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: जै गणेश जै महाकाल: जीवन में प्रॉब्लम तो सब को आती है किसी को छोटी किसी को बड़ी किसी को बहुत बड़ी लेकिन उसका हल निकलना और भी कठिन हो जाता है जब तक मन्थन exact problem का पता न हो
Send कीजिये आपकी कूण्डली चार्ट ओर प्रश्न problem और और जाने उसका हल बिना किसी जिझक के paid srvis
महाकाल: प्रत्येक जातक की कुंडली में अशुभ
ग्रहों की स्थिति अलग-अलग रहती है,
परंतु कुछ कर्मों के आधार पर भी ग्रह आपको अशुभ
फल देते हैं। व्यक्ति के कर्म-कुकर्म के द्वारा किस प्रकार
नवग्रह के अशुभ फल प्राप्त होते हैं, आइए जानते हैं :
चंद्र : सम्मानजनक स्त्रियों को कष्ट देने जैसे, माता,
नानी, दादी, सास एवं इनके पद के समान
वाली स्त्रियों को कष्ट देने एवं किसी से
द्वेषपूर्वक ली वस्तु के कारण चंद्रमा अशुभ फल
देता है।
बुध : अपनी बहन अथवा बेटी को कष्ट
देने एवं बुआ को कष्ट देने, साली एवं
मौसी को कष्ट देने से बुध अशुभ फल देता है।
इसी के साथ हिजड़े को कष्ट देने पर
भी बुध अशुभ फल देता है।
गुरु : अपने पिता, दादा, नाना को कष्ट देने अथवा इनके समान सम्मानित
व्यक्ति को कष्ट देने एवं साधु संतों को कष्ट देने से गुरु अशुभ फल
देता है।
सूर्य : किसी का दिल दुखाने (कष्ट देने),
किसी भी प्रकार का टैक्स
चोरी करने एवं
किसी भी जीव
की आत्मा को ठेस पहुँचाने पर सूर्य अशुभ फल
देता है।
शुक्र : अपने जीवनसाथी को कष्ट देने,
किसी भी प्रकार के गंदे वस्त्र पहनने, घर
में गंदे एवं फटे पुराने वस्त्र रखने से शुभ-अशुभ फल देता है।
मंगल : भाई से झगड़ा करने, भाई के साथ धोखा करने से मंगल के
अशुभ फल शुरू हो जाते हैं। इसी के साथ
अपनी पत्नी के भाई (साले) का अपमान
करने पर भी मंगल अशुभ फल देता है।
शनि : ताऊ एवं चाचा से झगड़ा करने एवं
किसी भी मेहनतम करने वाले
व्यक्ति को कष्ट देने, अपशब्द कहने एवं इसी के
साथ शराब, माँस खाने पीने से शनि देव अशुभ फल देते
हैं। कुछ लोग मकान एवं दुकान किराये से लेने के बाद
खाली नहीं करते अथवा उसके बदले
पैसा माँगते हैं तो शनि अशुभ फल देने लगता है।
राहु : राहु सर्प का ही रूप है अत: सपेरे
का दिल ‍दुखाने से, बड़े भाई को कष्ट देने से अथवा बड़े भाई
का अपमान करने से, ननिहाल पक्ष वालों का अपमान करने से राहु
अशुभ फल देता है।
केतु : भतीजे एवं भांजे का दिल दुखाने एवं
उनका हक ‍छीनने पर केतु अशुभ फल देना है। कुत्ते
को मारने एवं किसी के द्वारा मरवाने पर,
किसी भी मंदिर को तोड़ने अथवा ध्वजा नष्ट
करने पर इसी के साथ ज्यादा कंजूसी करने
पर केतु अशुभ फल देता है। किसी से धोखा करने व
झूठी गवाही देने पर भी राहु-
केतु अशुभ फल देते हैं।
अत: मनुष्य को अपना जीवन व्यवस्िथत
जीना चाहिए। किसी को कष्ट या छल-कपट
द्वारा अपनी रोजी नहीं चलान
किसी भी प्राणी को अपने
अधीन नहीं समझना चाहिए जिससे
ग्रहों के अशुभ कष्ट सहना पड़े।
हर हर महादेव
पितृ दोष” –क्या वास्तव में दूर किया जा सकता है
: भारत में मधुमक्खियों को उजाड़ते पेपर कप

कागज के डिस्पोजेबल कप भारत में मधुमक्खियों का सफाया कर रहे हैं। दो शोधों में यह बात पुख्ता रूप से साबित हो चुकी है। व्यवहार में बदलाव लाए बिना मधुमक्खियों की मौत का सिलसिला बंद नहीं होगा।

शिवागंगनम चंद्रशेखरन सड़क किनारे एक ठेले पर चाय पी रहे थे। तभी उनकी नजर फेंके गए कागज के कपों पर पड़ी। वह चौंक उठे। फेंके हुए कपों में कई मधुमक्खियां थीं। मदुरै कामराज यूनिवर्सिटी में प्लांट बायोलॉजी के प्रोफेसर मधुमक्खियों के इस व्यवहार से हैरान हुए।

उनके जेहन में कुछ सवाल उठे, ये कीट आखिरी फूलों की बजाए चाय के कपों में क्या कर रहे हैं? आखिर इनके व्यवहार में यह बदलाव क्यों आया? क्या व्यवहार में आया यह बदलाव प्राकृतिक रूप से परागण करने वाली मधुमक्खियों की मौत का कारण तो नहीं बन रहा है?

चंद्रशेखरन ने मधुमक्खियों के बारे में लिखी गई कई किताबें छान मारी। किताबों में उन्हें इन सवालों का कोई जवाब नहीं मिला। इसके बाद प्रोफेसर ने अपने छात्रों ने इस पर शोध करने को कहा। उन्होंने दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु में छह अलग अलग जगहें चुनीं। शोध के दौरान पता चला कि मिठास के चक्कर में हर जगह चाय के कपों तक पहुंचीं मधुमक्खियां लौटकर अपने छत्ते में वापस नहीं पहुंचीं।

वे चाय, कॉफी, जूस या सॉफ्ट ड्रिंक्स के फेकें गए पेपर कपों में ही मारी गईं। इन पेयों में घुली चीनी ने मधुमक्खियों को आकर्षित किया। कीटों ने चीनी को वैकल्पिक आहार समझा। 30 दिन के भीतर ऐसे कपों में 25,211 मधुमक्खियां मरी हुई मिलीं।

डिस्पोजेबल कपों और मधुमक्खियां की मौत पर हुई शोध के लीड ऑथर प्रोफेसर चंद्रशेखरन कहते हैं, “हर कप में मरी हुई मधुमक्खियां थीं, पांच से 50 तक। जिन जगहों पर भी शोध किया गया वहां हर जगह एक जैसा हाल था।”

फूल बनाम डिस्पोजल कप

शोध के दौरान चंद्रशेखरन ने देखा कि अगर मधुमक्खियों के सामने फूल और चीनी रखी जाए तो वे प्राकृतिक रूप से पुष्पों की तरफ जाती हैं। लेकिन शहरों में मधुमक्खियों के लिए प्राकृतिक आवास खत्म होता गया है। डिस्पोजेबल कपों का इस्तेमाल बहुत ही ज्यादा बढ़ चुका है। प्रोफेसर कहते हैं, “एक ही इलाके में दो तीन ठेले लगाए गए और वहां हर दिन 200 से 300 कप फेंके जाने लगे, ऐसा दो तीन महीने तक हुआ। मधुमक्खियों ने इस जगह की पहचान भोजन वाले इलाके के रूप में कर ली।”

प्लास्टिक के प्रति बढ़ती जागरुकता के चलते भारत समेत दुनिया भर में पेपर कपों का इस्तेमाल काफी बढ़ा है। लेकिन चंद्रशेखरन को लगता है कि पेपर कप ही शायद मधुमक्खियों की मौत के जिम्मेदार हैं।

शोध के दौरान प्लास्टिक के कपों में कोई भी मरी हुई मधुमक्खी नहीं मिली। चंद्रशेखरन इसका कारण समझाते हैं, “कागज के कपों में अतिसूक्ष्म छिद्र होते हैं जिनमें मुलायम चीनी फंसी रह जाती है। ऐसा प्लास्टिक के कपों में नहीं होता।” प्लास्टिक के कपों में चीनी कड़ी हो जाती है।

चंद्रशेखरन के शोध के बाद भारत सरकार की नेशनल बायोडायवर्सिटी अथॉरिटी के संबंदम शांडिल्यन ने पेपर कपों के असर पर शोध की। शांडिल्यन ने नीलगिरी बायोस्फेयर रिजर्व में पेपर कपों के असर की जांच की। इस दौरान एक मामला ऐसा भी आया जब आठ घंटे के भीतर डिस्पोजल कपों से भरे एक कूड़ेदान में 800 से ज्यादा मरी हुई मधुमक्खियां मिली। शांडिल्यन कहते हैं, “अगर एक चाय के ठेले के पास इतनी मधुमक्खियां मरती हैं, तो सोचिए पूरे भारत में क्या हाल होगा। यह चेतावनी है। यह मधुमक्खियों की धीमी मौत का कारण है।”

दूसरा शोध करने वाले शांडिल्यन कहते हैं, “हमें एक लंबे शोध की जरूरत है क्योंकि अगर इन मक्खियों की संख्या गिरती रही तो इसका असर जंगल और कृषि उत्पादकता पर पड़ेगा।”

दुनिया भर में जितना भी परागण होता है, उसका 80 फीसदी श्रेय पालतू और जंगली मधुमक्खियों को जाता है। इंसान के आहार में शामिल 100 में से 70 फसलों का परागण यही कीट करते हैं। उनकी मदद से ही दुनिया को 90 फीसदी पोषण मिलता है। बात साफ है कि अगर मधुमक्खियां उजड़ी तो इंसान को खाने के लाले पड़ जाएंगे। मधुमक्खियां, भौंरे, तितलियां और कई किस्म के कीट फूलों का परागण करते हैं। सफल परागण के बाद ही अंकुरण होता है।

भारत में मधुमक्खियों और इसी प्रजाति से जुड़ी मक्खियों का विस्तृत डाटा मौजूद नहीं है। लेकिन देश भर में मधुमक्खी पालक इन कीटों की घटती संख्या से परेशान हो रहे हैं। बुरे हालात सिर्फ भारत में ही नहीं हैं। दुनिया भर के वैज्ञानिक मधुमक्खियों की घटती संख्या को “कालोनी कोलेप्स डिसऑर्डर” कह रहे हैं।

मधुमक्खियों की घटती संख्या के लिए कई कारक जिम्मेदार हैं। प्राकृतिक आवास का घटना, कीटनाशकों का इस्तेमाल, जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण के बाद अब कागज के कप भी इस सूची में शुमार हो चुके हैं।

इन शोधों के बाद तमिलनाडु में कई जगहों पर स्थानीय प्रशासन ने कागज के कपों पर प्रतिबंध लगा दिया है। लोगों से कांच, स्टील या मिट्टी के कप इस्तेमाल करने की अपील भी की जा रही है। इससे कूड़ा भी कम होगा और मधुमक्खियों को भी फायदा मिलेगा।

एक कंपनी में बतौर सलाहकार काम करने वाले मारुवर कुझाली कहते हैं, “मुझे इस बारे में कुछ भी पता नहीं था। लेकिन अब मैं जानता हूं कि मैं कभी कागज के कपों का इस्तेमाल नहीं करुंगा।”

लेकिन चंद्रशेखरन नहीं चाहते कि कागज के कपों का इस्तेमाल पूरी तरह बंद हो जाए और फिर से प्लास्टिक के कप दिखने लगें। फिलहाल वह लाल रंग के प्रति मधुमक्खियों के व्यवहार की जांच कर रहे हैं। मधुमक्खियों में लाल रंग के प्रति संवेदनशील फोटोरिसेप्टर नहीं होते, जिसकी वजह से वे लाल रंग बहुत स्पष्ट रूप से नहीं देख पाती हैं। हो सकता है कि इस रंग की मदद से कोई रास्ता निकले। हो सकता है कि कागज के लाल कप मधुमक्खियों को बचा लें।

~~विज्ञान विश्व

नौकरी या व्यवसाय?

यदि जातक की कुंडली के दशम भाव में चर राशि (1, 4, 7, 10) स्थित है तो ऐसा जातक कर्म से स्वतंत्र सोच रखने वाला अधिक महत्वा कांक्षी व्यक्तिहोता है तथा ऐसा व्यक्ति स्वतंत्र व्यवसाय को अपनाता है।
यदि कुंडली के दशम भाव में स्थिर राशि (2, 5, 8, 11) स्थित हो तो व्यक्ति एक स्थान पर जमकर कार्य करने में रुचि रखता है तथा नौकरी को अपनाता है।
यदि कुंडली के दशम भाव में द्विस्वभाव राशि में (3, 6, 9, 12) स्थित हो तो जातक समय के अनुकूल अपने आप को ढालने वाला होता है तथा अपने लाभ के अनुसार नौकरी और व्यवसाय दोनों को अपना सकता है।
उपरोक्त के अतिरिक्त इन्हीं राशियों में दशमेश की स्थिति मुख्य तो नहीं पर सहायक भूमिका अवश्य निभायेगी दशमेश चर राशि में होने पर व्यवसाय, स्थिर राशि में होने पर नौकरी तथा द्विस्वभाव राशि में होने पर दोनों कार्यों की क्षमता व्यक्ति में होगी।
उपरोक्त नियम नौकरी और व्यवसाय के चयन में अपनी भूमिका निभाते हैं परंतु आजीविका के स्वरूप के अतिरिक्त ज्योतिष शास्त्र हमें यह भी अधिक सटीकता से बताता है कि हमारे लिए क्या अच्छा है।

यदि कुंडली में सप्तम भाव, सप्तमेश, एकादश भाव एकादशेश व बुध अच्छी स्थिति में हो तो ही व्यक्ति व्यवसाय में अच्छी सफलता पायेगा तथा यदि षष्ट भाव व षष्टेश अच्छी स्थिति में हो तो नौकरी में सफलता होगी
षष्ट भाव में पाप योग हो या षष्टेश अत्यंत पीड़ित हो तो व्यक्ति को नौकरी में बहुत समस्याएं होती हैं।
जातक का कार्यक्षेत्र: यह विषय सबसे महत्वपूर्ण है कि किस क्षेत्र में जातक को सफलता मिलेगी या जातक क्या करेगा वर्तमान समय में यह और भी महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि प्रतिस्पर्धा के समय में यदि यह निर्णय हो जाये कि हमारे लिए कौनसा क्षेत्र अच्छा है तो विद्यार्थी वर्ग उसी दिशा में प्रयास कर सकते हैं।
कार्यक्षेत्र के निर्धारण में दशम भाव की अहम भमिका है दशम भाव में स्थित राशि, दशम पर प्रभाव डालने वाले ग्रह दशमेश का नवांशपति आदि कार्यक्षेत्र के चयन में सहायक होते हैं। ‘‘कार्यक्षेत्र’’ के निर्धारण में दशम भाव में स्थिति राशियों की भूमिका भी होती है परंतु यह केवल एक सहायक भूमिका होतीहै मुख्य व सूक्ष्म रूप से तो ग्रहों की भूमिका ही होती है।

कार्यक्षेत्र निर्धारण: दशम भाव में स्थित ग्रह तथा दशम भाव पर दृष्टि डालने वाले ग्रह से संबंधी जातक का कार्यक्षेत्र होता है। यदि यह ग्रह एक से अधिक हों तो जातक एक से अधिक व्यवसाय भी अपना सकता है तथा चयन करते समय जो ग्रह उनमें अधिक बली हो उससे संबंधित क्षेत्र में जाना चाहिए।
कुछ विद्वान दशमेश के नवांशपति को अर्थात दशमेश नवांश कुंडली में जिस ग्रह की राशि में हो उस ग्रह से संबंधित कार्यक्षेत्र बताते हैं परंतु यह बात तभी माननी चाहिए जब दशमेश का नवांशपति ग्रह अच्छी स्थिति में हो।
जो ग्रह जन्मकुंडली में सबसे अधिक बली हो उसके आधार पर भी जातक की आजीविका पूर्णतया संभव है और ऐसे ग्रह के आधार पर किये गये कार्य में निश्चित सफलता मिलती है।
जन्मकुंडली में शनि से त्रिकोण भाव में स्थित ग्रह भी आजीविका देता है। उपरोक्त नियमों के आधार पर जब कुछ ग्रह निश्चित हो जायें तो यह तो निश्चित है कि जातक इनसे संबंधित कार्यों में जा सकता है परंतु हमें कार्यक्षेत्र निर्धारण करने में निकले हुए ग्रहों के आधार पर भी इनमें जो सबसे अधिक बली ग्रह हो उसे आधार पर कार्यक्षेत्र का चयन करना चाहिए।

दशम भाव में स्थित राशि:
यदि दशम भाव में अग्नितत्व राशि (1, 5, 9) हो तो यह योग जातक को ऊर्जा, अग्नि, पराक्रम आदि के क्षेत्रों में सहायक होता है जैसे- (विद्युत संबंधी, अग्नि प्रधान कार्य, सेना, प्रबंध, शल्यचिकित्सा आदि)। यदि दशम भाव में भूमि तत्व राशि (2, 6, 10) हो तो यह योग भूमि या भूसंपदा सेसंबंधी कार्यों में सहायक होता है (भूमि विक्रय, प्रोपर्टी डीलिंग, भवन निर्माण, भूसंपदा आदि)
यदि दशम भाव में वायुतत्व राशि हो (3, 7, 11) हो तो यह योग जातक को बुद्धिपरक कार्यों में सहायक होता है (कम्प्यूटर संबंधी, एकाउंट्स, लेखन, वैज्ञानिक, लेखा-जोखा रखना आदि)

यदि दशम भाव में जल तत्व राशि (4, 8, 12) हो तो यह योग जातकको जल या पेय पदार्थ संबंधी कार्यों में सहायक होगा (जल, पेय, पदार्थ, नेवी, सिंचाई आदि) नियमों के अनुसार जब कार्यक्षेत्र निर्धारण के लिए ग्रह निश्चित कर लें तो उन पर आधारित निम्न व्यवसाय होंगे।

सूर्य- चिकित्सक (फिजिशियन), दवाइयों से संबंधी, मैनेजमेंट राजनीति, गेहूं से संबंधी आदि।
चंद्रमा- जल से संबंधित कार्य, पेय पदार्थ, दूध, डेयरी प्रोडक्ट (दही, घी, मक्खन) खाद्य पदार्थ, यात्रा से संबंधित कार्य, आईसक्रीम, ऐनीमेशन।
मंगल- जमीन जायदाद विक्रय, विद्युत संबंधी, तांबे से संबंधित, सिविल इंजीनियरिंग, इलैक्ट्रीकल इंजीनियरिंग, आर्कीटैक्चर, शल्यचिकित्सक मैनेजमेंट आदि स्पोर्टस, खिलाड़ी।
बुध- वाणिज्य संबंधी, एकाउटेंट, कम्प्यूटर जाॅब, लेखन, ज्योतिष वाणीप्रधान कार्य, एंेकरिंग, कन्सलटैंसी, वकील, टेलीफोन विभाग डाक, कोरियर, यातायात, पत्रकारिता, मीडिया, बीमा कंपनी आदि। कथा वाचक।
बृहस्पति- धार्मिक व्यवसाय, कर्मकाण्ड, ज्योतिष, अध्यापन, किताबों से संबंधित कार्य, संपादन, छपाई, कागज से संबंधित कार्य, वस्त्रोंसे संबंधित, लकड़ी से संबंधित कार्य, न्यायालय संबंधित, परामर्श।
शुक्र- कलात्मक कार्य, संगीत (गायन, वादन, नृत्य), अभिनय, चलचित्र संबंधी डेकोरेशन, फैशन डिजाइनिंग, पेंटिंग, स्त्रियों से संबंधित वस्तुएं, काॅस्मैटिक स्त्रियों के कपड़े, विलासितापूर्ण वस्तु (गाड़ी,वाहन आदि) सजावटी वस्तुएं मिठाई संबंधी, एनीमेशन।
शनि- मशीनों से संबंधित, पुर्जों से संबंधित, मैकेनिकल इंजीनियरिंग, केमिकल प्रोडक्ट, ज्वलनशील तेल (पैट्रोल, डीजल आदि) लोहे से संबंधित कच्ची धातु, कोयला, प्राचीन वस्तुएं, पुरातत्व विभाग, अधिक श्रम वाला कार्य।
राहू- आकस्मिक लाभ वाले कार्य, मशीनों से संबंधित, तामसिक पदार्थ, जासूसी गुप्त कार्य आदि विषय संबंधी, कीट नाशक, एण्टी बायोटिक दवाईयां।
केतु- समाज सेवा से जुड़े कार्य, धर्म, आध्यात्मिक कार्य आदि। उपरोक्त के आधार पर जो ग्रह आजीविका को अधिक प्रभावित करे उससे संबंधित किसी क्षेत्र में जायें।

विदेश में सफलता या स्वदेश में: इस विषय को देखने के लिए द्वादश भाव को विदेश या विदेश यात्रा कारक माना जाता है परंतु इसके अतिरिक्त विदेश जाने या सफल होने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक चंद्रमा होता है अतः यह स्मरण रखना चाहिए यदि चंद्रमाकुंडली में बहुत कमजोर हो या पीड़ित हो तो विदेश जाना या वहां सफलता पाना बहुत कठिन होगा परंतु चंद्रमा शुभ होने पर वहां सफलता होगी।
चंद्रमा दशम भाव में हो या उसे देखे तो विदेश में सफलता संभव है।
चंद्रमा यदि शनि के साथ हो या शनि को देखे तोे विदेश के योग बनेंगे।
चंद्रमा यदि बारहवें भाव में स्थित हो या षष्ठ में होकर बारहवें भाव कोे देखें तो भी विदेश के योग होंगे।
लग्न या सप्तम भाव में बली हो तो भी विदेश में सफलता संभव है।
यदि दशमेश द्वादशेश का राशि परिवर्तन हो तो भी विदेश में सफलता संभव है या द्वादशेश का दशम भाव से कोई संबंध बनें तब भी।
यदि कुंडली में चंद्रमा अत्यंत पीड़ित हो तो विदेश जाने पर भी सफलता कठिन होती है अतः स्वस्थान पर ही सफलता होगी। जातक के सरकारी नौकरी के योग: जब बलवान (उच्च, स्वगृही, लग्नेश व दशमेश) युति करके किसी भाव में स्थित हो तथा दशम भाव के कारक ग्रह सूर्य, बुध, गुरु एवं शनि की नैसर्गिक (प्राकृतिक) अवस्था का समय चल रहा हो तथा यह कारक ग्रह बली (स्वगृही) होकर किसी भाव मेंस्थित हो तो जातक सरकारी नौकरी में होता है। यदि साथ ही पाप ग्रहों- राहु, केतु, मंगल, सूर्य एवं शनि की महादशा का समय बन रहा है तो जातक तकनीकी क्षेत्र में होता है।
: मंगल और शनि दोनों ही पापी ग्रह है।दोनों ही एक दूसरे की राशि मे उच्च और नीच के होते है।

कई बार देखा गया है कि इनकी युति को गलत भी समझा जाता है,उसका क्या कारण है??

जब भी मंगल और शनि की युति किसी भी कुंडली मे देखी जाती है तो उस भाव सम्बंधित बीमारी जातक को मिलेगी,क्योंकि यहाँ मंगल और शनि आपस मे एक दूसरे को नीचा दिखते है क्योंकि दोनों शत्रु है।मंगल किसी रोग को रोकेगा तो शनि बढ़ाने की कोशिश करेगा,यदि शनि रोग को रोकेगा तो मंगल बढ़ाने की कोशिश करेगा,इसे ऐसा क्यों होता है??

इसे एक उदाहरण द्वारा समझते है।मान लीजिए दो पड़ौसी आपसे में शत्रु है।जब भी जहाँ मिलेंगे वहीं पर तू तू मैं मैं शुरू कर देंगे।अर्थात लड़ना शुरू कर देंगे।दोनों के दिमाग गरम है दोनों अपने आप को ऊचां दिखाने की कोशिश करेंगे।उनकी इस कोशिश में नुकसान उनका होगा जहाँ वो लड़ रहे है,उसी तरह मंगल शनि भी एक भाव मे होने से उस भाव को तकलीफ देते है।ये भाव शरीर का कोई हिस्सा भी हो सकता है,जहाँ चोट लग जाये या कट छिल जाए,इसे हम इस युति का दैहिक गुण कहते है।अर्थात देह (शरीर) को मिलने वाली तकलीफ।जो भाव सम्बंधित बुरे फल भी दे सकता है।

मंगल और शनि की युति जिस कुंडली मे बनती है कहा जाता है कि जातक अपने कर्मो के प्रति सजग होगा।अनुशाषित होगा, और सभी कर्मो को समय पर करने वाला होगा,

मंगल कालपुरुष की कुण्डली में लग्नेश के साथ साथ अष्टमेश भी होता है लग्न के साथ उसमे अष्टम भाव के गुण भी मौजूद होंगे,मेष राशि दिमाग की राशि है एनर्जी की राशि है जबकि वृश्चिक राशि अष्टम भाव की राशि होने के कारण उसमे कुछ अलग करने की क्षमता होती है जो काम दिमागी सोच से किये जायें।

मंगल को मशीन माना जाता है शनि को कर्म,कार्य

जब तक इन दोनों का सामंजस्य नही होगा या सम्बन्ध नही होगा तब तक मशीन और कर्म का कार्य जातक नही कर पायेगा।क्योंकि शनि भी कर्म और आय का कारक ग्रह है।

जहाँ इन दोनों की युति होगी उस परिवार में मशीनरी का काम होता होगा।मंगल शनि के ये गुण भौतिक गुण कहलाते है।(materialstic)

जिसे दुनिया देखती है या जो दुनिया मे होता है।जिस भाव मे ये युति बनती है उस भाव के रिश्तों में जब उलझन बढ़ जाती है या परिवार के सदस्यों के बीच तकरार हो जाती है और वहाँ अलगाव की स्थिति पैदा हो जाती है।तब शनि और मंगल की युति परिवार में असर दिखाती है तब ये युति दैविक गुण (devine)ले लेती है।
: स्वस्तिक का महत्व ?
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स्वास्तिक का चिन्ह किसी भी शुभ कार्य को आरंभ करने से पहले हिन्दू धर्म में स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर उसकी पूजा करने का महत्व है। मान्यता है कि ऐसा करने से कार्य सफल होता है। स्वास्तिक के चिन्ह को मंगल प्रतीक भी माना जाता है। स्वास्तिक शब्द को ‘सु’ और ‘अस्ति’ का मिश्रण योग माना जाता है। यहां ‘सु’ का अर्थ है शुभ और ‘अस्ति’ से तात्पर्य है होना। अर्थात स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है ‘शुभ हो’, ‘कल्याण हो’।

शुभ कार्य यही कारण है कि किसी भी शुभ कार्य के दौरान स्वास्तिक को पूजना अति आवश्यक माना गया है। लेकिन असल में स्वस्तिक का यह चिन्ह क्या दर्शाता है, इसके पीछे ढेरों तथ्य हैं। स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है।

चार रेखाएं मान्यता है कि यह रेखाएं चार दिशाओं – पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। लेकिन हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यह रेखाएं चार वेदों – ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। कुछ यह भी मानते हैं कि यह चार रेखाएं सृष्टि के रचनाकार भगवान ब्रह्मा के चार सिरों को दर्शाती हैं।

चार देवों का प्रतीक इसके अलावा इन चार रेखाओं की चार पुरुषार्थ, चार आश्रम, चार लोक और चार देवों यानी कि भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश (भगवान शिव) और गणेश से तुलना की गई है। स्वास्तिक की चार रेखाओं को जोड़ने के बाद मध्य में बने बिंदु को भी विभिन्न मान्यताओं द्वारा परिभाषित किया जाता है।

मध्य स्थान मान्यता है कि यदि स्वास्तिक की चार रेखाओं को भगवान ब्रह्मा के चार सिरों के समान माना गया है, तो फलस्वरूप मध्य में मौजूद बिंदु भगवान विष्णु की नाभि है, जिसमें से भगवान ब्रह्मा प्रकट होते हैं। इसके अलावा यह मध्य भाग संसार के एक धुर से शुरू होने की ओर भी इशारा करता है।

सूर्य भगवान का चिन्ह स्वास्तिक की चार रेखाएं एक घड़ी की दिशा में चलती हैं, जो संसार के सही दिशा में चलने का प्रतीक है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार यदि स्वास्तिक के आसपास एक गोलाकार रेखा खींच दी जाए, तो यह सूर्य भगवान का चिन्ह माना जाता है। वह सूर्य देव जो समस्त संसार को अपनी ऊर्जा से रोशनी प्रदान करते हैं।

बौद्ध धर्म में स्वास्तिक हिन्दू धर्म के अलावा स्वास्तिक का और भी कई धर्मों में महत्व है। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को अच्छे भाग्य का प्रतीक माना गया है। यह भगवान बुद्ध के पग चिन्हों को दिखाता है, इसलिए इसे इतना पवित्र माना जाता है। यही नहीं, स्वास्तिक भगवान बुद्ध के हृदय, हथेली और पैरों में भी अंकित है।

जैन धर्म में स्वास्तिक वैसे तो हिन्दू धर्म में ही स्वास्तिक के प्रयोग को सबसे उच्च माना गया है लेकिन हिन्दू धर्म से भी ऊपर यदि स्वास्तिक ने कहीं मान्यता हासिल की है तो वह है जैन धर्म। हिन्दू धर्म से कहीं ज्यादा महत्व स्वास्तिक का जैन धर्म में है। जैन धर्म में यह सातवं जिन का प्रतीक है, जिसे सब तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ के नाम से भी जानते हैं। श्वेताम्बर जैनी स्वास्तिक को अष्ट मंगल का मुख्य प्रतीक मानते हैं।

