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नक्षत्र वर्गीकरण : मुख के आधार पर

मुख के आधार पर नक्षत्रों के तीन विभाग है !
अधोमुख, उर्ध्वमुख और तिर्यकमुख –

अधोमुख :- २ भरणी ,३ कृतिका,९ आश्लेषा, १० मघा, ११ पूर्वा फाल्गुनी, १६ विशाखा, १९ मूल,२० पूर्वा षाढा, २५ पूर्वा भाद्रपद !

अधोमुख नक्षत्रों में अधोगमन वाले कार्य करने चाहिए !
जैसे-बावड़ी, बोरिंग खोदना, गुफा व सुरंग बनाना, सड़कों पर भूमिगत, पारपथ बनाना, भूमिगत गृह बनाना,
खुदाई करना, गणित या ज्योतिष सीखना, खान में खुदाई शुरू करवाना, जुआं खेलना आदि !
अतः जिन कामों में ऊपर से निचे की ओर गति हो, वे सब करना ठीक रहता है!
जहज की लैंडिंग, पहाड़ से उतरना, नदी में छलांग लगाना, तैरना, आदि भी इनमे किये जा सकते है!

उर्ध्वमुख:- ४ रोहिणी, ६ आर्द्र ,८ पुष्य,१२ उत्तरा फाल्गुनी, २१ उत्तरा षाढा, २२ श्रवण, २३ धनिष्ठा, २४ शतभिषा, २६ उत्तरा भाद्रपद !

इनमे उन्नति के कार्य, ऊपर चढ़ने या आगे बढ़ने के काम करने चाहिए !
मंदिर निर्माण, भवन निर्माण, वायु यात्रा करना, याद करने वाले विषय पढना,
नौकरी शुरू करना, बड़े पद पर बैठना, शपथ, ग्रहण करना, राज तिलक, आदि
व अधोमुख के विपरीत काम करने चाहिए !

तिर्यकमुख :- १ अश्वनी, ५ म्रग्शिरा, ७ पुनर्वसु, १३ हस्त, १४ चित्र, १५ स्वाति, १७ अनुराधा, १८ ज्येष्ठा, २७ रेवती !

यह ९ तिर्यक मुखी नक्षत्र है ! इन नक्षत्रो में यात्रा करना, हल चलाना,
पशुओं और वाहन का क्रय- विक्रय आदि कार्य सिद्ध होते है !
इन्ही नक्षत्रों में पशुओं को प्रशिक्षित करना, मशीनरी चालू करना,
आदि कार्य भी सुयोग्य कहे गए है !

नक्षत्र वर्गीकरण : स्वाभाव के आधार पर –

संज्ञा या स्वाभाव के आधार पर नक्षत्रो को निम्न प्रकार से विभाजित किया जा सकता है!

१. ध्रुव (स्थिर) नक्षत्र :- ४ रोहिणी, १२ उत्तरा फाल्गुनी, २१ उत्तरा षाढा, २६ उत्तरा भाद्रपद !

इन नक्षत्रों में स्थिर कार्य करना चाहिए अर्थात वह कार्य जिनमे स्थिरता की जरुरत हो!
जैसे- ग्रह प्रवेश,बीज बोना, व्यपारारम्भ, ग्रहशांति आदि के कार्य, बाग़- बगीचा बनवाना,
धर्मशाला बनवाना, मंदिर बनवाना, गाना बजाना, कपडा पहनना, प्रेम करना,अलंकार
धारण करना,पदग्रहण करना आदि !

नोट- यदि कोई व्यक्ति स्थिर नक्षत्रों के कार्य चर नक्षत्रों या किन्ही और नक्षत्रों में करता है तो उसे हानी ही होती है!
उदाहरण के लिए आप ने चर में नए वस्त्र ख़रीदे या कोई मकान बनवाया तो बार बार वस्त्रों को और मकान को बदलना पड़ेगा!
ऐसा नहीं है की मकान फिर से बनवाना पड़ेगा, हाँ यह भी हो सकता है की मकान में ही फेर बदल करते रहना पड़े !
क्योंकि चर का स्वाभाव ही चलायमान है!
अतः वह कार्य जिनमे मन को स्थिर रखना हो इन्ही नक्षत्रों में करने चाहिए !

२. चल (चर) नक्षत्र:- ७ पुनर्वसु, १५ स्वाति, २२ श्रवण, २३ धनिष्ठा, २४ शतभिषा!
इनमे सवारी करना, यात्रा, मंत्र सिद्धि, हल चलाना, वाहनों को खरीदना, आदि शुभ है!
वह कार्य जिनमे मन को चलायमान रखना हो इन्ही नक्षत्रों में करने चाहिए !

३. उग्र (क्रूर) नक्षत्र:-२ भरणी, १० मघा, ११ पूर्वा फाल्गुनी, २० पूर्वा षाढा, २५ पूर्वा भाद्रपद !
इनमे उग्र कार्य करना अच्छा होता है!
जैसे- तांत्रिक प्रयोग, जहर देना, आग लगाना, मुकद्दमा, दायर करना, शत्रु पर आक्रमण, संधि कार्य, चतुराई चालाकी के काम आदि !

४.साधारण (मिश्र) नक्षत्र :- ३ कृतिका, १६ विशाखा !
इनमे सामान्य कार्य, अग्नि कार्य और उग्र नक्षत्र के कार्य भी किये जा सकते है !

५.क्षिप्र (लघु) नक्षत्र:- १ अस्वनी, ८ पुष्य, १३ हस्त, २८ अभिजित !
इनमे व्यपारारम्भ, स्त्री-पुरष से मैत्री, साँझा, ज्ञान प्राप्ति, खेलना,औषधि तैयार करना,
चित्रकारी, शिल्पकारी,आदि कार्य करना लाभकारी होता है !
इसमें चर नक्षत्रों के काम भी किये जा सकते है!

६.मृदु (मैत्र ) नक्षत्र :- ५ मृगशिरा , १४ चित्रा, १७ अनुराधा, २७ रेवती !
इनमे सभी मित्रता पूर्ण और कोमल कार्य करने चाहिए !
जैसे-गीत गाना, नाटक करना, खेल-कूद, चित्र बनना आदि !

७. तीक्ष्ण (दारुण ) नक्षत्र :- ६ आदर, ९ आश्लेषा, १८ ज्येष्ठा, १९ मूल !
इनमे उग्र कार्य, फूट डालना, प्रहार करना, भूत-प्रेत बाधा निवारण, जादू टोना आदि
करना ठीक होता है ! केवल नेक कार्य के लिए।

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