जय श्री राधे कृष्णा
सभी व्यक्ति चाहते हैं हमारा जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी भाग्य उदय होना चाहिए परंतु जन्म कुंडली के अनुसार जिस ग्रह का प्रभाव होगा जन्म कुंडली में नवम भाव और उसके स्वामी द्वारा भाग्य उदय होता है तो इसलिए उसका स्वामी जिस स्थान में बैठा होगा और उसका कारक ग्रह जो ग्रह होगा उसी को लेकर भाग्योदय होगा।
1- यदि सूर्य और गुरु का भाग्य स्थान पर प्रभाव होता है तो उस जातक का भाग्य उदय 24, 25 या 26 वर्ष में होगा इसके अतिरिक्त 30, 36 39 वर्ष में भी भाग्योदय के उसे अवसर प्राप्त होंगे।
2- यदि मंगल और शुक्र का नवम भाव पर प्रभाव है तो 22, 28 या 32 वर्ष में उसका भाग्योदय हो सकता है।
3- और यदि किसी जातक का भाग्येश बली बुध हो या भाग्य स्थान पर उसका प्रभाव हो तो ऐसे व्यक्ति का भाग्य जल्दी ही होता है जैसे 18, 20, 21, 22 या 26 इन किसी वर्षों में भी हो सकता है।
4- यदि किसी की भाग्य की महादशा चल रही है तो उसमें भी उस जातक का भाग्योदय हो सकता है।
5- यदि नवम भाव पर शनि का प्रभाव हो तो उसका देरी से भाग्योदय होगा क्योंकि शनि प्रत्येक कार्य में देरी करता है। जिसका 30 वर्ष के बाद ही भाग्योदय होना संभव है जैसे 30, 36 और 42 की उम्र में हो सकता है।
6- यदि उसका हो और शुभ ग्रहों के साथ बैठा हो या उन से दृष्ट हो तो ऐसा व्यक्ति जन्म से ही भाग्यशाली होता है।
7- भाग्येश की सप्तमी इसके साथ मित्रता संबंध हो तथा लाभ स्थान में संयुक्त स्थित हो तो विवाह पश्चात भाग्योदय होता है और उसे धन यश की प्राप्ति होती है।
8-भाग्येश त्रिकोण स्थान में में जो ग्रहों के साथ स्थित हो या दृष्टि संबंध हो तो जातक बहुत ही भाग्यशाली होता है।
9- भाग्येश द्वादश या अष्टम स्थान में बली हो तो उस व्यक्ति का 26, 27 और 29 वर्ष मैं अपने जन्म स्थान से दूर जाने पर भाग्योदय होता है।
यदि किसी की इस आयु में शत्रु ग्रह की महादशा चल रही हो या नीच ग्रहों की महादशा चल रही हो तो उसे लाख कोशिशों के बावजूद भी अच्छा फल प्राप्त नहीं होगा इन की महादशा जाने के पश्चात ही उसे लाभ प्राप्त होगा कुंडली में ग्रहों की स्थिति अच्छी होना आवश्यक है भाग्य से संबंधित ग्रहों शुभ होना तथा उनकी दशा महादशा का सही समय पर व्यक्ति के जीवन में आना उतना ही आवश्यक होता है अन्यथा कुंडली होने पर भी यदि कार्य करने की उम्र में उसे फल प्राप्त नहीं होता। यदि कुंडली मैं नवम भाव पर राहु केतु का प्रभाव हो तो 42 से 44 के बीच में उसका भाग्योदय होता है। अगर भाग्येश का संबंध सप्तमेश से होता है तो विवाह के पश्चात हुई भाग्योदय होता है और यदि शुक्र के साथ होता है 25 वे वर्ष या व्यवहार पर्यंत भाग्योदय होता है।