Phone

9140565719

Email

mindfulyogawithmeenu@gmail.com

Opening Hours

Mon - Fri: 7AM - 7PM

विभिन्न औषधियों से उपचार:-

1. धनिये :- धनिये को पीसकर शरीर में जहां पर मस्सें और तिल हो वहां पर लगाने से दोनों समाप्त हो जाते हैं।

2. सिरका :- सिरके में सीप की राख को मिलाकर मस्सों पर लगाने से मस्सें मिट जाते हैं।

मोर की बीट को सिरके में मिलाकर मस्सों पर लगाने से मस्सें समाप्त हो जाते हैं।

3. सेब :- खट्टे सेब के रस को मस्सों पर लगाने से मस्सें कट-कटकर जड़ से खत्म हो जाते हैं।

4. एरण्ड का तेल :- एरण्ड के तेल में कपड़ा भिगोकर मस्सें पर बांधने से मस्सें कुछ ही समय में मिट जाते हैं।

चेहरे या पूरे शरीर पर तिल, धब्बें या भूरे-भूरे दाग (लीवर स्पोंटस) हो या गाल या त्वचा पर छोटी-छोटी गिल्टियां (गांठे), सख्त गुठलियां निकलने पर इन पर रोजाना दिन में 2 से 3 बार लगातार एरण्ड के तेल की मालिश करने से धीरे-धीरे यह सब समाप्त हो जाते हैं। एरण्ड का तेल लगाने से जख्म भी भर जाते हैं और इसको मस्सों पर लगाने से मस्सा ढीला होकर गिर जाता है।

एरण्ड के तेल को सुबह और शाम 1-2 बूंद हल्के हाथ से मस्सें पर मलने से 1 सें 2 महीनों में ही मस्से ठीक हो जाते हैं।

5. तिधारा थूहर :- तिधारा थूहर (तिधारा पसीज) का दूध मस्सों पर लगाने से मस्सें खुद ही गिरकर ठीक हो जाते हैं।

6. प्याज :- जंगली प्याज के चूर्ण को मस्सों पर मलने से मस्सें ठीक हो जाते हैं।
प्याज के रस को मस्सों पर लगाने से मस्से समाप्त हो जाते हैं।

7. कलमीशोरा :- घोड़े का बाल लेकर उससे मस्सें को काट दें और फिर उस पर कलमीशोरा को नींबू के रस में पीसकर लगाने से आराम आता है।

8. थूहर :- थूहर (मुठिया, सीज) के कांटे का दूध चर्मकील, मस्सों पर लगाने से मस्से खुद ही ठीक होकर गिर जाते हैं।

9. भिलावा :- भिलावे के तेल को मक्खन में मिलाकर सुई की नोक से मस्सों पर लगाने से मस्सें कुछ ही समय में मिट जाते हैं।

10. अदरक :- अदरक के एक छोटे से टुकड़े को काटकर छील लें और उसकी नोक बना लें। इसके बाद मस्सें पर थोड़ा सा चूना लगाकर अदरक की नोक से धीरे-धीरे घिसनें से मस्सा बिना किसी ऑपरेशन के कट जायेंगा और त्वचा पर कोई निशान भी नहीं पडे़गा। बस शुरू में थोड़ी सी सूजन आयेगी।

11. सज्जीखार :- 5-5 ग्राम सज्जीखार, चूना और कपड़े धोने के साबुन को पानी के साथ पीसकर मस्से पर लेप करने से मस्सा गल जाता है और किसी चीज से खींचने से बाहर आ जाता है।

12. सज्जी :- सज्जी (पापड़ बनाते समय उसमे प्रयोग की जाने वाली) को पत्थर पर पानी के साथ चंदन की तरह पीसकर मस्से पर रोजाना दिन में 2 बार लगाने से सिर्फ 14 दिनों में मस्सा कटकर गिर जाता है।

