Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM


कुण्डली मिलान

तारा मिलान

तारा मिलान अष्टकूट मिलान की तृतीय कूट मिलान है। तारा मिलान मे हम जातक और जातिका के जन्मनक्षत्र की आपस मे सहजता का मिलान करते है।
जैसा कि हम सभी जानते है जन्मकुंडली मे चंद्रमा जिस नक्षत्र विशेष मे अवस्थित होता है वह नक्षत्र विशेष जातक का जन्म नक्षत्र होता है। जातक के जन्म नक्षत्र का जीवन मे गहरा प्रभाव होता है। जातक के जन्म नक्षत्र व्यवहार, जीवन शैली, विशोंतरी दशा का संकेत देते है।
विवाह मे मानसिक व्यवहार का मिलना और एक दुसरे के प्रति सहज होना आवश्यक है। अन्यथा यह मानसिक तनाव और विवाह मे मानसिक प्रेम मे कमी लाता है।

तारा मिलान विधी

जन्म नक्षत्र से गिनती करने पर
1st नक्षत्र जन्म तारा कहा जाता है
2nd नक्षत्र संपत तारा कहा जाता है
3rd नक्षत्र विपत्त तारा कहा जाता है
4thनक्षत्र क्षेम तारा कहा जाता है
5th नक्षत्र प्रत्यारी तारा कहा जाता है
6th नक्षत्र साधक तारा कहा जाता है
7th नक्षत्र वीं बाधा तारा कहा जाता है
8th नक्षत्र मित्र तारा कहा जाता है
9th नक्षत्र अति मित्र तारा कहा जाता है।

अब 10th नक्षत्र 1st के रूप में माना जाता है
11th नक्षत्र 2nd नक्षत्र
…………… ..
27th नक्षत्र 9th नक्षत्र है।

इसप्रकार नक्षत्र के 3 सेट मिलता है। इस सेट को अन्य जगह भी उपयोग किया जाता है।

विपत्त तारा, प्रत्यारी तारा और बाधा तारा को जातक के लिए अशुभ माना जाता है।

तारा मिलान के लिए जातक और जातिका के जन्म नक्षत्र से अलग अलग सारणी उपरोक्त विधी द्वारा बना ले।

यदि जातक जातिका के जन्म नक्षत्र एक दूसरे के सारणी मे विपत्त, प्रत्यारी या बाधा तारा हो तो यह तारा दोष का निर्माण करते है, यह अशुभ माना जाता है।

यदि आप इस लम्बी विधी से बचना चाहते है तो सरल विधी है कि आप वर के जन्म नक्षत्र से गिनती की शुरुआत करते हुए कन्या नक्षत्र तक जाए और कन्या के नक्षत्र से वर के नक्षत्र तक गिनती करे यदि दोनो से 3rd, 5th, 7th नक्षत्र हो तो तारा दोष का निर्माण करते है। जब गिनती 9 से अधिक हो तो 9 से भाग दे और शेष को मिलान करे।
[शुभ कार्य करने के लिये अशुभ योगों का त्याग
🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼
शुभाशुभ कर्मो अथवा दैनिक कार्यो में भी मुहूर्त साधना प्राचीन परंपरा रही है इससे मनुष्य भविष्य में होने वाली अशुभ घटनाओं से बच सकता है। कुछ प्रमुख अशुभ योग का विवरण दिया जा रहा है यह आपके लिए अवश्य लाभदायक रहेगा।

कुयोग👉 (अशुभ) वार, तिथि एवं नक्षत्रों के संयोग से अथवा केवल नक्षत्र के आधार पर कुछ ऐसे अशुभ योग बनते हैं जिन्हें, कुयोग कहा जा सकता है। इन कुयोगों में कोई शुभ कार्य प्रारंभ किया जाए तो वह सफल नहीं होता अपितु उसमें हानि, कष्ट एवं भारी संकट का सामना करना पड़ता है।
कुयोग-सुयोग: यदि किन्हीं कारणों से एक कुयोग तथा एक सुयोग एक ही दिन पड़ जाए तो भी उस दिन को त्याग देना चाहिये ।

दग्ध नक्षत्र👉 रविवार को भरणी, सोमवार को चित्रा, मंगलवार को उत्तराषाढ़ा, बुधवार को धनिष्ठा, गुरुवार को उत्तरा फाल्गुनी, शुक्रवार को ज्येष्ठा, शनिवार को रेवती नक्षत्र दग्ध नक्षत्र कहलाते हैं। इनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाना चाहिए।

