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: ♦️जन्मकुंडली का पाचवां भाव और संतान विचार👇🏼

कुंडली का पाचवा भाव संतान से सम्बंधित भाव होता है।इसी भाव से जातक की संतान के विषय में विचार किया जाता है।
🔸संतान का कारक गुरु है,जब भी किसी जातक/जातिका के संतान के बारे में देखना होता है तब सर्व प्रथम कुंडली का पाचवा भाव, पाँचवे भाव का स्वामी, पाचवे भाव पर पड़ने वाला अन्य ग्रहो का प्रभाव व संतान कारक गुरु की स्थिति देखी जाती है।
🔹इसके अतिरिक्त पुरुष की कुंडली में शुक्र व स्त्री की कुंडली में मंगल, चंद्र की स्थिति भी बली होनी चाहिए, शुक्र वीर्य कारक है तो मंगल रज, चंद्र मन है इन सबकी स्थिति अनुकूल होना संतान उत्पत्ति के लिए आवश्यक होता है व् दोनों की कुंडलियो में लग्न, लग्नेश की स्थिति भी बली होनी आवश्यक होता है इनके अशुभ होने से संतान उत्पत्ति में समस्याए उत्पन्न हो सकती है।
🔸लग्न, लग्नेश शरीर की स्थिति दर्शाता है। पंचम भाव, इस भाव का स्वामी व कारक गुरु और ऊपर बताई गई अन्य ग्रहो की शुभ और बली स्थिति उत्तम संतान का सुख देती है। यदि पंचम भाव, पंचमेश व् गुरु तीनो में से किसी भी एक की स्थिति अनुकूल न होने से संतान प्राप्त होने पर भविष्य में उसका सुख कम मिलता है या मिलता ही नही।
🔹इस भाव, भावेश पर अधिक से अधिक शुभ ग्रहो का प्रभाव होने से गुणी, बुद्धिमान और योग्य संतान होती है जो जातक का नाम रोशन करती है।
🔸 पंचमेश और गुरु बली होकर केंद्र त्रिकोण में बेठे हो पीड़ित या पाप प्रभाव में न हो तब संतान सुख मिलेगा। पाचवे भाव और पंचमेश की या दोनों में से किसी एक की अशुभ स्थिति संतान सुख में बाधा देगी।
🔹यदि पंचम भाव पाप ग्रहो से दूषित हो पंचमेश अशुभ स्थानों में बैठा हो तब संतान सुख मिलना मुश्किल होता है।
🔸पंचम भाव पर कम से कम दो पाप ग्रहो का युति या दृष्टि प्रभाव हो, पंचमेश की स्थिति अशुभ हो, शुभ प्रभाव पंचम भाव,पंचमेश पर न हो तब संतान सुख नही मिलता ऐसी स्थिति में बलवान पंचम भाव, पंचमेश पर अशुभ प्रभाव के साथ साथ शुभ ग्रहो का प्रभाव हो गुरु बली हो तब संतान होगी लेकिन कष्ट से।
🔹पाचवे भाव, पाचवे भाव के स्वामी पर दो या दो से अधिक पाप ग्रहो के युति या दृष्टि प्रभाव होने से कोई शुभ प्रभाव न हो तब गर्भपात जैसी समस्याएं रहती है जिस कारण संतान उत्पन्न होने में बार बार समस्याओ का सामना करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में पंचम भाव, पंचमेश केंद्र त्रिकोण में बली होकर बेठे हो शुभ प्रभाव पंचम भाव पर हो बुध शुक्र दोनों या गुरु की दृष्टि पाचवे भाव पर हो तब कुछ दिक्कतों के बाद या दिक्कत से संतान सुख मिल जाता है।
🔸पंचम भाव में पाप ग्रह हो, पंचमेश 6, 8, 12 भाव में हो शुभ प्रभाव पंचम भाव और पंचमेश पर न हो तब संतान होने के बाद भी संतान गुणी नही होती। इसके अतिरिक्त जितनी शुभ स्थिति पंचम भाव, पंचमेश, गुरु की होंगी जितना शुभ प्रभाव इन सब पर होगा उतना ही अच्छा संतान सुख मिलेगा।
🔹सूर्य, गुरु, मंगल पुत्र कारक, चंद्र शुक्र पुत्री कारक होते है शनि बुध स्त्री पुरुष जैसी राशि में होते है उसके अनुसार संतान उत्पत्ति में सहायक होते हैैं। मेष, मिथुन, सिंह, तुला, धनु, कुम्भ पुरुष राशि है और वृष, कर्क, कन्या, वृश्चिक, मकर स्त्री राशियाँ होती है।
🔸इसके अतिरिक्त सप्तमांश कुंडली से भी संतान सुख का विचार किया जाता है।सप्तमांश कुंडली का लग्न लग्नेश, पंचम भाव पंचमेश, सप्तमांश कुंडली में लग्न कुंडली का पंचमेश और गुरु शुभ और बली हो या सप्तमांश कुंडली में पाचवे भाव, पंचमेश से गुरु का सम्बन्ध बनता हो आदि अन्य शुभ स्थितियां होने से संतान सुख अवश्य मिलता है।

