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ज्योतिष में राशियों की गणना

पंचांग का तात्पर्य यह है कि पांच अंग, 5 अंग का मतलब यह होता है कि तिथि ,वार ,नक्षत्र, योग और करण इन पांचों चीजों से मिलकर हमारा पंचांग तैयार होता है ।सर्वप्रथम इसमें नक्षत्र की महत्वपूर्ण भूमिका है । हमारा नक्षत्र मंडल 27 नक्षत्रों का है उसके अंदर 27 नक्षत्र है और चंद्रमा इन 27 नक्षत्रों पर हर माह भ्रमण करता है जिसमे चंद्रमा को 27.32 दिन लगते हैं।
चंद्रमा पृथ्वी की नक्षत्र परिक्रमा 27.3216615 दिन या 27 दिन 7 घंटे 43 मिनट 11.568 सेकंड में करता है।
चंद्रमा की औसत गति 13 अंश 20 कला है। परंतु सूर्य की भांति चंद्रमा की गति भी न्यूनाधिक रहती है। चंद्रमा की न्यूनतम दैनिक गति 11 अंश 47 कला तथा अधिकतम 15 अंश 18 कला तक रहती है। इसके आधार पर एक नक्षत्र को पार करने में चंद्रमा को अधिकतम 27 घंटे 10 मिनट या 67 घटी 55 पल तक लग जाते हैं और न्यूनतम 20 घंटे 55 मिनट या 52 घटी 15 पल तक लगते हैं।
सर्वप्रथम अब आपका प्रश्न है यह होता है कि घटी और पल किसको कहते हैं तो यहां हम स्पष्ट करते हैं कि 1 घंटे में ढाई घटी होती है और एक घटी में 24 मिनट होते हैं इसी प्रकार एक घटी में 60 पल होते हैं और एक पल में 24 सेकंड होते हैं और हमारे पंचांगों को घटी और पल में व्यक्त किया जाता है। यदि घटी पल के घंटे बनाने हो तो इनमे ढाई का भाग दे दिया जाए तो घंटे और मिनट स्पष्ट हो जाते हैं।
पंचांगों में नक्षत्र के आगे घटी और पल दिए होते हैं लेकिन साथ में आजकल नक्षत्र का समाप्ति काल समय भी दिया हुआ होता है ।जिस समय को हम अपनी घड़ी के माध्यम से समझ सकते हैं कि नक्षत्र कब समाप्त होने वाला है।

हमारी घड़ी का समय दिया होने से आजकल हमें पंचांगों को पढ़ने में बहुत सुविधा मालूम पड़ती है। जिससे हम हर नक्षत्र के समाप्ति काल को आसानी से समझ सकते हैं और अगले नक्षत्र के प्रारंभ काल को उसी अनुसार समझ सकते हैं।
एक बात यह ध्यान रखने की यह होती है कि पंचांगों के अंदर हर नक्षत्र के आगे उस नक्षत्र की समाप्ति का समय दिया हुआ होता है ना कि उसके प्रारंभ काल का समय अतः यह जानना आवश्यक है कि पंचांग में समस्त नक्षत्रों के आगे दिया हुआ समय उस नक्षत्र की समाप्ति काल का समय होता है।
इसी प्रकार तिथि ,योग,करण आदि का भी समाप्ति काल दिया होता है ना कि प्रारंभ काल दिया होता है। साथ ही पंचांग जिस अक्षांश से,जिस शहर से बना हुआ होता है उस शहर का सूर्योदय सूर्यास्त भी दिया हुआ होता है।
इसके अलावा महत्वपूर्ण विषय यह है कि सूर्योदय जहां लिखा हुआ होता है उससे पूर्व पंचांग के अंदर दिन मान की गणना भी लिखी गई है दिनमान का तात्पर्य यह है कि सूर्यास्त कब हुआ व सूर्योदय से लगाकर सूर्यास्त तक कुल कितने घंटे मिनट सेकंड हुए। इन घंटे मिनट सेकंड को 2.5 अर्थात ढाई से गुणा करके घटी पल में दिनमान लिखा गया होता है। इसी प्रकार यदि हम राशियों को देखें तो कुल 12 राशियां है और 12 राशियों में 27 नक्षत्र विभक्त है अतः एक राशि में सवा दो नक्षत्र विभक्त है । हर नक्षत्र के 4 चरण होते हैं इस अनुसार एक राशि में नो चरण होते हैं।

मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु,मकर, कुंभ ,मीन यह हमारी 12 राशियां है।

