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पति-पत्नी वाद-विवाद का ज्योतिषीय कारण

आज के भौतिकवादी एवं जागरूक समाज में पति-पत्नी दोनों पढ़े लिखे होते हैं और सभी अपने अधिकारों व कर्तव्यों के प्रति सजग होते हैं। परन्तु सामान्य सी समझ की कमी या वैचारिक मतभेद होने पर मनमुटाव होने लगता हैं। शिक्षित होने के कारण सार्वजनिक रूप से लड़ाई न होकर पति-पत्नी बेडरूम में ही झगड़ा करते हैं। कभी-कभी यह झगड़ा कुछ समय विशेष तक रहता हैं और कभी-कभी इसकी अवधि पूरे जीवन भर सामान्य अनबन के साथ बीतती हैं। जिससे विवाह के बाद भी वैवाहिक जीवन का आनन्द लगभग समाप्त प्रायः होता हैं।

आइए जानें बेड-रूम में झगड़ा होने के प्रमुख ज्योतिषिय कारण: –

नाम गुण मिलान: –
विवाह पूर्व कन्या व वर के नामों से गुण मिलान किया जाता हैं। जिसमें 18 से अधिक निर्दोष गुणों का होना आवश्यक हैं। किन्तु यदि मिलान में यदि दोष हो तो बेडरूम में झगड़े होते हैं। यह दोष निम्न हैं। जैसे गण दोष, भकुट दोष, नाड़ी दोष, द्विद्वादश दोष को मिलान में श्रेष्ठ नहीं माना जाता। प्रायः देखा जाता है कि उपरोक्त दोषों के होने पर इनके प्रभाव यदि सामान्य भी होते हैं तब भी पति-पत्नी में बेडरूम में झगड़े की सम्भावना बढ़ जाती हैं।

मंगल दोष: –
प्रायः ज्यातिषीय अनुभव में देखा गया हैं कि जिस दम्पति के मंगल दोष हैं व उनका मंगल दोष निवारण अन्य ग्रह से किया गया हैं उनमें मुख्यतः द्वादशः लग्न, चतुर्थ में स्थित मंगल वाले दम्पति में लड़ाई होती हैं क्योंकि इसका मुख्य कारण सप्तम स्थान को शयन सुख हेतु भी देखा जाता हैं। मंगले के द्वादश एवं चतुर्थ में स्थित होने पर मंगल अपनी विशेष दृष्टि से सप्तम स्थान को प्रभावित करता हैं और यही स्थिति लग्नस्थ मंगल में भी देखने को मिलती हैं, क्योंकि लग्नस्थ मंगल जातक को अभिमानी, अड़ियल रवैया अपनाने का गुण देता हैं।

शुक्र की स्थिति: –
ज्योतिष में शुक्र को स्त्री सुख प्रदाता माना हैं और शुक्र कि स्थिति अनुसार ही पती-पत्नी से सुख मिलने का निर्धारण विज्ञ ज्योतिषियों द्वारा किया जाता हैं। अगर शुक्र नीच का हो अथवा षष्ठ, अष्ठम में हो तो बेडरूम में झगड़ा होने की सम्भावना रहती हैं। शुक्र के द्वादश में होने पर धर्मपत्नि को सुख प्राप्ति में कमी रहती हैं। यह योग मेष लग्न के जातक में विशेष होता हैं और बेडरूम में झगड़ा होता हैं।

सप्तमेश और सप्तम स्थान पर ग्रहों का प्रभाव: – (बेडरूम में झगड़े के कारण)

  1. सप्तम स्थान पर सूर्य, शनि, राहू, केतु, और मंगल में से किसी एक अथवा दो ग्रहों का सामान्य प्रभाव।
  2. गुरू का दोष पूर्ण होकर सप्तमेश या सप्तम पर प्रभाव।
  3. सप्तमेश का छठे, आठवें अथवा बारवें भाव में होना।
  4. पाप ग्रह से सप्तम स्थान घिरा होना।
  5. सप्तमेश पर पाप ग्रहों का प्रभाव।

गोचर ग्रहों का प्रभाव
दाम्पत्य सुख में गोचर ग्रह का अपना महत्व हैं। सभी ग्रह गतिमान हैं और राशि परिवर्तन करते हैं एवं प्रत्येक राशि को अपना प्रभाव देकर सुखी अथवा दुखी होने का कारण होते हैं। सर्वाधिक गतिमान चन्द्र प्रत्येक ढाई दिन में राशि परिवर्तन करता हैं और चन्द्रमा मनसो जातः के अनुसार मन का कारक होने, जलीय ग्रह होने से प्रेम का भी कारक होता हैं। अतः प्रत्येक राशि में वह अन्य ग्रहों की भांति सकारात्मक अथवा नकारात्मक प्रभाव प्रदान करता हैं। इसकी छठी, आंठवीं व बारहवीं स्थिति प्रेम को कम करती हैं व शयन सुख में बाधा देती हैं।
प्रत्येक ग्रह का प्रभाव दाम्पत्य जीवन पर सकारात्मक जहाँ आनन्द भर देता हैं वहीं नकारात्मक रति सुख नष्ट कर देता हैं।

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