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[शिव और मानव सभ्यता :- मानव समाज को जब भी जिस चीज की आवश्यकता हुई है, शिव ने अपनी दया और करुणा की छतरी खोल दी है। शिवजी के प्रति हम विभिन्न प्रकार से विचार भी नहीं कर सकते और न ही इतिहास में लिख सकते हैं।

मानव सभ्यता और मानव संस्कृति के गठन में शिव की जो विराट भूमिका है, उसमें यही कहना संगत है कि शिव को हटा देने पर मानव सभ्यता और मानव संस्कृति के लिए कोई भूमि ही नहीं मिल पाएगी। किंतु मानव सभ्यता और संस्कृति को निकाल देने पर भी शिव की महिमा रहेगी। वर्तमान मानव समाज और सुदूर भविष्य में भी मानव समाज के प्रति सुविचार करते समय, उसका यथार्थ इतिहास लिखते समय शिव को छोड़ देने से काम नहीं चलेगा। कई भाषा और कई धर्म के साथ भी शिव का सम्यक परिचय था। शिव को हम तंत्र और वेद, दोनों में ही पाते हैं, लेकिन अत्यंत प्राचीन काल में हम उन्हें नहीं पाते हैं, क्योंकि अत्यंत प्राचीन काल में ग्रंथ रचना संभव नहीं थी।
मानव सभ्यता में आध्यात्मिक जिज्ञासा और प्रेरणा का कारण और परिणाम ही शिव हैं। शिव अनंत हैं, शिव सार्वभौमिक और सार्वकालिक हैं। वे किसी एक सभ्यता के द्योतक नहीं हैं, वे तो सभ्यताओं के नियामक हैं। शिव स्वयं में एक संस्कृति हैं। एक ऐसी अनवरत धारा हैं, जो अध्यात्म और दैविक शक्तियों के प्रति मानवीय जिज्ञासाओं का प्रतिनिधित्व करती है। शिव की सार्वभौमिकता को जानना हो तो विश्व की अनेक सभ्यताओं के प्राचीन अध्यायों का अवलोकन करना होगा। मिस्र , हड़प्पा , बेबीलोन और मेसोपोटामिया की सभ्यता में पितृ शक्ति की उपासना के प्रतीक मिले हैं। ये प्रतीक ही शिव आस्था की वैश्विकता को सिद्घ करते हैं। जहां आगमो शिव है वेदों में शिव रुद्र हैं, वहीं पुराणों में अद्र्घनारीश्वर हो जाते हैं। यह एक गंभीर आध्यात्मिक चिंतन है। नारी को शक्ति के रूप में स्वीकार किया गया। माना गया कि शिव अर्थात कल्याण, शक्ति के बिना संभव नहीं है। शक्ति के अनेक रूप हैं। प्रतीकात्मक दृष्टि से सब ज्ञान, धैर्य, वीरत्व, जिज्ञासा, क्षमा, सत्य तथा अन्य सात्विक आचरणों का प्रतिनिधित्व करते हैं।

१) प्राचीन मिस्र, नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी, जो अब आधुनिक देश मिस्र है।
नील नदी के उपजाऊ बाढ़ मैदान ने लोगों को एक बसी हुई कृषि अर्थव्यवस्था और अधिक परिष्कृत, केन्द्रीकृत समाज के विकास का मौका दिया, जो मानव सभ्यता के इतिहास में एक आधार बना।
5500 ई.पू. तक, नील नदी घाटी में रहने वाली छोटी जनजातियाँ संस्कृतियों की एक श्रृंखला में विकसित हुईं, जो उनके कृषि और पशुपालन पर नियंत्रण से पता चलता है और उनके मिट्टी के मूर्ति , पात्र और व्यक्तिगत वस्तुएं जैसे कंघी, कंगन और मोतियों से य स्पष्ट दिखता है की पशुाप्ति ( शिव ) ही है उन्हें पहचाना जा सकता है। ऊपरी मिस्र की इन आरंभिक संस्कृतियों में सबसे विशाल, बदारी को इसकी उच्च गुणवत्ता वाले चीनी मिट्टी की , पत्थर के उपकरण और तांबे के मार्तिओं में पशुपति शिव जोड़ी बैल ( नंदी ) उनके देवता के रूप जाना जाता है।

मिस्र में शिव : कल्याण के शिवांक के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के इजिप्ट (मिस्र) में तथा अन्य कई प्रांतों में नंदी पर विराजमान शिव की अनेक मूर्तियां पाई गई हैं। वहां के लोग बेलपत्र और दूध से इनकी पूजा करते थे।
माउंट ऑफ ओलिव्स पर टैम्पल माउंट या हरम अल शरीफ यरुशलम में धार्मिक रूप से बहुत पवित्र स्थान है। इसकी पश्चिमी दीवार को यहूदियों का सबसे पवित्र स्थल कहा जाता है। यहूदियों की आस्था है कि इसी स्थान पर पहला यहूदी मंदिर बनाया गया था। इसी परिसर में डॉम ऑफ द रॉक और अल अक्सा मस्जिद भी है। इस मस्जिद को इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद तीसरा सबसे पवित्र स्थल माना जाता है। यह स्थान तीन धर्मों के लिए पवित्र है- यहूदी, ईसाई और मुसलमान। यह स्थान ईसा मसीह की कर्मभूमि है और यहीं से ह. मुहम्मद स्वर्ग गए थे।
यहूदियों के गॉड : यहूदी धर्म के ईश्वर नीलवर्ण के हैं, जो शिव के रूप से मिलते-जुलते हैं। कृष्ण का रंग भी नीला बताया जाता है। यहूदी धर्म में शिवा, शिवाह होकर याहवा और फिर यहोवा हो गया। शोधकर्ताओं के अनुसार यहां यदुओं का राज था, यही यहूदी कहलाए।

दर्शनशास्त्र में शैव दर्शन का विशेष महत्व है। इसीलिए भारतीय या आगमिक अथवा आस्तिक या नास्तिक समस्त दार्शनिक संप्रदाय किसी न किसी रूप में शिव साधना करते हैं। इसका कारण है कि शिव साधना समस्त दर्शनों और विशेषकर आगमिक शैव दर्शन का व्यवहारिक पक्ष है। शैव दर्शन और साधना उतनी ही पुरानी है जितनी पुरानी मानव सृष्टि। भारतीय कालगणना के अनुसार वर्तमान मानव सृष्टि का आरंभ एक अरब, सतानवे करोड़, उन्तीस लाख, सैतालीस हजार एक सौ एक ईसा पूर्व हुआ। आधुनिक भौतिकी, खगोल, भूगोल, नृवैज्ञानिक भी मानते हैं कि पृथ्वी पर जीव की उत्पत्ति दो से तीन अरब वर्ष पूर्व हुई। भारतीय वांङमय के अनुसार सृष्टि के आरंभ में सर्वप्रथम शिवसिद्ध शैवाचार्यों को गहन ध्यानावस्था में आगम के दर्शन हुए। अतः आगम का इतिहास सृष्टि के आरंभकाल से आगमिक मुनियों से प्रारंभ होता है। भारतीय दर्शन और साहित्य में शैवागम के अनेकों संदर्भ मिलते हैं। अगम , उपनिषद, पुराण , सूत्र , सिद्धांत भाष्य तो शैव साधना को लक्ष्य क रके ही लिखे गए ग्रंथ हैं।
भारतीय दर्शन परंपरा में एक धारा शैव संप्रदायों की प्रवाहित होती रही है। कुछ रहस्यमय साधना के रूप में होने के कारण यह वैदिक और अवैदिक धाराओं के संगम में कुछ सरस्वती के समान गुप्त रही है। किंतु प्रत्यक्ष उपासना के रूप में भी शिव की मान्यता बहुत है। प्राचीन ऐतिहासिक खोजों से शिव की प्राचीनता प्रमाणित होती है। गाँव गाँव में शिव के मंदिर हैं। प्रति सप्ताह और प्रति पक्ष में शिव का व्रत होता है। महादेव पार्वती का दिव्य दांपत्य भारतीय परिवारों में आदर्श के रूप से पूजित होता है। ऋग्वेद और यजुर्वेद के रुद्र के रूप में शिव का वर्णन है।
शैव संप्रदाय प्राय: गुप्त तंत्रों के रूप में रहे हैं। उनका बहुत कम साहित्य प्रकाशित है। प्रकाशित साहित्य भी प्रतीकात्मक होने के कारण दुरूह है। शैव परंपरा के अनेक संप्रदाय हैं। इनमें शैव, पाशुपत, वीरशैव, कालामुख, कापालिक, काश्मीर शैव मत तथा दक्षिणी मत अधिक प्रसिद्ध हैं। इन्हें शैव परंपरा के षड्दर्शन कह सकते हैं। शैव सिद्धात का प्रचार दक्षिण में तमिल देश में है। इसका आधार आगम ग्रंथों में है। 14वीं शताब्दी में श्रीपति पण्डितारध्या ने “ब्रह्मसूत्रों” पर शैवभाष्य (श्रीकर भाष्य ) की रचना कर वेदांत परंपरा के साथ शैवमत का समन्वय किया। पाशुपत मत, ‘नकुलीश पाशुपत’ के नाम से प्रसिद्ध है। पाशुपत सूत्र इस संप्रदाय का मूल ग्रंथ है। कालामुख और कापालिक संप्रदाय कुछ भयंकर और रहस्यमय रहे हैं। काश्मीर शैव मत अद्वैत वेदांत के समान है। तांत्रिक होते हुए भी इनका दार्शनिक साहित्य विपुल है। इसकी स्पंद और प्रत्यभिज्ञा दो शाखाएँ हैं। एक का आधार वसुगुप्त की स्पंदकारिका और दूसरी का आधार उनके शिष्य सोमानंद (9वीं शती) का “प्रत्यभिज्ञाशास्त्र” है। जीव और परमेश्वर का अद्वैत दोनों शाखाओं में मान्य है। परमेश्वर “शिव” वेदांत के ब्रह्म के ही समान हैं। वीरशैव मत दक्षिण देशों से प्रचलित है। इनके अनुयायी शिवलिंग धारण करते हैं। अत: इन्हें “लिंगायत” भी कहते हैं। मूला में पांच शिवाचार्यों ने इस मत की स्थापना किये है 12वीं शताब्दी में वसव ने इस मत का प्रचार किया। वीरशैव मत एक प्रकार का विशिष्टाद्वैत है। शक्ति विशिष्ट विश्व को परम तत्व मानने के कारण इसे शक्ति विशिष्टाद्वैत कह सकते हैं। उत्तर और दक्षिण में प्रचलित शैव संप्रदाय भी उत्तर वेदांत संप्रदायों की भाँति भारत की धार्मिक एकता के सूत्र हैं।
शिवसूत्र’ में कहा है कि भगवान् श्रीकंठ ने वसुगुप्त को स्वप्न में आदेश दिया महादेवगिरि के एक शिलाखंड पर शिवसूत्र उतंकित हैं, प्रचार करो। जिस शिला पर ये शिवसूत्र उद्दंकित मिले थे कश्मीर में लोग शिवपल (शिवशिला) कहते हैं। इस की संख्या 77 है। ये ही इस दर्शन के मूल आधार हैं। “शैवदर्शन ” में शिवसूत्रों को सिद्धांतों का प्रतिपादन का प्रमाण मानागया है। —
शिव सृष्टि के स्रोत हैं| सभी प्राणीयों के अराध्य हैं| मानवों और देवों के अलावा दानवों एवं पशुओं के भी द्वारा पूज्य हैं, अतः पशुपतिनाथ हैं| प्राचीनतम हरप्पा एवं मोहनजोदारो संकृति के अवशेषों में शिव के पशुपति रूप की कई मुर्तियाँ एवं चिन्ह उपलब्ध हैं| कोई यह न समजे की भगवान शिव केवल भारत में पूजित है । विदेशो में भी कई स्थानों पर शिव मुर्तिया अथवा शिवलिंग प्राप्त हुए है कल्याण के शिवांक के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के इजिप्त में तथा अन्य कई प्रान्तों में नंदी पर विराजमान शिव की अनेक मुर्तिया है वहा के लोग बेल पत्र और दूध से इनकी पूजा करते है । तुर्किस्थान के बबिलन नगर में १२०० फिट का महा शिवलिंग है । पहले ही कहा गया की शिव सम्प्रदायों से ऊपर है। अमेरिका के ब्रेजील में न जाने कितने प्राचीन शिवलिंग है । स्क्यात्लैंड में एक स्वर्णमंडित शिवलिंग है जिसकी पूजा वहा के निवासी बहूत श्रदा से करते है । indochaina में भी शिवालय और शिलालेख उपलब्ध है । यहाँ विस्तार में जाने की आवश्यकता है प्रस्तुत लेख के माध्यम से मेरे य छठा प्रयत्न है की शैव दर्शन और विश्व हितिहास । शिव निश्चय ही विश्वदेव है । शिव शून्य हैं सृष्टी विस्तृत है| हमारी विशाल धरती सौर्यमंडल का एक छोटा सा कण मात्र है| सूर्य में सैकडों पृथ्वी समाहित हो सकती हैं| पर सूर्य अपने नवग्रहों तथा उपग्रहों के साथ आकाश गंगा (Milky way galaxy) का एक छोटा तथा गैर महत्वपूर्ण सदस्य मात्र है| आकाश गंगा में एसे सहस्रों तारामंडल विद्यमान हैं| वे सारे विराट ग्रह, नक्षत्र जिनका समस्त ज्ञान तक उपलब्द्ध नहीं हो पाया है शिव की सृष्टी है| पर प्रश्न यह है कि यह विशाल सामराज्य स्थित कहाँ है? वह विशाल शून्य क्या है जिसने इस समूचे सृष्टी को धारण कर रखा है? वह विशाल शून्य वह अंधकार पिण्ड शिव है| शिव ने ही सृष्टी धारण कर रखी है| वे ही सर्वसमुद्ध कारण हैं| वे ही संपूर्ण सृष्टी के मूल हैं, कारण हैं|
शिव अनादि, अनंत, देवाधिदेव, महादेव शिव परंब्रह्म हैं| सहस्र नामों से जाने जाने वाले त्र्यम्बकम् शिव साकार, निराकार, ॐकार और लिंगाकार रूप में देवताओं, दानवों तथा मानवों द्वारा पुजित हैं| महादेव रहस्यों के भंडार हैं| बड़े-बड़े ॠषि-महर्षि, ज्ञानी, साधक, भक्त और यहाँ तक कि भगवान भी उनके संम्पूर्ण रहस्य नहीं जान पाए| आशुतोष भगवान अपने व्यक्त रूप में त्रिलोकी के तीन देवताओं में ब्रह्मा एवं विष्णु के साथ रुद्र रूप में विराजमान हैं| ये त्रिदेव, सनातन धर्म के आधार और सर्वोच्च शिखर हैं| पर वास्तव में शिव त्रिदेवों के भी रचयिता हैं| महादेव का चरित्र इतना व्यापक है कि कइ बार उनके व्याख्यान में विरोधाभाष तक हो जाता है यानि वश्व के कई प्राचीन सभ्यता मे शिव उपासक है | जो पाश्चात्य देशो प्राचीन नागरिकता में विश्व के अनेक देशों में शिव की पूजा की जाती है अफ्रीका के “मैफिस” और “असीरिस” क्षेत्रों में नन्दी पर विराजमान त्रिशूलहस्त और व्याघ्र चर्माम्बरधारी शिव की अनेक मूर्तियां हैं, जिनका वहां के लोग बेल-पत्र से पूजन और दूध से अभिषेक करते है
तुर्किस्थान के “बाबीलोन” नगर में एक हजार दो सौ फुट का एक बड़ा शिवलिंग है, जो पृथ्वी पर सबसे बड़ा शिवलिंग माना जाता है। उसी प्रकार “हे ड्रो पोलिन” में एक बड़ा शिवालय है, जिसमें सौ फुट का शिवलिंग स्थापित है। इसी प्रकार हिन्द चीन में अनेक शिव मन्दिर पाए गए हैं। कम्बोडिया के इतिहास से यह पता चलता है कि पहले इस देश के राजा राजेन्द्र वर्मा ने शक संवत 866 में अंगकोर में यशोधरपुरी तालाब के बीच शिवलिंग को स्थापित किया था। इसके संदर्भ में प्रामाणिक उल्लेख यहीं के “सियाराम” जिले के “बातचीम” स्थान के खम्भों के ऊपर खुदे हुए लेख में हैं। इतिहास प्रसिद्ध “जावा” और “सुमात्रा” द्वीपों में शिव-पूजन का साक्ष्य मिलता है। इतिहासकारों का कथन है कि सुप्रसिद्ध अगस्त्य महर्षि ने इस यव (जावा) और सुवर्ण (सुमात्रा) द्वीपों में शिवभक्ति का प्रचार और प्रसार किया था। वहां अगस्त्य की कई मूर्तियां मिली हैं जो रुद्राक्ष आदि चिह्नों से विभूषित हैं। अगस्त्य की मूर्ति को वहां लोग आज भी “शिव गुरु” के नाम से पुकारते हैं। सुमात्रा तथा जावा की भांति बालिद्वीप (बाली), श्याम और वर्मा में भी अनेक शिव मन्दिर हैं जहां आज भी लोग बड़ी संख्या में एकत्र होकर शिव-पूजा का पवित्र कार्य सम्पादित करते हैं।

गुजरात स्थापना दिवस 1 मई को बनाया जाता है। भारत के स्वतंत्र होने के समय यह प्रदेश मुम्बई राज्य का अंग था। अलग गुजरात की स्थापना 1 मई, 1960 को हुआ। शैव मत के प्राचीनता एवं ऐतिहासिकता की दृष्टि से गुजरात, भारत का अत्यंत महत्त्वपूर्ण राज्य है। इसकी उत्तरी-पश्चिमी सीमा पाकिस्तान से लगी है। गुजरात का क्षेत्रफल 1,96,024 वर्ग किलोमीटर है। यहाँ मिले पुरातात्विक अवशेषों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस राज्य में मानव सभ्यता का विकास 5 हज़ार वर्ष पहले हो चुका था। कहा जाता है कि ई. पू. 2500 वर्ष पहले पंजाब से हड़प्पा ( शैव ) वासियों ने कच्छ के रण पार कर नर्मदा की उपत्यका में मौजूदा गुजरात की नींव डाली थी। प्राचीन कल से लेके आज तक गुजरात शैव मत के प्रभाव में रही हरप्पा संस्कृति से लकुलीश महाराज तक शैव सभ्यता दिखता है इस कारन गुजरात में भगवान शिव जी १२ ज्योतर्लिंगो में २ ज्योतिर्लिंग गुजरात के पवन धरती पर विराजमान है।

शिव सृष्टि के स्रोत हैं| सभी प्राणीयों के अराध्य हैं| मानवों और देवों के अलावा दानवों एवं पशुओं के भी द्वारा पूज्य हैं, अतः पशुपतिनाथ हैं| प्राचीनतम हरप्पा एवं मोहनजोदारो संकृति के अवशेषों में शिव के पशुपति रूप की कई मुर्तियाँ एवं चिन्ह उपलब्ध हैं| कोई यह न समजे की भगवान शिव केवल भारत में पूजित है । विदेशो में भी कई स्थानों पर शिव मुर्तिया अथवा शिवलिंग प्राप्त हुए है कल्याण के शिवांक के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के इजिप्त में तथा अन्य कई प्रान्तों में नंदी पर विराजमान शिव की अनेक मुर्तिया है वहा के लोग बेल पत्र और दूध से इनकी पूजा करते है । तुर्किस्थान के बबिलन नगर में १२०० फिट का महा शिवलिंग है । पहले ही कहा गया की शिव सम्प्रदायों से ऊपर है। मुसलमान भाइयो के तीर्थ मक्का में भी मक्केश्वर नमक शिवलिंग होना शिव का लीला ही है वहा के जमजम नमक कुएं में भी एक शिव लिंग है जिसकी पूजा खजूर की पतियों से होती है इस कारण यह है की इस्लाम में खजूर का बहूत महत्व है । अमेरिका के ब्रेजील में न जाने कितने प्राचीन शिवलिंग है । स्क्यात्लैंड में एक स्वर्णमंडित शिवलिंग है जिसकी पूजा वहा के निवासी बहूत श्रदा से करते है । indochaina में भी शिवालय और शिलालेख उपलब्ध है । यहाँ विस्तार में जाने की आवश्यकता है प्रस्तुत लेख के माध्यम से मेरे य छठा प्रयत्न है की शैव दर्शन और विश्व हितिहास । शिव निश्चय ही विश्वदेव है ।