मास-शून्य नक्षत्र👉 चैत्र में अश्विनी और रोहिणी, वैशाख में चित्रा और स्वाति, ज्येष्ठ में उत्तराषाढ़ा और पुष्य, आषाढ़ में पूर्वा फाल्गुनी और धनिष्ठा, श्रवण में उत्तराषाढा़ और श्रवण, भाद्रपद में शतभिषा और रेवती, अश्विनी में पूर्वा भाद्रपद, कार्तिक में कृतिका और मघा, मार्गशीर्ष में चित्रा और विशाखा, पौष में आर्द्रा और अश्विनी, माघ में श्रवण और मूल तथा फाल्गुन में भरणी और ज्येष्ठा मास-शून्य नक्षत्र होते हैं। इनमें शुभ कार्य करने से धन नाश होता है।

जन्म नक्षत्र👉 जातक का जन्मनक्षत्र, १० वां अनु जन्म नक्षत्र तथा १९ वां त्रिजन्म नक्षत्र कहलाते है। ये तीनों समान रूप से जन्म नक्षत्र की श्रेणी में आते हैं। शुभ कार्य प्रारंभ करने हेतु जन्म नक्षत्र त्यागना चाहिए।

चर योग👉 रविवार को उत्तराषाढा, सोमवार को आर्द्रा, मंगल को विशाखा, बुध को रोहिणी, गुरू को शतभिषा
शुक्रवार को मघा तथा शनिवार को मूल नक्षत्र हो तो चर योग बनता है। इस योग में कार्य की अस्थिरता रहती है।

दग्ध योग👉 रविवार को १२, सोमवार को ११, मंगल को ५, बुध को ३, गुरू को ६, शुक्र को ८, और शनिवार को ९, तिथि होने पर दग्ध योग अशुभ कारक होता है।

मृत्युदा तिथिया👉 रविवार को १, ६, ११, सोमवार को २, ७, १२, मंगल को १, ६, ११, बुध को ३, ८, १३, गुरू को ४, ९, १४, शुक्र को २, ७, १२, शनिवार ५, १०, १५ तिथियां होने पर मृत्युकारक होती हैं।

मृत्यु योग👉 रविवार को अनुराधा, सोमवार को उत्तराषाढा, मंगल को शतभिषा, बुध को अश्विनी, गुरूवार को मृगशिरा, शुक्रवार को अश्लेषा , तथा शनिवार को हस्त नक्षत्र मृत्युयोग बनाते हैं।
इनमे शुभ कार्य करने से जनहानि होती है।

यमघंट योग👉 रविवार को मघा , सोम को विशाखा ,मंगल को आर्द्रा , बुक को मूल , गुरू को कृतिका , शुक्र को रोहिणी तथा शनिवार को हस्त नक्षत्र के होने पर यमघंट योग अशुभ कारक होगा।

यमदंष्ट्रा योग👉 रविवार को मघा व धनिष्ठा, सोम को मूल व विशाखा, मंगल को भरणी व कृतिका , बुध को पुनर्वसु व रेवती ,गुरू को अश्विनी व उत्तराषाढा, शुक्र को रोहिणी व अनुराधा , तथा शनिवार को श्रवण व धनिष्ठा नक्षत्र होने पर यह योग बनता है ,आय्यंत पीडादायक होता है।

