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जन्मपत्रिका में राहु -केतु द्वारा निर्मित शुभाशुभ योग
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१ अष्ट लक्ष्मी योग👉 जन्मांग में राहु छठे स्थान में और वृहस्पति केंद्र में हो तो अष्ट लक्ष्मी योग बनता हैं। इस योग के कारण जातक धनवान होता हैं और उसका जीवन सुख शांति के साथ व्यतीत होता हैं।

२ मोक्ष योग👉 जन्मांग में वृहस्पति और केतु का युति दृष्टि सम्बन्ध हो तो मोक्ष योग होता हैं। यदि केतु गुरु की राशी और वृहस्पति उच्च राशी कर्क में हो तो मोक्ष की सम्भावना बढ़ जाती हैं।

३ परिभाषा योग👉 तीसरे छठे, दसवे या ग्यारहवे भाव में राहु शुभ होकर स्थित हो तो परिभाषा योग का निर्माण करता हैं। ऐसा राहु जातक को कई प्रकार की परेशानियों से बचा लेता हैं। इनमे स्थित राहु दुसरे ग्रहों के अशुभ प्रभाव को भी कम करता हैं।

४👉 अरिष्ट भंग योग👉 मेष ,वृष या कर्क लग्न में राहु नवम, दशम या एकादश भाव में स्थित हो तो अरिष्ट भंग योग बनता हैं जो अपने नाम के अनुसार ही कई प्रकार के अरिष्टो का नाश करता हैं।

५ लग्न कारक योग👉 यदि लग्नेश अपनी उच्च राशी या स्वराशी में हो और राहु लग्नेश की राशी में स्थित हो तो लग्न कारक योग बनता हैं। यह योग भी जातक को शुभ फल प्रदान करता हैं।

६ कपट योग👉 जन्मांग में चौथे भाव में शनि और बारहवे भाव में राहु हो तो कपट योग बनता हैं ऐसे जातक पर विश्वास सोच समझकर करना चाहिए।

७ पिशाच योग👉 लग्न में चन्द्र और राहु स्थित हो तो पिशाच योग बनता हैं। ऐसे जातको को नजर दोष ,तंत्र कर्म ,उपरी बाधा के कारण परेशानी होती हैं इन्हे योग्य ज्योतिषाचार्य का परामर्श अवश्य समय रहते प्राप्त कर लेना चाहिए।

८ काल सर्प योग👉 जब राहु और केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाये तो काल सर्प योग बनता हैं। यह योग ज्यादातर कष्ट कारक होता हैं २० प्रतिशत यह योग विशेष ग्रह स्थितियों के कारण शुभ फल भी देता हैं।

९ राहु और चन्द्र की युति से चन्द्र ग्रहण योग👉 होने पर चन्द्र मन और कल्पना का कारक होकर पीड़ित होता हैं तब जातक का मन किसी कार्य में नहीलगेगा तो पतन निश्चित हैं ऐसे जातक मानसिक रोग, पागलपन के शिकार भी होते हैं। सूर्य ग्रहण होने पर जातक आत्मिक रूप से परेशां रहता हैं। जातक को राजकीय सेवा में परेशानी रहती हैं और जातक को पिता की तरफ से भी परेशानी रहती हैं।

१० मंगल राहु का योग होने पर👉 जातक की तर्क शक्ति प्रभावित रहती हैं। ऐसा जातक आलसी भी होता हैं जिससे प्रगति नही कर पाता ऐसा जातक हिंसक भी होता हैं अपने क्रोध पर ये नियंत्रण नही कर पाते इनमे वासना भी अधिक रहती हैं।

११ बुध राहु का योग होने पर👉 जड़त्व योग का निर्माण होता हैं यदि बुध कमजोर भी हो तो बोध्धिक कमजोरी के कारण प्रगति नही कर पायेगा इस योग वाला जातक सनकी ,चालाक होता हैं कई बार ऐसे जातक भयंकर बीमारी से भी पीड़ित रहते हैं।

१२ गुरु राहू का योग होने पर चांडाल योग👉 का निर्माण होता हैं। गुरु ज्ञान और पुण्य का कारक हैं। यदि जातक शुभ प्रारब्ध के कारण सक्षम होगा तो अज्ञान और पाप प्रभाव के कारण शुभ प्रारब्ध के फल को स्थिर नही रख पायेगा जातक में सात्विक भावना में कमी आ जाती हैं।

१३ शुक्र राहू योग👉 से अमोत्वक योग का निर्माण होता हैं। शुक्र को प्रेम और लक्ष्मी का कारक माना जाता हैं। प्रेम में कमी और लक्ष्मी की कमी सभी असफलताओ का मूल हैं ऐसे जातक में चारित्रिक दोष भी रहता हैं।

१४ शनि राहू योग👉 से नंदी योग बनता हैं। शनि राहू दोनों पृथकता करक ग्रह हैं। इसीलिए इनका प्रभाव जातक को निराशा की और ले जायेगा।


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