जिस आगमों ने पूर्ण तत्व को शिव कहा वाही तत्व को वेदों में रूद्र कहा गया है पुराणों अर्धनारीश्वर कहागया श्रुति , स्मृति , सहिंता , शास्त्र दर्शन , सिद्धांत , योग , संगीत , नृत्य , शिल्प , आयुर्वेद , ज्योतिष्य , रशायनशास्त्र , खगोल शास्त्र , शिव जी को ही अंतिम सत्य , सर्वज्ञता , सर्व करता , सर्व शक्तिमान , सर्वत्र , सहज और संपूर्ण माना है। स्वाभिक सहज शिव विश्व के हर प्रदेश में सभी सभ्यताओं में हर समय पूजित एवं वर्णित है। भारतीय हर दर्शन शिव से जुड़े है चाहे वह आगमिक , वैदिक , चार्वाक , बौद्ध , जैन , सिख , संख्या , न्याय , योग , वेदांत , वैशेषिक , भक्ति , ज्ञान , उपासन के कई पंथ , यहाँ तक की श्रमिक , कृषिक , राजाओं , साहित्यकारों के इष्ट देवता शिव ही है। विश्व के कई धर्मों का मूल आधार शिव ही है यहूदी ,पारषी , ईसाई और इस्लाम में भी शिव आराधना है। ग्रीक , बेबलोनिया , हरप्पा और मिस्र के मानव संस्कृति के गठन में शिव जी का ही विराट भूमिका है, उसमें यही कहना संगत है कि शिव महिमा को हटा देने पर मानव सभ्यता और मानव संस्कृति के लिए कोई भूमि ही नहीं मिल पाएगी। किंतु मानव सभ्यता और संस्कृति को निकाल देने पर भी शिव की महिमा रहेगी। इसी लिए शिव रात्रि के दिन लिंग की पूजा की जाती है। भगवान शिव पूर्ण ब्रह्म होने के कारण निष्कल अर्थात निराकार हैं। उनका न कोई रूप है और न ही आकार वे निराकार हैं। आदि और अंत न होने से लिंग को शिव जी का निराकार रूप माना जाता है। जबकि शिव मूर्ति को उनका साकार रूप। केवल शिव ही निराकार लिंग के रूप में पूजे जाते हैं। इस रूप में समस्त ब्रह्मांड का पूजन हो जाता है क्योंकि वे ही समस्त जगत के मूल कारण माने गए हैं। शिव लिंग है लिंग शब्द का अर्थ होता है “ली ” “अनुस्वार ” और “ग ” इस प्रकार तिन अक्षर का य लिंग प्रति अक्षर का एक एक अर्थ है . “ली” का अर्थ लीयते लय जगत जिस में लय होता है “अनुस्वार ” का अर्थ है जगत का स्थित और “ग ” अर्थ गम्यते यानि जगत का उत्पति चन्द्रज्ञान अगम में इस लिंग का बहुत ही सुंदर वर्णन हुवा है:-
“जठरे लीयते सर्वं जगत स्थावरजंगमम | पुन्रुत्पद्यते यस्माद तद्ब्रह्म लिंगसंज्ञकम ||
भावार्थ जिस के जठर में सर्व चराचरात्मक जगत (स्रष्टि के पूर्व ) लीन रहता है और जिसे जगत उत्पति होता है उसीको लिंग कहा जाता है। भगवान शिव का आदि-अनादी स्वरुप।
शून्य, आकाश, अनन्त, ब्रह्माण्ड और निराकार परमपुरुष का प्रतीक होने से इसे लिंग कहा गया है। स्कन्द पुराण में कहा है कि आकाश स्वयं लिंग है। धरती उसका पीठ या आधार है और सब अनन्त शून्य से पैदा हो उसी में लय होने के कारण इसे लिंग कहा है | वातावरण सहित घूमती धरती या सारे अनन्त ब्रह्माण्ड (ब्रह्माण्ड गतिमान है) का अक्ष/धुरी (axis) ही लिंग है..
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: मनुष्य और श्रद्धा :

नारायण ! मनुष्य परमात्मा परमशिव का अंश है जिसे परमशिव ने ही निर्मित किया है , परन्तु वह पूर्ण रूप से स्वतन्त्र भी है। संसार में प्रत्येक मनुष्य की अपनी वर्तमान स्थित परिस्थिति पर स्वयं उस मनुष्य के ही हस्ताक्षर होते हैं ।

मनुष्य अपने उद्धार और पतन में स्वयं ही कारण होता है दूसरा कोई नहीं । ईश्वर , गुरु, संत तभी उद्धार करते हैं जब मनुष्य स्वयं उन पर श्रद्धा – विश्वास करता है । और उसके सम्मुख होता है , उसकी आज्ञा का पालन करता है । ईश्वर , गुरु और संत का कभी अभाव नहीं होता । मनुष्य स्वयं ही उनको स्वीकार नहीं करता है । इसीलिए उसका उद्धार नहीं होता । जो अपने उद्धार और पतन में दूसरों को हेतु मानता है उसका कभी भी उद्धार नहीं हो सकता । नाशवान पदार्थों में आसक्ति को हटाकर श्रद्धा सहित ईश्वर , गुरु अथवा संत के सम्मुख होने से ही कल्याण सम्भव है । नाशवान पदार्थों से मोह मिटाने की जिम्मेदारी स्वयं मनुष्य पर है उसमें वह स्वतन्त्र हैं , परतन्त्र नहीं । मनुष्य को दूसरों में कमी न देखकर अपने में कमी देखकर उसे दूर करने का विवेकपूर्ण प्रयास करना चाहिए । मनुष्य को खुद ही अपना शासक बनना चाहिए । अपने आप पर अपनी विजय प्राप्त करना कल्याणकारी है । सांसारिक पदार्थों से पराजित होकर , उनके अधीन होकर अपनी विजय समझना पतन का कारण है ।

किसी भी तत्व को जानने के लिए मनुष्य की रुचि , योग्यता , श्रद्धा व विश्वास की मुख्य भूमिका होती है । परन्तु अगर योग्यता न हो या योग्यता होने पर भी श्रद्धा विश्वास और रुचि न हो तो उस तत्त्व को समझना कठिन होता होता है । रुचि होने से मन स्वाभाविक लग जाता है श्रद्धा और विश्वास् होने से बुद्धि स्वाभाविक लग जाती है और योग्यता होने से तत्व की बात ठीक से समझ में आ जाती है ।

मनुष्य की सांसारिक प्रवृत्ति संसार के पदार्थों को सच्चा मानने , देखने सुनने और भोगने से होती है और परमार्थिक प्रवृत्ति परमात्मा परमशिव में श्रद्धा से होती है । चाहे कर्मयोग का मार्ग हो चाहे ज्ञानयोग का मार्ग हो या चाहे भक्तियोग का मार्ग हो इन सभी मार्गों में श्रद्धा के बिना प्रवेश सम्भव ही नहीं है । मनुष्य – जीवन में श्रद्धा का बहुत महत्व है। मनुष्य में जैसी श्रद्धा होगी वैसी निष्ठा बन जाती है। मूल में सब की स्वाभाविक रुचि यह होती है कि मुझे सदा के लिए महान् सुख प्राप्त हो , मेरे जीवन में कभी दुःख न आवे मनुष्य की सात्विकी , राजसी या तामसी जैसी प्रवृत्ति होती है उसी के अनुसार वह उस धारणा को पकड़ते हैं और उसी धारणा के अनुसार ही उनकी श्रद्धा व रुचि बनती है । सात्विक श्रद्धा ईश्वर की तरफ लगाने वाली होती है । राजसी और तामसी श्रद्धा संसार की तरफ लगाने वाली होती है । जो मनुष्य अपना कल्याण चाहता है उसकी श्रद्धा सात्विक होती है जो मनुष्य इस जन्म या में या मरने के बाद भी ।

सुख – सम्पति चाहता है उसकी श्रद्धा राजसी होती है और जो मनुष्य पशुओं की तरह केवल अपने खाने – पीने , भोग – भोगने , प्रमाद , आलस, व्यसन आदि में लगा रहता है उसकी श्रद्धा तामसी होती है। राजसी और तामसी श्रद्धा वास्तव में श्रद्धा का दुरुपयोग है। सात्विक श्रद्धा ही वास्तविक श्रद्धा है । इसी से कल्याण होता है ।

सात्विक आहार की सात्विक श्रद्धा में बहुत बड़ी भूमिका है । सात्विक , राजसी , तामसी तीनों प्रकार के गुण मनुष्य में रहते हैं । मनुष्य में प्रधानता किस गुण की है , महत्त्व इस बात का है । मनुष्य परमशिव का अंश है इसीलिए किसी मनुष्य में रजोगुण या तमोगुण की प्रधानता देखकर उसे नीच नहीं मान लेना चाहिए । क्योंकि प्रत्येक मनुष्य में जो आत्मा है वह तो शुद्ध ही है ।

नारायण ! जीवन यापन के लिए यज्ञ , व्यापार , खेती आदि व्यवसायिक कर्म खाना पीना, उठना , बैठना , सोना , आदि शारीरिक कर्म , जप , पाठ, ध्यान , पूजा , कथा कीर्तन का श्रवण एवं मनन , परमार्थिक कर्म अपने सुख आराम आदि का उद्देश्य न रखकर निष्काम भाव एवं श्रद्धा विश्वास से ईश्वर प्राप्ति के उद्देश्य से किए गये कर्म “सद्कर्म” है । इन कर्मों से ईश्वर प्राप्ति सम्भव है । इन कर्मों को अनासक्ति और फल की इच्छा का त्याग करते हुए जरुर करने चाहिए ।

ईश्वर में “अश्रद्धा” रख कर जो भी कर्म किया जाता है वो “असत्” कर्म होता है । ईश्वर मेँ श्रद्धा के बिना जो भी कर्म किया जाता है उस कर्म का इस लोक में और परलोक में कुछ भी अच्छा फल प्राप्त नहीं होता है ।

राग पूर्वक जो भी कर्म किये जाते हैं उनका फल मनुष्य को न चाहने पर भी उसे मिलता है इसलिए आसुरी सम्पत्ति वालों को बन्धन , आसुरी योनि और नरकों की प्राप्ति होती है। ईश्वर की प्राप्ति में क्रिया की प्रधानता नहीं है प्रत्युत श्रद्धाभाव की प्रधानता है । श्रद्धा के बिना किये गये सभी सत्कर्म भी “असत्” हो जाते हैं ।

नारायण स्मृतिः
[ शिव एवं शिवलिंग

ॐ गुं गुरूभ्यो नमः
गुरु भगवान की कृपा आप सभी पर सदा बनी रहे ।
ॐ गं गणपतये नमः
ॐ नमः शिवाय
देवाधिदेव महादेव की कृपा आप सभी पर सदा बनी रहे ।

कौन हैं शिव ?

शिव संस्कृत भाषा का शब्द है, जिस का अर्थ है, कल्याणकारी या शुभकारी। यजुर्वेद में शिव को शांतिदाता बताया गया है। ‘शि’ का अर्थ है, पापों का नाश करने वाला, जबकि ‘व’ का अर्थ देने वाला यानी दाता।

क्या है शिवलिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग

शिव की दो काया है। एक वह, जो स्थूल रूप से व्यक्त किया जाए, दूसरी वह, जो सूक्ष्म रूपी अव्यक्त लिंग के रूप में जानी जाती है। शिव की सबसे ज्यादा पूजा लिंग रूपी पत्थर के रूप में ही की जाती है। लिंग शब्द को लेकर बहुत भ्रम होता है। संस्कृत में लिंग का अर्थ है चिह्न। इसी अर्थ में यह शिवलिंग के लिए इस्तेमाल होता है। शिवलिंग का अर्थ है : शिव यानी परमपुरुष का प्रकृति के साथ समन्वित-चिह्न।

शिव, शंकर, महादेव…

शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं – शिव शंकर भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। शिव ने सृष्टि की स्थापना, पालना और विनाश के लिए क्रमश: ब्रह्मा, विष्णु और महेश (महेश भी शंकर का ही नाम है) नामक तीन सूक्ष्म देवताओं की रचना की है। इस तरह शिव ब्रह्मांड के रचयिता हुए और शंकर उनकी एक रचना। भगवान शिव को इसीलिए महादेव भी कहा जाता है। इसके अलावा शिव को 108 दूसरे नामों से भी जाना और पूजा जाता है।

अर्द्धनारीश्वर क्यों ?

शिव को अर्द्धनारीश्वर भी कहा गया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि शिव आधे पुरुष ही हैं या उनमें संपूर्णता नहीं। दरअसल, यह शिव ही हैं, जो आधे होते हुए भी पूरे हैं। इस सृष्टि के आधार और रचयिता यानी स्त्री-पुरुष शिव और शक्ति के ही स्वरूप हैं। इनके मिलन और सृजन से यह संसार संचालित और संतुलित है। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। नारी प्रकृति है और नर पुरुष। प्रकृति के बिना पुरुष बेकार है और पुरुष के बिना प्रकृति। दोनों का अन्योन्याश्रय संबंध है। अर्धनारीश्वर शिव इसी पारस्परिकता के प्रतीक हैं। आधुनिक समय में स्त्री-पुरुष की बराबरी पर जो इतना जोर है, उसे शिव के इस स्वरूप में बखूबी देखा-समझा जा सकता है। यह बताता है कि शिव जब शक्ति युक्त होता है तभी समर्थ होता है। शक्ति के अभाव में शिव ‘शिव’ न होकर ‘शव’ रह जाता है।

नीलकंठ क्यों ?

अमृत पाने की इच्छा से जब देव-दानव बड़े जोश और वेग से मंथन कर रहे थे, तभी समुद से कालकूट नामक भयंकर विष निकला। उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगीं। समस्त प्राणियों में हाहाकार मच गया। देवताओं और दैत्यों सहित ऋषि, मुनि, मनुष्य, गंधर्व और यक्ष आदि उस विष की गरमी से जलने लगे। देवताओं की प्रार्थना पर, भगवान शिव विषपान के लिए तैयार हो गए। उन्होंने भयंकर विष को हथेलियों में भरा और भगवान विष्णु का स्मरण कर उसे पी गए। भगवान विष्णु अपने भक्तों के संकट हर लेते हैं। उन्होंने उस विष को शिवजी के कंठ (गले) में ही रोक कर उसका प्रभाव खत्म कर दिया। विष के कारण भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया और वे संसार में नीलकंठ के नाम से प्रसिद्ध हुए।

भोले बाबा

शिव पुराण में एक शिकारी की कथा है। एक बार उसे जंगल में देर हो गई। तब उसने एक बेल वृक्ष पर रात बिताने का निश्चय किया। जगे रहने के लिए उसने एक तरकीब सोची। वह सारी रात एक-एक पत्ता तोड़कर नीचे फेंकता रहा। कथानुसार, बेल के पत्ते शिव को बहुत प्रिय हैं। बेल वृक्ष के ठीक नीचे एक शिवलिंग था। शिवलिंग पर प्रिय पत्तों का अर्पण होते देख शिव प्रसन्न हो उठे, जबकि शिकारी को अपने शुभ काम का अहसास न था। उन्होंने शिकारी को दर्शन देकर उसकी मनोकामना पूरी होने का वरदान दिया। कथा से यह साफ है कि शिव कितनी आसानी से प्रसन्न हो जाते हैं। शिव महिमा की ऐसी कथाओं और बखानों से पुराण भरे पड़े हैं।

शिव स्वरूप

भगवान शिव का रूप-स्वरूप जितना विचित्र है, उतना ही आकर्षक भी। शिव जो धारण करते हैं, उनके भी बड़े व्यापक अर्थ हैं :
जटाएं : शिव की जटाएं अंतरिक्ष का प्रतीक हैं।
चंद्र : चंद्रमा मन का प्रतीक है। शिव का मन चांद की तरह भोला, निर्मल, उज्ज्वल और जाग्रत है।
त्रिनेत्र : शिव की तीन आंखें हैं। इसीलिए इन्हें त्रिलोचन भी कहते हैं। शिव की ये आंखें सत्व, रज, तम (तीन गुणों), भूत, वर्तमान, भविष्य (तीन कालों), स्वर्ग, मृत्यु पाताल (तीनों लोकों) का प्रतीक हैं।
सर्पहार : सर्प जैसा हिंसक जीव शिव के अधीन है। सर्प तमोगुणी व संहारक जीव है, जिसे शिव ने अपने वश में कर रखा है।
त्रिशूल : शिव के हाथ में एक मारक शस्त्र है। त्रिशूल भौतिक, दैविक, आध्यात्मिक इन तीनों तापों को नष्ट करता है।
डमरू : शिव के एक हाथ में डमरू है, जिसे वह तांडव नृत्य करते समय बजाते हैं। डमरू का नाद ही ब्रह्मा रूप है।
मुंडमाला : शिव के गले में मुंडमाला है, जो इस बात का प्रतीक है कि शिव ने मृत्यु को वश में किया हुआ है।
छाल : शिव ने शरीर पर व्याघ्र चर्म यानी बाघ की खाल पहनी हुई है। व्याघ्र हिंसा और अहंकार का प्रतीक माना जाता है। इसका अर्थ है कि शिव ने हिंसा और अहंकार का दमन कर उसे अपने नीचे दबा लिया है।
भस्म : शिव के शरीर पर भस्म लगी होती है। शिवलिंग का अभिषेक भी भस्म से किया जाता है। भस्म का लेप बताता है कि यह संसार नश्वर है।
वृषभ : शिव का वाहन वृषभ यानी बैल है। वह हमेशा शिव के साथ रहता है। वृषभ धर्म का प्रतीक है। महादेव इस चार पैर वाले जानवर की सवारी करते हैं, जो बताता है कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष उनकी कृपा से ही मिलते हैं।
इस तरह शिव-स्वरूप हमें बताता है कि उनका रूप विराट और अनंत है, महिमा अपरंपार है। उनमें ही सारी सृष्टि समाई हुई है।

महामृत्युंजय मंत्र

शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न शोक का। शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ्य देता है। शिव तत्व का ध्यान महामृत्युंजय मंत्र के जरिए किया जाता है। इस मंत्र के जाप से भगवान शिव की कृपा मिलती है। शास्त्रों में इस मंत्र को कई कष्टों का निवारक बताया गया है। यह मंत्र यों हैं : ओम् त्र्यम्बकं यजामहे, सुगंधिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनात्, मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।।
(भावार्थ : हम भगवान शिव की पूजा करते हैं, जिनके तीन नेत्र हैं, जो हर श्वास में जीवन शक्ति का संचार करते हैं और पूरे जगत का पालन-पोषण करते हैं, उनसे हमारी प्रार्थना है कि वे हमें मृत्यु के बंधनों से मुक्त कर दें, ताकि मोक्ष की प्राप्ति हो जाए, उसी उसी तरह से जैसे एक खरबूजा अपनी बेल में पक जाने के बाद उस बेल रूपी संसार के बंधन से मुक्त हो जाता है।)

क्या है महाशिवरात्रि ?

