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क्या आप जानते हैं शिखा रखने के ये वैज्ञानिक लाभ ?
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भारतीय वैदिक सनातन धर्म की आधारशिला पूर्णत: प्राच्‍य विज्ञान पर ही खड़ी है। पुरुष और प्रकृति के सार्वभौमिक सिद्धांत पर आधारित हमारे सनातन धर्म में प्रत्‍येक मनुष्‍य के लिए कुछ जरूरी सिद्धांतों पर विशेष बल दिया गया है। विज्ञान जगत में नित हो रहे अनुसंधानों के आधार पर आज ये बात और भी पुख्‍ता हो गई है कि हिन्‍दू धर्म में बताए गए आचार और विचार महज कोरी कल्‍पना वाले कर्मकांड भर नहीं हैं बल्‍कि इनके पीछे गूढ़ आध्‍यात्‍मिक और वैज्ञानिक चिंतन मौजूद हैं।

प्रतीकात्‍मक चित्र

मान्यता के तहत परम्परा है कि प्रत्येक स्त्री तथा पुरुष को अपने सिर पर चोटी यानि कि बालों का समूह अनिवार्य रूप से रखना चाहिये।

क्‍या है शिखा ?

सनातन धर्म में प्रारंभ से ही शिखा को ज्ञान और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है। सनातन धर्म में यह एक अनिवार्य परंपरा है, मान्‍यता है कि इससे व्यक्ति की बुद्धि नियंत्रित होती है। भारत में सिर पर शिखा रखने की परंपरा को इतना अधिक महत्वपूर्ण माना गया है कि इस कार्य को आर्य (सत्‍य) संस्‍कृति से भी जोड़कर भी देखा जाता है।

इस परम्परा का जहां धार्मिक विश्वास है, तो वहीं वैज्ञानिक महत्व भी है। जिसे आधुनिक काल में वैज्ञानिकों द्वारा सिद्ध भी किया जा चुका है। शिखा रखने के पीछे एक बहुत बड़ा वैज्ञानिक कारण है, आइए जानते हैं।

वैज्ञानिक दृष्‍टिकोण

मानव खोपड़ी के पीछे के अंदरूनी भाग को संस्कृत में ‘मेरुशीर्ष’ और अंग्रेजी में “Medulla Oblongata” कहते हैं। यह मानव देह का सबसे ज्‍यादा संवेदनशील भाग माना जाता है। मेरुदंड की सब शिराएं यहीं पर मस्‍तिष्‍क से जुड़ती हैं। यह भी बता दें कि मानव खोपड़ी के इस भाग का कोई ऑपरेशन नहीं हो सकता। मान्‍यता है कि देह में ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रवेश यहीं से होता है।

भू-मध्य में आज्ञा चक्र इसी का प्रतिबिम्ब है। योगियों को नाद की ध्वनि भी यहीं सुनाई देती है। देह का यह भाग ग्राहक यंत्र (Receiver) का काम करता है। शिखा सचमुच में ही रिसीविंग एंटीना का कार्य करती है। शिखा धारण करने से यह भाग अधिक संवेदनशील हो जाता है।

योग और अध्यात्म को सुप्रीम सांइस मानकर जब आधुनिक प्रयोगशालाओं में रिसर्च किया गया तो, चोटी के विषय में बड़े ही महत्वपूर्ण ओर रौचक वैज्ञानिक तथ्य सामने आए।

चमत्कारी रिसीवर

असल में जिस स्थान पर शिखा यानि कि चोटी रखने की परंपरा है, वहां पर सिर के बीचों-बीच सुषुम्ना नाड़ी का स्थान होता है। तथा शरीर विज्ञान यह सिद्ध कर चुका है कि सुषुम्‍ना नाड़ी इंसान के हर तरह के विकास में बड़ी ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। चोटी, सुषुम्‍ना नाड़ी को हानिकारक प्रभावों से तो बचाती ही है, साथ में ब्रह्माण्ड से आने वाले सकारात्मक तथा आध्यात्मिक विचारों को ग्रहण भी करती है।

क्‍या कहता है योगशास्‍त्र ?

योगशास्त्र में इड़ा, पिंगला और सुषुम्ना नाड़ियों की चर्चा होती है। इनमें सुषुम्ना ज्ञान और क्रियाशीलता की नाड़ी है। यह मेरुदंड (स्पाईनल कॉड) से होकर मस्तिष्क तक पहुंचती है। इस नाड़ी के मस्तिष्क में मिलने के स्थान पर शिखा बांधी जाती है। शिखा बंधन मस्तिष्क की ऊर्जा तरंगों की रक्षा कर आत्मशक्ति बढ़ाता है।

शिखा रखने के फायदे
जिस जगह शिखा (चोटी) रखी जाती है, यह शरीर के अंगों, बुद्धि और मन को नियंत्रित करने का स्थान भी है।
शिखा, मस्तिष्क के संतुलन का भी बहुत बड़ा कारक है।
शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है।
शिखा रखने से मनुष्य की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है।
शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है।
यजुर्वेद में शिखा को इन्द्रयोनी कहा गया है। ब्रह्मरन्ध्र ज्ञान, क्रिया और इच्छा इन तीनों शक्तियों की त्रिवेणी है। यह मस्‍तिष्‍क के अन्य भागों की अपेक्षा ब्रह्मरन्‍ध्र को अधिक ठंडापन स्पर्श करता है। बाहर ठंडी हवा होने पर भी यही केशराशि ब्रह्मरंध्र में पर्याप्त ऊष्णता बनाए रखती है।
ब्रह्मरन्ध्र की ऊष्णता और पीनियल ग्लेंड्स की संवेदनशीलता को बनाए रखने हेतु शिखा कि रचना की गई है।

शिखा बंधन और विधान

पूजा-पाठ के समय शिखा में गांठ लगाकर रखने से मस्तिक में संकलित ऊर्जा तरंगें बाहर नहीं निकाल पाती हैं। इनके अंतर्मुख हो जाने से मानसिक शक्तियों का पोषण, सद्बुद्धि, सद्विचार आदि की प्राप्ति, वासना की कमी, आत्मशक्ति में बढ़ोत्तरी, शारीरिक शक्ति का संचार, अवसाद से बचाव, अनिष्टकर प्रभावों से रक्षा, सुरक्षित नेत्र ज्योति, कार्यों में सफलता तथा सद्गति जैसे लाभ भी मिलते हैं।

संध्या विधि में संध्या से पूर्व गायत्री मन्त्र के साथ शिखा बंधन का विधान है। इसके पीछे एक संकल्प और प्रार्थना है। किसी भी साधना से पूर्व शिखा बंधन गायत्री मन्त्र के साथ होता है, यह एक सनातन परम्परा है।

मन्त्र उच्‍चारण और अनुष्‍ठान के समय शिखा को गांठ मारने का विधान है। इसका कारण यह है की गांठ मारने से मन्त्र स्पंदन द्वारा उत्पन्न होने वाली उर्जा शारीर में ही एकत्रित होती है और शिखा की वजह से यह उर्जा बहार जाने से रुक जाती है। जिससे हमें मन्त्र और जप का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।

शिखा को बांधने का मन्त्र है

चिद्रूपिणि महामाये दिव्यतेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि शिखामध्ये तेजोवृद्धि कुरुवमे ।।


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