोट धाम भी कहा जाता है। मां बज्रेश्वरी देवी के धाम के बारे में कहते हैं कि जब मां सती ने पिता के द्वारा किए गए शिव के अपमान से कुपित होकर अपने पिता राजा दक्ष के यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए थे, तब क्रोधित शिव उनकी देह को लेकर पूरी सृष्टि में घूमे। शिव का क्रोध शांत करने के लिए भगवान विष्णु ने अपने चक्र से माता सती के शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। शरीर के यह टुकड़े धरती पर जहां-जहां गिरे वह स्थान शक्तिपीठ कहलाया। मान्यता है कि यहां माता सती का दाहिना वक्ष गिरा था इसलिए बज्रेश्वरी देवी पड़ा था। माता के इस धाम में मां की पिंडियां भी तीन ही हैं। मंदिर के गर्भगृह में प्रतिष्ठित पहली और मुख्य पिंडी मां बज्रेश्वरी की है। दूसरी मां भद्रकाली और तीसरी और सबसे छोटी पिंडी मां एकादशी की है। मां के इस शक्तिपीठ में ही उनके परम भक्त ध्यानु ने अपना शीश अर्पित किया था। इसलिए मां के वे भक्त जो ध्यानु के अनुयायी भी हैं वह पीले रंग के वस्त्र धारण कर मंदिर में आते हैं और मां का दर्शन पूजन कर स्वयं को धन्य करते हैं।

मान्यता है कि जो भी भक्त मन में सच्ची श्रद्धा लेकर मां के इस दरबार में पहुंचता है उसकी कोई भी मनोकामना अधूरी नहीं रहती। चाहे मनचाहे जीवनसाथी की कामना हो या फिर संतान प्राप्ति की लालसा। मां अपने हर भक्त की मुराद पूरी करती हैं। मां के इस दरबार में पांच बार आरती का विधान है, जिसका गवाह बनने की ख्वाहिश हर भक्त के मन में होती है। मंदिर परिसर में ही भगवान भैरव का भी मंदिर है। इस मंदिर में महिलाओं का जाना पूर्ण रूप से वर्जित है। यहां विराजे भगवान भैरव की मूर्ति बड़ी ही खास है। कहते हैं जब भी कांगड़ा पर कोई मुसीबत आने वाली होती है तो इस मूर्ति की आंखों से आंसू और शरीर से पसीना निकलने लगता है। तब मंदिर के पुजारी विशाल हवन का आयोजन कर मां से आने वाली आपदा को टालने का निवेदन करते हैं। यह बज्रेश्वरी शक्तिपीठ का चमत्कार और महिमा ही है कि आने वाली हर आपदा मां के आशीष से टल जाती है। यहां पास में ही बनेर नदी के किनारे पवित्र बाण गंगा भी है। जहां स्नान का विशेष महत्व है।
चिंतपूर्णी धाम

२.माँ चिंतपूर्णी देवी :- चिंतपूर्णी धाम हिमाचल प्रदेश के जिला ऊना में स्थित है। यह स्थान 51 शक्ति पीठों में से एक है। यहां पर माता सती के चरण गिर थे। चिंतपूर्णी माता अर्थात चिंता को पूर्ण करने वाली देवी चिंतपूर्णी देवी का यह मंदिर काफी प्राचीन है। भक्तों में माता चरणों का स्पर्श करने को लेकर अगाध श्रद्धा है। चिंतपूर्णी देवी का मंदिर हिमाचल प्रदेश के सोलह सिंगी श्रेणी की पहाड़ी पर छपरोह गांव में स्थित है। अब यह स्थान चिंतपूर्णी के नाम से ही जाना जाता है। कहा जाता है चिंतपूर्णी देवी की खोज भक्त माई दास ने की थी। माई दास पटियाला रियासत के अठरनामी गांव के निवासी थे। वे मां के अनन्य भक्त थे। उनकी चिंता का निवारण माता ने सपने में आकर किया था। मंदिर के पास भक्त माईदास का ढूंढ़ा हुआ सरोवर भी है जिसके जल से वे माता की नियमित पूजा किया करते थे। अब भी भक्त इस सुंदर तालाब से जल लेकर माता की पूजा करते हैं। मां के मंदिर का मुख्य प्रसाद हलवा है।

