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दिशाओ पर ग्रहों का आधिपत्य एवं उनके फलाफल

पूर्व दिशा- सूर्य पूर्व दिशा का स्वामी है यह पुरुष जाति का सूचक, रक्तवर्ण तथा पित्त प्रकृति वाला ग्रह है| यह आत्मा, आरोग्य, स्वभाव, राज्य, देवालय का सूचक एवं पितृ कारक है| यही वजह है कि पूर्व दिशा ज्ञान, प्रकाश और आध्यात्म की प्राप्ति में व्यक्ति की मदद करती है| और पूर्व दिशा पिता का स्थान भी होता है इसलिए यदि पूर्व दिशा बंद, दबी और ढकी हो तो गृहस्वामी कष्टों से घिर जाता है| पूर्व दिशा में दोष या जन्मपत्री में सूर्य के पीड़ित होने पर पिता से सम्बन्धों में कटुता रहती है| सूर्य की इस स्थिति के फलस्वरूप सरकार से परेशानी, सरकारी नौकरी में परेशानी, सिरदर्द, नेत्र रोग, हृदय रोग, चर्म रोग, अस्थि रोग, पीलिया, ज्वर, क्षय रोग व मस्तिष्क की दुर्बलता आदि की सम्भावना रहती है| इसीलिए वास्तु शास्त्र में इन्हीं बातों का ख्याल रखते हुए पूर्व दिशा को खुला छोड़ने की सलाह दी जाती है|

पश्चिम दिशा- ज्योतिषीय आधार पर शनि पश्चिम दिशा का स्वामी है और शनि एक नपुंसक जाति का कृष्ण वर्ण तथा वायु तत्व वाला ग्रह है| इसकी स्थिति के आधार पर आयु, बल, दृढ़ता, विपत्ति, यश व नौकर-चाकरों का विचार किया जाता है| यह इकलौता ऐसा ग्रह है जो मोक्ष कारक है, शनि व्यक्ति को दुर्भाग्य तथा संकटों के चक्कर में डालकर अंत में शुद्ध और सात्विक बना देता है| वहीँ वास्तु में इसे वरुण का स्थान बताया गया है और यह सफलता, यश और भव्यता का द्योतक माना गया है| पश्चिम दिशा में दोष या जन्मपत्री में शनि के पीड़ित होने पर नौकरों से क्लेश, नौकरी में परेशानी, वायु विकार, लकवा, रीढ़ की हड्डी में तकलीफ, भूत-प्रेत का भय, चेचक, कैंसर, कुष्ठ रोग, मिर्गी, नपुंसकता, पैरों में तकलीफ आदि होने की सम्भावना बनी रहती है|

उत्तर दिशा- यह दिशा मातृ स्थान और कुबेर की दिशा है और इस दिशा का स्वामी बुध ग्रह है| बुध नपुंसक जाति का, श्यामवर्ण, पृथ्वी तत्व तथा त्रिदोष प्रकृति का ग्रह है| ज्योतिषीय विचार के आधार पर यह ज्योतिष, चिकित्सा, शिल्प, कानून तथा व्यवसाय का स्वामी है| उत्तर दिशा में दोष या जन्मपत्री में बुध के पीड़ित होने पर विद्या-बुद्धि में कमी, वाणी दोष, मामा से संबंध में कटुता, स्मृति लोप, मिर्गी, गले के रोग, नाक के रोग, उन्माद, मतिभ्रम, व्यवसाय में हानि, शंकालुता, विचार में अस्थिरता आदि होता है| इसीलिए वास्तु के अनुसार उत्तर में खाली स्थान का होना अतिआवश्यक होता है|

दक्षिण दिशा- वास्तु में दक्षिण दिशा यम की दिशा बताई गयी है और यम बुराइयों का नाश करने वाला देव है और पापों से छुटकारा दिलाते हैं| पितरों का वास इसी दिशा में होता है साथ ही यह दिशा सुख समृद्धि और अन्न का स्रोत होती है और यदि यह दिशा दूषित हो तो गृहस्वामी का विकास रुक जाता है| वहीँ ज्योतिषीय आधार पर दक्षिण दिशा का स्वामी मंगल को बताया गया है और मंगल पुरुष जाति का रक्तवर्ण, अग्नि तत्व तथा पित्त प्रकृति वाला ग्रह है| यह धैर्य, पराक्रम, भाई-बन्धु, रक्त एवं शक्ति का कारक ग्रह है| दक्षिण दिशा में दोष या जन्मपत्री में मंगल के पीड़ित होने पर भाइयों से संबंध में कटुता, क्रोध की अधिकता, दुर्घटनाएं, रक्त विकार, कुष्ठ रोग, फोड़ा-फुंसी, उच्च रक्त चाप, बवासीर, चेचक, प्लेग आदि होने की सम्भावना बलवती होती है|