अश्विनी, भरणी, कृत्तिका ,रोहिणी, मृगशिर, आर्द्रा, पुनर्वसु ,पुष्य ,आश्लेषा ,मघा ,पूर्वाफाल्गुनी, उत्तराफाल्गुनी ,हस्त ,चित्रा, स्वाति ,विशाखा ,अनुराधा ज्येष्ठा ,मूल ,पूर्वाषाढ़ा ,उत्तराषाढ़ा ,श्रवण ,धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती यह 27 नक्षत्र होते हैं। एक नक्षत्र और है जिन्हे हम अभिजीत के नाम से जानते हैं यह नक्षत्र उत्तराषाढ़ा और श्रवण नक्षत्र के बीच में आता है लेकिन प्राचीन भारतीय विद्वानों ने गणितीय तालमेल बिठाने के लिए इस अभिजीत नक्षत्र को बाहर छोड़ दिया है और गणनाओं में केवल शेष 27 नक्षत्रों को 12 राशियों में विभाजित कर दिया गया है।

यदि हम किसी वृत को देखें तो वह 360 अंश का होता है अतः हमारे ज्योतिष शास्त्र में भी इन 360 अंशो का बहुत महत्व है । 12 राशियां अर्थात एक राशि 30 अंश और 12 राशियों को अगर जोड़ दें तो 360 अंश होते हैं । इसी प्रकार 27 नक्षत्र भी इन 12 राशियों में विभाजित है । एक नक्षत्र का मान 13 अंश 20 कला होता है अर्थात 27 नक्षत्रों को 13 अंश 20 कला से गुणा कर दें तो 360 अंश होते हैं।
चंद्रमा हमारी पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है और इस परिक्रमा को पूरा करने में जो समय है वह हमने पूर्व में लिख दिया है कि 27 दिन लगभग लगते हैं और उन 27 दिनों में यह 27 नक्षत्रों पर घूमता है और 12 राशियों को पार करता है तो इन 12 राशियों को पार करने के बाद पुनः प्रथम राशि पर वापस आ जाता है।

यहाँ हमें एक बात और जानने होगी कि कोई ग्रह पृथ्वी या सूर्य की परिक्रमा कर रहा है वह गोलाकार कक्षा ना होकर ग्रह कि अंडाकार कक्षा है और अंडाकार कक्षा में चक्कर लगा रहा है साथ ही यह भी समझना होगा कि नक्षत्र हमारी पृथ्वी और चंद्रमा के निकट ना होकर बहुत ही दूर है लेकिन हमें ऐसा जान पड़ता है कि जब चंद्रमा पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है तो उस नक्षत्र के समीप नजर आता है या उस नक्षत्र की सीध में जब चंद्रमा नजर आता है तो हम समझ लेते हैं कि आज चंद्रमा किस नक्षत्र में है।
अब हम राशियों में नक्षत्रों के विभाजन की बात करेंगे यदि हम देखें तो हर नक्षत्र को राशि में विभाजित करना बहुत ही मुश्किल काम है लेकिन यदि नक्षत्र को चार चरणों में विभाजित कर दें तो यह आसानी हो जाती है कि हम किस नक्षत्र को किस राशि में कैसे जोड़ें।

27 नक्षत्रों को यदि 4 से गुणा कर दिया जाए तो एक नक्षत्र के चार टुकड़े करने से कुल 27 नक्षत्रों के 108 टुकड़े होते हैं और 108 टुकड़ों को यदि 12 राशियों में विभक्त किया जाए तो एक-एक राशि को 9-9 टुकडे मिलेंगे और 9 टुकड़े मिलने से हमें उन नक्षत्रों का विभाजन समान रूप से प्राप्त हो जाता है।

अश्विनी नक्षत्र के 4 चरण, भरणी नक्षत्र के चार चरण और कृतिका का प्रथम चरण मिलकर कुल 9 चरण होकर मेष राशि को पूरा बनाते हैं । इसी प्रकार बचे हुए कृतिका के तीन चरण रोहिणी के चार चरण और मृगशिर नक्षत्र के प्रारंभ के दो चरण मिलकर वृषभ राशि को पूरा करते है। इसी प्रकार अब हम मिथुन राशि की बात करें तो बचे हुए मृगशिर नक्षत्र के अंतिम दो चरण अर्थात तीसरा व चौथा चरण साथ ही आर्द्रा के चार चरण और पुनर्वसु के प्रारंभ के तीन चरण मिलकर मिथुन राशि को पूरा करते हैं। इस प्रकार हम सभी 12 राशियों में 27 नक्षत्रों का विभाजन करते हैं।

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