हड़प्पा सभ्यता में स्वास्तिक सिंधु घाटी की खुदाई के दौरान स्वास्तिक प्रतीक चिन्ह मिला। ऐसा माना जाता है हड़प्पा सभ्यता के लोग भी सूर्य पूजा को महत्व देते थे। हड़प्पा सभ्यता के लोगों का व्यापारिक संबंध ईरान से भी था। जेंद अवेस्ता में भी सूर्य उपासना का महत्व दर्शाया गया है। प्राचीन फारस में स्वास्तिक की पूजा का चलन सूर्योपासना से जोड़ा गया था, जो एक काबिल-ए-गौर तथ्य है।

विश्व भर में स्वास्तिक विभिन्न मान्यताओं एवं धर्मों में स्वास्तिक को महत्वपूर्ण माना गया है। भारत में और भी कई धर्म हैं जो शुभ कार्य से पहले स्वास्तिक के चिन्ह को इस्तेमाल करना जरूरी समझते हैं। लेकिन केवल भारत ही क्यों, बल्कि विश्व भर में स्वास्तिक को एक अहम स्थान हासिल है।

जर्मनी में स्वास्तिक यहां हम विश्व भर में मौजूद हिन्दू मूल के उन लोगों की बात नहीं कर रहे जो भारत से दूर रह कर भी शुभ कार्यों में स्वास्तिक को इस्तेमाल कर अपने संस्कारों की छवि विश्व भर में फैला रहे हैं, बल्कि असल में स्वास्तिक का इस्तेमाल भारत से बाहर भी होता है। एक अध्ययन के मुताबिक जर्मनी में स्वास्तिक का इस्तेमाल किया जाता है।

जर्मनी के नाज़ी वर्ष 1935 के दौरान जर्मनी के नाज़ियों द्वारा स्वास्तिक के निशान का इस्तेमाल किया गया था, लेकिन यह हिन्दू मान्यताओं के बिलकुल विपरीत था। यह निशान एक सफेद गोले में काले ‘क्रास’ के रूप में उपयोग में लाया गया, जिसका अर्थ उग्रवाद या फिर स्वतंत्रता से सम्बन्धित था।

अमरीकी सेना लेकिन नाज़ियों से भी बहुत पहले स्वास्तिक का इस्तेमाल किया गया था। अमरीकी सेना ने पहले विश्व युद्ध में इस प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल किया था। ब्रितानी वायु सेना के लड़ाकू विमानों पर इस चिह्न का इस्तेमाल 1939 तक होता रहा था।

जर्मन भाषा और संस्कृत में समानताएं लेकिन करीब 1930 के आसपास इसकी लोकप्रियता में कुछ ठहराव आ गया था, यह वह समय था जब जर्मनी की सत्ता में नाज़ियों का उदय हुआ था। उस समय किए गए एक शोध में बेहद दिलचस्प बात निकल कर सामने आई। शोधकर्ताओं ने माना कि जर्मन भाषा और संस्कृत में कई समानताएं हैं। इतना ही नहीं, भारतीय और जर्मन दोनों के पूर्वज भी एक ही रहे होंगे और उन्होंने देवताओं जैसे वीर आर्य नस्ल की परिकल्पना की।

स्वास्तिक का आर्य प्रतीक के रूप पर बल इसके बाद से ही स्वास्तिक चिन्ह का आर्य प्रतीक के तौर पर चलन शुरू हो गया। आर्य प्रजाति इसे अपना गौरवमय चिन्ह मानती थी। लेकिन 19वीं सदी के बाद 20वीं सदी के अंत तक इसे नफ़रत की नज़र से देखा जाने लगा। नाज़ियों द्वारा कराए गए यहूदियों के नरसंहार के बाद इस चिन्ह को भय और दमन का प्रतीक माना गया था।

चिह्न पर प्रतिबंध युद्ध ख़त्म होने के बाद जर्मनी में इस प्रतीक चिह्न पर प्रतिबंध लगा दिया गया था और 2007 में जर्मनी ने यूरोप भर में इस पर प्रतिबंध लगवाने की नाकाम पहल की थी। माना जाता है कि स्वास्तिक के चिह्न की जड़ें यूरोप में काफी गहरी थीं।

प्प्राचीन ग्रीस के लोग इसका इस्तेमाल करते थे। पश्चिमी यूरोप में बाल्टिक से बाल्कन तक इसका इस्तेमाल देखा गया है। यूरोप के पूर्वी भाग में बसे यूक्रेन में एक नेशनल म्यूज़ियम स्थित है। इस म्यूज़ियम में कई तरह के स्वास्तिक चिह्न देखे जा सकते हैं, जो 15 हज़ार साल तक पुराने हैं।

लाल रंग ही क्यों यह सभी तथ्य हमें बताते हैं कि केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व के कोने-कोने में स्वास्तिक चिन्ह ने अपनी जगह बनाई है। फिर चाहे वह सकारात्मक दृष्टि से हो या नकारात्मक रूप से। परन्तु भारत में स्वास्तिक चिन्ह को सम्मान दिया जाता है और इसका विभिन्न रूप से इस्तेमाल किया जाता है। यह जानना बेहद रोचक होगा कि केवल लाल रंग से ही स्वास्तिक क्यों बनाया जाता है?

लाल रंग का सर्वाधिक महत्व भारतीय संस्कृति में लाल रंग का सर्वाधिक महत्व है और मांगलिक कार्यों में इसका प्रयोग सिन्दूर, रोली या कुमकुम के रूप में किया जाता है। लाल रंग शौर्य एवं विजय का प्रतीक है। लाल रंग प्रेम, रोमांच व साहस को भी दर्शाता है। धार्मिक महत्व के अलावा वैज्ञानिक दृष्टि से भी लाल रंग को सही माना जाता है।

शारीरिक व मानसिक स्तर लाल रंग व्यक्ति के शारीरिक व मानसिक स्तर को शीघ्र प्रभावित करता है। यह रंग शक्तिशाली व मौलिक है। हमारे सौर मण्डल में मौजूद ग्रहों में से एक मंगल ग्रह का रंग भी लाल है।

यह एक ऐसा ग्रह है जिसे साहस, पराक्रम, बल व शक्ति के लिए जाना जाता है। यह कुछ कारण हैं जो स्वास्तिक बनाते समय केवल लाल रंग के उपयोग की ही सलाह देते हैं।

स्वस्तिक के टोटके एवं उपाय
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स्वस्तिक और वास्तु :वास्तुशास्त्र में स्वस्तिक को वास्तु का प्रतीक मान गया है। इसकी बनावट ऐसी होती है कि यह हर दिशा से एक समान दिखाए देता है। घर के वास्तु को ठीक करने के लिए स्वस्तिक का प्रयोग किया जाता है।

घर के मुख्य द्वार के दोनों और अष्‍ट धातु और उपर मध्य में तांबे का स्वस्तिक लगाने से सभी तरह का वस्तुदोष दूर होता है।

पंच धातु का स्वस्तिक बनवा के प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद चौखट पर लगवाने से अच्छे परिणाम मिलते हैं। चांदी में नवरत्न लगवाकर पूर्व दिशा में लगाने पर वास्तु दोष दूर होकर लक्ष्मी प्रप्ति होती है।

पहला उपाय👉 वास्तुदोष दूर करने के लिए 9 अंगुल लंबा और चौड़ा स्वस्तिक सिंदूर से बनाने से नकारात्मक ऊर्जा सकारात्मकता में बदल जाती है।

दूसरा उपाय👉 मांगलिक, धार्मिक कार्यों में बनाएं स्वस्तिक :धार्मिक कार्यों में रोली, हल्दी या सिंदूर से बना स्वस्तिक आत्मसंतुष्‍टी देता है। त्योहारों पर द्वार के बाहर रंगोली के साथ कुमकुम, सिंदूर या रंगोली से बनाया गया स्वस्तिक मंगलकारी होता है। इसे बनाने से देवी और देवता घर में प्रवेश करते हैं। गुरु पुष्य या रवि पुष्य में बनाया गया स्वस्तिक शांति प्रदान करता है।

तीसरा उपाय👉 व्यापार वृद्धि हेतु :यदि आपके व्यापार या दुकान में बिक्री नहीं बढ़ रही है तो 7 गुरुवार को ईशान कोण को गंगाजल से धोकर वहां सुखी हल्दी से स्वस्तिक बनाएं और उसकी पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद वहां आधा तोला गुड़ का भोग लगाएं। इस उपाय से लाभ मिलेगा। कार्य स्थल पर उत्तर दिशा में हल्दी का स्वस्तिक बनाने से बहुत लाभ प्राप्त होता है।

चौथा उपाय👉 स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर जिस भी देवता की मूर्ति रखी जाती है वह तुरंत प्रसन्न होता है। यदि आप अपने घर में अपने ईष्‍टदेव की पूजा करते हैं तो उस स्थान पर उनके आसन के उपर स्वस्तिक जरूर बनाएं।

पांचवां उपाय👉 देव स्थान पर स्वस्तिक बनाकर उसके ऊपर पंच धान्य या दीपक जलाकर रखने से कुछ ही समय में इच्छीत कार्य पूर्ण होता है। इसके अलावा मनोकामना सिद्धी हेतु मंदिर में गोबर या कंकू से उलटा स्वस्तिक बनाया जाता है। फिर जब मनोकामना पूर्ण हो जाती है तो वहीं जाकर सीधा स्वस्तिक बनाया जाता है।

छठा उपाय👉 सुख की नींद सोने हेतु :यदि आप रात में बैचेन रहते हैं। नींद नहीं आती या बुरे बुरे सपने आते हैं तो सोने से पूर्व स्वस्तिक को तर्जनी से बनाकर सो जाएं। इस उपाय से नींद अच्छी आएगी।

सातवां उपाय👉 संजा में स्वस्तिक :पितृ पक्ष में बालिकाएं संजा बनाते समय गोबर से स्वस्तिक बनाती है। इससे घर में शुभता, शां‍ति और समृद्धि आती है और पितरों की कृपा भी प्राप्त होती है।

आठवां उपाय धनलाभ हेतु👉 प्रतिदिन सुबह उठकर विश्वासपूर्वक यह विचार करें कि लक्ष्मी आने वाली हैं। इसके लिए घर को साफ-सुथरा करने और स्नान आदि से निवृत्त होने के बाद सुगंधित वातावरण कर दें। फिर भगवान का पूजन करने के बाद अंत में देहली की पूजा करें।

देहली के दोनों ओर स्वस्तिक बनाकर उसकी पूजा करें। स्वस्तिक के ऊपर चावल की एक ढेरी बनाएं और एक-एक सुपारी पर कलवा बांधकर उसको ढेरी के ऊपर रख दें। इस उपाय से धनलाभ होगा।

नौवां उपाय👉 बेहद शुभ है लाल और पीले रंग का स्वस्तिक :अधिकतर लोग स्वस्तिक को हल्दी से बनाते हैं। ईशान या उत्तर दिशा की दीवार पर पीले रंग का स्वस्तिक बनाने से घर में सुख और शांति बनी रहती है। यदि कोई मांगलिक कार्य करने जा रहे हैं तो लाल रंग का स्वस्तिक बनाएं। इसके लिए केसर, सिंदूर, रोली और कुंकुम का इस्मेमाल करें।
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: ( एक बोध कथा )

( प्रारब्ध सब के सामने आते है इसलिए अच्छे कर्म करे भगवत नाम ले सत्संग करे सेवा करे,तब सूली की चोट सुई से जाती है )

गाली देकर कर्म काट रही है
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एक राजा बड़ा धर्मात्मा, न्यायकारी और परमेश्वर का भक्त था। उसने ठाकुरजी का मंदिर बनवाया और एक ब्राह्मण को उसका पुजारी नियुक्त किया। वह ब्राह्मण बड़ा सदाचारी, धर्मात्मा और संतोषी था। वह राजा से कभी कोई याचना नहीं करता था, राजा भी उसके स्वभाव पर बहुत प्रसन्न था।
उसे राजा के मंदिर में पूजा करते हुए बीस वर्ष गुजर गये। उसने कभी भी राजा से किसी प्रकार का कोई प्रश्न नहीं किया।
राजा के यहाँ एक लड़का पैदा हुआ। राजा ने उसे पढ़ा लिखाकर विद्वान बनाया और बड़ा होने पर उसकी शादी एक सुंदर राजकन्या के साथ करा दी। शादी करके जिस दिन राजकन्या को अपने राजमहल में लाये उस रात्रि में राजकुमारी को नींद न आयी। वह इधर-उधर घूमने लगी जब अपने पति के पलंग के पास आयी तो क्या देखती है कि हीरे जवाहरात जड़ित मूठेवाली एक तलवार पड़ी है।
जब उस राजकन्या ने देखने के लिए वह तलवार म्यान में से बाहर निकाली, तब तीक्ष्ण धारवाली और बिजली के समान प्रकाशवाली तलवार देखकर वह डर गयी व डर के मारे उसके हाथ से तलवार गिर पड़ी और राजकुमार की गर्दन पर जा लगी। राजकुमार का सिर कट गया और वह मर गया। राजकन्या पति के मरने का बहुत शोक करने लगी। उसने परमेश्वर से प्रार्थना की कि ‘हे प्रभु ! मुझसे अचानक यह पाप कैसे हो गया? पति की मृत्यु मेरे ही हाथों हो गयी। आप तो जानते ही हैं, परंतु सभा में मैं सत्य न कहूँगी क्योंकि इससे मेरे माता-पिता और सास-ससुर को कलंक लगेगा तथा इस बात पर कोई विश्वास भी न करेगा।’
प्रातःकाल में जब पुजारी कुएँ पर स्नान करने आया तो राजकन्या ने उसको देखकर विलाप करना शुरु किया और इस प्रकार कहने लगीः “मेरे पति को कोई मार गया।” लोग इकट्ठे हो गये और राजा साहब आकर पूछने लगेः “किसने मारा है?”
वह कहने लगीः “मैं जानती तो नहीं कि कौन था। परंतु उसे ठाकुरजी के मंदिर में जाते देखा था” राजा समेत सब लोग ठाकुरजी के मंदिर में आये तो ब्राह्मण को पूजा करते हुए देखा। उन्होंने उसको पकड़ लिया और पूछाः “तूने राजकुमार को क्यों मारा?”
ब्राह्मण ने कहाः “मैंने राजकुमार को नहीं मारा। मैंने तो उनका राजमहल भी नहीं देखा है। इसमें ईश्वर साक्षी हैं। बिना देखे किसी पर अपराध का दोष लगाना ठीक नहीं।”
ब्राह्मण की तो कोई बात ही नहीं सुनता था। कोई कुछ कहता था तो कोई कुछ…. राजा के दिल में बार-बार विचार आता था कि यह ब्राह्मण निर्दोष है परंतु बहुतों के कहने पर राजा ने ब्राह्मण से कहाः
“मैं तुम्हें प्राणदण्ड तो नहीं देता लेकिन जिस हाथ से तुमने मेरे पुत्र को तलवार से मारा है, तेरा वह हाथ काटने का आदेश देता हूँ।”
ऐसा कहकर राजा ने उसका हाथ कटवा दिया। इस पर ब्राह्मण बड़ा दुःखी हुआ और राजा को अधर्मी जान उस देश को छोड़कर विदेश में चला गया। वहाँ वह खोज करने लगा कि कोई विद्वान ज्योतिषी मिले तो बिना किसी अपराध हाथ कटने का कारण उससे पूछूँ।
किसी ने उसे बताया कि काशी में एक विद्वान ज्योतिषी रहते हैं। तब वह उनके घर पर पहुँचा। ज्योतिषी कहीं बाहर गये थे, उसने उनकी धर्मपत्नी से पूछाः “माताजी ! आपके पति ज्योतिषी जी महाराज कहाँ गये हैं?”
तब उस स्त्री ने अपने मुख से अयोग्य, असह्य दुर्वचन कहे, जिनको सुनकर वह ब्राह्मण हैरान हुआ और मन ही मन कहने लगा कि “मैं तो अपना हाथ कटने का कारण पूछने आया था, परंतु अब इनका ही हाल पहले पूछूँगा।” इतने में ज्योतिषी आ गये। घर में प्रवेश करते ही ब्राह्मणी ने अनेक दुर्वचन कहकर उनका तिरस्कार किया। परंतु ज्योतिषी जी चुप रहे और अपनी स्त्री को कुछ भी नहीं कहा। तदनंतर वे अपनी गद्दी पर आ बैठे। ब्राह्मण को देखकर ज्योतिषी ने उनसे कहाः “कहिये, ब्राह्मण देवता ! कैसे आना हुआ?”
“आया तो था अपने बारे में पूछने के लिए परंतु पहले आप अपना हाल बताइये कि आपकी पत्नी अपनी जुबान से आपका इतना तिरस्कार क्यों करती है? जो किसी से भी नहीं सहा जाता और आप सहन कर लेते हैं, इसका कारण है?”
“यह मेरी स्त्री नहीं, मेरा कर्म है। दुनिया में जिसको भी देखते हो अर्थात् भाई, पुत्र, शिष्य, पिता, गुरु, सम्बंधी – जो कुछ भी है, सब अपना कर्म ही है। यह स्त्री नहीं, मेरा किया हुआ कर्म ही है और यह भोगे बिना कटेगा नहीं।
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम्।
नाभुक्तं क्षीयते कर्म कल्पकोटिशतेरपि॥
‘अपना किया हुआ जो भी कुछ शुभ-अशुभ कर्म है, वह अवश्य ही भोगना पड़ता है। बिना भोगे तो सैंकड़ों-करोड़ों कल्पों के गुजरने पर भी कर्म नहीं टल सकता।’ इसलिए मैं अपने कर्म खुशी से भोग रहा हूँ और अपनी स्त्री की ताड़ना भी नहीं करता, ताकि आगे इस कर्म का फल न भोगना पड़े।”
“महाराज ! आपने क्या कर्म किया था?”
“सुनिये, पूर्वजन्म में मैं कौआ था और मेरी स्त्री गधी थी। इसकी पीठ पर फोड़ा था, फोड़े की पीड़ा से यह बड़ी दुःखी थी और कमजोर भी हो गयी थी। मेरा स्वभाव बड़ा दुष्ट था, इसलिए मैं इसके फोड़े में चोंच मारकर इसे ज्यादा दुःखी करता था। जब दर्द के कारण यह कूदती थी तो इसकी फजीहत देखकर मैं खुश होता था। मेरे डर के कारण यह सहसा बाहर नहीं निकलती थी किंतु मैं इसको ढूँढता फिरता था। यह जहाँ मिले वहीं इसे दुःखी करता था। आखिर मेरे द्वारा बहुत सताये जाने पर त्रस्त होकर यह गाँव से दस-बारह मील दूर जंगल में चली गयी। वहाँ गंगा जी के किनारे सघन वन में हरा-हरा घास खाकर और मेरी चोटों से बचकर सुखपूर्वक रहने लगी। लेकिन मैं इसके बिना नहीं रह सकता था। इसको ढूँढते-ढूँढते मैं उसी वन में जा पहुँचा और वहाँ इसे देखते ही मैं इसकी पीठ पर जोर-से चोंच मारी तो मेरी चोंच इसकी हड्डी में चुभ गयी। इस पर इसने अनेक प्रयास किये, फिर भी चोंच न छूटी। मैंने भी चोंच निकालने का बड़ा प्रयत्न किया मगर न निकली। ‘पानी के भय से ही यह दुष्ट मुझे छोड़ेगा।’ ऐसा सोचकर यह गंगाजी में प्रवेश कर गयी परंतु वहाँ भी मैं अपनी चोंच निकाल न पाया। आखिर में यह बड़े प्रवाह में प्रवेश कर गयी। गंगा का प्रवाह तेज होने के कारण हम दोनों बह गये और बीच में ही मर गये। तब गंगा जी के प्रभाव से यह तो ब्राह्मणी बनी और मैं बड़ा भारी ज्योतिषी बना। अब वही मेरी स्त्री हुई। जो मेरे मरणपर्यन्त अपने मुख से गाली निकालकर मुझे दुःख देगी और मैं भी अपने पूर्वकर्मों का फल समझकर सहन करता रहूँगा, इसका दोष नहीं मानूँगा क्योंकि यह किये हुए कर्मों का ही फल है। इसलिए मैं शांत रहता हूँ। अब अपना प्रश्न पूछो।”
ब्राह्मण ने अपना सब समाचार सुनाया और पूछाः “अधर्मी पापी राजा ने मुझ निरपराध का हाथ क्यों कटवाया?”
ज्योतिषीः “राजा ने आपका हाथ नहीं कटवाया, आपके कर्म ने ही आपका हाथ कटवाया है।”
“किस प्रकार?”
“पूर्वजन्म में आप एक तपस्वी थे और राजकन्या गौ थी तथा राजकुमार कसाई था। वह कसाई जब गौ को मारने लगा, तब गौ बेचारी जान बचाकर आपके सामने से जंगल में भाग गयी। पीछे से कसाई आया और आप से पूछा कि “इधर कोई गाय तो नहीं गया है?”
आपने प्रण कर रखा था कि ‘झूठ नहीं बोलूँगा।’ अतः जिस तरफ गौ गयी थी, उस तरफ आपने हाथ से इशारा किया तो उस कसाई ने जाकर गौ को मार डाला। गंगा के किनारे वह उसकी चमड़ी निकाल रहा था, इतने में ही उस जंगल से शेर आया और गौ एवं कसाई दोनों को खाकर गंगाजी के किनारे ही उनकी हड्डियाँ उसमें बह गयीं। गंगाजी के प्रताप से कसाई को राजकुमार और गौ को राजकन्या का जन्म मिला एवं पूर्वजन्म के किये हुए उस कर्म ने एक रात्रि के लिए उन दोनों को इकट्ठा किया। क्योंकि कसाई ने गौ को हंसिये से मारा था, इसी कारण राजकन्या के हाथों अनायास ही तलवार गिरने से राजकुमार का सिर कट गया और वह मर गया। इस तरह अपना फल देकर कर्म निवृत्त हो गया। तुमने जो हाथ का इशारा रूप कर्म किया था, उस पापकर्म ने तुम्हारा हाथ कटवा दिया है। इसमें तुम्हारा ही दोष है किसी अन्य का नहीं, ऐसा निश्चय कर सुखपूर्वक रहो।”
कितना सहज है ज्ञानसंयुक्त जीवन ! यदि हम इस कर्मसिद्धान्त को मान लें और जान लें तो पूर्वकृत घोर से घोर कर्म का फल भोगते हुए भी हम दुःखी नहीं होंगे बल्कि अपने चित्त की समता बनाये रखने में सफल होंगे। भगवान श्रीकृष्ण इस समत्व के अभ्यास को ही ‘समत्व योग’ संबोधित करते हैं, जिसमें दृढ़ स्थिति प्राप्त होने पर मनुष्य कर्मबंधन से मुक्त हो जाता है।
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एक बार स्वामी विवेकानंदजी से किसी ने
प्रश्न पूछा-हिन्दुओं में बाल विवाह होता है, ये गलत है, हिन्दू धर्म में सुधार होना चाहिए
-स्वामी जी ने उस से पूछा :-“क्या हिन्दू धर्म ने कभी कहा है कि प्रत्येक
व्यक्ति का विवाह होना चाहिए और वह विवाह उसके बाल्यकाल में ही होना चाहिए
प्रश्न पूछनेवाला थोड़ा सा सकपकाया फिर भी हठ करते हुए बोला “हिन्दुओं में बाल विवाह नहीं होते क्या?
-स्वामी जी :- पहले ये बताओ “विवाह
का प्रचलन हिन्दू समाज में है अथवा हिन्दू धर्म में।
धर्म तो ब्रह्मचर्य पर बल देता है। 25 वर्ष की अवस्था से पहले गृहस्थ आश्रम में प्रवेश करने की अनुमति कोई स्मृति नहीं देती और स्मृति भी तो समाज-शास्त्र ही है ये समाज का विधान है’ ….. स्वामी जी ने थोड़ा विराम लिया और फिर से बोले :-धर्म,पत्नी प्राप्ति की नहीं,ईश्वर-प्राप्ति की बात करता है।
प्रश्न फिर हुआ .स्वामी जी सुधार होना तो जरूरी है
-स्वामी जी:-अब आप स्वयं ही निर्णय करें कि सुधार किसका होना आवश्यक है .. समाज का या हिन्दू धर्म का …मूलतः हमें धर्म-सुधार की नहीं, समाज सुधार
की आवश्यक है और यही अपराध हम अब तक करते आ रहे हैं … हमें समाज- सुधार की आवश्यकता थी और करने
लग गए धर्म में सुधार
स्वामी जी आगे बोले …धर्म सुधार के नाम पर हिन्दुओं का सुधार तो नहीं हुआ किन्तु ये सत्य है कि हिन्दुओं का विभाजन अवश्य
हो गया। उनमें हीन भावना अधिक गहरी पैठ गई।
धर्म सुधार के नाम पर नए-नए सम्प्रदाय बनते गए और वो सब समाज के दोषों को हिन्दू धर्म से जोड़ते रहे और इनको ही गिनाते रहे।साथ ही साथ ये सम्प्रदाय भी एक दूसरे से दूर होते गए।सब में एक
प्रतिस्पर्धा सी आ गई और हर सम्प्रदाय आज इसमें जीतना चाहता है, प्रथम आना चाहता है –हिन्दू धर्म की आलोचना करके शासन की कृपा पाना चाहता है और उसके लिए हिन्दू धर्म की आलोचना करना सबसे सरल उपाय है … आज देखो, ये जितने भी सम्प्रदाय हैं हिन्दुओं की तुलना में
ईसाईयों के अधिक निकट हो गए हैं। वे हिन्दू समाज के दोषों को हिन्दू धर्म के साथ जोड़कर हिन्दुओं के दोष और ईसाईयों के गुण बताते है,ये दुर्भाग्य
ही तो है ..समाज सुधार को ..धर्मके सुधार से जोड़ देना ..जबकि धर्म में सुधार की आवश्यकता ही नहीं थी .आवश्यकता तो केवल धर्म के अनुसार समाज
में सुधार करने की है।🙏

ज्योतिष की विभिन्न पद्धतियाँ

भविष्य जानने की उत्सुकता हम सभी के मन में रहती है !अपनी इस उत्सुकता को शांत करने के लिए हम ज्योतिष की विभिन्न पद्धतियों का सहारा लेते हैं !भारत सहित विश्व के अन्य देशों में भविष्य कथन के लिये पद्धतियां हैं इनकी अपनी अपनी विधि और विशोषताएं है ! आइये हम इन्हीं पद्धियों के विषय में बात करें !
वैदिक ज्योतिष
वैदिक ज्योतिष भारतीय ज्योतिष विधि में सबसे प्रमुख है !यह वेद का हिस्सा है जिसे वेद की आंखें भी कहते हैं ! इसमें जन्म कुण्डली के आधार पर भविष्य कथन किया जाता है ! इस विधि से भविष्य जानने के लिए जन्म समय, जन्मतिथि एवं जन्म स्थान का ज्ञान होना आवश्यक होता है !
जैमिनी पद्धति
महर्षि पराशर और जैमिनी दोनों ही समकालीन थे.इन दोनों ऋषियों ने वैदिक ज्योतिष के आधार पर भविष्य आंकलन की नई विधि को जन्म दिया !जैमिनी पद्धति दक्षिण भारत में अधिक प्रचलित है !यह पद्धति वैदिक ज्योतिष से मिलती जुलती है परंतु इसके कुछ अपने सिद्धांत और नियम हैं ! जो ज्योतिषशास्त्री जैमिनी और पराशरी ज्योतिष दोनों से मिलाकर भविष्य कथन करते हैं उन्हें परिणाम काफी सटीक मिलते हैं !
प्रश्न कुण्डली
प्रश्न कुण्डली प्रश्न पर आधारित ज्योतिषीय विधि है;जिन्हें अपनी जन्मतिथि, समय और स्थान का ज्ञान नहीं होता उनके लिए यह ज्योतिष विधि श्रेष्ठ मानी जाती है ! इस विधि से प्रश्न पूछने के समय में उपस्थित ग्रहस्थिति के आधार पर लग्न का निर्घारण किया जाता है ! इस पद्धति में वैदिक ज्योतिष की तरह जटिल गणितीय विधि नहीं अपनाई जाती है ! प्रश्न ज्योतिष से आप जो प्रश्न करते हैं उससे सम्बन्धित उत्तर आपको तुरंत मिल जाता है ! इनमें विंशोत्तरी दशा , अन्तर्दशा , प्रत्यंर्दशा जैसे विषयों को शामिल नहीं किया गया है !
सामुद्रिक शास्त्र
सामुद्रिक शास्त्र को आम भाषा में हस्तरेखा विज्ञान कहते हैं ! इसमें हाथेली में मौजूद रेखाओं, ग्रहों के पर्वत , चिन्हों, शारीरिक संरचना, अंग लक्षण, हाथ पैर की बनावट सहित नाखूनों के आधार पर फल कथन किया जाता है,इस विधि से जिन्हें अपनी जन्म तिथि एवं जन्म समय का ज्ञान नहीं होता है वह भी अपना भविष्य फल जान सकते हैं ! हस्त रेखा को हस्तरेखा से फल कथन करने वाले ईश्वर का लेख मानते है !
लाल किताब
भविष्य कथन की एक पद्धति लाल किताब भी है ! लाल किताब सरल और सटीक ज्योतिष पद्धति है,इसमें ग्रहों के फल और उनके उपायो का विशेष महत्व है !इस विधि में भावों को खाना का नाम दिया गया है ! इसमें राशियां नहीं होती है बल्कि प्रत्येक खाने का अंक होता है,ग्रह किस खाने में बैठें इसके आधार पर फलकथन किया जाता है !इसमें शुभ ग्रहों की शुभता बढ़ाने के लिए और अशुभ ग्रहों के प्रभाव को कम करने के लिए बताये गये उपायों को टोटका नाम दिया गया है ! भारत के पंजाब प्रांत में ज्योतिष की यह विधि काफी लोकप्रिय है और दिनानुदिन लाल किताब के टोटकों का प्रचलन बढ़ता चला जा रहा है |
अंक ज्योतिष
अंक ज्योतिष का प्रचलन भारत में तेजी से हो रहा है ! पाश्चात्य देशों में यह पद्धति काफी प्रचलित और लोकप्रिय है ! इस पद्धति में नामांक , मूलांक और भाग्यांक इन तीन अंकों का विशेष महत्व है ! 1 से 9 तक के मूलांक होते हैं ; इस विधि में नामांक, मूलांक और भाग्यांक मेल नहीं खाते हों तो व्यक्ति के लिए शुभ नहीं माना जाता है ! इस विधि में उपचार का तरीका यह है कि तीनों प्रमुख अंक एक हों अगर ऐसा नहीं है तो नाम में परिवर्तन कर ऐसा नाम रखना चाहिए जिससे तीनों एक हो जाएं ! इस पद्धति में मूलांक और भाग्यांक जन्मतिथि के आधार पर निकाला जाता है जबकि नामांक अग्रेजी के आधार पर ज्ञात किया जाता है !
टैरो कार्ड
इन दिनों टैरो कार्ड से भविष्यफल ज्ञात करने की पद्धति भी प्रचलन में है ! इस पद्धति में ताश के पत्तों की तरह 78 कार्डस होते हैं,इनमें से 0 से 21 तक के 22 कार्ड प्रमुख होते हैं शेष 56 कार्ड साधारण कार्ड कहलाते हैं ! इन कार्डस को ताश के पत्तों की तरह फेंट कर प्रश्न कर्ता से कार्ड चुनने के लिए कहा जाता है ! चुने गये कार्डस के आधार पर फलकथन किया जाता है !
भविष्य जानने की अन्य विधियां उपरोक्त विधियों के अलावे कई अन्य विधियां हैं जिनसे भविष्य को देखा जाता है–
लोशु च्रक ,
रामशलाका ,
चीनी ज्योतिष ,
नंदी नाड़ी ज्योतिष ,
क्रिस्टल बॉल,
रमल ज्योतिष ,
मेदनीय ज्योतिष
और
भृगु संहिता
आप अपनी आस्था और विश्वास के आप अपनी आस्था और विश्वास के अनुसार किसी भी पद्धति द्वारा भविष्य में झांक सकते हैं !

