पित्र दोष के लिए जिम्मेदार ज्योतिषीय योग:
- लग्नेश की अष्टम स्थान में स्थिति अथवा अष्टमेष की लग्न में स्थिति।
- पंचमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की पंचम में स्थिति।
- नवमेश की अष्टम में स्थिति या अष्टमेश की नवम में स्थिति।
- तृतीयेश, यतुर्थेश या दशमेश की उपरोक्त स्थितियां। तृतीयेश व अष्टमेश का संबंध होने पर छोटे भाई बहनों, चतुर्थ के संबंध से माता, एकादश के संबंध से बड़े भाई, दशमेश के संबंध से पिता के कारण पितृ दोष की उत्पत्ति होती है।
- सूर्य मंगल व शनि पांचवे भाव में स्थित हो या गुरु-राहु बारहवें भाव में स्थित हो।
- राहु केतु की पंचम, नवम अथवा दशम भाव में स्थिति या इनसे संबंधित होना।
- राहु या केतु की सूर्य से युति या दृष्टि संबंध (पिता के परिवार की ओर से दोष)।
- राहु या केतु का चन्द्रमा के साथ युति या दृष्टि द्वारा संबंध (माता की ओर से दोष)। चंद्र राहु पुत्र की आयु के लिए हानिकारक।
- राहु या केतु की बृहस्पति के साथ युति अथवा दृष्टि संबंध (दादा अथवा गुरु की ओर से दोष)।
- मंगल के साथ राहु या केतु की युति या दृष्टि संबंध (भाई की ओर से दोष)।
- वृश्चिक लग्न या वृश्चिक राशि में जन्म भी एक कारण होता है, क्योंकि वह राशि चक्र के अष्टम स्थान से संबंधित है।
- शनि-राहु चतुर्थी या पंचम भाव में हो तो मातृ दोष होता है। मंगल राहु चतुर्थ स्थान में हो तो मामा का दोष होता है।
- यदि राहु शुक्र की युति हो तो जातक ब्राहमण का अपमान करने से पीड़ित होता है। मोटे तौर पर राहु सूर्य पिता का दोष, राहु चंद्र माता का दोष, राहु बृहस्पति दादा का दोष, राहु-शनि सर्प और संतान का दोष होता है।
- इन दोषों के निराकारण के लिए सर्वप्रथम जन्मकुंडली का उचित तरीके से विश्लेषण करें और यह ज्ञात करने की चेष्टा करें कि यह दोष किस किस ग्रह से बन रहा है। उसी दोष के अनुरूप उपाय करने से आपके कष्ट समाप्त हो जायेंगे।
कुछ सामान्य उपाय - अमावस्या के दिन अपने पूर्वजों के नाम पर मन्दिर में दूध, चीनी, श्वेत वस्त्र व दक्षिणा आदि दें।
- पीपल की 108 परिक्रमा निरंतर 108 दिन तक लगाएं।
- परिवार के किसी सदस्य की अकाल मृत्यु होने पर उसके निमित्त पिंडदान अवश्य कराएं।
- ग्रहण के समय दान अवश्य करें।
- जन कल्याण के कार्य करें, वृक्षारोपण करें। जल की व्यवस्था में सहयोग दें।
- पितृदोष निवारण के लिए विशेष रूप से निर्मित यंत्र लगाकर एक विशेष यंत्र का 45 दिन विधिवत पाठ करके गृह शुद्धि करें।
- श्रीमद्भागवत का पाठ करें या श्रवण करें। इससे पितृदोष समाप्त हो जाता है और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है। उनके आशीर्वाद से हमारा परिवार जो वास्तव में उनका ही एक अंश है सुखी हो जाता है।