– भगवान शिव हिंदुओं के प ्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिन्हें हिंदू बड़ी ही आस्था और श्रद्धा के साथ स्वीकारते और पूजते हैं।

– यूं तो शिव की उपासना के लिए सप्ताह के सभी दिन अच्छे हैं, फिर भी सोमवार को शिव का प्रतीकात्मक दिन कहा गया है। इस दिन शिव की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है।

– हर महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को शिवरात्रि कहते हैं। लेकिन फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी पर पड़ने वाली शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है, जिसे बड़े ही हषोर्ल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

– शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं।

– माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्मा से रुद के रूप में) अवतरण हुआ था।

– ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्री शिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए।

– ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि में चंदमा सूर्य के नजदीक होता है। उसी समय जीवनरूपी चंदमा का शिवरूपी सूर्य के साथ योग-मिलन होता है। इसलिए इस चतुर्दशी को शिवपूजा करने का विधान है।

– प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है।

– इस दिन भगवान शिव की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शिव जी की बारात निकाली जाती है। रात में पूजा कर फलाहार किया जाता है। अगले दिन सवेरे जौ, तिल, खीर और बेल पत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है।!!
[ भगवान शिव और भांग व धतूरे (मादक चीज़ो) के प्रयोग का रहस्य या वास्तविकता

आजकल सोशल मीडिया पर देखता हूं कि 2 तरह के लेख वायरल है, एक लेख या फ़ोटो में भगवान शिव को भांग और धतूरे (चिलम) जैसे मादक व नशे के सेवन करने वाला नशेड़ी दिखाया गया है और दूसरे में बताया गया है कि शिव को इस मादक चीजों का सेवन न करने वाला योगी बताया जाता है व उस तर्क के लिए प्रमाण दिए जाते है कि पहाड़ो पर भांग, धतूरे जैसे नशे चीजें नही उगती जो भगवान शिव उपयोग नही कर सकते। मगर मेरे देखे दोनों ही लेख व सोच गलत है, जो शिव को नशेड़ी (नशा) करने वाला दिखाते है उन्होंने शिव को नही जाना और जो शिव को सिर्फ योगी समझते है उन्होंने भगवान शिव के अध्यात्म को नही जाना।
वास्तव में सच्चाई ये है कि भगवान शिव ही इस विश्व के सबसे पहले आयुर्वेदाचार्य है, आयुर्वेद-विज्ञान के जनक है जिन्होंने भांग, धतूरे, पारा (पारद) व वत्सनाभ आदि विषाक्त तत्वों को शोधन करके अमृत-तुल्य औषधियों की खोज करके भयंकर रोगों व बीमारियों से राहत पहुंचाने वाली दवाइयां इस संसार को दी। आयुर्वेद में महामृत्युंजय रस, सिद्धप्रणेश्वर रस, स्वछंद भैरवरस, लक्ष्मीविलास रस, प्रश्मन रस, कामेश्वर मोदक, वात चूड़ामणि रस आदि कितनी की महा ओषधियाँ है जिनका निर्माण भगवान शिव द्वारा ही किया गया है, यदि आप इनके घटकों को देखोगे तो शुद्ध किये भांग के पत्ते, शुद्ध धतूरे के बीज, शुद्ध पारद, शुद्ध अभ्र्क, शुद्ध विष आदि से बनी हुई हैं। इन खोजो व देन की वजह से ही भगवान शिव को वैधनाथ भी कहा जाता है, जो की वैधों के भी वैध है। भगवान शिव ने अपने योग, विज्ञान व प्रयोग से खुद पर परख कर इस औषधियों का निर्माण, नियम, मात्रा, उपयोगिता का महत्व वर्णन किया है। मगर कुछ लोगों ने शिव द्वारा इनके प्रयोगो के कारण इनको नशा करने वाला सोच लिया। मगर भगवान शिव ने कभी भी नशे को महत्व न देख बल्कि औषदिरूप को महत्व दिया, मगर कुछ लोगों ने भ्रम व अज्ञानता (अनुभव व अध्ययन के बिना)के कारण शिव को नशा करने वाला सोच लिया। इस बताये हुई बात की सत्यता जांचनी है तो आप ऋग्वेद के उपवेद आयुर्वेद के अनेकों ग्रन्थों का अध्ययन कर सकते है।

वास्तव में भगवान शिव कोई सामान्य अवस्था नही है, जितना इनको सरल व भोलाभाला दिखाया गया है उससे कही ज्यादा जटिल व असामान्य है। भगवान शिव तो योगियों के महायोगी, आचार्यो के महाआचार्य, वैधों के महावैध, गुरूओं के महागुरू, वैज्ञानिको के महावैज्ञानिक, देवो के महादेव, काल के महाकाल, तपस्वियों के महातपस्वी और तांत्रिको में महातांत्रिक है।
[घर की इन चीज़ों से करें अपनी आँखों के काले घेरे को दूर

कुछ आसान तरीकों से आप अपनी आँखों के डार्क सर्कल को दूर कर सकती हैं. वैसे तो आँखों के लिए कई तरह की क्रीम आती है जिन्हें आप इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन उनके नुकसान से बचने के लिए आप घरेलु तरीके भी अपना सकती हैं. काम के बढ़ते भार और कम नींद के चलते आँखों के नीचे काले घेरे होने लग जाते है जिन्हें डार्क सर्कल्स के नाम से जाना जाता है. इसलिए आज हम आपके लिए कुछ ऐसे उपाय लेकर आए है जिनकी मदद से इन काले घेरों से जल्द निजात पा सकते हैं. 

  • कुकुम्बर थैरेपी  काले घेरो की प्राब्लम को कम करने के लिए आप कुकुम्बर थैरेपी का इस्तेमाल कर सकती हैं. खीरे के टुकड़े को आंखो के ऊपर रखें. कुछ देर तक आंख बंद रखने के बाद डार्क एरिया पर इसे हल्के-हल्के से घुमाएं. इससे आंख के आसपास का थुलथुलापन कम होगा साथ ही कालापन भी घटेगा.
  • आलू  यह बहुत ही असरकारी नुस्खा है. रात में सोने से पहले चेहरा को अच्छे से साफ करें. इसके बाद आलू की पतली स्लाइस काटकर उन्हें आंखों पर 20 से 25 मिनट रखें. इसके बाद चेहरा को अच्छे से साफ कर लें.
  • टमाटर  टमाटर के रस में, नींबू का रस,चुटकीभर बेसन और हल्दी मिला लें. इस पेस्ट को अपनी आंखों के चारों ओर लगाएं और 20 मिनट के बाद चेहरे को धो लें. ऐसा हफ्ते में 3 बार जरुर करें. इससे डार्क सर्कल धीरे-धीरे कम होने लगेगा.
  • नियमित व्यायाम करें  नियमित व्यायाम और गहरी साँसों से रक्त संचार बेहतर होगा, ऑक्सीजन पहुँचेगी और तनाव तथा चिन्ता में कमी आयेगी.
  • संतरे या गाजर का रस  संतरे या गाजर का रस निकालें और रूई को उसमें भिगो कर कुछ देर तक आंखों पर रखें. इससे डार्क सर्कल में काफी हद तक फायदा पहुंचेगा.
  • बादाम का तेल  काले घेरे से छुटकारा पाने के लिए बादाम के तेल बहुत फायदेमंद है. बादाम के तेल को आंखों के आस-पास लगाकर कुछ मिनटों के लिए छोड़ दें. फिर उंगलियों से 10 मिनट तक हल्की मालिश करें. इसके बाद चेहरा साफ कर लें.
    [गौ मूत्र में है कई चमत्कारी गुण

गाय के गोबर में लक्ष्मी और मूत्र में गंगा का वास होता है, जबकि आयुर्वेद में गौमूत्र के ढेरों प्रयोग कहे गए हैं। गौमूत्र का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर के विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं। आयुर्वेद के अनुसार गौमूत्र का नियमित सेवन करने से कई बीमारियों को खत्म किया जा सकता है। जो लोग नियमित रूप से थोड़े से गौमूत्र का भी सेवन करते हैं, उनकी रोगप्रतिरोधी क्षमता बढ़ जाती है। मौसम परिवर्तन के समय होने वाली कई बीमारियां दूर ही रहती हैं। शरीर स्वस्थ और ऊर्जावान बना रहता है।

इसके कुछ गुण इस प्रकार बताए गए

गौ मूत्र कड़क, कसैला, तीक्ष्ण और ऊष्ण होने के साथ-साथ विष नाशक, जीवाणु नाशक, त्रिदोष नाशक, मेधा शक्ति वर्द्धक और शीघ्र पचने वाला होता है। इसमें नाइट्रोजन, ताम्र, फास्फेट, यूरिया, यूरिक एसिड, पोटाशियम, सल्फेट, फास्फेट, क्लोराइड और सोडियम की विभिन्न मात्राएं पायी जाती हैं। यह शरीर में ताम्र की कमी को पूरा करने में भी सहायक है।गौमूत्र को न केवल रक्त के सभी तरह के विकारों को दूर करने वाला, कफ, वात व पित्त संबंधी तीनो दोषों का नाशक, हृदय रोगों व विष प्रभाव को खत्म करने वाला, बल-बुद्धि देने वाला बताया गया है, बल्कि यह आयु भी बढ़ाता है।पेट की बीमारियों के लिए गौमूत्र रामवाण की तरह काम करता है, इसे चिकित्सीय सलाह के अनुसार नियमित पीने से यकृत यानि लिवर के बढ़ने की स्थिति में लाभ मिलता है। यह लिवर को सही कर खून को साफ करता है और रोग से लड़ने की क्षमता विकसित करता है।20 मिली गौमूत्र प्रात: सायं पीने से निम्न रोगों में लाभ होता है। 1. भूख की कमी, 2. अजीर्ण, 3. हर्निया, 4. मिर्गी, 5. चक्कर आना, 6. बवासीर, 7. प्रमेह, 8.मधुमेह, 9.कब्ज, 10. उदररोग, 11. गैस, 12. लूलगना, 13.पीलिया, 14. खुजली, 15.मुखरोग, 16.ब्लडप्रेशर, 17.कुष्ठ रोग, 18. जांडिस, 19. भगन्दर, 20. दन्तरोग, 21. नेत्र रोग, 22. धातु क्षीणता, 23. जुकाम, 24. बुखार, 25. त्वचा रोग, 26. घाव, 27. सिरदर्द, 28. दमा, 29. स्त्रीरोग, 30. स्तनरोग, 31.छिहीरिया, 32. अनिद्रा।गौमूत्र को मेध्या और हृदया कहा गया है। इस तरह से यह दिमाग और हृदय को शक्ति प्रदान करता है। यह मानसिक कारणों से होने वाले आघात से हृदय की रक्षा करता है और इन अंगों को प्रभावित करने वाले रोगों से बचाता है।इसमें कैसर को रोकने वाली ‘करक्यूमिन‘ पायी जाती है।कैंसर की चिकित्सा में रेडियो एक्टिव एलिमेन्ट प्रयोग में लाए जाते है।

गौमूत्र में विद्यमान सोडियम,पोटेशियम,मैग्नेशियम,फास्फोरस,सल्फर आदि में से कुछ लवण विघटित होकर रेडियो एलिमेन्ट की तरह कार्य करने लगते है और कैंसर की अनियन्त्रित वृद्धि पर तुरन्त नियंत्रण करते है। कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करते है। अर्क आँपरेशन के बाद बची कैंसर कोशिकाओं को भी नष्ट करता है। यानी गौमूत्र में कैसर बीमारी को दूर करने की शक्ति समाहित है।दूध देने वाली गाय के मूत्र में “लेक्टोज” की मात्रा आधिक पाई जाती है, जो हृदय और मस्तिष्क के विकारों के लिए उपयोगी होता है।गाय के मूत्र में आयुर्वेद का खजाना है! इसके अन्दर ‘कार्बोलिक एसिड‘ होता है जो कीटाणु नासक है, यह किटाणु जनित रोगों का भी नाश करता है। गौमूत्र चाहे जितने दिनों तक रखे, ख़राब नहीं होता है।जोड़ों के दर्द में दर्द वाले स्थान पर गौमूत्र से सेकाई करने से आराम मिलता है। सर्दियों के मौषम में इस परेशानी में सोंठ के साथ गौ मूत्र पीना फायदेमंद बताया गया है।गैस की शिकायत में प्रातःकाल आधे कप पानी में गौ मूत्र के साथ नमक और नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए।चर्म रोग में गौ मूत्र और पीसे हुए जीरे के लेप से लाभ मिलता है। खाज, खुजली में गौ मूत्र उपयोगी है।गौमूत्र मोटापा कम करने में भी सहायक है। एक ग्लास ताजे पानी में चार बूंद गौ मूत्र के साथ दो चम्मच शहद और एक चम्मच नींबू का रस मिलाकर नियमित पीने से लाभ मिलता है।गौमूत्र का सेवन छानकर किया जाना चाहिए। यह वैसा रसायन है, जो वृद्धावस्था को रोकता है और शरीर को स्वस्थ्यकर बनाए रखता है।गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस गुणा बढ़ा देता है। गौमूत्र का कई खाद्य पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे गौमूत्र के साथ गुड़, गौमूत्र शहद के साथ आदि।अमेरिका में हुए एक अनुसंधान से सिध्द हो गया है कि गौ के पेट में “विटामिन बी” सदा ही रहता है। यह सतोगुणी रस है व विचारों में सात्विकता लाता है।गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातःकाल का होता है और इसे पेट साफ करने के बाद खाली पेट लेना चाहिए। गौमूत्र सेवन के 1 घंटे पश्चात ही भोजन करना चाहिए।गौमूत्र देशी गाय का ही सेवन करना सही रहता है। गाय का गर्भवती या रोग ग्रस्त नहीं होना चाहिए। एक वर्ष से बड़ी बछिया का गौ मूत्र बहुत लाभकारी होता है।मांसाहारी व्यक्ति को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए। गौमूत्र लेने के 15 दिन पहले मांसाहार का त्याग कर देना चाहिए। पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को सीधे गौमूत्र नहीं लेना चाहिए, गौमूत्र को पानी में मिलाकर लेना चाहिए। पीलिया के रोगी को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए। देर रात्रि में गौमूत्र नहीं लेना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में गौमूत्र कम मात्र में लेना चाहिए।घर में गौमूत्र छिड़कने से लक्ष्मी कृपा मिलती है, जिस घर में प्रतिदिन गौमूत्र का छिड़काव किया जाता है, वहां देवी लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है।गौमूत्र में गंगा मईया वास करती हैं। गंगा को सभी पापों का हरण करने वाली माना गया है, अत: गौमूत्र पीने से पापों का नाश होता है।जिस घर में नियमित रूप से गौमूत्र का छिड़काव होता है, वहां बहुत सारे वास्तु दोषों का समाधान एक साथ हो जाता हैं।देसी गाय के गोबर-मूत्र-मिश्रण से ‘`प्रोपिलीन ऑक्साइड” उत्पन्न होती है, जो बारिस लाने में सहायक होती है। इसी के मिश्रण से ‘इथिलीन ऑक्साइड‘ गैस निकलती है जो ऑपरेशन थियटर में काम आता है।गोमुत्र कीटनाशक के रूप में भी उपयोगी है। देसी गाय के एक लीटर गोमुत्र को आठ लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग किया जाता है । गोमुत्र के माध्यम से फसल को नैसर्गिक युरिया मिलता है। इस कारण खाद के रूप में भी यह छिड़काव उपयोगी होता है ।गौमूत्र से औषधियाँ एपं कीट नियंत्रक बनाया जा सकता है।अमेरिका ने गौ मूत्र पर 6 पेटेंट ले लिए हैं, और अमेरिकी सरकार हर साल भारत से गाय का मूत्र आयात करती है और उससे कैंसर की दवा बनाती हैं । उसको इसका महत्व समझ आने लगा है। जबकि हमारे शास्त्रो मे करोड़ो वर्षो पहले से इसका महत्व बताया गया है।
[ थायराइड में परहेज सबसे जरूरी, जानिए क्या खाएं और क्या नहीं

थायराइड की समस्या आज बहुत आम हो गई है लोग तेजी से इसके शिकार हो रहे हैं। खासकर औरतें। 30 से 60 की उम्र की महिलाएं इसकी चपेट में आती है जिसके चलते उन्हें प्रेंग्नेंसी कंसीव करने में मुश्किल होती है। ऐसे में बीमारी से ग्रस्त इंसान के दिमाग में सबसे पहले बात यहीं आता कि अब डाइट कैसी खाएं ताकि इसे कंट्रोल में रखा जा सके और क्या चीज खाने से सेहत को नुकसान होगा। आज हम आपको इस बारेमें ही बताते हैं लेकिन उससे पहले देते हैं थाइराइड की वजह और इससे होनी वाली परेशानियों के बारे में…

थायराइड एक एंडोक्राइन ग्लैंड जो गले में बटरफ्लाई के आकार का होता है। इससे थायराइड हार्मोन निकलता है जो शरीर में मेटाबॉलिज्म को सही लेवल में रखता हैं लेकिन जब यह हार्मोंन असंतुलित हो जाता है तो यह समस्या शुरु होने लगती है।

थायराइड दो तरह का होता है हाइपो थायराइड और हाइपर थायराइड

महिलाएं ज्यादा Hypothyroid हाइपो थायराइड की शिकार होती हैं इसलिए पहले इस बारे में बताते हैं, हाइपो में थायराइड ग्लैंड सक्रिय नहीं होता, जिससे शरीर में T3, T4 हार्मोन नहीं पहुंच पाता।

जिससे वजन अचानक बढ़ जाता है…
शरीर में सुस्ती महसूस होती है
इम्यून सिस्टम कमजोर हो जाती है
पीरियड्स अनियमित हो जाते है
कब्ज की शिकायत रहती है
चेहरे और आंखों में सूजन आ जाती है
ठुड्डी, पेट पर अनचाहे बाल आने लगते हैं..

अब बात करते हैं,,, थायराइड हैं तो क्या खाएं और क्या नहीं।

पहले जानिए आपको खाना क्या है…

क्या खाएं?

आयोडिन से भरपूर चीजें, टमाटर, मशरुम, केला, संतरा, टोंड दूध और उससे बनी चीजें जैसे दही, पनीर आदि खाएं। फिजिशियन की सलाह पर से आप विटामिन, मिनिरल्स, आयरन सप्लीमेंट्स ले सकते हैं।

क्या नहीं खाएं?

सोयाबीन और सोया प्रोडक्ट, पैकेज्ड फूड, बेक्ररी आइट्म जैसे केक, पेस्ट्री, स्वीट पोटैटो, जंकफूड, नाशपाती, स्ट्रॉबेरी, मूंगफली, बाजरा आदि, फूलगोभी, पत्ता गोभी, ब्रोकली, शलगम आदि।

अब बात करते हैं हाइपरथाइरायड की…

इसमें थायराइड ग्लैंड बहुत ज्यादा सक्रिय हो जाता है। T3, T4 हार्मोन जरुरत से अधिक मात्रा में निकलकर ब्लड में घुलने लगता है। 

जिससे वजन तेजी से कम हो जाता है
मांसपेशियां कमजोर हो जाती है
भूख ज्यादा लगती है
अच्छी नींद नहीं आती,
स्वभाव चिड़चिड़ापन,
पीरियड्स में अनियमितता,
अधिक ब्लीडिंग की समस्या, 
गर्भपात का भी खतरा बना रहता है।
अनचाहे बाल 

क्या खाएं?

हरी सब्जियां, साबुत अनाज, ब्राउन ब्रैड, ओलिव ऑयल, लेमन, हर्बल और ग्रीन टी, अखरोट, जामुन, स्ट्रॉबेरी, गाजर, हरी मिर्च, शहद।

क्या नहीं खाएं?