भारतीय ज्योतिष शास्त्र के भेद
संहिता
ज्योतिष ग्रहों की चाल, वर्ष के लक्षण, तिथि, वार, नक्षत्र, योग, कण, मुहूर्त, ग्रह-गोचर भ्रमण, चन्द्र ताराबल, सभी प्रकार के लग्नों का निदान, कर्णच्छेद, यज्ञोपवीत, विवाह इत्यादि संस्कारों का निर्णय तथा पशु-पक्षी चेष्टा ज्ञान, शकुन विचार, रत्न विद्या, अंग विद्या, आकार लक्षण, पक्षी व मनुष्य की असामान्य चेष्टाओं का चिन्तन संहिता विभाग का विषय है।
संहिता ज्योतिष के प्रमुख ग्रन्थों के नाम
संहिता ग्रन्थों में वृहत्संहिता, कालक संहिता, नारद संहिता, गर्ग संहिता, भृगु संहिता, अरुण संहिता, रावण संहिता, लिंग संहिता, वाराही संहिता, मुहूर्त चिन्तामण इत्यादि प्रमुख संहिता ग्रन्थ हैं।
संहिता ज्योतिष के प्रमुख आचार्यों के नाम
मुहूर्त गणपति, विवाह मार्तण्ड, वर्ष प्रबोध, शीघ्रबोध, गंगाचार्य, नारद, महर्षि भृगु, रावण, वराहमिहिराचार्य सत्य-संहिताकार रहे हैं।
होरा शास्त्र राशि, होरा, द्रेष्काण, नवमांश, चलित, द्वादशभाव, षोडश वर्ग, ग्रहों के दिग्बल, काल बल, चेष्टा बल, ग्रहों के धातु, द्रव्य, कारकत्व, योगायोग, अष्टवर्ग, दृष्टिबल, आयु योग, विवाह योग, नाम संयोग, अनिष्ट योग, स्त्रियों के जन्मफल, उनकी मृत्यु नष्टगर्भ का लक्षण प्रश्न एवं ज्योतिष के फलित विषय पर जहाँ विकसित नियम स्थापित किए जाते हैं, वह होरा शास्त्र कहलाता है।
होरा शास्त्र के प्रमुख ग्रन्थों के नाम
सबसे प्रसिद्ध ग्रन्थ वृहद पाराशर होरा शास्त्र मानसागरी, सारावली, वृहत्जातक, जातकाभरण, चमत्कार चिन्तामणि, ज्योतिष कल्पद्रुम, जातकालंकार, जातकतत्व होरा शास्त्र इत्यादि हैं।
होरा शास्त्र के प्रमुख आचार्यों के नाम
पुराने आचार्यों में पाराशर, मानसागर, कल्याणवर्मा, दुष्टिराज, रामदैवज्ञ, गणेश, नीपति आदि हैं।

भारतीय ज्‍योतिष के मूल पर विचार करें तो यह समझना व जानना अत्‍यंत सरल हो जायेगा कि फल ज्‍योतिष में कितनी सच्‍चाई है । और भारतीय ज्‍योतिष की यह विशेषता है कि इसमें यह जान पाना आसान है कि फलित कितना सही है अथवा कितना गलत । क्‍योंकि फल ज्‍योतिष में उत्‍तम फलित साधन के लिये उत्‍तम गणित व आकलन के साथ अभ्‍यास साधना और अतीन्‍द्रीय ज्ञान विशेष आवश्‍यक है । अन्‍यथा कभी भी फलित सटीक नहीं बैठता । फल ज्‍योतिष में कुण्‍डली क्रम का सूक्ष्‍म अध्‍ययन करने पर यदि ज्‍योतिष का अच्‍छा जानकार ज्‍योतिषी होगा तो पूर्व जन्‍म अर्थात पिछले जन्‍म का हाल बता देगा । पिछले जन्‍म का हाल जानने के लिये ज्‍योतिषी नक्षत्र काल गुजरने यानि नक्षत्र के किस चरण या अंश पर जन्‍म हुआ है इसे आधार मानते हैं । इसमें नक्षत्र का गुजरा समय विंशोत्तरी दशा का भुक्‍त काल माना जाता है और शेष बचे समय को भोग्‍य काल कहा जाता है । नक्षत्र की गुजरी अवधि बालक की माँ के गर्भ में गुजारी गयी अवधि की गणना बताती है, तथा इससे पूर्व की अवधि की गणना करते ही पिछले जन्‍म का विवरण प्राप्‍त होना प्रारंभ हो जाता है ।

भृगु संहिता पद्धति:आकलन
महर्षियों ने दिव्य दृष्टि, सूक्ष्म प्रज्ञा, विस्तृत ज्ञान द्वारा शरीरस्थ सौर मंडल का अध्ययन, मनन, अन्वेषण, पर्यवेक्षण, अवलोकन तदनुसार आकाशीय सौर मंडल की व्यवस्था की। उन ग्रहों के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया। कालांतर में ज्योतिष विद्या का प्रचार‍ प्रसार हुआ। इस समय भृगु संहिता उपलब्ध नहीं है बल्कि भृगु संहिता के नाम से कुछ ग्रंथ यत्र ‍तत्र अपूर्ण प्राप्त हैं ।
जातक के भविष्य कथन को लेकर भृगुसंहिता जितना चर्चित ग्रंथ है, उतना ही विवादास्पद भी। कुछ दैवज्ञ तो इस तरह के किसी ग्रंथ को ही नकार देते हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार, त्रिदेवों में कौन श्रेष्ठ है, इसकी परीक्षा के लिए जब महर्षि भृगु ने विश्वपालक श्रीविष्णु के वक्षस्थल पर प्रहार किया, तो पास बैठी विष्णुपत्नी, धनदेवी महालक्ष्मी ने भृगु को शाप दे दिया कि अब वे किसी ब्राह्मण के घर निवास नहीं करेंगी। परिणामस्वरूप सरस्वती पुत्र ब्राह्मण सदैव दरिद्र ही रहेंगे। अनुश्रुति है कि उस समय महर्षि भृगृ की रचना ‘ज्योतिष संहिता’ अपनी पूर्णता के अंतिम चरण पर थी, इसलिए उन्होंने कह दिया, ‘देवी लक्ष्मी, आपके कथन को यह ग्रंथ निरर्थक कर देगा।’ लेकिन महालक्ष्मी ने भृगु को सचेत किया कि इसके फलादेश की सत्यता आधी रह जाएगी। लक्ष्मी के इन वचनों ने भृगु के अहंकार को झकझोर दिया। वे लक्ष्मी को शाप दें, इससे पहले विष्णु ने भृगु से कहा, ‘महर्षि आप शांत हों! आप एक नए संहिता ग्रंथ की रचना करें। इस कार्य के लिए मैं आपको दिव्य दृष्टि देता हूं।’ तब तक लक्ष्मी भी शांत हो गईं थीं। उन्हें ज्ञात हो गया था कि महर्षि ने पदप्रहार अपमान की दृष्टि से नहीं, परीक्षा के लिए किया था। विष्णु के कथनानुसार, भृगु ने जिस संहिता ग्रंथ की रचना की वही जगत में ‘भृगुसंहिता’ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। जातक के भूत, भविष्य और वर्तमान की संपूर्ण जानकारी देने वाला यह ग्रंथ भृगु और उनके पुत्र शुक्र के बीच हुए प्रश्नोत्तर के रूप में है ।
एक किंवदंती के अनुसार, लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व काठमांडू स्थित एक पुस्तकालय से इस संहिता के लगभग दो लाख पृष्ठों को एक ब्राह्मण हाथ से लिखकर होशियारपुर (पंजाब) के टूटो माजरा गांव आया था। वैसे होशियारपुर के कुछ ज्योतिषी असली भृगुसंहिता के अपने पास होने का दावा करते हैं। मान्यता है कि इस ग्रंथ में विश्व के प्रत्येक जातक की जन्मकुंडली है और यदि वह मिल जाती है, तो जातक के जीवन के तीनों कालों की जानकारी यथार्थ रूप में प्राप्त हो सकती है। बाजार में ‘भृगु संहिता’ नाम से जो ग्रंथ उपलब्ध है, वह मूल संहिता ग्रंथ की एक झलक मात्र देते हैं। इनमें जन्मकुंडली में ग्रहों के योगों की संभावनाओं पर ही विशेषरूप से प्रकाश डाला गया है। इनमें कुंडली संख्या पंद्रह सौ से दो हजार तक है। कहते हैं कि इन कुंडलियों पर चिंतन-मनन करने से दैवज्ञ भविष्य फल कथन करने में निष्णात तो हो ही जाता है !
: जानिए वो छह काम जो केवल कर सकते थे हनुमानजी?
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शिवपुराण के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्रीराम की सहायता करने और दुष्टों का नाश करने के लिए भगवान शिव ने वानर जाति में हनुमान के रूप में अवतार लिया था। हनुमान को भगवान शिव का श्रेष्ठ अवतार कहा जाता है। जब भी श्रीराम-लक्ष्मण पर कोई संकट आया, हनुमानजी ने उसे अपनी बुद्धि व पराक्रम से दूर कर दिया।

वाल्मीकि रामायण के उत्तर कांड में स्वयं भगवान श्रीराम ने अगस्त्य मुनि से कहा है कि हनुमान के पराक्रम से ही उन्होंने रावण पर विजय प्राप्त की है। आज हम आपको हनुमानजी द्वारा किए गए कुछ ऐसे ही कामों के बारे में बता रहे हैं, जिन्हें करना किसी और के वश में नहीं था-

  1. समुद्र लांघना
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    माता सीता की खोज करते समय जब हनुमान, अंगद, जामवंत आदि वीर समुद्र तट पर पहुंचे तो 100 योजन विशाल समुद्र को देखकर उनका उत्साह कम हो गया। तब अंगद ने वहां उपस्थित सभी पराक्रमी वानरों से उनके छलांग लगाने की क्षमता के बारे में पूछा। तब किसी वानर ने कहा कि वह 30 योजन तक छलांग लगा सकता है, तो किसी ने कहा कि वह 50 योजन तक छलांग लगा सकता है।

ऋक्षराज जामवंत ने कहा कि वे 90 योजन तक छलांग लगा सकते हैं। सभी की बात सुनकर अंगद ने कहा कि- मैं 100 योजन तक छलांग लगाकर समुद्र पार तो कर लूंग, लेकिन लौट पाऊंगा कि नहीं, इसमें संशय है। तब जामवंत ने हनुमानजी को उनके बल व पराक्रम का स्मरण करवाया और हनुमानजी ने 100 योजन विशाल समुद्र को एक छलांग में ही पार कर लिया।

  1. माता सीता की खोज
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    समुद्र लांघने के बाद हनुमान जब लंका पहुंचे तो लंका के द्वार पर ही लंकिनी नामक राक्षसी से उन्हें रोक लिया। हनुमानजी ने उसे परास्त कर लंका में प्रवेश किया। हनुमानजी ने माता सीता को बहुत खोजा, लेकिन वह कहीं भी दिखाई नहीं दी। फिर भी हनुमानजी के उत्साह में कोई कमी नहीं आई। मां सीता के न मिलने पर हनुमानजी ने सोचा कहीं रावण ने उनका वध तो नहीं कर दिया, यह सोचकर हनुमानजी को बहुत दु:ख हुआ, लेकिन उनके मन में पुन: उत्साह का संचार हुआ और वे लंका के अन्य स्थानों पर माता सीता की खोज करने लगे। अशोक वाटिका में जब हनुमानजी ने माता सीता को देखा तो वे अति प्रसन्न हुए। इस प्रकार हनुमानजी ने यह कठिन काम भी बहुत ही सहजता से कर दिया।
  2. अक्षयकुमार का वध व लंका दहन
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    माता सीता की खोज करने के बाद हनुमानजी ने उन्हें भगवान श्रीराम का संदेश सुनाया। इसके बाद हनुमानजी ने अशोक वाटिका को तहस-नहस कर दिया। ऐसा हनुमानजी ने इसलिए किया क्योंकि वे शत्रु की शक्ति का अंदाजा लगा सकें। जब रावण के सैनिक हनुमानजी को पकडऩे आए तो उन्होंने उनका भी वध कर दिया।

इस बात की जानकारी जब रावण को लगी तो उसने सबसे पहले जंबुमाली नामक राक्षस को हनुमानजी को पकडऩे के लिए भेजा, हनुमानजी ने उसका वध कर दिया। तब रावण ने अपने पराक्रमी पुत्र अक्षयकुमार को भेजा, हनुमानजी ने उसका वध भी कर दिया। इसके बाद हनुमानजी ने अपना पराक्रम दिखाते हुए लंका में आग लगा दी। पराक्रमी राक्षसों से भरी लंका नगरी में जाकर माता सीता को खोज करना व अनेक राक्षसों का वध करके लंका को जलाने का साहस हनुमानजी ने बड़ी ही सहजता से कर दिया।

  1. विभीषण को अपने पक्ष में करना
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    श्रीरामचरित मानस के अनुसार जब हनुमानजी लंका में माता सीता की खोज कर रहे थे, तभी उन्होंने किसी के मुख से भगवान श्रीराम का नाम सुना। तब हनुमानजी ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और विभीषण के पास जाकर उनका परिचय पूछा। अपना परिचय देने के बाद विभीषण ने हनुमानजी से उनका परिचय पूछा। तब हनुमानजी ने उन्हें सारी बात सच-सच बता दी।

रामभक्त हनुमान को देखकर विभीषण बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने पूछा कि क्या राक्षस जाति का होने के बाद भी श्रीराम मुझे अपनी शरण में लेंगे। तब हनुमानजी ने कहा कि भगवान श्रीराम अपने सभी सेवकों से प्रेम करते हैं। जब विभीषण रावण को छोड़कर श्रीराम की शरण में आए तो सुग्रीव, जामवंत आदि ने कहा कि ये रावण का भाई है। इसलिए इस पर भरोसा नहीं करना चाहिए। उस स्थिति में हनुमानजी ने ही विभीषण का समर्थन किया था। अंत में, विभीषण के परामर्श से ही भगवान श्रीराम ने रावण का वध किया।

  1. राम-लक्ष्मण के लिए पहाड़ लेकर आना
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    वाल्मीकि रामायण के अनुसार युद्ध के दौरान रावण के पराक्रमी पुत्र इंद्रजीत ने ब्रह्मास्त्र चलाकर कई करोड़ वानरों का वध कर दिया। ब्रह्मास्त्र के प्रभाव से ही भगवान श्रीराम व लक्ष्मण बेहोश हो गए। तब ऋक्षराज जामवंत ने हनुमानजी से कहा कि तुम शीघ्र ही हिमालय पर्वत जाओ, वहां तुम्हें ऋषभ तथा कैलाश शिखर का दर्शन होगा।

इन दोनों के बीच में एक औषधियों का पर्वत दिखाई देगा। तुम उसे ले आओ। उन औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व अन्य सभी घायल वानर पुन: स्वस्थ हो जाएंगे। जामवंतजी के कहने पर हनुमानजी तुरंत उस पर्वत को लेने उड़ चले। रास्ते में कई तरह की मुसीबतें आईं, लेकिन अपनी बुद्धि और पराक्रम के बल पर हनुमान उस औषधियों का वह पर्वत समय रहते उठा ले आए। उस पर्वत की औषधियों की सुगंध से ही राम-लक्ष्मण व करोड़ों घायल वानर पुन: स्वस्थ हो गए।

  1. अनेक राक्षसों का वध
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    युद्ध में हनुमानजी ने अनेक पराक्रमी राक्षसों का वध किया, इनमें धूम्राक्ष, अकंपन, देवांतक, त्रिशिरा, निकुंभ आदि प्रमुख थे। हनुमानजी और रावण में भी भयंकर युद्ध हुआ था। रामायण के अनुसार हनुमानजी का थप्पड़ खाकर रावण उसी तरह कांप उठा था, जैसे भूकंप आने पर पर्वत हिलने लगते हैं। हनुमानजी के इस पराक्रम को देखकर वहां उपस्थित सभी वानरों में हर्ष छा गया था।
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    [6/26, 13:53] +91 98397 60662: <<<ॐ>>>
    कर्म बन्ध:—
    महादेव कहते है कि हे पार्वती जिसे वेद परमब्रह्म कहता है उसे शैव दर्शन के विशेषज्ञ शिव कहते है । वही निष्कल ब्रह्म है।
    उसके पांच गुण विशेष रूप से प्रसिद्ध है वह सर्वज्ञ है अर्थात सब कुछ जानता है, सर्वकर्त्तृत्वसम्पन्न है समर्थ है, वह सर्वेश्वर है इन तीन विशेषणों के द्वारा यह स्पष्ट कर दिया है कि परमेश्वर इच्छा , क्रिया, और ज्ञान शक्ति यों कि अधीश्वर है।
    वह मल रहित है जीव मल कंचुक से ग्रस्त होता है परमेश्वर कचुंकरूप मल से ग्रस्त नही होता। परमेश्वर अद्वय है वहां भेद प्रथा कि पार्थक्य नही है ऐसा यह चिन्मय ब्रह्म ही शिव है ।
    वह स्वयं प्रकाश है पर प्रकाश्य नही अर्थात् वह दुसरे ये माध्यम से प्रकाशित नही होता। उसी से सारा विश्व प्रकाशित होता है
    उसके आदि और अन्त कि प्रकल्प नही किया जा सकती। उसमे कोई विकार नही होता। वही परात्पर परमात्मा है निर्गुण निर्विकार, सच्चित्, और आनन्दस्वरूप है सारे जीव उसी परमेश्वर को अंश मात्र है । अ
    जीवो को परिभाषित करते हुए ईश्वर आगे कहते है कि जैसे ज्वाला से जाजवल्य मान अग्नि से वे कण रूप विस्फुलिगं अत्यन्त लघु रूप मे अपने मूल रूप से पृथक प्रति शासित होते। है उसी तरह ये जीव भी सर्वव्याप्त स्वप्रकाश परमेश्वर से विनिसृत होते और पृथक प्रतिसित होते है।
    ये अनादि अविधा से उपहत अभिभूत अर्थात अपने अपने मूलरूप को विस्मृत कर अणुत्व से अभिशप्त हो जाते है इसका बडा ही भयंकर परिणाम उसे भोगना पडता है । वह जन्म मरण सी साँसत भरी चक्की मे जिसने या साधन बन जाता है ।
    गर्भ आदि प्रक्रिया मे पड कर अने उपाधियों से अभिभूत होकर शिव रूप आदि कारण से पृथक होकर पार्थक्य प्रथा से प्रथित हो जाता है कर्मबन्धन से बाँधकर बीजांकुर न्याय के अनुसार कार्यकारण वाद ये सिद्धांत या आधार बन जाता है।
    इसी तरह उत्पन्न ये सारे जीव सभी दुख प्रदेश अपने द्वारा आ चरित पुण्य और पाप रूप कर्मों से ही नियन्त्रित होने को बाध्य हो जाते है इसे ही कर्मबँध कहते है जिससे वे बँधने को विवश हो जाते है। शो
    परिणामस्वरूप वे विभिन्न ,अण्डज, पिण्डज, जरायुज, और स्वेदज आदि जातियों मे जन्म लेते और तदनुसार शरीर धारण करते है कर्मों के अनुसार ही उनके आयुष्य और कर्मज भोग भी प्राप्त होते है।
    यह कर्म उनके जन्म जन्मा तप तक चलता रहता है। अपने कर्म और उनके परिपाक ये परिणामस्वरूप मनुष्य योनि मे उत्पन्न होकर भी अपनी चेतना से वंचित रह जाते है ऐसे मनुष्य को मुढचेता कहते है इस्थुल शरीर को अतिरिक्त एक सुक्ष्म लिंग शरीर भी प्राणी को प्राप्त होता है । जो इस नश्वर शरीर या अविनश्वर कारण माना जाता है । क
    प्रति जन्म अनुसार उसी शरीर को आधार पर नया शरीर इन मुढचेता मनुष्यों को मिलता है यह अक्षय, मोक्ष ये विपरीत अक्षय आवागमन ही अभिशाप रूप से मुख मनुष्यों को मिलता रहता है । मोक्ष सी दशा मे लिगंशरीर भी नही रहता और अक्षय मोक्ष उपलब्ध हो जाता है

फल्गु तीर्थ का महात्म्य

फल्गु तीर्थ का इतिहास पुराणकाल से भी पहले का है। यह तीर्थ हरियाणा प्रदेश के कैथल जिले की पुण्डरी तहसील के अंतर्गत एक गांव फरल में स्थित है। फल्गु ऋषि नाम के एक महात्मा यहाँ निवास करते थे ।उन्हीं के नाम व तप से इस तीर्थ की प्रसिद्घि हुई। यह तीर्थ स्थल कैथल से 25 कि0मी0, कुरुक्षेत्र से 27 कि0मी0 और पेहवा से 20 कि0मी0 ढाण्ड-पूण्डरी मार्ग पर लगभग दोनों के मध्य स्थित है।

इस तीर्थ का वर्णन महाभारत, वामन पुराण , मत्स्य पुराण तथा नारद पुराण में उपलब्ध है। महाभारत एवं पौराणिक काल में इस तीर्थ का महत्व अपने चरम उत्कर्ष पर था। महाभारत एवं वामन पुराण दोनों में यह तीर्थ देवताओं की तपस्या की विशेष स्थली के रूप मं उल्लिखित है। महाभारत वन पर्व में तीर्थ यात्रा प्रसंग के अन्तर्गत इस तीर्थ के महत्व के विषय में स्पष्ट उल्लेख है –

ततो गच्छेत राजेन्द्र फलकीवनमुत्तमम्।
तत्र देवाः सदा राजन् फलकीवनमाश्रिताः।
तपश्चरन्ति विपुल
बहुवर्षसहस्रकम्।

  –महाभारत, वन पर्व, 3/81/72
                                                                                   अर्थात् तत्पश्चात् मनुष्य को देवों द्वारा देवताओं ने हजारों वर्षो तक कठोर तपस्या की। बिल्कुल ऐसा ही वाक्य वामन पुराण में भी उपलब्ध होता है, जहां लिखा है कि तत्पश्चात देवता, गन्धर्व, साध्य एवं ऋषि लोगों को दिब्य निवास वाले उस फलकीवन में जाना चाहिए जहां देव, गन्धर्व, सिद्ध एवं ऋषि सदैव तपस्यारत रहते है।

महाभारत व वामन पुराण के अनुसार इस तीर्थ में स्नान करने एवं देवताओं का तर्पण करने से मनुष्य अग्निष्टोम तथा अतिरात्र यज्ञों के करने से कहीं अधिक श्रेष्ठतर फल को प्राप्त करता है। वामन पुराण में ही ऐसा भी लिखा है कि सोमवार के दिन चन्द्रमा के क्षीण हो जाने पर अर्थात् अमावस्या के दिन इस तीर्थ में किया गया श्राद्ध पितरों को वैसा ही तृप्त और सन्तुष्ट करता है।

अग्नि पुराण में भी फल्गु नामक एक तीर्थ का वर्णन है जिसके जल एवं भूमि मानव को लक्ष्मी तथा कामधेनु का फल देने वाले हैं।

‘श्री फल्गु ऋषि’ फलकीवन में तपस्या किया करते थे। उनके तपस्या काल में प्रसिद्ध गया जी तीर्थ पर गयासुर का राज्य था।

गयासुर की यह प्रतिज्ञा थी कि जो उसे शास्त्रार्थ में पराजित कर देगा उसके साथ वह अपनी तीनों पुत्रियों का विवाह करेगा। उस समय फल्गु तीर्थ यानी फलकी वन में फल्गु ऋषि तपस्या कर रहे थे। गयासुर से त्रस्त लोगों और देवताओं के अनुरोध से जब उन्हें गयासुर की प्रतिज्ञा का पता चला तो गृहस्थ आश्रम को सर्वश्रेष्ठ समझकर वहां गए और शास्त्रार्थ में गयासुर को पराजित करके उसकी तीनों कन्याओं के साथ विवाह कर लिया एवं गृहस्थ बनें। दहेज में गयासुर ने गया जी में पितृतृप्ति हेतु किए जाने वाले कार्यो में मिलने वाले फल का वर भी दिया। लेकिन उसके लिए समय भी निश्चित किया। जैसा कि वामन पुराण के 36 में अध्याय के श्लोक संख्या 49 और 50 में वर्णित है –

सोमक्षये च सम्प्राप्ते सोमस्य च दिन तथा।
यः श्राद्ध च मत्यस्तस्य फल पुष्पम्।। 49

गंगायां च यथा श्राद्ध पितृन्प्रीणति नित्यशः।
तथा श्राद्ध च कर्तव्य फल्कीवनमाश्रितैः।। 50

अर्थात् ‘‘अमावस्या (सोमक्षय) होने पर सोमवार के दिन जो मनुष्य श्राद्ध करता है, उसे बहुत अधिक पुण्य प्राप्त होता है। 49।

गया जी में किया हुआ श्राद्ध जिस प्रकार से नित्य ही पितृगण (पितरों) को प्रसन्न करता है उसी प्रकार फलकीवन में रहकर किया गया श्राद्ध प्रसन्नता देता है। 50।

कहा जाता है कि सोमावती ऋषि फल्गु को अधिक प्रिय थी, इसी कारण इस अमावस्या को सोमवती के नाम से भी जाना जाता है। लाखों श्रद्वालु इस योग के प्राप्त होने पर यहां पितरों के निमित श्राद्ध करते हैं –

फल्गुतीर्थे विष्णुजले करोमि स्नानमद्य वै।
पितृणां विष्णुलोकाय भुक्तिमुक्तिप्रसिद्धये।।’’

इस पावन तीर्थ पर फल्गु ऋषि के मन्दिर के अलावा इस प्रसिद्ध तीर्थ पर कई सुन्दर मन्दिर हैं।
बिहार राज्य के गया क्षेत्र की फल्गु नदी व हरियाणा राज्य के फलकी वन में स्थित फल्गु तीर्थ के नाम तथा गुण दोनों से ही शतशः साम्य है। क्योंकि दोनों तीर्थो में ही पितरो को सन्तुष्ट करने हेतु श्राद्धादि करने का विधान है। गया के पूर्व में फल्गु नदी बहती है। इसमें केवल वर्षा ऋतु में जल रहता है। परन्तु रेत में गड्डा करने से स्वच्छ जल निकल आता है।

गया के पास ही नागकुट पहाड़ी है। उसके दक्षिण में फल्गु नदी का महाना जाता है। गया से दक्षिण में 4 कि0मी0 पर नीलाजल नदी इस नदी के मुहाने में मिलती है। उस संगम से डेढ किलोमिटर दक्षिण सरस्वती के मन्दिर तक नदी का नाम सरस्वती है। इसकी धारा वर्षा के बाद फल्गु नदी के सुख जाने पर अलग होकर गदाधर मन्दिर के नीचे से बहती है। इस तीर्थ के विस्तार क्षेत्र के विषय में आगे लिखा है –

नागकूटाद् गृध्राकूटाद्यूपादुन्तरमानसात्।
एतद्गयाशिरः प्रोक्तं फल्गुतीर्थ तदूच्यते।।

अर्थात् नागकूट से गृध्रकूट, गृध्रकूट से यूप से उत्तर मानसः ये ही गयासुर के शिरोभग कहे जाते हैं। इन्हीं को फल्गुतीर्थ कहते हैं।
इस तीर्थ का उल्लेख वायु पुराण एवं अग्नि पुराण में स्पष्ट रूप से किया गया है। वायु पुराण में इस तीर्थ के माहात्म्य का विस्तार से वर्णन किया है तथा इसे सर्वश्रेष्ठ तीर्थ की संज्ञा दी गई है –

फल्गुतीर्थ व्रजेतस्मात्सर्वतीर्थोत्तमोत्तमम्।
मुक्तिर्भवति कर्तृणां पितृणां श्राद्धतः सदा।।
ब्राह्मणा प्राथितो विष्णुः फल्गुको हय्भवत्पुरा।
दक्षिणाग्नौ हुतं तत्र तद्रजः फल्गुतीर्थकम्।।

अर्थात् तदनन्तर सभी तीर्थो में श्रेष्ठ फल्गुतीर्थ की यात्रा करनी चाहिए; वहां पर श्राद्ध करने वालों की एवं उनके पितरों की सर्वदा मुक्ति होती है। वहां पर ब्रह्मा की प्रार्थना पर प्राचीन काल में भगवान विष्णु स्वयं फल्गु रूप में प्रतिष्ठित हुए थे। इसी पुराण में इस तीर्थ के माहात्म्य में विस्तार से लिखा है कि यज्ञ की दक्षिणाग्नि में आहुति रूप में पड़ा हुआ रज ‘फल्गुतीर्थ’ के रूप में प्रसिद्ध हुआ। फल्गु तीर्थ के माहात्म्य एवं सर्वश्रेष्ठ होने की पुष्टि इसी तथ्य से हो जाती है कि सम्पूर्ण पृथ्वी के समस्त तीर्थ समूह देवताओं के साथ इस फल्गु तीर्थ में स्नान के लिए आते हैं –

तीर्थानि यानि सर्वाणि भुवनेष्वखिलष्वपि।
तानी स्नातुं समायान्ति फल्गुतीर्थ सुरैः सह।।

                  (वायु-111/15) 
                                                 वायु पुराण में फल्गु तीर्थ को पतित-पावनी गंगा से भी श्रेष्ठ मानते हुए कहा गया है –

गंगा पादोदकं विष्णोः फल्गुह्यादि गदाधरः।
स्वयं हि द्रवरूपेण तस्माद् गंगाधिकं विदुः।। (वायु-111/16)
अर्थात् गंगा भगवान विष्णु की पादोदक स्वरूप है किन्तु फल्गु तो स्वयं आदि गदाधर स्वरूप हैं; इस प्रकार उनका महात्म्य गंगा से अधिक माना गया है।

गृह्यसूक्त के अनुसार , फल्गु तीर्थ में स्नान कर आदि गदाधर देव दर्शन करने पर मनुष्य को निम्नोक्त फल प्राप्त होता है –

फल्गुतीर्थे नरः स्नात्वा दृष्ट्वा देवं गदाधरम्।
आत्मान तारयेत्सद्यो दश पूर्वान्दशापरान्।।

अर्थात् फल्गु तीर्थ में स्नान करके गदाधर देव का दर्शन करने वाला मनुष्य अपने उद्धार के साथ-साथ अपने पूर्व की दस पीढ़ियों तथा भावी दस पीढ़ियों का उद्धार करता है। यह सम्पूर्ण तीर्थ 15 एकड़ के विस्तृत भू-भाग में फैला हुआ है। यहां पितृपक्ष की सोमवती अमावस्या को मेले का आयोजन होता है।

विभिन्न लग्नों के लिए शुभ तथा अशुभ ग्रह |

ज्योतिष में नौ ग्रहों का जिक्र किया गया है. इन ग्रहों में से कोई भी ग्रह शुभ माना अथवा अशुभ हो सकता है क्योकि हर लग्न के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रह भिन्न होते हैं. इस लेख में पाठको को सभी बारह लग्नों के लिए शुभ अथवा अशुभ ग्रहो के विषय में बताया जाएगा.

