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कुण्डली मिलान

गण गुण मिलान

पिछले अंक मे हमने ग्रह मेेैत्री मिलान के बारे मे जानकारी प्राप्त की।

गण मिलान को कुण्डली मिलान 6 अंक आवंटित किया जाता है। गण मिलान एक दूसरे के स्वभाव और व्यावहारिक चरित्र मिलान के लिए किया जाता है। मेरा मतलब एक – दूसरे के बारे में टेम्पर पर नियंत्रण करने के लिए।
इसके लिए हमारे प्राचीन महर्षियों ने नक्षत्र विशेष मे चंद्रमा की स्थिती के अनुसार जातक के व्यवहार के हिसाब से वहाँ व्यवहार के अनुसार 27 नक्षत्र को 3 भाग में विभाजित किया है।

1) देव गण – निम्नलिखित जन्मनक्षत्र वाले जातक –
अश्विनी,मृगशिरा, पुनर्वसु, पुष्य, हस्ता, स्वाति, अनुराधा, श्रवणा और रेवती

2) मानव गण – निम्नलिखित जन्मनक्षत्र वाले जातक –
भरणी, रोहणी, आद्रा, पुर्वफाल्गुणी, उत्तरफाल्गुणी, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, पुर्वभद्रापद और उत्तरभद्रापद

3)दानव/ राक्षस गण — निम्नलिखित जन्मनक्षत्र वाले जातक—
कृतिका,अश्लेषा, माघा, चित्रा, विशाखा,ज्येष्ठा, मूला, धनिष्ठा और शतभिषा


[ज्योतिष ज्ञान
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जातक के दुर्भाग्य का ज्योतिषीय विश्लेषण ), संतान हीनता
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प्रेत श्राप से संतान हीनता के ज्योतिषीय योग एवं उपाय
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जब पितरो के कर्मों का लोप होता है अर्थात उनके श्राद्ध आदि कर्म जातक द्वारा ठीक से नहीं किए जाते तब वह पितृ प्रेत योनि अर्थात पिशाच योनि में जाकर वंश वृद्धि को रोक देते हैं। पितरों के कारण संतान ही नेता के विभिन्न योग निम्नलिखित हैं।

1👉 यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में पंचम भाव में शनि सूर्य हो और सप्तम भाव में स्थित क्षीण अस्त नीच चंद्रमा हो लग्न एवं बारहवें भाव में राहु तथा गुरु हो तो पितरों के श्राप से वंश वृद्धि का अर्थात संतान की हानि होती है।

2👉 यदि किसी जातक की कुंडली में पंचमेश शनि होकर अष्टम भाव में हो लग्न में मंगल एवं कारक ग्रह अष्टम भाव में हो तो पितरों के श्राप से संतान हानि होती है।

3👉 यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्न में पापी ग्रह हो और बारहवें भाव में सूर्य हो और पंचम भाव में मंगल शनि बुध हो और पंचमेश अष्टम भाव में हो तो प्रेत शराब से संतान का अभाव होता है।

4👉 यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्न में राहु पंचम भाव में शनि एवं कारक अष्टम भाव में हो तो पितरों के श्राप से वंश की हानि होती है।

5👉 यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्न में राहु शुक्र एवं गुरु हो तथा चंद्रमा शनि से युति हो लग्नेश अष्टम भाव में हो तो पितरों के श्राप से पुत्र का अभाव होता है।

6👉 यदि किसी जातक की जन्मकुंडली में लग्न में राहु पंचम में शनि मंगल से युक्त या दृष्ट हो तो भी पितरों के श्राप से पुत्र हानि होती है।

7👉 जन्म कुंडली में कारक नीच राशि में हो और पंचमेश भी अपने से नीच राशि में हो तथा नीच ग्रह से युत या दृष्ट हो तो पितरों के श्राप से संतान हानि होती है।

8👉 जातक की जन्म कुंडली में लग्न में शनि पंचम भाव में राहु और अष्टम भाव में सूर्य एवं बारहवें भाव में मंगल हो तो पितरों के श्राप से वंश का नाश होता है।

9👉 जन्म कुंडली में सप्तमेश छठे आठवें या बारहवें भाव में हो और पंचम भाव में चंद्रमा हो तथा लग्न में शनि एवं गुलिक हो तो पितरों के श्राप से संतान का अभाव होता है।

10👉 यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में अष्टमेश शनि शुक्र से युक्त होकर पंचम भाव में हो और कारक ग्रह अष्टम भाव में हो तो पितरों के श्राप से संतान हानि होती है।

11👉 अष्टमेश शनि शुक्र से युक्त होकर पंचम भाव में हो और कारक ग्रह अष्टम भाव में हो तो पितरों के श्राप से संतान बाधा का योग बनता है।

12👉 यदि किसी जातक की जन्म कुंडली में लग्न में राहु एवं बारहवें भाव में बृहस्पति हो सूर्य शनि के साथ पंचम भाव में हो तथा निर्बल चंद्रमा सप्तम भाव में हो तो ऐसे जातक के संतान पितृ श्रम या बुरी आत्मा के श्राप के कारण नहीं होती।

प्रेत श्राप से संतान बाधा के सामान्य उपाय
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प्रेत श्राप शांति👉 दोष की शांति हेतु गया में श्राद्ध, रुद्राभिषेक, ब्रह्मा की सोने की मूर्ति, प्रत्यक्ष गाय, चांदी का पात्र तथा नीलमणि का दान करना चाहिए। उसके पश्चात यथा सामर्थ्य ब्राह्मण भोजन कराकर उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए इस प्रकार शांति करने से पुत्र प्राप्ति और कुल वृद्धि की संभावना बढ़ती है।

ग्रहदोष की शांति👉 ग्रह दोष से यदि संतान हीनता योग हो तो बुध शुक्र कृत दोष में शंकर जी का पूजन, गुरु चंद्र कृत दोष में मंत्र संतान गोपाल आदि का अनुष्ठान यंत्र तथा औषधि सेवन, राहु दोष में कन्यादान, सूर्य दोष में विष्णु की आराधना, मंगल व शनि दोष में शत रुद्री पाठ, यह सब अनुष्ठान से संतान प्राप्ति होती है। सभी प्रकार के अपत्य दोष में श्रद्धा भक्ति पूर्वक श्री हरिवंश पुराण श्रवण करने से निश्चय ही चिरंजीवी पुत्र की प्राप्ति होती है।


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