मैदा से बने प्रोडक्ट जैसे पास्ता, जंकफूड, मैगी, व्हाइट ब्रेड, सॉफ्ट ड्रिंक, अल्कोहल, कैफीन, ज्यादा मीठी चीजें जैसे मिठाई, चॉकलेट।

इसके साथ ही सैर और हल्की-फुल्की एक्सरसाइज करें। जितना हो सकें तनाव मुक्त रहने की और हैल्दी लाइफस्टाइल अपनाएं। थायराइड को आप हैल्दी लाइफस्टाइल अपना कर कंट्रोल में रख सकती हैं।
[भाव कारक एवं विचारणीय विषय

ज्योतिष शास्त्र में 12 राशियां तथा 12 भाव, 9 ग्रह, 27 +1( अभिजीत) = 28 नक्षत्र, बताए गए हैं अर्थात इन्ही भाव, राशि, ग्रह , नक्षत्र में हमारे जीवन का सम्पूर्ण सार छुपा हुआ है केवल आवश्यकता है इस बात को जानने के लिए की कौन राशि, भाव तथा ग्रह का सम्बन्ध हमारे जीवन में आने वाली घटनाओं से है यदि हम इनके सम्बन्ध को जान लेते है तो यह बता सकते है कि हमारे जीवन में कौन सी घटनाएं कब घटने वाली है। । परन्तु इसके लिए सबसे पहले हमें भाव और ग्रह के कारकत्त्व को जानना बहुत जरुरी है क्योकि ग्रह या भाव जिस विषय का कारक होता है अपनी महादशा, अंतरदशा या प्रत्यन्तर दशा में उन्ही विषयो का शुभ या अशुभ फल देने में समर्थ होता है।

Importance of Houses | भाव का महत्त्व

ज्योतिष जन्मकुंडली में 12 भाव होते है और सभी भाव का अपना विशेष महत्त्व है। आप इस प्रकार समझ सकते है भाव जातक की विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं को पूर्ति करता है। व्यक्ति को जो भी आवश्यकता होती है उसको पाने के लिए कोशिश करता है अब निर्भर करता है आपके उसे पाने के लिए कब, कैसे, किस समय और किस प्रकार के साधन का उपयोग किया है। क्योकि उचित समय और स्थान पर किया गया प्रयास ही इच्छापूर्ति में सहायक होता है। भाव इस प्रकार से कार्य करता है जैसे —

जब भी कोई जातक यह प्रश्न करता है की मेरे जीवन में धन योग है की नहीं और है तो कब तब इसको जानने के लिए ज्योतिषाचार्य सबसे पहले निर्धारित धन भाव अर्थात 2nd भाव को देखते है तत्पश्चात उस भाव भावेश तथा भावस्थ ग्रह का विश्लेषण कर धन के सम्बन्ध में फल कथन करते है।

Bhav Karak in Astrology | भाव कारक एवं विचारणीय विषय

Houses Significator Planets | भाव का कारक ग्रह

प्रथम भाव- सूर्य
दूसरा भाव- गुरू
तृतीय भाव – मंगल
चतुर्थ भाव – चंद्र
पंचम भाव – गुरु
षष्ठ भाव – मंगल
सप्तम भाव – शुक्र
अष्टम भाव – शनि
नवम भाव – गुरु
दशम भाव – गुरु, सूर्य, बुध और शनि
एकादश भाव – गुरु
द्वादश भाव – शनि
सभी भाव को कोई न कोई विचारणीय विषय प्रदान किया गया है जैसे प्रथम भाव को व्यक्ति का रंग रूप तो दुसरा भाव धन भाव है वही तीसरा भाव सहोदर का है इसी प्रकार सभी भाव को निश्चित विषय प्रदान किया गया है प्रस्तुत लेख में सभी भाव तथा ग्रह के कारकत्व बताने का प्रयास किया गया है।

जन्मकुंडली के प्रत्येक भाव से विचारणीय विषय

1st House | प्रथम अथवा तनु भाव

जन्मकुंडली में प्रथम भाव से लग्न, उदय, शरीर,स्वास्थ्य, सुख-दुख, वर्तमान काल, व्यक्तित्व, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, जाति, विवेकशीलता, आत्मप्रकाश, आकृति( रूप रंग) मस्तिष्क, उम्र पद, प्रतिष्ठा, धैर्य, विवेकशक्ति, इत्यादि का विचार करना चाहिए। किसी भी व्यक्ति के सम्बन्ध में यह देखना है कि उसका स्वभाव रंगरूप कैसा है तो इस प्रश्न का जबाब प्रथम भाव ही देता है।

2nd House | द्वितीय अथवा धन भाव

जन्मकुंडली में दूसरा भाव धन, बैंक एकाउण्ट, वाणी, कुटुंब-परिवार, पारिवारिक, शिक्षा, संसाधन, माता से लाभ, चिट्ठी, मुख, दाहिना नेत्र, जिह्वा, दाँत इत्यादि का उत्तरदायी भाव है।यदि यह देखना है कि जातक अपने जीवन में धन कमायेगा या नहीं तो इसका उत्तर यही भाव देता है।

3rd House | तृतीय अथवा सहज भाव

यह भाव जातक के लिए पराक्रम, छोटा भाई-बहन, धैर्य, लेखन कार्य, बौद्धिक विकास, दाहिना कान, हिम्मत, वीरता, भाषण एवं संप्रेषण, खेल, गला कन्धा दाहिना हाँथ, का उत्तरदायी भाव है। यदि यह देखना है कि जातक अपने भाई बहन के साथ कैसा सम्बन्ध है तो इस प्रश्न का जबाब यही भाव देता है।

4rth House | चतुर्थ अथवा कुटुंब भाव

यह भाव जातक के जीवन में आने वाली सुख, भूमि, घर, संपत्ति, वाहन, जेवर, गाय-भैस, जल, शिक्षा, माता, माता का स्वास्थ्य, ह्रदय, पारिवारिक प्रेम छल, उदारता, दया, नदी, घर की सुख शांति जैसे विषयों का उत्तरदायी भाव है। यदि किसी जातक की कुंडली में यह देखना है कि जातक का घर कब बनेगा तथा घर में कितनी शांति है तो इस प्रश्न का उत्तर चतुर्थ भाव से मिलता है।

5th House | पंचम अथवा संतान भाव

जन्मकुंडली में पंचम भाव से संतान सुख, बुद्धि, शिक्षा, विद्या, शेयर संगीत मंत्री, टैक्स, भविष्य ज्ञान, सफलता, निवेश, जीवन का आनन्द,प्रेम, सत्कर्म, पेट,शास्त्र ज्ञान यथा वेद उपनिषद पुराण गीता, कोई नया कार्य, प्रोडक्शन, प्राण आदि का विचार करना चाहिए। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक की पढाई या संतान सुख कैसा है तो इस प्रश्न का जबाब पंचम अर्थात संतान भाव ही देगा अन्य भाव नहीं ।

Bhav Karak in Astrology | भाव कारक एवं विचारणीय विषय

6th House | षष्ठ अथवा रोग भाव

जन्मकुंडली में षष्ठ भाव से रोग,दुख-दर्द, घाव, रक्तस्राव, दाह, अस्त्र, सर्जरी, डिप्रेशन,शत्रु, चोर, चिंता, लड़ाई झगड़ा, केश मुक़दमा, युद्ध, दुष्ट, कर्म, पाप, भय, अपमान, नौकरी आदि का विचार करना चाहिए। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक का स्वास्थ्य कैसा रहेगा या केश में मेरी जीत होगी या नहीं तो इस प्रश्न का जबाब षष्ठ भाव ही देगा अन्य भाव नहीं ।

7th House | सप्तम अथवा विवाह भाव

जन्मकुंडली में सप्तम भाव से पति-पत्नी, ह्रदय की इच्छाए ( काम वासना), मार्ग,लोक, व्यवसाय, साझेदारी में कार्य, विवाह ( Marriage) , कामेच्छा, लम्बी यात्रा आदि पर विचार किया जाता है। इस भाव को पत्नी वा पति अथवा विवाह भाव भी कहा जाता है । यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक की पत्नी वा पति कैसा होगा या साझेदारी में किया गया कार्य सफल होगा या नही का विचार करना हो तो इस प्रश्न का जबाब सप्तम भाव ही देगा अन्य भाव नहीं ।

8th House | अष्टम अथवा मृत्यु भाव

जन्मकुंडली में अष्टम भाव से मृत्यु, आयु, मांगल्य ( स्त्री का सौभाग्य – पति का जीवित रहना), परेशानी, मानसिक बीमारी ( Mental disease) , संकट, क्लेश, बदनामी, दास ( गुलाम), बवासीर रोग, गुप्त स्थान में रोग, गुप्त विद्या, पैतृक सम्पत्ति, धर्म में आस्था और विश्वास, गुप्त क्रियाओं, तंत्र-मन्त्र अनसुलझे विचार, चिंता आदि का विचार करना चाहिए। इस भाव को मृत्यू भकव भी कहा जाता है यदि किसी की मृत्यु का विचार करना है तो यह भाव बताने में सक्षम है।

9th House | नवम अथवा भाग्य भाव

जन्मकुंडली में निर्धारित नवम भाव से हमें भाग्य, धर्म,अध्यात्म, भक्ति, आचार्य- गुरु, देवता, पूजा, विद्या, प्रवास, तीर्थयात्रा, बौद्धिक विकास, और दान इत्यादि का विचार करना चाहिए। इस स्थान को भाग्य स्थान तथा त्रिकोण भाव भी कहा जाता है। यह भाव पिता( उत्तर भारतीय ज्योतिष) का भी भाव है इसी भाव को पिता के लिए लग्न मानकर उनके जीवन के सम्बन्ध में महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणी की जाती है। यह भाव हमें बताता है कि हमारी मेहनत और अपेक्षा में भाग्य का क्या रोल है क्या जितना मेहनत कर रहा हूँ उसके अनुरूप भाग्यफल भी मिलेगा । क्या मेरे तरक्की में भाग्य साथ देगा इत्यादि प्रश्नों का उत्तर इसी भाव से मिलता है।

10th House | दशम अथवा कर्म भाव

जन्मकुंडली में निर्धारित दशम भाव से राज्य, मान-सम्मान, प्रसिद्धि, नेतृत्व, पिता( दक्षिण भारतीय ज्योतिष), नौकरी, संगठन, प्रशासन, जय, यश, यज्ञ, हुकूमत, गुण, आकाश, स्किल, व्यवसाय, नौकरी तथा व्यवसाय का प्रकार, इत्यादि का विचार इसी भाव से करना चाहिए। कुंडली में दशम भाव को कर्म भाव भी कहा जाता है । यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक कौन सा काम करेगा, व्यवसाय में सफलता मिलेगी या नहीं , जातक को नौकरी कब मिलेगी और मिलेगी तो स्थायी होगी या नहीं इत्यादि का विचार इसी भाव से किया जाता है।

11th House | एकादश अथवा लाभ भाव

जन्मकुंडली में निर्धारित एकादश भाव से लाभ, आय, संपत्ति, सिद्धि, वैभव, ऐश्वर्य, कल्याण, बड़ा भाई-बहन,बायां कान, वाहन, इच्छा, उपलब्धि, शुभकामनाएं, धैर्य, विकास और सफलता इत्यादि पर विचार किया जाता है। यही वह भाव है जो जातक को उसकी इच्छा की पूर्ति करता है । इससे लाभ का विचार किया जाता है किसी कार्य के होने या न होने से क्या लाभ या नुकसान होगा उसका फैसला यही भाव करता है। वस्तुतः यह भाव कर्म का संचय भाव है अर्थात आप जो काम कर रहे है उसका फल कितना मिलेगा इसकी जानकारी इसी भाव से प्राप्त की जा सकती है।

12th House | द्वादश वा व्यय भाव

जन्मकुंडली में निर्धारित द्वादश भाव से व्यय, हानि, रोग, दण्ड, जेल, अस्पताल, विदेश यात्रा, धैर्य, दुःख, पैर, बाया नेत्र, दरिद्रता, चुगलखोर,शय्या सुख, ध्यान और मोक्ष इत्यादि का विचार करना चाहिए । इस भाव को रिफ भाव भी कहा जाता है। जीवन पथ में आने वाली सभी प्रकार क़े नफा नुकसान का लेखा जोखा इसी भाव से जाना जाता है। यदि कोई यह जानना चाहता है कि जातक विदेश यात्रा (abroad Travel) करेगा या नहीं यदि करेगा तो कब करेगा, शय्या सुख मिलेगा या नहीं इत्यादि का विचार इसी भाव से किया जाता है।
[: नींबू के ये ज्योतिष उपाय जानकर हैरान रह जाएंगे आप :

हर कोई नींबू के लाभ और महत्व को जानता है। लेकिन आज, हम नींबू के ज्योतिष के महत्व के बारे में चर्चा करने जा रहे हैं। शरीर से जहर निकालने का सबसे अच्छा स्रोत नींबू है। नींबू का सेवन शरीर में जहर का स्तर कम कर देता है। यदि आप शरीर पर नींबू रगड़ते हैं तो यह शरीर की नकारात्मकता को कम कर देता है।

अगर बच्चा लंबे समय से बीमार है और आपको उसकी बीमारी के पीछे कोई कोई कारण नजर नहीं आ रहा है तो राहु इसके लिए ज़िम्मेदार है। बच्चे के शरीर पर स्क्रब करने के बाद आपको नींबू लगाना चाहिए। आपको इसे 41 दिनों के लिए करना चाहिए आपको लाभ मिल सकता है।

यदि बुध आपको प्रभावित करता है तो आप नींबू का उपयोग भी कर सकते हैं। यदि आप पैसे नहीं बचा पा रहे हैं या भाषण में समस्या है, आंतों की समस्या भी है, प्रतिरक्षा प्रणाली प्रभावित करती है, मूत्र संक्रमण तो आपको लाभ प्राप्त करने के लिए नींबू का उपयोग करना चाहिए।

आप 108 बार के लिए “ओम बुद्ध नम:” का जाप कर सकते हैं और पेट पर नींबू को साफ़ कर सकते हैं। आपको पैर से नींबू तोड़ना है और इसे फेंकना है।

यदि किसी व्यक्तित्व के आकर्षण, प्रतिष्ठा और सम्मान में कमी आती है तो आप स्नान करते समय इसे अपने देवता को याद करके नींबू को छील सकते हैं।

आप 11, 21, 51 या 108 बार के लिए देवता की पूजा कर सकते हैं, आपको लाभ मिल सकते हैं। यदि आप लंबे समय से बीमारी से पीड़ित हैं तो आप उस स्थान पर रह सकते हैं और अपने देवता की पूजा कर सकते हैं। आपको धीरे-धीरे लाभ मिलेगा।

जब आपके शरीर में कमजोरी होती है तो एक नींबू लें और दो चम्मच शहद और पानी मिलाएं। आप इस पानी को दिन में 3-4 बार पी सकते हैं। उपवास के तुरंत बाद मत खाओ। आप एक दिन में 3-4 बार नींबू का रस पी सकते हैं और फिर रात का खाना ले सकते हैं।

आप काली मिर्च के साथ नींबू का उपयोग कर सकते हैं। यह उल्टी, गर्मी की समस्या को दूर करता है। आप नींबू के बीज पीस सकते हैं और उन्हें खा सकते हैं। यह पेट की गर्मी को कम करता है। हल्का गर्म पानी लें और इसमें नींबू का रस जोड़ें और उस पानी को पीएं जो शरीर से वसा को कम कर देता है।
[ वाणी-पर-कैसे-होता-है-ग्रहों-का-असर

कुंडली में द्वितीय भाव वाणी का भी होता है।

आज मै आपको ये जानकारी देने जा रही हूँ जब कोई ग्रह वाणी भाव में अकेला बैठा हो तो उसका वाणी पर क्या असर होगा। ये सिर्फ एक General Opinion है अतः यहाँ हम द्रष्टि/नक्षत्र/राशि या युति का विचार नही करेगे।

यदि वाणी भाव में सूर्य हो तो जातक की वाणी तेजस्वी होगी।वाणी आदेशात्मक ज्यादा होगी।गलत बात होने पर जातक जोरदार आवाज से प्रतिक्रिया देगा।

यदि वाणी भाव में चंद्र हो तो जातक की वाणी शालीन होगी।जातक बहुत धीरे और कम शब्दों में अपनी राय रखेगा।जातक की मधुर वाणी की दुनिया कायल होगी।जातक बात रखने से पहले आज्ञा माँगेगा।

यदि वाणी भाव में मंगल हो तो जातक की वाणी उग्र और तेज होगी। जातक की बात पड़ोसियों के कान तक पहुँच ।गुस्सा आने पर जातक गाली-गलौच में कभी निःसंकोच नही करेगा।जातक चिल्लाने और शौर मचाने में माहिर होगा।

यदि वाणी भाव में बुध हो तो जातक बेवजह बातूनी होगा।मुफ्त की राय देना जातक का शौक का शौक होगा।चूंकि अकेला बैठा बुध कभी शुभकर्तरी में नही होता,यदि बुध पापकर्तरी में हुआ तो जातक चुगलखोर होगा।

यदि वाणी भाव में गुरु है तो जातक की वाणी सकारात्मक होगी जातक उपदेशक की तरह अपनी बात को विस्तारपूर्वक कहता है जैसे -“मतलब/अर्थात/Means” ये उसकी बातो में ज्यादा प्रयोग होता है। जातक पुरुष से तीव्र और स्त्रियों से मधुर वाणी में बात करने वाला होता है।

यदि वाणी भाव में शुक्र हो तो जातक की वाणी अत्यंत विनम्र होगी।जातक कवि,गायक भी हो/बन सकता है।वाणी में प्यार और आनंद की मिठास होगी।जातक की बाते रोमांटिक होती है।

यदि वाणी भाव में शनि हुआ तो जातक की वाणी बहुत संतुलित और संयमित होगी। शब्दों की मर्यादा का उल्लंघन बहुत कम या ना के बराबर।जातक हमेशा “शासन कर रही सरकार” का वाणी से विरोध करेगा।

यदि वाणी भाव में राहू हुआ तो जातक गप्पे मारने वाला,बेवजह बहस करने वाला होगा।जातक के मुँह से हमेशा गाली/अपशब्द निकलेगे। वाणी नकारात्मक होगी।सीटी बजाना जातक का शौक हो सकता है।

यदि वाणी भाव में केतु हो तो जातक मुँहफट होगा।यदि केतु शुभकर्तरी में हो तो जातक जो भी कहेगा उसकी 70% बाते/भविष्यवाणी सही होगी..और यदि केतु पापकर्तरी में हो तो जातक हमेशा “हाय देने वाला” और “कडवी जुबान” रहेगा साथ ही उसकी बाते 70% सच साबित होगी।
🌺सीने में दर्द

🌻जब किसी व्यक्ति को दिल का दौरा पड़ता है, तो उसके सीने में असहनीय दर्द होता है।  यह दृश्य अक्सर कुछ फिल्मों में दिखाया जाता है।  फिल्म की कहानी एक चरित्र के जीवन में एक दर्दनाक घटना को दर्शाती है।  चरित्र इस झटके से ग्रस्त नहीं है और चरित्र छाती में दर्द और दिल के दौरे से पीड़ित है।  इस तरह के दृश्यों को बार-बार देखने से ऐसा एहसास होता है कि हर किसी का दिल का दर्द और दिल का दौरा पड़ने से गहरा संबंध है।  वास्तविक जीवन में, किसी भी कारण से सीने में दर्द होता है जो दिल का दौरा पड़ने का कारण बनता है और फिर यह चिंता का कारण बनता है।  लेकिन डॉक्टर अक्सर कहते हैं कि यह सोचने का कोई कारण नहीं है कि सीने में दर्द दिल का दौरा है।
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🌾सीने में दर्द अन्य कारणों से हो सकता है।  पित्त बढ़ने से भी सीने में दर्द होता है।  यह सीने में दर्द नहीं एक दर्द है।  तो छाती जलने लगती है।  पेट में एसिड विपरीत दिशा में चलना शुरू कर देता है और यह छाती में आता है और छाती में जलन होने लगती है।  उस समय, सीने में दर्द दिल का दौरा नहीं है।  उनके घबराने की कोई वजह नहीं है।  दूसरी बात यह है कि जब आप संभालने से ज्यादा वजन उठाने की कोशिश करते हैं, तब भी आपकी छाती में दर्द होता है।  ये दर्द मांसपेशियों को होता है।  क्योंकि वजन उठाने का तनाव मांसपेशियों पर होता है।  हृदय के कुछ अन्य विकार हैं।  हर दिल की बीमारी दिल का दौरा नहीं है।  सीने में दर्द तब भी हो सकता है जब दिल की विफलता के अलावा अन्य दर्द भी हो।

🌾निमोनिया एक ठंड बनाने वाला विकार है।  निमोनिया के बाद सीने में दर्द भी हो सकता है।  यह विकार ठंड के साथ जिगर में एक जीवाणु संक्रमण के कारण होता है और सीने में दर्द पैदा कर सकता है।  निमोनिया के कारण खांसी, बुखार और खांसी होती है और सीने में दर्द होता है।  अत्यधिक रक्तस्राव भी सीने में दर्द का कारण बन सकते हैं।  इसलिए, हार्ट अटैक के समय उपरोक्त कारण से होने वाले सीने में दर्द और दर्द के बीच अंतर को नोट करना महत्वपूर्ण है।  दिल का दौरा पड़ने पर सीने का दर्द अलग होता है।  सीने में दर्द नहीं होता।  तो अंदर बहुत दर्द होता है।  दर्द पीड़ादायक है, ठीक है, और न केवल जबड़े
[वर्षा ऋतु में लाभदायी अजवायन

अजवायन उष्ण, तीक्ष्ण, जठराग्निवर्धक, उत्तम वायु व कफनाशक, आमपाचक व पित्तवर्धक है। वर्षा ऋतु में होने वाले पेट के विकार, जोड़ों के दर्द, कृमिरोग तथा कफजन्य विकारों में अजवायन खूब लाभदायी है।
अजवायन में थोड़ा-सा काला नमक मिलाकर गुनगुने पानी के साथ लेने से मंदाग्नि, अजीर्ण, अफरा, पेट का दर्द एवं अम्लपित्त (एसिडिटी) में राहत मिलती है।
भोजन के पहले कौर के साथ अजवायन खाने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है। संधिवात और गठिया में अजवायन के तेल की मालिश खूब लाभदायी है।
तेल बनाने की विधिः 250 ग्राम तिल के तेल को गर्म करके नीचे उतार लें। उसमें 15 से 20 ग्राम अजवायन डालकर कुछ देर तक ढक के रखें फिर छान लें, अजवायन का तेल तैयार ! इससे दिन में दो बार मालिश करें।
अधिक मात्रा में बार-बार पेशाब आता हो तो अजवायन और तिल समभाग मिलाकर दिन में एक से दो बार खायें।
मासिक धर्म के समय पीड़ा होती हो तो 15 से 30 दिनों तक भोजन के बाद या बीच में गुनगुने पानी के साथ अजवायन लेने से दर्द मिट जाता है। मासिक अधिक आता हो, गर्मी अधिक हो तो यह प्रयोग न करें। सुबह खाली पेट 2-4 गिलास पानी पीने से अनियमित मासिक स्राव में लाभ होता है।
उलटी में अजवायन और एक लौंग का चूर्ण शहद में मिलाकर चाटना लाभदायी है।
सभी प्रयोगों में अजवायन की मात्राः आधा से दो ग्राम।
सावधानीः शरद व ग्रीष्म ऋतु में तथा पित्त प्रकृतिवालों को अजवायन का उपयोग अत्यल्प मात्रा में करना चाहिए।
में उपयोगी है। पेट के पुराने रोग, चर्मरोग, गठिया व मधुमेह (डायबिटीज) में यह विशेष लाभप्रद है।
रस की मात्राः बच्चों के लिए 5 से 15 मि.ली. तथा बड़ों के लिए 15 से 25 मि.ली.) सुबह खाली पेट