मेष लग्न | Aries Ascendant

मेष लग्न में मंगल लग्नेश तथा अष्टमेश होता है. मेष राशि को मंगल की मूल त्रिकोण राशि माना जाता है. मेष लग्न चर लग्न है और चर लग्न के लिए एकादशेश बाधक का काम करता है. इसलिए शनि एकादशेश होने से बाधकेश का काम करता है. गुरु ग्रह नवमेश है और यदि कुण्डली में गुरु और शनि एक साथ होते हैं तब यह अच्छा फल नहीं देगें क्योकि भाग्येश की युति बाधकेश के साथ हो गई है. कुण्डली में शनि जिस भी ग्रह के साथ होगा उसके कारकत्वों में कमी कर सकता है. कुण्डली में शनि की स्थिति यदि ठीक नही है तब वह मारक का काम भी कर सकता है. मेष लग्न के लिए शुक्र मारक है तो चंद्रमा चतुर्थ का स्वामी होकर मिश्रित फल प्रदान करता है.

वृष लग्न | Taurus Ascendant

वृष लग्न के जातको के लिए शनि शुभ फलदायक है क्योकि शनि केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होकर योगकारक है. बृहस्पति अष्टमेश तथा एकादशेश होने से मारक के समान फल प्रदान करता है. शुक्र लग्नेश होने के साथ छठे भाव का स्वामी भी होता है इसलिए इसके शुभ फल देने में संदेह रहता है क्योकि इसकी मूल त्रिकोण राशि छठे भाव में पड़ती है. चंद्रमा तीसरे भाव का स्वामी होकर शुभ फल प्रदान करता है और सूर्य चतुर्थ भाव का स्वामी होता है इसलिए शुभ फल प्रदान करता है क्योकि केन्द्र के स्वामी साम हो जाते हैं और सूर्य क्रूर ग्रह होने से सम हो जाता है.

बुध दूसरे का स्वामी होने से धनकारक होने के साथ मारक भी होता है लेकिन साथ ही पंचम भाव का स्वामी होने से शुभ फल भी प्रदान करता है क्योकि पंचम त्रिकोण भाव है. मंगल इस लग्न के लिए सप्तम और बारहवें भाव का स्वामी होकर मारक का काम करता है. चंद्रमा तीसरे भाव का स्वामी है और यदि वह किसी मारक ग्रह के साथ स्थित हो जाता है तब मारक जैसे ही फल प्रदान करता है.

मिथुन लग्न | Gemini Ascendant

इस लग्न के लिए बृहस्पति दशम भाव का स्वामी होने के साथ सप्तम भाव का भि स्वामी होता है और सप्तमेश होने से यह ग्रह मारक का काम करता है. साथ ही मिथुन लग्न द्वि-स्वभाव राशि का है और द्विस्वभाव लग्न के लिए सप्तमेश बाधक होता है. शनि इस लग्न के लिए अष्टमेश तथा नवमेश होता है. अष्टम भाव बाधा का है तो नवम भाव सबसे शुभ त्रिकोण भाव है. यदि कुण्डली में गुरु व शनि की युति हो जाती है तब शनि भी शुभ फल प्रदान करने में दिक्कत कर सकते हैं. बुध इस लग्न के लिए लग्नेश तथा चतुर्थेश होता है लेकिन इसकी दोनो राशियाँ केन्द्र में पड़ने से इसे केन्द्राधिपति दोष भी लगता है और इस कारण शुभ फल प्रदान नहीं करता है. चंद्रमा दूसरे भाव का स्वामी है और मारक हो जाता है लेकिन कहा गया है कि चंद्र तथा सूर्य को मारक का दोष नहीं लगता है लेकिन कुण्डली में यदि चंद्रमा किसी पाप ग्रह के साथ बैठ गया तब मारक का काम कर सकता है.

कर्क लग्न | Cancer Ascendant

इस लग्न के लिए मंगल ग्रह पंचम तथा दशम का स्वामी होने से अत्यधिक शुभ तथा योगकारक बन जाता है. बृहस्पति भी नवम भाव का स्वामी होने से शुभ ही बन जाता है. चंद्रमा लग्नेश होकर शुभ होता है. इस प्रकार हम कह सकते है कि कर्क लग्न के लिए चंद्रमा, गुरु तथा मंगल तीनो शुभ ग्रह होते हैं. शनि इस लग्न के लिए सप्तमेश तथा अष्टमेश होकर बिल्कुल ही खराब है और सूर्य दूसरे भाव का स्वामी होकर मारक हो जाता है. यदि सूर्य तथा शनि की युति हो जाए तब फल शुभ नहीं हो सकते हैं.

शुक्र को कर्क लग्न के लिए शुभ नहीं माना जाता है क्योकि कर्क लग्न चर लग्न है और चर लग्न के लिए एकादशेश बाधक होता है. साथ ही शुक्र की मूल त्रिकोण राशि चतुर्थ भाव में आने से इसे केन्द्राधिपति दोष भी लग जाता है. बृहस्पति नवमेश होने के साथ छठे भाव का स्वामी भी है लेकिन लग्नेश चंद्र का मित्र होने से यह शुभ फल ही प्रदान करता है.

सिंह लग्न | Leo Ascendant

इस लग्न के लिए मंगल केन्द्र – त्रिकोण का स्वामी होने से योगकारक ग्रह बन जाता है और शुभ फल प्रदान करता है. बृहस्पति की मूल त्रिकोण राशि धनु पंचम भाव अर्थात त्रिकोण भाव में पड़ने से यह शुभ हो जाता है हालांकि इसकी दूसरी राशि अष्टम भाव में पड़ती है. शनि और चंद्रमा इस लग्न के लिए शुभ नहीं है. वैसे भी शनि छठे और सप्तम भाव का स्वामी है और लग्नेश सूर्य का शत्रु भी है. इस कारण शनि अशु भ फल प्रदान करने वाला ही होगा. बुध की मूल त्रिकोण राशि दूसरे भाव में पड़ती है और मिथुन राशि एकादश भाव में. दोनों हि स्थितियां सही नही मानी गई है. शुक्र की मूल त्रिकोण रशि तीसरे भाव में और वृष राशि दशम भाव में चली जाती है जिससे इसे केन्द्राधिपति दोष लगता है और यह शुभ फल प्रदान करने में सक्षम नही होता है.

कन्या लग्न | Virgo Ascendant

इस लग्न के लिए बुध तथा शुक्र दोनो ही शुभ ग्रह माने गये हैं. शुक्र धन भाव तथा भाग्य भाव का स्वामी है लेकिन धन भाव ही मारक स्थान भी है इसलिए शुक्र मारक का भी काम इस लग्न के लिए करता है. मंगल तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होकर अशुभ है. बृहस्पति चतुर्थेश और सप्तमेश होकर केन्द्राधिपति दोष से दूषित होता है और साथ ही बाधकेश भी है क्योकि कन्या लग्न द्विस्वभाव लग्न है और इस लग्न के लिए सप्तमेश बाधक होता है. इस लग्न के लिए शनि पांचवे और छठे भाव का स्वामी है और लग्नेश बुध का मित्र है, इसलिए शनि को शुभ ही माना जाता है. छठे भाव में शनि की मूल त्रिकोण राशि पड़ती है और मंगल आठवें भाव का स्वामी होकर यदि शनि से संबंध बनाए तब शनि के शुभ फलों में कमी आ सकती है.

तुला लग्न Libra Ascendant

इस लग्न के लिए शुक्र तथा बुध दोनों ही शुभ है. शुक्र लग्नेश है और बुध नवमेश होकर शुभ बन जाता है. मंगल इस लग्न के लिए प्रबल मारक ग्रह बन जाता है क्योकि मंगल दूसरे और सातवें भाव का स्वामी है. सूर्य एकादशेश होकर बाधकेश बन जाता है क्योकि तुला चर राशि है और चर के लिए एकादश भाव का स्वामी बाधक है. बृहस्पति इस लग्न के लिए शुभ नहीं है क्योकि तीसरे और छठे भाव का स्वामी होता है. साथ ही बृहस्पति, लग्नेश शुक्र का शत्रु भी है इसलिए यह शुभ फल प्रदान नहीं करेगा.

वृश्चिक लग्न | Scorpio Ascendant

इस लग्न के लिए बृहस्पति शुभ है क्योकि यह पांचवें भाव का स्वामी है, चंद्रमा शुभ है क्योंकि यह नवम भाव का स्वामी होने से भाग्येश है. शनि, बुध और शुक्र इस लग्न के लिए शुभ नही माने गये हैं. शुक्र सातवें और बारहवें भाव का स्वामी होने से मारकेश बन जाता है. बुध भी दो अशुभ भावों अष्टम और एकादश का स्वामी होता है. शनि तीसरे और चौथे का स्वामी होने से अशुभ होता है. मंगल इस लग्न के लिए सम माना गया है क्योंकि इसकी मूल त्रिकोण राशि छठे भाव में पड़ती है.

धनु राशि | Sagittarius Ascendant

इस लग्न में मंगल की मूल त्रिकोण राशि मेष पंवम भाव में पड़ती है, इसलिए मंगल इस लग्न के लिए शुभ माना गया है. सूर्य इस लग्न के लिए भाग्येश है और इसलिए शुभ है. बुध को भी शुभ ही माना गया है क्योकि यह दशम भाव का स्वामी होता है लेकिन सप्तमेश होने से मारक का कार्य भी करेगा. शुक्र छठे तथा एकादश भाव का स्वामी होने से और लग्नेश बृहस्पति का शत्रु होने से अशुभ ही माना जाता है. इस लग्न में बुध को केन्द्राधिपति दोष भी लगता है लेकिन यदि बुध पंचमेश मंगल के साथ युति करता है तो अच्छे फल दे सकता है. बुध, चंद्र अथवा बृहस्पति के साथ सहचर्य में अच्छा फल प्रदान करता है.

मकर लग्न | Capricorn Ascendant

इस लग्न के लिए शुक्र केन्द्र तथा त्रिकोण का स्वामी होने से योगकारक बन जाता है और शुभ फल प्रदान करता है. बुध इस लग्न के लिए नवमेश होता है और अत्यधिक शुभ माना जाता है. मकर चर लग्न है इसलिए मंगल एकादशेश होने से बाधकेश हो जाता है और शुभ फल प्रदान नहीं करता है. सूर्य अष्टम का स्वामी होने से सम माना जाता है. वैसे तो सूर्य अष्टमेश है लेकिन सूर्य तथा चंद्रमा को अष्टमेश का दोष नही लगता है. बृहस्पति तीसरे भाव का स्वामी है और बारहवें भाव का स्वामी है. इसलिए यह अशुभ फल प्रदान करने वाला होता है.

कुंभ लग्न | Aquarius Ascendant

इस लग्न के लिए शुक्र केन्द्र – त्रिकोण का स्वामी होकर योगकारक ग्रह बन जाता है और इसकी दशा/अन्तर्दशा में जातक को शुभ फलों की प्राप्ति हो जाती है. शनि इस लग्न का स्वामी हो और शुक्र लग्नेश का मित्र भी होता. इसलिए दोनो और शुभ बन जाते हैं. बृहस्पति एकादश और द्वितीय भाव का स्वामी है. चंद्रमा छठे भाव का स्वामी होकर अधिक शुभ नहीं है. मंगल तीसरे भाव का और सूर्य सप्तम भाव का स्वामी होने से शुभ नहीं माने जाते. ये तीनो ग्रह मारक के समान है और लग्नेश शनि के शत्रु भी हैं. इस लग्न के लिए बुध पंचमेश और अष्टमेश होने पर मिश्रित फल प्रदान करने वाला होगा.

मीन लग्न | Pisces Ascendant

इस लग्न के लिए मंगल नवमेश होकर शुभ है तथा चंद्रमा भी पंचमेश होकर शुभ बन जाता है. बृहस्पति है ही लग्नेश और तीनो ग्रह आपस में नैसर्गिक मित्र भी है इसलिए यह शुभ फल ही प्रदान करते हैं. वैसे तो मंगल दूसरे भाव का स्वामी होने से मारक भी बनता है लेकिन लग्नेश का मित्र होने से मारक का कार्य नहीं करता. बाकी बचे सभी ग्रह इस लग्न के लिए अशुभ ही माने जाते हैं.
: महाभारत में बच्चों के लिए क्या है?

महाभारत पर आयातित विचारधारा का आम आरोप रहा है कि ये तो सत्ता के लिए हुए संघर्ष कि कहानी है। ये पढ़ने कि मेहनत करने के बदले शोर्ट कट में टीवी देखकर महाभारत सीखने की कोशिश से होता है। अक्सर टेलीविजन पर प्रसारण के लिए, या फिल्म कि कहानी जैसा बनाने के लिए महाभारत के जो हिस्से काट दिए जाते हैं, वहीँ महाभारत की सबसे शिक्षाप्रद कहानियां हैं। महाभारत के मुख्य माने जाने वाले चरित्रों का जिक्र शुरू होने से पहले और युद्ध के ख़त्म होने के बाद ही सबसे कम सुनी जाने वाली कहानियां होती हैं। कई बार ऐसा भी होगा कि कहानी तो आपने सुनी होगी, लेकिन आप ये नहीं जानते होंगे कि ये महाभारत की ही कोई कहानी है।

जैसे युद्ध के बाद शांति पर्व में जब भीष्म के पास जाकर युधिष्ठिर राज्य व्यवस्था के बारे में सीख रहे होते हैं तो भीष्म सतयुग कि एक कहानी सुनाते हैं। ये कहानी एक ऊंट कि थी जो अपने पूर्व जन्म में किये पुण्यों के कारण इस जन्म में भी धर्मात्मा था। जंगल में रहने वाले इस ऊंट के पास एक दिन ब्रह्मा पहुंचे और उसे वर देना चाहा। ऊंट ने कहा कि भगवान मेरी गर्दन इतनी लम्बी कर दीजिये कि मैं सौ योजन दूर भी चर सकूँ। खाने कि तलाश में भटकना ना पड़े तो मैं साधना पर और ध्यान दूं। ब्रह्मा ने कहा तथास्तु और ऊंट कि गर्दन लम्बी हो गई। गर्दन लम्बी होने से ऊंट को कहीं इधर उधर जाने कि जरूरत नहीं रही, जब चाहता गर्दन लम्बी करता और कुछ खा लेता।

इधर उधर भटकने कि जरूरत ख़त्म होने से ऊंट आलसी हो गया और एक ही जगह पड़ा रहने लगा। एक दिन वो गर्दन लम्बी कर के इधर उधर खा ही रहा था कि इतने में आंधी आ गई। लम्बी गर्दन सिकोड़ने में समय लगता इसलिए बचने के लिए उसने गर्दन एक गुफा में घुसा ली। जब वो आंधी रुकने का इन्तजार कर रहा था तो एक सियार और सियारनी ने भी उसी गुफा में आंधी से बचकर शरण ली। उन्होंने अपने सामने ही ऊंट कि गर्दन देखी तो फ़ौरन उसपर टूट पड़े! काटे जाने से बचने के लिए ऊंट ने गर्दन समेटने कि कोशिश की, लेकिन जबतक वो पूरी गर्दन समेट पाता उतनी देर में तो सियार सियारनी ने मिलकर उसकी गर्दन ही काट ली !

आलसी ऊंट के मारे जाने की इस कहानी से भीष्म सिखाते हैं कि आलस्य उचित नहीं। अपने कर्मों का निर्वाह करते हुए ही, इन्द्रियों के निग्रह से, मन को इधर उधर भटकने से रोककर, सही दिशा में काम करने पर लगाना चाहिए। अपने कर्तव्यों में से कुछ कम कर के किसी और चीज़ (जो पसंद हो, या करने की इच्छा हो), उसके लिए समय नहीं बचाया जा सकता। ये करीब करीब आत्मघाती तरीका है इस कहानी में भीष्म ने यही सिखाया था। ये इकलौता ऐसा किस्सा हो जो बच्चों को नैतिक शिक्षा देने में काम आ जाए ऐसा भी नहीं है। जैसे पंचतंत्र में मैत्री और नीति की कहानियां हैं वैसी भी कई कहानियां महाभारत के शांति पर्व में मिल जायेंगी।

बच्चों के लायक एक कहानी एक चूहे और बिल्ली कि भी है। कहानी ज्यादा रोचक इसलिए है क्योंकि कहानी में जो पांच पात्र हैं, सभी का नाम भी है। चूहे ने एक बरगद की जड़ में अपना घर बना रखा था और वहीँ डालियों में एक बिल्ली भी रहती थी। पेड़ पर आने वाले पक्षियों के शिकार से बिल्ली का गुजारा होता। वहीँ पास में एक शिकारी भी रहता था जो रोज रात जाल लगा जाता और सुबह फंसे जीवों को बेचने-खाने से अपना गुजारा चलाता। एक रोज शिकारी जब जाल लगाकर गया तो रात में बिल्ली बेचारी उस जाल में फंस गई। बिल्ली को फंसा देखकर चूहा आराम से निकला और बिल्ली को चिढ़ाता, जाल में जो चारा शिकारी ने लगाया था उसे खाने लगा।

बिल्ली के फंस जाने से इलाके पर कब्ज़ा जमाने दूसरे शिकारी जीव आने लगे। मौके पर एक नेवला और एक उल्लू साथ ही पहुंचे और सामने उनके चूहा ही शिकार के रूप में दिखा। ऊपर उल्लू और नीचे नेवले को जब चूहे ने घात लगाए देखा तो वो फंसी हुई बिल्ली के सामने गिड़गिड़ाने लगा। अभी तक वो जिस बिल्ली को चिढ़ा रहा था, फंसा जानकार छेड़ रहा था, उसी से मदद कि गुहार लगाईं। चूहे ने कहा कि अगर अभी वो उसे अपने नीचे छुपा ले तो वो जाल काटकर बिल्ली की बचने में मदद करेगा। बिल्ली तो पहले ही फंसी हुई थी तो शर्त मानने के अलावा कोई विकल्प तो उसके पास था ही नहीं। चुनांचे बिल्ली ने अपने नीचे चूहे को छिपा लिया और चूहा भी जाल कुतरने लगा।

थोड़ी ही देर में जब चूहे का शिकार कर पाने में असमर्थ होकर जब उल्लू और नेवला इधर उधर हुए तो बिल्ली का भी ध्यान गया कि चूहा तो बहुत धीमे धीमे जाल कुतर रहा है। वो चूहे से बोली लगता है अब जान बच जाने पर तुम अपना वादा भूल गए हो! चूहा बोला भाई मैं तेज काम नहीं करने वाला, कोई भी काम समय पर ना किया जाए तो सही फल नहीं देता। अगर मैंने तुम्हें अभी छुड़ा दिया तो तुम फ़ौरन मेरा ही शिकार करोगे इसलिए मैं सवेरे शिकारी के नजर आने पर तुम्हें मुक्त करूँगा। उस समय तुम्हें जब अपनी जान बचा के भागना होगा, तभी मुझे भी बचने का मौका मिल जाएगा। बिल्ली ने इमानदारी और नैतिकता कि दुहाई दी, कहा दोस्त तो ऐसे तरीके से वादा पूरा नहीं करते! चूहा बोला भय जहाँ हो वहां मैत्री नहीं होती, जहाँ कोई डर हो वहां तो संपेरे जैसा हाथ बचा कर ही सांप को नचाया जाता है।

ऐसे ही तर्क-वितर्क चलता रहा, चूहा धीमी गति से जाल काटता रहा और जैसे ही शिकारी नजर आने लगा उसने अपनी रफ़्तार बढ़ा कर पक्का शिकारी के नजदीक आने पर जाल काटा। शिकारी जाल में फंसी बिल्ली को पकड़ने झपटा लेकिन जाल कट चुका था तो बिल्ली बचकर भागने में कामयाब ह गई। चूहा छोटा सा था, वो भी दुबक कर अपने बिल तक पहुँच गया। हताश शिकारी भी अपना टूटा जाल समेट कर उसे ठीक करने चला गया। अब ऊँची डाल पर बैठी बिल्ली ने चूहे से फिर से दोस्ती गांठने कि कोशिश कि। दोस्ती कितनी अच्छी, कितनी महत्वपूर्ण होती है ये समझाने लगी। चूहे ने कई तर्कों का हवाला देकर उसकी दोस्ती को ठुकराया। यहाँ आपको कई महत्वपूर्ण तर्क सिर्फ बच्चों के सीखने के लिए ही नहीं अपने लिए भी मिल जायेंगे।

चूहा समझाता है कि दुनियां में दोस्त और दुश्मन कुछ नहीं होता, केवल परिस्थितियां होती हैं जिनके वश में हुआ आदमी अपने फायदे नुकसान को तौलता दोस्त या दुश्मन बनता है। दोस्त को दुश्मन, या दुश्मनों को दोस्त होते कई बार देखा गया। हर कोई अपने लाभ के चक्कर में होता है, फायदे के लालच के बिना सम्बन्ध नहीं बनते। चूहा बिल्ली को ये भी सिखाता है कि दोनों के पास कारण था इसलिए हम दोस्त बने, लेकिन उस परिस्थिति का अंत होते ही हममें दोस्ती का कोई कारण अब बचा नहीं है। अब जो तुम्हें मुझसे दोस्ती कि सूझ रही है वो तुम्हारे रात भर भूखे रहने के कारण है, मुझमें तुम्हें आहार दिख रहा है!

जिन परिस्थितियों में संधि या युद्ध होते हैं वो परिस्थितियां जैसे ही बदलती हैं, संधि या आक्रमण बेमानी हो जाते हैं। बिल्ली उसी दिन चूहे कि शत्रु थी, हालात बदले तो दोस्त बनी, और फिर हालत बदलते ही दोबारा दुश्मन हो चुकी थी। आँख मूंदकर दोस्त पर भरोसा या सिर्फ शत्रु है इसलिए उसपर अविश्वास करने वाले मूर्ख होते हैं। समझदार लोग धन-बल के अहंकार में रहने वालों के आस पास ना रहने की भी सलाह देते हैं। संधि के ये सिद्धांत उतने पुराने और बेकार भी नहीं जितना शायद आप सोच रहे हैं। भारतीय कानून अभी भी कॉन्ट्रैक्ट एक्ट में करीब करीब इसे मानता है। जैसे अभी मैं प्रधानमंत्री के साथ किसी समझौते पर हस्ताक्षर कर के कल पलट सकता हूँ।

भारतीय कानूनों पर भरोसा रखिये, मुझे थोड़ी परेशानी जरूर हो सकती है, लेकिन अदालत से मुझे सजा तो हरगिज़ नहीं होगी जी। सैद्धांतिक तौर पर समझौते या कॉन्ट्रैक्ट पर दो समान स्तर के लोग हस्ताक्षर करते हैं जी। एक व्यक्ति प्रधानमंत्री जितना बड़ा आदमी हो और दूसरा मेरे जैसा आम आदमी तो उनके बीच कॉन्ट्रैक्ट या समझौता नहीं हो सकता जी। मैं भी किसी आधे राज्य के प्रधान का बिलकुल उल्टा, यानी काम नहीं करने देते जी के बदले काम करवाना चाहता है जी तो कह ही सकता हूँ जी। प्रधानमंत्री जी मेरे साथ जबरन समझौता नहीं कर सकते जी! कोशिश कर के देखिये, ये जो मामूली सी बच्चों के लायक कहानी है वही मौजूदा कानून है।

कौन सी कहानी आपको बच्चों के लायक कहानी सुनाते सुनाते बड़ों के लायक नीतिनिर्देश दे रही है, ये तय कर के कहानियों को बच्चों और बड़ों के बीच छांटना भी महाभारत में संभव नहीं। आपको जो समझाना मुश्किल लगता हो उसे पहले खुद और बाद में दूसरों को समझाने के लिए भी महाभारत का शांति पर्व पढ़ने पर विचार किया जा सकता है। बाकी ये जो बच्चों को सिखा जाती है सो तो हैइये है!

