अपनी राशि स्वयं गणित करके निकाले
आज हम भयात और भभोग की गणना करेंगे और इसके बारे में पूरा विवरण समझेंगे की यह क्या होता है। चंद्रमा की गति सम नहीं है अर्थात अपनी इस विषम नाक्षत्रगति के कारण वह किसी नक्षत्र में 60 घटी से अधिक और किसी को 60 घटी से कम भोगता है। पंचांग में तिथि नक्षत्र आदि का मान ( भोगावधि )दिया रहता है। भभोग को सर्वर्क्ष भी कहते है। ज्योतिष की यह प्राचीन गणना विधि है। आजकल प्रचलन में नवीनतम विधियों का चलन है।
हम एक उदाहरण से भभोग को समझेंगे :- माना आज कोई बस 10:00 बजे सुबह रवाना हुई और दूसरे दिन किसी शहर में सुबह 9:00 बजे पहुंच गई तो आज से लगाकर अगले दिन पहुंचने तक का समय कुल 23 घंटे हुआ और इस 23 घंटे को ही भभोग काल कहते हैं।अब इन 23 घंटों को यदि 2.5 से गुणा करें तो भभोग घटी-पल में स्पष्ट हो जाएगा अर्थात 23 ×2.5=57 घटी 30 पल भभोग स्पष्ठ हुवा। पञ्चाङ्ग में भी नक्षत्र के आगे उस नक्षत्र की समाप्ति का समय दिया होता है जो घटी-पल में दिया हुआ रहता है।
भयात को हम निम्न प्रकार से समझेंगे जैसे हमने देखा कि आज सुबह 10:00 बजे कोई बस रवाना हुई और अगले दिन सुबह 9:00 बजे पहुंच गई इसमें 23 घंटे लगे। लेकिन जो बस सुबह 10:00 बजे रवाना हुई यदि वह शाम को 8:00 बजे उसी दिन किसी स्टेशन पर रूकती है तो सुबह 10:00 बजे से लगाकर शाम को 8:00 बजे तक का समय भयात कहलाएगा अर्थात 10 घंटे का समय भयात हुआ। इन 10 घंटो को यदि ढाई से गुणा करें तो 25 घटी 00 पल हमारी भयात घटी पल में ही स्पष्ट हो जाएगी।
भयात व भभोग चंद्रमा की नक्षत्रिक गति से ज्ञात किए जाते हैं । इष्टकाल में चंद्रमा नक्षत्र के किसी भाग को जितने समय में भोग चुका होता है, उस समय को भयात कहा जाता है तथा जिस नक्षत्र में चंद्रमा जिस दिन जितनी अवधि तक रहता है,उसे भभोग कहते हैं।किसी दिन के सूर्योदय से लगाकर किसी बालक के जन्म तक के समय, जो कि घण्टे- मिनट में आएगा इसे यदि ढाई से गुणा कर दें तो हमें इष्टकाल प्राप्त होता है यह इष्टकाल भी घटी पल में होता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जातक या बालक का जन्म किस स्थान पर हुआ है उसी स्थान से संबंधित पंचांग को लेकर भयात -भभोग व इष्टकाल की गणना करनी चाहिए।भयात और भभोग साधन करने के लिए हमें जन्म का इष्टकाल, गत नक्षत्र का मान और जन्म नक्षत्र का सही मान ज्ञात होना चाहिए।
भयात और भभोग की गणना करने का नियम यह है कि गत नक्षत्र अर्थात बीते हुए नक्षत्र के घटी-पलों को 60 में से घटाने पर जो संख्या शेष बचे उसे दो अलग-अलग स्थानों पर रखना चाहिए। एक स्थान की संख्या में इष्टकाल जोड़ना चाहिए तथा दूसरे स्थान की संख्या में जन्म नक्षत्र जोड़ना चाहिए। इस प्रकार पहली संख्या भयात तो दूसरी संख्या भभोग कही जाएगी
