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[ग्रहो से सम्बंधित व्यवसाय –

व्यवसायों के प्रकार का निर्णय ग्रहो के स्वरुप, बल आदि पर निर्भर करता है। जो ग्रह अत्यधिक बलवान होकर, लग्र, लग्रेश आदि आजीविका के परिचायक पक्षो पर प्रभाव डालता है, वह ग्रह आजीविका के स्वरुप अथवा प्रकार प्रकृति का ‘धोतक’ बतलाने वाला होता है। अतः ग्रहो के स्वरुप का ज्ञान आजीविका के निर्णय करने के लिए अत्यावश्यक है। इसी तथ्य को दृष्टि में रखते हुए ग्रहो के स्वरुप का कुछ विवेचन नीचे किया गया है।

सूर्य – सूर्य जब ग्रहो में ऊँचा मुख्य व राजा है। इसीलिए जब यह गृह धंधो को दर्शाता है तो वह धंधा ऊँचे दर्जे का विस्तृत क्षेत्र में व्यापक, बहुत प्रदेशो से संबंधित बहुत पूंजी वाला होता है। सूर्य का राज्य से घनिष्ट सम्बन्ध है, क्योकि सूर्य स्वयं राजा अर्थात राजपुरुष है। अतः जब सूर्य धंधे का निर्याणक हो तो उस धंधे का सम्बन्ध राज्य से किसी न किसी प्रकार का होता है। यदि सूर्य बहुत बलवान हो तो राज्यशासन द्वारा धन दे देता है। मध्यम बली हो तो बड़ा राज्याधिकारी बना देता है और यदि साधारण रूप से बलवान हो तो मनुष्य को साधारण कर्मचारी बना देता है। यदि सूर्य का लग्न, लग्रेश, राशीश आदि ग्रहो कि अपेक्षा अधिक संबंध हो अर्थात अपनी युति अथवा दृष्टि द्वारा सूर्य इन लग्नादि पर प्रभाव डाल रहा हो तो सूर्य धंधे की दिशा को बतलाता है। यदि द्वितीयेश, पंचमेश, नवमेश, दशमेश, एकाददेश होकर बलवान हो तो मुनष्य को दुसरो पर शासन करने वाले राजा, गवर्नर, मंत्री, अभियंता आदि उच्च पदवी वाला शासक बना देता है।
सूर्य अग्रिरूप है। जब यह मंगल और केतु के साथ मिलकर कार्य करता है तो अग्रि संबंधित कार्य करवाता है। यदि धंधा – धोतक ग्रह पर सूर्य नवमेश तथा पंचमेश तथा इन भावो का सम्बन्ध हो तो मनुष्य पिता के साथ मिलकर कारोबार करता है। उसी पर निर्भर रहता है अथवा पैतृक वंशानुगत धन सम्पदा का लाभ भी बन पाता है।
यदि सूर्य का प्रभाव मिलकर धंधा – धोतक ग्रह ( शनि और राहु ) पर पड़ता है तो वे मनुष्य को डॉक्टर अथवा चिकित्सक, शरीर गुण रचना निर्णायक अथवा वैध बना देते है।
सूर्य एक सात्विक ग्रह है तब यह गुरु, नवमेश आदि धार्मिक ग्रहो के साथ लेकर धंधा धोतक ग्रहो पर प[रभाव करता है तो मनुष्य धर्म से धन कमाता है। इस संदर्भ में द्वादश स्थान धर्म मंदिर का धोतक है क्योकि द्वादश स्थान नवम से चतुर्थ है अर्थात धर्म (नवम) अथवा देव का घर अथवा जंगलात सम्पदा का कारक भी है। जब सूर्य चतुर्थेश से संबंध रखता हुआ धंधे का धोतक हो तो लकड़ी से संबंधित कार्य को देता है।

