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डमरू

काल के महाकाल शिवशंभू के हाथ में दिखाई देने वाला साधारण सा डमरू संपूर्ण ब्रह्मांड को अपनी ताल पर नचा कर विध्वंस और सृजन करने की क्षमता रखता है!
क्या आपने कभी डमरू की वो ‘ डमक-डम-डम-डमक ‘ सुनी है जो दिल के भीतर उतर कर हमें उल्लास और चेतना से भर देती है?
यदि सुनी है तो आपने यह भी महसूस किया होगा कि यह एक ऐसी ध्वनि है जो अन्य बाकी सभी ध्वनियों से परे है। इस ध्वनि को एक ऐसा संगीत भी कहा जा सकता है जो बाकी सभी संगीतों से अलग है!
डमरू की आवाज़ को यदि ध्यान से सुनें तो आपको महसूस होगा कि इसकी यह आवाज़ हमारे पेट में कंपन कर हमारी सभी सुप्त इंद्रियों को जागृत करने की क्षमता रखती है !
विकिपीडिया के अनुसार, डमरु हिन्दू धर्म व तिब्बती बौद्ध धर्म में शिव का प्रतीक है और बहुत धार्मिक महत्व रखता है। भारतीय और तिब्बती साधुओं के पास डमरू पाया जाता है |
तिब्बती भाषा में भी इसे ‘डमरु’ ही कहते हैं और ‘ཌཱ་མ་རུ’ लिखा जाता है। भारत में इसे डुगडुगी भी कहा जाता है
भालू या बंदर जैसे जानवरों को नचाने वाले कलाकार अक्सर डुगडुगी का प्रयोग किया करते हैं, जिन्हें मदारी कहते हैं।
शंकु आकार के बने इस ढोल के बीच के तंग हिस्से में एक रस्सी बंधी होती है जिसके पहले और दूसरे सिरे में पत्थर या कांसे का एक-एक टुकड़ा लगाया जाता है। जब डमरू को बीच में से पकड़कर हिलाया जाता है तो यह डला (टुकड़ा) पहले एक मुख की खाल पर प्रहार करता है और फिर उलटकर दूसरे मुख पर, जिससे ‘डुग-डुग’ की आवाज उत्पन्न होती है। इसीलिए इसे डुगडुगी भी कहते हैं।
जब डमरू बजता है तो उसमें से 14 प्रकार के विभिन्न स्वर निकलते हैं। पुराणों में इसे मंत्र माना गया। ये स्वर है:- ‘अइउण्, त्रृलृक, एओड्, ऐऔच, हयवरट्, लण्, ञमड.णनम्, भ्रझभञ, घढधश्, जबगडदश्, खफछठथ, चटतव, कपय्, शषसर, हल्।
उक्त आवाजों में ही सृजन और विध्वंस दोनों के ही स्वर छिपे हुए हैं।
हिंदु वेद-पुराणों के अनुसार भगवान शिव के डमरू से कुछ अचूक और चमत्कारी मंत्र निकले थे। कहते हैं कि यह मंत्र कई बीमारियों का इलाज कर सकते हैं। कोई भी कठिन कार्य हो शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है। उक्त मंत्र या सूत्रों के सिद्ध होने के बाद जपने से सर्प, बिच्छू के काटे का जहर उतर जाता है। ऊपरी बाधा हट जाती है। माना जाता है कि इससे ज्वर, सन्निपात आदि को भी उतारा जा सकता है।
डमरू की ध्वनि जैसी ही एक ध्वनि हमारे भीतर भी बजती रहती है। इसे अ, उ और म या ‘ओम’ कहते हैं। हृदय की धड़कन और ब्रह्मांड की आवाज में भी डमरू के स्वर मिले हुए हैं। वेबदुनिया की रिसर्च अनुसार डमरू की आवाज लय में सुनते रहने से मस्तिष्क को शांति मिलती है और हर तरह का तनाव हट जाता है। इसकी आवाज से आस-पास की समस्त नकारात्मक ऊर्जाएं और बुरी शक्तियां भी दूर हो जाती है।
डमरू केवल भगवान शिव का वाद्ययंत्र ही नहीं है बल्कि यह और भी कई रहस्य समेटे हुए है। इसे बजाकर भूकंप लाया जा सकता है और बादलों में भरा पानी भी बरसाया जा सकता है। डमरू की आवाज यदि लगातर एक जैसी बजती रहे तो इससे चारों और का वातावरण बदल जाता है। यह बहुत भयानक भी हो सकता है और और सुखदायी भी। डमरू के भयानक स्वर से लोगों के हृदय भी फट सकते हैं। कहते हैं कि भगवान शंकर इसे बाजाकर प्रलय भी ला सकते हैं। यह बहुत ही प्रलयंकारी आवाज सिद्ध हो सकती है।
आप डमरू की आवाज़ के पीछे के रहस्य को अनुभव करके भी समझ सकते हैं |
डमरू जब भी बजता है तो हमारा दिल भी उसकी आवाज़ के साथ धड़कना शुरू कर देता है | डुगडुग की आवाज़ मानो कहती है कि उठो, चलो, दौड़ो.. और तेज़ , सबसे तेज़!
फिर कहती है “रुको, शांत, थम जाओ, समाप्त हो जाओ! “
इसकी डुगडुग स्वर की बजती-रुकती हर थाप मानो बारी बारी से सृष्टि के उस चक्र की रचना करती हैं जहां एक पल सृजन है तो अगले ही पल विनाश है |
कभी मौन को कभी शोर |
कभी उदय कभी अंत |
डुगडुग के बीच-बीच में ये जो मौन पसरता है बस एक वही शाश्वत है शायद, जो अंतहीन है!
अब जब भी कभी डमरू की आवाज़ सुनें तो ज़रा गौर से सुनिएगा कि आपकी धड़कनें इसकी लय और ताल के साथ जब बंधने लगती हैं तो क्या समझाने की कोशिश करती हैं!
शायद यही कि विनाश और सृजन शिव के डमरू की ताल पर बारी बारी से नृत्य करते हैं और दोनों ही स्थाई नहीं हैं!
तब स्वयं के भीतर सोए अपने ‘स्वयं’ को जागृत करें और डमरू के स्वर से अपने भीतर ही ब्रह्मांड की ओर खुली खिड़की से झांक कर देखें और शिव के स्वरूप के दर्शन करें
जो ‘बगड़-बम-बम-हर-हर ‘ पुकार रहा हैं ।

             

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