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जयश्रीमहाकाल

अहंकारकाआधारक्याहै? #औरयहकैसेदूरहोता_है?

अहंकार का आधार ही यह है कि हम अपने आप को महत्त्वपूर्ण मानते हैं और दूसरों से स्वयं को महत्त्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए उनके अंहकार से टक्कर लेना चाहते हैं! महत्त्वपूर्ण होना एक अलग बात है तथा उसे सिद्ध करना सर्वथा दूसरी बात है! महत्त्वपूर्ण सिद्ध करने का प्रयास ही इस बात का द्योतक है कि हम अपना मूल्यांकन वास्तविकता से बहुत अधिक करते हैं!

विचार किया जाना चाहिए कि संसार में सबसे महत्त्वपूर्ण यदि कोई है तो वह आपके सद्गुरुदेव जी है और आपके सद्गुरुदेव जी की ऐसी कोई चेष्टा दिखाई नहीं देती , जो वह अपने आप को महत्त्वपूर्ण सिद्ध करने के लिए करता हो!

संसार की सर्वोपरि महत्त्वपूर्ण सत्ता अपने आप को महत्त्वपूर्ण सिद्ध करने की ओर से उदासीन है तो क्या कारण है कि हम जैसे अरबों व्यक्तियों के होते हुए हम अपने आप को सबसे महत्त्वपूर्ण मानें और दूसरों से टक्कर लेते फिरें!

अपने अहंकार को पहचान लेने और उसे स्वीकार करने के साथ ही वस्तुस्थिति को समझ लेने मात्र से अहंकार तिरोहित हो जाता है! केवल पहचानने और स्वीकार करने मात्र से ही बात नहीं बनेगी! प्रकाश है और अंधकार नष्ट हो गया है, यह जानने पर भी यदि आँखें बंद रखी जाएँ तो स्थिति में कोई अंतर नहीं आता! आवश्यकता इस बात की है कि आँखें खोली जाएँ! अहंकार को इसी तरह तात्त्विक दृष्टि से देखते ही उसका अभाव हो जाएगा और फिर चारों ओर सुख-शांति, सौहार्द्र और स्नेह के सत्य का अलोक हो उठेगा!

“साधक का मिथ्या अहंकार जहाँ समाप्त होता है वहाँ उसकी वास्तविक साधना आरंभ होती है!”

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