♦️जन्मकुण्डली में विवाह विच्छेद का योग 👇🏼

यद्यपि हमारी संस्कृति में विवाह संस्कार को 7 जन्मों का बंधन माना जाता है। फिर भी आधुनिक परिवेश में वैवाहिक पृथक्करण एक सामान्य घटना होती जा रही है। वैवाहिक पृथकता का ज्ञान विवाह पूर्व जन्मांग मेलापक के समय सम्भावित है। प्रायः सप्तम भाव, द्वितीय भाव, सप्तमेश, द्वितीयेश और कारक शुक्र के निरीक्षण से वैवाहिक विघटन का पूर्व ज्ञान होता है। किंतु इसका ज्ञान करना इतना सरल भी नही है। अनेक दंपति परस्पर असंतुष्ट रहते हुए भी आजीवन दाम्पत्य सूत्र में बंधे रहते हैं वहीं कुछ दंपति अत्यंत सामान्य तथा उपेक्षणीय स्थितियों से भी विचलित होकर न्यायालय की शरण ले लेते हैं।
इस विषय में हमारे ऋषि मुनियों ज्योतिषाचार्यों ने अनेकानेक योगों को उद्धृत किया है। इनमे से कुछ विशेष योगों को में आज अपने इस लेख के प्रथम भाग में प्रस्तुत कर रहा हूं👇🏼👇🏼
🔸सप्तमाधिपति द्वादशभावस्थ हो और राहु लग्नस्थ हो तो वैवाहिक पार्थक्य होता है ।
🔹सप्तमभावस्थ राहु युक्त द्वादशाधिपति पृथकता योग निर्मित करता है ।
🔸सप्तमाधिपति और द्वादशाधिपति दशमस्थ हों तो पति – पत्नी में पार्थक्य होता है ।
🔹द्वादशस्थ सप्तमाधिपति और सप्तमस्थ द्वादशाधिपति से यदि राहु की युति हो तो पार्थक्य होता है ।
🔸पंचमभावस्थ व्ययेश सप्तमेश और सप्तमस्थ राहु या केतु के फलस्वरूप जातक पत्नी और सन्तानों से पृथक् रहता है ।
🔹पापग्रह दृष्ट द्वादशस्थ सप्तमेश और सप्तमस्थ शुक्र स्वत: पत्नी को विलग कर देते है ।
मूलत: ऊपर लिखित ग्रहयोगों से पति – पत्नी के पृथक् – पृथक् रहने का बोध होता है ।
जिन योगों से विधिवत् पार्थक्य या विच्छेद होता है । वे निम्नलिखित है👇🏼👇🏼
🔸मंगल या शनि की राशि में जन्म हो , लग्न में शुक्र स्थित हो और सप्तम भाव पापाक्रान्त हो तो जातक की पत्नी उसका परित्याग कर किसी अन्य से विवाह कर लेती है अथवा उसकी द्वितीय स्त्री के रूप में रहती है ।
🔹सप्तम भाव शुभ और अशुभ दोनों ग्रहों से पूरित हो किन्तु सप्तमाधिपति अथवा शुक्र निर्बल हो तो पत्नी अपने पति का परित्याग कर देती है ।
🔸पापाक्रांत सप्तमभावस्थ चन्द्र शुक्र पति – पत्नी सम्बन्ध विच्छेद करते हैं ।
🔹सूर्य सप्तमस्थ हो एवं सप्तमाधिपति निर्बल हो अथवा सूर्य पापाक्रांत हो तो जातक पत्नी का त्याग कर देता है।
🔸यदि किसी जातिका के सप्तम भाव में बलहीन ग्रह स्थित हों तो वह परित्यक्त होती है ।

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