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लग्नानुसार भाग्योदय वर्ष
कुंडली में बारह भाव होते हैं और ये 12 राशियों (मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन) का प्रतिनिधित्व करते हैं। कुंडली का प्रथम भाव यानी कुंडली के केंद्र स्थान में पहला घर जिस राशि का होता है, उसी राशि के अनुसार कुंडली का लग्न निर्धारित होता है। लग्न के आधार पर कुंडलियां बारह प्रकार की होती हैं।

अपनी कुंडली का पहला भाव यानी लग्न देखिए और यहां जानिए किस-किस उम्र में आपका भाग्योदय हो सकता है…
मेष लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली मेष लग्न की है, सामान्यत: उनका भाग्योदय 16 वर्ष की आयु में या 22 वर्ष की आयु, 28 वर्ष की आयु, 32 वर्ष की आयु या 36 वर्ष की आयु में हो सकता है।

वृष लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली वृष लग्न की है, उनका भाग्योदय 25 वर्ष की आयु, 28 वर्ष की आयु, 36 वर्ष की आयु या 42 वर्ष की आयु में भाग्योदय हो सकता है।

मिथुन लग्न की कुंडली:
मिथुन लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय करने वाली आयु है 22 वर्ष, 32 वर्ष, 35 वर्ष, 36 वर्ष या 42 वर्ष। इन वर्षों में मिथुन राशि के लोगों का भाग्योदय हो सकता है।

कर्क लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली कर्क लग्न की है, उनका भाग्योदय 16 वर्ष की आयु, 22 वर्ष की आयु, 24 वर्ष की आयु, 25 वर्ष की आयु, 28 वर्ष की आयु या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है।

सिंह लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली सिंह लग्न की है, उनका भाग्योदय 16 वर्ष की आयु में, 22 वर्ष की आयु में, 24 वर्ष की आयु में, 26 वर्ष की आयु में, 28 वर्ष की आयु में या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है।

कन्या लग्न की कुंडली:
कन्या लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय इन आयु वर्ष में हो सकता है- 16 वर्ष, 22 वर्ष, 25 वर्ष, 32 वर्ष, 33 वर्ष, 35 वर्ष या 36 वर्ष।

तुला लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली तुला लग्न की है, उनके भाग्य का उदय 24 वर्ष की आयु में हो सकता है। यदि 24 वर्ष की आयु में भाग्योदय न हो तो इसके बाद 25 वर्ष की आयु में, 32 वर्ष की आयु में, 33 वर्ष की आयु में या 35 वर्ष की आयु में भाग्योदय हो सकता है।

वृश्चिक लग्न की कुंडली:
वृश्चिक लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय 22 वर्ष की आयु में, 24 वर्ष की आयु में, 28 वर्ष की आयु में या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है।

धनु लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली धनु लग्न की है, उनका भाग्योदय 16 वर्ष की आयु में, 22 वर्ष की आयु में या 32 वर्ष की आयु में हो सकता है।

मकर लग्न की कुंडली:
मकर लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय 25 वर्ष की आयु में या 33 वर्ष की आयु में या 35 वर्ष की आयु में या 36 वर्ष की आयु में हो सकता है।

कुंभ लग्न की कुंडली:
जिन लोगों की कुंडली कुंभ लग्न की है, उनका भाग्योदय 25 वर्ष की आयु में, 28 वर्ष की आयु में, 36 वर्ष की आयु में या 42 वर्ष की आयु में हो सकता है।

मीन लग्न की कुंडली:
मीन लग्न की कुंडली वाले लोगों का भाग्योदय 16 वर्ष की आयु में, 22 वर्ष की आयु में, 28 वर्ष की आयु में या 33 वर्ष की आयु में हो सकता है।
प्रेम विवाह के बाद कैसी होगी Married Life, जानें ज्योतिष की नज़र से …

विवाह को लेकर अक्सर दो तरह के विचार सामने आते हैं। कुछ लोग तो प्रेम विवाह को सफल मानते हैं, वहीं कुछ लोग तयशुदा विवाह को अधिक सफल मानते हैं।

