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आज्ञा चक्र यानी थर्ड आई तीसरा नेत्र सिक्स सेंस
मस्तिष्क क्षेत्र में दोनों भौहों के बीच आज्ञा चक्र यानी तीसरा नेत्र स्थित होता है यह शरीर को प्रतिपल विवेक पूर्ण निर्णय लेने के लिए प्रेरित करता है हमारी प्रत्येक गतिविधि आज्ञा चक्र के आदेश से ही संचालित होती है यहां तक कि हम जो कुछ सोचते हैं उसकी प्रोसेसिंग का काम आज्ञा चक्र करता है यानी तीसरा नेत्र करता है उसके बाद निर्णय देता है आज्ञाचक्र के आदेश के बिना कोई शारीरिक मानसिक गतिविधि संभव नहीं है आज्ञा चक्र शारीरिक क्षमताओं को विकसित करता है यह विकास यात्रा अनुभव और अनुभूतियों के रूप में पहले से ही मौजूद रहती है आज्ञा चक्र जाग्रत होने के बाद शरीर एक रोबोटिक बॉडी की तरह काम करता है आज्ञा चक्र का प्रभाव हमारे शरीर पर मन पर कई तरीके से असर डालता है इतना ही नहीं हम भविष्य में क्या निर्णय लेने वाले हैं और उसने कहां कैसे और कितनी सावधानियां अपेक्षित हैं इसका भी पूरा हिसाब किताब आज्ञाचक्र रखता है परोक्ष में हम यह कर सकते हैं आज्ञा चक्र भाग्य को लिखता भी है संशोधन भी करता है तथा आवश्यक निर्णय भी देता है यही वजह है कि सही और धीमी गति की प्रोग्रामिंग के अभाव में कर्म कर्म ही रह जाता है भाग्य उसका साथ नहीं देता दरअसल कर्म उस समय तक निरर्थक है जब तक उसे आज्ञा चक्र द्वारा लिखे गए भाग्य की सहमति नहीं मिल जाती और जैसे ही यह सहमति मिलती है कर्म के अच्छे व बुरे परिणाम सामने आने लगते हैं कहते हैं कि व्यक्ति अपना भाग्य लेकर पैदा होता है उसे इस संसार में रहकर वह सारे कार्य करने होते हैं जिसके लिए उसे प्रोग्राम किया गया है इस काम में उसके दिमाग और शरीर सक्रिय रहते हैं लेकिन आमतौर पर हम आज्ञाचक्र की भूमिकाओं को भुला देते हैं आज्ञा चक्र के चलते हम यह भूल जाते हैं कि आज्ञा चक्र के आदेशों के बिना यह दैहिक सिस्टम कोई यह दैहिक सिस्टम कोई कोई काम नहीं कर सकता हमारा दिमाग भाग्य में लिखे हुए एक एक काम को क्रमशः या कभी-कभी एक साथ उठाता है उसे प्रोसेस करता है और निष्कर्ष देता है लेकिन यह सब होता है आज्ञा चक्र द्वारा बनाई गई फाइलों और सॉफ्टवेयर के जरिए ही दिमाग कभी-कभी जब एक साथ कई फाइलों को उठा लेता है तब आज्ञा चक्र से उसका संपर्क टूट लगता हैl
आज्ञा चक्र एक बार जागृत हो जाए तो दिव्य अनुभूतियां होने लगती हैं भौतिक बौद्धिक और अतींद्रिय चेतना स्तर पर सब कुछ पारदर्शी होने लगता हैl
आज भय चिंता और तनाव ने हमारे अवचेतन मन को अशुद्धियों का संग्रहालय बना दिया है दिल में हलचल मची हुई है अनु विस्फोट हो रहे हैं ऐसे में तनाव मुक्त होने के लिए मनुष्य को कोई न कोई रास्ता खोजना ही पड़ेगा।