अब भयात और भभोग को हम एक उदाहरण से समझाएंगे :– माना एक बालक का जन्म 7 अगस्त 2017 को जोधपुर नगर में शाम को 5:15 पर हुआ।हम यहां श्रीधरी पंचांग को लेंगे क्योंकि श्रीधरी पंचांग जोधपुर नगर के अक्षांश पर बना हुआ है।
जब हमने श्रीधर पंचांग को देखा तो हमें ज्ञात हुआ कि 6 अगस्त 2017 को उत्तराषाढ़ा नक्षत्र 48 घटी 58 पल है जो की गत नक्षत्र कहलायेगा और वर्तमान 7 अगस्त 2017 को जिस दिन बालक का जन्म हुवा उस दिन श्रवण नक्षत्र 53 घटी 25 पल है यह जन्म नक्षत्र कहलाएगा क्योंकि श्रवण नक्षत्र 53 घटी 25 पल का है इसका अर्थ हुवा की यह रात की 27 बजकर 32 मिनट तक चलेगा (दिनांक 8 अगस्त 2017 03:32 AM तक चलेगा) इसलिए बालक का जन्म नक्षत्र श्रवण ही कहलायेगा।
सबसे पहले हम इष्ट की गणना करेंगे। इसके लिए हमें सूर्योदय लेना पड़ेगा। इस पंचांग से 7 अगस्त का सूर्योदय 6:10 लेंगे और शाम जन्म समय 5:15 को रेलवे टाइम बनाने में हमको 17:15 लेने होंगे और 17:15 में से 6:10 सूर्योदय घटाने से हमको 11घण्टे 5 मिनट प्राप्त होंगे। 11 घंटे 05 मिनट को 2.5 से गुणा कर देंगे तो 27 घटी 42 पल 30 विपल हमारा इष्ट स्पष्ठ हो जाएगा।
अब गत (बीते) हुए नक्षत्र उत्तराषाढ़ा के 48 घटी 58 पलों को 60 में से घटाने पर 11 घटी 02 पल प्राप्त होंगे, इन 11घटी 02 पल + इष्ट 27 घटी 42 पल 30 विपल को जोड़ा तो 38 घटी 44 पल 30 विपल भयात स्पष्ठ हो गयी। इसके बाद श्रवण नक्षत्र 53 घटी 25 पल में 11घटी 02 पल जोड़े तो हमारे पास 64 घटी 27 पल श्रवण नक्षत्र का भभोगकाल स्पष्ट हो गया।
अब हम बहुत ही महत्वपूर्ण जानकारी देने जा रहे हैं कि भयात और भभोग का हमारे ज्योतिष में क्या उपयोग होता है,और यह क्या काम आता है। भयात और भभोग से हम अपनी राशि का ज्ञान कर सकते हैं। यहाँ हम एक सूत्र दे रहे हैं भयात ÷ भभोग इससे जो मान आवे उसे 800 से गुणा करे। अब 800 से गुणा करने के बाद जो मान आवे उसमें 60 का पुनः भाग देवें तो नक्षत्र के अंश कला विकला स्पष्ठ हो जावेंगे। इस मान में गत सारे नाक्षत्रों के अंश जोड़ दे तो चंद्र स्पष्ठ हो जावेगा।
ऊपर के उदाहरण को समझेंगे :- हमारे पास सारे मान घटी और पल में हैं यदि उनको दशमलव में बनाना है तो हमें उन्हें 100 से गुणा कर 60 का भाग देना होगा तब यह संख्याएं दशमलव में हो जाएगी जैसे 38 घटी 44 पल 30 विपल में 38 यथावत रहेगा किन्तु 44 पल 30 विपल को 4450 बनाकर 60 का भाग देंगे तो 74 मान आएगा अर्थात 38.74 दशमलव में भयात की स्पष्ठ संख्या आ जायेगी।
