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जोड़ों में होने लगे अकड़न, तो हो सकती है प्रोटीन की कमी

1 पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन नहीं लेने से जोड़ों में मौजूद तरल पदार्थ का निर्माण कम होता है, जिससे लचीलापन कम हो जाता है और जोड़ों में अकड़न के साथ मांसपेशि‍यों में भी दर्द की समस्या बढ़ने लगती है।
2 शरीर में प्रोटीन की कमी से सफेद रक्त कोशि‍काओं की संख्या कम होती जाती है और हीमाग्लोबिन भी कम हो सकता है। इन कारणों से आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कम होती है।
3 प्रोटीन की कमी से रक्त में शर्करा का स्तर कम होता है, जिससे शारीरिक कमजोरी महसूस होने के साथ ही थकावट जैसी परेशानियां पैदा होती है। इसके अलावा आपको बार-बार भूख लगने का कारण भी प्रोटीन की कमी हो सकती है।
4 आपके सौंदर्य के लिहाज से भी प्रोटीन बेहद जरूरी है। अगर सही मात्रा में प्रोटीन नहीं लिया गया, तो इसका असर आपके बाल और नाखूनों पर भी नकारात्मक होता है।
5 अगर आप बार-बार बीमार पड़ रहे हैं और शारीरिक दर्द की समस्या से गुजर रहे हैं, तो इसका कारण भी प्रोटीन की कमी हो सकती है, क्योंकि आपकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी आने का एक बड़ा कारण यह भी है।
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: 12. मधुमेह के रोगियों को दे अत्यधिक पेशाब की समस्या से मुक्ति – एक चम्मच हल्दी के पाउडर को एक गिलास पानी के साथ दिन में दो बार पीने से डायबिटीज रोग में बार -बार पेशाब की समस्या से छुटकारा मिलता है।

  1. पेट में कीड़े – होने पर 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर को भुन कर पानी के साथ रात को सोने पहले लेने पर कीड़े मर जाते हैं।
  2. पेट में गैस – की वजह से दर्द होने पर हल्दी और सेंधा नमक को साथ लेने से आराम मिलता है।
    ➡ हल्दी के पत्ते के उपयोग और फायदे
  3. एड़ी में बिवाई – होने पर हल्दी पाउडर को सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से आराम मिलता है।
  4. हिस्टीरिया का दौरा – पड़ने पर रोगी को हल्दी के धुएं को सुंघाने से आराम मिलता है।
  5. पाइल्स – एलोवेरा जेल में हल्दी के पाउडर को मिलाकर पाइल्स के मस्से पर लगाने से मस्सा सूख जाता है।
  6. स्तनों में सूजन – होने पर एलोवेरा जेल में हल्दी पाउडर मिलाकर लगाने से आराम मिलता है।
    ➡ एलोवेरा और हल्दी के मिश्रण के उपयोग और फायदे और भी हैं
    19. खून की कमी – होने पर 2 चम्मच हल्दी पाउडर और 2 चम्मच शहद को 1/2 गिलास पानी में मिलाकर दिन में दो बार नियमित रूप से पीने से खून बढ़ता है।
  7. त्वचा के जल जाने पर – हल्दी पाउडर को पानी में मिलाकर लगाने से फफोले नहीं पड़ते हैं।
  8. पेट का अल्सर – हल्दी में कुरकमिन नामक तत्व पाए जाते हैं जो पेट के अल्सर और जलन को दूर करने में सहायक होते हैं।
  9. कैंसर – रोज़ नियमित रूप से नीम और हल्दी से बनी गोली खाने से खून की शुद्धि होती है जिससे शरीर में कैंसर रोग की कोशिकाएं नष्ट हो जाती हैं।
  10. पाचन तंत्र को करे मजबूत – हल्दी को दूध में मिलाकर पीने से लीवर ठीक तरह से काम करता है तथा पाचन तंत्र मजबूत होता है।
  11. रक्त की अशुद्धियाँ – एक चम्मच आंवला पाउडर और 1/2 चम्मच हल्दी पाउडर को एक कप पानी के साथ पीने से रक्त की अशुद्धियाँ दूर हो जाती हैं।
  12. खून में चीनी की मात्र करे कम – हल्दी पाउडर एवं मेथी के बीज के पाउडर को साथ मिलाकर रोज़ खाने से खून में शुगर की मात्रा नियंत्रित रहती है।
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    : रीढ़ पर ध्यान केंद्रित करें”

बाहर अपनी आंखें बंद कर लो और अपनी रीढ़ को आंखों के सामने लाओ। रीढ़ को एकदम सीधा, उन्नत रखो। इसे देखो, इसका निरीक्षण करो। और इसके बीचोबीच एक तंतु को देखो, कमल के तंतु जैसा नाजुक, तुम्हारी रीढ़ के खंभे में से गुजर रहा है।

रीढ़ में बीचोबीच एक रुपहला धागा है, एक अत्यंत नाजुक मज्जा तंतु। यह शारीरिक तंतु नहीं है। अगर इसे खोजने के लिए ऑपरेशन करोगे तो इसे नहीं पाओगे। लेकिन गहरे ध्यान में इसे देखा जाता है। इस धागे के जरिये तुम शरीर से जुड़े हुए हो, और उसी धागे से तुम अपनी आत्मा से भी जुड़े हो।

पहले रीढ़ की कल्पना करो। पहले तुम्हें अजीब लगेगा। तुम देख तो पाओगे लेकिन कल्पना की तरह। और तुम यदि प्रयास करते रहो तो वह सिर्फ तुम्हारी कल्पना नहीं रहेगी वरन तुम अपने रीढ़ के खंभे को देख पाओगे।

आदमी अपने शरीर की संरचना को भीतर से देख सकता है। हमने कभी कोशिश नहीं की क्योंकि अत्यधिक डरावना हो सकता है, जुगुप्सा पैदा कर सकता है। जब तुम अपनी हड्डियां, रक्त, शिराएं देखोगे तो तुम डर जाओगे। असल में हमने अपने मन को भीतर देखने से रोक रखा है। हम अपने शरीर को बाहर से देखते हैं मानो तुम कोई और हो जो तुम्हारे शरीर को देख रहा है। तुमने अपने शरीर को भीतर से नहीं देखा है। हम देख सकते हैं लेकिन इस डर के कारण वह एक अजीब चीज हो ग ई है। भीतर आओ और मकान को देखो, तब तुम भीतर की दीवारों को देखोगे। तुम अपने शरीर को बाहर से देखते हो मानो तुम कोई और हो जो तुम्हारे शरीर को देख रहा है। तुमने अपने शरीर को भीतर से नहीं देखा है। हम देख सकते हैं लेकिन इस डर के कारण वह एक अजीब चीज हो ग ई है।

योग पर जो भारतीय किताबें हैं वे शरीर के बारे में बहुत सी बातें कहते हैं जिन्हें आधुनिक वैज्ञानिक खोज ने एकदम सही पाया है; और विज्ञान इसका स्पष्टीकरण नहीं दे सकता। वे लोग कैसे जान पाए? शल्यक्रिया और और मानवीय शरीर की आंतरिक संरचना के बारे में खोजें तो हाल ही में पैदा हुई हैं। वे आंतरिक नसों, केंद्रों और संस्थानों को कैसे जान पाए? वे आधुनिक खोजों के बारे में भी जानते थे, उन्होंने उनके बारे में चर्चा की है, उन पर काम किया है । योग हमेशा शरीर के संबंध में मूलभूत, महत्वपूर्ण बातों को जानता रहा है। लेकिन वे शरीर का विच्छेदन नहीं करते थे, फिर वे कैसे जान पाए? दरअसल शरीर को देखने का एक और तरीका है — भीतर से। अगर तुम भीतर ध्यान करो तो अचानक तुम्हें अपना शरीर, उसके भीतर की पर्त दिखनी शुरु हो जाएगी।

अपनी आंखें बंद करो और शरीर को महसूस करो। शिथिल हो जाओ। रीढ़ के खंभे पर चित्त को एकाग्र करो। और यह सूत्र बहुत सहजता से कहता है,” ऐसा करके रूपांतरित हो जाओ। और तुम इसके द्वारा रूपांतरित हो जाओगे।
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: कुण्डलिनी क्या है है?
इसका उपयोग क्या है है?
यह कसे जागृत होती है?

१. देह में सूक्ष्म शक्ति की पद्धतियां क्या हैं ?
मात्र ईश्वर के अस्तित्व से ब्रह्मांड निरंतर बना हुआ है ।
कुंडलिनी योग के अनुसार, ईश्वर की शक्ति जो ब्रह्मांड को चलाती है उसे चैतन्य कहते है ।
एक व्यक्ति के विषय में, चैतन्य को चेतना कहते हैं और यह ईश्वरीय शक्ति का वह अंश है जो मनुष्य की क्रियाओं के लिए चाहिए होती है । यह चेतना दो प्रकार की होती है और अपनी कार्य करने की अवस्था के आधार पर, इसे दो नाम से जाना जाता है ।
क्रियाशील चेतना – यह प्राण शक्ति भी कहलाती है । प्राण शक्ति स्थूल देह, मनोदेह, कारण देह और महाकारण देह को शक्ति देती है । यह चेतना शक्ति की सूक्ष्म नालियों द्वारा फैली होती है जिन्हें नाडी कहते हैं । यह नाडी पूरे देह में फैली होती हैं और कोशिकाओं, नसों, रक्त वाहिनी, लसिका (लिम्फ) इत्यादि को शक्ति प्रदान करती हैं ।
सुप्त चेतना – जो कुंडलिनी कहलाती है ।
जब तक कुंडलिनी को नीचे दी विधि के अनुसार जागृत नहीं किया जाता तब तक यह कुंडलिनी व्यक्ति में सुप्त अवस्था में है
२. कुंडलिनी का क्या उपयोग है ?
कुंडलिनी अथवा सुप्त चेतना मुख्यत: आध्यात्मिक प्रगति करने के उपयोग में आती है । नित्य शारीरिक क्रियाओं के लिए कुंडलिनी का उपयोग नहीं होता तथा न ही यह उसमें सहभागी होती है ।
३. कुंडलिनी को कैसे जागृत करें ?
साधना अथवा शक्तिपात से कुंडलिनी जागृत होती है ।
३.१ साधना द्वारा कुंडलिनी जाग्रति इसके अंतर्गत ईश्वर के लिए विभिन्न योग मार्गों द्वारा की गई साधना आती है जैसे कर्मयोग, भक्तियोग, हठयोग तथा गुरुकृपायोग । हठयोग से की गई साधना के अंतर्गत ब्रह्मचर्य का पालन, प्राणायाम, यौगिक क्रियाएं तथा अन्य साधनाएं आती हैं । कुछ लोग हठयोग के द्वारा हठपूर्वक कुंडलिनी जागृत करने का प्रयास करते हैं, इसके घातक परिणाम हो सकते हैं । कुछ इससे विक्षिप्त तक हो जाते हैं ।
३.२ शक्तिपात शक्तिपात योग अथवा शक्तिपात द्वारा आध्यात्मिक शक्ति एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को प्रदान की जाती है । मुख्यत: गुरु द्वारा अथवा उन्नत पुरुष द्वारा अपने शिष्य को प्रदान किया जाता है । मंत्र अथवा किसी पवित्र शब्द, नेत्रों से, विचारोंसे अथवा स्पर्श से धारक के आज्ञाचक्र पर शक्ति पात किया जा सकता है । यह योग्य शिष्य पर गुरु द्वारा की गई कृपा समझी जाती है । इस शक्तिपात से कुंडलिनी जागृत होने लगती है । जागृत होने के उपरांत, किस गति से कुंडलिनी ऊपर की दिशा में जाती है वह शिष्य के निरंतर और लगातार साधाना के बढते हुए प्रयासों पर निर्भर करता है ।
३ कुछ समान दृश्य उदाहरणों से इसे और अच्छे से समझ कर लेते हैं लगातार साधना करने का प्रयास करना वैसा ही है जैसे कि कठिन परिश्रम से स्वयं का भाग्य बनाना सीधे शक्तिपात से कुंडलिनी जागृत करना वैसा ही है जैसे किसी अरबपति के घर पर जन्म लेना जहां पिता पुत्र को तुरंत धन उपलब्ध करा कर देता है । दोनों में से, परिश्रम से कमाया गया धन (आध्यात्मिक धन) सदैव अधिक टिकनेवाला है .
कुंडलिनी से ही सभी नाड़ियों का सञ्चालन होता है |
योग में मानव शरीर के भीतर ७ चक्रों का वर्णन किया गया है |
कुंडलिनी को जब ध्यान अथवा तंत्र के द्वारा जाग्रत किया जाता है तब यही शक्ति जागृत होकर मष्तिष्क की और बढ़ते हुए शरीर के सभी चक्रों को क्रियाशील करती है योग अभ्यास से शारीर के सुप्त कुंडलिनी को जाग्रत कर इसे सुषुम्ना में स्थित चक्रों का भेदन कराते हुए सहस्त्रार तक ले जाया जाता है |
यह कुंडलिनी ही हमारे शरीर ,भाव और विचार को प्रभावित करती है |
शरीर में मूलतः सात चक्र होते हैं –मूलाधार ,स्वाधिष्ठान ,मणिपुर ,अनाहत ,विशुद्धि ,आज्ञा और सहस्त्रार |
इसके साथ ही शरीर में तीन मुख्या नाड़ियाँ होती हैं ,,इडा [इंगला],पिंगला और सुषुम्ना |
नादियों को शुद्ध करने के लिए ही सभी तरह के प्राणायाम किये जाते हैं |
इनके शुद्ध होने से शरीर में स्थित ७२ हजार नाड़ियाँ भी शुद्ध होने लगती हैं |कुंडलिनी जागरण में नाड़ियों का शुद्ध और पुष्ट होना आवश्यक है |
स्वर विज्ञान में इसका उल्लेख मिलता है |
सुषुम्ना नाड़ी मूलाधार से आरम्भ होकर सर के सर्वोच्च स्थान सहस्रार तक आती है |
सभी चक्र सुषुमन में ही स्थित होते हैं |
इडा को गंगा ,पिंगला को यमुना और सुषुम्ना को सरस्वती कहा गया है |
इन तीन नाड़ियों का पहला मिलन केंद्र मूलाधार कहलाता है |
इसलिए मूलाधार को मुक्ति त्रिवेणी और आज्ञा चक्र को युक्त त्रिवेणी कहते हैं | मेरुरज्जु में प्राणों के प्रवाह के लिए सूक्ष्म नाड़ी है जिसे सुषुम्ना कहा गया है |इसमें अनेक केंद्र हैं जिसे चक्र अथवा पद्म कहा जाता है |
कई नाड़ियों के एक स्थान पर मिलने से इन चक्रों अथवा केन्द्रों का निर्माण होता है |
कुंडलिनी जब चक्रों का भेदन करती है तो उस चक्र में विशेष शक्ति का संचार हो उठता है |मानो कमल पुष्प प्रस्फुटित हो गया है और उस चक्र की गुप्त शक्तियां प्रकट हो जाती हैं |यही सिद्धियों के रूप में सामने आती हैं |
कुंडलिनी योग ऐसी योग क्रिया है जिसमे व्यक्ति अपने भीतर मौजूद कुंडलिनी शक्ति को जगाकर दिव्यशक्ति को प्राप्त कर सकता है |
कुंडलिनी के साथ सात चक्रों का जागरण होने से मनुष्य को शक्ति और सिद्धि का ज्ञान होता है |
यह भूत और भविष्य का जानकार बन जाता है |वह शरीर से बाहर निकल कर कहीं भी भ्रमण कर सकता है |
ोग, साधना में चौदह प्रकार के विघ्न ऋषि पतंजलि जी ने अपने योगसूत्र में बताये हैं और साथ ही इनसे छूटने का उपाय भी बताया है.
भगवन श्री रामचंद्रजी के १४ वर्ष का वनवास इन्हीं १४ विघ्नों व इनको दूर करने का सूचक है.
वे १४ विघ्न इस प्रकार हैं :—-
१. व्याधि :- शरीर एवं इन्द्रियों में किसी प्रकार का रोग उत्मन्न हो जाना.
२. स्त्यान :- सत्कर्म/साधना के प्रति होने वाली ढिलाई, अप्रीति, जी चुराना.
३. संशय :- अपनी शक्ति या योग प्राप्ति में संदेह उत्पन्न होना.
४. प्रमाद :- योग साधना में लापरवाही बरतना
५. आलस्य :- शरीर व मन में एक प्रकार का भारीपन आ जाने से योग साधना नहीं कर पाना.
६. अविरति :- वैराग्य की भावना को छोड़कर सांसारिक विषयों की ओर पुनः भागना.
७. भ्रान्ति दर्शन- :- योग साधना को ठीक से नहीं समझना, विपरीत अर्थ समझना. सत्य को असत्य और असत्य को सत्य समझ लेना.
८. अलब्धभूमिकत्व :- योग के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होना. योगाभ्यास के बावजूद भी साधना में विकास नहीं दिखता है । इससे उत्साह कम हो जाता है ।
९. अनवस्थितत्व :- चित्त की विशेष स्थिति बन जाने पर भी उसमें स्थिर नहीं होना. दु:ख-दौर्मनस्य-अङ्गमेजयत्व-श्वास-प्रश्वासा विक्षेप सह्भुवः । प. योगसूत्र, समाधि पाद, सूत्र ३१
१०. दु:ख :- तीन प्रकार के दु:ख आध्यात्मिक,आधिभ ौतिक और आधिदैविक. ११. दौर्मनस्य :- इच्छा पूरी नहीं होने पर मन का उदास हो जाना या मन में क्षोभ उत्पन्न होना.
१२. अङ्गमेजयत्व :- शरीर के अंगों का कांपना.
१३. श्वास :- श्वास लेने में कठिनाई या तीव्रता होना.
१४. प्रश्वास :- श्वास छोड़ने में कठिनाई या तीव्रता होना. इस प्रकार ये चौदह विघ्न होते हैं. यदि साधक अपनी साधना के दौरान ये विघ्न अनुभव करता हो तो इनको दूर करने के उपाय करे ।।
साधना के विघ्नों को दूर करने के उपाय –
१. तत्प्रतिषेधार्थमेकतत्त्वाSभ्यासः | योग के उपरोक्त विघ्नों के नाश के लिए एक तत्त्व ईश्वर का ही अभ्यास करना चाहिए. ॐ का जप करने से ये विघ्न शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं.
२. मैत्रीकरुणामुदितोपेक्षाणां सुखदुःखपुण्यापु ण्यविषयाणां भावनातश्चित्तप्रसादनम् सुखी जनों से मित्रता, दु:खी लोगों पर दया, पुण्यात्माओं में हर्ष और पापियों की उपेक्षा की भावना से चित्त स्वच्छ हो जाता है और विघ्न शांत होते हैं.
३. प्रच्छर्दनविधारणाभ्यां वा प्राणस्य | श्वास को बार-बार बाहर निकालकर रोकने से उपरोक्त विघ्न शांत होते हैं. इसी प्रकार श्वास भीतर रोकने से भी विघ्न शांत होते हैं.
४. विषयवती वा प्रवृत्तिरुत्पन्ना मनसः स्थितिनिबन्धिनी || दिव्य विषयों के अभ्यास से उपरोक्त विघ्न नष्ट होते हैं.
५. विशोका वा ज्योतिष्मती | हृदय कमल में ध्यान करने से या आत्मा के प्रकाश का ध्यान करने से भी उपरोक्त विघ्न शांत हो जाते हैं.
६. वीतरागविषयं वा चित्तम् | रागद्वेष रहित संतों, योगियों, महात्माओं के शुभ चरित्र का ध्यान करने से भी मन शांत होता है और विघ्न नष्ट होते हैं.
७. स्वप्ननिद्राज्ञानालम्बनं वा | स्वप्न और निद्रा के ज्ञान का अवलंबन करने से, अर्थात योगनिद्रा के अभ्यास से उपरोक्त विघ्न शांत हो जाते हैं.👋👋 ……….. .. …………. 💐 गणित के ज्ञान को उजागर करता और चर्च से अकेले के दम पर भिड़ता योद्धा गणितज्ञ।”डॉ.चंद्रकांत राजू

