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◆यह छह लक्षण जिसके पास है वही उत्तम शिष्य है कौन से हैं वे लक्षण सुनिए

तीव्र गुरु भक्ति के शक्तिशाली शस्त्र से मन को दूषित करने वाली आसक्ति को मूल सहित काट ना दिया जाए तब तक विषयों का संग त्याग देना चाहिए।

आदर्श शिष्य के लक्षण का वर्णन करते हुए ऋषियों ने कहा,

अलुब्धः स्थिर गात्रश्च आज्ञाकारी जितेंद्रिय।
एवं भितु भवेत् शिष्यः ईतरों दुख कृत कुरु।।

प्रथम लक्षण आदर्श शिष्य के अलुब्ध जो लोभी ना हो।
दूसरा लक्षण ऋषियों ने कहा स्थिर गात्रः अर्थात जिसका गात्र स्थिर हो जिसका शरीर स्थिर हो जिसके शरीर में चंचलता न हो। क्योंकि शरीर चंचल होता है तो उस पर मन की चंचलता का बहुत आधार है। इसलिए महात्मा लोग एक आसन पर बैठ जाते थे एक प्रदेश में बैठ जाते थे।
शरीर की चंचलता से मन की चंचलता का आधार है। गुरु के पास जब शिष्य जाए तब जो आज्ञा मिले उसका पालन करें। खड़े रहो तो खड़े रहे, बैठ जाओ तो बैठ जाए। फिर आंखें इधर-उधर नहीं देखे। विद्या जिसको प्राप्त करनी है ,ज्ञान जिसको प्राप्त करना है उसको ऐसे रहना चाहिए। न हड़बड़ी न कुछ उत्पाद, गुरु के पास शांत रहो।

तीसरा लक्षण आदर्श शिष्य की आज्ञाकारी कबीर जी कहते हैं गुरु की आज्ञा आए गुरु की आज्ञा जाए कह कबीर संत है आवागमन नशा है ।
गुरू ने जो आज्ञा दी उसका नखशिख पालन। नखशिख पालन यानी कोई तर्क नहीं। कई लोग हाथ जोड़कर गुरु के समक्ष खड़े रहते हैं कि आप जो कहो सो हम करें। फिर जब गुरू कुछ आज्ञा करते है तब कहते हैं कि इसे ऐसा करें तो कैसा रहेगा फिर अपना सुझाव देने लगेंगे। नहीं… जो बिना तर्क आज्ञा का पालन करें वही आज्ञाकारी और समझकर सावधानी से सम्यक रूप से गुरु ने जिस अर्थ में कहा उसको पकड़ कर आज्ञा का पालन करें। वरना ना समझने के कारण भी शिष्य गड़बड़ करता है । गुरु को जब सुनो तब बहुत सावधानी से सुनो और आज्ञा दे उस समय तो बहुत ध्यान से सुनना।

आदर्श शिष्य का चौथा लक्षण है जितेंद्रिय शिष्य वह है जो जितेंद्रिय हो एक बार गुरु के पास जाने के बाद वह इंद्रियों को धीरे-धीरे नियंत्रण में रखने का अभ्यास करें। मै किसका शिष्य हूँ, मेरे गुरु कौन है यह बात सदैव ध्यान रखें।
मैं अब ऐसे नहीं देख सकता मेरी दृष्टि कुदृष्टि नहीं हो सकती, मैं किसी को द्वेष भाव से कैसे देख सकता हूं? अब मैं किसी की निंदा नहीं कर सकता। अब मैं किसी के अपवाद में नहीं जा सकता। अभ्यास से धीरे-धीरे इस प्रकार गंभीरता पूर्वक अपनी इंद्रियों को जीतने की चेष्टा करनी चाहिए।

हमारे देश में यह घटना बहुत अच्छी घटी है कि, समर्पित शिष्य जो हुए हैं वे शरीर से भी करीब करीब गुरु का चिंतन करते करते गुरु जैसे ही हो गए हैं। कबीर के शिष्यों को देखो तो करीब-करीब कबीर जैसे ही लगने लगे थे। नानक देव के शिष्य नानक जैसे लगने लगे थे। भगवान शंकराचार्य के शिष्य देखने में ही लगते थे कि शंकर ही है। स्वामी विवेकानंद.. एकरूपता आ जाती है ऐसी जितेंद्रियता हो जाए शिष्य में कि गुरु से एकरूपता स्थापित हो जाए।

आदर्श शिष्य का पाँचवा लक्षण है आस्तिक शिष्य आस्तिक होना चाहिए। श्रद्धावान होना चाहिए उसके मन में आस्था होनी चाहिए निष्ठा होनी चाहिए।
व्यक्ति की आस्था, निष्ठा यही मूल है आध्यात्मिक मार्ग का …भक्ति उसका फूल है।
वृक्ष पर जब फूल लग जाता है तो हिलता है लेकिन मूल कभी नहीं हिलता वह स्थिर होता है। वैसे ही निष्ठा हिलने नहीं चाहिए। उसके द्वारा मिली हुई भक्ति का फूल तो झूलेगा, नाचेगा, कीर्तन करेगा। एक मजबूत आस्तिक भाव यह आदर्श शिष्य का लक्षण है।

छठा लक्षण है दृढ़ भक्त शिष्य के मन में दृढ़ भक्ति होनी चाहिए किसके प्रति कि गुरु के प्रति.. गुरु दिए हुए मंत्र के प्रति… गुरु के दिए हुए उपदेशों के प्रति।
गुरूभक्ति हो मंत्रभक्ति हो और देवभक्ति हो पूरी दृढ़ता हो इन भक्ति में ।
मंत्र जाप करें तो यह मंत्र मेरे गुरुदेव ने दिया है… पूरी आस्थिक भावना, पूरी निष्ठा एवं भीतू भवेत् शिष्य इतरो दुख कृत गुरुः इतने लक्षण जिसमे हो वही शिष्य बनने के लायक है। इससे जो विपरीत है वह तो गुरु को दुख देने वाला है। इतरो दुख कृत गुरु वह तो गुरु को पीड़ा देता है, संताप देता है ।

ये सब लक्षण शिष्यों के लिए ग्रंथों में आए हैं। यदि शिष्य मे यह छह लक्षण ना हो तो इसमें डरने की बात नहीं है।
उस शिष्य को जिनमें ये लक्षण ना हो अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पित भाव रखना चाहिए। अपने गुरु के आश्रय में चले जाना चाहिए।
तो चंद्रः सर्वत्र वंद्यते
लेकिन उसके लिए भी यह लायकी भी चाहिए कि मात्र गुरु का ही आश्रय हो।
मिट्टी की तरह कुर्बानी मिट्टी की तरह शरणागति हो।
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