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।। ऋषियों का ज्ञान।।

भारतीय ऋषियों ने अपने हजारों वर्ष के अन्वेषक के बाद इस ब्रह्माण्ड के सम्बन्ध मे हजारों हजार रहस्यों का पता लगाया और उस अन्तिम सत्य तक पहुँच गये, जो इस ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति का कारण है।तंत्रविधा की उत्पत्ति इसी ज्ञान से हुई है।
जिस तत्त्व ज्ञान, ब्रह्म ज्ञान, शिवज्ञान, या परमात्मा का ज्ञान कहा जाता है, इसके बारे मे प्राचीन ऋषियों ने कहा कि लाखों करोड़ों मे से कोई एक इसे जानने का प्रयत्न करता है, और प्रयत्न करने वाले करोड़ों मे से कोई एक ही इसे जान पाता है ,इस सत्य को आधुनिक रूप से व्यक्त किया जा रहा है ताकि इसको समझा जा सके जब तक यह समझा नही जायेगा तह तक तंत्र विधा के प्रयोगों को सफलता पूर्वक नही किया जा सकता है ।
क्योंकि जब तक पूर्ण विश्वास जागेगा नही और बिना विश्वास जागे,दुनिया का कोई काम सफल नही होता हलांकि यह रहस्य इतना गोपनीय है कि हजारों हजार सालों से गुरू शिष्य परम्परा मे गुप्त रूप से चला आ रहा है ।
इसकी जानकारी कोई किसी को नही देता,किन्तु आज इस विधा के प्रति अविश्वास किया जा रहा है । इसलिए इस रहस्य को प्रकट करने का समय आ गया है वरना यह विधा ही लुप्त हो जायेगी।
तंत्र विज्ञान मे बताया है कि ब्रह्माण्ड एक ऐसे सूक्ष्म तत्त्व से निर्मित हुआ है, जो शुद्ध सूक्ष्म विरल और परम गति वान एव तेजवान है इस तत्त्व से ब्रह्माण्ड के निर्माण की एक विस्तृत प्रक्रिया बतायी गयी है, किसी ने इस तत्त्व को आत्मा कहा है किसी ने शिव कहा है तो किसी ने ब्रह्म ।ये अलग अलग भारतीय सम्प्रदायों द्वारा प्रदत्त नाम है।
इसी तत्व से उत्पन्न ब्रह्माण्ड एक विशिष्ट ऊर्जा के जाय ग्राम मे क्रिया कर रहा है ।
इस डायग्राम से ऊर्जा तरंगें उत्पन्न हो रही है जैसा ऊर्जा डायग्राम इस ब्रह्माण्ड का है वैसा ही डायग्राम किसी प्राकृतिक इकाई का होता है, चाहे वह पृथ्वी हो सूर्य हो, चाँद हो, और मंडल हो या निहारिका हो , वैसा ही ऊर्जा डायग्राम प्रत्येक जीव, प्रत्येक वनस्पति, प्रत्येक कीटाणु, प्रत्येक परमाणु का होता है ।
और सब एक दुसरे से जुडे हुए होते है ठीक उसी प्रकार किसी जीव के कोशाणु एक दुसरे से जुडे होते है यह ऊर्जा डायग्राम इस प्रकार हैजैसे सूर्य के केन्द्र मे उसका घन पोल है वहा से जो किरणे सतह से विकरित होती है वे ऋण ऊर्जा तरंगें है किन्तु पृथ्वी ये लिए वे तरंगें यानि सूर्य की किरणे धन तरंगें है और उन्ही तरंगों के कारण पृथ्वी का नाभिक काम करता है, पृथ्वी को लिए धनघ्रुव है और उसकी सतह से जो ऊर्जा विकरित है वह पृथ्वी का ऋण तरंगें है ।
पृथ्वी की ये ऋण तरंगे हमारे लिए धन तरंगें है हमारी उत्पत्ति सूर्य की ऋण तरंगों एवं पृथ्वी की ऋण तरंगों से सभी जीव वनस्पतियों की होती है इससे हमारे ह्रदय का नाभिक बनता है और इसी से हमारा डायग्राम बनता है यह डायग्राम भी वही होता है और इसका दो (दोनोपैर)धन कोण पृथ्वी से लगा होता है और एक सुर्य की ओर होता (सिर) है, दो ऋण कोण ऊपर होता(हाथ)है एक नीचे की ओर होता(रीढ़ की हड्डी का सिरा) है।
पृथ्वी का धन कोण सूर्य की ओर होता है दो उसके विपरीत एक ऋण कोण विपरीत मे होता है दो सूर्य की ओर सूर्य की निहारिका को केन्द्र से भी यही स्थिति होती है यही क्रम ब्रह्माण्ड ये केन्द्र तक चला जाता है ।
इस प्रकार हमारा ऊर्जा डायग्राम अनेक श्रृंखलाओं मे होता हुआ ब्रह्माण्ड के ऊर्जा डायग्राम से जुड़ा है

                      

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