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विज्ञान और अध्यात्म
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विज्ञान वस्तु के साथ प्रयोग करता है, अध्यात्म व्यक्ति के साथ प्रयोग करता है । विज्ञान कहता है, वस्तु को हम ऐसी स्थिति में ले आएँ, जहां सत्य का उद्घाटन संभव हो सके । अध्यात्म का कहना है, व्यक्ति को हम ऐसी स्तिथि में ले आएँ, जहां वह सत्य को देखने में समर्थ हो सके ।
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विज्ञान व्यक्ति को बदलने की कोई जरूरत नहीं मानता । विज्ञान मानता है कि आदमी जैसा है, सत्य वैसे ही जाना और पाया जा सकता है । विज्ञान चीजों को बदलता है, चीजों को तोड़ता है, चीजों का विश्लेषण करता है । विज्ञान की सारी चेष्टा वस्तु के साथ है । विज्ञान का कथन है, वस्तु को हम समझ लें तो सत्य का पता चल जाएगा । अध्यात्म का मानना है, व्यक्ति स्वयं को रूपान्तरित कर ले तो उसे सत्य का अनुभव हो जाएगा । विज्ञान की खोज पदार्थ की खोज है, अध्यात्म की खोज चेतना की खोज है ।
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बीते युगों से मानव विज्ञान और अध्यात्म को इसी रूप में जानता, सीखता और अनुभव करता रहा है, लेकिन इस नये युग ने मानव जीवन को सर्वथा नई समझ दी है। इस समझ में विज्ञान व अध्यात्म की साझेदारी है, भागीदारी व समन्वय है । आज की आवश्यकता संवेदनशील आध्यात्मिक हृदय के साथ तर्कपूर्ण वैज्ञानिक मष्तिष्क की है । जिस तरह से मानव जीवन में हृदय और मष्तिष्क, दोनों की समान आवश्यकता है, उसी तरह आध्यात्मिक चेतना व वैज्ञानिक दृष्टी का साथ- साथ होना जरूरी है । मानव चेतना यदि आध्यात्मिक रूप से परिष्कृत होगी तो वैज्ञानिक अनुसंधान लोक हितकारी व जनोपयोगी हो सकेंगे । इसी तरह यदि जीवन में दृष्टिकोण वैज्ञानिक होगा तो आध्यात्मिक साधनाएँ सभी पूर्वाग्रहों एवं अंधमान्यताओं से मुक्त होंगी ।
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_अखण्ड ज्योति , (अक्टूबर- २०१२)
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विचार क्रांति अभियान

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