भारत का पहला सुपरकंप्यूटर परम को बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले चंद्रकांत राजू देश के प्रमुख वैज्ञानिक हस्ताक्षर हैं। वे भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् की जरनल के संपादक रह चुके हैं। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला और नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी, नई दिल्ली इत्यादि के फेलो रह चुके हैं। उन्होंने कई विषयों पर किताबें लिखीं हैं: भौतिकी पर (टाइम: टुवाड्र्स ए कंसिस्टेंट थ्योरी, क्लूवर, 1994), गणित के इतिहास और दर्शन पर (कल्चरल फाउंडेशंस ऑफ मैथेमैटिक्स, पियरसन, 2007) और विज्ञान, धर्म और नैतिकता के इंटरफेस पर (द इलेवन पिक्चर्स ऑफ टाइम, सेज, 2003)। उनके अनुसार उपनिवेशवादी राजनीति के अनुकूल समय की अवधारणा धर्मशास्त्र से विज्ञान (गणित, भौतिक विज्ञान) में घुस गई हैं। उनका मानना है कि आज देश में विज्ञान और गणित के माध्यम से ईसाई मजहबी मान्यताएं स्थापित की जा रही हैं। उन्होंने गणित और विज्ञान के इतिहास की अनेक स्थापनाओं को चुनौती दी है।

गणित तो हम सभी ने पढ़ा होगा, परंतु क्या कभी गणित को औपनिवेशिक मानसिकता से स्वाधीनता दिलाने की लड़ाई भी हमने लड़ी है? गणित को स्वाधीन कराने की लड़ाई? क्या हमें कभी यह ध्यान में भी आया है कि गणित जैसा विषय भी औपनिवेशिक मानसिकता का शिकार हो सकता है?

जी हाँ, न केवल गणित और विज्ञान औपनिवेशिक मानसिकता के शिकार हैं, बल्कि एक योद्धा गणितज्ञ गणित और विज्ञान को औपनिवेशिकता से मुक्त कराने की लड़ाई छेड़े हुए है. यह योद्धा पूरी दुनिया में घूम-घूम कर सभी महान और श्रेष्ठ माने जाने वाले गणितज्ञों को चुनौती दे रहा है। ये योद्धा गणितज्ञ हैं डॉ. चंद्रकांत राजू। धर्म… विशेषकर ईसाइयत और विज्ञान में संघर्ष की बात अक्सर की जाती है, परंतु क्या कोई भी यह सोच सकता है कि ईसाइयत का विज्ञान और गणित के साथ कोई गठजोड़ भी है? क्या कोई सपने में भी सोच सकता है कि विज्ञान और गणित हमें ईसाइयत की शिक्षा देते हों? राजू ने इसी गंठजोड़ के खिलाफ युद्ध छेड़ रखा है। वे न केवल इस गंठजोड़ को उजागर करते हैं, बल्कि उसे समाप्त करने के लिए भी प्रयत्नशील हैं।

डॉ. राजू एक महान गणितज्ञ तो हैं ही, वे एक महान भौतिकिविद् भी हैं और महान दार्शनिक भी। वास्तव में केवल गणितज्ञ होने से वे इन पहेलियों को शायद न तो समझ पाते और न ही सुलझा पाते। एक भौतिकिविद् और दार्शनिक होने के कारण वे वर्तमान गणित और विज्ञान में घुसाए गए “ईसाई दर्शन” को देख और समझ पाते हैं। काल, यानी कि समय के दर्शन को लेकर उनकी समझ एकदम स्पष्ट और भारतीय दर्शन के अनुकूल है। उन्होंने आईंस्टीन की श्रेणी के विज्ञानी माने जाने वाले स्टीफन हॉकिंग्स द्वारा दी गई काल की व्याख्या को खारिज करते हुए पुस्तक लिखी है, “द इलेवन पिक्चर्स ऑफ टाइम”. गणित के दर्शन में जो गड़बड़ी हुई है, उसे उजागर करने के लिए उन्होंने केवल गणित का इतिहास नहीं लिखा, उन्होंने कल्चरल फाउंडेशन ऑफ मैथेमेटिक्स (गणित का सांस्कृतिक स्थापनाएं) लिखी। यह पुस्तक केवल गणित का इतिहास नहीं बताती, उसके दर्शन को भी स्पष्ट करती है। इस कारण वे गणित के दर्शन में की गई गड़बड़ी की ओर भी संकेत करते हैं। अभी तक गणित के इतिहास पर लिखी गई पुस्तकों में यह एक अपने प्रकार की अकेली पुस्तक है।

डॉ. राजू बताते हैं कि कैल्कुलस का प्रयोग भारत में पहले हुआ था। भारत से ही यह पद्धति यूरोप पहुँची। वहाँ न्यूटन को यह समझ नहीं आई। इस पर जो उसे समझ नहीं आया, वहाँ अपनी बुद्धि से कुछ परिवर्तन किए। उन परिवर्तनों के साथ न्यूटन का कैल्कुलस अंग्रेजी राज में भारत आया। आज वही कैल्कुलस हम पढ़ते हैं। डॉ. राजू ने यह साबित किया है कि बड़े से बड़े गणितज्ञ को भी यह कैल्कुलस समझ में नहीं आता, और वे केवल इसे रट जाते हैं। देश-विदेश के मूर्धन्य महाविद्यालयों में उन्होंने गणित के विद्यार्थियों के बीच उन्होंने इसे स्थापित किया है कि कैल्कुलस को उन्हें रटना ही पड़ता है। वे यह भी बताते हैं कि रॉकेट प्रक्षेपण से लेकर कम्प्यूटर-विज्ञान तक जितनी भी आधुनिक तकनीकें हैं, उनमें इसका उपयोग नहीं होता। वहाँ गणना के लिए एक साधारण से गणित का प्रयोग होता है, जो कि वास्तव में आर्यभट द्वारा विकसित कैल्कुलस में दिया हुआ है।

डॉ. राजू की यह संघर्ष यात्रा बचपन से ही प्रारंभ हो गई थी। ग्वालियर में जन्मे राजू जब उच्च माध्यमिक विद्यालय में पढ़ा रहे थे, तभी विज्ञान को लेकर उनके मन में प्रश्न घुमडऩे लगे थे और उनका विज्ञान के शिक्षकों से टकराव भी प्रारंभ हो गया था। वे बताते हैं, ‘एक बार मेरे शिक्षक Inclined Plane यानी झुकी हुई सतह के बारे में एक प्रयोग के बारे में पढ़ा रहे थे। उसमें उन्होंने बताया कि “म्यू” जो कि फ्रिक्शन का को-इफिशिएंट है वह tan थीटा के बराबर होता है। इसे करवाते समय उन्होंने बताया कि भारी चीज जल्दी गिर जाएगी और हल्की चीज देर से गिरेगी इसलिए सतह को और अधिक झुकाना पड़ेगा। मैंने पूछा कि यदि म्यू नहीं बदल रहा है, तो थीटा कैसे बदलेगा? इस पर बच्चे हंस पड़े और शिक्षक ने स्वयं को अपमानित महसूस किया। उन्होंने बाद में मुझे कहा कि मैं एक पुस्तक का नाम और उसका पृष्ठ संख्या भी बता दूंगा, उसमें ऐसा लिखा हुआ है। मेरा कहना था कि हम विज्ञान पढ़ रहे हैं, सच्चाई की खोज कर रहे हैं, इसलिए पुस्तक में लिखा है, फिर भी वह गलत हो सकता है। इस पर वह शिक्षक मुझसे बहुत नाराज हो गए।’ राजू बताते हैं कि इसका उन्हें खामियाजा भी भुगतना पड़ा। उस शिक्षक ने बाद में उन्हें प्रायोगिक परीक्षा में अंत:परीक्षा में शून्य दे दिया। हालांकि प्रायोगिक परीक्षा के परीक्षक ने उन्हें बाह्यपरीक्षा में 45 में से 44 अंक दिए और इस प्रकार राजू उत्तीर्ण हो गए हालांकि इससे उनका कक्षा में स्थान थोड़ा नीचे हो गया।

राजू के लिए विज्ञान के अधिनायकवाद का यह पहला अनुभव था। वे कहते हैं, ‘मुझे महसूस हुआ कि विज्ञान केवल सच की खोज के लिए नहीं है, यह अधिकार की बात है। मुझे यह भी लगा कि विज्ञान के विषय में शिक्षक विद्यार्थी को प्रायोगिक परीक्षा में परेशान कर सकते हैं। ऐसा ही अनुभव मुझे महाविद्यालय में स्नातक की पढ़ाई में आया। मैं मुम्बई विश्वविद्यालय से स्नातक कर रहा था। मैं स्टूडेंट काउंसिल में भी था। कई बार कक्षा से जल्दी भी चला जाता था। डिमॉन्सट्रेटर मुझे कुछ कहता नहीं था और उसे अन्य विद्यार्थी उलाहना दिया करते थे। उस बार भी प्रायोगिक परीक्षा में उन्होंने काफी कम अंक दिए जिससे मैं लिखित परीक्षा में तो सर्वोच्च स्थान पर आया, परंतु प्रायोगिक परीक्षा में काफी कम अंक आए।’ राजू इन घटनाओं के कारण विज्ञान की पढ़ाई से निराश हो गए। उनकी रूचि गणित में पहले से भी थी ही, इसलिए उन्होंने विज्ञान छोड़ कर गणित की पढ़ाई करने का निर्णय लिया। वे बताते हैं कि विश्वविद्यालय में गणित के एक शिक्षक थे एमएस हुजुरबाजार। वे एब्सट्रैक्ट एल्जेब्रा (Abstract Aljebra) पढ़ाते थे जिसमें उन्हें काफी रूचि जग गई थी। वे मुम्बई की लोकल ट्रेनों में यात्रा करते हुए भी इसके प्रश्न हल करते रहते थे। उसी समय उन्होंने लॉजिक एवं इलेक्ट्रानिक सर्किट देख कर कम्प्यूटर भी बनाया। उस समय कम्प्यूटर काफी अनोखी चीज थी, लोगों को समझ नहीं आता था कि यह कैसे बनता है। मेरे उन प्रयोगों को देख कर एक सज्जन ने मुझे कहा कि पढ़ाई-वढ़ाई छोड़ो और मेरे साथ आकर काम करो। उन्हें मेरे प्रयोग काफी पसंद आए थे।
राजू बताते हैं कि बचपन से ही उनकी रूचि भौतिकी में भी काफी अधिक थी। इसीलिए उन्होंने आईआईटी में प्रवेश नहीं लिया जहाँ कि उनके एक भाई पहले से ही पढ़ रहे थे। उनकी माँ चाहती थीं कि दोनो ही भाई वहाँ पढ़ें। परंतु उनकी रूचि वहाँ नहीं थी। इस प्रकार राजू प्योर मैथेमेटिक्स यानी विशुद्ध गणित की ओर बढ़ गए। गणित में राजू की रूचि इतनी थी कि उन्होंने पाठ्यक्रम को कक्षा से पहले ही पूरा पढ़ रखा था। इसलिए वे अक्सर कक्षा में जाते ही नहीं थे। उस अनुभव को याद करते हुए वे बताते हैं, ‘पहले से सबकुछ पढ़ा होने के कारण मैं कक्षा में बोर होता था। हमारे एक शिक्षक थे एसएस शिखंडे। वे काफी सज्जन व्यक्ति थे। वे मुझे इसके लिए टोकते थे। हालांकि कक्षाओं में रहना हमारे लिए अनिवार्य नहीं था, केवल यूजीसी द्वारा दी जाने वाली राष्ट्रीय छात्रवृत्ति प्राप्त छात्रों के लिए यह आवश्यक था। उसके बिना छात्रवृत्ति नहीं मिलती और मुझे छात्रवृत्ति चाहिए थी।’ हालांकि परीक्षाओं में राजू को काफी अच्छे अंक आते रहे, परंतु वहाँ भी उन्हें काफी संघर्ष करना पड़ा।

एसएस शिखंडे के कहने पर राजू टाटा इंस्टीट्यूट में भी गए, परंतु वहाँ जिस प्रकार से गणित पढ़ाई जाती थी, वह उन्हें पसंद नहीं आया। इसके बाद वे फिर से विज्ञान की ओर मुड़े। उन्होंने पता किया कि गणितीय भौतिकी के एक विद्वान आईआईटी दिल्ली में हैं के आर पार्थसारथी। राजू दिल्ली आए। राजू उनसे मिले कि क्या वे उन्हें पीएचडी छात्र के रूप में राजू को स्वीकार करेंगे। पहली ही भेंट में पार्थसारथी ने राजू से पूछा कि क्या वे स्पेक्ट्रम मल्टीप्लिसिटी थ्योरम को प्रमाणित कर सकते हैं। राजू बताते हैं, ‘स्पेक्ट्रम मल्टीप्लिसिटी थ्योरम को स्थापित करने के लिए एक पूरी किताब है। ऐसे ही उसे स्थापित करना कठिन है। फिर भी मैं जब परीक्षा में बैठा तो मैं इसके लिए पूरी तरह तैयार था। यदि यह प्रश्न पूछा जाता तो मैं 4-5 घंटे में उसे वहीं पर हल कर देता। परंतु आईआईटी के शिक्षक मेरे उत्तरों से नि:शब्द हो जा रहे थे।’ मैं उस परीक्षा में सर्वोच्च स्थान पर था।