आग्नेय कोण- इस कोण के अधिपति अग्नि देवता है, अग्निदेव व्यक्ति के व्यक्तित्व को तेजस्वी, सुंदर और आकर्षक बनाते है और जीवन में सभी प्रकार के सुख प्रदान करते है| जीवन में खुशी और स्वास्थ्य के लिए इस दिशा में ही आग, भोजन पकाने तथा भोजन से सम्बंधित कार्य करना चाहिए| वहीँ ज्योतिष में आग्नेय कोण का अधिष्ठाता शुक्र ग्रह है, शुक्र स्त्री जाति का श्याम और गौरवर्ण तथा जलीय तत्व वाला ग्रह है| यह काव्य, संगीत, वस्त्रा, आभूषण, वाहन, स्त्री, कामवासना तत्व व सांसारिक सुखों के कारक बताये गए हैं| आग्नेय दिशा में दोष या जन्मपत्री में शुक्र के पीड़ित होने पर पत्नी सुख में बाधा, प्रेम में असफलता, वाहन से कष्ट, शृंगार के प्रति अरुचि, नपुंसकता, हर्निया, मधुमेह, धातु एवं मूत्र संबंधी रोग, स्त्री होने की स्थिति में गर्भाशय संबधी रोग आदि हो सकते हैं|

नैऋत्य कोण- नैऋत्य कोण को वास्तु में मृत्यु का स्थान बताया गया है, यहां पिशाचों का वास होता है| ज्योतिष में नैऋत्य कोण का अधिष्ठाता ग्रह राहु है, यह कृष्ण वर्ण का एक क्रूर ग्रह है और कुण्डली में इसकी स्थिति के आधार पर गुप्त युक्ति बल, कष्ट और त्रुटियों का विचार किया जाता है| नैऋत्य कोण में दोष या जन्मपत्री में राहु के पीड़ित होने पर परिवार में असमय मौत की आशंका, दादा से परेशानी, मन में अहंकार की भावना की उत्पत्ति, त्वचा रोग, कुष्ठ रोग, मस्तिष्क रोग, भूत-प्रेत का भय आदि की सम्भावनाएं प्रबल रहती हैं|

केतु भी राहु की तरह कृष्ण वर्ण का एक क्रूर ग्रह है, इसकी स्थिति के आधार पर नाना से परेशानी, किसी के द्वारा किए गए जादू-टोने से परेशानी, छूत की बीमारी, रक्त विकार, दर्द, चेचक, हैजे, चर्म रोग का विचार किया जाता है|

वायव्य कोण- वायव्य दिशा का स्वामी चन्द्रमा है, यह स्त्री जाति का, श्वेतवर्ण तथा जलीय प्रकृति वाला ग्रह है| यह मन, चित्तवृत्ति, शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य, संपत्ति व माता का कारक है| वहीँ वास्तु में वायव्य कोण वायुदेव स्थान है, वायुदेव हमें शक्ति, प्राण, स्वास्थ्य प्रदान करते है और यह दिशा ही मित्रता और शत्रुता का आधार बनती है| वायव्य दिशा में दोष या जन्मपत्री में चंद्रमा के दूषित होने पर माता से संबंध में कटुता, मानसिक परेशानियां, अनिद्रा, दमा, श्वास रोग, कफ, सर्दी जकुाम, मूत्र रोग, स्त्रियों को मासिक धर्म संबंधी रोग, पित्ताशय की पथरी, निमोनिया आदि होने की सम्भावना बनती है|

ईशान कोण- ईशान दिशा का स्वामी है गुरु है यह पुरुष जाति का, पीतवर्ण आकाश तत्व वाला ग्रह है| ज्योतिष में इसके द्वारा पारलौकिक एवं आध्यात्मिक सुखों का विशेष रूप से विचार किया जाता है| वहीँ वास्तु में इसे शिव अर्थात सोम (दिन) का स्थान बताया गया है जो ज्ञान एवं विद्या के अधिष्ठाता हैं| वास्तु के अनुसार पूजा का स्थान ईशान कोण की ओर बनाना भी अतिशुभ रहता है| यह कोण धन, स्वास्थ्य ऐश्वर्य, वंश में वृद्धि कर उसे स्थायित्व प्रदान करने वाला है इस कोण को भवन में सदैव स्वच्छ एवं पवित्र रखना चाहिये| ईशान कोण में दोष और जन्मपत्री में गुरु के पीड़ित होने पर पूजा पाठ के प्रति विरक्ति, देवताओं, गुरुओं और ब्राह्मणों पर आस्था में कमी, आय में कमी, संचित धन में कमी, विवाह में देरी, संतानोत्पत्ति में देरी, मूर्च्छा, उदर विकार, कान का रोग, गठिया, कब्ज, अनिद्रा आदि कष्ट होने की सम्भावना रहती है|

इस प्रकार वास्तु और ज्योतिष के अनुसार सभी दिशाओं के स्वामी अलग अलग ग्रह और देवता होते है और उनका जीवन में अलग अलग प्रभाव उनकी स्थिति और भवन के वास्तु के अनुसार पडता है|

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