( विनम्र अनुरोध अपने सभी ग्रुपों में लोक हितार्थ भेजे )


[🌹विटामिन के 🌷परिचय- 🌻विटामिनके´ शरीर के लिए बहुत जरूरी विटामिन होता है। शरीर में कहीं से भी होने वाले रक्तस्राव को रोकने की इसमें अदभुत क्षमता होती है। इसकी कमी से शरीर में अनेक विकार उत्पन्न हो जाते हैं।स्नेहा समूह
🥀विटामिन के´ की कमी से उत्पन्न होने वाले रोग- 🌺खून का पतला होना। 🥀खून में प्रोथेम्बिक तत्व की कमी होना। 🌺रक्तस्राव होना। 🌷🌷विटामिनके´ युक्त खाद्य पदार्थ-
🌺पालक
🍃मूली
🌼गाजर
🌼बन्दगोभी
🌸फूलगोभी
💐गेहूं
💐जौ
🍃सोयाबीन का तेल
🌻दूध

🍂हरे पत्ते का शाक
🍂अंकुरित अनाज
🌺अल्फल्का
💐नींबू
🌺चावल के छिलके

🌺ताजे हरे जौ
संतरा
🌻रसदार फल
🍂नोट-
🌾जिन पौधों में क्लोरोफिल होता है, उसमें विटामिन के´ अत्यधिक मात्रा में पाया जाता है। 🍂विटामिनके´ से सम्बंधित कुछ महत्वपूर्ण तथ्य-
🌾विटामिन के´ पानी में घुल जाता है। 🌸विटामिनके´ नीबू-संतरा, रसदार फल, हरी 🌼सब्जियां, पालक, टमाटर में अधिक पाया जाता है।
🌻विटामिन के´ रक्त के संतुलन तथा प्रवाह को अपने प्रभाव में रखता है।स्नेहा समूह 🌺घातक शस्त्रों की चोट से निकलने वाले रक्त को रोकने के लिए इसका सफलतापूर्वक प्रयोग किया जाता है। 🥀रक्तस्राव वाले रोगों में शीघ्र लाभ के लिए हमेशा विटामिनके´ युक्त इंजेक्शन का ही प्रयोग करना चाहिए टैबलेट का नहीं।
🌺विटामिन के´ नियमित दो मिलीग्राम दिन में 3 बार खिलाने से प्रोथोम्बिन नॉर्मल हो जाता है। विटामिनके´ की कमी से शरीर का खून पतला हो जाता है।
🌻नकसीर विटामिन के´ कमी से बढ़ती है। विटामिनके´ चूना यानि कैल्शियम के संयोग से तीव्रता से क्रियाशील होता है।
🌸खून का न जमना अथवा देर से जमना जाहिर करता है कि शरीर में विटामिन के´ की अत्यधिक कमी हो चुकी है। 🍃विटामिनके´ पाचनक्रिया सुधारने के लिए सक्रिय योगदान देता है।
🌼नवजात शिशु के शल्यक्रम में सर्वप्रथम विटामिन के´ का प्रयोग करना पड़ता है। 🍃नवजात शिशुओं के पीलिया रोग में विटामिनके´ का प्रयोग करना हितकर होता है।
🍂विटामिन के´ पीले रंग के कणों में उपलब्ध होता है। 🍂वयस्क रोगियों को रुग्णावस्था (रोग की अवस्था में) में विटामिनके´ कम से कम 10 मिलीग्राम तथा अधिक से अधिक 300 मिलीग्राम प्रतिदिन की एक या अधिक मात्रा देनी चाहिए।
🌻यदि विटामिन के´ इंजेक्शन के रूप में उपलब्ध हो तो प्रतिदिन एक एम.एल ही रुग्णावस्था (रोग की अवस्था में) में देना पर्याप्त है। आवश्यकता पड़ने पर यह मात्रा दोहराई भी जा सकती है। 💐किसी भी प्रकार के अधिक स्राव में विटामिनके´ नियमपूर्वक प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ यदि कैल्शियम और विटामिन सी प्रयोग किया जाए तो और भी अच्छा लाभ होता है।स्नेहा समूह
🍂यदि यकृत रोगग्रस्त हो चुका हो और रक्तस्राव (खून बहने) होने लगे तो विटामिन के´ का प्रयोग करना चाहिए। 🌼प्रसव से पहले विटामिनके´ का प्रयोग करने से प्रसवकाल में रक्तस्राव कम होता हैं
🌻ऑप्रेशन के पूर्व तथा ऑप्रेशन के बाद रक्तस्राव न होने देने अथवा कम होने के लिए विटामिन के´ का प्रयोग किया जाता है। 🌻शरीर में गांठे पड़ जाने पर विटामिनके´ की आवश्यकता पड़ती है।
🥀स्नेहा आयुर्वेद ग्रुप
🌼हाइपोप्रोथोम्बेनेविया रोग में विटामिन के´ के प्रयोग से आराम मिल जाता है। 💐हेमाटेमेसिस रोग में विटामिनके´ का प्रयोग लाभ देता है।
🌾शीतपित्त तथा क्षय (टी.बी.) रोगों में विटामिन के´ का प्रयोग लाभ प्रदान करता है। 🍂रक्तप्रदर में विटामिनके´ का प्रयोग करने से लाभ होता है।
🍃खून को जमाने में विटामिन के´ का प्रयोग सर्वोत्तम प्रभाव रखता है। 🌾प्रोथोम्बिन की कमी विटामिनके´ की वजह से होती है।
🌻आंतड़ियों के घाव तथा आंतड़ियों की सूजन विटामिन के´ की कमी से होती है। आंतड़ियों में पित्त का अवशोषण न हो पाने की वजह से भी विटामिनके´ की शरीर में कमी हो जाती है।स्नेहा समूह
[गिलोय है आयुर्वेद की अमृता – सर्दी जुकाम से कैंसर तक है लाजवाब

ये भारत के असली मनी प्लांट हैं,

Giloy – गिलोय या गुडुची, जिसका वैज्ञानिक नाम टीनोस्पोरा कोर्डीफोलिया है, गिलोय का आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण स्थान है। इसके पत्ते पान के पत्ते कि तरह होते हैं। आयुर्वेद मे इसको कई नामो से जाना जाता है जैसे अमृता, गुडुची, छिन्नरुहा,चक्रांगी, आदि। ये एक दिव्या औषिधि हैं, मधुपर्णी मराठी में गुलवेल। इसके सेवन से आपको नयी ज़िन्दगी मिल सकती हैं। ये पुरे देश में उपलब्ध होती हैं। इसके खास गुणों के कारण इसे अमृत के समान समझा जाता है और इसी कारण इसे अमृता भी कहा जाता है। हिन्दू शास्त्रो में ये कहा गया हैं के सागर मंथन के समय जो अमृत मिला तो वह अमृत की बूंदे जहाँ जहाँ गिरी वहां से ये अमृता (गिलोय) पैदा हुयी। प्राचीन काल से ही इन पत्तियों का उपयोग विभिन्न आयुर्वेदिक दवाइयों में एक खास तत्व के रुप में किया जाता है।

आयुर्वेद में Giloy बुखार की सर्वोत्तम औषधि के रूप में मानी गई है, कैसा भी और कितना भी पुराना बुखार हो, इसके रोज़ाना सेवन से सब सही होता हैं। गिलोय की लता पार्क में, घरो में, जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतया कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है। यह पत्‍तियां नीम और आम के पेड़ों के आस पास अधिक पाई जाती हैं। जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं । इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है।

गिलोय की पत्तियों और तनों से सत्व निकालकर इस्तेमाल में लाया जाता है। गिलोय को आयुर्वेद में गर्म तासीर का माना जाता है। यह तैलीय होने के साथ साथ स्वाद में कडवा और हल्की झनझनाहट लाने वाला होता है।

Giloy Ke fayde
अगर आप सुबह उठ कर Giloy की छोटी सी डंडी को चबा चबा कर खा लेंगे तो आपके लिए ये संजीवनी की तरह काम करेगी। और कैसा भी असाध्य रोग हो ये उस को चुटकी बजाते हुए खत्म कर देगी।

Giloy Ke gun
Giloy में अनेका अनेक गुण समाये हुए हैं। गिलोय शरीर के तीनो दोषों (वात, पित्, और कफ) को संतुलित करती है और शरीर का कायाकल्प करने की क्षमता रखती है। इसमें सूजन कम करने, शुगर को नियंत्रित करने, गठिया रोग से लड़ने के अलावा शरीर शोधन के भी गुण होते हैं। गिलोय के इस्तेमाल से सांस संबंधी रोग जैसे दमा और खांसी में फायदा होता है। गिलोय का उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, धातू विकार, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, चर्म रोग, झाइयां, झुर्रियां, कमजोरी, गले के संक्रमण, खाँसी, छींक, विषम ज्वर नाशक, टाइफायड, मलेरिया, डेंगू, पेट कृमि, पेट के रोग, सीने में जकड़न, जोडों में दर्द, रक्त विकार, निम्न रक्तचाप, हृदय दौर्बल्य,(टीबी), लीवर, किडनी, मूत्र रोग, मधुमेह, रक्तशोधक, रोग पतिरोधक, गैस, बुढापा रोकने वाली, खांसी मिटाने वाली, भूख बढ़ाने वाली पाकृतिक औषधि के रूप में खूब प्रयोग होता है। इसे नीम और आंवला के साथ मिलाकर इस्तेमाल करने से त्वचा संबंधी रोग जैसे एग्जिमा और सोराइसिस दूर किए जा सकते हैं। इसे खून की कमी, पीलिया और कुष्ठ रोगों के इलाज में भी कारगर माना जाता है।

Giloy Rasayan
Giloy एक रसायन है, यह रक्तशोधक, ओजवर्धक, ह्रुदयरोग नाशक ,शोधनाशक और लीवर टोनिक भी है। यह पीलिया और जीर्ण ज्वर का नाश करती है अग्नि को तीव्र करती है, वातरक्त और आमवात के लिये तो यह महा विनाशक है
गिलोय का चूर्ण शहद के साथ खाने से कफ और सोंठ के साथ आमवात से सम्बंधित बीमारीयां (गठिया) रोग ठीक होता है।
सूजन कम करने के गुण के कारण, यह गठिया और आर्थेराइटिस से बचाव में अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय के पाउडर को सौंठ की समान मात्रा और गुगुल के साथ मिलाकर दिन में दो बार लेने से इन बीमारियों में काफी लाभ मिलता है। इसी प्रकार अगर ताजी पत्तियां या तना उपलब्ध हों तो इनका ज्यूस पीने से भी आराम होता है।
गिलोय की जड़ें शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट है। यह कैंसर की रोकथाम और उपचार में प्रयोग की जाती है।
गिलोय का रस और गेहूं के जवारे का रस लेकर थोड़ा सा पानी मिलाकर इस में तुलसी और नीम के 5 – 7 पत्ते पीस कर मिला लीजिये इस की एक कप की मात्रा खाली पेट सेवन करने से ये रक्त कैंसर के विनाश के लिए अमृत सामान औषिधि बन जाती हैं। अगर आपकी कोई अलोपथी चिकित्सा चल रही हैं तो आप उसके साथ में इसको कर सकते हैं। उसके साथ इसका कोई विपरीत प्रभाव नहीं हैं। ये प्रयोग अनीमिया के रोगियों (जिनको बार बार खून चढ़ाना पड़ता हैं) के लिए भी अमृत सामान हैं।

गिलोय उच्च कोलेस्ट्रॉल (LDL) के स्तर को कम करने के लिए, शर्करा का स्तर बनाए रखने में मदद करता है। यह शरीर को दिल से संबंधित बीमारियों से बचाए रखता है।

Giloy Uses – गिलोय का इस्तेमाल
Giloy के 6 इंच के तने को लेकर कुचल ले उसमे 4 -5 पत्तियां तुलसी की मिला ले इसको एक गिलास पानी में मिला कर उबालकर इसका काढा बनाकर पीजिये। और इस काढ़े में तीन चम्मच एलोवेरा का गूदा मिला कर नियमित रूप से सेवन करते रहने से जिन्दगी भर कोई भी बीमारी नहीं आती। और इसमें पपीता के 3-4 ताज़ा पत्तो का रस मिला कर दिन में तीन चार बार (हर तीन चार घंटे के बाद) लेने से रोगी को प्लेटलेट की मात्रा में तेजी से इजाफा होता है प्लेटलेट बढ़ाने का इस से बढ़िया कोई इलाज नहीं है यह चिकन गुनियां डेंगू स्वायन फ्लू और बर्ड फ्लू में रामबाण होता है।
गैस, जोडों का दर्द ,शरीर का टूटना, असमय बुढापा वात असंतुलित होने का लक्षण हैं। गिलोय का एक चम्मच चूर्ण को घी के साथ लेने से वात संतुलित होता है ।
गिलोय और अश्वगंधा को दूध में पकाकर नियमित खिलाने से बाँझपन से मुक्ति मिलती हैं।
क्षय (टी .बी .) रोग में गिलोय सत्व, इलायची तथा वंशलोचन को शहद के साथ लेने से लाभ होता है।
गिलोय और पुनर्नवा का काढ़ा बना कर सेवन करने से कुछ दिनों में मिर्गी रोग में फायदा दिखाई देगा।
दस्त पेचिश और आंव में इस की ताज़ा डंडी को थोड़ा कूट कर इसको थोड़े से पानी के साथ पिए। आपको बहुत आराम आएगा।
एक चम्मच गिलोय का चूर्ण खाण्ड या गुड के साथ खाने से पित्त की बिमारियों में सुधार आता है और कब्ज दूर होती है।
प्रतिदिन सुबह-शाम गिलोय का रस घी में मिलाकर या शहद गुड़ या मिश्री के साथ गिलोय का रस मिलकर सेवन करने से शरीर में खून की कमी दूर होती है।
हिचकी आने पर गिलोय के काढ़े में मिश्री मिला कर देने से हिचकी सही होती हैं।
फटी त्वचा के लिए गिलोय का तेल दूध में मिलाकर गर्म करके ठंडा करें। इस तेल को फटी त्वचा पर लगाए वातरक्त दोष दूर होकर त्वचा कोमल और साफ होती है।
इसका नियमित प्रयोग सभी प्रकार के बुखार, फ्लू, पेट कृमि, खून की कमी, निम्न रक्तचाप, दिल की कमजोरी, टीबी, मूत्र रोग, एलर्जी, पेट के रोग, मधुमेह, चर्म रोग आदि अनेक बीमारियों से बचाता है।
गिलोय भूख भी बढ़ाती है। एक बार में गिलोय की लगभग 20 ग्राम मात्रा ली जा सकती है।
मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयो पर गिलोय के फलों को पीसकर लगाये मुंहासे, फोड़े-फुंसियां और झाइयां दूर हो जाती है।
मट्ठे के साथ गिलोय का 1 चम्मच चूर्ण सुबह शाम लेने से बवासीर में लाभ होता है।
गिलोय का रास शहद के साथ मिलाकर सुबह और शाम सेवन करने से पेट का दर्द ठीक होता है।
गिलोय को पानी में घिसकर और गुनगुना करके दोनों कानो में दिन में 2 बार डालने से कान का मैल निकल जाता है। और गिलोय के पत्तों के रस को गुनगुना करके इस रस को कान में डालने से कान का दर्द ठीक होता है।
गिलोय और पुनर्नवा मूल को कूट कर इसका रस निकाल लीजिये इस में शहद मिलाकर दिन में 3-4 बार पीने से पीलिया रोग ठीक हो जाता है। यकृत(LIVER) में अगरSGOT या SGPTABNORMAL हैं या BILIRUBIN बढ़ा हैं तो भी इस से ये ठीक होता हैं।
प्रमेह,प्रदर, कमज़ोरी व् धातु क्षीणता होने पर इसको कूट कर रात में पानी मिला कर रख दीजिये और सुबह इसको निचोड़ कर इस पानी को पी लीजिये, ये थोड़ा कड़वा होगा, कड़वापन दूर करने के लिए आप इसमें मिश्री या शहद मिला कर इसको पीजिये। इसको पीने से आपके चेहरे से झुर्रिया व् झाइयां खत्म होंगी और चेहरे पर कांति आएगी। मधुमेह के रोगी इसमें शहद या मिश्री ना मिलाये।
ये बुढ़ापे को रोकने वाली, जवानी को बना कर रखने वाली दिव्या औषिधि हैं। अगर आपको किसी भी प्रकार का दाद, खाज, खुजली, एक्ज़िमा, सीरोसिस, चाहे लिवर के अंदर ट्यूमर, फाइब्रोसिस में भी ये लाभकारी हैं।
मधुमेह के रोगी अगर सुबह इसकी ६ इंच की ताज़ा डंडी को चबा चबा कर चूसे तो कुछ दिनों में उनका मधुमेह का रोग सही हो जाता हैं।
गिलोय में शरीर में शुगर और लिपिड के स्तर को कम करने का खास गुण होता है। इसके इस गुण के कारण यह डायबीटिज टाइप 2 के उपचार में बहुत कारगर है।
गिलोय रसायन यानी ताजगी लाने वाले तत्व के रुप में कार्य करता है। इससे इम्यूनिटी सिस्टम में सुधार आता है और शरीर में अतिआवश्यक सफेद सेल्स की कार्य करने की क्षमता बढ़ती है। यह शरीर के भीतर सफाई करके लीवर और किडनी के कार्य को सुचारु बनाता है। यह शरीर को बैक्टिरिया जनित रोगों से सुरक्षित रखता है। इसका उपयोग सेक्स संबंधी रोगों के इलाज में भी किया जाता है।
वैज्ञानिक विश्लेषण के अनुसार इसमें एल्केलाइड गिलोइन नामक कड़वा ग्लूकोसाइड, वसा, अल्कोहल, ग्लिस्टरोल, अम्ल व उडऩशील तेल होते हैं। इसकी पत्तियों में कैल्शियम, प्रोटीन, फॉस्फोरस और तने में स्टार्च पाया जाता है। वायरसों की दुश्मन गिलोय रोग संक्रमण रोकने में सक्षम होती है। यह एक श्रेष्ठ एंटीबयोटिक है।
टाइफायड, मलेरिया, डेंगू, एलीफेंटिएसिस, विषम ज्वर, उल्टी, बेहोशी, कफ, पीलिया, तिल्ली बढऩा, सिफलिस, एलर्जी सहित अन्य त्वचा विकार, झाइयां, झुर्रियां, कुष्ठ आदि में गिलोय का सेवन आश्चर्यजनक परिणाम देता है। यह शरीर में इंसुलिन उत्पादन क्षमता बढ़ाती है। गिलोय बीमारियों से लडऩे, उन्हें मिटाने और रोगी में शक्ति के संचरण में यह अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है।
शरीर में पाचनतंत्र को सुधारने में गिलोय काफी मददगार होता है। गिलोय के चूर्ण को आंवला चूर्ण या मुरब्बे के साथ खाने से गैस में फायदा होता है। गिलोय के ज्यूस को छाछ के साथ मिलाकर पीने से अपाचन की समस्या दूर होती है साथ ही साथ बवासीर से भी छुटकारा मिलता है।
गिलोय एडाप्टोजेनिक हर्ब है अत:मानसिक दवाब और चिंता को दूर करने के लिए उपयोग अत्यधिक लाभकारी है। गिलोय चूर्ण को अश्वगंधा और शतावरी के साथ मिलाकर इस्तेमाल किया जाता है। इसमें याददाश्त बढ़ाने का गुण होता है। यह शरीर और दिमाग पर उम्र बढ़ने के प्रभाव की गति को कम करता है।
अगर ये आपके घर में नहीं है तो आप इसको अपने घर में ज़रूर लगाये। ये भारत के असली मनी प्लांट हैं, नकली मनी प्लांट को घर से निकाल कर बाहर करे। अगर आप इसकी डंडी काट कर अपने घर में किसी गमले में या मिटटी में लगा देंगे तो ये वहां अपने आप ही उग आएगी।
गर्भवती महिलाओं को बिना चिकित्सकीय सलाह के इसके इस्तेमाल से बचना चाहिए।. मोटापा कम करने की सही पद्धति – HOW TO REDUCE WEIGHT & OBESITY ? :

हम आपको एसा कोई तरीका नही बताएंगे, कि रातो-रात आप का वजन कम हो जाय। वजन कम करने की एक पद्धति होती है, हम उसके बारे में बात करंगे। इस पद्धति से आपको सायद 2 -5 महीने लग सकते है।
समय इसलिए लगेगा, क्योंकि आपको सम्पूर्ण स्वस्थ रह कर वजन कम करना है। वजन कम करने के चक्कर में अपनी सेहत को बिगाड़ नहीं लेना है.