राजू पीएचडी के लिए दिल्ली आए, परंतु उनका रास्ता सरल नहीं था। आते ही उन्हें पार्थसारथी ने बताया कि वे आईआईटी दिल्ली छोड़ रहे हैं। राजू बहुत हैरान हुए। वे उनसे पहले मिल चुके थे। राजू अपनी यूजीसी की छात्रवृत्ति छोड़ कर यहाँ आए थे। परंतु पार्थसारथी ने उन्हें साफ कह दिया कि वे अपने बाकी छात्रों को तो अपने साथ आईएसआई भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली में ले जाएंगे. उन्हें चूंकि वे ठीक से जानते नहीं, इसलिए राजू को उसकी प्रवेश परीक्षा देनी होगी। इस प्रकार डॉ. राजू ने पहले आईआईटी की परीक्षा दी और उसमें सर्वोच्च रहने के तुरंत बाद उन्हें आईएसआई की परीक्षा में बैठना पड़ा। उस परीक्षा में राजू ने केवल कठिन सवालों को हल किया, आसान सवालों को छोड़ दिया। राजू बताते हैं, ‘वह परीक्षा मैंने 44 डिग्री की तेज गर्मी में दिया था। मुझे लगा कि इतनी गर्मी में मैं इन आसान सवालों को हल करने में समय नहीं लगा सकता।’ हालांकि आईएसआई की परीक्षा में यह देखा जाता है कि परीक्षार्थी कैसे प्रश्नों को हल करने का प्रयास करता है। इसलिए राजू का चयन वहाँ भी हो गया।
आईएसआई में भी राजू को समस्याओं का सामना करना पड़ा। वहाँ उन्हें जिस विषय पर काम करने के लिए दिया गया, उस विषय पर पार्थसारथी के एक पुराने छात्र राजेंद्र भाटिया पहले ही काम कर रहे थे। एक ही विषय दो छात्रों को दिए जाने के अलावा राजू को एक समस्या यह भी लगी कि उस विषय को पहले से ही हल किया जा चुका था। फिर भी राजू ने उस विषय पर तीन व्याख्यान दिए। वह जब उन लोगों को समझ नहीं आया। उन्हें उस पर नोट लिख कर देने के लिए कहा गया। राजू ने नोट लिखकर दिया तो उसे खारिज कर दिया गया और फिर से लिखने के लिए कहा गया। कुछ दिनों बाद राजू को पता चला कि किसी ने उनके नोटों को ही अपनी थ्योरी के रूप में प्रकाशित करवा दिया था। उन्हें यह बुरा लगा कि कम से कम उन्हें यह बताया जाना चाहिए था।

इसके बाद पार्थसारथी ने उन्हें गाइड करने से मना कर दिया। राजू को नोटिस दे दिया गया कि नया गाइड ढूंढे या फिर इंस्टीट्यूट छोड़ कर चले जाएं। राजू बताते हैं कि आईएसआई में छात्र कम ही टिकते थे। एक महीने में छात्र तंग हो कर भाग जाया करते थे। ऐसे में राजू संकट में आ गए। उन्होंने अपनी थिसीस को कई लोगों को भेजा। इस पर अंतरराष्ट्रीय भौतिकीविद् पी ए एम डिरैक, आईआईटी के सी एस मेहता, दिल्ली विश्वविद्यालय के ए एन मित्रा, पॉल डेविस आदि की सकारात्मक टिप्पणियां आ गईं। इन टिप्पणियों के कारण आईएसआई ने राजू को नहीं निकाला। राजू बिना गाइड के ही काम करते रहे। उन्होंने अपनी थिसिस जमा की। उन्होंने जयंत नार्लीकर के एबजार्वर थ्योरी ऑफ रेडिएशन के खंडन में उन्होंने अपनी थिसिस लिख कर जमा की। उसे लौटा दिया गया कि इसमे स्टैटिस्टिक्स नहीं है। फिर राजू ने इस तरह के अनेक उदाहरणों को सामने रखते हुए अपनी थिसिस की सिनोपसिस नए प्रारूप में लिख कर जमा की। संस्थान के शिक्षक इस पर बहुत हैरान हुए और आईएसआई ने उन्हें एक गाइड दे दिया और उन्हें कोलकाता भेज दिया। आखिर पीएचडी की थिसिस को केवल तीन महीनों में फिर से लिख देना कोई छोटी-मोटी बात नहीं थी। उसी बीच उनकी पत्नी को भी आईआईएम अहमदाबाद में एक काम मिल गया था, इसलिए राजू ने भी दिल्ली छोड़ दिया।
वर्ष 1990 में राजू ने कोलकाता में ही पीएचडी पूरी की। परंतु उनकी पीएचडी को स्वीकृत करने में संस्थान ने पूरे तीन साल लगा दिए। दूसरी ओर उनके ही लेक्चर-नोट के आधार पर काम करने वाले राजेंद्र भाटिया को युवा विज्ञानी पुरस्कार दे दिया गया था। यह इस देश की शिक्षा व्यवस्था में आई गिरावट को ही दर्शाता है। परंतु राजू इससे घबड़ाए नहीं। वे एक और संघर्ष की तैयारी में जुट गए। आमतौर पर आईएसआई जैसे बड़े संस्थान से पीएचडी करने के बाद छात्र बड़े संस्थानों में जाते हैं या फिर विदेश चले जाते हैं। राजू के मन में एक उत्सुकता थी कि अपने देश में विज्ञान की अच्छी पढ़ाई और शोध क्यों नहीं होता। इसलिए उन्होंने एक राज्यस्तर के विश्वविद्यालय में जाकर काम करने का निश्चय किया। आमतौर पर आईएसआई या आईटीआई जैसे बड़े संस्थानों से निकले लोग राज्यस्तरीय विश्वविद्यालय में काम करने नहीं जाते। इनमें कोई चमकदार कैरियर तो होता नहीं है। परंतु राजू इस चमक-दमक का मोह छोड़ कर पूना विश्वविद्यालय में पहुँच गए। वहाँ वे गणित पढ़ाने लगे।
राजू बताते हैं कि उस समय वे यही आधुनिक गणित पढ़ाते थे जिसे कि आज वे पूरी तरह खारिज कर रहे हैं। वे कहते हैं, ‘विश्वविद्यालय स्तर पर पढ़ाए जाने वाले कैल्कुलस में खामियां हैं। यह मेरे पीएचडी की थिसिस में भी शामिल थी कि विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाने वाले कैल्कुलस में कुछ खामियां हैं। यदि हम उसे भौतिकी में प्रयोग करते हैं तो उनका पता चलता है। यह खामी यह है कि आधुनिक कैल्कुलस में कन्टीन्यूअस और डिफ्रेंशियल फंक्शन होते हैं औऱ दोनों में संबंध होता है कि डिफ्रेंशियल फंक्शन अनिवार्य रूप से कन्टीन्यूअस यानी निरंतर होता है। अब यदि कोई डिसकन्टीन्यूअटी आ जाए यानी कि कोई शार्ट वेव आ जाए तो भौतिकी में उसे कैसे सुलझाया जाएगा। यह आधुनिक कैल्कुलस में खामी है। यह मैंने अपनी पीएचडी थीसिस में ही लिखा था। कई वर्षों तक लोगों को यह खामी समझ में नहीं आई थी। यह सब मैं एडवांस्ड फंक्शनल एनालिसिस में पढ़ाता भी था। कैल्कुलस के बाद एडवांस कैल्कुलस होता है, उसके बाद मैथेमेटिकल एनालिसिस, उसके ऊपर फंक्शनल एनालिसिस और उसके ऊपर एडवांस्ड फंक्शनल एनालिसिस होता है। यह बहुत ही एडवांस मैथेमेटिकल फिजिक्स है और दुनिया में इसे समझने वाले थोड़े ही लोग हैं।’

पूना विश्वविद्यालय में नई समस्या सामने आई। यह वह समय था जब देश में इंजीनियरिंग कॉलेजों की बाढ़ आ रही थी। गली कूचे में इंजीनियरिंग के कॉलेज खुल रहे थे। कॉलेज तो खुल रहे थे, परंतु उनके पास इंफ्रास्ट्रक्चर और सुविधाएं होती नहीं थी। ऐसे में वे विश्वविद्यालयों के साथ गंठजोड़ करते थे। पूना विश्वविद्यालय में भी यह खेल चल रहा था। राजू बताते हैं, ‘जब मैंने विश्वविद्यालय में काम शुरू किया था, उस समय गणित के विभागाध्यक्ष थे एस एस अभ्यंकर। वे गणित के बहुत अच्छे जानकार थे। उनके बाद एक ऐसे व्यक्ति को लाया गया जो इंजीनियरिंग कॉलेजों के साथ गंठजोड़ रखने वाले वहाँ के एक अधिकारी एन सी जोशी के अनुकूल था। इससे मुझे कोई समस्या नहीं थी, परंतु विवाद मेरे एक सहयोगी नरेश दाधीच के साथ हुआ। मैंने नरेश दाधीच का साथ दिया। इस पर वहाँ विवाद होने लगा। मुझे गणित विभाग से हटा कर स्टैटिस्टिक्स विभाग में भेज दिया गया। इन सब बातों से ऊब कर मैंने वहाँ इस्तीफा दे दिया।’

राजू जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति के लिए नौकरियों की तो कोई कमी थी नहीं। उन्हें कई सारी नौकरियों के प्रस्ताव मिल गए। डॉक्टर राजू देश के अकादमिक संस्थाओं में चलने वाली राजनीति से ऊब चुके थे और इसलिए उन्होंने सीडैक में काम स्वीकार कर लिया। सीडैक में डॉ. राजू देश के पहले सुपर कम्प्यूटर परम बनाने में जुट गए। सीडैक भी पूना में ही था और इस प्रकार डा. राजू का वास्ता फिर उन लोगों से पडऩे लगा जिनसे विवाद के कारण वे पूना विश्वविद्यालय को छोड़ आए थे। दरअसल सीडैक में ढेर सारे प्रोजेक्ट थे जिस पर काम करने के लिए लोगों तथा संस्थाओं को वित्तीय सहायता दी जाती थी। उसके लिए उनके पास लोगों की भीड़ होने लगी। सीडैक में काम करते हुए डॉ. राजू को कैल्कुलस की खामी का उपाय मिला। वे बताते हैं, ‘पार्शियल डिफ्रेंशियल इक्वेशन की जिस समस्या पर मैं काम कर रहा था, वह काफी कठिन विषय माना जाता है। लेकिन वहाँ मैंने देखा कि इसे बड़ी ही सरल विधि से हल करते हैं। मुझे लगा कि इतने बड़े सिद्धांतों का क्या लाभ यदि हमें इसका समाधान इतनी आसानी से मिल रहा है। हालांकि मैंने उस समय आधुनिक गणित को छोड़ नहीं था, लेकिन यह बात मुझे परेशान कर रही थी कि यदि इसे हल करना इतना आसान है तो इसकी थ्योरी यानी कि सिद्धांत इतना कठिन क्यों है।’
यहाँ काम करते हुए डॉ. राजू को लगा कि विश्वविद्यालय छोडऩे के पीछे उनका एक उद्देश्य था कि वे समय के सिद्धांत पर अपने विचारों को और पुष्ट करने के लिए काम करना चाहते थे जो कि वहाँ की राजनीति में हो नहीं पा रहा था। अकादमिक जगत को छोडऩे के बाद उन्हें लगा कि उनका शोध का काम रूक गया है और उन्हें इसे करना ही चाहिए। वे सीडैक में रहते हुए अपनी समय के सिद्धांत पर काम करते रहे और पुस्तक भी पूरी कर ली। सीडैक में काम करते हुए उन्हें तीन वर्ष हो चुके थे। इस बीच उनकी भेंट दिल्ली में जगदीश मेहरा से हुई। डॉ. राजू सीडैक की ओर से एक मंत्रालय के कम्प्यूटरीकरण के लिए गए थे। किसी और को ढूंढने के क्रम में वे एक कमरे में घुसे तो उनकी भेंट जगदीश मेहरा से हो गई। जगदीश मेहरा उनकी क्षमता और योग्यता से परिचित थे।

जगदीश मेहरा उस समय रिचर्ड फाइनमेन की जीवनी लिख रहे थे और वे नोबल कमिटी के लिए भी काम करते थे। उन्हें राजू द्वारा जयंत नार्लीकर और रिचर्ड फाइनमेन की मतों पर किए गए कामों की कुछ जानकारी थी। उन्होंने डॉ. राजू से पूछा कि वे उस पर और क्या कर रहे हैं। सारी चर्चा के बाद उन्होंने डॉ. राजू पर कटाक्ष करते हुए कहा कि भौतिकी का काम छोड़ कर वे कम्प्यूटर बेचने का काम क्यों कर रहे हैं। जगदीश मेहरा ने केवल कटाक्ष नहीं किया, बल्कि जब वे अगली बार दिल्ली आए तो उन्होंने डॉ. राजू को दिल्ली बुलाया और उनके सामने ही यूजीसी के अध्यक्ष प्रो. यशपाल को फोन करके कहा कि डॉ. राजू भारत के सर्वश्रेष्ठ भौतिकविद् हैं, उन्हें कुछ काम दीजिए। उन्हें कम्प्यूटर के काम में क्यों छोड़ रखा है? प्रो. यशपाल ने इंटर यूनिवर्सिटी सेंटर फॉर एस्ट्रोनोमी एंड एस्ट्रोफिजिक्स (आयूका) में डॉ. राजू को काम करने का प्रस्ताव दिया। उस समय विख्यात विज्ञानी जयंत नार्लीकर उसके निदेशक थे। डॉ. राजू ने इससे पहले नार्लीकर के सिद्धांत को ही खारिज किया था। उन्होंने डॉ. राजू से पूछा कि वे क्या करने वाले हैं। डॉ. राजू ने उन्हें बताया कि वे समय के अपने सिद्धांत पर काम करने वाले हैं। इससे वे थोड़ असहज दिखे। अंतत: वह बात नहीं बनी। इस बीच प्रो. यशपाल सेवानिवृत्त हो गए और मनमोहन सिंह उसके अध्यक्ष हो गए। जगदीश मेहरा ने उन्हें भी पत्र लिखा। जगदीश मेहरा को लगता था कि यदि भारत को नोबल पुरस्कार के लिए प्रयास करना है तो डॉ. राजू जैसी प्रतिभाओं को सम्मान और कार्य देना चाहिए। परंतु कुछ हुआ नहीं।
इस बीच डॉ. राजू को शिमला इंस्टीट्यूट की फेलोशिप मिल गई। वे वहाँ चले गए और वहीं अपनी पुस्तक टाइम टुवाड्र्स एक कनसिस्टेंस थ्योरी को पूरा किया। उसमें डॉ. राजू ने समय के भारतीय और पाश्चात्य दोनों दर्शनों का गहन आलोड़न किया। इसमें उन्हें काफी समस्याएं भी आईं। डॉ. राजू कहते हैं, ‘पाश्चात्य दर्शन में लोगों ने सर्वेक्षण करके तथा सरल करके रखा है। परंतु भारतीय दर्शन में सीधे मूल ग्रंथों को ही देखना पड़ता है। एक-एक चीज के लिए यदि मूल ग्रंथों को देखना पड़े तो यह काफी बड़ा शोध प्रबंध बनता है। फिर भी मैंने इसे अपनी पुस्तक के पहले अध्याय में संक्षेपण करके डाला। फिर भी सब करने के बाद भी समय का दर्शन मेरी समझ में नहीं आया। इसमें बहुत सी चीजें चर्च की घुसी हुई हैं। अगस्टीन और एक्वानॉस के सिद्धांत इसमें शामिल हैं। इसलिए मैंने एक और फेलोशिप निस्टैड की ली।’ निस्टैड सीएसआईआर की प्रयोगशाला थी।

डॉ. राजू ने इस दौरान अपने शोध को और बढ़ाया। चार-पाँच वर्ष इस पर निरंतर शोध के बाद उन्हें इसके रहस्य ता पता चला। वे कहते हैं, ‘निस्टैड में काम करते हुए मैंने अपनी पुस्तक इलेवन पिक्चर्स ऑफ टाइम लिखी। उसे लिखते-लिखते मुझे इसका भेद समझ आया। समय की संकल्पना में विज्ञान और रिलीजियन किस प्रकार टकराते हैं? साथ विज्ञान में रिलीजियन किस प्रकार घुस गया है? यह उसमें घुसा है गणित के माध्यम से। स्टीफन हॉकिंग ने यह काम किया है। यह सब जानकर मुझे काफी धक्का लगा। स्टीफन हॉकिंग ने अगस्टीन के सिद्धांतों को लेकर समय के सिद्धांत में घुसा दिया। मैंने अपनी पुस्तक में उजागर किया है।’

डॉ. राजू इसलिए व्यथित थे कि उन्हें विश्वास नहीं हो पा रहा था कि विज्ञान में भी इस तरह का खिलवाड़ किया जा सकता है। वे कैल्कुलस की खामियों को स्पष्ट करते हुए पहले भी साबित कर चुके थे कि उसमें समय को एकरैखिक बना दिया जाता है जो कि हमारे सभी आस्थाओं के विरुद्ध है। डॉ. राजू कहते हैं, ‘हो सकता है कि हमारी आस्था गलत हो। परंतु ऐसा क्यों है कि हम मेटाफिजिक्स के आधार सभी को खारिज कर रहे हैं? यदि वास्तव में दुनिया किसी और प्रकार की है तो हम मान भी लेंगे, परंतु किसी ने कह दिया है, केवल इसलिए हम क्यों मान लें?’