चन्द्र – ग्रहो में चन्द्र जलीय है। शुक्र भी जलीय ग्रह है। चतुर्थेश, अष्टमेष तथा द्वादशेश भी जलीय प्रभाव रखते है। अतः यदि चन्द्र का दूसरे जलीय अंगो का धंधा धोतक पर प्रभाव हो तो मनुष्य जलीय कार्यो द्वारा धनोपार्जन करता है। जैसे जलसेना में कार्य करना, रस – द्रव्य – तरल – पदार्थ, शर्बत बेचना आदि।
चन्द्र का खाने पीने से घनिष्ट सम्बन्ध है , क्योकि चन्द्र लग्न भी है और जलीय गृह भी। अतः जब चन्द्र का तथा द्वितीयेश ( मुख) का प्रभाव धंधा धोतक गृह पर पड़ता है तो मनुष्य खाने – पीने के कार्य जैसे दूध आदि खाद्ध पदार्थो कि बिक्री का कार्य करता है।
चन्द्र जब धंधे से सम्बन्ध रखता है तो और उस पर राहु का प्रभाव हो तो मनुष्य शराब बेचने का कार्य करता है, क्योकि राहु विष या मलिनता का धोतक है।
चन्द्र एक स्त्री गृह है, जब यह ग्रह दूसरे स्त्री – ग्रहो, शुक्र, बुध, शनि आदि को लेकर धंधे का परिचायक होता है तो मनुष्य को स्त्रियो के साथ मिलकर धंधा करने का अवसर प्राप्त होता है। जैसा कि फ़िल्म लाइन में अभिनेता होना। यदि स्त्री – ग्रह नीच स्थिति में हो तथा राहु आदि मलिन प्रभाव में हो तो तथा ‘जनता’ (चतुर्थ भाव) से सम्बन्ध रखता हो तो व्यभिचार से धन कमाता है।
चन्द्र रानी ग्रह है अतः राज्य से भी इसका घनिष्ट सम्बन्ध है। अतः जब यह ग्रह – राज्य – धोतक – सूर्य, ब्रहस्पति आदि ग्रहो से मिलकर धंधे का धोतक होता है तो राज्य सम्बन्धी कार्य जैसे शासन, कार्य, राज्य – कर्मचारी कार्य करवाता है।
चन्द्र मन का कारक है। यदि यह ग्रह, चतुर्थ स्थान तथा चतुर्थ भाव का स्वामी, सभी शनि तथा राहु कि दृष्टि आदि जनित प्रभाव में हो तो मनुष्य का मन मंदगामी, उदासीन, विरक्त हो जाता है जिसके फलस्वरूप वह मनुष्य कोई भी कार्य अथवा धंधा नहीं करता है।
चंद्रमा सुगन्धप्रिय ग्रह है। अतः यह शुक्र के साथ मिलकर धंधे का धोतक होता है। सुगन्धित तेलो, अगरबत्ती, इत्र – अर्क तथा सेंटो का काम – धंधा करने वाला होता है।
चन्द्र जब द्वितियाधिपीत होकर धंधे के धोतक होता है और बुध आदि व्यापारी ग्रहो से सम्बंधित करवाता हुआ धंधे को दर्शाता है। तो चावल आदि जल से उत्पन्न होने वाले अथवा जल से घनिष्ट सम्बन्ध रखने वाले खाध पदार्थो जैसे चावल, गन्ना, पान, दूकान आदि द्वारा धन कमाता है।
चन्द्र जब किसी लग्न का स्वामी होता है तो तथा द्वितियाधिपति गुरु से प्रभावित होकर धंधे का धोतक हो तो मिष्ठान, भोजनालय, होटल, हलवाई, रेस्टोरेंट के काम से धन कमाता है।