वजन कम करने के लिए यही पद्धति सही और प्राकृतिक है.
क्या करना है ? :
सबसे पहले आप को सुबह सूर्योदय के पहले उठ जाना है. इस से हमारे शरीर मे सभी प्राकृतिक ‘सिस्टम’ ठीक से काम करंगे. हम अलग तरह की शक्ति का अनुभव करंगे।

वजन बढ़ाने, या कम करने में, प्राकृतिक कफ की बहुत बड़ी भूमिका होती है. अगर आप सुबह सूर्योदय से पहले उठ जाते है तो शरीर में प्राकृतिक कफ का सही संतुलन रहेगा, जिस से वजन सही अवस्था में रहेगा।

व्यायाम करना : सुबह जागने के बाद व्यायाम करना बहुत ही ज्यादा आवश्यक है। व्यायाम से हमारे शरीर के सभी अंगों को अच्छी प्रकार से कसरत मिलती है। हृदय जैसे अंगों को कसरत मिलने से रक्त का संचालन अच्छा रहता है. रक्त का भ्रमण ठीक होने से सभी प्रकार की सिस्टम ठीक से काम करती है।

कुछ भी करो, कैसे भी समय निकालो, सुबह उठ कर आपको करसत या व्यायाम करना ही है।

व्यायम में अगर आपको कुछ ज्यादा नही पता, तो आप सिर्फ और सिर्फ आपको 12 बार सूर्यनमस्कार कर ले।
सूर्यनमस्कार करने से वजन कम अवश्य होगा ही साथ में और भी स्वास्थयप्रद फायदे होंगे ये सब आप भली भाती जानते है।

दिनचर्या और ऋतुचर्या ठीक कर दे. फिर देखे, मोटापा तो क्या बाकि की बीमारी भी आपके पास आने से डरेंगी।

मधु Honey का प्रयोग :
आयुर्वेद में मोटापा कम करने के लिए मधु का बहुत महत्व बताया है। यह बात समझनी जरूरी है कि मधु का प्रयोगों ही क्यों होता है। दरअसल मधु कफ को कम करता है और कफ कम होने से मेद धातु कम होगी। मेद धातु के कम होने से ही तो मोटापा कम होगा। आप को रात को सोने के पहले एक माटी का या और किसी भी धातु का पात्र में 40- 60 gm मधु ले और ठीक उससे 4 गुना पानी ले कर पूरी रात ढक के रख दे। इस को आपको सुबह उठ कर बिना कुछ मिलाय पीना है।
(मधुमेह के रोगी, अगर खून में शक़्कर का स्तर कण्ट्रोल में है, तो केवल 1-2 चम्मच ही लें. अगर कण्ट्रोल में नही, तो अपने डाक्टर से पूछे बिना न लें).

खाने में संतुलित आहार ही स्वस्थ जीवन का रहस्य है।

नाश्ता बिल्कुल सिम्पल होना चाहिए।

नाश्ते में एक ग्लास दूध लेना है. पर याद रखे उस मे एक चम्मच सोंठ (dry ginger powder) मिला दे। साथ में कुछ दलिया, या एक छोटी रोटी, या कुछ फल ले सकते हैं.
यहाँ पर सोंठ और दूध का सेवन करना का अलग ही महत्व है। सुंठ, अन्न को पाचन करने में मदद करता है।

दूध को पूर्ण पोषक आहार माना गया है। मतलब कि, सुंठ आपका पूर्ण पोषक आहार को ठीक से पाचन करती है।

सुंठ लेने से शरीर में जो भी आहार न पच रहा हो, पच जाता है और धातु का ठीक से पाचन होता है।

अब नाश्ते के बाद आपको सीधा दोपहर का खाना ही लेना है। लंच में आप अपनी अनुकूलता के अनुसार ले।
लंच में आप सब्जी ,रोटी जैसे चीज़ों का ही सेवन करे।

और रात्रि खाने में खाली मूंग का ही सेवन करे। अगर इस से आपकी खाने की भूख नहीं मिटती तो आप साथ में फाइबर वाली सब्जी भी ले सकते है। फाइबर पेट को भरा हुआ रखता है ,इसलिए ज्यादा खाने की आवश्यकता नहीं होती। फिर भी, अगर आवश्यक हो, तो एक चपाती ले सकते हैं.

कई लोग सिर्फ और सिर्फ सलाद का प्रयोग करते है, पर ये भी गलत है।

क्योकि इस से आपका वजन तो सायद कम हो जायेगा पर साथ में बहुत सारि नई बिमारियों को भी न्योता दे देंगे आप।
कोल्ड/सॉफ्ट ड्रिंक, नमकीन भुजिया, समोसे, कचोरी, आइस क्रीम, पिज़्ज़ा, बर्गर, छोले-भठूरे, आलू के परांठे, और अन्य कई तरह के परांठे, बहुत मीठे, मैदे आदि का प्रयोग……

न, न, न रे, न रे, न रे !

फिर भी अगर हो तो, महीने में शायद 1-2 बार लेने से चल जाये.
वर्ना :
रूखी सूखी खा के ताज़ा (ठंडा नही :)) पानी पी


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[यह हरसिंगार हैl इस लेटिन नाम Nyctanthes arbortristis हैl इस के कुछ सरल प्रयोग नीचे दिए जा रहे हैं:-
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हरसिंगार के 6 से 7 पत्ते तोड़कर इन्हें पीस लें – पीसने के
बाद इस पेस्ट को पानी में डालकर तब तक उबालें जब तक कि इसकी मात्रा आधी न हो जाए !
अब इसे ठंडा करके प्रतिदिन सुबह खाली पेट पिएं !
नियमित रूप से इसका सेवन करने से जोड़ों से संबंधित अन्य समस्याएं भी समाप्त हो जाएगी !

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खांसी हो या सूखी खांसी – हरसिंगार के पत्तों को पानी में उबालकर पीने से बिल्कुल खत्म की जा सकती है !
आप चाहें तो इसे सामान्य चाय में उबालकर पी सकते हैं या फिर पीसकर शहद के साथ भी प्रयोग कर

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साइटिका के उपचार हेतु दो कप पानी में हरसिंगार के लगभग 8 से 10 पत्तों को धीमी आंच पर उबालें और आधा रह जाने पर इसे अंच से उतार लें !
ठंडा हो जाने पर इसे सुबह शाम खाली पेट पिएं !

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हरसिंगार की पत्त‍ियों को पीसकर लगाने से त्वचा संबंधी समस्याएं खत्‍म होती हैं।
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इसके फूलो का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा उजला और चमकदार हो जाता हैl
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इस के 15 से 20 फूलों या इसके रस का सेवन करना हृदय रोग से बचाने में कारगर है !

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हाथ – पैरों की मांसपेशियों में दर्द व खिंचाव होने पर हरसिंगार के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में अदरक का रस मिलाकर पीने से फायदा होता है !

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सांस संबंधी रोगों में हरसिंगार की छाल का चूर्ण बनाकर पान के पत्ते में डालकर खाने से लाभ होता है !
इसका प्रयोग सुबह और शाम को किया जा सकता है !

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हरसिंगार के पत्तों का रस या फिर इसकी चाय बनाकर नियमित रूप से पीने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती हैl

संतान एवं प्रश्न ज्योतिष

भाग 3

गर्भ लक्षण ज्ञानदीपिका मतम्
🌑यदि कोई स्त्री के गर्भ के बारे में प्रश्न पूछे तो उस समय यदि आरूढ़ राशि प्रश्नलग्न या छत्रराशि में से किसी में भी राहु हो तो उसे गर्भ है ऐसा कहना चाहिए।।

🌑प्रश्नकालीन उदयलग्न से या चन्द्रलग्न से त्रिकोण स्थानों या सप्तम में गुरु बैठा हो या इन पर उसकी दृष्टि हो तो स्त्री गर्भवती होती है।

🌑यदि प्रश्न समय रात्रि का हो और उस समय चन्द्र के चारों ओर परिधि(पारस या हाला)दिखाई पड़े तो स्त्री को गर्भवती कहना चाहिए।

प्रश्नकुण्डली में सप्तमस्थ ग्रह के अनुसार गर्भ में पुत्र है या पुत्री यह बताना चाहिए।

अर्थात यदि सप्तम भाव में सूर्य-मंगल-गुरु हो तो पुत्र अन्यथा पुत्री कहना चाहिए।

🌑प्रश्नकुंडली में चन्द्रमा किसी भी भाव में क्यों न स्थित हो यदि उसके साथ शुभ ग्रह बैठा हो तो स्त्री निशिचित रूप से गर्भिणी होती है।

🌑यदि पंचमेश विषम राशि तथा विषम नवांश में बैठा हो तथा लग्नेश यदि गुलिक से केंद्र में स्थित हो तो गर्भकारक होता है।

🌑यदि पंचमेश उक्त स्थिति में शीर्षोदयी राशियों में से किसी में हो तो सुनिश्चित रूप से गर्भ होता है।

🌑पञ्चमेश के नवांश को चन्द्र ता राहु देखता हो या उसमे बैठा हो तो गर्भ नही होता है।

🌑यदि पंचमेश के नवांश पर मंगल की युति-दृष्टि हो तो गर्भपात होता है।

🌑यदि पंचमेश की स्थिति या दृष्टि अधोमुख राशि या नवांश में या स्थिर राशि में हो और शनि द्वारा दृष्ट युत हो तो स्त्री का मासिक अनियमित होता है।

*चतुर्दशगर्भ लक्षण*

🌑यदि गर्भ प्रश्न के समय प्रश्नस्थल पर कोई दूसरी गर्भिणी स्त्री दिखलाई पड़े।

🌑अथवा शिशु दिखलाई दे।

🌑बादल या नगाड़ों की ध्वनि(गर्जना) सुनाई पड़े।

🌑द्वन्द युद्ध (नर-मादा गौर्रेयों का आपस में झगड़ना या बालकों का आपस में क्रीड़ा करना) दिखाई दे।

🌑यदि पृच्छक अपनी अधोभुजा(टांगों ) का स्पर्श करें।

🌑पृच्छक हाथ का स्पर्श करे।

🌑नासिका का स्पर्श करें।

🌑किसी वस्तु का पतन दिखाई पड़े।

🌑कोई वस्तु आकर्षित की जाती हुई दिखे (जैसे बोरा,थैला ,पेटिका आदि अपनी ओर खींचना) ।

🌑लग्न में शुक्र के स्थित होने पर।

🌑लग्न में शुक्र के स्थित होने पर।

🌑 आरूढ़ लग्न में शुक्र होने पर।

🌑आरूढ़ पर शुक्र की दृष्टि होने पर।

🌑लग्न से पञ्चमभाव पर शुक्र की स्थिति होने पर।

🌑अथवा लग्न से पञ्चम भाव पर शुक्र की दृष्टि हो हो तो -इन लक्षणों के होने पर गर्भ है ऐसा कहना चाहिए।।

  *सन्तति सूचक अष्ट योग*

🌑प्रश्न कुंडली में मान्दि एवम् चन्द्र कि युति हो।

🌑सुतभाव में उसके स्वामी की स्थिति हो।

🌑किसी भी स्थान में बैठे चन्द्र पर मंगल की दृष्टि हो।

🌑नवम भाव में शुभ ग्रह बैठे हों।

🌑पञ्चमेश गुलिक के साथ बैठा हो।

🌑पंचमेश गुलिक से दृष्ट हो।

🌑गुलिक एवं चन्द्र के नवांशों के स्वामियों में परस्पर दृष्टि या युति का सम्बन्ध हों।

ये 8 योग गर्भ के सूचक होते हैं।
स्त्री पुरुष संज्ञा ज्ञानम्
🌑यदि लग्न से विषम स्थान(3-5-7-9-11भावों) में चन्द्रमा स्थित हो तो पुत्र का जन्म होता है।

🌑यदि चन्द्र सम स्थानों(2-4-6-8-10-12) में चन्द्र बैठा हो तो कन्या का जन्म होता है।

🌑प्रश्न कालीन वार,नक्षत्र तथा राशियों के योग के अनुसार भी पुत्र-कन्या कहना चाहिए।

🌑पुरुष ग्रहों के वार-प्रश्नकाल में रविवार,मंगलवार,गुरुवार हो तो पुत्र का जन्म होता है।

🌑स्त्री ग्रहों के वार-चन्द्र,बुध,शुक्र इन में प्रश्न हो तो कन्यजन्म के सूचक हैं।

🌑परन्तु इसमें तिथ्यादि के योग से ही विचार करना चाहिए,

🌑अतः रव्यादि,वार, अश्विनी आदि नक्षत्र तथा प्रश्न लग्न की राशि इन तीनों का योग यदि विषम हो तो पुत्र सम हो तो कन्या का जन्म बताना चाहिए।।

स्त्री पुरुष संज्ञा ज्ञान
🌑प्रश्नलग्न से तीसरे,नौवें,दशवें, ग्यारहवें स्थानों में यदि सूर्य बैठा हो तो पुत्र सूचक होता है।

उसी प्रकार इन भावों में बैठा शनि भी पुत्रसूचक होता है।

🌑यदि प्रश्न कुंडली में सभी ग्रह विषम भावों में हो तो पुत्र उतपन्न होता है

🌑यदि सभी ग्रह सम भावो में बैठे हों तो पुत्री का जन्म होता है इसमें कोई सन्देह नही है।

ऐसा ज्ञान दीपिका ग्रन्थ में वर्णित है 👆🏽

🌑प्रश्न लग्न में पुरुष राशि के वर्ग (होरा-द्रेष्काणादि) अधिक हों तथा उस पर बली पुरुष ग्रहों की दृष्टि हो तो पुत्र का जन्म होता है।

🌑यदि लग्न में सम राशि के वर्ग की अधिकता हो तथा वह बली ग्रहों से दृष्ट हो तो कन्या का जन्म होता है।

🌑यदि प्रश्न लग्न में बुध बैठा हो तो कन्या का ही जन्म होता है।

*आर्या सप्तति मत*

🌑यदि सभी सौम्य ग्रह पञ्चम तथा एकादश भावों में होंटो स्त्री गर्भवती होती है।

🌑यदि गुरु,सूर्य,लग्न एवं चन्द्र ये चारों विषम राशियों में हो तो पुत्र का जन्म होता है।

🌑यदि ये चारों ग्रह सम राशिगत हो तो कन्या का जन्म कहना चाहिए।

🌑यदि ये चारों सम तथा विषम दोनों प्रकार को राशियों में हों तब बल को अधिकता के अनुसार फल कहना चाहिए अर्थात तब यदि पुरुष ग्रह बली हो तब पुरुष

और स्त्री ग्रह बली हो तो कन्या का जन्म होगा ऐसा अर्थात बल की अधिकता के अनुसार फल कहना चाहिए।

🌑यदि प्रश्नलग्न से विषम भाव में शनि हो तो पुत्र का जन्म होता है।

🌑यदी गुरु तथा सूर्य विषम राशि में बली होकर बैठें हो तो पुत्र जन्म होता है।

🌑यदि शुक्र,मंगल,चंद्र,सम राशिगत हो तो पुत्री का जन्म सूचित करते हैं।
षट्पंचाशिका मत
🌑यदी विषम स्थान में शनि हो तो पुत्र का जन्म अन्यथा पुत्री का जन्म होता है

🌑इसी मत में विवाह प्रश्न में विषम स्थानगत शनि होने पर पुरुष का विवाह होता है, अन्यथा नही।
अनुष्ठानपद्धति मत
🌑 अनुष्ठान पद्धति के अनुसार सूर्य मंगल गुरु तथा शनि ये प्रश्नकुण्डली में यदि सप्तम भावस्थ हों तो पुत्र जन्म कारक होते हैं।

🌑यदि इनसे भिन्न ग्रह सप्तम भाव में हों तो विपरीत फल होता अर्थात पुत्री का जन्म होता है।

🌑सूर्य,मंगल,गुरु लग्न में हो तो पुत्र का जन्म होता।

🌑लग्न में बुध तथा शुक्र हों तो कन्या जन्म लेती है।

🌑परन्तु लग्न में शनि हो तो पुत्र देता है

🌑यदि पृच्छक अपने दाहिने हाथ से अपने दाहिने अंग का स्पर्श करता है,यदि कुण्डली के उस भाग में पुरुष ग्रह हो तो पुत्र का जन्म होता है,अन्यथा कन्या का जन्म होता है।(कुंडली में लग्न दे सप्तम भाव तक वाम भाग तथा सप्तम भावस्पष्ट से लग्नस्पष्ट तक दक्षिण भाग जानना चाहिये)

🌑यदि वाम दक्षिण दोनों का स्पर्श करे तो गर्भ की मृत्यु होती है।

🌑यदि लग्नारूढ़ नवांश स्त्री संज्ञक हो तथा दो स्त्री ग्रहों से दृष्ट हो तो 2 कन्याओ का जन्म होता है।

🌑यदि ये नवांश पुरुष संज्ञक हो और 2 पुरुष ग्रह देख रहे हो तो 2 पुत्र का जन्म होता है।

🌑त्रिकोण या केंद्र स्थानों में गुरु हो तो पुत्र जन्म होता है

🌑 इसी तरह देखे सुने हुए शकुनों से भी प्रसूति-प्रश्न का उत्तर संशय रहित होकर कहना चाहिए।।
🌑यदि प्रश्नकाल में प्रश्नस्थल पर आकस्मिक रूप से पुरुष दिखलाई पढ़ें, उनकी वार्तालाप या चर्चा श्रवण गोचर हो,अथवा आरूढ़ राशि पुरुषसंज्ञक हो,प्रश्नलग्न या आरूढ़ राशि में पुरुष ग्रह बैठे हों, उनकी दृष्टि हो,पृच्छक शीघ्रतापूर्वक प्रश्न पुछे अथवा लग्न में ओज राशि हो अथवा दैवज्ञ के दाहिनी और बैठकर पृच्छक प्रश्न पूछे तो इन लक्षणों में पुत्रजन्म का होना प्रकट होता है। इसके विपरीत स्थिति हो तो कन्या का जन्म समझना चाहिए।।
🌑 प्रश्निक का शिर या दाहिने अंगों का स्पर्श करना लग्नंवाश में पुरुषदिक् का होना पुत्र का सूचक है।

🌑इसी प्रकार यदि विषम लग्न हो और उसमे बलवान होकर(कन्या या मिथुन राशि का वर्गोत्तमी) बुध शनि के साथ बैठा हो तो भी पुत्र का जन्म होता है।

🌑इसके अन्यथा स्थिति हो अर्थात प्रश्निक अपने वामांगों का स्पर्श करें,प्रश्नलग्न के नवांश में स्त्रिदिक् हो या प्रश्नलग्न सम राशि का होकर उसमे निर्बल बुध(मीन आदि नवांश)का शनि के साथ बैठा हो तो पुत्री का जन्म होता है।।

वराहमिहिर मत
🌑यदि प्रश्नलग्न विषम राशि का तथा विषम नवांश का हो तथा सम राशि में बलवान सूर्य,गुरु तथा चन्द्रमा बैठें हो तो पुत्र का जन्म होता है।

🌑यदि प्रश्न लग्न समराशि/समनवांश का हो तथा सूर्य,गुरु एवं चन्द्र भी सम राशि नवांश गत हों तो कन्या का जन्म होता है।

🌑यदि सूर्य-गुरु विषम राशिगत हों तो पुत्र का जन्म होता है।

🌑यदि चन्द्र-शुक्र-मंगल ये सम राशि गत हों तो कन्या का जन्म होता है।

🌑यदि उक्त ग्रह द्विस्वभाव राशि में हो तो उनके नवांशक के अनुसार निर्णय दें।

🌑यदि उक्त ग्रह द्विस्वभाव राशि तथा विषम नवांश में हों तथा बुध से दृष्ट हों तो जुड़वाँ पुत्र उतपन्न होते हैं।

🌑यदि उक्त ग्रह द्विस्वभाव राशि तथा सम नवांश में हों तो यमल पुत्रियां उतपन्न होती हैं।

🌑यदि उक्त ग्रह पुरुष-स्त्री प्रभाव में बराबर बराबर हों तो एक पुत्र तथा दूसरी पुत्री ऐसी यमल सन्तति होती है।

🌑यदि इन योगों में से एक भी योग प्रश्नलग्न के समय उपस्थित हो तो तदनुसार पुत्र,कन्या या यमल जन्म की भविष्यवाणी की जा सकती है ऐसा बृहज्जातक के चतुर्थ अध्याय में वर्णित है।

वराटिकाभि फल निर्णय
🌑प्रश्नकाल में पुत्रकारक जितने योग हों उतनी संख्या की वराटिका(कौड़ी,गोलियां,हल्दी या सुपाड़ी की गाँठ) एक स्थान पर तथा जितने लक्षण कन्या के प्राप्त हों उतनी वराटिका दुसरे स्थान पर रखते चलें।