इन सभी रहस्योद्घाटनों ने आधुनिक गणित पर डॉ. राजू की आस्था को हिला दिया। इसके बाद वर्ष 1996 में शून्य पर एक सेमीनार में वे गए तो उन्होंने वहाँ प्रस्तुत विषयों पर टिप्पणियां की। वहाँ कहा जा रहा था कि शून्य से विभाजन करना ब्रह्मगुप्त की गलती थी। इस पर डॉ. राजू ने कहा कि केवल इसलिए कि आधुनिक पद्धति में शून्य से विभाजन करना एक गलती है, इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि ब्रह्मगुप्त ने भी गलती की, हमें उसकी बात को समझना होगा। इस पर डॉ. राजू को इस पर एक पेपर प्रस्तुत करने के लिए कहा गया। उस सेमीनार में प्रख्यात गणितज्ञ और विज्ञान के इतिहासकार डेविड पिंगरी भी आए थे। वे इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कलाकेंद्र में संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञ के तौर पर आए हुए थे। उन्होंने राजू को मिलने के लिए बुलाया। उनसे बातचीत में एक मतभेद पर चर्चा करते हुए डॉ. राजू ने अनायास कह दिया कि कैल्कुलस का आविष्कार भारत में हुआ था। इस पर पिंगरी कुछ मिनटों तक चुप रह गए। उन्हें चुप देख कर डॉ. राजू को लगा कि अनायास कही गई उनकी बात ठीक निशाने पर लगी है क्योंकि पिंगरी भारतीय पांडुलिपियों के अधिकृत विशेषज्ञ हैं और उन्हें इसकी जानकारी अवश्य होगी। पिंगरी ने इसका प्रमाण मांगा तो डॉ. राजू ने कहा कि वे छह महीने में इसका प्रमाण देते हैं। हालांकि उन्हें इस काम में पूरे दस साल लगे।
गणित और विज्ञान को लेकर डॉ. राजू का यह संघर्ष दिनोंदिन और प्रखर होता गया। उनकी वैचारिक स्पष्टता काफी बढ़ती गई और धीरे-धीरे उन्होंने यूरोप में विकसित वर्तमान गणित को पूरी तरह नकार दिया। कैल्कुलस जैसे महाविद्यालयीन और उच्च गणित ही नहीं, वरन् डॉ. राजू ने प्रारंभिक कक्षाओं के लिए गणित को भी सरल और उपयोगी बनाने पर काम किया नहीं। एक ओर जहाँ उन्होंने कैल्कुलस विदाउट लिमिट का पाठ्यक्रम तैयार किया, वहीं दूसरी ओर उन्होंने सूत्र रेखागणित का पाठ्यक्रम भी बनाया। डॉ. राजू का साफ कहना है कि केवल यह कहने से काम नहीं चलेगा कि प्राचीन भारत में गणित के आधुनिक सूत्र विद्यमान हैं, हमें यह बताना होगा कि उन प्राचीन सूत्रों की आज क्या उपयोगिता है। इसी क्रम में पाइथागोरस प्रमेय के लिए शुल्ब सूत्रों को उद्धृत किए जाने पर उनका प्रश्न था कि यदि शुल्ब सूत्रों में वह प्रमेय हो भी तो क्या केवल नाम बदलने के लिए हम यह सारा श्रम कर रहे हैं? उन्होंने इसका उत्तर भी दिया। उन्होंने कहा कि केवल यह जानना पर्याप्त नहीं है कि हमारे यहाँ गणित की उच्चतम शाखाएं थीं, हमें यह जानना चाहिए कि हमारे पूर्वजों ने गणित को बेहतर ढंग से किया।

डॉ. राजू ने गणित और विज्ञान में चर्च के हस्तक्षेप को उजागर करने के लिए भी भारी परिश्रम किया है। उनका मानना है कि गणित और विज्ञान दोनों ही यदि आज कठिन माने जाते हैं, तो इसका बड़ा कारण है इनमें चर्च की थियोलोजी मेटाफिजिक्स के रूप में घुसेड़ा जाना। यदि चर्च की थियोलोजी को इसमें से निकाल दिया जाए और भारत की प्रत्यक्ष प्रमाण के तरीके को स्वीकार कर लिया जाए तो दोनों ही न केवल आसान हो जाएंगे, बल्कि आमजन के लिए अधिक उपयोगी होंगे। उन्होंने समय की उत्पत्ति के सिद्धांत और दर्शन को लेकर आईन्सटाइन और स्टीफन हॉकिंग दोनों को ही कठघड़े में खड़ा कर दिया है। उन्होंने पूरे गणितीय विश्व को चुनौती दी है कि यूरोप में गणित में अपनी श्रेष्ठता को स्थापित करने के लिए ग्रीक गणितज्ञों का इतिहास गढ़ा है। उन्होंने गणित के पिता माने जाने वाले यूक्लिड के अस्तित्व पर ही प्रश्न खड़ा कर दिया है। उन्होंने यूक्लिड की ऐतिहासिकता को साबित करने वाले को दो लाख रुपये का पुरस्कार देने की भी घोषणा कर रखी है। पिछले चार-पाँच वर्षों से वे यह चुनौती देते हुए पूरे विश्व में घूम रहे हैं। अभी तक कोई सामने नहीं आया है।

डॉ. राजू द्वारा बनाए गए पाठ्यक्रम मलेशिया विश्वविद्यालय और साउथ अफ्रीका के विश्वविद्यालय में पढ़ाए जाते रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने एसजीटी विश्वविद्यालय, गुरुग्राम, हरियाणा में भी कैल्कुलस विदाउट लिमिट का पाठ्यक्रम पढ़ाया। सत्तर वर्ष से अधिक के डॉ. राजू का उत्साह आज भी युवाओं को भी मात करता है। उनका प्रत्युतपन्नमतित्व और विनोदी स्वभाव उनकी विद्वता को आडम्बररहित और सरल बना देते हैं।

दुर्भाग्य यह है कि डॉ. राजू को भारत सरकार से जो सहयोग मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल सका। वे गणित और विज्ञान में जो परिवर्तन चाहते हैं, वे परिवर्तन केवल अकादमिक प्रयत्नों से नहीं लाए जा सकते। वे रिलीजियन और विज्ञान के जिस गंठजोड़ की बात कर रहे हैं, उसके पीछे चर्च की वैश्विक राजनीति है। इसलिए इन परिवर्तनों को लाने के लिए और विज्ञान को रिलीजियन से मुक्त करने के लिए अकादमिक प्रयासों के साथ-साथ राजनीतिक दृढ़ता और नीतिगत निर्णयों की भी आवश्यकता है जो सरकार द्वारा ही किया जा सकता है।

शोध एवं आलेख :- रवि शंकर
साभार :- भारतीय धरोहर पत्रिका

: ताम्बे के बर्तन में पानी पीने के फायदे –

*तांबा का प्रयोग पानी पीने के बर्तन बनाने में किया जाता रहा है. अगर तांबे के बरतन में रखा पानी कुछ अशुद्ध है तो यह कुछ ही घंटो में पानी के साथ प्रतिक्रिया करके शुद्ध हो जाता है. *

आजकल किसी भी घर की रसोई में देखें तो ज्यादातर बर्तन Stainless steel, कुछेक एल्युमीनियम, कांच, चीनी मिटटी के होंगे. याद करें पहले गांवों और शहरों में भी बहुत तरह के धातु से बने बर्तनों का उपयोग किया जाता था जैसे लोहा, कांसा, पीतल, तांबा, लकड़ी, चाँदी आदि.

तांबे के बर्तन में पानी क्यों पियें

– यह हमारे पाचन तंत्र को सुधारता है.

– वजन कम करने में सहायक है.

– घावों को जल्दी भरता है.

– बुढ़ापे की दर को कम करता है.

– हमारे हृदय तंत्र को पुष्ट करता है और हाइपरटेंशन में लाभदायक है.

– कैंसर का प्रतिरोधक है.

– बैक्टीरिया को मारता है.

– दिमाग को स्टीमुलेट करता है.

– थायराइड को नियंत्रित करता है.

– संधिवात और जोड़ों की सूजन कम करता है.

– खून की कमी दूर करता है.

– कोलेस्ट्रोल कम करता है.

– लीवर, स्प्लीन और लिंफ सिस्टम के लिए टॉनिक का काम करता है.

– मैलेनिन की रक्षा करता है.

– शरीर को लौह तत्व एब्सॉर्ब करने में सहायक है.

– किडनियों को साफ करता है.

– बालो की हर प्रकार की समस्या को दूर है.

– नियमित उषाकाल में इस पात्र के रखे जल को पीने से कब्जियत दूर होता है.

तांबे के बर्तन का प्रयोग

यह बात सही है कि भूतकाल में हमारे भारत में कई कुरीतियाँ-बुराइयाँ फैली थी, पर उस जमाने में विद्वानों, विचारकों के साथ ही साथ कई वैज्ञानिक और अनुसंधानकर्ता भी थे जो अपने प्रयोगों से प्रकृति के रहस्यों को उजागर करने का प्रयास करते रहते थे.

बर्तनों को उनके कार्य और उपयोग के हिसाब से अलग अलग धातुओं से बनाया जाता था क्योकि इनसे में कुछ धातुओं के बर्तन उनमे रखे जाने वाले भोज्य पदार्थ से रासायनिक प्रतिक्रिया करने लगते थे.

अतः इस बात का ध्यान रखा जाता था कि बर्तनों को धातु के गुण के अनुसार सही उपयोग में ही लाया जाये.

– तांबा के बर्तन में रखा पानी रासायनिक प्रतिक्रिया करके जीवाणुनाशक बन जाता है. यह ताम्बे का पानी स्वास्थ्य के अत्यंत लाभकारी होता है. यह पानी रक्त को शुद्ध करता है, पाचन तंत्र सुदृढ़ करता है.

– तांबे के बर्तन में रखे पानी में जीवाणुरोधी, एंटीऑक्सीडेट , कैंसररोधी और एंटीइन्फ्लेमेटरी गुण आ जाते हैं.

– वर्ष 2012 में हुई एक स्टडी में पता चला था कि सामान्य तापमान पर तांबे के बर्तन में 16 घंटे तक रखने पर दूषित पानी में मौजूद हानिकारक जीवाणुओं की संख्या में कमी आ गई थी.

वैज्ञानिको ने प्रयोग के तौर पर ऐसे पानी को लिया कि जिसमे पेट के पेचिश रोग को पैदा करने वाले वायरस, अमीबा ई-कोली थे. कुछ घंटो के पर्यवेक्षण के बाद वैज्ञानिको ने देखा कि हानिकारक बैक्टीरिया पूरी तरह से समाप्त हो चुके थे.

– भारत में तो लोग सदियों से इस बात को जानते हैं कि तांबे के बर्तन में रखे पानी में औषधीय गुण आ जाते हैं.

एक रिसर्च में यह पता चला कि अस्पतालों में तांबे की सतहों की मौजूदगी से ICU में पाए जानेवाले 97 प्रतिशत बैक्टीरिया नष्ट हो गए, जिनसे होनेवाले इन्फेक्शंस में 40 प्रतिशत की कमी आई.

इन्ही खूबियों को जानकर पहले समय के लोग तांबे के पात्र पानी रखने और पीने के काम लेते थे.

– भारतीय योगी सद्गुरु जग्गी वासुदेव कहते हैं – तांबे के पात्र में रात भर या कम से कम चार घंटे तक रखे गए पानी में तांबा धातु के वे गुण व्याप्त हो जाते हैं जिनसे शरीर, विशेषकर हमारे लीवरको बहुत लाभ पहुंचता है. यह शरीर को स्वस्थ और ऊर्जावान रखता है.

– हमें ऐसे लगता है कि बड़े बड़े अमीर लोग, हीरो-हिरोइन वगैरह किसी दूसरी दुनिया के बने खान-पान का प्रयोग करते हैं , ऐसा बिलकुल भी नहीं है.एक इंटरव्यू में करीना कपूर, मलाइका अरोरा ने बताया कि सुबह उठने पर सबसे पहले वो रात भर तांबे के जग में रखा हुआ पानी पीते है.

ताम्बे के बर्तन कैसे साफ़ करे –

जिस तांबे के बर्तन से आप पानी पीते हैं वह बर्तन एक दो दिन में धुलना अवश्य चाहिए. इसका कारण यह है कि तांबा पानी के साथ प्रतिक्रिया करके कॉपर ऑक्साइड बना देता है जोकि जंग जैसा बर्तन की दीवारों पर जम जाता है. इसे साफ करना आवश्यक है अन्यथा यह पानी तांबा धातु के लाभदायक फायदे नहीं दे पायेगा. व तांबे के पात्र से पानी पीते वक्त नंगे पांव न रहें व इस पात्र के रखे जल को कभी भी गर्म करके नहीं पीना चाहिए

बरसात के मौसम में हर इंसान को पूरे दिन इसी पात्र का रखा जल ही सेवन करना चाहिये व अन्य मौसम में उषाकाल में मात्र व किसी कॉपर की कमी से उतपन्न रोग से ग्रसित हो तो कभी भी

तांबे के बरतन साफ करने का आसान उपाय है. नींबू, खटाई, केचप या नमक और सफ़ेद सिरका से ताम्बे के बर्तन रगड़ें और दाग छुड़ा लें. इसके बाद किसी डिटरजेंट से धुल दें. बर्तन एकदम नए चमकने लगेंगे.

– आजकल तांबे के बने बर्तनों के प्रयोग बस तांबे के छोटे से लोटे के रूप में होता है, जिसे घर-मंदिर में पूजा पाठ और सूर्य को अर्घ्य देने में प्रयोग किया जाता है.

एक समझदार व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने पूर्वजो की इस परम्परा का पालन करे/न करे पर कम से कम तांबे के फायदे जानकर ही सही तांबे के बरतनों का प्रयोग पानी पीने में करें.

तांबे के बर्तन, गिलास, लोटा आदि आपको किसी भी बरतन की दुकान से मिल सकते है. व मेरे पास कॉपर की बोतल उपलब्ध है

मेरी दिल की तम्मना है हर इंसान का स्वस्थ स्वास्थ्य के हेतु समृद्धि का नाश न हो इसलिये इन ज्ञान को अपनाकर अपना व औरो का स्वस्थ व समृद्धि बचाये। ज्यादा से ज्यादा शेयर करें और जो भाई बहन इन सामाजिक मीडिया से दूर हैं उन्हें आप व्यक्तिगत रूप से ज्ञान दें

आप अपने सगे संबंधियों व जाने अनजाने दोस्तों अर्थात हर इंसान तक इस संदेश को पहुँचाये।

अगर आप मेरी बातों से सहमत हो तो इसे अपने जानकारों तक ज्यादा से ज्यादा शेयर करें


: कान दर्द सामान्य स्तर का है तो आप इन घरेलू उपायों से भी उसे ठीक कर सकते हैं.