रात कौन बनेगा करोड़पति में बच्चन साहब ने पञ्चतन्त्र से जुड़ा एक सवाल पूछा। उनका सवाल पंचतंत्र की एक जानी-मानी कहानी पर था, जो सुनी तो शायद सबने होगी, लेकिन वो पञ्चतन्त्र की है, ये शायद कम ही लोग जानते होंगे। एक बार पहले भी पञ्चतन्त्र से जुड़े सवालों में प्रतिस्पर्धी को तब दिक्कत आ गयी थी जब उन्होंने पूछा था कि पंचतंत्र में कितने भाग होते हैं? मित्रभेद नाम के पञ्चतन्त्र के पहले भाग की बगुला बिशप से जुड़ी ये कहानी बड़ी पहचानी सी है।

मोटे तौर पर इस कहानी में होता यूँ है कि एक भरे पूरे तालाब के किनारे रहने वाला बगुला आलसी और मक्कार था। रोज मेहनत करके मछलियाँ पकड़ने के बदले वो आराम से बैठकर खाना चाहता था। इसलिए वो एक दिन बैठकर तालाब के सामने ही रोने-धोने और मायूस होने का नाटक करने लगा। तालाब में रहने वाला एक केकड़ा जब उससे पूछने आया कि वो दुखी क्यों है तो वो कहने लगा कि उसका जी उचट गया है। एक प्रोफेसी करने वाले ने उसे बताया है कि यहाँ भयानक सूखा पड़ने वाला है और बारह वर्ष तक वर्षा नहीं होगी।

ये सुनकर केकड़ा भी घबराया। उसने जाकर तालाब की मछलियों और अन्य जीवों को बताया कि उसे बगुला ने कहा है कि सूखा पड़ने वाला है और उनका तालाब भी सूख जायेगा। जब तालाब में रहने वाले जीवों को पता चला कि तालाब सूखने की जानकारी से बगुला का मन दुनियां से उचट गया है तो उन्होंने बगुला  से जानकारी की पुष्टि करनी चाही। बगुला  ने कहा कि वो दूर के एक बड़े तालाब का पता जानते हैं। अगर तालाब के प्राणी चाहें तो वो उन्हें एक एक करके अपनी पीठ पर बिठाएंगे और उड़कर दूसरे बड़े तालाब में छोड़ आयेंगे।

तालाब के जीवों को ये योजना ठीक लगी। अब एक जीव को लेकर बगुला  एक बार में उड़ते और दूर जंगल में एक चट्टान पर ले जाकर ऊंचाई से ही पटक देते। मरे जीव को खाकर वो लौटते और फिर दूसरे जीव को लेकर उड़ जाते। कुछ दिन इसी तरह चलता रहा और बगुला खा-खा कर मोटे होते रहे। एक दिन केकड़ा बोला, मामा सबको तुम ले जा रहे हो, आखिर मेरी बारी कब आएगी? बगुला हंसकर बोला, चलो आज सबसे पहले तुम्हें ही लेकर चलता हूँ। बगुला केकड़े को लेकर चट्टान की ओर उड़ चला।

रास्ते में केकड़े ने पूछा कि उड़ते-उड़ते बहुत देर हो गयी। क्या दूसरा तालाब अभी बहुत दूर है? बगुला ने हंसकर नीचे की ओर इशारा किया और बोला, वो देखो तुम्हारे सारे मित्र यहाँ पड़े हैं। तुम्हें भी मैं अभी उनके पास पहुँचाने वाला हूँ। नीचे इधर उधर बिखरे मछलियों के कांटे और हड्डियाँ देखकर केकड़े को समझ में आ गया कि बगुला क्या करने वाला है। केकड़ा घबराया नहीं, उसने आपने पंजो से कसकर बगुले की गर्दन ही दबोच ली। बगुले ने छटपटा कर छूटने की खूब कोशिश की, लेकिन अंत में खुद ही उस चट्टान पर गिरकर मर गया। जैसे तैसे तालाब पर वापस लौटकर केकड़े ने सबको बगुला  की कहानी सुनाई।

बच्चे इस कहानी से काफी सीखेंगे, लेकिन बड़े भी उतना ही सीख सकते हैं। जैसे केकड़े को बगुले ने कहा कि उसे किसी साधू ने बताया है जैसे वाक्य झूठे होते हैं। उदाहरण के तौर पर होली का दौर याद कीजिये जब किसी लड़की को उसकी मित्र ने बताया था कि उसकी रूममेट ने कहा कि किसी ने उसपर ‘पता नहीं क्या’ भरा गुब्बारा फेंका है। एक व्यक्ति जब कहे कि उसे दूसरे ने किसी तीसरे के हवाले से कहा तो वो झूठ कह रहा होता है। जैसे तालाब के जीवों को केकड़े ने कहा कि बगुला को किसी हर्मिट ने कहा है।


बाकी आपने #पञ्चतन्त्र पढ़ी है या नहीं ये तो आप ही बताइयेगा। हाँ हम यकीन से ये बता सकते हैं कि धूप में बाल सफ़ेद किये बैठे जो लोग #पंचतंत्र को बच्चों की कहानी बताते हैं, वो अभी अंगूठा चूसते बच्चे ही हैं।

पुरानी सी कहावत “बूढ़ा तोता राम-राम नहीं रटता” कई अलग रूपों में भारत में प्रचलित है। जैसे मैथिलि में इसके लिए “सियान कुकुर पोस नै मानै छै” कहा जाता है, जिसका मतलब होता है कि कुत्ता बड़ा हो जाए तो उसे पालतू नहीं बनाया जा सकता। ये कहावत भी हिन्दुओं की मूर्खता करने और कर के फिर उसी पर अड़े रहने की विकट क्षमता दर्शाती है। बचपन से ही सिखाना होगा ये जानने के बाद भी ज्यादातर सनातनी परंपरा के लोग अपने धर्म के बारे में अपने बच्चों को कुछ भी सिखाने का प्रयास नहीं करते।

शायद उन्हें लगता होगा कि इस काम के लिए कोई पड़ोसी आएगा, ये उनकी जिम्मेदारी नहीं है। ऐसी ही वजहों से अगर आज किसी ऐसे आदमी से, जो गर्व से खुद को सनातनी कहता हो, उस से पूछ लें कि अगली पीढ़ी को अपने धर्म के बारे में बताने के लिए आपके घर में कौन सी किताबें हैं? तो वो बगलें झाँकने लगेगा। नौकरी-काम के सिलसिले में आप चौबीस घंटे बच्चे के लिए उपलब्ध नहीं हैं, दादी-नानी भी दूर कहीं रहती हैं, तो आपको तो सिखाने के लिए किताबें या कुछ घर में रखनी चाहिए थीं।

इतने प्रश्न बहुत सरल भाषा में, मधुर वाणी में और मुस्कुराते हुए ही पूछियेगा। क्योंकि इतने सवालों पर आपको सनातनी मूर्खता के बचाव में विकट तर्क सुनाई देने लगेंगे। वो बताएगा कॉमिक्स पढ़कर बच्चे बिगड़ जाते हैं, महंगी भी होती हैं इसलिए अमर चित्र कथा उसने नहीं ली है। वो ये भी बताएगा कि पञ्चतंत्र के नाम में ही तंत्र है, उसका ऐसी चीज़ों पर विश्वास नहीं, फिर पुराने जमाने कि इस किताब से आज के बच्चे क्या सीखेंगे? इसलिए वो पंचतंत्र जैसी किताबें भी नहीं लाया।

आपको तो पता ही है कि भगवद्गीता पढ़कर पड़ोस के कितने ही लोग साधू हो गए हैं! दस-बीस ऐसे लोग जो पहले पन्ने से आखरी पन्ने तक भगवद्गीता पड़कर साधू हुए हैं, ऐसे सनातनियों को कौन नहीं पहचानता? रोज ही दिख जाते हैं, इसलिए वो भगवद्गीता भी घर में नहीं रखता। महाभारत घर में रखने से झगड़े होते हैं, रामायण कहाँ ढूंढें पता ही नहीं, कोई चम्मच से मुंह में डाल देता, मेरा मतलब पढ़ा देता तो सीख कर एहसान भी कर देते। अब बच्चों कि किताबों में रूचि भी नहीं रही, कोई किताबें नहीं पढ़ता।


: मन्त्र की शक्ति 
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मंत्र क्या है ?क्या होती है मंत्र शक्ति ? भगवान राम ने भी शबरी को नवधाभक्ति का उपदेश देते समय कहा था। मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा।

मंत्र शब्दों का संचय होता है, जिससे इष्ट को प्राप्त कर सकते हैं और अनिष्ट बाधाओं को नष्ट कर सकते हैं । मंत्र इस शब्द में ‘मन्’ का तात्पर्य मन और मनन से है और ‘त्र’ का तात्पर्य शक्ति और रक्षा से है ।

अगले स्तर पर मंत्र अर्थात जिसके मनन से व्यक्ति को पूरे ब्रह्मांड से उसकी एकरूपता का ज्ञान प्राप्त होता है । इस स्तर पर मनन भी रुक जाता है मन का लय हो जाता है और मंत्र भी शांत हो जाता है । इस स्थिति में व्यक्ति जन्म-मृत्यु के फेरे से छूट जाता है ।

मंत्रजप के अनेक लाभ हैं, उदा. आध्यात्मिक प्रगति, शत्रु का विनाश, अलौकिक शक्ति पाना, पाप नष्ट होना और वाणी की शुद्धि।

मंत्र जपने और ईश्वर का नाम जपने में भिन्नता है । मंत्रजप करने के लिए अनेक नियमों का पालन करना पडता है; परंतु नामजप करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं होती । उदाहरणार्थ मंत्रजप सात्त्विक वातावरण में ही करना आवश्यक है; परंतु ईश्वर का नामजप कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है ।

मंत्रजप से जो आध्यात्मिक ऊर्जा उत्पन्न होती है उसका विनियोग अच्छे अथवा बुरे कार्य के लिए किया जा सकता है । यह धन कमाने समान है; धन का उपयोग किस प्रकार से करना है, यह धन कमाने वाले व्यक्ति पर निर्भर करता है ।

मंत्र का मूल भाव होता है- मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।

यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ जरूरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और उससे मनचाहे कार्य सिद्ध करने के लिए बहुत जरूरी माने गए हैं- - मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है।

- मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।

- अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है।
- मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें।
- एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें। - मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है।

- कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें।

- किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए।
- मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें। - मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें।

- मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे- कोई मंदिर या घर का देवालय। - मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए। - माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की उंगली का उपयोग करें।

- माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए। मंत्र क्या है .....

‘मंत्र’ का अर्थ शास्त्रों में ‘मन: तारयति इति मंत्र:’ के रूप में बताया गया है, अर्थात मन को तारने वाली ध्वनि ही मंत्र है। वेदों में शब्दों के संयोजन से ऐसी ध्वनि उत्पन्न की गई है, जिससे मानव मात्र का मानसिक कल्याण हो। ‘बीज मंत्र’ किसी भी मंत्र का वह लघु रूप है, जो मंत्र के साथ उपयोग करने पर उत्प्रेरक का कार्य करता है। यहां हम यह भी निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि बीज मंत्र मंत्रों के प्राण हैं या उनकी चाबी हैं

जैसे एक मंत्र-‘श्रीं’ मंत्र की ओर ध्यान दें तो इस बीज मंत्र में ‘श’ लक्ष्मी का प्रतीक है, ‘र’ धन सम्पदा का, ‘ई’ प्रतीक शक्ति का और सभी मंत्रों में प्रयुक्त ‘बिन्दु’ दुख हरण का प्रतीक है। इस तरह से हम जान पाते हैं कि एक अक्षर में ही मंत्र छुपा होता है। इसी तरह ऐं, ह्रीं, क्लीं, रं, वं आदि सभी बीज मंत्र अत्यंत कल्याणकारी हैं। हम यह कह सकते हैं कि बीज मंत्र वे गूढ़ मंत्र हैं, जो किसी भी देवता को प्रसन्न करने में कुंजी का कार्य करते हैं

मंत्र शब्द मन +त्र के संयोग से बना है !मन का अर्थ है सोच ,विचार ,मनन ,या चिंतन करना ! और "त्र " का अर्थ है बचाने वाला , सब प्रकार के अनर्थ, भय से !लिंग भेद से मंत्रो का विभाजन पुरुष ,स्त्री ,तथा नपुंसक के रूप में है !पुरुष मन्त्रों के अंत में "हूं फट " स्त्री मंत्रो के अंत में "स्वाहा " ,तथा नपुंसक मन्त्रों के अंत में "नमः " लगता है ! मंत्र साधना का योग से घनिष्ठ सम्बन्ध है......

मंत्रों की शक्ति तथा इनका महत्व ज्योतिष में वर्णित सभी रत्नों एवम उपायों से अधिक है।

मंत्रों के माध्यम से ऐसे बहुत से दोष बहुत हद तक नियंत्रित किए जा सकते हैं जो रत्नों तथा अन्य उपायों के द्वारा ठीक नहीं किए जा सकते।

ज्योतिष में रत्नों का प्रयोग किसी कुंडली में केवल शुभ असर देने वाले ग्रहों को बल प्रदान करने के लिए किया जा सकता है तथा अशुभ असर देने वाले ग्रहों के रत्न धारण करना वर्जित माना जाता है क्योंकि किसी ग्रह विशेष का रत्न धारण करने से केवल उस ग्रह की ताकत बढ़ती है, उसका स्वभाव नहीं बदलता।

 इसलिए जहां एक ओर अच्छे असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनसे होने वाले लाभ भी बढ़ जाते हैं, वहीं दूसरी ओर बुरा असर देने वाले ग्रहों की ताकत बढ़ने से उनके द्वारा की जाने वाली हानि की मात्रा भी बढ़ जाती है। इसलिए किसी कुंडली में बुरा असर देने वाले ग्रहों के लिए रत्न धारण नहीं करने चाहिएं।

वहीं दूसरी ओर किसी ग्रह विशेष का मंत्र उस ग्रह की ताकत बढ़ाने के साथ-साथ उसका किसी कुंडली में बुरा स्वभाव बदलने में भी पूरी तरह से सक्षम होता है। इसलिए मंत्रों का प्रयोग किसी कुंडली में अच्छा तथा बुरा असर देने वाले दोनो ही तरह के ग्रहों के लिए किया जा सकता है।

साधारण हालात में नवग्रहों के मूल मंत्र तथा विशेष हालात में एवम विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए नवग्रहों के बीज मंत्रों तथा वेद मंत्रों का उच्चारण करना चाहिए।

मंत्र जाप-  मंत्र जाप के द्वारा सर्वोत्तम फल प्राप्ति के लिए मंत्रों का जाप नियमित रूप से तथा अनुशासनपूर्वक करना चाहिए। वेद मंत्रों का जाप केवल उन्हीं लोगों को करना चाहिए जो पूर्ण शुद्धता एवम स्वच्छता का पालन कर सकते हैं।

किसी भी मंत्र का जाप प्रतिदिन कम से कम 108 बार जरूर करना चाहिए। सबसे पहले आप को यह जान लेना चाहिए कि आपकी कुंडली के अनुसार आपको कौन से ग्रह के मंत्र का जाप करने से सबसे अधिक लाभ हो सकता है तथा उसी ग्रह के मंत्र से आपको जाप शुरू करना चाहिए।

बीज मंत्र- एक बीजमंत्र, मंत्र का बीज होता है । यह बीज मंत्र के विज्ञान को तेजी से फैलाता है । किसी मंत्र की शक्ति उसके बीज में होती है । मंत्र का जप केवल तभी प्रभावशाली होता है जब योग्य बीज चुना जाए । बीज, मंत्र के देवता की शक्ति को जागृत करता है ।

प्रत्येक बीजमंत्र में अक्षर समूह होते हैं।

उदाहरण के लिए – ॐ, ऐं,क्रीं, क्लीम्
उनको बोलते हैं बीज मंत्र।

उसका अर्थ खोजो तो समझ में नही आएगा लेकिन अंदर की शक्तियों को विकसित कर देते हैं। सब बीज मंत्रो का अपना-अपना प्रभाव होता है। जैसे ॐ कार बीज मंत्र है ऐसे २० दूसरे भी हैं।

ॐ बं ये शिवजी की पूजा में बीज मंत्र लगता है। ये बं बं.... अर्थ को जो तुम बं बं.....जो शिवजी की पूजा में करते हैं।  इस बं के उच्चारण करने से वायु प्रकोप दूर हो जाता है। गठिया ठीक हो जाता है। शिव रात्रि के दिन सवा लाख जप करो तो इष्ट सिद्धि भी मिलती है। बं... शब्द उच्चारण से गैस ट्रबल कैसी भी हो भाग जाती है।

खं शब्द👉 खं.... हार्ट-टैक कभी नही होता है। हाई बी.पी., लो बी.पी. कभी नही होता ५० माला जप करें, तो लीवर ठीक हो जाता है। १०० माला जप करें तो शनि देवता के ग्रह का अशुभ प्रभाव चला जाता है। 

ऐसे ही ब्रह्म परमात्मा का कं शब्द है। ब्रह्म वाचक। तो ब्रह्म परमात्मा के ३ विशेष मंत्र हैं। ॐ, खं और कं।

ऐसे ही रामजी के आगे भी एक बीज मंत्र लग जाता है - रीं रामाय नम:।।

कृष्ण जी के मंत्र के आगे बीज मंत्र लग जाता है क्लीं कृष्णाय नम:।।

जैसे एक-एक के आगे, एक-एक के साथ शून्य लगा दो तो १० गुना हो गया।

ऐसे ही आरोग्य में भी ॐ हुं विष्णवे नम:। तो हुं बिज मंत्र है।

ॐ बिज मंत्र है। विष्णवे  विष्णु भगवान का सुमिरन है।

बीजमन्त्रों से स्वास्थ्य-सुरक्षा
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बीजमन्त्र                      लाभ

    कं           मृत्यु के भय का नाश, 
                  त्वचारोग व रक्त विकृति में।

   ह्रीं            मधुमेह, हृदय की धड़कन में।

    घं             स्वपनदोष व प्रदररोग में।

    भं             बुखार दूर करने के लिए।

  क्लीं            पागलपन में।

    सं             बवासीर मिटाने के लिए।

    वं             भूख-प्यास रोकने के लिए।

    लं            थकान दूर करने के लिए।
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नदीनां शस्त्रपाणीनां नखीनां श्रृंगीणां तथा।
विश्वासो नैव कर्तव्य: स्त्रीषु राजकुलेषु च।।

            – चाणक्य नीति

पाठ भेद –

नदीनां नखीनां श्रृंगिणां शस्त्रपाणिनः, विश्वासो नैव कर्तव्यः खलेषु राजकुलेष च।

"नदियों, जीव जिनके बड़े बड़े नाखून हो, सींग वाले पशुओं, शस्त्र लिए मनुष्यों, दुष्टों और नेताओं का विश्वास कभी नहीं करना चाहिए । ये कभी भी प्राणघातक हो सकते है।" 

भावार्थ
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ये श्लोक चाणक्य नीति के अलावा हितोपदेश के मित्रलाभ अध्याय में भी मिलता है। इस श्लोक का अर्थ यह है –

हमें नदियों पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। चाणक्य कहते हैं कि जिन नदियों के पुल कच्चे हैं, जीर्ण-शीर्ण अवस्था में हैं, उस नदी पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि ये कोई नहीं जान सकता कि कब नदी का बहाव तेज हो जाए और जिससे हमारे प्राणों का संकट खड़ा हो सकता है।

शस्त्रधारियों पर भरोसा करना खतरनाक हो सकता है। शस्त्रधारी कभी भी क्रोध में आ सकता है और हमारे विरुद्ध शस्त्र का प्रयोग कर सकता है।

जिन जानवरों के नाखुन और सींग नुकिले होते हैं उन पर विश्वास करने वाले को जान का जोखिम बन सकता है। जानवर कभी भी भड़क सकते हैं और हमें नुकसान पहुंचा सकते हैं।

आचार्य चाणक्य के अनुसार चंचल स्वभाव की स्त्रियों पर भी विश्वास नहीं करना चाहिए। ऐसी स्त्रियां अपनी बातों पर टिक नहीं पाती हैं और समय-समय पर अपने विचार बदलती रहती हैं।

साथ ही, किसी राज्यकुल यानी शासकीय सेवाओं से जुड़े व्यक्ति पर भरोसा नहीं करना चाहिए। ऐसे लोगों को भरोसा करके अगर हम अपने राज की बातें इन्हें बता देंगे तो ये उन बातों का हमारे खिलाफ उपयोग कर सकते हैं।

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1-6 राशियाँ एवं उनका विस्तृत विवेचन