13. प्याज :- प्याज का रस लगाने से मस्सा कुछ ही दिनों में समाप्त हो जाता है।
प्याज को नमक के साथ पीसकर और मस्से पर पट्टी की तरह बांधने से या लगाने से मस्सा जल्दी ठीक हो जाता है।

14. चूना :- पान के डंठ़ल पर चूना लगाकर मस्से की जड़ पर लगाने से सिर्फ 7 दिनों में ही मस्सा बिल्कुल साफ हो जाता है।

15. राई:- ऐसे मस्से जिनमें खुजली होती हो, जो देखने में मोटे हो और छूने पर उनमें दर्द न होता हो बल्कि अच्छा महसूस होता हो तो ऐसे मस्सों पर राई का तेल लगाने से यह कुछ ही समय में ठीक हो जाते हैं।

16. हल्दी:- हल्दी की गांठ को अरहर की दाल में पकायें। फिर छाया में सुखाकर, गाय के घी में पीसकर मस्सों पर उसका लेप करें। इससे मस्से नर्म होकर दूर हो जाते हैं।

17. मालकांगनी :- 1 बताशे में मालकांगनी के बीजों को पानी में पीसकर बनी लुगदी (पेस्ट) को मस्सों पर लगाते रहने से मस्से कुछ ही दिनों में ठीक हो जाते हैं।
🌹हवा और आरोग्य🌹

🌻हवा का प्रभाव उसकी गति व दिशा के अनुसार स्वास्थ्य तथा वातावरण आदि पर पड़ता है। अत्यधिक खुली हवा शरीर में रूक्षता उत्पन्न करती है, वर्ण बिगाड़ती है, अंगों को शिथिल करती है, पित्त मिटाती है, पसीना दूर करती है। जहाँ हवा का आवागमन न हो वह स्थान उपरोक्त गुणधर्मों से विपरीत प्रभाव डालता है।

🌹ग्रीष्म ऋतु में इच्छानुसार खुली हवा का सेवन करें व शरद ऋतु में मध्यम हवा हो ऐसे स्थान पर रहें। आयु और आरोग्य की रक्षा हेतु जहाँ अधिक गति से हवा नहीं बहती हो, ऐसे मध्यम हवायुक्त स्थान पर निवास करें। यह सदैव हितकर है।

निर्वातमायुषे सेव्यमारोग्याय च सर्वदा।

(भावप्रकाश)

🌹भिन्न-भिन्न दिशाओं से आने वाली हवा का स्वास्थ्य पर प्रभाव

🌻पूर्व दिशा की हवाः भारी, गर्म, स्निग्ध, दाहकारक, रक्त तथा पित्त को दूषित करने वाली होती है। परिश्रमी, कफ के रोगों से पीड़ित तथा कृश व दुर्बल लोगों के लिए हितकर है। यह हवा चर्मरोग, बवासीर, कृमिरोग, मधुमेह, आमवात, संधिवात इत्यादि को बढ़ाती है।

🌻दक्षिण दिशा की हवाः खाद्य पदार्थों में मधुरता बढ़ाती है। पित्त व रक्त के विकारों में लाभप्रद है। वीर्यवान, बलप्रद व आँखों के लिए हितकर है।

🌹पश्चिम दिशा की हवाः तीक्ष्ण, शोषक व हलकी होती है। यह कफ, पित्त, चर्बी एवं बल को घटाती है व वायु की वृद्धि करती है।

🌹उत्तर दिशा की हवाः शीत, स्निग्ध, दोषों को अत्यन्त कुपित करने वाली, स्निग्धकारक व शरीर में लचीलापन लाने वाली है। स्वस्थ मनुष्य के लिए लाभप्रद व मधुर है।

🌻अग्नि कोण की हवा दाहकारक एवं रूक्ष है। नैऋत्य कोण की हवा रूक्ष है परंतु जलन पैदा नहीं करती। वायव्य कोण की हवा कटु और ईशान कोण की हवा तिक्त है।