  1. ऑलिव ऑयल के इस्तेमाल से
    अगर आपको कान दर्द है और सहन कर पाना मुश्क‍िल है तो ऑलिव ऑयल का इस्तेमाल आपको तुरंत राहत देगा. ऑलिव आयल को हल्का गर्म कर लें. इसकी दो से तीन बूंद कान में डालें या फिर कॉटन बड की मदद से तेल को कान में लगा लें.
  2. लहसुन के इस्तेमाल से
    अगर कान दर्द संक्रमण की वजह से है तो लहसुन का इस्तेमाल आपको राहत देगा. लहसुन की एक या दो कली को तिल के तेल में गर्म कर लें. इसे ठंडा होने दें. जब ये ठंडा हो जाए तो इसकी एक या दो बूंद को कान में डालिए. ऐसा करने से फायदा होगा.
  3. प्याज के इस्तेमाल से
    प्याज एक ऐसी चीज है जो लगभग सभी घरों में आसानी से मिल जाती है. इसका एंटीसेप्टिक और एंटीबैक्टीरियल गुण कान दर्द में आराम देता है. प्याज के रस को हल्का गर्म कर लीजिए. इस रस के इस्तेमाल से राहत मिलेगी.
  4. पानी की गर्म बोतल
    कान दर्द में गर्माहट मिलने पर आराम महसूस होता है. हॉट वॉटर बोतल को कपड़े में लपेटकर कान पर लगाने से फायदा होगा.
  5. नीम और तुलसी की पत्तियों से
    इन दोनों में ही एंटी-बैक्टीरियल गुण पाया जाता है. कान दर्द होने पर इन दोनों पत्त‍ियों का इस्तेमाल बहुत कारगर होता है. इन दोनों को ही इस्तेमाल करने का तरीका एक ही है. कुछ पत्त‍ियों को हाथ से मलकर उनका रस निकाल लें. इसकी एक या दो बूंद कान में डालने से फायदा होगा.
    [26/07, 22:18] Daddy: 🍃 आरोग्यं सलाह :-
    आँखों में चमक बरकरार रखने के नुस्खे –
    1- बादाम,सौंफ और मिश्री को बराबर मात्रा में लेकर उसे पीस लें। इस मिश्रण का 10 ग्राम हिस्सा 250 मिली दूध के साथ रात में सोने से पहले लें। 40 दिन तक लगातार इसे इस्तेमाल करने से आप महसूस करेंगे कि आंखों की रोशनी बढ़ी है। याद रहे इसे लेने के दो घंटे बाद तक पानी न पिए।

2- आंवला में विटामिन सी की मात्रा ज्यादा होने से यह आंखों के लिए बहुत फायदेमंद होता है। आंवला का सेवन पाउडर, कैप्सूल, जैम या जूस की तरह किया जा सकता है। हर सुबह शहद के साथ ताजा आमले का रस पीने से या रात में सोने से पहले पानी के साथ एक चम्मच आमला पाउडर खाने से भी फायदा मिलता है।

3- एक चम्मच त्रिफला पाउडर को पानी में डाल कर रात भर के लिए छोड़ दें। अगली सुबह इस पानी को छान कर इसी से आंखें धुलें। साथ ही अगर आंखें धुलते वक्त मुंह में ताजा पानी भरे रखेंगे तो और भी फायदा मिलेगा। एक ही महीने में आपको फर्क महसूस होगा।
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: बार-बार पानी पीने से भी न बुझे प्यास, तो आजमाएं घरेलू नुस्खे


1   पानी में शहद मिलाकर कुल्ला करने या लौंग को मुंह में रखकर चूसने से बार-बार लगने वाली प्यास शांत होती है।
2 . बार-बार प्यास लगने की इस समस्या को जायफल से भी दूर किया जा सकता है इसके लिए बस जायफल का एक टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहें। आपको प्यास नहीं लगेगी।
3 गाय के दूध से बना दही 125 ग्राम, शकर 60 ग्राम, घी 5 ग्राम, शहद 3 ग्राम व काली मिर्च-इलायची चूर्ण 5-5 ग्राम लें। दही को अच्छी तरह मलकर उसमें अन्य पदार्थों को मिलाएं और किसी स्टील या कलई वाले बर्तन में रख दें। उसमें से थोड़ा-थोड़ा दही सेवन करने से बार-बार लगने वाली प्यास शांत होती है।
4जौ के भुने सत्तू को पानी में घोलकर, उसमें थोड़ा सा घी मिलाकर पतला-पतला पीने से भी प्यास शांत होती है।
5 चावल के मांड में शहद मिलाकर पीने से भी तृष्णा रोग यानि बार-बार प्यास लगना या प्यास न बुझने की समस्या में आराम मिलता है।
6 पीपल की छाल को जलाकर पानी में डाल दें और जब यह राख नीचे बैठ जाए, तो उस पानी को छानकर पिएं। ऐसा करने से प्यास शांत होगी। इसके अलावा पीपल का चूर्ण बनाकर फक्की लगाकर पानी पीने से भी प्यास लगना बंद होगी।
7 पान खाना भी प्यास से मुक्ति पाने का बेहद आसान और कारगर उपाय है। पान खाने से प्यास कम लगती है और मुंह और गला भी नहीं सूखता।
8 दही में गुड़ मिलाकर खाना भी प्यास बुझाने का एक कारगर घरेलु उपाय है। इससे खाना खाने के बाद लगने वाली तेज प्यास को कम किया जा सकता है।
[पिशाब की समस्या में : 

🌹(१.) पिशाब में जलन होना, पिशाब कम होना, दुर्गन्ध आना, पिशाब में दर्द, तथा मूत्र कृच्छ(रुक-रुक कर पिशाब आना) में १ गिलास अनन्नास का रस, १ चम्मच मिश्री डालकर भोजन से पूर्व लेने से पिशाब खुलकर आता है और पिशाब सम्बन्धी अन्य समस्याए दूर होती है|

🌻(२.) पिशाब अधिक आता हो तो अनन्नास के रस में जीरा, जैफ्ल, पीपल इनका चूर्ण बनाकर सभी १-१ चुटकी और थोडा काला नमक डालकर पीने से पिशाब ठीक होता है|

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: वास्तु के 15 आसान उपाय

  • घर में सप्ताह में एक बार गूगल का धुआं करना शुभ होता है।
  • गेहूं में नागकेशर के 2 दाने तथा तुलसी की 11 पत्तियां डालकर पिसाया जाना शुभ है।
  • घर में सरसों के तेल के दीये में लौंग डालकर लगाना शुभ है।
  • हर गुरुवार को तुलसी के पौधे को दूध चढ़ाना चाहिए।
  • तवे पर रोटी सेंकने के पूर्व दूध के छींटें मारना शुभ है।
  • पहली रोटी गौ माता के लिए निकालें।
  • मकान में 3 दरवाजे एक ही रेखा में न हों।
  • सूखे फूल घर में नहीं रखें।
  • संत-महात्माओं के चित्र आशीर्वाद देते हुए बैठक में लगाएं।
  • घर में टूटी-फूटी, कबाड़, अनावश्यक वस्तुओं को नहीं रखें।
  • दक्षिण-पूर्व दिशा के कोने में हरियाली से परिपूर्ण चित्र लगाएं।
  • घर में टपकने वाले नल नहीं होना चाहिए।
  • घर में गोल किनारों के फर्नीचर ही शुभ हैं।
  • घर में तुलसी का पौधा पूर्व दिशा की गैलरी में या पूजा स्थान के पास रखें।
  • वास्तु की मानें तो उत्तर या पूर्व दिशा में की गई जल की निकासी आर्थिक दृष्टि से शुभ होती है। इसलिए घर बनाते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखना चाहिए।
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    : 🔥शनिदेव को प्रसन्न करने के 6 उपाय🔥

शनिदेव को ग्रहों में न्यायाधीश का पद प्राप्त है। वह मनुष्य के अच्छे-बुरे कर्मों का फल देते हैं। शनिदेव की टेड़ी नजर जिस व्यक्ति पर पड़ा जाए, वह राजा से रंक बन जाता है। ऐसे में शनिदेव को प्रसन्न करना बहुत जरूरी है।
यहां हम आपको ऐसे ही कुछ उपाय बता रहे हैं जिन्हें आजमाकर आप शनिदेव को प्रसन्न कर सकते हैं।

•👉शमी वृक्ष की जड़ को विधि-विधान पूर्वक घर लेकर आएं। शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में या किसी योग्य विद्वान से अभिमंत्रित करवा कर काले धागे में बांधकर गले या बाजू में धारण करें। शनिदेव प्रसन्न होंगे तथा शनि के कारण जितनी भी समस्याएं हैं, उनका निदान होगा।
•👉शनिवार के दिन शनि यंत्र की स्थापना व पूजन करें। इसके बाद प्रतिदिन इस यंत्र की विधि-विधान पूर्वक पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं। प्रतिदिन यंत्र के सामने सरसों के तेल का दीप जलाएं। नीला या काला पुष्प चढ़ाएं ऐसा करने से लाभ होगा।
•👉प्रत्येक शनिवार के दिन बंदरों और काले कुत्तों को बूंदी के लड्डू खिलाने से भी शनि का कुप्रभाव कम हो जाता है अथवा काले घोड़े की नाल या नाव में लगी कील से बना छल्ला धारण करें।
•👉चोकर युक्त आटे की 2 रोटी लेकर एक पर तेल और दूसरी पर शुद्ध घी लगाएं। तेल वाली रोटी पर थोड़ा मिष्ठान रखकर काली गाय को खिला दें। इसके बाद दूसरी रोटी भी खिला दें और शनिदेव का स्मरण करें।
•👉शनिवार के दिन भैरवजी की उपासना करें और शाम के समय काले तिल के तेल का दीपक लगाकर शनि दोष से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।
•👉काले धागे में बिच्छू घास की जड़ को अभिमंत्रित करवा कर शनिवार के दिन श्रवण नक्षत्र में या शनि जयंती के शुभ मुहूर्त में धारण करने से भी शनि संबंधी सभी कार्यों में सफलता मिलती है।
🔱⚜🔥🙏🏻🕉🙏🏻🔥⚜🔱💐
[देश में एक ऐसा वर्ग बन गया है जो कि संस्कृत भाषा से तो शून्य हैं परंतु उनकी छद्म धारणा यह बन गयी है कि संस्कृत भाषा में जो कुछ भी लिखा है वे सब पूजा पाठ के मंत्र ही होंगे जबकि वास्तविकता इससे भिन्न है।

देखते हैं –

“चतुरस्रं मण्डलं चिकीर्षन्न् अक्षयार्धं मध्यात्प्राचीमभ्यापातयेत्।
यदतिशिष्यते तस्य सह तृतीयेन मण्डलं परिलिखेत्।”

बौधायन ने उक्त श्लोक को लिखा है !
इसका अर्थ है –

यदि वर्ग की भुजा 2a हो
तो वृत्त की त्रिज्या r = [a+1/3(√2a – a)] = [1+1/3(√2 – 1)] a
ये क्या है ?

अरे ये तो कोई गणित या विज्ञान का सूत्र लगता है

शायद ईसा के जन्म से पूर्व पिंगल के छंद शास्त्र में एक श्लोक प्रकट हुआ था।हालायुध ने अपने ग्रंथ मृतसंजीवनी मे , जो पिंगल के छन्द शास्त्र पर भाष्य है ,
इस श्लोक का उल्लेख किया है –

परे पूर्णमिति।
उपरिष्टादेकं चतुरस्रकोष्ठं लिखित्वा तस्याधस्तात् उभयतोर्धनिष्क्रान्तं कोष्ठद्वयं लिखेत्।
तस्याप्यधस्तात् त्रयं तस्याप्यधस्तात् चतुष्टयं यावदभिमतं स्थानमिति मेरुप्रस्तारः।
तस्य प्रथमे कोष्ठे एकसंख्यां व्यवस्थाप्य लक्षणमिदं प्रवर्तयेत्।
तत्र परे कोष्ठे यत् वृत्तसंख्याजातं तत् पूर्वकोष्ठयोः पूर्णं निवेशयेत्।

शायद ही किसी आधुनिक शिक्षा में maths मे B. Sc. किये हुए भारतीय छात्र ने इसका नाम भी सुना हो , जबकि यह “मेरु प्रस्तार” है।
परंतु जब ये पाश्चात्य जगत से “पास्कल त्रिभुज” के नाम से भारत आया तो उन कथित सेकुलर भारतीयों को शर्म इस बात पर आने लगी कि भारत में ऐसे सिद्धांत क्यों नहीं दिये जाते।

“चतुराधिकं शतमष्टगुणं द्वाषष्टिस्तथा सहस्राणाम्।
अयुतद्वयस्य विष्कम्भस्यासन्नो वृत्तपरिणाहः॥”

ये भी कोई पूजा का मंत्र ही लगता है लेकिन ये किसी गोले के व्यास व परिध का अनुपात है। जब पाश्चात्य जगत से ये आया तो संक्षिप्त रुप लेकर आया ऐसा π जिसे 22/7 के रुप में डिकोड किया जाता है।

उक्त श्लोक को डिकोड करेंगे अंकों में तो कुछ इस तरह होगा-
(१०० + ४) * ८ + ६२०००/२०००० = ३.१४१६

ऋगवेद में π का मान ३२ अंक तक शुद्ध है।

गोपीभाग्य मधुव्रातः श्रुंगशोदधि संधिगः |
खलजीवितखाताव गलहाला रसंधरः ||

इस श्लोक को डीकोड करने पर ३२ अंको तक π का मान 3.1415926535897932384626433832792… आता है।

चक्रीय_चतुर्भुज का क्षेत्रफल:

ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त के गणिताध्याय के क्षेत्रव्यवहार के श्लोक १२.२१ में निम्नलिखित श्लोक वर्णित है-

स्थूल-फलम् त्रि-चतुर्-भुज-बाहु-प्रतिबाहु-योग-दल-घातस् ।
भुज-योग-अर्ध-चतुष्टय-भुज-ऊन-घातात् पदम् सूक्ष्मम् ॥

अर्थ:

त्रिभुज और चतुर्भुज का स्थूल (लगभग) क्षेत्रफल उसकी आमने-सामने की भुजाओं के योग के आधे के गुणनफल के बराबर होता है तथा सूक्ष्म (exact) क्षेत्रफल भुजाओं के योग के आधे में से भुजाओं की लम्बाई क्रमशः घटाकर और उनका गुणा करके वर्गमूल लेने से प्राप्त होता है।

ब्रह्मगुप्त_प्रमेय:

चक्रीय चतुर्भुज के विकर्ण यदि लम्बवत हों तो उनके कटान बिन्दु से किसी भुजा पर डाला गया लम्ब सामने की भुजा को समद्विभाजित करता है।

ब्रह्मगुप्त ने श्लोक में कुछ इस प्रकार अभिव्यक्त किया है-

त्रि-भ्जे भुजौ तु भूमिस् तद्-लम्बस् लम्बक-अधरम् खण्डम् ।
ऊर्ध्वम् अवलम्ब-खण्डम् लम्बक-योग-अर्धम् अधर-ऊनम् ॥
(ब्राह्मस्फुटसिद्धान्त, गणिताध्याय, क्षेत्रव्यवहार १२.३१)

वर्ग_समीकरण का व्यापक सूत्र:

ब्रह्मगुप्त का सूत्र इस प्रकार है-

वर्गचतुर्गुणितानां रुपाणां मध्यवर्गसहितानाम् ।
मूलं मध्येनोनं वर्गद्विगुणोद्धृतं मध्यः ॥
ब्राह्मस्फुट-सिद्धांत – 18.44

अर्थात :

व्यक्त रुप (c) के साथ अव्यक्त वर्ग के चतुर्गुणित गुणांक (4ac) को अव्यक्त मध्य के गुणांक के वर्ग (b²) से सहित करें या जोड़ें। इसका वर्गमूल प्राप्त करें तथा इसमें से मध्य अर्थात b को घटावें।
पुनः इस संख्या को अज्ञात ञ वर्ग के गुणांक (a) के द्विगुणित संख्या से भाग देवें।
प्राप्त संख्या ही अज्ञात “त्र” राशि का मान है।

श्रीधराचार्य ने इस बहुमूल्य सूत्र को भास्कराचार्य का नाम लेकर अविकल रुप से उद्धृत किया —

चतुराहतवर्गसमैः रुपैः पक्षद्वयं गुणयेत् ।
अव्यक्तवर्गरूपैर्युक्तौ पक्षौ ततो मूलम् ॥ — भास्करीय बीजगणित, अव्यक्त-वर्गादि-समीकरण, पृ. – 221

अर्थात :-

प्रथम अव्यक्त वर्ग के चतुर्गुणित रूप या गुणांक (4a) से दोनों पक्षों के गुणांको को गुणित करके द्वितीय अव्यक्त गुणांक (b) के वर्गतुल्य रूप दोनों पक्षों में जोड़ें। पुनः द्वितीय पक्ष का वर्गमूल प्राप्त करें।☺

आर्यभट्ट की ज्या (Sine) सारणी:

आर्यभटीय का निम्नांकित श्लोक ही आर्यभट की ज्या-सारणी को निरूपित करता है:

मखि भखि फखि धखि णखि ञखि ङखि हस्झ स्ककि किष्ग श्घकि किघ्व ।
घ्लकि किग्र हक्य धकि किच स्ग झश ङ्व क्ल प्त फ छ कला-अर्ध-ज्यास् ॥

माधव की ज्या सारणी:

निम्नांकित श्लोक में माधव की ज्या सारणी दिखायी गयी है। जो चन्द्रकान्त राजू द्वारा लिखित ‘कल्चरल फाउण्डेशन्स आफ मैथमेटिक्स’ नामक पुस्तक से लिया गया है।

श्रेष्ठं नाम वरिष्ठानां हिमाद्रिर्वेदभावनः।
तपनो भानुसूक्तज्ञो मध्यमं विद्धि दोहनं।।
धिगाज्यो नाशनं कष्टं छत्रभोगाशयाम्बिका।
म्रिगाहारो नरेशोऽयं वीरोरनजयोत्सुकः।।
मूलं विशुद्धं नालस्य गानेषु विरला नराः।
अशुद्धिगुप्ताचोरश्रीः शंकुकर्णो नगेश्वरः।।
तनुजो गर्भजो मित्रं श्रीमानत्र सुखी सखे!।
शशी रात्रौ हिमाहारो वेगल्पः पथि सिन्धुरः।।
छायालयो गजो नीलो निर्मलो नास्ति सत्कुले।
रात्रौ दर्पणमभ्राङ्गं नागस्तुङ्गनखो बली।।
धीरो युवा कथालोलः पूज्यो नारीजरैर्भगः।
कन्यागारे नागवल्ली देवो विश्वस्थली भृगुः।।
तत्परादिकलान्तास्तु महाज्या माधवोदिताः।
स्वस्वपूर्वविशुद्धे तु शिष्टास्तत्खण्डमौर्विकाः।।
(२.९.५)

संख्या_रेखा की परिकल्पना (कॉन्सेप्ट्)

“एकप्रभृत्यापरार्धसंख्यास्वरूपपरिज्ञानाय रेखाध्यारोपणं कृत्वा एकेयं रेखा दशेयं, शतेयं, सहस्रेयं इति ग्राहयति, अवगमयति, संख्यास्वरूम, केवलं, न तु संख्याया: रेखातत्त्वमेव।”
Brhadaranyaka Aankarabhasya (4.4.25)

जिसका अर्थ है-

1 unit, 10 units, 100 units, 1000 units etc. up to parardha can be located in a number line. Now by using the number line one can do operations like addition, subtraction and so on.