मेष राशि और उनका व्यक्तित्व
मेष राशि का स्वामी मंगल है एवं इस राशि का चिह्न मेंढे कि तरह है I इस राशि का स्वामी अग्नितत्व से युक्त होता है I अतः मंगल कि इस राशि वाले जातक दबंग व क्रोध से परिपूर्ण होते हैं I इस राशि में जन्म लेने वाले व्यक्ति स्वभाव से साहसी, कुछ अभिमानी एवं अत्यन्त मेहनती प्रवृत्ति के होते हैं I इन लोगों को गुस्सा जल्दी आ जाता है I कोई जरा सी भी विपरीत बात कह दे तो ये सहन नहीं कर पाते परन्तु इनका क्रोध बहुत थोड़ी देर का होता है I थोड़ी देर में ही अपने पहले रूप में आ जाते हैं I सिर से मजबूत इस राशि वाले लोग अपने चिन्ह मेंढे कि तरह ही भिड़ने को तैयार रहते हैं, करो या मरो इनका मूल वाक्य होता है I इनकी आंखें दूसरों से कुछ अलग रंग कि होती हैं I
मेष राशि के व्यक्ति अमूमन मध्यम कद के होते हैं I उत्साह भी इनके अन्दर कुछ अधिक मात्रा में होता है लेकिन अति उत्साह एवं जल्दबाजी के कारण इनके कुछ काम बिगड़ जाया करते हैं I इस राशि वाले व्यक्ति अपने ही ख्यालों में जीना चाहते हैं I स्वतंत्र विचारों वाले ये व्यक्ति दूसरों कि हुकुमत को पसंद नहीं करते हैं और दूसरों के अधीन रहकर ये अपना विकास भी नहीं कर पाते हैं I इनको आजादी देने पर ही ये अपना श्रेष्ठतम प्रदर्शन कर सकते हैं लेकिन एक बात मैं कहना चाहूँगा कि इन व्यक्तियों को अपने मनोभावों पर कंट्रोल करना चाहिए क्योंकि क्रोधावस्था के कारण आप लोग अपना नियंत्रण खो बैठते हैं लेकिन आप लोगों कि यह खासियत है कि जितनी शीघ्रता से आप पर क्रोध हावी होता है उतनी ही शीघ्रता से उतर भी जाता है I फिर से वैसे निर्मल मन वाले हो जाते हैं I अदभुत हैं आप......
सामान्यतया मेष राशि या लग्न में पैदा हुए जातक (व्यक्ति) अत्यन्त साहसी, पराक्रमी, तेज से परिपूर्ण तथा परिश्रमी होते हैं I एक सच्चे योद्धा के इन गुणों से लबालब हुए ये लोग अपने जीवन में वंचित मान- सम्मान एवं ऊँचाई पाने में सफल होते हैं I अत्यधिक सक्रियता एवं किसी काम के प्रति लगे रहने कि प्रवृत्ति एवं ईमानदारी यही वो गुण हैं जिनके सहारे आप लोग अपनी मनचाही बुलंदियों को छू लेते हैं I
आप लोगों के भीतर छुपा हुआ एक गुण और भी है वो है स्वाभिमानिता का I इस स्वाभिमान, स्वपरिश्रम एवं योग्यता के बलबूते आप मान- सम्मान, प्रतिष्ठा एवं सफलता अर्जित करने में समर्थ होंगे I इस राशि वाले लोगों के जीवन में शुरू से ही तेजस्विता का भाव रहता है जिस कारण यदा- कदा आप अनावश्यक क्रोध एवं चंचलता का प्रदर्शन करेंगे I जीवन में आपको ऊँची सफलता अपनी जन्मभूमि से दूर जाकर ही प्राप्त होगी और यहाँ से दूर जाकर ही आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होगा I साथ ही सारे सांसारिक सुख एवं विलास कि प्रतीक वस्तुएं आप अपने दम पर ही प्राप्त करके उनका उपभोग करने में समर्थ होंगे I
इस लग्न में जन्मे जातक को जीवन में काफी परेशानियों एवं समस्याओं का सामना करना पड़ता है I जीवन कि डगर इनके लिए इतनी आसन नहीं होती I किन्तु अपने भीतर के परिश्रम एवं दृढ़ संकल्प शक्ति आदि श्रेष्ठ गुणों के द्वारा आप इनका सामना कर सकते हैं और समाधान ढूंढ़ ही लेते हैं I आपके स्वभाव में उदारता तथा सहनशीलता भी काफी मात्रा में होती है जिस कारण समय आने पर आप दूसरों को सहयोग प्रदान करते हैं और बदले में आदर का भाव प्राप्त करते हैं I आपके कर्म भाव के स्वामी शनि महाराज होने से आपके समस्त सांसारिक कार्य हालांकि देर से ही पूरे होते हैं I किन्तु अपनी साहसिक प्रवृत्ति से आप इन उलझनों से हार नहीं मानते I आपको जीवन में उन्नति परिश्रम से ही प्राप्त होगी और संबंध भी बनते बिगड़ते रहेंगे I अनावश्यक दिखावे से आपको दूर रहना चाहिए और अपनी प्रवृत्ति का प्रदर्शन सादगीपूर्ण तरीके से ही करना चाहिए I मेरे बताये इस तरीके से चलने पर ही आपको मनचाही सफलता, सुख-ऐश्वर्य एवं वैभव कि प्राप्ति होगी I दो लब्जों में इन राशि वालों के लिए कहूँ तो आप लोग परिश्रमी, तेजस्वी, अपना काम निकालने में चतुर लेकिन धीमी गति से काम करने वाले होंगे I सफलता आपको मिलके ही रहेगी I
इस राशि वाले प्राय: अपने साहसिक प्रवृत्ति के कारण खेल- कूद, शिकार, सैनिक व पुलिस विभाग, मशीनरी, भट्टी व ज्वलनशील पदार्थों जैसे गैस, पेट्रोल, इलेक्ट्रिसिटी तथा मेटल के फिल्ड में सफलता प्राप्त करते हैं I धार्मिक विचारों के लिहाज से आपका दृष्टिकोण दूसरे लोगों से अलग होता है I शक्ति कि उपासना में आपका मन ज्यादा रमता है I अपनी बात के धनी ये लोग अपने विचारों में दृढ़, जल्दी से किसी से झगडा करते नहीं, लेकिन जब कोई हद पार कर देता है तो उसको सबक सिखाये बिना रहते नहीं I युद्ध कि कला में ऐसे व्यक्ति निपुण होते हैं I जोखिम से भरी कलाएं इनको अच्छी लगती हैं I भूमि व कोर्ट- कचहरी संबंधी कार्यों में मेष राशि वालों को विजय प्राप्त होती है I
21 मार्च व 20 अप्रैल के मध्य यदि आपका जन्म हुआ है तो आपका भाग्योदय निश्चित रूप से 28 वर्ष के बाद ही होगा I आप पूरी तरह से स्वनिर्मित (self made) व्यक्ति हैं I एक तरह से आप अपना भाग्य स्वयं निर्माण करते हैं लेकिन एक बात याद रखिये बिना कठोर परिश्रम के आपको कुछ हासिल नहीं होने वाला I पंचांग कि दृष्टिकोण से यदि मैं आपको बताऊँ कि आपका जन्म यदि "भरणी" नक्षत्र में हुआ है और आपके जन्मनाम का पहला अक्षर यदि "ल" से है तो आप कुछ लम्बे कद वाले, अनेकों मित्रों वाले तथा वफादार लोगों से परिपूर्ण हैं I
आपको बेईमान लोग कतई पसंद नहीं I आप दूरदर्शी होने के साथ प्रबंधन के क्षेत्र में सफल होते हैं I आपकी राशि का चिन्ह मेंढा होने से दिल में हिम्मत एवं आँखों में जोश है I घूमने- फिरने के शौंक के साथ आपको चटपटे भोजन में बहुत रूचि है I यदि आपका नाम "अ" अक्षर से शुरू होता है तोविलासिता, सौन्दर्य एवं कला के प्रति आपकी ललक होती है I विपरीत लिंगी साथियों के प्रति आपकी रूचि अत्यधिक होती है I लाल रंग व ज्वलनशील पदार्थ आपके अनुकूल कहे जा सकते हैं I
आपकी राशि के स्वामी मंगल ग्रह एक शौर्यवान एवं तेजोवान होने से "जहाँ शांति व प्रसन्नता असफल हो जाती है वहां आप अपना तेज एवं बल दिखा कर अपने कार्य को सिद्ध कर ही लेते हैं" I
आपके लिए मंगलवार सर्वश्रेष्ठ, शुभकारी एवं सफलता देने वाला रहेगा I अपने इष्ट देव के रूप में यदि आप हनुमान जी को चुने तो आपके मनोरथ सफल होंगे I आपका अनुकूल रत्न "मूंगा" है I सीधे हाथ कि तीसरी उंगली में या गले में तांबे या सोने में जड़वाकर सवा पाँच रत्ती या इससे अधिक का लाल मूंगा पहनने से चमत्कारिक बदलाव संभव है I इसे आप स्वयं अनुभव कर सकते हैं I
वृष राशि और उनका व्यक्तित्व
वृषभ राशि में उत्पन्न जातक सुन्दर, दर्शनीय व्यक्तित्व का धनी होता है I विशिष्ट प्रभाव वाला व भरे हुए व बड़े मुखमंडल वाला व्यक्ति होता है I वृषभ राशि का स्वामी शुक्र ऐश्वर्यशाली व विलासपूर्ण ग्रह है I इस राशि वाले जातक प्राय: गौरवर्ण के, दिखने में सुन्दर व आकर्षक व्यक्तित्व वाले होते हैं I इस राशि का चिन्ह वृषभ (बिना जोता हुआ बैल) होने से पुष्ट शरीर, मस्त चाल, मजबूत जंघाए, बैल के समान नेत्र, स्वाभिमानी एवं स्वछंद विचरण एवं शीतल स्वभाव इनकी प्रमुख विशेषता कही जा सकती है I
सामान्यतया वृषभ राशि में उत्पन्न जातक सुन्दर, उदार तथा सहिष्णु स्वभाव के होते हैं I उनकी वाणी में भी मधुरता का भाव विद्यमान रहता है I साथ ही व्यक्तित्व भी आकर्षक होता है तथ अन्य जनों को प्रभावित करने में समर्थ रहते हैं I ये अत्यधिक परिश्रमी जातक होते हैं I जिससे जीवन में उन्नति मार्ग प्रशस्त करने तथा सुख, ऐश्वर्य एवं वैभव अर्जित करने में वे प्राय: सफल रहते हैं I शांति एवं सहिष्णुता के साथ इनमें साहस तथा पराक्रम का बी हव भी विद्यमान रहता है I
आप अपनी योग्यता एवं परिश्रम से किसी उच्च पद या समाज में प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त करेंगे, साथ ही अपने सदगुणों के द्वारा श्रेष्ठ जनों को संतुष्ट करने में सफल होंगे I आप एक विद्वान पुरुष होंगे तथा विभिन्न कला, साहित्य एवं संगीत का उचित ज्ञान रहेगा, इस क्षेत्र में आपको प्रसिद्धि भी प्राप्त होगी I आप एक बुद्धिमान पुरुष होंगे, आपके कार्यकलापों पर बुद्धिमता की स्पष्ट छाप होगी I
धर्म के प्रति आप श्रद्धालु रहेंगे तथा अवसरानुकूल धार्मिक अनुष्ठानों तथा कार्यकलापों को सम्पन्न करेंगे I आप समाज सेवा के लिए भी उद्यत रहेंगे I आपकी प्रवृत्ति सात्त्विक होगी तथा विचार उत्तम होंगे I इसके अतिरिक्त कई शास्त्रों का आपको ज्ञान होगा जिससे आपको सामाजिक मान प्रतिष्ठा तथा प्रसिद्धि प्राप्त होगी I प्रसन्नतापूर्वक आपका जीवन व्यतीत होगा I
यह राशि भूमि तत्त्व प्रधान है, इसलिए ऐसे जातक मशीनरी व भूमि संबंधी कारोबार में विशेष रूचि लेते देखे गए हैं I इनमें इच्छाशक्ति बड़ी प्रबल होती है I ये बड़े धैर्यवान होते हैं इनकी उन्नति प्राय: धीमी गति से होती है I आप स्त्री सूचक राशि वाले हैं, वृषभ राशि अर्द्धजल राशि भी कहलाती है इसलिए गायन, नृत्यकला, सिनेमा तथा अभिनेता व अभिनेत्रियों के प्रति आपका झुकाव कुछ विशेष रहेगा I यदि आपका जन्म "कृतिका नक्षत्र" में है तो आप खूबसूरत व्यक्ति हैं I विपरीत लिंगी के प्रति आप शीघ्र ही आकर्षित हो जाएंगे I 
आपका स्वभाव स्वार्थी है अर्थात आप अपने कार्य के प्रति पूर्णरूपेण सजग व सचेत रहेंगे I आप कोरी भावनाओं में बह जाने वाले व्यक्ति नहीं हैं I आप कर्मठ कार्यकर्त्ता एवं स्पष्टवादी हैं I राजनीति- सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय भाग लेने से आपको राजनीतिक सफलता शीघ्र मिल सकती है I आपको बहुमूल्य जायदाद औरों द्वारा प्राप्त हो सकती है I
प्राय: वृषभ राशि वाले जातक की व्यापार में ज्यादा रूचि रहती है, ऐसे जातक कुशल व्यापारी होते देखे गए हैं I नित नई वेशभूषा पहनने व सुन्दर ढंग से अलंकृत रहने का शौक इनको कुछ विशेष ही होता है I ये श्रृंगार प्रिय तथा कला में रूचि लेने वाले व्यक्ति होते हैं I उत्तम भोजन व मिष्ठान के शौकीन होते हुए खुशबूदार वस्तुओं के बड़े रसिक होते हैं I कला की कद्र करना तथा किसी भी व्यक्ति के गुण- अवगुण को परखने की कला इनमें खूब होती है I वस्तु की बारीकी को पकड़ना व कार्य की गहराई में उतरना इनकी मौलिक विशेषता कही जा सकती है I
यदि आपका जन्म वृषभ राशि "कृतिका नक्षत्र" के अंतिम तीन चरण (ई, उ, ए) में है तो आपका जन्म 6 वर्ष की सूर्य की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- मेढ़ा, गण- राक्षस, वर्ण- वैश्य, हंसक- भूमि, नाड़ी- अन्त्य, वर्ग- गरुड़, युजा- पूर्व, पाया- सुवर्ण, वैश्य- चतुष्पद है I इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति तुनक मिजाज वाला, सुन्दर एवं कठोर परिश्रमी होता है I
यदि आपका जन्म वृषभ राशि "रोहिणी नक्षत्र" (ओ, वा, वी, वू ) में है तो आपका जन्म 10 वर्ष की चन्द्रमा की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- सर्प, गण- मनुष्य, वर्ण- वैश्य, हंसक- भूमि, नाड़ी- अन्त्य, वैश्य- चतुष्पद, प्रथम चरण में वर्ग- गरुड़, द्वितीय, तृतीय व चतुर्थ चरण में वर्ग- हिरण, युजा- पूर्व, पाया- सुवर्ण,  है I इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति अति बुद्धिशाली, ऐश्वर्यपूर्ण जीवन जीने वाला, भोगी एवं योगी दोनों गुणों से सम्पन्न होता है I
यदि आपका जन्म वृषभ राशि "मृगशिरा नक्षत्र" के प्रथम दो चरणों (वे, वो) में है तो आपका जन्म 7 वर्ष की मंगल की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- सर्प, गण- देव, वर्ण- वैश्य, युजा- पूर्व, हंसक- भूमि, नाड़ी- मध्य, पाया- सुवर्ण, वैश्य- चतुष्पद एवं वर्ग- हिरण है I इस नक्षत्र में जन्मे व्यक्ति अधैर्यशाली, आक्रामक, युद्ध कला में प्रवीण, उत्साही खिलाडी होता है तथा धाम कमाने के मामले में सदैव सफल होता है I
मिथुन राशि और उनका व्यक्तित्व
मिथुन राशि का स्वामि बुध है I अतः मिथुन राशि में उत्पन्न जातक उदार, विनम्र एवं हास्य प्रवृत्ति के होते हैं I बुध के प्रभाव के कारण ऐसा जातक बुद्धिमान होता है , इनमें स्वाभिमान का भाव भी विद्यमान रहता है I मिथुन राशि का चिन्ह स्त्री- पुरुष का जोड़ा है I अतः इस राशि के लोग विपरीत लिंगी के प्रति सहज ही आकर्षित होते हैं I ऐसा व्यक्ति शास्त्र कर्म को जानने वाला, संदेश, वचन में निपुण, बातचीत में होशियार, चतुरबुद्धि, हास्य करने वाला विनोदी व दूसरों के भावों को आसानी से समझने वाला होता है I
ये कार्यों को अत्यन्त ही सोच- समझकर सम्पन्न करते हैं I सरकार या उच्चाधिकारी से उनका संपर्क बना रहता है I भौतिक सुख- साधनों से सम्पन्न रहते हैं I संगीत एवं कला के प्रति इनकी रूचि रहती है तथा नवीन सिद्धांतों का प्रतिपादन करने में समर्थ रहते हैं I इसके अतिरिक्त गणित, लेखन या संपादन के क्षेत्र में इनको सफलता प्राप्त होती है I अतः इसके प्रभाव से आप शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ एवं संतुष्ट रहेंगे I आप बुद्धिमतापूर्वक अपने कार्यों को सम्पन्न करेंगे I स्वपरिश्रम एवं योग्यता से आपको भौतिक सुख- संसाधनों की प्राप्ति होगी तथा धनैश्वर्य से सुसम्पन्न होकर अपना जीवन व्यतीत करेंगे I
यह द्विस्वभाव राशि है, अतः इस राशि वाले व्यक्ति प्रत्येक वस्तु के दोनों पहलुओं पर बहुत अच्छी तरह सोच- विचार कर फिर निर्णयात्मक कदम उठाते हैं I इस राशि के व्यक्तियों को क्रोध कम आता है, प्राय: ये शांत एवं गंभीर स्वभाव के होते हैं I यदि ये क्रोधित हो जाएं तो क्रोध शांत होने पर फिर पश्चाताप प्रकट करते हैं I इस राशि का चिन्ह 'गदा व वीणा सहित' पुरुष स्त्री की जोड़ी है, अतः इस राशि वाले व्यक्ति गान- वाद्य आदि कलाओं में रूचि रखते हैं I
मिथुन राशि वाले लोगों पर संगत का असर ज्यादा होता है I बुरी संगत इन्हें बुरा बना देती है, वहीँ अच्छी संगत से यह अच्छे हो जाते हैं I ये लोग शीघ्र ही दूसरे लोगों के प्रभाव व आकर्षण केन्द्र में आ जाते हैं I ये इन राशि वालों की सबसे बड़ी कमजोरी है I बुध जिस गृह के साथ बैठता है उसका प्रभाव भी वैसा ही हो जाता है I उसी के अनुसार उसका रंग, चरित्र व स्वभाव हो जाता है I
मित्रों के प्रति आपके मन में पूर्ण निष्ठा रहेगी तथा सरकारी कार्यों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से अपना सहयोग प्रदान करेंगे I आपका व्यक्तित्व आकर्षक होगा तथा वाणी में भी मधुरता रहेगी I साथ ही शांत, विनम्र  एवं हास्य प्रवृत्ति के कारण अन्य जनों को प्रभावित तथा आकर्षित करने में समर्थ रहेंगे I कला एवं संगीत के प्रति आप रुचिशील रहेंगे I प्रयत्न के इस क्षेत्र में मान- प्रतिष्ठा भी प्राप्त हो सकती है I ऐसे व्यक्ति व्यापारिक बुद्धि के लोग होते हैं I लेखन, गणित, संपादन या व्यापार संबंधी कार्यों में आप उन्नति प्राप्त करके समाज में प्रतिष्ठित व्यक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करने में समर्थ रहेंगे I
धर्म के प्रति भी आपके मन में श्रद्धा का भाव विशेष होगा, निष्ठापूर्वक आप धार्मिक कार्यकलापों को सम्पन्न करेंगे I साथ ही अवसरानुकूल सामाजिक जनों के मध्य उदारता तथा दानशीलता के भाव का भी प्रदर्शन करेंगे ई, फलत: सामाजिक प्रभाव तथा प्रतिष्ठा में वृद्धि होती रहेगी I मर्म के आप ज्ञाता होंगे तथा गूढ़ से गूढ़ विषय को हल करने में समर्थ होंगे I
आपका व्यक्तित्व भी आकर्षक होगा I फलत: अन्य लोग आपसे प्रभावित तथा आकर्षित रहेंगे I जीवन में समस्त सांसारिक सुखों का उपयोग करने में आप सफल होंगे तथा धनैश्वर्य एवं वैभव से भी सुसम्पन्न रहेंगे I आप एक विद्वान पुरुष होंगे, फलत: अपनी विद्वता से समाज में मान- सम्मान एवं प्रतिष्ठा अर्जित करेंगे I
व्यापार के प्रति आपकी विशेष रूचि होगी, इनके द्वारा आप धनवान एवं विख्यात होंगे I संगीत एवं कला में भी आप समयानुसार अपनी रूचि का प्रदर्शन करते रहेंगे I आप सांसारिक ऐश्वर्य से युक्त होंगे तथा सामान्यतया आपका जीवन सुख एवं प्रसन्नता से युक्त ही रहेगा I इस प्रकार आप शांत, उदार, हास्य प्रवृत्तियुक्त एवं विद्वान पुरुष होंगे तथा जीवन के समस्त सुखों को अर्जित करके प्रसन्नता पूर्वक उनका उपयोग करेंगे I 
यदि आपका जन्म मिथुन राशि में 'मृगशिरा नक्षत्र' के 3,4 चरण (का, की) अक्षरों में है तो आपका जन्म 7 वर्ष की मंगल की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- सर्प, गण- देव, वर्ण- शूद्र, युज्जा-पूर्व, हंसक- वायु, नाड़ी- मध्य, पाया- सोना और वर्ग- बिलाव है I इस नक्षत्र का प्राकृतिक स्वभाव विद्या अध्य्यनी और शिल्पी है I इस राशि वाले बालक बहुत ही चतुर व सुन्दर होते हैं I ये प्राय: मध्यम कद के छरहरे बदन के एवं सोच- विचार कर खर्च करने वाले होते हैं I इनकी प्रगति में निरंतर बाधाएं आती रहती हैं तथा इनका जीवन परिवर्तनमय  रहता है I ये व्यक्ति "Change is charm of life" के सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाले होते हैं I 
यदि आपका जन्म मिथुन राशि में 'आद्रा' नक्षत्र के (कु, घ, ड़, छ) अक्षरों में है तो आपका जन्म 18 वर्ष की राहु की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- श्वान, गण- मनुष्य, वर्ण- शूद्र, युज्जा-मध्य, हंसक- वायु, नाड़ी- आद्य, पाया- चांदी, प्रथम तीन चरण बिलाव एवं अंतिम चरण सिंह वर्ग का है I इस नक्षत्र में जन्मे जातक क्रय- विक्रय में निपुण होते हैं एवं इनमें संहारक शक्ति विशेष होती है I
यदि आपका जन्म मिथुन राशि के 'पुनर्वसु' नक्षत्र के प्रथम तीन चरणों (के, को, हा) में हुआ है तो आपका जन्म 16 वर्ष की बृहस्पति की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- मार्जार, गण- देव, वर्ण- शूद्र, युज्जा-मध्य, हंसक- वायु, नाड़ी- आद्य, पाया- चांदी, प्रथम दो चरण बिलाव एवं तृतीय चरण हिरन वर्ण का है I इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति धन एकत्रित करने में निपुण होते हैं I अपनी इन्द्रियों व इच्छाओं पर इनका विशेष नियंत्रण होता है I
कर्क राशि और उनका व्यक्तित्व
कर्क लग्न के जातक चन्द्रमा से प्रभावित होते हैं I चन्द्रमा स्वयं चंचल है अतः ऐसा व्यक्ति स्वयं चंचल स्वभाव का होता है I सहनशीलता की कुछ कमी रहेगी I भीतर से कुछ और बाहर से कुछ होता है I ऐसा व्यक्ति पूर्ण स्थाई होता है I आत्म प्रशंसा सुनना प्रसन्न करता है I
चन्द्रमा एक शीतल, सौम्य एवं शुभ ग्रह है I चन्द्रमा का सबसे ज्यादा असर मन:स्थिति पर देखा गया है I अतः इस राशि वाले स्त्री पुरुष प्राय: अत्यधिक भावुक पाये जाते हैं I लम्बा कद, दूसरों के प्रति दया व प्रेम की भावना विशेष एवं जीवन में निरंतर आगे बढ़ने की तीव्र लालसा इनकी निजी विशेषता है I
कर्क जाति में उत्पन्न जातक सामान्यतया शांत प्रवृत्ति के होते हैं I अपने कार्य- कलापों को वे दृढ़तापूर्वक, बुद्धिमता एवं परिश्रम से सम्पन्न करेंगे तथा इनमें आपको प्राय: सफलता प्राप्त होगी जिससे आपका उन्नति का मार्ग प्रशस्त रहेगा I जीवन में भौतिक सुख- संसाधनों को ये स्वपरिश्रम तथा पराक्रम से अर्जित करने में समर्थ रहते हैं तथा सुखपूर्वक इनका उपभोग करते है I इनमें समाज या देश सेवा की भावना रहती है साथ ही समाज में यथोचित आदर एवं सम्मान प्राप्त करेंगे I अन्य जनों की आंतरिक भावनाओं को समझने में ये दक्ष होते हैं तथा राजनीतिक या सरकारी क्षेत्र में किसी सम्मानित पड़ को प्राप्त करके मान- प्रतिष्ठा एवं प्रसिद्धि अर्जित करते हैं I
जीवन में आपको उतार- चढ़ाव का सामना करना पड़ेगा, परन्तु समस्त समस्याओं का सामना तथा समाधान आप दृढ़तापूर्वक करेंगे तथा विषम परिस्थितियों में भी साहस नहीं छोड़ेंगे I इसके अतिरिक्त समाज में आपका प्रभाव रहेगा तथा अनुकूल प्रतिष्ठा अर्जित करने में समर्थ होंगे I आपका व्यक्तित्व आकर्षक रहेगा, फलत: अन्य जन आपसे प्रभावित होंगे I श्रेष्ठ एवं उत्कृष्ट कार्यों को करने में आपकी रूचि रहेगी तथा प्रयत्नपूर्वक इनको करने में तत्पर होंगे I 
आपमें कर्तव्यपरायणता का भाव भी विद्यमान रहेगा तथा समाज एवं देश के प्रति अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करेंगे I सरकारी क्षेत्र या राजनीति में आपको सफलता मिलेगी तथा किसी उच्च पड़ को प्राप्त करने में समर्थ होंगे I 
प्रकृति के प्रति आकर्षण रहेगा तथा समय- समय पर आप इन स्थानों पर भ्रमण का कार्यक्रम बनाते रहेंगे I संगीत एवं कला के प्रति भी आपका आकर्षण बना रहेगा तथा समय- समय पर आप इन स्थानों पर भ्रमण का कार्यक्रम बनाते रहेंगे I संगीत एवं कला के प्रति भी आपका आकर्षण रहेगा तथा इस क्षेत्र में आपका योगदान भी बना रहेगा I मित्रों के मध्य आप सम्मानीय रहेंगे तथा उनसे आपको इच्छित सुख एवं सहयोग की प्राप्ति होगी, साथ ही वे गुणवान तथा शिक्षित भी होंगे I इस प्रकार आप कर्तव्यपरायण, दृढ़प्रतिज्ञ, मित्र- प्रेमी तथा पराक्रमी व्यक्ति होंगे I
कर्क राशि 'जलतत्व' प्रधान है I इसलिए ऐसा व्यक्ति चंचल व जलप्रिय होता है, घूमने व तैरने का शौक़ीन तथा चन्द्रमा की चांदनी इनको बहुत प्रिय लगती है I इनकी कल्पना शक्ति बहुत तीव्र होती है I ये अच्छे लेखक सुन्दर कवि, दार्शनिक तथा उच्चकोटि के साहित्यकार व 'भविष्य वक्ता' हो सकते हैं I
चन्द्रमा की धवल कांतिमय किरणों का रंग हल्का 'मोतियों' वाला आंका गया है I अतः उसका रत्न 'मोती' आपके लिए अत्यधिक अनुकूल माना गया है I 'श्वेत रंग' प्रिय होने से ऐसे व्यक्ति, खड्डी, सीमेंट कारखाने तथा भवन निर्माण इत्यादि कार्यों व कपड़ा संबंधी व्यापार में सफल होते देखे गए हैं I
यह स्त्री संज्ञक राशि है इसलिए इसकी प्रकृति और मानसिक अवस्था में इतनी चंचलता रहती है की ये सबसे एक सा व्यवहार नहीं कर पाते, इनमें धार्मिक प्रवृत्तियां भी पाई जाती है I अगर जरा सा भी विपरीत कार्य हो जाये या कुछ संकट आ जाए तो आप विचलित हो उठते हैं I स्त्रियों के समान बातचीत के शौकीन होते हुए आप शीघ्र आवेश में आ जाते हैं, परन्तु शांत भी शीघ्र हो जाते हैं I आपके मृदुल स्वभाव के कारण मित्रों से आप उल्टे नुकसान में रहते हैं I अत्यधिक भावुकता आपके लिए घातक है I
यदि आपका जन्म कर्क राशि के अंतर्गत 'पुनर्वसु नक्षत्र' के चतुर्थ चरण (ही अक्षर) में हुआ है तो आपका जन्म 16 वर्ष की बृहस्पति की महादशा के अंतर्गत हुआ है I आपकी योनि- मार्जर, गण- देव,  वर्ग- विप्र, हंसक- जल, नाड़ी- आद्य, पाया- चांदी एवं वर्ग- मीढ़ा है I इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति क्रय- विक्रय से बहुत धन कमाता है तथा इनके दांत बहुत ही मजबूत व सुन्दर हैं I
यदि आपका जन्म कर्क राशि के अंतर्गत 'पुष्य नक्षत्र' (हू, हे, हो, डा) में हुआ है तो आपका जन्म 19 वर्ष की शनि की महादशा के अंतर्गत हुआ है I आपकी योनि- मीढ़ा, गण- देव,  वर्ग- विप्र, हंसक- जल, नाड़ी- मध्य, पाया- चांदी, इस नक्षत्र के प्रारंभिक तीन चरण, मेष वर्ग अंतिम चरण का वर्ग श्वान है I इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला व्यक्ति धर्म ध्वज, विविध कलाओं के ज्ञाता, दयालु, परोपकारी एवं समाज के अग्रगण्य व्यक्ति होते हैं I
यदि आपका जन्म कर्क राशि के अंतर्गत 'आश्लेषा नक्षत्र' (डी, डू, डे, डो) में हुआ है तो आपका जन्म 17 वर्ष की बुध की महादशा के अंतर्गत हुआ है I आपकी योनि- मार्जर, गण- राक्षस, वर्ग- विप्र, हंसक- जल, नाड़ी- आद्य, पाया- चांदी एवं वर्ग श्वान है I इस नक्षत्र का अधिदेवता सर्प है I ऐसे व्यक्ति शीघ्र क्रोधित, उत्तेजित हो जाते हैं तथा सर्प की तरह भयंकर फुंकारने वाले, बदला लेने वाले दक्ष जातक होते हैं I
सिंह राशि और उनका व्यक्तित्व
सिंह राशि क स्वामी सूर्य ग्रहराज होने के साथ- साथ तेजस्वी, ओजयुक्त पौरुष क प्रतिनिधित्व करता है, इस राशि वाले व्यक्ति निर्भीक, उदार व अभिमानी होते हैं I चित्त में दृढ़ता, साहस तथा धैर्य इनमें विशेष मात्रा में पाया जाता है I अतएव सिंह राशि वाले पुरुषों में आत्मशक्ति गजब की होती है I ये कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी नहीं घबराते, हिम्मत हारना तो इन्होनें सिखा ही नहीं I आपके जन्म समय में सिंह राशि उदित हो रही थी जिसका स्वामी सूर्य है I सामान्यतया सिंह राशि में उत्पन्न जातक तेजस्वी, साहसी तथा पराक्रमी होते हैं I उनके अन्दर आत्मविश्वास क भाव पूर्ण रूप से विद्यमान रहता है तथा अपनी बुद्धि एवं पराक्रम के बाल पर वे जीवन में उन्नति प्राप्त करने में समर्थ रहते हैं I धनैश्वर्य, वैभव एवं भौतिक सुख- संसाधनों से ये प्राय: युक्त रहते हैं तथा जीवन में सुखपूर्वक इसका उपभोग करते हैं I ये जातक सिद्धांतवादी होते हैं तथा अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए सदैव तत्पर रहते हैं I इनकी प्रवृत्ति धार्मिक भी होती है तथा स्वभाव में परोपकार का भाव भी रहता है, फलत: ये पूर्ण विश्वास के योग्य होते हैं I इसके अतिरिक्त सरकारी या गैर- सरकारी क्षेत्रों में किसी उच्च पद को प्राप्त करने में समर्थ होते हैं जिससे सामाजिक मान- प्रतिष्ठा या यश समाज में विद्यमान रहता है साथ ही नेतृत्व की क्षमता भी इनमें विद्यमान रहती है I
अतः इसके प्रभाव से आपका व्यक्तित्व आकर्षक रहेगा, जिससे अन्य लोग आपसे प्रभावित रहेंगे I आप निर्भीक पुरुष होंगे तथा अपने समस्त शुभ एवं सांसारिक कार्यकलापों को निर्भयता से सम्पन्न करके उनमें वांछित सफलता प्राप्त करेंगे जिससे आपको भौतिक सुख- संसाधनों एवं अन्य ऐश्वर्य की प्राप्ति होगी तथा उन्नति मार्ग भी प्रशस्त रहेंगे, फलत: आपका जीवन सुखपूर्वक व्यतीत होगा I
आपके हृदय में उदारता का भाव भी विद्यमान रहेगा तथा अन्य लोगों के प्रति स्नेह के भाव का प्रदर्शन भी करेंगे I आपको स्वपुरुषार्थ  से जीवन में सफलता प्राप्त होगी तथा प्रतियोगिता के क्षेत्र में आप सफल होंगे तथा आपके शत्रु या प्रतिद्वंद्वी आपसे भयभीत होंगे, परन्तु यदि आप अन्य जनों के साथ पूर्ण समानता का व्यवहार करेंगे तो आप समाज में लोकप्रियता तथा अतिरिक्त प्रतिष्ठा भी अर्जित करने में समर्थ हो सकते हैं I
आप में शारीरिक बाल की प्रधानता विशेष रहेगी तथा परिश्रम एवं पराक्रम में अपने सांसारिक महत्त्व के कार्यों को सम्पन्न करेंगे तथा इनमें इच्छित सफलता प्राप्त करके जीवन में उन्नति के मार्ग प्रशस्त करेंगे I राजनीति या व्यापार आदि में आप उन्नतिशील रहेंगे तथा इन क्षेत्रों में आपकी श्रेष्ठता बनी रहेगी I
आपके स्वभाव में तेजस्विता का भाव भी विद्यमान रहेगा I अतः यदा- कदा आप अनावश्यक क्रोध या उग्रता के भाव का भी प्रदर्शन करेंगे I आयुर्वेद एवं योग आदि के प्रति आपकी आस्था विद्यमान रहेगी तथा समय- समय पर योगाभ्यास करेंगे I आपमें गंभीरता का भाव विद्यमान होगा, फलत: आपके कार्य धैर्यपूर्वक सम्पन्न होंगे जिससे आपको सफलता प्राप्त होगी I
धर्म के प्रति आपके मान में श्रद्धा रहेगी तथा श्रद्धापूर्वक धार्मिक कार्यकलापों तथा अनुष्ठानों को सम्पन्न करेंगे I इसी परिप्रेक्ष्य में सत्संग आदि में भी अपना योगदान प्रदान कर सकते हैं I आपको भ्रमण या पर्वतीय क्षेत्र में घूमना रुचिकर लगेगा I अतः आप समय- समय पर ऐसे स्थानों की सैर करते रहेंगे I इस प्रकार समस्त सुखों का उपभोग करते हुए आप अपना समय व्यतीत करेंगे I
सिंह राशि पुरुष संज्ञक व अग्नि तत्त्व प्रधान राशि है I आप उदार हृदय होने के नाते लोगों को क्षमा कर देते हैं I परन्तु यदि कोई आपके मान, पद व प्रतिष्ठा पर कालिख पोतने की कोशिश करता है तो आप उसे कभी भी क्षमा नहीं करेंगे I आप प्रतिष्ठा व सम्मान के लिए सब कुछ करने को उतारू हो जाएंगे I आपके जोश, हिम्मत व रौब के सामने शत्रु के हौंसले पस्त हो जाएंगे I शत्रु आपके सामने आने से हमेशा घबराएगा इसलिए पीठ पीछे आपकी बुराई होगी व सम्मुख प्रशंसा I आप चापलूस लोगों से बचें I
सिंह राशि चतुष्पद, शीर्षोदय व दिनबली है I रात्रि के कार्यकलाप आपके लिए अनुकूल नहीं कहे जा सकते I आप किसी के भी अधीनस्थ रहकर कार्य नहीं कर सकते I आप स्वच्छंदचारी व स्वतंत्र विचारों वाले व्यक्ति हैं I यदि आप व्यापारी हैं तो आप देखेंगे की आपका भागीदार आपसे कुछ दबा हुआ है, डरा हुआ सा होगा I यह आपकी प्रकृति प्रदत्त शक्ति व जन्मजात विशेषता है I
यदि आपका जन्म सिंह राशि के अंतर्गत 'मघा नक्षत्र' (मा, मी, मु, मे) में हुआ है तो आपका जन्म 7 वर्ष की केतु की दशा के अंतर्गत हुआ है I आपकी योनि- मूषक, गण- राक्षस, वर्ण- क्षत्रिय, हंसक- वायु, नाड़ी- आद्य, पाया- चांदी एवं वर्ग भी मूषक है I आप ठिगने कद के सुदृढ़ वक्ष- स्थल एवं साहसी प्रवृति के हैं I
यदि आपका जन्म सिंह राशि के अंतर्गत 'पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र' (मो, टा, टी, टू) में हुआ है तो आपका जन्म 20 वर्ष की शुक्र की महादशा के अंतर्गत हुआ है I आपकी योनि- मूषक, गण- मनुष्य, वर्ण- क्षत्रिय, हंसक- वायु, नाड़ी- मध्य, पाया- चांदी I इस नक्षत्र के प्रथम चरण का वर्ग मूषक तथा अंतिम तीन चरण का वर्ण श्वान है I इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति मधुर भाषी एवं भ्रमणशील होते हैं I इन्हें पानी से बहुत प्रेम होता है I
यदि आपका जन्म सिंह राशि के अंतर्गत 'उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र' के प्रथम चरण (टे) में हुआ है तो आपका जन्म 6 वर्ष की सूर्य की महादशा के अंतर्गत हुआ है I आपकी योनि- गौ, गण- मनुष्य, वर्ण- क्षत्रिय, हंसक- वायु, नाड़ी- आद्य, पाया- चांदी तथा वर्ग- श्वान है I इस नक्षत्र में जन्में जातक सूर्य के समान तेजस्वी होते हैं तथा अपने परिश्रम से बहुत सारा धन एवं बहुत बड़ा नाम अर्जित करते हैं I
सिंह राशि वालों के पिता- पुत्र में कम बनती है I धार्मिक क्षेत्र में आप शक्ति के उपासक हैं I भेरू, सिंह एवं सूर्य इत्यादि शक्ति प्रधान देवताओं में आपकी रूचि रहेगी I सिंह राशि उष्ण- स्वभाव अल्प संतति पीतवर्ण भ्रमणप्रिय व निर्जल राशि है I आपको मलाईदार वस्तुओं में रूचि रहेगी I सूर्य का "माणिक्य रत्न" आपके लिए सदा सर्वथा अनुकूल व शुभ रहेगा I
कन्या राशि और उनका व्यक्तित्व

कन्या राशि में उत्पन्न जातक अध्ययनशील होते हैं तथा कई विषयों के ज्ञानार्जन में उनकी रूचि रहती है Iअतः समाज में सामान्यतया विद्वान के रूप में इनकी छवि रहती है I ये गुणवान व्यक्ति होते हैं परन्तु स्त्रियों के प्रति इनके मन में अधिक आकर्षण रहता है I साथ ही भाग्य इनका प्रबल रहता है तथा अल्प परिश्रम से ही इनके सांसारिक महत्त्व के कार्य सफल हो जाते हैं जिससे भौतिक सुख- संसाधन एवं धनैश्वर्य की इनके पास प्रचुरता रहती है I ये अत्यन्त बुद्धिमान होते हैं तथा अपनी बुद्धि के द्वारा कठिन से कठिन समस्याओं का समाधान करने में समर्थ रहते हैं I अत?
: स्त्री को क्यों नहीं समझ पाता है पुरुष?

