अतीस के लाभ
विभिन्न भाषाओं में नाम :
अंग्रेजी इंडियन ऐटिस
संस्कृत अतिविशा, विश्वा, शुक्लकन्दा
हिंदी . अतीस
गुजराती अतबखनी, कलीबखमो, अतिविष
मराठी अतिविष
बंगाली आतईच
पंजाबी अतीस, चितीजड़ी,बतीस
फारसी बज्जीतुरकी
तेलगू अतिविषा, अतिबासा
अतीस के पेड़ भारत में हिमालय प्रदेश के पश्चिमोत्तर भाग में 15 हजार फुट की ऊंचाई तक पाये जाते हैं। इसके पेड़ों की जड़ अथवा कन्द को खोदकर निकाल लिया जाता है, उसी को अतीस कहते हैं। कन्द का रंग भूरा और स्वाद कुछ कषैला होता है। इसकी छाल कपड़े रंगने के काम में आती है। इसकी तीन जातियां है- काली, सफेद और पीली। औषधियों में सफेद रंग की अतीस का ही उपयोग होता है।
अतीस बहुत ही कड़वा होता है। बच्चों के बुखार पर यह एक उत्तम औषधि है। छोटे बालकों की दवाइयों में इसका उपयोग बहुत होता है। बालकों की घुटी (बालघुटी) में अतीस एक मुख्य औषधि है। इस बूटी की विशेषता यह है कि यह विष वत्सनाभ कुल की होने पर भी विषैली नहीं है। इसके ताजे पौधों का जहरीला अंश केवल अतिसूक्ष्म जीव जन्तुओं के लिए प्राणघातक है। इसका विषनाशक प्रभाव भी इसके सूख जाने पर अधिकांशत: उड़ जाता है। छोटे-छोटे बच्चों को भी यह निर्भयता से दी जा सकती है। परंतु इसमें एक दोष है कि इसमें दो महीने बाद ही घुन लग जाता है।
बाहरी स्वरूप :
अतीस के पौधे 1-4 फुट ऊंचे, शाखाएं चपटी और एक पौधे में एक ही तना होता है, जिस पर अनेक पित्तयां लगी होती हैं। निचले भाग में पत्ते सवृन्त, तश्तरी नुमा, 2-4 इंच लम्बे गोल तथा 5 खंडों से युक्त होते हैं। इसके फूल चमकीले नीले या हरित नीले और देखने में फन के आकार की टोपी की तरह होते हैं। इन पर बैगनी रंग की शिरायें होती हैं। इसका मूल द्विवर्षायु जिनमें एक नया और एक पुराना दो कन्द होते हैं। औषधियों हेतु इन्ही कन्दाकार जड़ों का व्यवहार अतीस के नाम से होता है।
रंग : भूरा अंदर सफेद।
स्वाद : कडुवा।
प्रकृति : अतीस की तासीर गर्म होती है।
मात्रा : अतीस का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से एक ग्राम तक।
हानिकारक प्रभाव :
अतीस का अधिक मात्रा में उपयोग आमाशय और आंतों के लिए हानिकारक होता है, अत: इसके हानिकारक प्रभाव को नष्ट करने हेतु शीतल वस्तुओं का सेवन करना चाहिए।
गुण :
अतीस भोजन को पचाती है, धातु को बढ़ाती है, दस्तों को बंद करती है, कफ को नष्ट करती है वायु का नाश करके जलोदर और बवासीर में लाभ करती है। इसके साथ ही यह पित्तज्वर आमातिसार, खांसी, श्वास और विषनाशक है।
रासायनिक संघटन :
अतीस में अतिसीन नामक एमारुस ऐल्केलाइड पाया जाता है जो स्वाद में अत्यंत तीखा होता है। इसके अलावा एकोनीटिक एसिड, टेनिक एसिड, पेक्टस तत्व, स्टार्च, वसा तथा शर्करा भी पायी जाती है।
विभिन्न रोगों में प्रयोग :
बालकों के बुखार, श्वास, खांसी और वमन पर :
अतीस का चूर्ण शहद में मिलाकर स्थिति के अनुसार बालकों को बुखार, दमा, खांसी और उल्टी होने पर देना चाहिए।
अतीस और नागरमोथे के चूर्ण को शहद में मिलाकर बच्चों को सेवन कराने से बुखार और उल्टी में आराम मिलता है।
पित्त के अतिसार पर : अतीस, कुटकी की छाल और इन्द्रजव के चूर्ण को शहद में मिलाकर चटाना चाहिए। इससे पित्त के कारण उत्पन्न अतिसार ठीक हो जाता है।
बच्चों के आमतिसार (दस्त) पर : सोंठ, नागरमोथा और अतीस का काढ़ा देना चाहिए।
बच्चों के सभी प्रकार के अतिसार पर : अतीस का चूर्ण गुड़ अथवा शहद में मिलाकर देना चाहिए।
संग्रहणी (पेचिश) :
अतीस, सोंठ और गिलोय का काढ़ा बनाकर सेवन करने से संग्रहणी ठीक हो जाती है।
अतीस, नागरमोथा और काकड़ासिंघी का कपड़छन किया हुआ चूर्ण बराबर-बराबर लेकर दिन में तीन बार शहद में मिलाकर देना चाहिए। बच्चों की उम्र के अनुसार यह चूर्ण प्रत्येक बार लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग तक देना चाहिए। बच्चों के बुखार और खांसी के लिए भी यह उत्तम प्रयोग है।
दस्त पतला, श्वेत, दुर्गन्धयुक्त हो तो अतीस और शुंठी 10-10 ग्राम दोनों को कूटकर 2 लीटर पानी में पकायें, जब आधा शेष रह जाये तब इसे लवण से छोंककर, फिर इसमें थोड़ा अनार का रस मिला दें। इसे दिन में थोड़ा-थोड़ा करके दिन में 3-4 बार पिलाने से संग्रहणी और आम अतिसार में लाभ होता है।
पारी से आने वाले बुखार पर : अतीस का कपड़छन किया हुआ चूर्ण एक-एक ग्राम दिन में चार बार पानी के साथ देना चाहिए।
मकड़ी, बिच्छू, मधुमक्खी का विष : अतीस की जड़ का चूर्ण बराबर की मात्रा में चूना मिलाकर पानी में घिसकर लेप बनाएं और दंश पर लगायें। इससे मकड़ी, बिच्छू और मधुमक्खी के जहर, जलन और सूजन में तुरंत आराम मिलेगा।
मलेरिया : अतीस का चूर्ण 1 ग्राम और 2 कालीमिर्च पीसकर इसकी एक मात्रा दिन में 3-4 बार पानी से सेवन करायें।