मंगल – मंगल अग्निमय है। यह गृह जब धंधे का स्वयं स्वामी अथवा केतु, सूर्य आदि अन्य अग्निधोतक ग्रहो के साथ लेकर धंधे का धोतक होता है तो अग्नि सम्बन्धी कार्यो द्वारा धनोपार्जन करवाता है। जैसे खाद्य सामग्री पकाने तथा लुहार, सुनार, वेल्डिंग आदि कार्य व्यवसाय सूचक।
मंगल साहस तथा हिंसाप्रिय है। अतः मिलिट्री अथवा रक्षा विभाग से इसका घनिष्ट सम्बन्ध है। आरक्षी पुलिस विभाग, सेना – सेनाद्यक्ष – यातायात – सर्जन – डॉक्टर आदि का कारक।
मंगल भूमिपुत्र कहलाता है। अतः जब यह चतुर्थेश होकर अथवा चतुर्थेश से मिलकर धंधे का धोतक होता है तो भूमि कि आय, किराया, होटल, लीज आदि द्वारा धन कमवाता है।
यदि मन पर भी मंगल का अधिक प्रभाव हो तो जैसे लग्न में मंगल कि स्थिति अथवा लग्नेश चतुर्थेश पर मंगल कि दृष्टि हो और साथ ही साथ मंगल कम धंधे का धोतक ग्रह भी बनता हो तो मनुष्य डकैती आदि क्रूर कार्यो से धन पाता है। विशेषतया तब जबकि एकादश भाव पर मंगल का प्रभाव हो।
मंगल हेतुप्रिय ग्रह है। यह मनुष्य में बुद्धि को तथा उहापोह शक्ति को बढ़ाता है। अतः जब यह ग्रह बुद्धि – स्थान पर स्वामी होकर बलवान तथा धंधे का धोतक होता है तो मनुष्य को शासक अथवा मंत्री बना देता है।
मंगल एक क्षत्रिय ग्रह है। सूर्य भी क्षत्रिय ग्रह है। जब सूर्य से प्रभावित मंगल धंधे का परिचायक होता है तो मनुष्य को राज्य की रक्षा विभाग में कार्य करवाता है। विशेषतया जबकि तृतीयेश तथा द्वादशेश भी इस योग में सम्मिलित हो, तो इस योग का विघटन और भी प्रभावी व सार्थक बन पाता है।
मंगल कि चोरी की भी आदत है। छठे से छठे अर्थात ग्यारहवे भाव का स्वामी हो तो इसमें चोरी का भाव आ जाता है अथवा परिग्रहवादी, संग्रहात्मक, मनोवृत्ति अपहरण का कार्यक बन पाता है।

बुध – बुध बुद्धि का ग्रह है। यदि यह ग्रह द्वितीय, पंचम, नवम आदि बुद्धि स्थानो का स्वामी होता हुआ, धंधे का धोतक हो अर्थात लग्न – लग्नेश, चन्द्र – चंद्रेश, सूर्य – सूर्येश आदि राशि को अधिकतम प्रभावित करता हो तो मनुष्य बुद्धिजीवी होता है अर्थात स्कूल मास्टर, प्रोफेसर, अध्यापक आदि होकर धनोपार्जन करता है।
बुध व्यापार का ग्रह है। यदि यह ग्रह शनि, शुक्र आदि व्यापार धोतक ग्रहो को साथ लेकर धंधे का धोतक गृह बनाता हो तो मनुष्य व्यापारी होता है अर्थात स्वतंत्र समायोजनाका कारक सूचक।
बुध लेखक है, जब जब वह धंधे का धोतक होता है और राज्य धोतक ग्रहो, सूर्य आदि से भी प्रभावित होता है तो मनुष्य राज्य के किसी विभाग में लिखने के कार्य करने वाला जैसे क्लर्क अथवा स्टेनो का कार्य करता है। यदि बहुत बलवान हो तो लेखा ऑफिसर बना देता है।
बुध यदि तृतियाधिपति हो और बलवान होकर धंधे का परिचायक धोतक हो तो मनुष्य अपने लेखो द्वारा आजीविका का उपार्जन करता है, क्योकि बुध लेखक है और तृतीय स्थान भी साथ होने से लिखने ही को दर्शाता है।
बुध फलित ज्योतिष का भी कारक है। जब इसका सम्बन्ध जनता से अर्थात चतुर्थ भाव से तथा नवम भाव एवं द्वादश भाव से होता है। और द्वितियाधिपति को साथ लेकर यह धंधे का धोतक होता है तो मनुष्य ज्योतिष द्वारा धनोपार्जन करता है। अथवा इस प्रकार के जातक में भावी सोच – विचार, दूरदर्शिता का गुणत्व बनता है।
बुध विनोदप्रिय है अतः जब यह ग्रह अन्य विनोदप्रिय ग्रहो तथा अंगो, जैसे चतुर्थेश, पंचमेश तथा शुक्र से सम्बन्ध करता हुआ धंधे का धोतक होता है तो विनोद द्वारा अर्थात सिनेमा – मोदसभा आदि आमोद – प्रमोद के स्थानो से आजीविका को प्राप्त करता है।
बुध गुमाश्ता, कमीशन एजेंट – ब्रोकरशिप – दलालो का भी करक होता है। यदि यह चतुर्थेश से सम्बन्ध रखता हो और मंगल से भी प्रभावित हो तो जायदाद भूमि लेन – देन आदि का एजेंट होता है।

