. देशी घी की जानकारी कम शब्दों में
एक वर्ष रखा हुआ घी पुराना कहलाता है ।कोई कोई बैद्य लिखते है कि 10 वर्ष का रखा हुआ घी पुराना कहलाता है । 100 वर्ष और 1000 वर्ष का रखा हुआ घी क्रौंच कहलाता है ।और 1000 हजार वर्ष से पुराना घी महाघृत कहलाता है । घी जितना अधिक पुराना होगा उतना ही गुणकारी। मूर्च्छा, कोढ़, उन्माद,मृगी,तिमिर,कान के रोग, नेत्र के रोग , सिर दर्द, सूजन, योनि – रोग, बबासीर,गोला, और पीनस रोग में पुराना घी बहुत ही लाभदायक होता है । यह घाव भरता है , कीड़े नष्ट करता है , त्रिदोष शामक है पुराना घी गुदा में पिचकारी लगाने और सुंघाने के काम आता है ।
सौ बार का धोया घी– घाव , खुजली, और फोड़े फुंसी,एवं रक्त विकार में बहुत लाभदायक है । 1000 बार धुला हुआ घी 100 बार के धुले हुए घी से भी उत्तम होता है शरीर मे दाह और मूर्च्छा में यह बड़ा अच्छा काम करता है।
घी धोने की बिधि– जब घी को धोना हो तो तब घी को पीतल या काँसी की थाली में रख लो । उसे हाथ से फेंटते जाए हर बार नया पानी डालते जाए और पहले बाला पानी फेकते जाए । जितने बार धोना हो उतनी बार पानी से धोएं ।
गाय का घी– आंखों के रोग के लिए गाय का घी सबसे अधिक फायदेमंद है ।गाय का घी तागतवर ,अग्निदीपक , पचने पर मीठा , वात , पित्त, तथा कफ नाशक होता है बुद्धि , ओज, सुंदरता , कांति और तेज बढाने वाला होता है । उम्र की बृद्धि करने बाला भारी , पवित्र , सुगन्ध युक्त रसायन और रुचिकारक होता है । सब प्रकार के घृत कक अपेक्षा गाय का घी अच्छा होता है ।
भैंस का घी– भैस का घी मीठा ,ठंडा, कफ करने वाला तागतवर, भारी ,पचने पर मीठा होता है यह घी पित्त , खून – फिसाद और बादी को बढ़ाता है।
बकरी का दूध– बकरी का घी अग्निकारक , आंखों के लिए फायदेमंद , बल बढाने वाला और पचने पर चरपरा होता है । खांसी स्वांस और क्षय रोग में बकरी का घी विशेषतः लाभदायक होता है।
नौनी घी– यह घी स्वाद में सब तरह के घृतों से अच्छा होता है यह घी शीतल, हल्का, अग्निदीपक, और मल को बांधने बाला होता है ।