ये तो कुछ नमूना हैं , जो ये दर्शाने के लिये दिया गया है कि संस्कृत ग्रंथो में केवल पूजा पाठ या आरती के मंत्र नहीं है बल्कि तमाम विज्ञान भरा पड़ा है।

दुर्भाग्य से कालांतर में व विदेशी आक्रांताओं के चलते संस्कृत का ह्रास होने के कारण हमारे पूर्वजों के ज्ञान का भावी पीढ़ी द्वारा विस्तार नहीं हो पाया और बहुत से ग्रंथ आक्रांताओं द्वारा नष्ट भ्रष्ट कर दिए गए ।

वन्दे संस्कृत मातरम् 🙏🏼
[ शिवप्रिया, विजया अर्थात भंग- – – – –

भारत में एलोपैथी और शराब का धंधा जमाने के लिए अंग्रेजों ने भांग को बदनाम कर प्रतिबंधित कर दिया। आइए इनके बदरंग में भंग करे, भंग का रंग जमा कर

  • इसके पत्ते मसल कर कान में दो दो बूंद रस डालने से दर्द गायब हो जाता है।
  • सिरदर्द में इसके पत्ते पीस कर सूंघे या इसका दो दो बूंद रस नाक में डाले।
  • इसके चुटकी भर चूर्ण में पीपर, काली मिर्च व सौंठ डाल कर लेने से खांसी में लाभ होता है।
  • नपुंसकता और शारीरिक क्षीणता के लिए भांग के बीजों को भूनकर चूर्ण बना कर एक चम्मच नित्य सेवन करे।
  • अफगानी पठान इसके बीज फांकते है तभी लंबे चौड़े होते है। भारतीय दिन पर दिन लंबाई में घट रहे है।
  • संधिवात में भी इसके भूने बीजों का चूर्ण लाभकारी है।
  • यह वायु मंडल को शुद्ध करता है।
  • इससे पेपर, कपड़ा आदि बनता है।
  • इसका कपड़ा एंटी कैंसर होता है।
  • यह टीबी, कुष्ठ, एड्स, कैंसर, दमा, मिर्गी, मानसिक रोग जैसे 100 रोगों का इलाज करता है।
  • सिद्ध आयुर्वेद में इसका बहुत महत्व है। यह सूक्ष्म शरीर पर पहले कार्य करता है।
  • तपस्वी, ऋषि मुनि इसका सेवन साधना में लाभ के लिए करते है।
  • इसके सेवन से भूख प्यास , डिप्रेशन नहीं होता।
  • शरीर के विजातीय तत्वों या टॉक्सिंस को यह दूर करता है।
  • इसके बीजों का चूर्ण , ककड़ी के बीजों के साथ शर्बत की तरह पीने से सभी मूत्र रोग दूर होते है।
  • यह ग्लूकोमा में आंख की नस से दबाव हटाता है।
  • अलझेइमर में भांग का तेल लाभकारी है।
  • भांग का तेल कैंसर के ट्यूमर के कोशिकाओं की वृद्धि रोक देता है।
  • इसके प्रयोग से कीमोथेरेपी के साइड इफेक्ट दूर हो जाते है।
  • डायबिटीज से होने वाले नर्वस के नुकसान से भांग बचाता है।
  • भांग हेपेटाइटिस सी के इलाज में सफल है।
  • गाजर घास जैसी विषैली जड़ियों को रोक सकता है।
  • डायरिया और डिसेंट्री के लिए प्रयोग में आने वाले बिल्वादी चूर्ण में भांग भी होता है।
  • इसके पत्तियों के चूर्ण को सूंघने मात्र से अच्छी नींद आती है।
  • संग्रहनी या कोलाइटिस में इसका चूर्ण सौंफ और बेल की गिरी के साथ लिया जाता है।
  • हाइड्रोसिल में इसके पत्ते पीस कर बांधने से लाभ होता है।
  • भांग के बीजों को सरसो के तेल में पका कर छान ले। यह तेल दर्द निवारक होता है।
  • इसके पत्ते डाल कर उबाले पानी से घाव धोने से इंफेक्शन नहीं होता और घाव जल्दी भर जाता है।
  • इतने सारे गुण होते हुए भी अंग्रजों ने षड़यंत्र कर इसे प्रतिबंधित कर दिया। जिसे भारतीय अंग्रजों ने आगे बढ़ाया।
  • यह ज्योतिर्लिंगों और कुछ राज्यों में प्रतिबंधित नहीं है। शिवरात्रि , श्रावण आदि में यह शिव पूजा के लिए मिलता है। इसके बिना शिवपूजा अपूर्ण है।
  • गुणों के कारण इसे काला सोना भी कहा गया है।
  • विदेशों में इस पर बहुत शोध हुआ है और इसका प्रयोग हो रहा है।
    -(प्रिया मिश्रा नाम की एक 21 वर्षीय युवती को लिंफ नोड्स का असाध्य टीबी हुआ था। वह बहुत ही कष्ट में थी।डॉक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे। तब एक कामवाली बाई ने उन्हें भांग फूंकने को दी। आश्चर्यजनक रूप से कुछ दिनों में वह ठीक हो गई। तब से प्रिया मिश्रा ने अपना जीवन भांग के महत्व को सभी को बताने में समर्पित कर दिया। येभारत की एकमात्र महिला एक्टिविस्ट है जो भांग के लिए कार्यरत है। भारत में इस पर से प्रतिबंध हटना चाहिए और इसका तथा आयुर्वेद का महत्व बढ़े इसके लिए ये प्रतिबद्ध है, कार्यरत है। इसे अंग्रेज़ी में हेंप कहते है। इनका संस्थान हेंपवती भांग के औषधीय , शोध, पोषक और अन्य उत्पादों के लिए कार्यरत है। )
  • यह ड्रग्स की श्रेणी में नहीं आता। यह एक औषधि है।
    : गर्म पानी है अमृत

कुछ स्वास्थ्य समस्याओं को हल करने में गर्म पानी 100% प्रभावी है। जैसे कि :–

1 माइग्रेन
2 High BP
3 Low BP
4 जोड़ों के दर्द
5 दिल की धड़कन की अचानक तेज़ी और कमी
6 मिर्गी
7 Cholestrol का बढ़ता Level
8 खांसी
9 शारीरिक असुविधा
10 गोलु दर्द
11 अस्थमा
12 पुरानी खांसी
13 नसों के रुकावट
14 Uterus और Urine से संबंधित रोग
15 पेट समस्याओं
16 भूख की कमी
17 आँखें, कान और गले से संबंधित सभी बीमारियां
18 सिरदर्द

गर्म पानी का उपयोग कैसे करें ?

सुबह जल्दी उठें और Toilet से फारिग होने के बाद लगभग 4 गिलास गर्म पानी (लगभग 1 से सवा लीटर) पीयें। शुरू में 4 गिलास पीने में असुविधा हो सकती है लेकिन धीरे धीरे आप आदत बना लेंगे।

गर्म पानी लेने के बाद 45 मिनट के अंदर कुछ भी नहीं खाएं।

गर्म जल के लाभ

🤙30 दिनों में diabetese पर प्रभाव
🤙30 दिनों में BP पर प्रभाव
🤙10 दिनों में पेट की समस्याएं
🤙9 महीनों में सभी प्रकार के कैंसर पर प्रभाव
🤙6 महीनों में नसों की रुकावट में काफी कमी
🤙10 दिनों में भूख की कमी दूर
🤙10 दिनों में UTERUS और संबंधित रोग
🤙10 दिनों में नाक, कान और गले की समस्याएं
🤙15 दिनों में महिला समस्याएं
🤙30 दिनों में हृदय रोग
🤙3 दिनों में सिरदर्द/माइग्रेन
🤙4 महीने में CHOLESTROL
🤙 9 महीनों में लगातार मिर्गी और पक्षाघात
🤙4 महीने में अस्थमा

ठंडा पानी आपके लिए हानिकारक है

अगर ठंडा पानी आपको कम उम्र में प्रभावित नहीं करता है, तो यह आपको बुढ़ापे में नुक्सान पहुंचाएगा।

🙀 ठंडा पानी दिल की नसों को बंद कर देता है और दिल का दौरा पड़ सकता है। COLD DRINK हार्ट अटैक का मुख्य कारण है

🙀 यह LEVER में भी समस्याएं पैदा करता है।
🙀 यह FAT को जिगर के साथ चिपका देता है। जिगर प्रत्यारोपण के लिए इंतजार कर रहे अधिकांश लोग ठंडे पानी पीने के शिकार हैं।

🙀 ठंडा पानी पेट की आंतरिक दीवारों को और कैंसर में बड़ी आंत को प्रभावित करता है।
[ अगर कोई ग्रह बन रहा है आपके विवाह में बाधा तो करें ये उपाय-

अगर ग्रह ठीक ना हों तो शादी होने में समस्याएं आती हैं. और अगर शादी हो भी गई तो रिश्ते में समस्याएं आती रहती हैं.

आइए जानते हैं वे कौन से ग्रह हैं जो आपके वैवाहिक जीवन को प्रभावित करते हैं और क्या है बचने के उपाय.

शनि-

  • वैवाहिक जीवन के टूटने में सबसे बड़ी भूमिका शनि निभाता है.
  • अगर शनि का सम्बन्ध विवाह भाव या इसके ग्रह से हो, तो विवाह भंग होता ही है.
  • शनि अगर विवाह भंग करने का कारण हो तो इसके पीछे घर के लोग जिम्मेदार माने जाते हैं.
  • अगर शनि की वजह से वैवाहिक जीवन में समस्या आ रही हो तो शिव जी को नित्य प्रातः जल चढ़ाएं.
  • साथ ही हर शनिवार को लोहे के बर्तन में भरकर सरसों के तेल का दान करें.

मंगल-

  • वैवाहिक जीवन में विच्छेदन के अलावा अगर मामला हिंसा तक पहुंच गया हो तो इसके पीछे मंगल होता है.
  • मंगल जब वैवाहिक जीवन में समस्या देता है. तो मामला मार-पीट तक पहुंच जाता है.
  • इसमें वैवाहिक सम्बन्ध, विवाह के बाद बहुत ही जल्दी भंग हो जाता है.
  • इसमें मामला कोर्ट कचहरी तक भी तुरंत पहुचता है.
  • अगर मंगल की वजह से समस्या आ रही हो तो मंगलवार का उपवास रखें.
  • हर मंगलवार को निर्धनों को मीठी चीजों का दान करें.
  • लाल रंग का प्रयोग कम से कम करें.
    जानें, चन्द्रमा के सबसे अशुभ योग ‘केमद्रुम’ से बचने के उपाय

राहु-केतु-

  • विवाह के मामलों में शक और वहम जैसी चीजों को पैदा करना राहु-केतु का काम है.
  • अगर राहु-केतु विवाह संबंधों में बाधा देते हैं तो बेवजह शक पैदा होता है.
  • और कभी-कभी जीवनसाथी दूसरे को छोड़कर दूर चला जाता है.
  • इसमें वैवाहिक जीवन रहने के बावजूद, जीवन भर अलगाव झेलना पड़ता है.
  • भगवान विष्णु की उपासना करें.
  • जल में कुश डालकर स्नान करें.
  • शनिवार के दिन मीठी चीजें बिलकुल न खाएं.

सूर्य-

  • विवाह के मामलों में सूर्य का दुष्प्रभाव हो तो जीवनसाथी के करियर में बाधाएं आती हैं.
  • या कभी-कभी अहंकार के कारण आपसी सम्बन्ध खराब हो जाते हैं.
  • यहां पर बहुत सोच समझकर शांतिपूर्ण तरीके से विवाह भंग होता है.
  • हालांकि शादी के काफी समय बीत जाने के बाद यहां विवाह विच्छेद होता है.
  • नित्य प्रातः सूर्य को रोली मिला हुआ जल अर्पित करें.
  • एक ताम्बे का छल्ला जरूर धारण करें.
  • गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करना भी शुभ परिणाम देगा

बृहस्पति-

  • कुंडली में अगर बृहस्पति अच्छा हो तो विवाह की बाधाओं को समाप्त करता है.
  • अगर सप्तम भाव के स्वामी पर इसकी दृष्टि हो तो विवाह की बाधा को समाप्त करता है.
  • लग्न में बैठा हुआ बृहस्पति सर्वाधिक शक्तिशाली होता है. और वह समस्त बाधाओं का नाश कर देता है.
  • परन्तु अगर बृहस्पति सप्तम भाव में हो तो कभी-कभी व्यक्ति अविवाहित भी रहता है.
  • अगर बृहस्पति अनुकूल हो तो पीली चीजों का दान कभी न करें.
  • अगर बृहस्पति खराब हो तो केले का दान करें, सर्वोत्तम होगा.
  • अगर बृहस्पति के कारण विवाह ही न हो पा रहा हो तो विद्या का दान करें.

शुक्र-

  • बिना शुक्र के वैवाहिक या पारिवारिक सुख मिल ही नहीं सकता.
  • अगर शुक्र कमजोर हो तो वैवाहिक जीवन खराब होता है.
  • अगर शुक्र पर पाप ग्रहों की दृष्टि हो, या शुक्र खराब हो तो विवाह सम्बन्ध टूट जाता है.
  • अगर जरा भी अच्छा हो तो व्यक्ति को जीवन में विवाह का सुख मिल ही जाता है.
  • अगर शुक्र अनुकूल हो तो शुक्र की वस्तुओं का दान कभी न करें.
  • शुक्र खराब हो तो शुक्र की वस्तुओं का दान करें, और हीरा कभी भी न पहनें.
  • शिव जी की उपासना जरूर करें, इससे शुक्र बलवान होता है.
    [ तनाव प्रबंधन भगवान शंकर से सीखें

1- जटा में गंगा और त्रिनेत्र में अग्नि (जल और आग की दुश्मनी).

2- चन्द्रमा में अमृत और गले मे जहर (अमृत और जहर की दुश्मनी).

3- शरीर मे भभूत और भूत का संग ( भभूत और भूत की दुश्मनी).

4- गले मे सर्प और पुत्र गणेश का वाहन चूहा और पुत्र कार्तिकेय का वाहन मोर ( तीनो की आपस मे दुश्मनी).

5- नन्दी (बैल) और मां भवानी का वाहन सिंह ( दोनों में दुश्मनी).

6- एक तरफ तांडव और दूसरी तरफ गहन समाधि ( विरोधाभास).

7- देवाधिदेव लेकिन स्वर्ग न लेकर हिमालय में तपलीन.