ब्रहस्पति – यह गृह कानून से घनिष्ट सम्बन्ध रखता है। अतः यदि यह अष्टमेश, एकाददेश तथा बलवान होकर बुध को साथ लेकर धंधे का धोतक हो अर्थात लग्न लग्नेश आदि लग्नो पर अपना प्रभाव डालता हो तो मनुष्य को वकील, इन्कमटेक्स का वकील बनता है। उपरोक्त गुरु पर यदि मंगल का प्रभाव हो तो फौजदारी का वकील होता है। अधिक बलवान होने पर यही ब्रहस्पति व्यक्ति को न्यायाधीश बना देता है। अष्टम तथा एकादश स्थान राज्य की आय सूचक संज्ञा का भी न्यास होता है।
ब्रहस्पति का जब नवमेश, द्वादशेश व पंचमेश से सम्बन्ध होता है और पुनः वह ब्रहस्पति धंधे का परिचायक हो तो मनुष्य धर्मशाला, मंदिर – देवस्थल आदि द्वारा पुरोहित – पुजारी आदि के रूप में धन प्राप्त करता है।
बुध कि भांति ब्रहस्पति भी भाषण से घनिष्ट सम्बन्ध रखता है। अतः जब वाणी – धोतक घरो – द्वितीय तथा पंचम का स्वामी होता है तो मनुष्य भाषण द्वारा अपनी आजीविका प्राप्त करता है जैसे कि दलपति, राजनेता, नायक, अधिवक्ता, वकील तथा अध्यपक लोग करते है।
ब्रहस्पति धन का कारक है। जब यह ग्रह द्वितीय तथा एकादश भावो का स्वामी हो और लग्न – लग्नेश आदि लग्नो पर अधिकतम प्रभाव डालने के कारण धंधे का धोतक ग्रह भी हो तो यह गतिशील धन से जैसे सूद – ब्याज से तथा बैंकर कैश सर्टिफिकेट, किराया आदि से या बैंक कि नौकरी से धनोपार्जन करता है।
ब्रहस्पति बलवान हो और एकादशाधिपति हो तो ऐसा व्यक्ति बड़े भाई द्वारा अथवा उससे मिलकर धनोपार्जन करता है और उसे बड़े भाई से बहुत सहायता मिलती है।

शुक्र – गुरु की भांति शुक्र भी कानून से सम्बन्ध रखता है क्योकि यह भी दैत्याचार्य है। जब गुरु के साथ मिलकर यह ग्रह लग्न, लग्नेश आदि लग्नो पर अपेक्षाकृत अधिकतम प्रभाव डालता है तो व्यक्ति को कानून से सम्बंधित काम धंधे में लगाता है।
शुक्र एक जलीय ग्रह है। चन्द्र के साथ अथवा जलीय भाव से स्वामियों के साथ मिलकर जब यह ग्रह उपरोक्त रीति से धंधे का धोतक होता है तो मनुष्य कार्यो से धनोपार्जन करता है जैसे – जल सेना में भर्ती होकर अथवा तरल द्रव्य पदार्थ कार्यो द्वारा।
शुक्र एक सौंदर्यप्रिय ग्रह है। सुंदरता तथा भोग – विलास से सम्बन्ध रखने वाले जितने धंधे होते है, सबका सम्बन्ध शुक्र से है, जैसे मुख तथा शरीर के सौंदर्य का वर्धन करने वाले पदार्थ बढ़िया तेल, इत्र सुगन्धित वस्तुए आदि। अतः जब शुक्र, बुध आदि व्यापारी ग्रहो को साथ लेकर धंधे का परिचायक होता है, तो व्यक्ति को फैंसी गुड्स के विक्रेता आदि बना देता है तथा भोग – विलास – श्रंगार प्रसाधन वस्तुओ से लाभप्रद बनाता है।
शुक्र जब सप्तमाधिपति हो तो रतन प्राप्त होता है, यदि ऐसा शुक्र शुभ, लग्नाधिपति, धनाधिपति अथवा गुरु से प्रभावित होता हुआ धंधे का धोतक हो तो मनुष्य सराफा होता है और रत्नो का व्यापार करता है।
शुक्र को गाना बजाना बहुत चाहता है। जब भाषण भावो तथा वाधकारक बुध से सम्बन्ध होता हुआ शुक्र ‘धंधे’ का धोतक हो तो व्यक्ति गाने – बजाने के द्वारा आजीविका का उपार्जन करने वाला होता है। शुक्र ‘वाहन’ का भी कारक है। यदि वाहन के स्थान से भी सम्बन्ध रखता हुआ अथवा (चतुर्थेश) से सम्बन्ध रखता हुआ शुक्र (धंधे) का धोतक हो तो मनुष्य विविध भार वाहक अथवा यात्रा सवारी वाहन द्वारा आजीविका मिलती है।