यदि पुत्रजन्म को वराटिका अधिक हो तो पुत्र जन्म कहें।

यदि कन्या जन्म की वृत्तिकाएं अधिक हो तो कन्या का जन्म कहना चाहिए।।
👆🏽ईसका तात्पर्य मात्र इतना है की यदि पुत्र जन्म के लक्षण अधिक हो तो पुत्र जन्म अन्यथा कन्या का जन्म कहना चाहिए।

चन्द्र लग्न आरूढ़ विचार

🌑लग्न,चन्द्र तथा आरूढ़ राशि इनमे से जो बलवान हो फलकथन में उसको ग्रहण करें,शेष को त्याग देना चाहिए

ऐसा निर्देश यहाँ कथित योगों के सन्दर्भ में किया गया है।

🌑उदय लग्न बली हो तो शेष आरूद्ग या चन्द्र लग्न के फल को पीछे कर उसी से जो संकेत प्राप्त हों उन्हें ग्रहण करना चाहिए।

🌑आरूढ़ राशि के बली होने पर शेष दो को पीछे कर उसी का फल ग्रहण करें तथा चन्द्रलग्न बली होने पर उसी का उपयोग करें।

  *प्रश्न रत्न मत*

🌑प्रश्नरत्न ग्रन्थ के अनुसार यदि ओज राशि या नवांश हो तो पुत्र होता है।यदि सम राशि नवांश में लग्न में हो तो कन्या उतपन्न होती है।

🌑यदि लग्न तथा आरूढ़ दोनों के नवांश सम राशि स्थित हों तथा स्त्री ग्रहों द्वारा युत हों तो 2 कन्यायों का जन्म सूचित होता है।

यदि इसके विपरीत स्थिति हो तो 2 पुत्र का जन्म होता है।

🌑यदि पृच्छक दक्षिणांग या कुंडली के दक्षिण भाग की राशि दक्षिण हाथ से स्पर्श करे तो पुत्र जन्म का सूचक है।

इसके विपरीत वामहस्त से वामांग का स्पर्श करें या वाम राशि का स्पर्श करे तो कन्या जन्म का सूचक होता है।

🌑यदि पृच्छक दक्षिण हस्त से अपने वामांग का स्पर्श करें तो कन्या जन्मती है तथा मर जाती है यदि वह वाम हस्त से दक्षिणांग का स्पर्श करें तो पुत्र जन्मता है तथा मर जाता है।

🌑ईसी प्रकार पृच्छक के द्वारा लाया गया धन-पुष्पादि-दक्षिणा को उसने अपने दाहिंने भाग में रखा हो अथवा दक्षिण को संख्या विषम हो तो पुत्र जन्म का सूचक होता है।

🌑इसके विपरीत होने पर कन्या का जन्म सूचक समझना चाहिए।

इसी को क्रमशः पुरुश्चेष्टा स्त्रीचेष्टा कहा गया है।

  *प्रसवकाल*

🌞राशि को छोड़कर लग्नस्पष्ट की कला बना लें,उसको तिगुना कर के 50 का भाग दें,लब्ध में राशि प्राप्त होगी फिर शेष को अंश मान लें।इस फल को लग्नस्पष्ट के राश्यादि में जोड़ दें तो प्रसवकालीन सूर्य प्राप्त होगा।

🌞प्रसव काल जानने का दूसरा प्रकार यह होगा की सूर्यस्पष्ट को 108 से गुणा करें तो प्रसवकालीन चन्द्र प्राप्त होगा। राशि छोड़कर चन्द्रस्पष्ट+लग्नस्पष्ट जोड़ लें फिर उसमे 9 का भाग दें तो प्रसवकालीन सूर्य का नवांश प्राप्त होगा।

🌞प्रश्नलग्न की कक्षा या कक्ष्या के स्वामी के द्वादशांश की जो राशि होती है उसमें चन्द्रमा का गोचर भ्रमण होने पर प्रसवकाल आरम्भ होता है। उस कक्षाधिप के नवांश में चन्द्र पहुँचने पर प्रसवकाल की समाप्ति होती है।

जिस राशि में कक्षाधिपति का त्रिशांश होता है वह प्रसूति काल का लग्न होता है वह राशि यदि विषम राशि की होरा में हो तो दिन में प्रसव तथा सम राशि की होरा में हो तो रात में प्रसव होता है।

कक्षा विवेचन

🌞अष्टकवर्ग पद्धति में सूर्यादि 7 ग्रह तथा लग्न का गोचर फल कक्ष्यक्रम में प्राप्त होता है। अतः अष्टक वर्ग में कक्ष्यानुसार ग्रहों की स्थापना होती है–

👉🏻मन्दामरेज्यभूपुत्रसूर्यशुक्रे न्दुजेन्दवः।

लग्नम् कक्षाक्रमो ज्ञेयः अष्टकवर्गस्य लेखने।।👈🏻
🌞अर्थात(1)शनि,(2)गुरु,(3)मंगल,(4)सूर्य,(5)शुक्र,(6)बुध,(7)चन्द्र,(8)लग्न इस प्रकार का कक्षा क्रम अष्टकवर्ग में है आकाश में सबसे ऊपर शनि की कक्षा है फिर उससे निचे गुरु की फिर क्रमशः एक के नीचे एक इस प्रकार मंगल,सूर्य,शुक्र,बुध,चन्द्र,

तथा लग्न(पृथ्वी) हैं।
कक्ष्याधिप ज्ञान

🌞यहाँ 8 कक्ष्या या कक्षा हैं। एक राशि में 30° अंश होते हैं,इनमे 8 का भाग देने पर आठों कक्षाएं बराबर भागों में पौने चार अंश अर्थात 3°|45 की होती हैं। मेषादि द्वादश राशियों में कक्ष्या का क्रम एक जैसा ही रहता है सरलता के लिये देखें-👉🏻👇

(१)शनि 👉🏻3°|45 तक

(2)गुरु 👉🏻7°|30 तक

(3)मंगल👉🏻11°|15तक

(4)सूर्य👉🏻15°|0 तक

(5)शुक्र👉🏻18°|45 तक

(6)बुध👉🏻22°|30 तक

(7)चंद्र👉🏻26°|15 तक

(8)लग्न👉🏻30°|0 तक
🌹ये कक्षाधिप प्रत्येक राशि में उपरोक्त अंशकला में निर्धारित कक्षा में रहते हैं।🌹

🌞प्रश्नकालीन सूर्यस्पष्ट तथा चन्द्रस्पष्ट के आधार पर उनका द्रेष्काण ज्ञात करें।इनमे जो बलवान हो उसकी द्रेष्काण राशि पर जब चन्द्रमा भर्मण करेगा तो प्रसव होगा,परन्तु इनमे प्रथम द्रेष्काण होना चाहिए।यदि दूसरा द्रेष्काण प्रश्न समय हो तो उससे पांचवे द्रेष्काण में चन्द्र का गोचर संचार हो तब प्रसव होगा।

🌞इसी प्रकार प्रश्न काल में यदि सूर्य-चन्द्र का तृतीय द्रेष्काण है तो उससे नवम द्रेष्काण में चन्द्रमा के भर्मण होने पर प्रसव होगा।

🌞अथवा तात्कालिक चन्द्र की जो द्वादशांश राशि है उस संख्या की राशि में जब चन्द्र गोचर भर्मण करते पहुंचेगा तब प्रसूति होगी।
🌞प्रश्नकालीन चन्द्रमा की अंशादि को 108 से गुणा करें उनमे 30 का भाग देकर राशि ज्ञात करें।उस राशि में या उससे त्रिकोण में चंद्रमा जब गोचर भर्मण करेगा तब प्रसव होगा,यह राशि अधोमुखी होगी यदि इस राशि में गुलिक स्थित हो या इस पर गुलिक की दृष्टि हो तो प्रसव निशिचित होता है

🌞सूर्य तथा चंद्र स्पष्ट को जोड़कर इस योगस्फुट को 12 राशि से घटाकर जो राश्यादि प्राप्त होंगे उनमे चंद्रमा का गोचर भर्मण होने पर प्रसव होगा ऐसा दैवज्ञ को कहना चाहिए।
🌞चन्द्र स्पष्ट तथा लग्न स्पष्ट को जोड़िये तथा उनके योगस्फुट को 12 से गुणा करें।गुणनफल से जो राश्यादि प्राप्त हो उनसे जो नक्षत्र आवे उसमें गर्भस्थिति से दशम मास में प्रसव सुनिश्चिय रूप से कहना चाहिए।

यहाँ 12 से गुणा करने पर जब गुणनफल की राशियाँ 12 से अधिक प्राप्त हो तो 12 का भाग देना चाहिए साथ ही यह ध्यान रखना चाहिए की उक्त योगस्फुट से प्राप्त राशि को छोड़ देना चाहिए तथा मात्र अंश-कला-विकला को ही 12 से ही गुणा करना चाहिए।इनमे संख्या नही बढ़ती,सुविधा रहती है और उत्तर भी वही आता है।

🌞चन्द्र तथा सूर्य के नवांश या इनकी राशियों में जब गोचर भ्रमण वश चन्द्र का संचरण होता है तब प्रसव कहना चाहिए।
🌞प्रश्नकाल जिस द्वादशांश में होता है वह द्वादशांश राशि हो प्रसूति का लग्न होता है अथवा वह द्वादशांश राशि जिस नवांश में होती है वह राशि जन्म की लग्न राशि होती है यदि इनमे से किसी राशि के 4 वर्ग उसी राशि के हों अथवा उस राशो पर गुलिक की युति या दृष्टि हो तो निशिचित रूप से उसी राशि में प्रसूतिलग्न होता है।

यदि जन्म रात्रि में होना सिद्ध हो तो गुलिक की राशि नवांश राशि अथवा उस नवांश राशि की त्रिकोण राशि में जब चन्द्र का गोचर भर्मण होता है तब प्रसव कहना चाहिए।
🌞प्रश्नकालीन सूर्य जिस द्वादशांश में हो उसी सूर्य राशि में प्रसव होता है।अथवा उस द्वादशांश राशि से त्रिकोण राशि में प्रसवकालीन सूर्य होता है।

🌞लग्न की द्वादशांश राशि या उस द्वादशांश के स्वामी की नवंशराशि प्रसवलग्न होती है यह प्रशंकलीन सूर्य तथा प्रश्नलग्न में जो बली हो उसके अनुसार फल कहन चाहिए।जिस राशि से गुलिक का युति दृष्टि द्वारा सम्बन्ध हो वह निर्णायक राशि हुआ करती है ।।

लग्नानुसार सभी रत्नों से शुभाशुभ विचार :

जन्म कुंडली में जो ग्रह शुभ हो लेकिन वह स्वयं अशुभ, पापी व क्रूर ग्रहों से पीडत होकर कमजोर हो तो उसके प्रभाव को बढ़ाने के लिए उससे सम्बन्धी रत्न किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह पर पहनना चाहिए ! यहाँ दो बातें ध्यान रखनी चाहिए- पहली बात रत्न वही धारण करना चाहिए जो लग्न को नुकसान ना पहुचाये अर्थात लग्न से मित्रवत (स्थिति व पंचधा मैत्री) होना चाहिए और दूसरी बात ध्यान देने की है की सूर्य और चन्द्रमा को छोडकर शेष ग्रह २-२ राशियों के स्वामी है, जिससे यदि कोई ग्रह एक शुभ और एक अशुभ भाव का स्वामी हो तो उसे प्रभावी बनाने से दोनों भावों के फलों में वृद्धि होगी इस कारण से ऐसे ग्रह का रत्न धारण बहुत ही विचार से करना चाहिए !सभी लग्न में कुछ ग्रहों के रत्नों को मोटे तौर पे त्याग दिया जाता है और कुछ ग्रहों के रत्नों को उपयोग में लेते है ! लग्नों की स्थिति अनुसार सभी का फल निम्नलिखित है !

मेष लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
पंचमेश, त्रिकोणेश, योगकारक
अतीव शुभ
चंद्र – मोती
चतुर्थेश, केन्द्रेश, मित्र, तटस्थ
सम*
मंगल – मूंगा
लग्नेश, अष्टमेश
शुभ#
बुध – पन्ना
पराक्रमेश, षष्ठेश, अकारक, शत्रु
अशुभ
गुरु – पुखराज
भाग्येश, व्ययेश, त्रिकोणेश, मित्र
सम
शुक्र – हीरा
मारकेश, केन्द्रेश, शत्रु
अशुभ
शनि – नीलम
आयेश, केन्द्रेश, बाधक
सम

*केंद्र के ग्रह अपनी शुभता या अशुभता या छोड देते है ! यदि दो राशियों के स्वामी है तो अपनी दूसरी राशि का फल करते है !

लग्नेश पर अष्टमेश होने का दोष नहीं लगता है !

वृष लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
केन्द्रेश, सुखेश, शत्रु, तटस्थ
सम
चंद्र – मोती
तृतीयेश, पराक्रमेश
अशुभ
मंगल – मूंगा
सप्तमेश, मारकेश, व्ययेश
अशुभ
बुध – पन्ना
पंचमेश, त्रिकोणेश, धनेश
शुभ
गुरु – पुखराज
अष्टमेश, आयेश, बाधक
अशुभ
शुक्र – हीरा
लग्नेश, षष्ठेश
शुभ
शनि – नीलम
भाग्येश, कर्मेश, योगकारक
शुभ

मिथुन लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
अकारक, पराक्रमेश
अशुभ
चंद्र – मोती
धनेश, तटस्थ
सम
मंगल – मूंगा
षष्ठेश, एकादशेश, अकारक
अशुभ
बुध – पन्ना
लग्नेश, चतुर्थेश, योगकारक
शुभ
गुरु – पुखराज
सप्तमेश, कर्मेश, बाधक, मारक
अशुभ
शुक्र – हीरा
त्रिकोणेश, व्ययेश, मित्र
शुभ
शनि – नीलम
भाग्येश, अष्टमेश
सम

कर्क लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
धनेश, मित्र, सामान्य मारक
सम
चंद्र – मोती
लग्नेश, कारक
शुभ
मंगल – मूंगा
योगकारक, त्रिकोणेश, कर्मेश
अतीव शुभ
बुध – पन्ना
अकारक, पराक्रमेश, व्ययेश
अशुभ
गुरु – पुखराज
षष्ठेश, भाग्येश, तटस्थ
सम
शुक्र – हीरा
बाधक, केन्द्रेश, आयेश
अशुभ
शनि – नीलम
मारकेश, अष्टमेश
अशुभ

सिंह लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
लग्नेश, कारक
शुभ
चंद्र – मोती
व्ययेश, मित्र, तटस्थ
सम
मंगल – मूंगा
योगकारक, त्रिकोणेश, केन्द्रेश
शुभ
बुध – पन्ना
मारक, आयेश, एकादशेश
अशुभ
गुरु – पुखराज
पंचमेश, अष्टमेश, तटस्थ
सम
शुक्र – हीरा
केन्द्रेश, तृतीयेश
अशुभ
शनि – नीलम
अकारक, मारक, षष्ठेश
अशुभ

कन्या लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
व्ययेश
अशुभ
चंद्र – मोती
आयेश, तटस्थ
सम
मंगल – मूंगा
अकारक, अष्टमेश, तृतीयेश
अशुभ
बुध – पन्ना
योगकारक, लग्नेश
अतीव शुभ
गुरु – पुखराज
बाधक, केन्द्रेश
अशुभ
शुक्र – हीरा
भाग्येश, धनेश, मारकेश
सम
शनि – नीलम
त्रिकोणेश, षष्ठेश, मित्र
शुभ

तुला लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
लाभेश, बाधक, शत्रु
अशुभ
चंद्र – मोती
कर्मेश, केन्द्रेश, तटस्थ
सम
मंगल – मूंगा
मारकेश, धनेश
अशुभ
बुध – पन्ना
त्रिकोणेश, व्ययेश, मित्र
सम
गुरु – पुखराज
अकारक, त्रिषडायेश, शत्रु
अशुभ
शुक्र – हीरा
लग्नेश, षष्ठेश, कारक
शुभ
शनि – नीलम
योगकारक, त्रिकोणेश
अतीव शुभ

वृश्चिक लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
कर्मेश, मित्र, कारक
अतीव शुभ
चंद्र – मोती
भाग्येश, योगकारक, बाधक
सम
मंगल – मूंगा
लग्नेश, कारक, षष्ठेश
शुभ
बुध – पन्ना
अकारक, अष्टमेश
अशुभ
गुरु – पुखराज
धनेश, पंचमेश, मारक, तटस्थ
सम
शुक्र – हीरा
सप्तमेश, मारकेश, व्ययेश
अशुभ
शनि – नीलम
तृतीयेश, केन्द्रेश
अशुभ

धनु लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
त्रिकोणेश, भाग्येश
अतीव शुभ
चंद्र – मोती
अष्टमेश, मित्र, तटस्थ
सम
मंगल – मूंगा
पंचमेश, व्ययेश
सम
बुध – पन्ना
बाधक, मारक, केन्द्रेश
अशुभ
गुरु – पुखराज
त्रिकोणेश, लग्नेश, सुखेश
शुभ
शुक्र – हीरा
अकारक, त्रिषडायेश
अशुभ
शनि – नीलम
मारक, पराक्रमेश, शत्रु
अशुभ

मकर लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
अष्टमेश, तटस्थ
सम
चंद्र – मोती
सप्तमेश, केंद्रश, तटस्थ
सम
मंगल – मूंगा
बाधक, सुखेश
अशुभ
बुध – पन्ना
भाग्येश, षष्ठेश
सम
गुरु – पुखराज
अकारक, व्ययेश
अशुभ
शुक्र – हीरा
योगकारक, कर्मेश, मित्र
अतीव शुभ
शनि – नीलम
लग्नेश, धनेश, कारक
शुभ

कुंभ लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
सप्तमेश, तटस्थ
सम
चंद्र – मोती
षष्ठेश, अकारक
अशुभ
मंगल – मूंगा
केन्द्रेश, तृतीयेश, शत्रु
अशुभ
बुध – पन्ना
पंचमेश, अष्टमेश
सम
गुरु – पुखराज
मारक, एकादशेश
अशुभ
शुक्र – हीरा
योगकारक, सुखेश, भाग्येश
अतीव शुभ
शनि – नीलम
कारक, लग्नेश, व्ययेश
शुभ

मीन लग्न :

ग्रह – रत्न
स्थिति विशेष
फल
सूर्य – माणिक्य
षष्ठेश, तटस्थ
सम
चंद्र – मोती
पंचमेश, कारक
शुभ
मंगल – मूंगा
भाग्येश, धनेश, मारक
सम
बुध – पन्ना
बाधक, मारक, चतुर्थेश
अशुभ
गुरु – पुखराज
योगकारक, लग्नेश, कारक
अतीव शुभ
शुक्र – हीरा
अकारक, अष्टमेश, पराक्रमेश
अशुभ
शनि – नीलम
लाभेश, व्ययेश
अशुभ
[: जगद्गुरु श्रीकृष्ण का उपदेश सम्पूर्ण गीता सार बीस वाक्यों में।
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हमारी जिंदगी में सुख और दुःख दोनों लगे हुए है, सुख के समय तो हम खुश रहते है लेकिन दुःख के समय यह हमे पहाड़ सा लगने लगता है और हम भगवान को इसका जिम्मेंदार ठहराने लगते है ।

परन्तु दुःख या संकट हमारे जिंदगी के लिए आवशयक है क्योकि ये हमे हमारे आगे की जिंदगी के लिए महत्वपूर्ण सबक दे कर जाते है तथा जब भी हमारे जिंदगी में दुःख या संकट आते है तब भगवान हमारी मदद करते है व हमे उससे लड़ने की ताकत देते है।

हिन्दू धर्म के पवित्र ग्रन्थ भगवद गीता में यह बताया गया है की मनुष्य अपने जीवन को किस तरह बेहतर ढंग से जी सकता है और अपने हर परेशानियों पर विजय पा सकता है. भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान करुक्षेत्र में अर्जुन को भगवद गीता का ज्ञान दिया था।

भगवद गीता में 18 अध्याय और लगभग 700 श्लोक है जिनमे में जीवन के हर समस्या का समाधान करने का उपाय है.भगवत गीता के ये श्लोक सिर्फ़ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशो में भी लोगो के मार्गदर्शक है तथा भगवद गीता एक नई दिशा प्रदान करने वाला ग्रन्थ है. आइये जानते है भगवत गीता के वे 20 श्लोक के सार जो निश्चित ही आपमें एक नई ऊर्जा भर देंगे !