मित्रों दशमलव को समझना बहुत ही आसान प्रक्रिया है जैसे 60 को हम 100 मानते हैं, वैसे 30 का 50 होता है, और 15 का 25 होता है। इसी प्रकार यदि दशमलव में कोई संख्या .25 है तो उसे हम 15 लिख सकते हैं व यदि कोई संख्या .50 है तो उसे मिनट में 30 माना जायेगा। दशमलव गणना 100 अंक पर आधारित है व घटी-पल को हम मिनट-सेकण्ड्स में समजते है। ऊपर लिखित उदाहरण की गणना में हमने यही क्रम दोहराया है हमने 44 को यथावत लिया और 30 को हमने 50 कर दिया इस प्रकार 4450 हो गया और इसमें जब इसमे 100 का भाग लगाया तो 74 उत्तर आ गया जिसे .74 बना दिया। इस प्रकार भयात को दशमलव रूप देकर 38.74 बना दिया जिससे गणना में आसानी हो जाएगी।
इसी प्रकार हम ने भभोग में 64 को यथावत रखा और 27 को 100 से गुणा कर 2700 बना दिया जब 2700 में 60 का भाग लगाया उत्तर 45 आया ,इसलिए 64.45 भभोग स्पष्ठ हो गया।
सूत्र = भयात ÷ भभोग × 800 से गुणा करे। अब 800 से गुणा करे जो मान आवे उसमें ÷ 60 = नक्षत्र के अंश कला विकला
अतः 38.74 ÷ 64.45 =0.60109
अब 0.60109 ×800 =480.869
अब 480.869 ÷ 60 = 8.0145 अंश
या 8 अंश 0 कला 52 विकला उत्तर आया ये श्रवण के भुक्त अर्थात बीते हुवे अंश-कला-विकला है।
मित्रों एक नक्षत्र का मान 800 कला होता है अतः हमने यहां 800 का गुणा इसीलिए किया है। यदि हम 800 में 60 का भाग दे तो 13.33333333 मान आएगा और यदि इसे अंश-कला में बदले तो 13 अंश 20 कला मान आयेगा अतः चंद्रमा की एक नक्षत्र को पार करने की औसत गति 13 अंश 20 कला या 800 कला होती है। .33333333 को 60 से गुणा करें तो 20 कला मान आता है।
मित्रों श्रवण 22 वा नक्षत्र होता है,श्रवण की गणना हम कर चुके है अर्थात अब यहां अश्विनी नक्षत्र से लगाकर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र तक कुल 21 नक्षत्र और बाकी हैं अगर इन 21 नक्षत्रों का 13 अंश 20 कला से गुणा कर दिया जाए तो इनका भी मान पता लग जायेगा अतः 21 × 13.333333333(13 अंश 20 कला)=280 अंश उत्तर आया। अश्विनी से हमारी मेष राशि प्रारंभ होती है इसलिए हमने अश्विनी से लगाकर उत्तराषाढ़ा नक्षत्र तक 21 नाक्षत्रों की गणना की है।
अब 21 नक्षत्रों और श्रवण के भुक्त अंशों को जोड़ दिया जाए तो हमारा चंद्र स्पष्ट हो जाएगा।
280 अंश 00 कला 00 विकला
08 अंश 00 कला 52 विकला
288 अंश 00 कला 52 विकला
30 अंश की एक राशि होती है इसलिए 288 ÷ 30 =09 राशि 18 अंश 00 कला 52 विकला इस बालक का चंद्रमा स्पष्ठ हुवा।
अब यदि 288 अंश 00 कला 52 विकला में 13 अंश 20 कला या 13.333333333का भाग दे दिया जाए तो जन्म नक्षत्र व चरण आ जाएगा।
288°00’52” (या 288.0144444) ÷ 13°20′(या 13.33333333) =21.60 उत्तर
यहाँ 21 से तात्पर्य बीते हुए 21 नक्षत्र है और .60 का तात्पर्य यह है कि श्रवण नक्षत्र का तीसरा चरण चल रहा है क्योंकि .25 का मतलब एक चरण और .50 का मतलब दो चरण यह .50 से .75 के मध्य .60 होने की वजह से तीसरा चरण है।
इस प्रकार बालक का “श्रवण नक्षत्र “,तीसरा चरण,”मकर राशि”,”खे” जन्म अक्षर स्पष्ठ हुवा ।
इस प्रकार कोई भी व्यक्ति अपनी राशि की गणना पञ्चाङ्ग द्वारा कर सकता है।