8- भगवान विष्णु इन्हें प्रणाम करते है और ये भगवान विष्णु को प्रणाम करते है।

इत्यादि इतने विरुद्ध स्वभाव के वाहन और गणों के बाद भी, सबको साथ लेकर चिंता से मुक्त रहते है। तनाव रहित रहते हैं।

और हम लोग विपरीत स्वभाव वाले सास-बहू, दामाद-ससुर, बाप-बेटे , माँ-बेटी, भाई-बहन, ननद-भाभी इत्यादि की नोकझोंक में तनावग्रस्त हो जाते है। ऑफिस में विपरीत स्वभाव के लोगों के व्यवहार देखकर तनावग्रस्त हो जाते हैं।

भगवान शंकर बड़े बड़े राक्षसों से लड़ते है और फिर समाधि में ध्यानस्थ हो जाते है, हम छोटी छोटी समस्या में उलझे रहते है और नींद तक नहीं आती।

युगनिर्माण में आने वाली कठिनाई से डर जाते है, सँगठित विपरीत स्वभाब वाले एक उद्देश्य के लिए रह ही नहीं पाते है।

भगवान शंकर की पूजा तो करते है, पर उनके गुणों को धारण नहीं करते।
।। नमः शिवाय।। 🙏🌹
[ 🙏🏻🔥साधना से संबंधितआवश्यक बातें..🔥🙏🏻

🕉👉ये बातें छोटी-छोटी तो अवश्य हैं, परन्तु आपको यदि इन बातों का ज्ञान नहीं है तो आपको साधना में असफलता का मुँह देखना पड़ सकता है। अतः इन्हें अवश्य याद रखें..👇👏
🔥👉१. जिस आसन पर आप अनुष्ठान, पूजा या साधना करते हैं, उसे कभी पैर से नहीं सरकाना चाहिए। कुछ लोगों की आदत होती है कि आसन पर बैठने के पहले खड़े-खड़े ही आसन को पैर से सरका कर अपने बैठने के लिए व्यवस्थित करते हैं। ऐसा करने से आसन दोष लगता है और उस आसन पर की जाने वाली साधनाएँ सफल नहीं होती है। अतः आसन को केवल हाथों से ही बिछाएं।
🔥👉२.अपनी जप माला को कभी खूँटी या कील पर न टाँगे, इससे माला की सिद्धि समाप्त हो जाती है। जप के पश्चात् या तो माला को किसी डिब्बी में रखे, गौमुखी में रखे या किसी वस्त्र आदि में भी लपेट कर रखी जा सकती है। जिस माला पर आप जाप कर रहे हैं, उस पर किसी अन्य की दृष्टि या स्पर्श न हो, इसलिए उसे साधना के बाद वस्त्र में लपेट कर रखे। इससे वो दोष मुक्त रहेगी। साथ ही कुछ लोगों की आदत होती है कि जिस माला से जप करते हैं, उसे ही दिन भर गले में धारण करके भी रहते हैं। जब तक किसी साधना में धारण करने का आदेश न हो, जप माला को कभी धारण ना करे।
🔥👉३.साधना के मध्य जम्हाई आना, छींक आना, गैस के कारण वायु दोष होना, इन सभी से दोष लगता है और जाप का पुण्य क्षीण होता है। इस दोष से मुक्ति हेतु आप जप करते समय किसी ताम्र पात्र में थोडा जल तथा कुछ तुलसी पत्र डालकर रखे। जब भी आपको जम्हाई या छींक आए या वायु प्रवाह की समस्या हो तो इसके तुरन्त बाद पात्र में रखे जल को मस्तक तथा दोनों नेत्रों से लगाए, इससे ये दोष समाप्त हो जाता है। साथ ही साधकों को नित्य सूर्य दर्शन कर साधना में उत्पन्न हुए दोषों की निवृत्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए।इससे भी दोष समाप्त हो जाते हैं, साथ ही यदि साधना काल में हल्का भोजन लिया जाए तो इस प्रकार की समस्या कम ही उत्पन्न होती है।
🕉👉४. ज्यादातर देखा जाता है कि कुछ लोग बैठे-बैठे बिना कारण पैर हिलाते रहते हैं या एक पैर के पंजे से दूसरे पैर के पंजे या पैर को आपस में अकारण रगड़ते रहते हैं। ऐसा करने से साधकों को सदा बचना चाहिए। क्यूँकि जप के समय आपकी ऊर्जा मूलाधार से सहस्त्रार की ओर बढ़ती है, परन्तु सतत पैर हिलाने या आपस में रगड़ने से वो ऊर्जा मूलाधार पर पुनः गिरने लगती है। क्यूँकि आप देह के निचले हिस्से में मर्दन कर रहे हैं और ऊर्जा का सिद्धान्त है, जहाँ अधिक ध्यान दिया जाए, ऊर्जा वहाँ जाकर स्थिर हो जाती है। इसलिए ही तो कहा जाता है कि जप करते समय आज्ञा चक्र या मणिपुर चक्र पर ध्यान लगाना चाहिए। अतः अपने इस दोष को सुधारे।
🌹👉५. साधना काल में अकारण क्रोध करने से बचे, साथ ही यथा सम्भव मौन धारण करे और क्रोध में अधिक ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने से बचे। इससे संचित ऊर्जा का नाश होता है और सफलता शंका के घेरे में आ जाती है।
🚩👉६. साधक जितना भोजन खा सकते हैं, उतना ही थाली में ले। यदि आपकी आदत है अन्न जूठा फेंकने की तो इस आदत में सुधार करे। क्यूँकि अन्नपूर्णा शक्ति तत्त्व है, अन्न जूठा फेंकने वालों से शक्ति तत्त्व सदा रुष्ट रहता है और शक्ति तत्त्व की जिसके जीवन में कमी हो जाए, वो साधना में सफल हो ही नहीं सकता है। क्यूँकि शक्ति ही सफलता का आधार है।
⚜👉७. हाथ पैर की हड्डियों को बार-बार चटकाने से बचे। ऐसा करने वाले व्यक्ति अधिक मात्रा में जाप नहीं कर पाते हैं, क्यूँकि उनकी उँगलियाँ माला के भार को अधिक समय तक सहन करने में सक्षम नहीं होती है और थोड़े जाप के बाद ही उँगलियों में दर्द आरम्भ हो जाता है। साथ ही पुराणों के अनुसार बार-बार हड्डियों को चटकाने वाला रोगी तथा दरिद्री होता है। अतः ऐसा करने से बचे।
🔱👉८. मल त्याग करते समय बोलने से बचे। आज के समय में लोग मल त्याग करते समय भी बोलते हैं, गाने गुनगुनाते हैं, गुटखा खाते हैं या मोबाइल से बातें करते हैं। यदि आपकी आदत ऐसी है तो ये सब करने से बचे, क्यूँकि ऐसा करने से जिह्वा संस्कार समाप्त हो जाता है और ऐसी जिह्वा से जपे गए मन्त्र कभी सफल नहीं होते हैं। आयुर्वेद तथा स्वास्थ्य की दृष्टि से भी ऐसा करना ठीक नहीं है। अतः ऐसा ना करे।
🔥👉९. यदि आप कोई ऐसी साधना कर रहे है, जिसमें त्राटक करने का नियम है तो आप नित्य बादाम के तैल की मालिश अपने सर में करे और नाक के दोनों नथुनो में एक-एक बूँद बादाम का तेल डाले। इससे सर में गर्मी उत्पन्न नहीं होगी और नेत्रों पर पड़े अतिरक्त भार की थकान भी समाप्त हो जाएगी।साथ ही आँवला या त्रिफला चूर्ण का सेवन भी नित्य करे तो सोने पर सुहागा।
🌹👉१०. जप करते समय अपने गुप्तांगों को स्पर्श करने से बचे।साथ ही माला को भूमि से स्पर्श न होने दे। यदि आप ऐसा करते हैं तो जाप की तथा माला की ऊर्जा भूमि में समा जाती है।
🕉👉११. जब जाप समाप्त हो जाए तो आसन से उठने के पहले आसन के नीचे थोड़ा जल डाले और इस जल को मस्तक तथा दोनों नेत्रों पर अवश्य लगाए। ऐसा करने से आपके जप का फल आपके पास ही रहता है। यदि आप ऐसा किये बिना उठ जाते हैं तो आपके जप का सारा पुण्य इन्द्र ले जाते हैं। ये नियम केवल इसलिए ही है कि हम आसन का सम्मान करना सीखें, जिस पर बैठ कर जाप किया, अन्त में उसे सम्मान दिया जाए।
👏मित्रों, ये कुछ नियम थे, जिनका पालन हर साधक को करना ही चाहिए। क्यूँकि ये छोटी-छोटी त्रुटियाँ हमें सफलता से कोसों दूर फेंक देती है। भविष्य में भी ऐसी कई छोटी-छोटी बातें आपके समक्ष रखने का प्रयत्न किया जाएगा। तब तक आप इन नियमों के पालन की आदत डालने चाहिए l👏
🔱⚜🕉🙏🏻🔥🙏🏻🕉⚜🔱💐
🔥ज्योतिष में शनि ग्रह का प्रभाव एवं महत्व..🔥
फ़लित ज्योतिष के शास्त्रो में शनि को अनेक नामों से सम्बोधित किया गया है, जैसे मन्दगामी, सूर्य-पुत्र, शनिश्चर और छायापुत्र आदि.शनि के नक्षत्र हैं,पुष्य,अनुराधा, और उत्तराभाद्रपद.यह दो राशियों मकर, और कुम्भ का स्वामी है।तुला राशि में २० अंश पर शनि परमोच्च है और मेष राशि के २० अंश प परमनीच है।नीलम शनि का रत्न है।शनि की तीसरी, सातवीं, और दसवीं द्रिष्टि मानी जाती है।शनि सूर्य,चन्द्र,मंगल का शत्रु,बुध,शुक्र को मित्र तथा गुरु को सम मानता है। शारीरिक रोगों में शनि को वायु विकार,कंप, हड्डियों और दंत रोगों का कारक माना जाता है।

🔱द्वादस भावों मे शनि..👇🔱
जन्म कुंडली के बारह भावों मे जन्म के समय शनि अपनी गति और जातक को दिये जाने वाले फ़लों के प्रति भावानुसार जातक के जीवन के अन्दर क्या उतार और चढाव मिलेंगे, सबका वृतांत कह देता है।

👉प्रथम भाव मे शनि..
शनि मन्द है और शनि ही ठंडक देने वाला है,सूर्य नाम उजाला तो शनि नाम अन्धेरा, पहले भाव मे अपना स्थान बनाने का कारण है कि शनि अपने गोचर की गति और अपनी दशा मे शोक पैदा करेगा,जीव के अन्दर शोक का दुख मिलते ही वह आगे पीछे सब कुछ भूल कर केवल अन्धेरे मे ही खोया रहता है।शनि जादू टोने का कारक तब बन जाता है, जब शनि पहले भाव मे अपनी गति देता है, पहला भाव ही औकात होती है, अन्धेरे मे जब औकात छुपने लगे, रोशनी से ही पहिचान होती है और जब औकात छुपी हुई हो तो शनि का स्याह अन्धेरा ही माना जा सकता है। अन्धेरे के कई रूप होते हैं, एक अन्धेरा वह होता है जिसके कारण कुछ भी दिखाई नही देता है, यह आंखों का अन्धेरा माना जाता है, एक अन्धेरा समझने का भी होता है, सामने कुछ होता है, और समझा कुछ जाता है, एक अन्धेरा बुराइयों का होता है, व्यक्ति या जीव की सभी अच्छाइयां बुराइयों के अन्दर छुपने का कारण भी शनि का दिया गया अन्धेरा ही माना जाता है, नाम का अन्धेरा भे होता है, किसी को पता ही नही होता है, कि कौन है और कहां से आया है, कौन माँ है और कौन बाप है, आदि के द्वारा किसी भी रूप मे छुपाव भी शनि के कारण ही माना जाता है, व्यक्ति चालाकी का पुतला बन जाता है प्रथम भाव के शनि के द्वारा.शनि अपने स्थान से प्रथम भाव के अन्दर स्थिति रख कर तीसरे भाव को देखता है, तीसरा भाव अपने से छोटे भाई बहिनो का भी होता है, अपनी अन्दरूनी ताकत का भी होता है, पराक्रम का भी होता है, जो कुछ भी हम दूसरों से कहते है, किसी भी साधन से, किसी भी तरह से शनि के कारण अपनी बात को संप्रेषित करने मे कठिनाई आती है, जो कहा जाता है वह सामने वाले को या तो समझ मे नही आता है, और आता भी है तो एक भयानक अन्धेरा होने के कारण वह कही गयी बात को न समझने के कारण कुछ का कुछ समझ लेता है, परिणाम के अन्दर फ़ल भी जो चाहिये वह नही मिलता है, अक्सर देखा जाता है कि जिसके प्रथम भाव मे शनि होता है, उसका जीवन साथी जोर जोर से बोलना चालू कर देता है, उसका कारण उसके द्वारा जोर जोर से बोलने की आदत नही, प्रथम भाव का शनि सुनने के अन्दर कमी कर देता है, और सामने वाले को जोर से बोलने पर ही या तो सुनायी देता है, या वह कुछ का कुछ समझ लेता है, इसी लिये जीवन साथी के साथ कुछ सुनने और कुछ समझने के कारण मानसिक ना समझी का परिणाम सम्बन्धों मे कडुवाहट घुल जाती है, और सम्बन्ध टूट जाते हैं। इसकी प्रथम भाव से दसवी नजर सीधी कर्म भाव पर पडती है, यही कर्म भाव ही पिता का भाव भी होता है।जातक को कर्म करने और कर्म को समझने मे काफ़ी कठिनाई का सामना करना पडता है, जब किसी प्रकार से कर्म को नही समझा जाता है तो जो भी किया जाता है वह कर्म न होकर एक भार स्वरूप ही समझा जाता है, यही बात पिता के प्रति मान ली जाती है,पिता के प्रति शनि अपनी सिफ़्त के अनुसार अंधेरा देता है, और उस अन्धेरे के कारण पिता ने पुत्र के प्रति क्या किया है, समझ नही होने के कारण पिता पुत्र में अनबन भी बनी रहती है,पुत्र का लगन या प्रथम भाव का शनि माता के चौथे भाव मे चला जाता है, और माता को जो काम नही करने चाहिये वे उसको करने पडते हैं, कठिन और एक सीमा मे रहकर माता के द्वारा काम करने के कारण उसका जीवन एक घेरे में बंधा सा रह जाता है, और वह अपनी शरीरी सिफ़्त को उस प्रकार से प्रयोग नही कर पाती है जिस प्रकार से एक साधारण आदमी अपनी जिन्दगी को जीना चाहता है।

👉दूसरे भाव में शनि ..
दूसरा भाव भौतिक धन का भाव है,भौतिक धन से मतलब है,रुपया,पैसा,सोना,चान्दी,हीरा,मोती,जेवरात आदि, जब शनि देव दूसरे भाव मे होते है तो अपने ही परिवार वालो के प्रति अन्धेरा भी रखते है, अपने ही परिवार वालों से लडाई झगडा आदि करवा कर अपने को अपने ही परिवार से दूर कर देते हैं,धन के मामले मै पता नही चलता है कितना आया और कितना खर्च किया, कितना कहां से आया,दूसरा भाव ही बोलने का भाव है, जो भी बात की जाती है, उसका अन्दाज नही होता है कि क्या कहा गया है, गाली भी हो सकती है और ठंडी बात भी, ठंडी बात से मतलब है नकारात्मक बात, किसी भी बात को करने के लिये कहा जाय, उत्तर में न ही निकले.दूसरा शनि चौथे भाव को भी देखता है, चौथा भाव माता, मकान, और वाहन का भी होता है, अपने सुखों के प्रति भी चौथे भाव से पता किया जाता है, दूसरा शनि होने पर यात्रा वाले कार्य और घर मे सोने के अलावा और कुछ नही दिखाई देता है। दूसरा शनि सीधे रूप मे आठवें भाव को देखता है, आठवा भाव शमशानी ताकतों की तरफ़ रुझान बढा देता है, व्यक्ति भूत,प्रेत,जिन्न और पिशाची शक्तियों को अपनाने में अपना मन लगा देता है, शमशानी साधना के कारण उसका खान पान भी शमशानी हो जाता है,शराब,कबाब और भूत के भोजन में उसकी रुचि बढ जाती है। दूसरा शनि ग्यारहवें भाव को भी देखता है, ग्यारहवां भाव अचल सम्पत्ति के प्रति अपनी आस्था को अन्धेरे मे रखता है, मित्रों और बडे भाई बहिनो के प्रति दिमाग में अन्धेरा रखता है। वे कुछ करना चाहते हैं लेकिन व्यक्ति के दिमाग में कुछ और ही समझ मे आता है।

👉तीसरे भाव में शनि..
तीसरा भाव पराक्रम का है, व्यक्ति के साहस और हिम्मत का है, जहां भी व्यक्ति रहता है, उसके पडौसियों का है। इन सबके कारणों के अन्दर तीसरे भाव से शनि पंचम भाव को भी देखता है, जिनमे शिक्षा,संतान और तुरत आने वाले धनो को भी जाना जाता है, मित्रों की सहभागिता और भाभी का भाव भी पांचवा भाव माना जाता है, पिता की मृत्यु का और दादा के बडे भाई का भाव भी पांचवा है। इसके अलावा नवें भाव को भी तीसरा शनि आहत करता है, जिसमे धर्म, सामाजिक व्यव्हारिकता, पुराने रीति रिवाज और पारिवारिक चलन आदि का ज्ञान भी मिलता है, को तीसरा शनि आहत करता है। मकान और आराम करने वाले स्थानो के प्रति यह शनि अपनी अन्धेरे वाली नीति को प्रतिपादित करता है।ननिहाल खानदान को यह शनि प्रताडित करता है।

👉चौथे भाव मे शनि..
चौथे भाव का मुख्य प्रभाव व्यक्ति के लिये काफ़ी कष्ट देने वाला होता है, माता, मन, मकान, और पानी वाले साधन, तथा शरीर का पानी इस शनि के प्रभाव से गंदला जाता है, आजीवन कष्टदेने वाला होने से पुराणो मे इस शनि वाले व्यक्ति का जीवन नर्क मय ही बताया जाता है। अगर यह शनि तुला,मकर,कुम्भ या मीन का होता है, तो इस के फ़ल में कष्टों मे कुछ कमी आ जाती है।