वज्र मुसल योग👉 रविवार+भरणी,सोमवार+चित्रा, मंगल+उत्तराषाढा, बुध+धनिष्ठा, गुरू+उत्तराफाल्गुनी
, शुक्रवार+ज्येष्ठा , तथा शनिवार +रेवती नक्षत्र से यह योग भी अशुभ कारक होता है जोकि कार्य में विवाद उत्पन्न करता है ।
🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂🌼🍂
||#राहुकेतुकेद्वाराकामयाबीयाअसफलता|| राहु और केतु यह दो ऐसे ग्रह है जब कामयाबी देंगे या इनके द्वारा सफलता मिलना निश्चित होता है तब बहुत कम समय मे बहुत ज्यादा सफल व्यक्ति जातक को बना देते है और जब किसी जातक को इन्हें असफल बनाना होता है या दुखी करना होता है तब यह दुखी और असफल बनाने में अपनी पूरी क्षमता लगा देते है।खेर सफलता और असफलता यह राहु और केतु की शुभ अशुभ स्थिति के अनुसार ही जीवन मे मिलती है जैसी कुण्डली में इनकी स्थिति होगी वेसे ही यह फल करेंगे।। अब बात करते है राहु और केतु के फलो को कैसे पहचाने? हालांकि राहु केतु पर पहले भी काफी पोस्टे लिखी हुई है लेकिन इनके फल इतने आकस्मिक है कि जितना लिखा जाए उतना कम ही है।राहु और केतु जब किसी भी भाव मे बैठते है तब यह उस भाव के स्वामी के साथ किसी तरह से संबंध नही किये होने चाहिए यदि भाव और भावेश दोनो से यह संबंध करते है तब खुद अपनी तरह से भी शुभ फल की हानि करते है साथ ही उस भाव भावेश की भी शुभ फल की हानि करते है जैसे ;- #उदाहरण:- दूसरे भाव मे दूसरे भाव का स्वामी बैठे जिससे धनः कि स्थिति उत्तम है दिख रही है लेकिन धनः भाव मे धनेश के साथ ही राहु या केतु बैठ जाए तब राहु की दशा में या धनेश की दशा में आर्थिक नुकसान या होगी।लेकिन दूसरे भाव का स्वामी राहु केतु के साथ न हो न राहु-केतु की दृष्टि धनेश पर हो तब कोई दिक्कत नही।। #उदाहरण:- नवा भाव भाग्य है अब राहु केतु नवमेश(नवे भाव के स्वामी) के साथ राहु बेठा हो किसी भी भाव मे और राहु की दृष्टि 9वे भाव पर भी हो तब यहाँ राहु केतु या नवमेश की दशा में बनते कामो में दिक्कते, होगी क्योंकि भाव-भावेश दोनो राहु केतु से पीड़ित है।। दूसरी स्थिति में राहु केतु कब कामयाबी और सफलता देते है अब इसको समझे, यदि किसी भी जातक की कुंडली मे, माना दशमेश बलवान होकर रह के साथ 5वे भाव मे बैठे जैसे #मीन_लग्न कुंडली के अनुसार दशमेश गुरु होता है अब गुरु के साथ केतु या राहु 5वे भाव मे बैठे यहाँ मीन लग्न में गुरु 5वे भाव मे उच्च भी होगा तब यहाँ राहु या केतु 5वे भाव मे दशमेश गुरु के साथ बैठने पर कार्य छेत्र में खूब उन्नति,तरक्की और सफलता देगा व खुद लाभ देगा क्योंकि 5वे भाव मे राहु या केतु गुरु के साथ बैठने पर ग्यारहवे भाव मे भी राहु या बैठेगा जो लाभ का भाव है।। अब यहाँ स्थिति क्या बनी राहु या केतु 5वे भाव मे दशमेश उच्च गुरु के साथ बैठे है लेकिन दशवें भाव को न राहु देख रहा है न केतु मतलब दसवे भाव पर राहु केतु का कोई प्रभाव नही है ऐसी स्थिति में राहु केतु सफ़लता, तरक्की, धन वैभव, और कार्य छेत्र म उन्नति देगे।। सीधे शब्दों में कहू तो जब राहु और केतु किसी भाव और उस भाव दोनो को ही अपनी पकड़ में ले, लेते हो तब अशुभ फल करते है अन्यता भाव के फल में नुकसान नही, लेकिन यदि किसी भाव मे अशुभ भावेश के साथ बैठेंगे जैसे दशमः भाव मे राहु अष्टमेश के साथ बैठे तब यहाँ दिक्कत देगा।इसके अलावा राहु केतु जितने ज्यादा अच्छी स्थिति में होंगे उसी अनुसार यह कामयाबी, सफलता बहुत तेज गति से सामान्य देते है क्योंकि राहु केतु की कोई सीमितता नही है, इन्हें अच्छा फल देना है तो देंगे चाहे कैसे भी रास्ते बनाकर दे लेकिन यदि यह अशुभ है तब जातक को बर्बाद करना है तो बर्बाद भी करेंगे चाहे कुछ भी परिस्थितियां बनानी पड़े यह बना देते है।हर जातक की कुंडली मे इनकी जैसी शुभ-अशुभ स्थिति होती है वेसे ही फल देते है राहु केतु अकेले हो कोई ग्रह ई के साथ न हो तब सामान्य ठीक फल करते है लेकिन जब यह अन्य ग्रहो के साथ बैठे होते है तब विशेष तरह से फल देते जिन ग्रहो के साथ बैठे होते है उन ग्रहो से प्रभावित होकर।इस तरह से राहु केतु की भूमिका नवग्रहों में विशेष ही रहती है।।

Recommended Articles

Leave A Comment