हजारों वर्ष पहले, जब वेदों का बोलबाला था, भारतीय समाज में स्त्री-पुरुष के बीच भेदभाव नहीं बरता जाता था। इसके फलवरूप समाज के सभी कार्यकलापों में दोनों की समान भागीदारी होती थी। पुराणों के अनुसार जनक की राजसभा में महापंडित याज्ञवल्क्य और मैत्रेयी नामक विदुषी के बीच अध्यात्म-विषय पर कई दिनों तक चले शास्त्रार्थ का उल्लेख है। याज्ञवल्क्य द्वारा उठाए गए दार्शनिक प्रश्नों का उत्तर देने में विदुषी मैत्रेयी समर्थ हुईं।

लेकिन जीवन के कुछ बारीक मसलों को लेकर मैत्रेयी द्वारा पूछे गए प्रश्नों का उत्तर देने में असमर्थ होकर याज्ञवल्क्य डगमगाए। अंत में उन्हें हार माननी पड़ी। स्पष्ट है कि नारियों की महिमा उस युग में उन्नत दशा में थी।

एक पुरुष की पहुंच के बाहर की बारीक संवेदनाओं का अनुभव एक स्त्री कर सकती है। पुरुष अपनी बुद्धि से संचालित है जबकि नारी अपनी आंतरिक संवेदनाओं से संचालित होती है।

बुद्धि बाहर से संचित की जाती है। बुद्धि जिस स्तर पर प्राप्त होती है, वह उसी स्तर पर काम करती है। लेकिन आंतरिक संवेदना बाहरी मैल से अछूती रहने के कारण पवित्र है, यही नहीं, बुद्धि की तुलना में श्रेष्ठ भी है। इसलिए नारी संवेदना के स्तर पर पुरुष की अपेक्षा उन्नत होती है।

फिर नारी जिस सम्मान की अधिकारिणी है, उसे वह आदर-सम्मान देने से समाज क्यों मुकरता है?

प्रत्येक जमाने में पुरुष शरीर के गठन की दृष्टि से नारी की तुलना में अधिक बलवान रहा है। किसी देश में बाहरी शक्तियों का आक्रमण होने पर विदेशी सेना वहां की नारियों को ही अपना पहला लक्ष्य बनाती है। ऐसे मौकों पर शारीरिक दृष्टि से अबला नारियों की रक्षा करने का दायित्व पुरुषों पर होता था। इससे फायदा उठाकर नारी को घर की चारदीवारी के अंदर बंद रखने की प्रथा तभी से शुरू हुई।

पुरुष को प्रमुखता देते हुए समाज के नियम बनाए गए। अधिकार का स्वाद चखने के बाद पुरुष-वर्ग नारी को बंद रखने की इस प्रथा को बदलने के लिए राजी नहीं हुआ। पुरुष-प्रधान समाज ने ऐसे विधि-विधान बनाए जिनके तहत नारी को उसके जन्म से पहले ही उसके न्यायोचित अधिकारों से वंचित रखा गया। भारत में ही नहीं, विश्व के प्राय: सभी देशों में पुरुषों को प्राथमिकता देने के जो कुचक्र रचे गए नारी इनकी शिकार बनी। कुछ एशियाई देशों में ऐसे कानून बनाए गए थे जिनके मुताबिक पुरुष का वध किये जाने पर अपराधी को मृत्युदंड देने का विधान था, लेकिन नारी की हत्या करने पर वह गुनाह नहीं माना जाता था।

स्त्री के खिलाफ पुरुषों ने नियम क्यों बनाए?
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इसलिए नहीं कि उसने स्त्री को अपनी तुलना में निम्न स्तर का समझ रखा था, बल्कि स्त्री उसकी तुलना में श्रेष्ठ है इस सत्य को समझने से उत्पन्न डर के कारण ही उसने ऐसे नियमों का निर्माण किया।

किसी बुद्धिमान पुरुष को और कोई नौकरी नहीं मिली, एक स्कूल में बच्चों को पढ़ाने का काम ही मिला। एक दिन उसने कक्षा में बालक-बालिकाओं से पूछा, ‘पता है, पृथ्वी का वजन कितना है?’ गृह-कार्य के रूप में यह प्रश्न पूछा गया था।

बच्चों ने माता-पिता से पूछ कर उन्हें तंग किया। कुछ अभिभावकों को उत्तर मालूम नहीं था। शेष माता-पिता ने अपने-अपने अंदाज से मोटामोटी कोई संख्या बताई।

अगले दिन कक्षा में छात्रों ने प्रश्न के अलग-अलग उत्तर दिए‘ सारे ही उत्तर गलत हैं’ कहते हुए उस बुद्धिमान शिक्षक ने ब्लैक बोर्ड पर कई अंकों वाली एक संख्या लिखकर बताया, ‘यही सही जवाब है।’

‘सर, मेरा एक डाउट है…’ एक बच्ची उठ खड़ी हुई। ‘आपने जो संख्या बताई है, वह गणना पृथ्वी पर रहने वाले लोगों को मिलाकर है या उन्हें छोडक़र?’

बुद्धिमान शिक्षक निरुत्तर था, उसने सिर झुका लिया।

स्त्री को समझने में नाकाम रहा है पुरुष

चाहे कितना बड़ा अक्लमंद हो, ऐसी कुछ बातें पृथ्वी पर मौजूद हैं जिन्हें समझना संभव नहीं है, ऐसी बातों में प्रमुख है, नारी।

विश्व के कई विषयों का वैज्ञानिक विश्लेषण करके समझने में पुरुष समर्थ था। लेकिन उसके लिए पास में ही रहने वाली नारी की बारीक संवेदनाओं को समझना संभव नहीं हुआ। जो चीज अबूझ होती है, उसके प्रति डर पैदा होना स्वाभाविक है। इसी भय के कारण पुरुष ने नारी को अपनी नजर ऊंची करने का भी अधिकार नहीं दिया, उसे दूसरे दर्जे का बनाए रखा। इसमें पुरुष का शारीरिक बल काम आया। फिर अपने बुद्धि-बल से उसने ऐसा कुचक्र रचा जिसके प्रभाव में पडक़र नारी को सदा पुरुष की छत्रछाया में रहना पड़ा।

नारियों ने साहस के साथ उठकर इस स्थिति को रोकने का कोई प्रयत्न किया? नहीं!

सक्रिय जीवन जीना बंद करके, पुरुष के साये में सुविधाजनक जीवन जीने के लिए वे भी तैयार हो गईं। किंतु यही सत्य है कि स्त्री के सामने पुरुष या पुरुष के सामने स्त्री निम्न नहीं है। स्त्री और पुरुष को अलग करके देखने की कोई जरूरत नहीं है। दोनों के बिना परिवार, समाज, दुनिया कुछ भी पूर्ण नहीं होगा।
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7-12 राशियां और उनका विस्तृत्त विवरण

तुला राशि और उनका व्यक्तित्व
इस राशि क चिन्ह तराजू है I तराजू दो वस्तुओं के संतुलन क परीक्षण करते हुए हलकी व भारी वस्तु क बोध कराती है I अतः इस राशि वाले की संतुलन शक्ति बड़ी गजब की होती है I यदि आपका जन्म चित्रा नक्षत्र में है तो आप किसी भी व्यक्ति के मान की थाह पा लेते हैं I कोई व्यक्ति क्या कहना चाहता है यह बोलने के पहले ही उसके हृदय की बात समझ लेते हैं I अपनी इसी फुर्तीली निर्न्यात्म्क शक्ति के कारण आप शीघ्र ही लोगों पर छा जाते हैं I ‘तराजू’ जैसे व्यापार का परिचायक है, इस राशि के लोग बड़े कुशल व्यापारी होते हैं तथा लोक व्यवहार में चतुर होने के कारण इनको व्यापारिक सफलता शीघ्र मिल जाती है I
तुला राशि पुरुष जाति सूचक व क्रूर स्वभाव राशि मानी जाती है I यदि आपका जन्म स्वाति नक्षत्र में है तो आप में एक जबरदस्त व्यापारी होने के समस्त गुण विद्यमान हैं I सच्चा व खरा परीक्षण करने की क्षमता आप रखते हैं तथा आप सहज ही किसी व्यक्ति के छलावे में नहीं आ सकते I आप राजनीति के क्षेत्र में भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं I जन्मकुंडली में यदि शुक्र की स्थिति अच्छी है तो आप कुशल अभिनेता भी बन सकते हैं I
आपके जन्मसमय में तुला राशि उदित हो रही थी जिसका स्वामी शुक्र है I सामान्यतया तुला राशि में उत्पन्न जातक सुंदर, स्वस्थ एवं सुदर्शन व्यक्तित्व के स्वामी होते हैं, जिससे अन्य लोग उनसे प्रभावित रहते हैं I उनकी प्रवृत्ति हास्यप्रिय होती है तथा बच्चों के प्रति इनके मन में प्रबल स्नेह का भाव विद्यमान रहता है I सुंदर दृश्यों एवं वस्तुओं के प्रति भी इनमें आकर्षण रहता है I स्वाभाविक रूप से ये अन्य जनों को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं देते हैं तथा सबके साथ समानता का व्यवहार करते हैं जिससे समाज में ये सम्मानित, प्रतिष्ठित तथा प्रसिद्ध रहते हैं I कला के प्रति इनका भावनात्मक लगाव रहता है तथा अच्छे कार्यों से ये अपनी आजीविका अर्जित करते हैं I नीति ज्ञान में ये चतुर होते हैं I अतः राजनीति के क्षेत्र में इनको नेतृत्व प्राप्त हो जाता है, परन्तु इनका कोई निश्चित सिद्धांत नहीं होता है I
आप एक बुद्धिमान व्यक्ति होंगे तथा बुद्धिमता से अपने सभी कार्य सम्पन्न करेंगे, इनमें आपको सफलता भी मिलेगी I आपकी प्रवृत्ति विलासी होगी तथा भौतिकता के प्रति अत्यधिक आकर्षण रहेगा I आपकी प्रवृत्ति भ्रमण प्रिय होगी I कला एवं संगीत में आप निपुण होंगे तथा कार्य करने में अत्यन्त दक्ष होंगे I
शुक्र सौम्य, शीतल, ऐश्वर्यशाली व विलासपूर्ण ग्रह है I यह रात्रि को हलकी श्वेत झलकदार किरणें बिखेरता है I गौर वर्ण, मध्यम कद तथा सुंदर आकर्षक चेहरा इस राशि वाले जातक के प्रारंभिक लक्षण हैं I यह राशि चर संज्ञक, वायुतत्व प्रधान व पश्चिम दिशा की स्वामिनी है I प्राकृतिक स्वभाव वृषभ तुल्य होते हुए भी इस राशि वाले विचारशील, ज्ञान प्रिय, कुशल कार्य, संपादक व राजनीतिज्ञ होते हैं I श्वेत रंग व साफ़- सुथरी, ऐश्वर्य प्रधान वस्तुओं का व्यापार आपके अनुकूल कहा जा सकता है I आपके लिए अनुकूल रत्न ‘हीरा’ है I
आप में सहनशीलता क भाव विद्यमान होगा और धैर्यपूर्वक कार्यों को सम्पन्न करके उनमें सफलता की प्रतीक्षा करने में समर्थ होंगे I साथ ही सरकार या उच्चाधिकारी वर्ग से आपको समय- समय पर धनार्जन होता रहेगा I आप में शारीरिक बाल की भी प्रचुरता रहेगी I फलत: परिश्रम एवं पराक्रम का प्रदर्शन करके आप जीवन में मनोवांछित सफलताओं को अर्जित करेंगे जिससे समाज में आपका प्रभाव रहेगा तथा सभी लोग आपका आदर करेंगे I साथ ही यश भी दूर- दूर तक व्याप्त रहेगा I धर्म के प्रति आपके मन में पूर्ण श्रद्धा रहेगी तथा अवसरानुकूल आप धार्मिक कृत्यों को नियमपूर्वक सम्पन्न करेंगे I जिससे आपको वांछित लाभ एवं सहयोग मिलता रहेगा I विवाह उपरांत इनके जीवन में कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन देखे जा सकते हैं I
यदि आपका जन्म तुला राशि में ‘चित्रा नक्षत्र’ के तृतीय व चतुर्थ चरण (रा, री) में है, तो आपका जन्म सात वर्ष की मंगल की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- व्याघ्र, गण- राक्षस, वर्ण- शूद्र, हंसक- वायु, नाड़ी- अन्त्य, पाया- चांदी, प्रथम तीन चरण का वर्ग- हरिण तथा अंतिम चरण का वर्ग- सर्प है I ये जातक अति उत्साही, बहुमुखी प्रतिभा के धनी होते हैं I

यदि आपका जन्म तुला राशि में ‘विशाखा नक्षत्र’ के तीन चरणों (ती, तू, ते) में है, तो आपका जन्म 16 वर्ष की बृहस्पति की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- व्याघ्र, गण- राक्षस, वर्ण- शूद्र, हंसक- वायु, नाड़ी- अन्त्य, पाया- तांबा एवं वर्ग- सर्प है I ये जातक विरोधियों का सफाया बड़ी चतुराई से करते हैं I
वृश्चिक राशि और उनका व्यक्तित्व

आपकी राशि का स्वामी मंगल है I मंगल से प्रभावी जातक साहसी व कर्मठ होता है, ऐसा व्यक्ति परिस्थितियों की मार के सामने झुकने वाला नहीं होता I वृश्चिक राशि का स्वामी मंगल तेजोमय व अग्नितत्व प्रधान होता है I ऐसा जातक दबंग व क्रोधयुक्त होता है I यह स्त्री सूचक राशि है I इसका प्राकृतिक स्वभाव दंभी, हाथी, दृढ़- प्रतिज्ञ व स्पष्टवादी पुरुषों का प्रजनन है I ‘विशाखा नक्षत्र’ में जन्में जातक को क्रोध बहुत ही शीघ्र आता है I कोई जरा भी विपरीत बात कह दे तो इनको सहन नहीं होता I ये बिना आगे- पीछे की परवाह किये आगे वाले व्यक्ति से टकरा जाते हैं I स्त्री संज्ञक राशि होने से फिर वे मन-ही-मन घबराते हैं I परन्तु अपनी घबराहट बाहर प्रकट नहीं होने देते I क्रोध में बहुत उल्टा- सीधा कह डालते हैं तथा पीछे पछताते हैं I
‘वृश्चिक’ राशि का चिन्ह डंकदार बिच्छू है I बिच्छू के करीब 21 नेत्र शरीर के भिन्न- भिन्न अंगों पार होते हैं I इसलिए इस राशि वाला जातक सहर्ष चक्षुओं से किसी वस्तु का अवलोकन करता है I विषय की बारीकी को सहज ही पकड़कर अपने काम की वस्तु उसमें से ग्रहण कर लेता है I बिच्छू बड़ा ही तेज स्वभाव का व शीघ्र डंक मारने वाला प्राणी होता है I सदैव व्यक्ति दूसरों की असावधानी का शीघ्र फायदा उठाने में तत्पर रहते हैं I बिच्छू के आगे का आधा हिस्सा मृदु तथा एक प्रकार से अप्रभावशाली है I विष की तीक्षणता उत्तरार्ध में है I अतः इस राशि में उत्पन्न व्यक्तियों के पूर्वार्द्ध साधारण तथा जीवन के अंतिम दिनों में ये भरे- पूरे व सर्व प्रभुत्व- सम्पन्न बन जाते हैं I
वृश्चिक राशि स्त्री जाति सूचक जलतत्व प्रधान व रात्रि बली होती है I सदैव इस राशि वाले सज्जन रात्रि में अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं I यदि आपका नाम ‘य’ से प्रारंभ होता है I आपको एक बार क्रोध आ जाने पर आप क्षमा करना नहीं जानते I मन में क्रोधाग्नि भीतर ही भीतर धधकती रहती है I यद्यपि बाहर से यह मालूम होता है कि आप शांत हो गए परन्तु प्रतिहिंसा कि भावना आपके अन्दर और भी भयानक रूप धारण कर लेती है I आप प्रतिद्वन्द्वी को निर्दयता से हानि पहुँचाने कि चेष्टा करते हैं I इनको अगर जहरीला इंसान कह दिया जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी I ये शत्रु को धर दबोचने वाले झगड़ालू, व उन्मत शरीर के व्यक्ति होते हैं I
आपके जन्म समय में वृश्चिक राशि उदित हो रही थी जिसका स्वामी मंगल है I सामान्यतया इस राशि में उत्पन्न जातक स्वस्थ एवं बलवान होते हैं तथा परिश्रम एवं लगन के द्वारा अपने शुभ एवं महत्वपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करके उनमें सफलता अर्जित करते हैं I विभिन्न विषयों का इनको ज्ञान रहता है तथा एक विद्वान के रूप में इनकी छवि रहती है I कुल या परिवार में ये श्रेष्ठ रहते हैं, तथा मित्र एवं बन्धु वर्ग के मध्य सम्माननीय रहते हैं I आत्म-शक्ति कि इनमें प्रबलता रहती है I महत्त्वाकांक्षा भी इनकी तीव्र होती है I धन संग्रह के प्रति भी इनकी रूचि रहती है तथा धनार्जन में नैतिक सीमा का अनुपालन कम ही करते हैं I इनमें भावुकता अल्प रहती है तथा बुद्धि के द्वारा ही अधिकांश कार्यों को सम्पन्न करते हैं I साथ ही विज्ञान एवं गणित के क्षेत्र में ये ख्याति अर्जित करते हैं I
अतः इसके प्रभाव से आप स्वस्थ एवं बलवान पुरुष होंगे तथा स्वपराक्रम एवं परिश्रम से सांसारिक कार्यों में सफलता प्राप्त करेंगे I इससे आपके उन्नति के मार्ग प्रशस्त होंगे तथा जीवन में धनैश्वर्य, वैभव एवं सुख संसाधनों को अर्जित करके सुखपूर्वक इनका उपभोग करेंगे I आपमें निर्भयता तथा लगनशीलता का भाव भी विद्यमान होगा I फलत: कार्यक्षेत्र में प्रभावशाली होंगे तथा उन्नति मार्ग पर अग्रसर होंगे I
आप एक महत्वकांक्षी व्यक्ति होंगे तथा अपनी महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने के लिए सर्वदा प्रयत्नशील रहेंगे I धन-संग्रह के प्रति भी आपकी रूचि रहेगी I परन्तु इससे आपके समीपस्थ लोग यदा- कदा असुविधा कि अनुभूति करेंगे I भावुकता से आप जीवन में कम ही कार्य करेंगे, फलत: प्रसन्नतापूर्वक अपना समय व्यतीत करेंगे I
आप एक सहनशील स्वभाव के व्यक्ति होंगे तथा धैर्यपूर्वक अपने सांसारिक कार्यकलापों को सम्पन्न करके उनमें वांछित सफलता प्राप्त करेंगे I साथ ही आप धैर्यपूर्वक सफलता प्राप्ति की प्रतीक्षा करने में समर्थ होंगे I सरकार या उच्चाधिकारी वर्ग से आप नित्य आर्थिक लाभ अर्जित करेंगे तथा इनसे आपको सहयोग भी मिलता रहेगा जिससे आपके अन्य कार्य भी यथासमय सिद्ध होंगे I
आपके स्वभाव में दया एवं उदारता का भाव भी विद्यमान होगा तथा अवसरानुकूल अन्य जनों को सुख- दुःख में सेवा तथा सहयोग प्रदान करेंगे I इससे अन्य लोग आपसे प्रसन्न तथा संतुष्ट रहेंगे I साथ ही सत्कर्मों को करने में आपकी रूचि रहेगी तथा यत्नपूर्वक उन्हें सम्पन्न करके मान-सम्मान एवं यश में अभिवृद्धि करेंगे I धनैश्वर्य एवं भौतिक सुखों के प्रति आपके मन में तीव्र लालसा रहेगी तथा इनकी प्राप्ति में आप अत्यधिक परिश्रम एवं पराक्रम का प्रदर्शन करेंगे I
धर्म के प्रति आपके मन में श्रद्धा रहेगी तथा समय- समय पर धार्मिक कार्यकलापों या तीर्थ यात्राओं को मानसिक शांति के लिए सम्पन्न करेंगे I मित्र वर्ग में भी आप श्रेष्ठ एवं आदरणीय रहेंगे तथा उनसे इच्छित लाभ एवं सहयोग प्राप्त करेंगे I इस प्रकार आप परिश्रमी संग्रह- करता एवं महत्त्वाकांक्षी व्यक्ति होंगे तथा धनैश्वर्य से युक्त होकर अपना समय व्यतीत करेंगे I
यदि आपका जन्म वृश्चिक राशि ‘विशाखा नक्षत्र’ के चतुर्थ चरण (तो) अक्षर पर है तो आपका जन्म 16 वर्ष वाली बृहस्पति की महादशा में हुआ है I आपकी योनी- व्याघ्र, गण- राक्षस, वर्ण- शूद्र, युज्जा- मध्य, हंसक- वायु, नाडी- अन्त्य, वश्य- द्विपद, पाया- तांबा एवं वर्ग- सर्प है I विशाखा नक्षत्र में जन्में व्यक्ति सौम्य होते हैं तथा अपने शत्रुओं का सफाया बड़ी चतुरता से करते हैं I
यदि आपका जन्म वृश्चिक राशि ‘अनुराधा नक्षत्र’ (ना, नी, नू, ने) में है तो आपका जन्म 19 वर्ष वाली शनि की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- मृग, गण- देव, वर्ण- विप्र, युज्जा- मध्य, हंसक- जल, नाडी- आद्य, पाया- तांबा एवं योनि- सर्प है I अनुराधा नक्षत्र में जन्में व्यक्ति गुप्त व्यसनों के आदी होते हैं I फिर भी अपने बुद्धि-चातुर्य से बहुत अधिक धन अर्जित करते हैं I
यदि आपका जन्म वृश्चिक राशि ‘ज्येष्ठा नक्षत्र’ (नो, या, यी, यू) में है तो आपका जन्म 17 वर्ष वाली बुध की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- मृग, गण- राक्षस, वर्ण- विप्र, युज्जा- अन्त्य, हंसक- जल, नाडी- आद्य, पाया- तांबा एवं योनि- प्रथम चरण की सर्प एवं बाकी तीनों चरण की हिरण है I ज्येष्ठा नक्षत्र गण्डमूल कहा गया है I इसमें जन्में व्यक्ति बहुत तेजस्वी होते हैं तथा अत्यधिक पराक्रमी होते हैं I
बिच्छू की आयु कम होती है सो वृश्चिक राशि वाले अल्पायु को प्राप्त होते देखे गए हैं I अचानक आक्रमण, दुर्घटना तथा घटनाचक्र के मोड़ से यह शीघ्र ही काबू में आ जाते हैं I इनको प्राय: खट्टा स्वाद पसंद होता है तथा खाना खाते वक्त नींबू का प्रयोग ज्यादा करते हैं I
धनु राशि और उनका व्यक्तित्व
आपकी राशि धनु राशि है I धनुष लिए हुए व्यक्ति आधा घोडा तथा आधा मनुष्य आपकी राशि का निशान है Iऐसे व्यक्ति लक्ष्य पटु होते हैं I किसी भी कीमत पर लक्ष्य का भेदन करना, प्राप्त करना इनको आता है I ये लोग गति को अपने जीवन में विशेष स्थान देते हैं I कुछ उतावले व अति उत्साही प्रवृति के होते हैं I आपका जन्म धनु राशि में हुआ है तो आप विशेष प्रभावशाली व्यक्ति होने के साथ- साथ बुद्धिमान, ईमानदार तथा उदार हृदय के हैं I आप बिना प्रत्युपकार की भावना से दूसरों की भलाई करते रहते हैं I मानव मात्र की सेवा आपका धर्म है I आप सामाजिक कार्यों में सक्रिय हिस्सा लेते हैं I बृहस्पति से प्रभावित व्यक्तियों में बड़े गजब की नेतृत्व शक्ति होती है I यदि आप राजनैतिक कार्य- कलापों में सक्रिय हिस्सा लें तो शीघ्र ही आप उच्च पदस्थ नेता बन सकते हैं I
धनु राशि पुरुष जाति, अल्पसंतति व दिवाबली होते हैं I इस राशि का चिन्ह ‘प्रत्यंचा चढ़ा हुआ धनुष’ है I ऐसे व्यक्ति लक्ष्य भेदन में पटु होते हैं I इनके जीवन का एक निश्चित लक्ष्य होता है तथा बड़े दत्तचित्त होकर एकाग्रता से अपने कार्य को सफल बनाने में प्रयत्नशील रहते हैं I ऐसे व्यक्ति सभा- सम्मेलनों व भाषण इत्यादि में बढ़- चढ़कर भाग लेते हैं I मित्रों के हिसाब से ये श्रेष्ठतर मित्र साबित हो सकते हैं I
घनु राशि के स्वामि बृहस्पति हैं I बृहस्पति देवगुरु माने जाते हैं I वह धार्मिक प्रवृत्तियों के परिसूचक भी हैं I यह कांचन वर्ण, द्विस्वभाव व अर्द्धजल राशि है I इसका प्राकृतिक स्वभाव अधिकार प्रिय, करूणामय और मर्यादा इच्छुक है I इस राशि वाले व्यक्ति विशेषत: पीले रंग, गेहुएं शरीर, बड़ी- बड़ी आंखें, उन्नत ललाट व गाल फुले हुए बुद्धिजीवी होते हैं I अध्ययन व अध्यापन कृते हुए पठन- पाठन में रूचि लेने वाले ये व्यक्ति धार्मिक स्वभाव के होते हैं I
धनु राशि में उत्पन्न जातक स्वस्थ एवं बलवान होते हैं I स्वभाव से यद्यपि ये शांत होते हैं परन्तु यदा- कदा अभिमान के भाव का भी प्रदर्शन करते हैं I ये धार्मिक प्रवृति के व्यक्ति होते हैं तथा अत्यन्त ही बुद्धिमता से अपने सांसारिक कार्यों को सम्पन्न करके उनमें सफलता अर्जित करते हैं फलत: जीवन में धनैश्वर्य वैभव एवं सुख- संसाधनों को अर्जित करने में समर्थ रहते हैं I ये आदर्शवाद एवं आध्यात्मिकता के मध्य प्रवृत्त होकर भौतिक- सुखों के प्रति आकृष्ट होकर उनका उपयोग करते हैं I ये अपने समस्त कार्यों को नियमानुसार सम्पन्न करते हैं I अन्य जनों के ये विश्वासपात्र होते हैं परन्तु स्वयं दूसरों पर कम ही विश्वास करते हैं I दानशीलता का भाव भी इनमें विद्यमान रहता है तथा समाज में मान- प्रतिष्ठा तथा यश अर्जित करने में समर्थ रहते हैं I राजनीति, कानून, गणित या ज्योतिष आदि विषयों में इनकी रूचि रहती है तथा परिश्रमपूर्वक इन क्षेत्रों में सफलता प्राप्त करते हैं I इनको प्रेम से ही वश में किया जा सकता है अन्य प्रलोभनों से नहीं I
आप एक बुद्धिमान व्यक्ति होंगे तथा परिश्रम एवं बुद्धिमतापूर्वक अपने कार्यों को सम्पन्न करके उनमें सफलता प्राप्त करके धन- ऐश्वर्य एवं सुख- संसाधनों को अर्जित करेंगे I आप एक अध्ययनशील व्यक्ति होंगे I आप किसी के प्रति मन में अनावश्यक ईर्ष्या या द्वेष का भाव नहीं रखेंगे I आप अपनी व्यवहार- कुशलता एवं धैर्ययुक्त प्रवृत्ति से कार्यक्षेत्र में सफलता प्राप्त करेंगे I आपमें उदारता का भाव भी विद्यमान होगा I आप दूसरों की सेवा व सहायता के लिए हमेशा तत्पर रहेंगे I आपकी आर्थिक स्थिति दृढ़ होगी तथा प्रचुर मात्रा में धन एवं लाभ अर्जित करने में आपको सफलता मिलेगी I
आप एक आस्तिक व्यक्ति होंगे एवं आपमें तेजस्विता का भाव भी विद्यमान होगा I आप धार्मिक कार्य- कलापों को पूर्ण श्रद्धा एवं निष्ठापूर्वक सम्पन्न करेंगे साथ ही तीर्थ यात्राएं भी आप समय- समय पर करते रहेंगे I आपकी श्रेष्ठ कार्यों में रूचि रहेगी तथा इन्हीं कार्य- कलापों से आपकी प्रतिष्ठा बनेगी I राजनीति के क्षेत्र में आपको सफलता प्राप्त हो सकती है I मित्र एवं बन्धु वर्ग से आपको इच्छित लाभ एवं सहयोग प्राप्त होगा I आप उदार, दानशील, तेजस्वी, महत्त्वाकांक्षी एवं व्यवहार कुशल व्यक्ति होंगे तथा आनंदपूर्वक भौतिक सुखों का उपयोग करते हुए अपना समय व्यतीत करेंगे I
यदि आपका जन्म धनु राशि के ‘मूल नक्षत्र’ (ये, यो, भा, भी) में हुआ है तो आपका जन्म 7 वर्ष की केतु की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- श्वान, गण- राक्षस, वर्ण- क्षत्रिय, हंसक- अग्नि, नाड़ी- आद्य, पाया- तांबा, इस नक्षत्र के प्रथम दो चरण का वर्ग- हिरण तथा अंतिम दो चरण का वर्ग- मूषक है I इस नक्षत्र में जन्म लेने वाला जातक बड़ा तेजस्वी, धनी और सुखी होता है I
यदि आपका जन्म धनु राशि के ‘पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र’ (भू, ढा, फा, ठा) में हुआ है तो आपका जन्म 20 वर्ष की शुक्र की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- कपि, गण- मनुष्य, वर्ण- क्षत्रिय, हंसक- अग्नि, नाड़ी- मध्य, पाया- तांबा है I आपका वर्ग- मूषक है I यह जल नक्षत्र है I इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति शीतल स्वभाव के किन्तु स्वाभिमानी होते हैं I इनको बार- बार पेय- पदार्थ पीने की आदत होती है I
यदि आपका जन्म धनु राशि के ‘उत्तराषाधा नक्षत्र’ के प्रथम चरण (भे) में हुआ है तो आपका जन्म 6 वर्ष की सूर्य की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- नकुल, गण- मनुष्य, वर्ण- क्षत्रिय, हंसक- अग्नि, नाड़ी- अन्त्य, पाया- तांबा एवं वर्ग- मूषक है I ये व्यक्ति धर्मभीरु एवं कृतज्ञ होते हैं I मित्र एवं बन्धु वर्ग के आप प्रिय एवं आदरणीय होते हैं I
मकर राशि और उनका व्यक्तित्व
शनि पाप ग्रह हैं तथा उनका रंग काला होता है I इस राशि वाले व्यक्ति प्राय: काले, नाक चपटी, पैनी आंखें, शरीर से ये पतले, फुर्तीले तथा कुछ लम्बे कद के होते हैं I यह चर संज्ञक व पृथ्वी तत्व प्रधान राशि है I इसका प्राकृतिक भाव उच्च पदाभिलाषी प्रकृति की होती है I मकर राशि वाले व्यक्तियों का स्वभाव उग्र होता है I उत्साही स्वभाव के साथ- साथ झगड़ालू प्रवृति भी होती है I क्रोध इनको धीरे- धीरे आता है व शांत भी ये डेरी से होता है I जहां ये अपना पक्ष कमजोर देखते हैं वहां पर ये नम्र हो जाते हैं I यदि आपका नाम ‘भो’ से प्रारम्भ होता है तो आप उन व्यक्तियों में हैं जो अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करते हैं I आप बहुत ही परिश्रमशील व उद्यमी व्यक्ति हैं I हिम्मत हारना व निराश होना आपने सिखा ही नहीं I
मकर राशि में उत्पन्न जातक शांत तथा उदार प्रवृति के व्यक्ति होते हैं तथा अन्य जनों के प्रति उनके मन में प्रेम तथा सहानुभूति का भाव विद्यमान रहता है I इनके मुख मण्डल पर विचारशीलता, शांति एवं गंभीरता सदैव बनी रहती है I ये अत्यन्त ही कर्मशील एवं परिश्रमी होते हैं I फलत: सांसारिक महत्व के कार्यों को सम्पन्न करके उनमें सफलता अर्जित करते हैं I इनमे कार्य करने कि क्षमता प्रबल होती है तथा यही इनकी सफलता का रहस्य होता है I सेवा का भाव भी इनमें रहता है तथा समाज एवं देशसेवा के प्रति ये उद्यत रहते हैं I ये साहसी एवं संघर्षशील होते हैं तथापि मन में यदा- कदा उदासीनता के भाव उत्पन्न होते हैं, जिससे दुःख- सुख में समान भाव की अनुभूति करते हैं एवं त्यग्म्य६ जीवन के लिए उत्सुक रहते हैं I इसके अतिरिक्त परिश्रमी एवं अध्ययनशील होने के कारण ये अनुसंधान विज्ञान या शास्त्रीय विषयों का ज्ञान अर्जित करके एक विद्वान के रूप में सामाजिक पहचान प्राप्त करते हैं I अतः इसके प्रभाव से आप स्वस्थ एवं बलशाली व्यक्ति होंगे I आपमें आदर्शवादिता का भाव होगा तथा अपने आदर्शों पर चलने के लिए आप स्वतंत्र होंगे I आपके सभी कार्य बुद्धिमत्तापूर्वक सम्पन्न होंगे एवं उनमें आपको सफलता भी प्राप्त होगी I देश सेवा का भाव भी आपमें विद्यमान रहेगा तथा शत्रु एवं प्रतिद्वन्द्वियों से भी उदारता का व्यवहार करेंगे I फलत: वे भी आपसे प्रभावित होंगे I
आप एक विद्वान पुरुष होंगे तथा बुद्धिमत्तापूर्वक अपने कार्यकलापों को सम्पन्न करके धनैश्वर्य वैभव एवं सुख अर्जित करेंगे I संगीत के प्रति आपकी विशेष रूचि रहेगी तथा इस क्षेत्र में परिश्रमपूर्वक कोई विशिष्ट उपलब्धि भी अर्जित कर सकते हैं I आप श्रेष्ठ कार्यों को करने में रूचि लेंगे तथा एक चतुर व्यक्ति के रूप में जाने जाएंगे I आपकी पुत्र संतति प्रसिद्ध रहेगी तथा उनसे आपको इच्छित सुख एवं सहयोग मिलता रहेगा I
पिता के प्रति आपके मन में पूर्ण सम्मान आदर की भावना होगी तथा उनकी सेवा करने में हमेशा तत्पर रहेंगे I आपकी आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ होगी तथा प्रचुर मात्रा में धन एवं लाभ अर्जित करके एक धनवान के रूप में सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे I भौतिक तथा अन्य सुखों को भी आप अर्जित करके एक धनवान के रूप में सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त करेंगे I आप युवावस्था में संघर्षशील रहेंगे ओर वृद्धावस्था में सुख एवं शांति प्राप्त करेंगे I
धर्म के प्रति भी आपके मन में श्रद्धा रहेगी तथा समयानुसार धार्मिक कार्यकलापों को भी सम्पन्न करेंगे I इससे आपको मानसिक शांति प्राप्त होगी I मित्र एवं बन्धु वर्ग के आप प्रिय होंगे तथा इनसे आपको पूर्ण लाभ एवं सहयोग प्राप्त होगा I इस प्रकार आप विद्वान, शांत, उदार एवं पराक्रमी स्वभाव के व्यक्ति होंगे I आप किसी बात पर निर्णय सोच- विचारकर धीरे-धीरे लेंगे I आप उंची- उंची योजनाएं बनाने में सदा तत्पर रहते हैं I कमाते बहुत हैं पर धन पास टिकता नहीं हर समय द्रव्य का अभाव महसूस करते हैं I पत्नी व आपके विचारों में असमानताएं, आपके वैवाहिक सुख को कटुतर बनाने में सहायक है I
आपकी राशि का चिन्ह ‘मगरमच्छ’ है I मगरमच्छ के आंसू वाली कहावत लोकप्रसिद्ध है I मगरमच्छ के आंसू अन्दर से कुछ बाहर से कुछ I ऐसे व्यक्ति दीन स्वरुप व दयनीय स्थिति का बोध कराते हैं, लेकिन कपटी होते हैं I वे बहुभोगी व विषयवासना में आसक्त रहने वाले व्यक्ति होते हैं I भोजन के बाद शीघ्र आराम करने की इच्छा रहती है I ये कहते कुछ हैं और करते कुछ हैं I
यदि आपका जन्म मकर राशि के ‘उत्तराषाढा नक्षत्र’ के (भो, जा, जी) चरणों में हुआ है तो आपका जन्म 6 वर्ष की सूर्य की महादशा में हुआ है I आपकी योनी- नकुल, गण- मनुष्य, वर्ण- क्षत्रिय, हंसक- अग्नि, नाडी- अन्त्य, पाया- तांबा है I इस नक्षत्र का द्वितीय चरण का वर्ग- मूषक, अन्य दोनों चरणों का वर्ग- सिंह है I इस नक्षत्र में जन्मा जातक बहुत नम्र, बहुत मित्रों वाला, धार्मिक, कृतज्ञ, भाग्यशाली होता है I उत्तराषाढा सूर्य का नक्षत्र है जोकि चन्द्रमा का मित्र है इसलिए यह शुभ फल कहा जाता है I
यदि आपका जन्म मकर राशि के ‘श्रवण’ नक्षत्र में (जू, जे, जो, खा) में है तो आपका जन्म दस वर्ष की चन्द्रमा की महादशा में हुआ है I आपकी योनी- कपि, गण- देव, वर्ण- वैश्य, हंसक- भूमि, नाडी- अन्त्य, पाया- तांबा तथा प्रथम तीन चरण का वर्ग सिंह एवं अंतिम चरण का वर्ग बिलाव है I श्रवण’ नक्षत्र में जन्मे लोग अपने कार्य क्षेत्र में उंचा नाम कमाते हैं I परोपकार व धार्मिक कार्यों में धन, समय व श्रम का समुचित उपयोग करेंगे I
यदि आपका जन्म मकर राशि के ‘धनिष्ठा नक्षत्र’ के प्रथम व द्वितीय चरण (गा, गी) में हुआ है तो आपका जन्म सात वर्ष की मंगल की महादशा में हुआ है I आपकी योनी- सिंह, गण- राक्षस, हंसक- भूमि, नाडी- मध्य, पाया- तांबा एवं वर्ग बिलाव है I धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति निडर व निर्भीक होता है I ये संगीत प्रेमी होते हैं और समाज में इनकी प्रतिष्ठा होती है I
मकर राशि वाले व्यक्ति प्राय: अमिलनसार व भीड़- भाड़ से दूर रहना पसंद करते हैं I इनमें स्वार्थ की प्रवृति कुछ विशेष रहने के कारण उनको धार्मिक व राजनैतिक क्षेत्र में सफलताएँ कम मिलती हैं या तो ये अत्यधिक गोरे होंगे या काले I इसी प्रकार या तो ये कट्टर आस्तिक होंगे या फिर एकदम नास्तिक I यह विचार इनमें ‘जन्माक्षर’ को देखकर बताया जा सकता है I शनि भय व भ्रान्ति का सूचक है I इसका रंग काला व नीला मिश्रित है I आपके अनुकूल फलदायक रत्न ‘नीलम’ है I
कुंभ राशि और उनका व्यक्तित्व