👉पंचम भाव का शनि..
इस भाव मे शनि के होने के कारण व्यक्ति को मन्त्र वेत्ता बना देता है, वह कितने ही गूढ मन्त्रों के द्वारा लोगो का भला करने वाला तो बन जाता है, लेकिन अपने लिये जीवन साथी के प्रति,जायदाद के प्रति, और नगद धन के साथ जमा पूंजी के लिये दुख ही उठाया करता है।संतान मे शनि की सिफ़्त स्त्री होने और ठंडी होने के कारण से संतति मे विलंब होता है,कन्या संतान की अधिकता होती है, जीवन साथी के साथ मन मुटाव होने से वह अधिक तर अपने जीवन के प्रति उदासीन ही रहता है।

👉षष्ठ भाव में शनि..
इस भाव मे शनि कितने ही दैहिक दैविक और भौतिक रोगों का दाता बन जाता है, लेकिन इस भाव का शनि पारिवारिक शत्रुता को समाप्त कर देता है,मामा खानदान को समाप्त करने वाला होता है,चाचा खान्दान से कभी बनती नही है। व्यक्ति अगर किसी प्रकार से नौकरी वाले कामों को करता रहता है तो सफ़ल होता रहता है, अगर किसी प्रकार से वह मालिकी वाले कामो को करता है तो वह असफ़ल हो जाता है। अपनी तीसरी नजर से आठवें भाव को देखने के कारण से व्यक्ति दूर द्रिष्टि से किसी भी काम या समस्या को नही समझ पाता है, कार्यों से किसी न किसी प्रकार से अपने प्रति जोखिम को नही समझ पाने से जो भी कमाता है, या जो भी किया जाता है, उसके प्रति अन्धेरा ही रहता है, और अक्स्मात समस्या आने से परेशान होकर जो भी पास मे होता है गंवा देता है। बारहवे भाव मे अन्धेरा होने के कारण से बाहरी आफ़तों के प्रति भी अन्जान रहता है, जो भी कारण बाहरी बनते हैं उनके द्वारा या तो ठगा जाता है या बाहरी लोगों की शनि वाली चालाकियों के कारण अपने को आहत ही पाता है। खुद के छोटे भाई बहिन क्या कर रहे हैं और उनकी कार्य प्रणाली खुद के प्रति क्या है उसके प्रति अन्जान रहता है। अक्सर इस भाव का शनि कही आने जाने पर रास्तों मे भटकाव भी देता है, और अक्सर ऐसे लोग जानी हुई जगह पर भी भूल जाते है।

👉सप्तम भाव मे शनि ..
सातवां भाव पत्नी और मन्त्रणा करने वाले लोगो से अपना सम्बन्ध रखता है।जीवन साथी के प्रति अन्धेरा और दिमाग मे नकारात्मक विचारो के लगातार बने रहने से व्यक्ति अपने को हमेशा हर बात में छुद्र ही समझता रहता है,जीवन साथी थोडे से समय के बाद ही नकारा समझ कर अपना पल्ला जातक से झाड कर दूर होने लगता है, अगर जातक किसी प्रकार से अपने प्रति सकारात्मक विचार नही बना पाये तो अधिकतर मामलो मे गृह्स्थियों को बरबाद ही होता देखा गया है, और दो शादियों के परिणाम सप्तम शनि के कारण ही मिलते देखे गये हैं,सप्तम शनि पुरानी रिवाजों के प्रति और अपने पूर्वजों के प्रति उदासीन ही रहता है, उसे केवल अपने ही प्रति सोचते रहने के कारण और मै कुछ नही कर सकता हूँ, यह विचार बना रहने के कारण वह अपनी पुरानी मर्यादाओं को अक्सर भूल ही जाता है, पिता और पुत्र मे कार्य और अकार्य की स्थिति बनी रहने के कारण अनबन ही बनी रहती है। व्यक्ति अपने रहने वाले स्थान पर अपने कारण बनाकर अशांति उत्पन्न करता रहता है, अपनी माता या माता जैसी महिला के मन मे विरोध भी पैदा करता रहता है, उसे लगता है कि जो भे उसके प्रति किया जा रहा है, वह गलत ही किया जा रहा है और इसी कारण से वह अपने ही लोगों से विरोध पैदा करने मे नही हिचकता है। शरीर के पानी पर इस शनि का प्रभाव पडने से दिमागी विचार गंदे हो जाते हैं, व्यक्ति अपने शरीर में पेट और जनन अंगो मे सूजन और महिला जातकों की बच्चादानी आदि की बीमारियां इसी शनि के कारण से मिलती है।

👉अष्टम भाव में शनि..
इस भाव का शनि खाने पीने और मौज मस्ती करने के चक्कर में जेब हमेशा खाली रखता है। किस काम को कब करना है इसका अन्दाज नही होने के कारण से व्यक्ति के अन्दर आवारागीरी का उदय होता देखा गया है उच्च का शनि अत्तीन्द्रीय ज्ञान की क्षमता भी देता हैं गुप्त ज्ञान भी शनि का कारक हैं

👉नवम भाव का शनि ..
नवां भाव भाग्य का माना गया है, इस भाव में शनि होने के कारण से कठिन और दुख दायी यात्रायें करने को मिलती हैं, लगातार घूम कर सेल्स आदि के कामो मे काफ़ी परेशानी करनी पडती है, अगर यह भाव सही होता है, तो व्यक्ति मजाकिया होता है, और हर बात को चुटकुलों के द्वारा कहा करता है, मगर जब इस भाव मे शनि होता है तो व्यक्ति सीरियस हो जाता है, और एकान्त में अपने को रखने अपनी भलाई सोचता है, नवें भाव बाले शनि के के कारण व्यक्ति अपनी पहिचान एकान्त वासा झगडा न झासा वाली कहावत से पूर्ण रखता है। खेती वाले कामो, घर बनाने वाले कामों जायदाद से जुडे कामों की तरफ़ अपना मन लगाता है। अगर कोई अच्छा ग्रह इस शनि पर अपनी नजर रखता है तो व्यक्ति जज वाले कामो की तरफ़ और कोर्ट कचहरी वाले कामों की तरफ़ अपना रुझान रखता है। जानवरों की डाक्टरी और जानवरों को सिखाने वाले काम भी करता है, अधिकतर नवें शनि वाले लोगों को जानवर पालना बहुत अच्छा लगता है। किताबों को छापकर बेचने वाले भी नवें शनि से कही न कही जुडे होते हैं।

👉दसम भाव का शनि..
दसवां शनि कठिन कामो की तरफ़ मन ले जाता है, जो भी मेहनत वाले काम,लकडी,पत्थर, लोहे आदि के होते हैंवे सब दसवे शनि के क्षेत्र मे आते हैं, व्यक्ति अपने जीवन मे काम के प्रति एक क्षेत्र बना लेता है और उस क्षेत्र से निकलना नही चाहता है।राहु का असर होने से या किसी भी प्रकार से मंगल का प्रभाव बन जाने से इस प्रकार का व्यक्ति यातायात का सिपाही बन जाता है, उसे जिन्दगी के कितने ही काम और कितने ही लोगों को बारी बारी से पास करना पडता है, दसवें शनि वाले की नजर बहुत ही तेज होती है वह किसी भी रखी चीज को नही भूलता है, मेहनत की कमाकर खाना जानता है, अपने रहने के लिये जब भी मकान आदि बनाता है तो केवल स्ट्रक्चर ही बनाकर खडा कर पाता है, उसके रहने के लिये कभी भी बढिया आलीशान मकान नही बन पाता है।गुरु सही तरीके से काम कर रहा हो तो व्यक्ति एक्ज्यूटिव इन्जीनियर की पोस्ट पर काम करने वाला बनजाता है।

👉ग्यारहवां शनि
शनि दवाइयों का कारक भी है, और इस घर मे जातक को साइंटिस्ट भी बना देता है, अगर जरा सी भी बुध साथ देता हो तो व्यक्ति गणित के फ़ार्मूले और नई खोज करने मे माहिर हो जाता है। चैरिटी वाले काम करने मे मन लगता है, मकान के स्ट्रक्चर खडा करने और वापस बिगाड कर बनाने मे माहिर होता है, व्यक्ति के पास जीवन मे दो मकान तो होते ही है। दोस्तों से हमेशा चालकियां ही मिलती है, बडा भाई या बहिन के प्रति व्यक्ति का रुझान कम ही होता है। कारण वह न तोकुछ शो करता है और न ही किसी प्रकार की मदद करने मे अपनी योग्यता दिखाता है, अधिकतर लोगो के इस प्रकार के भाई या बहिन अपने को जातक से दूर ही रखने म अपनी भलाई समझते हैं।

👉बारहवां शनि
नवां घर भाग्य या धर्म का होता है तो बारहवा घर धर्म का घर होता है, व्यक्ति को बारहवा शनि पैदा करने के बाद अपने जन्म स्थान से दूर ही कर देता है, वह दूरी शनि के अंशों पर निर्भर करती है, व्यक्ति के दिमाग मे काफ़ी वजन हर समय महसूस होता है वह अपने को संसार के लिये वजन मानकर ही चलता है, उसकी रुझान हमेशा के लिये धन के प्रति होती है और जातक धन के लिये हमेशा ही भटकता रहता है, कर्जा दुश्मनी बीमारियो से उसे नफ़रत तो होती है मगर उसके जीवन साथी के द्वारा इस प्रकार के कार्य कर दिये जाते हैं जिनसे जातक को इन सब बातों के अन्दर जाना ही पडता है।

🔥शनि की पहिचान..🔥
जातक को अपने जन्म दिनांक को देखना चाहिये, यदि शनि चौथे, छठे, आठवें, बारहवें भाव मे किसी भी राशि में विशेषकर नीच राशि में बैठा हो, तो निश्चित ही आर्थिक, मानसिक, भौतिक पीडायें अपनी महादशा, अन्तर्दशा, में देगा, इसमे कोई सन्देह नही है, समय से पहले यानि महादशा, अन्तर्दशा, आरम्भ होने से पहले शनि के बीज मंत्र का अवश्य जाप कर लेना चाहिये.ताकि शनि प्रताडित न कर सके, और शनि की महादशा और अन्तर्दशा का समय सुख से बीते.याद रखें अस्त शनि भयंकर पीडादायक माना जाता है, चाहे वह किसी भी भाव में क्यों न हो.?
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: 🔥अंकशास्त्र में शनि ..🔥
ज्योतिष विद्याओं मे अंक विद्या भी एक महत्व पूर्ण विद्या है, जिसके द्वारा हम थोडे समय में ही प्रश्न कर्ता का स्पष्ट उत्तर दे सकते हैं, अंक विद्या में ८ का अंक शनि को प्राप्त हुआ है। शनि परमतपस्वी और न्याय का कारक माना जाता है, इसकी विशेषता पुराणों में प्रतिपादित है। आपका जिस तारीख को जन्म हुआ है, गणना करिये, और योग अगर ८ आये, तो आपका अंकाधिपति शनिश्चर ही होगा.जैसे-८,१७,२६ तारीख आदि.यथा-१७=१+७=८,२६=२+६=८..
🔱⚜🔥🙏🏻🕉🙏🏻🔥⚜🔱💐
: 🔥अंक 8 की ज्योतिषीय परिभाषा🔥
👉अंक आठ वाले जातक धीरे धीरे उन्नति करते हैं, और उनको सफ़लता देर से ही मिल पाती है। परिश्रम बहुत करना पडता है, लेकिन जितना किया जाता है उतना मिल नही पाता है, जातक वकील और न्यायाधीश तक बन जाते हैं, और लोहा, पत्थर आदि के व्यवसाय के द्वारा जीविका भी चलाते हैं।
दिमाग हमेशा अशान्त सा ही रहता है, और वह परिवार से भी अलग ही हो जाता है, साथ ही दाम्पत्य जीवन में भी कटुता आती है।
अत: आठ अंक वाले व्यक्तियों को प्रथम शनि के विधिवत बीज मंत्र का जाप करना चाहिये.तदोपरान्त साढे पांच रत्ती का नीलम धारण करना चाहिये.ऐसा करने से जातक हर क्षेत्र में उन्नति करता हुआ, अपना लक्ष्य शीघ्र प्राप्त कर लेगा.और जीवन में तप भी कर सकेगा, जिसके फ़लस्वरूप जातक का इहलोक और परलोक सार्थक होंगे…
शनि प्रधान जातक तपस्वी और परोपकारी होता है, वह न्यायवान, विचारवान, तथा विद्वान भी होता है, बुद्धि कुशाग्र होती है, शान्त स्वभाव होता है, और वह कठिन से कठिन परिस्थति में अपने को जिन्दा रख सकता है।
जातक को लोहा से जुडे वयवसायों मे लाभ अधिक होता है। शनि प्रधान जातकों की अन्तर्भावना को कोई जल्दी पहिचान नही पाता है। जातक के अन्दर मानव परीक्षक के गुण विद्यमान होते हैं। शनि की सिफ़्त चालाकी, आलसी, धीरे धीरे काम करने वाला, शरीर में ठंडक अधिक होने से रोगी, आलसी होने के कारण बात बात मे तर्क करने वाला, और अपने को दंड से बचाने के लिये मधुर भाषी होता है।
दाम्पत्यजीवन सामान्य होता है।
अधिक परिश्रम करने के बाद भी धन और धान्य कम ही होता है।
जातक न तो समय से सोते हैं और न ही समय से जागते हैं। हमेशा उनके दिमाग में चिन्ता घुसी रहती है। वे लोहा, स्टील, मशीनरी, ठेका, बीमा, पुराने वस्तुओं का व्यापार, या राज कार्यों के अन्दर अपनी कार्य करके अपनी जीविका चलाते हैं।
शनि प्रधान जातक में कुछ कमिया होती हैं, जैसे वे नये कपडे पहिनेंगे तो जूते उनके पुराने होंगे, हर बात में शंका करने लगेंगे, अपनी आदत के अनुसार हठ बहुत करेंगे, अधिकतर जातकों के विचार पुराने होते हैं।
उनके सामने जो भी परेशानी होती है सबके सामने उसे उजागर करने में उनको कोई शर्म नही आती है।
शनि प्रधान जातक अक्सर अपने भाई और बान्धवों से अपने विचार विपरीत रखते हैं, धन का हमेशा उनके पास अभाव ही रहता है, रोग उनके शरीर में मानो हमेशा ही पनपते रहते हैं, आलसी होने के कारण भाग्य की गाडी आती है और चली जाती है उनको पहिचान ही नही होती है, जो भी धन पिता के द्वारा दिया जाता है वह अधिकतर मामलों में अपव्यय ही कर दिया जाता है।
अपने मित्रों से विरोध रहता है। और अपनी माता के सुख से भी जातक अधिकतर वंचित ही रहता है।
🔱⚜🔥🙏🏻🕉🙏🏻🔥⚜🔱💐
: विज्ञान हमें कहां से कहां ले आया !!

पहले :- वो कुँए का मैला पानी
पीकर भी 100 वर्ष जी लेते थे!
अब :-RO का शुद्ध पानी
पीकर 40वर्ष में बुढ़े हो रहे हैं!🥛

पहले :- वो घानी का मैला तेल
खाके बुढ़ापे में मेहनत करते थे।
अब :-हम डबल-फ़िल्टर तेल
खाकर जवानी में हाँफ जाते हैं

पहले :-वो डले वाला नमक
खाके बीमार ना पड़ते थे।
अब :- हम आयोडीन युक्त खाके
हाई-लो बीपी लिये पड़े हैं !

पहले. :- वो नीम-बबूल,कोयला
नमक से दाँत चमकाते थे,और
80 वर्ष तक भी चबाके खाते थे
अब. :-कॉलगेट सुरक्षा वाले
डेंटिस्ट के चक्कर लगाते हैं!

पहले :- वो नाड़ी पकड़कर
रोग बता देते थे
अब :- आज जाँचे कराने
पर भी रोग नहीं जान पाते हैं!

पहले :- वो 7-8 बच्चे जन्मने
वाली माँ 80वर्ष की अवस्था में
भी खेत का काम करती थी।
अब :-पहले महीने से डॉक्टर
की देख-रेख में रहते हैं |फिर भी
बच्चे पेट फाड़कर जन्मते हैं!

पहले :- काले गुड़ की मिठाइयां
ठोक-ठोक के खा जाते थे !
अब :-खाने से पहले ही
शुगर की बीमारी हो जाती है!

पहले :- बुजुर्गों के भी
घुटने नहीं दुखते थे !
अब :-जवान भी घुटनों
और कमर दर्द से कहराता है!

पहले :- 100w के बल्ब
जलाते थे तो बिजली का बिल
200 रुपये आता था !
अब :- 9w की c.f.l में
2000 का बिल आता है!

आखिर समझ मे नहीं आता ये
विज्ञान का युग है या अज्ञान का ?

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