🌹ब्राह्म मुहूर्त (सूर्योदय से सवा दो घंटे पूर्व से लेकर सूर्योदय तक का समय) में सभी दिशाओं की हवा सब प्रकार के दोषों से रहित होती है। अतः इस वेला में वायुसेवन बहुत ही हितकर होता है। वायु की शुद्धि प्रभातकाल में तथा सूर्य की किरणों, वर्षा, वृक्षों एवं ऋतु-परिवर्तन से होती है।

🌻पंखे की हवा तीव्र होती है। ऐसी हवा उदानवायु को विकृत करती है और व्यानवायु की गति को रोक देती है, जिससे चक्कर आने लगते हैं तथा शरीर के जोड़ों को आक्रान्त करने वाली गठिया आदि रोग हो जाते हैं।

🌻खस, मोर के पंखों तथा बेंत के पंखों की हवा स्निग्ध एवं हृदय को आनन्द देने वाली होती है।

🌹अशुद्ध स्थान की वायु का सेवन करने से पाचन-दोष, खाँसी, फेफड़ों का प्रदाह तथा दुर्बलता आदि दोष उत्पन्न हो जाते हैं। प्रत्येक स्वस्थ व्यक्ति अपनी नासिका की सिधाई में 21 इंच की दूरी तक की वायु ग्रहण करता है और फेंकता है। अतः इस बात को सदैव ध्यान में रखकर अशुद्ध स्थान की वायु के सेवन से बचना चाहिए।

🌻जो लोग अन्य किसी भी प्रकार की कोई कसरत नहीं कर सकते, उनके लिए टहलने की कसरत बहुत जरूरी है। इससे सिर से लेकर पैरों तक की करीब 200 मांसपेशियों की स्वाभाविक ही हलकी-हलकी कसरत हो जाती है। टहलते समय हृदय की धड़कन की गति 1 मिनट में 72 बार से बढ़कर 82 बार हो जाती है और श्वास भी तेजी से चलने लगता है, जिससे अधिक आक्सीजन रक्त में पहुँचकर उसे साफ करता है।

🌻टहलना कसरत की सर्वोत्तम पद्धति मानी गयी है क्योंकि कसरत की अन्य पद्धतियों की अपेक्षा टहलने से हृदय पर कम जोर पड़ता है तथा शरीर के एक दो नहीं बल्कि सभी अंग अत्यंत सरल और स्वाभाविक तरीके से सशक्त हो जाते हैं।

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉
🌹स्वास्थ्यरक्षक दैवी उपाय🌹

🌹रात को देर से भोजन नहीं करना चाहिए | जितना देर से भोजन करोगे उतना अम्लपित्त, अजीर्ण होता है | सुबह-शाम खाली पेट वज्रासन में बैठो, श्वास बाहर निकाल दिया और पेट को २५ बार अंदर-बाहर किया | मन में अग्निदेव के बीजमंत्र ‘रं – रं….’ का जप किया, फिर श्वास ले लिया | ऐसा ५ बार करो, कितनी भी मंदाग्नि हो, अम्लपित्त हो और कंधे आदि में दर्द होता हो, सब अपने-आप दूर हो जाता है |

🌻कैसी भी बीमारी हो, सूर्यनारायण को अर्घ्य दें और अर्घ्य दी हुई गीली मिट्टी का तिलक करें और बचा हुआ थोडा-सा जल हाथ में ले के चिंतन करें : ‘ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम: | ॐ आरोग्यप्रदायकाय सूर्याय नम: | ( यह बीजसंयुक्त मंत्र है | ) मेरे आरोग्य की रक्षा करनेवाले सूर्य भगवान की मैं उपासना करता हूँ, यह जल पान करता हूँ |’ और उस पानी को पी लें | फिर नाभि में सूर्यनारायण का ध्यान करें, स्वास्थ्य-मंत्र जपें और बल का चिंतन करें |

Recommended Articles

Leave A Comment