कुंडली में कुछ ऐसे योग होने से प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती हैं। राहू के योग से प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती हैं।

राहू का संबंध विवाह भाव से होने पर व्यक्ति पारिवारिक परम्परा से हटकर विवाह करने की सोचता है। राहू का स्वभाव संस्कृति से हटकर कार्य करने की प्रवृत्ति का माना जाता है।

जब पंचम भाव के स्वामी की उच्च राशि में राहू या केतु स्थित हों तब भी व्यक्ति के प्रेम विवाह के योग बनते हैं।

जन्म कुंडली में मंगल का शनि अथवा राहू से संबंध या युति हो रही हो तो भी प्रेम विवाह कि संभावनाएं बनती हैं। इन तीनों ग्रहों में से कोई भी ग्रह जब विवाह भाव या भावेश से संबंध बनाता है तो जातक अपने परिवार की सहमति के विरुद्ध जाकर विवाह करता है।

जिस व्यक्ति की कुंडली में सप्तमेश व शुक्र पर शनि या राहू की दृष्टि हो, उसके प्रेम विवाह करने की संभावना अधिक बनती है।

व्यक्ति की कुंडली में मंगल अथवा चन्द्र पंचम भाव के स्वामी के साथ, पंचम भाव में ही स्थित हों तब/अथवा सप्तम भाव के स्वामी के साथ सप्तम भाव में ही हों तब भी प्रेम विवाह के योग बनते हैं। जब शुक्र लग्न से पंचम अथवा नवम अथवा चन्द्रमा लग्न से पंचम भाव में स्थित हो तो भी प्रेम विवाह की संभावना बनती है।

जब पंचम भाव में मंगल हो तथा पंचमेश व एकादेश का राशि परिवर्तन अथवा दोनों कुंडली के किसी भी एक भाव में एक साथ स्थित हों उस स्थिति में भी प्रेम विवाह होने के पूर्ण योग बनते हैं। पंचम व सप्तम भाव के स्वामी अथवा सप्तम व नवम भाव के स्वामी एक-दूसरे के साथ स्थित हों उस स्थिति में भी प्रेम विवाह कि संभावना बनती है।

जब सप्तम भाव में शनि व केतु की स्थिति हो तो व्यक्ति का प्रेम विवाह हो सकता है। कुंडली में लग्न व पंचम भाव के स्वामी एक साथ स्थित हों या फिर लग्न व नवम भाव के स्वामी एक साथ बैठे हों अथवा एक-दूसरे को देख रहे हों इस स्थिति में व्यक्ति के प्रेम विवाह की संभावना बनती है।

व्यक्ति की कुंडली में चन्द्र व सप्तम भाव के स्वामी एक-दूसरे से दृष्टि संबंध बना रहे हों तब भी प्रेम विवाह की संभावनाएं बनती हैं। सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में ही स्थित हो तब प्रेम विवाह का भाव बली होता है।

पंचम व सप्तम भाव के स्वामियों का आपस में युति, स्थिति अथवा दृष्टि संबंध हो या दोनों में राशि परिवर्तन हो रहा हो तब भी प्रेम विवाह के योग बनते हैं।

यदि सप्तमेश की दृष्टि, युति व स्थिति शुक्र के साथ द्वादश भाव में हो तो प्रेम विवाह होता है। द्वादश भाव में लग्नेश, सप्तमेश की युति हो व भाग्येश इनसे दृष्टि संबंध बना रहा हो, तो भी प्रेम विवाह की संभावना बनती है।

तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रेम विवाह करने से पहले लड़के और लड़की को एक-दूसरे को जानने का पर्याप्त समय मिल जाता है।

इसके फलस्वरूप दोनों एक-दूसरे की रुचि, स्वभाव व पसंद-नापसंद को अधिक कुशलता से समझ पाते हैं, इसलिए इसके साथ ही समय रहते प्रेम विवाह करने से पहले लड़का और लड़की को अपने-अपने ग्रह नक्षत्रों की दिशा का भी बोध कर लेना और यह जान लेना चाहिए कि क्या प्रेम विवाह के उपरांत उन दोनों की वैवाहिक जिंदगी खुशनुमा रह पाएगी भी या नहीं।

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