शनि – शनि पत्थर माना गया है। यदि इस ग्रह का सप्तम भाव से घनिष्ट सम्बन्ध हो तो यह ग्रह पत्थर का प्रतिनिधि हो जाता है। यदि ऐसे शनि का प्रभाव लग्न लग्नेश आदि लग्नो पर हो तो मनुष्य सड़क बनवाने तथा पत्थर सप्लाई करने आदि पत्थर के कार्यो द्वारा जीवनयापन करता है।
शनि अधोमुखी ग्रह है, अतः पृथ्वी के भीतर रहने वाले पदार्थो लोहा, कोयला, पेट्रोल, भूमि तेल का कारक है। जब शनि चतुर्थेश होकर धंधे का परिचारक होता है तो इन पदार्थो से धन का लाभ होता है।
शनि रोग से सम्बंधित है, अतः डॉक्टर अथवा वेध भी है। अतः जब भी यह ग्रह सूर्य, राहु आदि अन्य वेध ग्रहो के प्रभाव को लेकर धंधे का धोतक होता है तो मनुष्य चिकित्सक होता है।
शनि मृत्यु से घनिष्ट सम्बन्ध रखता है, अतः मृत शरीर से प्राप्त होने वाला चमड़ा शनि द्वारा प्रदिष्ट होता है। जब शनि अष्टमाधिपति अथवा तृतियाधिपति होता हुआ ‘धंधे’ का धोतक होता है तो चमड़ा, जूते, प्लास्टिक, रबर, पी. वी. सी. टायर, रेकसीन, फोम आदि द्वारा आजीविका देता है।
शनि भूमि क्षेत्र का कारक है, अतः जब चतुर्थेश होकर धंधे का धोतक होता है तो मनुष्य को कृषि द्वारा धन देता है। साथ ही कृषि पंडित, नेता, नायक, श्रमिक, लीडर – नेता का कारक भी बन पाता है।
शनि लोहा है, जब यह तृतीयेश चतुर्थेश हो तो वाहन कि लोहा पटरी होता है। अतः रेलवे का प्रतिनिधि होता है।
शनि बलवान हो और विद्या पर्याप्त हो तथा शनि मंगल से प्रभावित हो और ऐसा शनि यदि धंधे का धोतक हो तो यन्त्र आदि का कार्य करने वाला इंजीनियर होता है। जिसका बिजली से सम्बन्ध होता है। यदि शनि का मंगलसे सम्बन्ध न हो तो, और बुध से हो तो मैकेनिकल इंजीनियर होता है।
शनि पत्थर है। यदि सप्तमेश होता हुआ तथा शुक्र से बहुत प्रभावित होता हुआ ‘धंधे’ का धोतक हो तो मनुष्य पत्थर की मुर्तिया के काम से धनोपार्जन करता है। साथ ही विविध सम्भागीय ठेकेदारी कार्य का भी कारक सूचक।
: ज्योतिष में उपाय का लाभ

जीवन मे कोई भी उपाय जिसको आप one time solution समझते है वो असल मे काम नही करता,

कोई भी उपाय को जब तक आप उसे अपनी जीवनचर्या का हिस्सा नही बनाते, तब तक वो आपके अंतरात्मा पर असर नही डालेगा।

कोई भी उपाय का मकसद होता है अंतरात्मा पर प्रभाव होना।

क्योकि अंतरात्मा ही आपकी जिंदगी का मालिक है जो आपको सुख या दुख देती है,उसी के प्रभाव से आपको सब कुछ मिलता है जीवन मे।

अब लम्बे समय तक जब कोई भी उपाय आप शरीर के साथ मन या दिल से करते है

तो एक दिन वो जरूर आपकी अंतरात्मा पर असर करेगा।

जीवन मे गहरे रूप में असर करेगा।

कभी कभी इतने गहरे की आपकी कोशिका के हर एक DNA में समाहित होकर आने वाली पीडियो तक असर करेगा।

