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भाग्योदयऔरकैरियरजन्मस्थानसेदूरकिनलोगोकाहोताहैऔरक्यों??? अमूमन ज्यादातर लोगों की कुंडली मे ऐसे राजयोग ,और अच्छी सफलता के योग होते है जो जन्मस्थान से दूर भेजकर ही या जातक/जातिका के स्वयम जन्मस्थान से दूर रहकर ही वह राजयोग, सफलता देते है मतलब भाग्योदय और कैरियर में सफलता अपना जन्मनिवास या जन्मस्थान छोड़ने के बाद ही पूर्ण भाग्योदय, अच्छा कैरियर निर्माण हो पाता है इसके विपरीत यदि ऐसे जातक/जातिका जन्मस्थान से दूर नही होते तब कैरियर और भाग्य की उन्नति ज्यादा नही हो पाती साथ ही कितनी दूर जन्मस्थान/निवास स्थान से दूर रहकर सफलता मिलेगी यह निर्भर करेगा ग्रह कितने दूर भाग्योदय और अच्छा कैरियर कर रहे है।। #कुंडली का नवा भाव भाग्य का तो दसवाँ भाव कैरियर के होता है और 12+8वा भाव जन्मस्थान या निवास स्थान से दूर का ह अब जब भी नवे य दसवे भाव का संबंध किसी भी तरह से 12वे भाव या 12वे भाव के स्वामी से बनेगा या आठवे भाव या आठवे भाव के स्वामी से शुभ स्थिति में बनेगा और अच्छे कैरियर और भाग्योदय की स्थिति ग्रहों की है तब जन्मस्थान से दूर जाकर ही भाग्योदय और कैरियर उन्नति होगी और सही रास्ता मिलेगा, भगयोदय ,कैरियर के संबंध 12वे या 8से भाव(दूर)के भाव से बन गया है।जब ऐसे योगों पर ज्यादा से ज्यादा शनि राहु केतु का प्रभाव या संबंध होता है तब दूरी भाग्योदय आउट कैरियर उन्नति की जन्मस्थान से बाहर जाने की ज्यादा होती है यहाँ यही मुख्य बात है कि कितनी दूर जाकर या कुछ पास में ही जाकर भाग्योदय होगा।अब इस बात को कुछ उदाहरणो से समझते हैं:- #उदाहरणअनुसार1:- कर्क लग्न, कर्क लग्न में दसवे भाव+नवे भाव का स्वामी मंगल+गुरु होते है और यहाँ बारहवे भाव का स्वामी बुध बनता है अब यहाँ बलवान बुध के साथ बलवान मंगल+गुरु का संबंध बन जाये तब यहाँ भाग्योदय भी और कैरियर उन्नति भी जन्मस्थान से दूर होगा, अब यह संबंध किसी केंद्र त्रिकोण स्थान में है कुंडली के तो कम दूरी और केंद्र 1,4,7,10 त्रिकोण5,9 भाव स्व बाहर है संबंध तब दूरी जन्मस्थान से बाहर की ज्यादा होगी।। #उदाहरणअनुसार2:- कन्या लग्न, कन्या लग्न में अब बारहवे भाव का स्वामी सूर्य और दसवे भाव का स्वामी बुध बनता है अब बुध सूर्य यहां संबंध कर ले तब बाहर जाकर ही कैरियर उन्नति अच्छी है, साथ ही इस संबंध पर राहु या शनि का प्रभाव आ जाये जैसे सूर्य बुध के साथ शुभ स्थिति में राहु या शनि बैठ जाएगा तब विदेश जितनी दूरी रहेगी कैरियर सफलता की और यह संबंध कुंडली के केंद्र त्रिकोण भावों से बाहर हुआ तब विदेश जाकर ही कैरियर सफलता मिलेगी।। #उदाहरण_अनुसार3:- वृश्चिक लग्न अनुसार, वृश्चिक लग्न में चन्द्रमा नवे भाव(भाग्य स्वामी)और शुक्र बारहवे भाव(जन्मशहर) से बाहर स्वामी होता है अब या तो चन्द्र शुक्र का संबंध हो जाये और दोनों बलवान हो तो भाग्योदय जन्मस्थान से दूर होगा या भाग्यस्वामी चन्द्रमा स्वयम बारहवे भाव या बारहवे भाव का स्वामी शुक्र स्वयम नवे भाव मे आकर बैठे या दृष्टि से देखे तो ऐसी स्थिति भी जन्मस्थान से बाहर ही भाग्योदय कराएगी।अब इस शुक्र चन्द्र पर यहां राहु शनि से संबंध हुआ या नवे/बारहवे भाव का सम्बन्ध शनि शुक्र से हुआ तब भी दूर जाकर भाग्योदय होगा।। इस तरह कैरियर उन्नति, कैरियर निर्माण योगों में, भाग्योदय योगों का संबंध जितना ज्यादा 12वे, 8वे भावो से में जाकर होगा मतलब केंद्र-त्रिकोण भाव(कुंडली के 1,4,5,7,9,10 भाव)से बाहर होगा उतनी अधिक दूरी होगी या शनि राहु से होगा तब भी दूरी अधिक रहेगी जैसे और इनसे नही होगा तब दूरी कम जैसे 60-70 किलो मीटर, राहु शनि के प्रभाव से विदेश या 200-300किलो मीटर और केंद्र त्रिकोण से बाहर ग्रह बैठने भी काफी दूर जाकर भाग्योदय और कैरियर बनेगा।। #नोट:-किस दिशा में भाग्योदय और कैरियर सफलता अच्छी रहेगी यह भी ग्रहों की दिशाओं से जाना जा सकता है।।

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