शनि पापग्रह है तथा इनका रंग काला होता है I कुंभ राशि वाला व्यक्ति प्राय: मध्यम कद का गेहुएं वर्ण, सिर गोल, फूले हुए नथुने व गाल, दीर्घकाय, तोंदयुक्त, गंभीर वाणी बोलने वाला व्यक्ति होता है I यह राशि पुरुष जाति, स्थिर संज्ञक व वायु तत्व प्रधान होती है I इस राशि वाले पुरुष का प्राकृतिक स्वभाव विचारशील, शांत चित्त, धर्मभीरु तथा नविन अविष्कारों का प्रजनन है I कुंभ राशि का चिन्ह ‘जल से परिपूर्ण घट’ है I अतः इस राशि वाले पुरुष की आकृति घड़े के समान गोल व घट के समान गंभीर व गहरी होती है I ऐसे व्यक्ति प्राय: बाहरी दिखावे में ज्यादा विश्वास रखते हैं I ये भीतर से खोखले व बाहर से सुन्दर दिखाई देते हैं I यदि आपका जन्म ‘धनिष्ठा’ नक्षत्र में है तो आप भीतर ही भीतर कष्ट सहते हैं परन्तु बाहर उसकी आह तक नहीं निकलते I ये पूर्णतया रहस्यवादी व्यक्ति होते हैं I व्यापारिक क्षेत्र में अपनी पूंजी का फैलाव सही पूंजी से कई गुना अधिक करते हैं I इनकी वास्तविकता को पहचान पाना बड़ा ही कठिन है I ये बड़े से बड़ा जोखिम लेने में भी नहीं हिचकिचाते I
कुंभ राशि में उत्पन्न जातक स्वस्थ, बलवान एवं चंचल होते हैं परन्तु इनका व्यक्तित्व आकर्षक होता है जिससे अन्य जन इनसे प्रभावित रहते हैं I ये स्वभाव से ही प्रगतिशील एवं क्रान्तिकारी विचारधारा से युक्त होते हैं तथा पुराने रीति- रिवाजों को कम ही स्वीकार करते हैं I अन्य जनों के प्रति इनके मन में स्नेह एवं सहानुभूति का भाव विद्यमान रहता है I धार्मिकता की भावना कम एवं आधुनिकता से परिपुष्ट विचारों के होते हैं I साहित्य एवं कला में रूचि के साथ- साथ ये उत्तम वक्ता भी होते हैं I
इनका सांसारिक दृष्टिकोण विशाल होता है तथा इनके हृदय में किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं रहता है I अध्ययन के प्रति इनकी रूचि रहती है तथा परिश्रमपूर्वक विभिन्न शास्त्रों का ज्ञान अर्जित करके एक विद्वान के रूप में सामाजिक मान- प्रतिष्ठा एवं सम्मान अर्जित करते हैं I अवसरानुकूल इनको नेतृत्व का भी अवसर प्राप्त हो जाता है I ये भावुकता से कोई भी कार्य नहीं करते तथा बुद्धिमतापूर्वक सोच- समझकर अपने कार्यों को पूर्ण करते हैं I धन, ऐश्वर्य, वैभव एवं भौतिक सुख- संसाधनों को अर्जित करके आनंदपूर्वक इनका उपयोग करते हैं I
अतः इसके प्रभाव से आप स्वस्थ एवं बलवान होंगे परन्तु मन में अस्थिरता का भाव होगा I आप अपनी विद्वता एवं बुद्धिमता से शुभ एवं महत्त्वपूर्ण कार्यों को सम्पन्न करके इनमें सफलता अर्जित करेंगे फलत: आपके उन्नतिमार्ग प्रशस्त रहेंगे I आपकी दृष्टि भी सूक्ष्म रहेगी तथा अन्य जनों को प्रभावित करके उनके विषय में पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होंगे I
आपका व्यक्तित्व आकर्षक होगा तथा अन्य जान आपसे प्रभावित रहेंगे I आपमें पराक्रम एवं तेजस्विता का भाव भी रहेगा I फलत: अपने सांसारिक महत्त्व के कार्य कलापों को आप परिश्रम से सम्पन्न करेंगे तथा इनमें सफलता प्राप्त करेंगे I यदा- कदा उग्रता के प्रदर्शन से आपको अनावश्यक समस्याओं तथा परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है I
आर्थिक रूप से आपकी स्थिति सामान्यतया अच्छी रहेगी तथा आवश्यक मात्रा में धन एवं लाभ अर्जित करने में समर्थ होंगे I आप भ्रमणप्रिय होंगे और अवसरानुकूल भ्रमण तथा यात्रा आदि पर अपना काफी समय व्यतीत करेंगे साथ ही व्यय भी आप मुक्त भाव से करेंगे I लेकिन उत्तम आय होने के कारण इनका कोई विशेष दुष्प्रभाव नहीं होगा I

धर्म के प्रति आपके मन में श्रद्धा रहेगी परन्तु धार्मिक कार्य-कलापों एवं अनुष्ठानों को आप अल्प मात्रा में ही सम्पन्न करेंगे I यदा- कदा तीर्थ यात्रा को आप सम्पन्न कर सकते हैं I इस प्रकार आप पराक्रमी, बुद्धिमान एवं परिश्रमी पुरुष होंगे तथा भौतिक सुखों का उपभोग करते हुए आनंदपूर्वक अपना समय व्यतीत करेंगे I
कुंभ राशि शीर्षोदय तथा तमोगुणी राशि है I इस राशि वाले गुस्सा कम करते हैं और करते हैं तो फिर गांठ बांध लेते हैं I आप एकान्तप्रिय व्यक्ति हैं तथा स्वार्थपूर्ण भावनाओं से परिपूर्ण हैं I अगर आपका जन्म ‘धनिष्ठा’ नक्षत्र में है तो आप सर्वदा सरल स्वभाव वाले, उदार हृदय व स्नेहयुक्त व्यवहार से कीर्ति पाने वाले व्यक्ति हैं I अगर आप व्यापारी वर्ग के व्यक्ति हैं तो आपका ‘वाहन- योग’ 36 वर्ष की अवस्था में बनता है I
यदि आपका जन्म कुंभ राशि के ‘धनिष्ठा नक्षत्र’ के तृतीय व चतुर्थ चरण (गू, गे) में हुआ है तो आपका जन्म 7 वर्ष की मंगल की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- सिंह, गण- राक्षस, वर्ण- शूद्र, हंसक- वायु, नाड़ी- मध्य, पाया- तांबा एवं वर्ग- बिलाव है I धनिष्ठा नक्षत्र में जन्मा व्यक्ति निडर एवं निर्भीक होता है I ये संगीत प्रेमी होते हैं और समाज में इनकी बहुत प्रतिष्ठा होती है I
यदि आपका जन्म कुंभ राशि के ‘शतभिषा नक्षत्र’ (गो, सा, सी, सू) में हुआ है तो आपका जन्म 18 वर्ष की महादशा में हुआ है I आपकी योनि-अश्व, गण- राक्षस, वर्ण- शूद्र, हंसक- वायु, नाड़ी- आद्य, पाया- तांबा, प्रथम चरण का वर्ग- बिलाव तथा अंतिम तीनों चरणों का वर्ग मेंढ़ा है I इस नक्षत्र में जन्में व्यक्ति कूटनीतिज्ञ होते हैं I दूसरों को चकमा देकर आपना काम करने में सिद्धहस्त होते हैं I
यदि आपका जन्म कुंभ राशि के ‘पूर्वाभाद्र नक्षत्र’ के प्रथम चरण (से, सो, द) में हुआ है तो आपका जन्म 16 वर्ष की बृहस्पति की महादशा में हुआ है I आपकी योनि- सिंह, गण- मनुष्य, वर्ण- शूद्र, हंसक- वायु, नाड़ी- आद्य, पाया- लोहा, प्रथम व द्वितीय का वर्ग- मीठा तथा तृतीय चरण का वर्ग- सर्प है I इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले जातक छोटी-छोटी बातों से उद्विग्न व तनावग्रस्त हो जाते हैं I इनमें स्वाभिमान की भावना विशेष होती है I
कुंभ राशि द्विबली व पश्चिम दिशा की स्वामिनी होती है I इस राशि से पेट के भीतरी भागों पर विचार किया जाता है I आपका स्वभाव मृदु, सरल एवं सदगुणों से परिपूर्ण है परन्तु संकोचशीलता आपकी कमी है I आपको प्रतिपल एक वहम-सा रहता है I आप ऐसा सोचते हैं कि अन्य जन आपसे ईर्ष्या कर रहे हैं और आप अकारण अजनबी से उलझ पड़
: रसोई में रखी ये चीजें दूर करेंगी इन 5 तरह के दर्द को, आप भी जानिए

1 हींग – यह पेट दर्द के लिए अचूक दवा है। न केवल पेट दर्द, बल्कि गैस, बदहजमी और पेट फूलने की समस्या में भी इसका सेवन लाभकारी है। दर्द होने पर हींग का घोल पेट पर लगाना भी असरकारी होता है।
2 अदरक – गर्म प्रकृति होने के कारण यह सर्दी जनित दर्द में फायदेमंद है। सर्दी खांसी से उपजा दर्द या फिर सांस संबंधी तकलीफ, जोड़ों के दर्द, ऐंठन और सूजन में यह लाभकारी है।
3 ऐलोवेरा – जोड़ों के दर्द, चोट लगने, सूजन, घाव एवं त्वचा संबंधी समस्याओं से होने वाले दर्द में एलोवेरा का गूदा, हल्दी के साथ हल्का गर्म करके बांधने पर लाभ होता है।
4 सरसों – सरसों का तेल शारीरिक दर्द, घुटनों के दर्द, सर्दी जनित दर्द में बेहद लाभकारी है। सिर्फ इसकी मसाज करने से दर्द में आराम होता है और त्वचा में गर्माहट पैदा होती है।
5 लौंग – दांत व मसूड़ों के दर्द, सूजन आदि में लौंग काफी लाभदायक है। दर्द वाली जगह पर लौंग का पाउडर या लौंग के तेल में भीगा रूई का फोहा रखना बेहद असरकारक होगा।
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🍂अायुर्वेदिक, यूनानी और चाइनीज मेडिसिन बनाने में दालचीनी का यूज हजारों सालों से हो रहा है। आज भी इसे कई बीमारियों के इलाज में यूज किया जाता है। जम्मू इंस्टीट्यूट ऑफ आयुर्वेद के डॉ.अटल बिहारी त्रिवेदी बता रहे हैं दालचीनी के नुस्खे। साथ ही जानें दालचीनी को किस तरह लेने से होगा जल्दी फायदा।स्नेहा समूह
🌾1) इसमें आयरन की मात्रा अधिक होती है जो एनीमिया से बचाती है।
🌾2) रोज सुबह एक गिलास पानी में चुटकीभर दालचीनी और कालीमिर्च पाउडर डालकर उबालें।पानी आधा रह जाए तो छानें और एक चम्मच शहद मिलाकर पी लें। वजन घटाने में मदद मिलेगी।
🌻3) दालचीनी का पाउडर और पानी मिलाकर पतला लेप बनाएं। इसे माथे पर लगाएं और सूखने पर हटा दें। ऐसा 3-4 बार करें।इससे सिरदर्द की समस्या कम होती है।स्नेहा समूह
🌼4) इसके इस्तेमाल से आपको पिंपल्स की परेशानी से भी राहत मिलेगी। हफ्ते में दो बार आधा छोटा चम्मच दालचीनी पाउडर, 2 छोटे चम्मच शहद और 1 छोटा चम्मच मेथी पाउडर मिलाकर चेहरे पर लगाएं। सूखने पर इसे धो लें।
🌺5) दालचीनी को चाय में मिलाकर पीने से कॉलेस्ट्राल लेवल 26% तक कम हो सकता है।
टैनिंग हटाने और स्किन लाइटनिंग के लिए भी दालचीनी बहुत अच्छा ऑप्शन है। एक छोटा केला, 2 चम्मच दही, 1 बड़ा चम्मच दालचीनी पाउडर और आधा नींबू का रस मिलाकर ब्लेंडर में चलाएं। इस पैक की एक पतली परत अपने चेहरे पर लगाएं और 15 मिनट के लिए छोड़ दें। फिर ठंडे पानी से धो लें।
🌷6) दालचीनी आपके बालों के लिए भी बेहद फायदेमंद है। एक चम्मच दालचीनी पाउडर को गुनगुने ऑलिव ऑयल और शहद के साथ मिलाकर पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट से स्कैल्प पर अच्छी तरह मसाज करें और 15 मिनट के लिए छोड़ दें। फिर शैम्पू कर लें। जो लोग अपनी रूखी और बेजान त्वचा से परेशान हैं उनके लिए भी दालचीनी बहुत फायदेमंद है। दालचीनी पाउडर, समुद्री नमक, शहद, ऑलिव ऑयल और बादाम का तेल मिलाकर एक गाढ़ा पेस्ट बना लें। इस मिश्रण से चेहरे को हल्के हाथों से स्क्रब करें और फिर गुनगुने पानी से धो लें।
🌻7) अगर चेहरे पर बढ़ती उम्र की निशानियां दिखने लगी हैं तो दालचीनी आपकी बहुत मदद करेगा। एक चम्मच पेट्रोलियम जेली (वैसलीन) में कुछ बूंदें सिनामन (दालचीनी) एसेंशियल ऑयल की मिलाएं और आंखों को छोड़कर पूरे चेहरे पर लगाएं। थोड़ी देर बाद इसे अच्छी तरह मसाज करें और फिर गीला किया हुआ मुलायम कपड़े से पोंछ लें।
🥀8) अगर आप भी फटी एड़ियों से परेशान हैं, तो ये नुस्खा आपके बहुत काम आएगा। दालचीनी में मौजूद ऐंटी-ऑक्सिडेंट्स, खुरदरी और रूखी त्वचा को मुलायम बनाने में मदद करता है। एक बड़े टब में 5 नींबू का रस लें, उसमें ऑलिव ऑयल,दूध, दालचीनी का पाउडर और पानी मिलाएं। इस मिश्रण में अपने पैरों को 15 मिनट के लिए डुबोकर रखें और फिर गुनगुने पानी से धो लें।
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: अंकुरित चने खाने के फायदे

★ अंकुरित चने खाना बहुत ही लाभप्रद होता है।
★ अंकुरित चना धातु को पुष्ट, मांसपेशियों को सुदृढ़ व शरीर को वज्र के समान बना देता है तथा यह सभी चर्म रोगों को नष्ट करता है।
★ अंकुरित चने खाना से वजन बढ़ाता है।
★ अंकुरित चने खून में वृद्धि करता है और उसे साफ करता है।
★ अंकुरित चने का सेवन करने से फेफड़े मजबूत होते हैं।
★ अंकुरित चने रक्त में कोलेस्ट्राल को कम करता है और दिल की बीमारियों को दूर करने में सहायक होता है।

चने को अंकुरित करने की विधि :

★ अंकुरित करने के लिए चने को अच्छी तरह पानी में साफ करके इतने पानी में भिगोएं कि उतना पानी चना सोख ले। इसे सुबह के समय पानी में भिगो दो और रात में साफ, मोटे, गीले कपडे़ या उसकी थैली में बांधकर लटका देते हैं।
★ गर्मी में 12 घंटे और सर्दी के मौसम में 18 से 24 घंटों के बाद भिगोकर गीले कपड़ों में बांधने से दूसरे, तीसरे दिन उसमें अंकुर निकल आते हैं।
★ गर्मी में थैली में आवश्यकतानुसार पानी छिड़कते रहना चाहिए। इस प्रकार चने अंकुरित हो जाएंगे।
★ अंकुरित चनों का नाश्ता एक उत्तम टॉनिक है।
★ अंकुरित चनों में कुछ व्यक्ति स्वाद के लिए कालीमिर्च, सेंधानमक, अदरक की कुछ कतरन एवं नींबू के रस की कुछ बून्दे भी मिलाते हैं परन्तु यदि अंकुरित चने को बिना किसी मिलावट के साथ खाएं तो यह बहुत अधिक उत्तम होता है।

अंकुरित चने के फायदे

1) बलवर्धक : अंकुरित चना बलवर्धक होता है। नित्य इसका सेवन करने से शरीर पुष्ट और बलवान होता है। 
2) कब्ज :  अंकुरित चना, अंजीर और शहद को मिलाकर या गेहूं के आटे में चने को मिलाकर इसकी रोटी खाने से कब्ज मिट जाती हैं।
3) खून की कमी : शरीर में खून की कमी होने पर अंकुरित चनों खाएं। इसमेें शरीर को काफी मात्रा में अायरन मिलता है जो खून की कमी को पूरा करता है और एनीमिया जैसी समस्या को भी दूर करता है।
4) बार-बार पेशाब आना : जिन लोगों को बार-बार पेशाब आने की समस्या होती है उन्हें अंकुरित चने के साथ गुड़ का सेवन करना चाहिए। 
5) सफेद दाग :  मुट्ठी भर काले चने और 10 ग्राम त्रिफला चूर्ण (हरड़, बहेड़ा, आंवला) को 125 मिलीलीटर पानी में भिगो दें। कम से कम 12 घंटों के बाद इन चनों को मोटे कपड़े में बांधकर रख दें और बचा हुआ पानी कपडे़ की पोटली के ऊपर डाल दें। फिर 24 घंटे के बाद पोटली को खोल दें अब तक इन चनों में से अंकुर निकल आयेंगे। यदि किसी मौसम में अंकुर न भी निकले तो चनों को ऐसे ही खा लें। इस तरह से अंकुरित चनों को चबा-चबाकर लगातार 6 हफ्तों खाने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं। 
6) घबराहट या बेचैनी: लगभग 50 ग्राम चना और 25 दाने किशमिश को रोजाना रात में पानी में भिगोकर रख दें। सुबह खाली पेट चने और किशमिश खाने से घबराहट दूर हो जाती है।
7) वमन (उल्टी):
<> चनों को रात को पानी में भिगोकर रख दें। सुबह इसका पानी पी लें। अगर किसी गर्भवती औरत को उल्टी हो रही हो तो भुने हुए चने का सत्तू (जूस) बनाकर पिलायें।
<> कच्चे चनों को पानी में भिगोकर रख दें। फिर कुछ समय बाद उसी पानी को छानकर पीने से उल्टी होना बंद जाती है।
8)अतिक्षुधा भस्मक रोग (भूख अधिक लगना): चने को पानी में भिगोकर रातभर रख दें। सुबह इसका पानी पीने से भस्मक-रोग (बार-बार भूख लगना) मिट जाता है।
9) माता के स्तनों के दूध में वृद्धि: यदि माता अपने बच्चे को दूध पिलाने में दूध की कमी प्रतीत कर रही हो तो उसे लगभग 50 ग्राम काबुली चने रात को दूध भिगोकर सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। सुबह दूध को छानकर अलग कर लेते हैं। इन चनों को चबा-चबाकर खाएं। ऊपर से इसी दूध को गर्म करके पी लेते हैं। ऐसा करने से स्तनों में दूध बढ़ जाता है।
10) मानसिक उन्माद (पागलपन : चने की दाल को भिगोकर उसका पानी पिलाने से उन्माद (मानसिक पागलपन) और उल्टी ठीक हो जाती है।
11) चेहरे की झांई के लिए: 2 बड़े चम्मच चने की दाल को आधा कप दूध में रात को भिगोकर रख दें। सुबह दाल को पीसकर उसी दूध में मिला लें। फिर इसमें एक चुटकी हल्दी और 6 बूंदे नींबू की मिलाकर चेहरे पर लगाकर रखें। सूखने पर चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें। इस पैक को सप्ताह में तीन बार लगाने से चेहरे की झाईयां दूर हो जाती हैं।
12) सदमा: 20 ग्राम काले चने और 25 दाने किशमिश या मुनक्कों को ठण्डे पानी में शाम को भिगोकर रख दें। सुबह उठकर इनको खाली पेट खाने से सदमे आना बंद हो जाता है।

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🌹सर्दी खांसी का आयुर्वेदिक इलाज

🌹1. सर्दी खांसी होने पर बच्चे को तुलसी का रस पीने के लिए दें। इसके अलावा आप उन्हें काढ़ा बनाकर भी दे सकते हैं। इसके लिए 1/2 इंच अदरक, 1 ग्राम तेजपत्‍ते को 1 कप पानी में भिगो दें। इसके बाद इसमें 1 चम्मच मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार बच्चों को पिलाएं।

🌹2.खांसी को दूर करने के लिए 2 चम्मच सरसों के तेल को थोड़ा गर्म करें। इसके बाद इसमें लहसुन की कलियां डालकर भून लें। इसके बाद इस तेल से बच्चे की छाती और गले की मालिश करें।

🌹3. एक कटोरी में 2 चम्मच शहद और 2 चुटकी काली मिर्च पाउडर को मिक्स करके हर दो घंटे में बच्चे को पीलाएं। इससे खांसी कुछ समय में ही दूर हो जाएगी।

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