1 . मन की लगाम सदैव अपने हाथो में रखो :- यदि मनुष्य अपने मन को काबू पर रखे तो वह दुनिया में किसी भी असम्भव कार्य को सम्भव में परिवर्तित कर सकता है. जो मन को नियंत्रित नहीं करते उनके लिए वह शत्रु के समान कार्य करता है।

2 . अपने विश्वास को अटल बनाओ :- कोई भी मनुष्य अपने विश्वास से निर्मत होता है तथा जैसा वह विश्वास करता है वैसा बन जाता है।

3 . क्रोध मनुष्य का दुश्मन है :- क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है और जब बुद्धि के व्यग्र नष्ट होने से बुद्धि की तर्क शक्ति समाप्त हो जाती है तो मनुष्य के पतन की शुरुवात होने लगती है।

4 . संदेह करना त्याग दो :- संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता न तो इस लोक में है और नहीं परलोक में।

5 . उठो और मजिल की तरफ बढ़ो :- आत्म-ज्ञान रूपी तलवार उठाओ तथा इसके माध्यम से अपने ह्रदय के अज्ञान रूपी संदेह को काटकर अलग कर दो, अनुशाषित रहो, उठो।

6 . इन तीन चीज़ो से सदैव दूर रहो :- भगवद गीता में भगवान कृष्ण ने अर्जुन को संदेश देते हुए वासना, क्रोध और लालच को नर्क के तीन मुख्य द्वारा बतलाया है।

7 . हर एक पल कुछ सिखाता है :- मनुष्य को उसके जिंदगी में घटित हो रहे हर एक छोटी – बड़ी चीज़ कुछ न कुछ सिख देकर जाती है. भगवद गीता में कहा गया ही की इस जीवन में न कुछ खोता है और न ही कुछ व्यर्थ होता है।

8 . अभ्यास आपको सफलता दिलाएगा :- मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन, लेकिन अभ्यास के द्वारा उसे भी वश में किया जा सकता है।

9 . सम्मान के साथ जियो :- लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे परन्तु उनको अपने पर हावी मत होने दो. एक सम्मानित व्यक्ति के लिए अपमान मृत्यु से भी बदतर है।

10 . खुद पर विश्वास रखो :- मनुष्य जो चाहे वह बन सकता है, विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करें।

11 . कमजोर मत बनना :- हर व्यक्ति का विश्वास उसकी प्रकृति के अनुसार होता है।

12 . मृत्यु सत्य है उसे नकारा नहीं जा सकता :- जन्म लेने वाले के लिए मृत्य उतनी ही निश्चित है जितना की मृत होने वाले के लिए जन्म लेना. इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।

13 . ऐसा मत करो जिस से खुद को तकलीफ होती हो :- अप्राकृतिक कर्म बहुत तनाव पैदा करता है।

14 . मेरे लिए सब एक समान है :- भगवान श्री कृष्णा अर्जुन को भगवद का ज्ञान देते हुए कहते है की में सभी प्राणियों को समान रूप से देखता हु, न कोई मुझे कम प्रिय है न अधिक. लेकिन जो मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते है वो मेरे भीतर रहते है और में उनके जीवन में आता हूँ।

15 . बुद्धिमान बनो :- संसार के सुखो में खोकर अपने जीवन के मुख्य लक्ष्य से मत भटको. सदैव अपने लक्ष्य की ओर अपना सम्पूर्ण ध्यान केंद्रित करो।

16 . सभी मुझ से है :- भगवान श्री कृष्ण कहते है की में मधुर सुगंध हु. में ही अग्नि की ऊष्मा हु , सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम हूँ।

17 . में प्रत्येक वस्तु में वास करता हु :- भगवान प्रत्येक वस्तु में है तथा सबसे ऊपर भी।

18 . ज्ञान व्यक्ति को दूसरों से अलग बनाता है :- भगवान कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते है की में उन्हें ज्ञान देता हु जो सदैव मुझ से जुड़े रहते है और जो मुझसे प्रेम करते है।

19 . खुद का कार्य करो :- किसी और का काम पूर्णता से करने से अच्छा है खुद का काम करो भले ही उसे अपूर्णता से क्यों न करें।

20 . डर को छोड़ कर अपने लक्ष्य की ओर बढ़ो :- उससे मत डरो जो कभी वास्तविकता नहीं है, न कभी था और न कभी होगा. जो वास्त्विक है व हमेशा था और कभी नष्ट नहीं होगा।📚🖍🙏🙌
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[: चावल का जिक्र किसी भी बाइबिल में नहीं आता, ईजिप्ट की सभ्यता भी इसका जिक्र नहीं करती। पश्चिम की ओर पहली बार इसे सिकंदर लेकर गया और अरस्तु ने इसका जिक्र “ओरीज़ोन” नाम से किया है। नील की घाटी में तो पहली बार 639 AD के लगभग इसकी खेती का जिक्र मिलता है। ध्यान देने लायक है कि पश्चिम में डिस्कवरी और इन्वेंशन दो अलग अलग शब्द हैं और दोनों काम की मान्यता है। दूसरी तरफ भारत में अविष्कार की महत्ता तो है, लेकिन अगर पहले से पता नहीं था और किसी ने सिर्फ ढूंढ निकाला हो तो खोज के लिए कोई विशेष सम्मान नहीं मिलता।

इस वजह से पश्चिमी देशों के वास्को डी गामा और कोलंबस जैसों को समुद्री रास्ते ढूँढने के लिए अविष्कारक के बदले खोजी की मान्यता मिलती है लेकिन भारत जिसने पूरी दुनियां को चावल की खेती सिखाई उसे स्वीकारने में भारतीय लोगों को ही हिचक होने लगती है। कैंसर के जिक्र के साथ जब पंजाब का जिक्र किया था तो ये नहीं बताया था कि पंजाब सिर्फ भारत का 17% गेहूं ही नहीं उपजाता, करीब 11% धान की पैदावार भी यहीं होती है। किसी सभ्यता-संस्कृति में किसी चीज़ का महत्व उसके लिए मौजूद पर्यायवाची शब्दों में भी दिखता है। जैसे भारत में सूर्य के कई पर्यायवाची सूरज, अरुण, दिनकर जैसे मिलेंगे, सन (Sun) के लिए उतने नहीं मिलते।

भारतीय संस्कृति में खेत से धान आता है, बाजार से चावल लाते हैं और पका कर भात परोसा जाता है। शादियों में दुल्हन अपने पीछे परिवार पर, धान छिड़कती विदा होती है जो प्रतीकात्मक रूप से कहता है तुम धान की तरह ही एकजुट रहना, टूटना मत। तुलसी के पत्ते भले गणेश जी की पूजा से हटाने पड़ें, लेकिन किसी भी पूजा में से अक्षत (चावल) हटाना, तांत्रिक विधानों में भी नामुमकिन सा दिखेगा। विश्व भर में धान जंगली रूप में उगता था, लेकिन इसकी खेती का काम भारत से ही शुरू हुआ। अफ्रीका में भी धान की खेती जावा के रास्ते करीब 3500 साल पहले पहुंची। अमेरिका-रूस वगैरह के लिए तो ये 1400-1700 के लगभग, हाल की ही चीज़ है।

जापान में ये तीन हज़ार साल पहले शायद कोरिया या चीन के रास्ते पहुँच गया था। वो संस्कृति को महत्व देते हैं, भारत की तरह नकारते नहीं, इसलिए उनका नए साल का निशान धान के पुआल से बांटी रस्सी होती है। धान की खेती के सदियों पुराने प्रमाण क्यों मिल जाते हैं ? क्योंकि इसे सड़ाने के लिए मिट्टी-पानी-हवा तीनों चाहिए। लगातार हमले झेलते भारत के लिए इस वजह से भी ये महत्वपूर्ण रहा। किसान मिट्टी की कोठियों में इसे जमीन में गहरे गाड़ कर भाग जाते और सेनाओं के लौटने पर वापस आकर धान निकाल सकते थे। पुराने चावल का मोल बढ़ता ही था, घटता भी नहीं था। हड़प्पा (लोथल और रंगपुर, गुजरात) जैसी सभ्यताओं के युग से भी दबे धान खुदाई में निकल आये हैं।

नाम के महत्व पर ध्यान देने से भी इतिहास खुलता है। जैसे चावल के लिए लैटिन शब्द ओरीज़ा (Oryza) और अंग्रेजी शब्द राइस (Rice) दोनों तमिल शब्द “अरिसी” से निकलते हैं। अरब व्यापारी जब अरिसी अपने साथ ले गए तो उसे अल-रूज़ और अररुज़ बना दिया। यही स्पेनिश में पहुंचते पहुँचते अर्रोज़ हो गया और ग्रीक में ओरिज़ा बन गया। इटालियन में ये रिसो (Riso), in हो गया, फ़्रांसिसी में रिज़ (Riz)और लगभग ऐसा ही जर्मन में रेइज़ (Reis) बन गया। संस्कृत में धान को व्रीहि कहते हैं ये तेलगु में जाकर वारी हुआ, अफ्रीका के पूर्वी हिस्सों में इसे वैरी (Vary) बुलाया जाता है। फारसी (ईरान की भाषा) में जो ब्रिन्ज (Brinz) कहा जाता है वो भी इसी से आया है।

साठ दिन में पकने वाला साठी चावल इतने समय से भारत में महत्वपूर्ण है कि चाणक्य के अर्थशास्त्र में भी उसका जिक्र आता है। गौतम बुद्ध के पिता का नाम शुद्धोधन भी धान से आता है और बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति के समय भी सुजाता के खीर खिलाने का जिक्र आता है। एक किस्सा ये भी है कि गौतम बुद्ध के एक शिष्य को किसी साधू का पता चला जो अपने तलवों पर कोई लेप लगाते, और लेप लगते ही हवा में उड़कर गायब हो जाते। बुद्ध के शिष्य नागार्जुन भी उनके पास जा पहुंचे और शिष्य बनकर चोरी छिपे ये विधि सीखने लगे। एक दिन उन्होंने चुपके से साधू की गैरमौजूदगी में लेप बनाने की कोशिश शुरू कर दी।

लेप तैयार हुआ तो तलवों पर लगाया और उड़ चले, लेकिन उड़ते ही वो गायब होने के बदले जमीन पर आ गिरे। चोट लगी लेकिन नागार्जुन ने पुनः प्रयास किया। गुरु जबतक वापस आते तबतक कई बार गिरकर नागार्जुन खूब खरोंच और नील पड़वा चुके थे। साधू ने लौटकर उन्हें इस हाल में देखा तो घबराते हुए पूछा कि ये क्या हुआ ? नागार्जुन ने शर्मिंदा होते आने का असली कारण और अपनी चोरी बताई। साधू ने उनका लेप सूंघकर देखा और हंसकर कहा बेटा बाकी सब तुमने ठीक किया है, बस इसमें साठी चावल नहीं मिलाये। मिलाते तो लेप बिलकुल सही बन जाता !

सिर्फ किस्से-कहानियों में धान-चावल नहीं है, धान-चावल की नस्लों को सहेजने के लिए एक जीन बैंक भी है। अपनी ही संस्कृति पर शर्मिंदा होते भारत में नहीं है ये इंटरनेशनल राइस रिसर्च इंस्टिट्यूट (IRRI) फिल्लिपिंस में है। फिल्लिपिंस का ही बनाउ (Banaue) चावल की खेती के लिए आठवें आश्चर्य की तरह देखा जाता है। यहाँ 26000 स्क्वायर किलोमीटर के इलाके में चावल के खेत हैं। ये टेरेस फार्मिंग जैसी जगह है, पहाड़ी के अलग अलग स्तर पर, कुछ खेत तो समुद्र तल से 3000 फीट की ऊंचाई पर भी हैं। इनमें से कुछ खेत हजारों साल पुराने हैं और सड़ती वनस्पति को लेकर पहाड़ी से बहते पानी से एक ही बार में खेतों में सिंचाई और खाद डालने, दोनों का काम हो जाता है।

इस आठवें अजूबे के साथ नौवां अजूबा ये है कि भारत में जहाँ चावल की खेती 16000 से 19000 साल पुरानी परम्परा होती है, वो अपनी परंपरा को अपना कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाता ! कृषि पर शर्माने के बदले उसे भी स्वीकारने की जरूरत तो है ही।

NaimisheyShankhnaad

(जानकारी पुरानी नेशनल बुक ट्रस्ट की बच्चों की किताबों से, काफी कुछ इन्टरनेट पर भी मौजूद होगा ही)

पिछले एक दशक के दौरान पता नहीं कब भटिंडा से बीकानेर जाने वाली एक ट्रेन का नाम “कैंसर एक्सप्रेस” पड़ गया। लोग अब ऐसे नाम से ट्रेन को बुलाये जाने पर चौंकते नहीं। कोई प्रतिक्रिया ही ना आना और भी अजीब लगता है। पंजाब के भटिंडा, फरीदकोट, मंसा, संगरूर जैसे कुछ जिले जिनको मालवा भी कहा जाता था, वो पूरा इलाका ही कैंसर को आम बीमारी मानने लगा है। इसकी वजह भी बिलकुल सीधी-साधारण सी है।

हरित क्रांति लाने में जुटे, कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि इतने खेत में पचास मिलीलीटर कीटनाशक लगेगा, उससे सुनकर आये किसान ने सोच ये चार पांच चम्मच में क्या होगा भला ? तो उसने पचास का सौ कर दिया लेकिन पंजाब का “किसान” खुद तो खेती करता नहीं उसने अपने बिहारी मजदूर को कीटनाशक छिड़कने दिया। मजदूर ने सोचा ये भी कम है, तो सौ बढ़कर डेढ़ सौ मिलीलीटर हो गया।

जब ज्ञानी-गुनी जन चाय और तम्बाकू में कैंसर की वजह ढूंढ रहे थे तो उनके पेट में लीटर-किलो के हिसाब से पेस्टीसाइड जा रहा था। पंजाब के किसान प्रति हेक्टेयर 923 ग्राम कीटनाशक इस्तेमाल कर रहे होते हैं, जबकि देश भर में ये औसत 570 ग्राम/हेक्टयेर है। पंजाब में सिर्फ खाने का गेहूं ही नहीं उपज रहा होता यहाँ कपास भी उपजता है। वैज्ञानिक मानते हैं की कपास पर इस्तेमाल होने इन वाले 15 कीटनाशकों में से 7 या तो स्पष्ट रूप से या परोक्ष रूप से कैंसर की वजह होते हैं।

खेती भारत में एक परंपरा है, संस्कृति है। संस्कृति वो नहीं होती जो आप कभी पर्व-त्यौहार पर एक बार कभी साल छह महीने में करते हों, वो हर रोज़ सहज ही दोहराई जा रही चीज़ होती है। अपने मवेशी को चारा देना, खेतों को देखने जाना, बीज संरक्षण, जल संसाधन ये सब रोज दोहराई जा रही संस्कृति का ही हिस्सा हैं। खाने में गेहूं की रोटी ना हो, या पहनने को सूती-कपास ना हो ऐसा एक दो दिन के लिए करना भी भारत के एक बड़े वर्ग के लिए अजीब सा हाल हो जाएगा।

इस संस्कृति को हमने छोड़ा कैसे ? ज्यादा उपज के लालच में प्रकृति से छेड़छाड़ भर नहीं की है। सबसे पहले उसके लिए अपनी परम्पराओं को तिलांजलि दे डाली। बीज जो संरक्षित होते थे, स्थानीय लाला के पास से खरीदे-कर्ज पे लिए जाते थे उनके लिए कहीं दूर की समाजवादी दिल्ली पर आश्रित रहना शुरू किया। जो तकनीक दादा-दादी की गोद में बैठे सीख ली थी, वो बेकार मान ली। फिल्मों ने बताया लाला धूर्त, पंडित पाखंडी, जमींदार जालिम है। हमने एक, दो, चार बार, बार-बार देखा और उसे ही सच मान लिया।

बार बार एक ही बात देखते सुनते हमने मान लिया कि पुराना, परंपरागत तो कोई ज्ञान-विज्ञान है ही नहीं हमारे पास ! “स्वदेश” का इंजिनियर कहीं अमेरिका से आएगा तो पानी-बिजली लाएगा, गाँव में इनका कोई पारंपरिक विकल्प कैसे हो सकता है ? नतीजा ये हुआ कि रोग प्रतिरोधक, कीड़े ना लगने वाली फसलें पिछले कुछ ही सालों में गायब हो गई। बीज खरीदे जाने लगे, संरक्षित भी किये जाते हैं ये कोई सोचता तक नहीं। किसी ने जानने की जहमत नहीं उठाई की आर.एच.रिछरिया के भारत के उन्नीस हज़ार किस्म के चावल कहाँ गए।

उनकी किताब 1960 के दशक में ही आकर खो गई और जब बरसों बाद कोरापुट (ओड़िसा) के किसान डॉ. देबल देव के साथ मिलकर धान के परंपरागत बीज संरक्षित करने निकले तो भी वो करीब दो हज़ार बीज एक छोटे से इलाके से ही जुटा लेने में कामयाब हो गए। इसमें जो फसलें हैं वो बीमारी-कीड़ों से ही मुक्त नहीं हैं। कुछ ऐसी हैं जो कम से कम पानी में, कोई दूसरी खारे पानी में, तो कोई बाढ़ झेलकर भी बच जाने वाली नस्लें हैं। इनमें से किसी को कीटनाशक की भी जरूरत नहीं होती इसलिए इनको लगाने का खर्च भी न्यूनतम है।

रासायनिक खाद-कीटनाशक के इस्तेमाल को बंद कर के उत्तर पूर्व का मनिपुर करीब करीब 100% जैविक (organic) खेती करने लगा है। अन्य राज्यों में भी किसानों ने समाजवादी भाषण सुनना बंद कर के जैविक खेती की शुरुआत की है। कम पढ़े लिखे के मुकाबले अब शिक्षित युवा भी खेती में आने लगे हैं। संस्कृति से कट चुके किसानों के परिवार जहाँ मजदूरी के लिए शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं, वहीँ युवाओं का एक बड़ा वर्ग खेती की तरफ भी लौटने लगा है।

पंजाबी पुट लिए अक्षय कुमार अभिनीत एक फिल्म आई थी “चांदनी चौक टू चाइना”। वहां आलू के अन्धविश्वास में जकड़े नायक को उसका मार्शल आर्ट्स का गुरु सिखाता है कि मुझे तुम्हारी उन हज़ार मूव्स से खतरा नहीं जिसे तुमने एक बार किया है, मुझे उस एक मूव से डर है जिसका अभ्यास तुमने हज़ार बार किया है। नैमिषारण्य में जब संस्कृति के रोज दोहराए जाने वाली चीज़ की बात हो रही थी तो मेरे दिमाग में कोई कला-शिल्प, नाटक-नृत्य नहीं आ रहे थे। मेरे दिमाग में रोटी-कपड़े के लिए की जा रही खेती चल रही थी जो रोज की जाती है। हमारी संस्कृति तो कृषि है।

बाकी संस्कृति को किसी आयातित विचारधारा ने कैंसर की तरह जकड़ लिया है, या फिर संस्कृति को छोड़कर, आयातित खाते-सोचते-पहनते हम कैंसर की जकड़ में आ गए हैं, ये एक बड़ा सवाल होता है। और बाकी जो है, सो तो हैइये है !

चावल की दो किस्में होती है | कच्चा चावल और पक्का चावल कहते हैं कहीं कहीं, कहीं अरबा और उसना | अगर धान को उबलने के बाद चावल बना है तो वो बेकार माना जाता है आयुर्वेद में | कच्चा या अरबा चावल को अक्षत की तरह पूजा में इस्तेमाल किया जाता है | जो तिलक लगाते समय आपके सर पर चिपकाये जाते हैं | आयुर्वेद का हिसाब देखें तो इन्हें पीस कर पिया जाता है, या थोड़ी देर भिगो कर खाया जाता है शक्ति के लिए | इसके साथ इस्तेमाल होती है हल्दी | ये जख्म, चोट को ठीक करने के लिए इस्तेमाल होती है |
अब जो दूसरी चीज़ उठाई जाती थी उसे देखते हैं | पान उठाया जाता था | कहावत हो ती है आज भी, किसी मुश्किल काम का बीड़ा उठाना |
भाई ये जो बारात निकलते समय की परम्पराएँ थी वो किसके लिए ? हमेशा से तो होती नहीं थी ये ! फिर अचानक गजनवी के हमले के बाद से बारात के साथ निकलने वाले बीड़ा क्यों उठाने लगे ? कौन सा भारी काम करने निकलते थे ? ये चावल एनर्जी के लिए ये हल्दी चोट के लिए ? कौन हमला करता था बारात पर ? जाहिर है की जो लोग दामाद के पैर छूने को तैयार होते हैं वो तो नहीं ही करते होंगे न ?
फिर कौन थे ?
समाज शास्त्र पढ़ा तो है आपने ! परम्पराएँ ऐसे ही नहीं बनती साहब | शरमाते क्यों हैं बताइए न, कौन हमला करता था बारात पर ?
✍🏼 आनन्द कुमार जी की पोस्टों से संग्रहित

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