चिंतपूर्णी देवी का एक बार दर्शन मात्र करने से सभी चिंताओं से मुक्ति मिलती है इसे छिन्नमस्तिका देवी भी कहते हैं। श्री मार्कंडेय पुराण के अनुसार जब मां चंडी ने राक्षसों का संहार करके विजय प्राप्त की तो माता की सहायक योगिनियां अजया और विजया की रुधिर पिपासा को शांत करने के लिए अपना मस्तक काटकर, अपने रक्त से उनकी प्यास बुझाई इसलिए माता का नाम छिन्नमस्तिका देवी पड़ गया। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार छिन्नमस्तिका देवी के निवास के लिए मुख्य लक्षण यह माना गया है की वह स्थान चारों ओर से शिव मंदिरों से घिरा रहेगा और यह लक्षण ङ्क्षचतपूर्णी में शत प्रतिशत सत्य प्रतीत होता है क्योंकि ङ्क्षचतपूर्णी मंदिर के पूर्व में कालेश्वर महादेव, पश्चिम में नर्हारा महादेव, उत्तर में मुच्कुंड महादेव और दक्षिण में शिववाड़ी मंदिर है।
चामुंडा देवी मंदिर

३.माँ चामुंडा देवी :- चामुंडा देवी मंदिर भी हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। पालमपुर के पश्चिम और धर्मशाला से महज 15 किलोमीटर की दूरी पर बनेर नदी के किनारे स्थित यह मंदिर 700 साल पुराना है। इस विशाल मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है जो 51 सिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। यह मंदिर हिंदू देवी चामुंडा जिनका दूसरा नाम देवी दुर्गा भी है, को समर्पित है। इस मंदिर का वातावरण बड़ा ही शांत है जिस कारण यहां आने वाला व्यक्ति असीम शांति की अनुभूति करता है। माता का नाम चामुंड़ा पडऩे के पीछे एक कथा प्रचलित है कि मां ने यहां चंड और मुंड नामक दो असुरों का संहार किया था। उन दोनों असुरो को मारने के कारण माता का नाम चामुंडा देवी पड़ गया। यहां साथ ही में एक गुफा के अंदर भगवान शिव भी नंदीकेश्वर के नाम से विराजमान हैं। ऐसे में इस स्थान को चामुंडा नंदीकेशवर धाम भी कहा जाता है। इसके साथ बहने वाली बनेर नदी में भी नहाने का महत्व है। मां चामुंडा देवी का पुराना मंदिर मौजूदा मंदिर से 15 किलोमीटर की दूरी पर धौलाधार शृंखला के उपर स्थित है। इसे आदि हिमानी चामुंडा मां कहा जाता है। यहां तक पैदल सफर से पहुंचा जा सकता है।
नयना देवी

४.माँ नयना देवी :- नयना देवी माता का मंदिर हिमाचल प्रदेश के जिला बिलासपुर में स्थित है। इस स्थान पर माता सती के दोनों नेत्र गिरे थे। नयना देवी का मंदिर भी प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है। हिमाचल प्रदेश में स्थित यह स्थान पंजाब राज्य की सीमा के समीप है। मंदिर में माता भगवती नयना देवी के दर्शन पिंडी के रूप में होते हैं। श्रावण मास की अष्टमी व नवरात्र में यहां विशाल मेला लगता है। लाखों भक्त यहां आकर मां के दर्शन करते हैं व अपनी मनोकामना पूर्ण करते हैं। इस स्थान तक आनंदपुर साहिब और ऊना से भी आसानी से पहुंचा जा सकता है।
ज्वालामुखी मंदिर

५.माँ ज्वालादेवी :- ज्वालामुखी मंदिर को ज्वालादेवी जी के रूप में भी जाना जाता है। यह जिला कांगड़ा में कांगड़ा शहर के दक्षिण में 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह मंदिर हिंदू देवी ज्वालामुखी को समर्पित है। इनके मुख से अग्नि का प्रवाह होता है। इस मंदिर में अग्नि की अलग-अलग छह लपटें हैं जो अलग अलग देवियों को समर्पित हैं जैसे महाकाली अन्नपूरना, चंडी, हिंगलाज, बिंध्यबासनी, महालक्ष्मी सरस्वती, अम्बिका और अंजी देवी। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह मंदिर सती के कारण बना था। बताया जाता है कि देवी सती की यहां जीभ गिरी थी। इस मंदिर में अग्नि की लपटें एक पर्वत से निकलती हैं। अकबर को अपने शासन के समय जब इस मंदिर के बारे में पता चला था तो उसने आग की लपेटों की ऊपर एक नहर बनाकर पानी छोड़ दिया था, फिर भी यह लपेटें नहीं बुझी थी। उसके बाद अकबर ने इन्हें लोहे के बड़े ढक्कन (तवा) से बुझाने का भी प्रयास किया था लेकिन यह उसे फाड़कर भी बाहर आ गई थी। उसके बाद अकबर यहां नंगे पांव आया था और मां से माफी मांगते हुए यहां सोने का छत्र अर्पित किया था।

     

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