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आज्ञा चक्र जागरण की ध्यान विधि

आज्ञा चक्र को जागृत करने के लिये अपना पुरा ध्यान भ्रूमध्य यानि दोनो भौहो के बीच मे, जहा पर हम तिलक लगाते है, वहा पर लेकर आये । इस स्थान पर मन को एकाग्र करे । कुछ समय पश्चात आपको इस स्थान पर ध्यान करते करते ताप, गर्मी, प्रकाश, दबाव, स्पंदन आदि की अनुभूति होनी शुरु हो जायेगी । किंतु यदि आपको कोई अनुभव नही भी होता है तो आपको व्यग्रता नही करनी है अपितु धैर्य के साथ इस स्थान पर मन की एकाग्रता को बनाये रखना है ।

तो पूरी विधि समझते है, पहले अपना ध्यान आज्ञा चक्र पर लाये, फिर अपना ध्यान नाक के दोनो छिद्रों से अंदर आती श्वास पर लाये, गौर से नाक के प्रवेश द्वार से सांस को अंदर आता हुआ व बाहर जाता हुआ महसूस करे । महसूस करे की आपके नाक से भीतर प्रवेश करती हुई सांस ऊपर आज्ञा चक्र तक आती है और फिर बाहर निकलती हुई सांस आज्ञा चक्र से नीचे उतरती हुई नाक के छिद्रों से बाहर निकल जाती है । सांस का प्रारम्भिक बिंदु नासिकाग्र है और अन्तिम बिंदु आज्ञा चक्र है । इस प्रकार सांस नासिकाग्र से आज्ञा चक्र के बीच मे आते जाते हुए भ्रमण करने की कल्पना करते रहेगे ।

अब अगला बिंदु, हर बार, जब भी आपकी सांस नासिकाग्र से आज्ञा चक्र पर पहुचे तो सांस को भीतर रोक ले और सांस को यथाशक्ति रोक कर रखते हुए आज्ञा चक्र पर मन को एकाग्र रखे, इसी समय, जब आपकी सांस रूकी हुई है और मन आज्ञा चक्र पर केंद्रित है, आपको सफेद प्रकाश का एक चमचमाता हुआ सितारे नुमा बिंदु दिखाई दे सकता है या अन्य कोई अनुभुति हो सकती है ।
अब धीरे-धीरे से रोकी हुई सांस को बाहर छोड़े और फिर से अपना ध्यान नासिकाग्र पर ले आये ।

तो बार बार इस प्रक्रिया को दोहराए । प्रतिदिन 5 मिनट से 15 मिनट तक इसका अभ्यास किया जा सकता है । जिन व्यक्तियों को हृदय से संबंधित या रक्त चाप से संबंधित कोई समस्या है वे बिना सांस को रोके इस विधि को कर सकते है ।

आपको एक बार पुनः विधि का क्रम दोहरा दु : सर्वप्रथम नासिकाग्र से सांस भीतर आती महसूस करे फिर सांस पूरी तरह से अंदर आ जाने पर उसको भीतर ही कुछ सैकेण्ड के लिये रोक ले और इस दौरान अपना पुरा ध्यान आज्ञा चक्र पर बनाये रखे, फिर धीरे धीरे से सांस को बाहर निकालते हुए पुनः अपना ध्यान नासिकाग्र पर ले जाये । इस प्रकार हर भीतर आती सांस के साथ अपना ध्यान आज्ञा चक्र पर व बाहर जाती सांस के साथ अपना ध्यान नासिकाग्र पर लगा कर रखे ।

यह अत्यंत ही शक्तिशाली व शीघ्र रूप से प्रभाव मे आने वाली विधि है । इसके परिणाम भी चमत्कारी है । कुछ ही दिनो के अभ्यास से आज्ञा चक्र मे जागृति आनी शुरु हो जाती है व उससे जुड़े फल मिलने शुरु हो जाते है । इसके अतिरिक्त इस विधि के नित्य अभ्यास से शरीर व मन मे एक नई स्फूर्ति, उत्साह, आनंद व शान्ति की भावना विकसित होने लगती है ।

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