इसलिए याद रखना,
दुसरो से मन्त्र जाप हवन आदि का भी लाभ होता है, लेकिन अक्सर आप खुद उसमे अंतरात्मा से शामिल नही हो पाते।

आपने देखा होगा,

कैसे होता हमारे घरों में हवन,

सिर्फ मशीन के रूप में, जैसे कि किसी भी तरह सामग्री और आहुति को अग्नि में प्रज्वलित कर देना होता है।

असल मे उसका लाभ शारीरिक रूप में जरूर होताहै, वातावरण भी शुद्ध होता है,

लेकिन अंतरात्मा तक असर एक दिन में नही होगा।

इसलिए नियम बनाये,

हफ्ते में एक दिन , जो भी आपके परिवार के लिए सुलभ हो, उस दिन परिवार के लोग, आदत बनाये की एक साथ एक छोटा हवन खुद करने की आदत बनाये।

इसमें आपको ज्यादा कुछ नही करना, बस एक बार प्रक्रिया सीखकर आदत बनाये, फिर आने वाली generation को भी आसानी होगी

आपके इस संस्कार से।
[: अनुपम उपदेश रत्न
🔸🔸🔹🔹🔸🔸
ब्रह्महत्या के समान👉 वेद-कथा में विघ्न डालना, पति-पत्नी की प्रीति का नाश करना, शिशु और माता को पृथक-पृथक कर देना ये ब्रह्महत्या के समान दोष हैं।

शरणागति के छः प्रकार👉 शुभ कर्मों का सङ्कल्प, दुष्ट कर्मों का त्याग, प्रभु मेरी रक्षा करेगा–ऐसा दृढ़ विश्वास, स्वरक्षार्थ परमात्मा का वरण करना, अपना सब कुछ ईश्वरार्पण करना तथा चिन्तामुक्त रहना।

भूमि धारक👉 गौ, विप्र, वेद, सती स्त्री, सत्यवादी, अलोभी और दानी–इन सात से ये पृथिवी स्थित है।

सात के द्वेष से नाश👉 जो मनुष्य वेद, विप्र, गौ, देव, साधु, धर्म और अपनी आत्मा से विरोध करने वाला है, वह शीघ्र नष्ट हो जाता है।

दूर से त्याज्य👉 गधे की सवारी, कुत्तों से प्यार, मस्त हाथी, दुश्चरित्रा एवं बहुत बोलने वाली स्त्री, राजपुत्र और कुमित्र का दूर से ही त्याग कर देना चाहिए।

पूजा के अपात्र👉 पाखण्डियों, निषिद्ध कर्म करने वालों, विडाल व्रत वालों, शठों (दुष्ट), वेद में श्रद्धा न रखने वालों और बगुला भक्तों का वाणी-मात्र से भी सत्कार नहीं करना चाहिए।

मानव के शत्रु👉 राग-द्वेष, लोभ, शोक, मोह, भय, अभिमान, नशा सेवन, दूसरे का अपमान करना, दूसरे के गुणों में दोषारोपण करना, छल-कपट, हिंसा और ईर्ष्या करना।

नौ न करने योग्य कर्म👉 चुगली करना, झूठ बोलना, छल करना, काम, क्रोध, किसी का अप्रिय करना, द्वेष, दम्भ, पर-द्रोह―यह नौ न करने योग्य कर्म हैं।

महान् कष्ट पाने वाला👉 गुणों में दोषारोपण करने वाला, मर्मभेदक वचन बोलने वाला, अप्रिय वक्ता, निष्ठुर कठोर स्वभाव वाला, शत्रुता करने वाला और कपट करने वाला शीघ्र ही महान् कष्ट को पाता है।

पुरुष को चमकाने वाले गुण या मोक्ष के उपाय👉 सत्पुरुषों से मेल, पापियों का त्याग, ब्रह्मचर्य का पालन, यम-नियमों का पालन, धर्म-शास्त्रों का स्वाध्याय और उसके अनुसार आचरण करना, आत्मज्ञान-प्राप्ति, एकान्त सेवन, विषयों में प्रीति न होना, मन का सर्वथा वश में रखना, निष्काम भावना से कर्म करना, अहंकार का त्याग, वृत्तियों का निरोध―ये मोक्ष के उपाय हैं।
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