बीमारियां चाहे शारीरिक हो मानसिक और भौतिक जगत से कितनी भी प्रभावित क्यों ना हो रही हो आज यह साबित हो चुका है कि उसका कारण आदमी की अंतश्चेतना में छुपे हुए हैं हम क्योंकि अपनी चेतना के प्रति संवेदनशील नहीं होते इसलिए केवल शरीर उसको विभिन्न स्तरों पर महसूस करता है मानव सभ्यता के विकास और पतन के पिछले 7 सालों में औद्योगीकरण ने हमें नर्वस डिप्रेशन हृदय रोग कैंसर और एड्स जैसी भयानक रोगों को उपहार के रूप में दिया है हम जिस वातावरण में रहते हैं उसने हमारी नींद उड़ा दी है पूरा जीवन सिर्फ संतुलन बनाने में गुजर रहा है लोग आनंद के क्षणों में भी तनाव में जीने को मजबूर हैं परेशानियां और चिंताग्रस्त मन हर दिन नई बीमारी शरीर में दे रहा है दवाइयां कारगर सिद्ध नहीं हो रही है तनाव मुक्त होने के रास्ते तलाशे जा रहे हैं लेकिन सब कुछ नाटक सिद्ध हो रहा है योग आचार्यों की चिंता मनुष्य को मानसिक तनाव से मुक्त करने की है बड़ी-बड़ी कीमतें लेकर शारीरिक व मानसिक सामूहिक अभ्यास कराए जा रहे हैं भोग की काठी योग में तलाश की जा रही है पूर्वजों ने कभी ऐसा नहीं किया मैं प्रकृति को समर्पित एक संतुलित जीवन पद्धति वाले लोग थे परंतु आज ऐसा नहीं है।
रोग का कारण जब शरीर में ना होकर मन की गहराई में छुपा हो तो हठ योग और राजयोग के अभ्यास साथ साथ लेकर चलने होंगे पार्किंसन रोग को ही लीजिए यह रोग मस्तिष्क केंद्रों में ब्रेन ट्रांसमीटर हार्मोन डोपामिन की कमी से अंतिम वर्षों में दिखाई देता है चिकित्सा विज्ञान में इस हार्मोन की कमी को ठीक कर के दिमाग को सामान्य स्थिति में लाने के लिए एलडोपा नाम का कृत्रिम हार्मोन रोगी को दिया जाता है लेकिन यह हार्मोन शरीर में अपने उपस्थित रहने तक ही मस्तिष्क की अव्यवस्था को संतुलित करने में सहायता करता है जब की आज्ञा चक्र जागरण के अभ्यास से पुनः अनुप्राणित और संचालित किया जा सकता है ।
आज्ञा चक्र जागरण की समस्या मन के संतुलन से जुड़ी है मन का धर्म विचारों को दिमाग में गहरे जाने से रोकने का है आज्ञा चक्र के जागृत होने के बाद स्नायविक मानसिक और भावनात्मक तीनों ही तरह के तनाव से मुक्ति मिलती है आज्ञा चक्र की जागृति मन का विश्राम है मन चंचल है यह कभी सोता नहीं इसलिए इसकी सक्रियता अच्छे-बुरे के विवेक को तय करने में प्रमुख भूमिका निभाती है आज्ञा चक्र जागृत होने पर मन की शक्ति स्वस्थ दिशा में प्रवाहित होने लगती है यह अभ्यास मनुष्य के सोचने के समय को छोटा कर देता है प्रेम घृणा मृत्यु भय से जो भावनात्मक तनाव पैदा होता है आज्ञा चक्र जागरण के जागरण से समाप्त होता है।
अब यह समझना आसान हो गया की दिमागी कंप्यूटर को चलाने के लिए आज्ञा चक्र को सद्गुरु कंपनी के सबसे अच्छे यूपीएस का इस्तेमाल करना भी जरूरी है UPS ही वह ऊर्जा देगा जो हार्डवेयर यानी शरीर पर आने वाले सभी संकटों को टाल सकती है याद रखना चाहिए क्या हार्डवेयर के एक बार फेल हो जाने पर सभी फाइलें यानी नष्ट हो जाती है गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण कर्म करने की बात कहते हैं लेकिन आज्ञा चक्र के रूप में वह स्वयं की शक्ति को भी निर्णायक भूमिका में रखते हैं।
मेरा विश्वास है कि आज के दौर में शारीरिक मानसिक व्याधियों पर विजय पाने का एक और केवल एक उपाय है कि मनुष्य सद्गुरु की शरण में रहकर आज्ञा चक्र को जागृत करें आप यदि किसी शारीरिक मानसिक ब्याधि से परेशान हैं और कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है तो आप को ये उपाय बताए जा सकता है।

          

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