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देवी मातंगी

दस महाविद्याओं में नौवीं, देवी मातंगी, एक उग्र स्वरुप, उत्कृष्ट ज्ञान से सम्पन्न, कला और संगीत पर महारत प्राप्त करने वाली।
देवी मातंगी दस महाविद्याओं में नवे स्थान पर अवस्थित हैं तथा देवी निम्न जाती तथा जनजातिओ से सम्बंधित रखती हैं। देवी का एक अन्य विख्यात नाम उच्छिष्ट चांडालिनी भी हैं तथा देवी का सम्बन्ध नाना प्रकार के तंत्र क्रियाओं से हैं। इंद्रजाल विद्या या जादुई शक्ति कि देवी प्रदाता हैं, वाक् सिद्धि, संगीत तथा अन्य ललित कलाओं में निपुण, सिद्ध विद्याओ से सम्बंधित हैं तथा अपने भक्तों को प्रदान करती हैं। देवी, केवल मात्र वचन द्वारा त्रिभुवन में समस्त प्राणिओ तथा अपने घनघोर शत्रु को भी वश करने में समर्थ हैं, जिसे सम्मोहन क्रिया कहा जाता हैं। देवी सम्मोहन विद्या की अधिष्ठात्री हैं। देवी का सम्बन्ध प्रकृति, पशु, पक्षियों, जंगलों, वनों, शिकार इत्यादि से हैं तथा जंगल में वास करने वाले आदिवासिओ, जनजातिओ कि देवी पूजिता हैं। ऐसा माना जाता हैं कि देवी की ही कृपा से वैवाहिक जीवन सुखमय होता हैं। देवी मातंग मुनि के पुत्री के रूप से भी जानी जाती हैं। देवी का घनिष्ठ सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन पदार्थो से हैं, देवी तभी उच्छिष्ट चांडालिनी के नाम से विख्यात हैं तथा देवी की आराधना हेतु उपवास की भी आवश्यकता नहीं होती। देवी कि आराधना हेतु उच्छिष्ट सामाग्रीओ की आवश्यकता होती हैं चुकी देवी की उत्पत्ति शिव तथा पार्वती के उच्छिष्ट भोजन से हुई थी। देवी की आराधना सर्वप्रथम भगवान विष्णु द्वारा ही हुई, तभी भगवान विष्णु सुखी, सम्पन्न, श्री युक्त तथा उच्च पद पर विराजित हैं। देवी की अराधना बौद्ध धर्म में भी की जाती हैं, किन्तु बौद्ध धर्म के प्रारंभ में देवी का कोई अस्तित्व नहीं था। कालांतर में देवी बौद्ध धर्मं में मातागिरी नाम से जनि जाने लगी।
देवी के अन्य विख्यात नाम: उछिष्ट साम मोहिनी, लघु श्यामा, राज मातंगी, वैश्य मातंगी, चण्ड मातंगी, कर्ण मातंगी, सुमुखि मातंगी, षडाम्नायसाध्य। रति, प्रीति, मनोभाव, क्रिया, शुधा, अनंग कुसुम, अनंग मदन तथा मदन लसा देवी मातंगी की आठ शक्तियां हैं।
देवी चण्डालिनी हैं तथा भगवान शिव चांडाल, जो श्मशान घाटो में शव दाह से सम्बंधित कार्य करते हैं।
देवी का सम्बन्ध मृत शरीर या शव तथा श्मशान भूमि से भी हैं। देवी अपने दाहिने हाथ पर महा शंख (मनुष्य खोपड़ी) या खोपड़ी से निर्मित खप्पर, धारण करती हैं। पारलौकिक या इंद्रजाल, मायाजाल से सम्बंधित रखने वाले सभी देवी देवता श्मशान, शव, चिता, चिता भस्म, हड्डीओं से जुड़े होते हैं, कहा जाता हैं पारलौकिक शक्तियां यही वास करती हैं। तंत्रो या तंत्र विद्या के अनुसार देवी तांत्रिक सरस्वती नाम से जनि जाती हैं तथा श्री विद्या त्रिपुर सुंदरी के रथ की सारथि तथा मुख्य सलाहकार हैं। देवी हिन्दू समाज के अत्यंत निम्न जाती, चांडाल सम्बद्ध हैं, देवी चांडालिनी हैं तथा भगवान शिव चांडाल। (चांडाल श्मशान घाटो में शव दाह से सम्बंधित कार्य करते हैं) तंत्र शास्त्र में देवी की उपासना विशेषकर वाक् सिद्धि (जो बोला जाये वही हो) हेतु, पुरुषार्थ सिद्धि तथा भोगविलास में पारंगत होने हेतु कि जाती हैं। देवी मातंगी चौसठ प्रकार के ललित कलाओं से सम्बंधित विद्याओं से निपुण हैं तथा तोता पक्षी इनके बहुत निकट हैं।
देवी मातंगी का भौतिक स्वरूप विवरण।
देवी मातंगी का वर्ण गहरे नीले रंग (नील कमल के समान) या श्याम वर्ण का है, अपने मस्तक पर देवी अर्ध चन्द्र धारण करती हैं, देवी तीन नशीले नेत्रों से युक्त हैं, देवी अमूल्य रत्नो से युक्त रत्नमय सिंहासन पर बैठी हैं, मुक्तभूषण से सुसज्जित हैं। अन्य स्वरूपों में देवी कमल के आसन तथा शव पर भी विराजमान हैं। देवी मातंगी गुंजा के बीजो की माला धारण करती हैं, लाल रंग के आभूषण देवी को प्रिय हैं तथा सामान्यतः लाल रंग के ही आभूषण धारण करती हैं। देवी सोलह वर्ष की एक युवती जैसा स्वरूप धारण करती हैं जिनकी शारीरिक गठन पूर्ण तथा मनमोहक हैं। देवी ने अपने दायें हाथों में वीणा तथा मानव खोपड़ी धारण कर राखी हैं तथा बायें हाथों से खड़ग धारण करती हैं तथा अभय मुद्रा प्रदर्शित करती हैं।
देवी मातंगी के प्रादुर्भाव से सम्बंधित कथा।
शक्ति संगम तंत्र के अनुसार, एक बार भगवान विष्णु और उनकी पत्नी लक्ष्मी जी, भगवान शिव तथा सती से मिलने हेतु कैलाश पर्वत गये, पर जहाँ शिव तथा सती जी का निवास स्थान है। भगवान विष्णु, अपने साथ खाने की कुछ सामग्री अपने साथ ले गए तथा शिव जी को भेट की। शिव तथा सती जी ने, उपहार स्वरूप प्राप्त हुए वस्तुओं को खाया, भोजन करते हुए खाने का कुछ भाग नीचे धरती पर गिरा। परिणामस्वरूप, उन गिरे हुए भोजन के भागों से एक श्याम वर्ण वाली दासी ने जन्म लिया, जो मातंगी नाम से विख्यात हुई। देवी का प्रादुर्भाव उच्छिष्ट भोजन से हुआ, परिणामस्वरूप देवी का सम्बन्ध उच्छिष्ट भोजन सामग्रीओ से हैं तथा इन्हीं उच्छिष्ट वस्तुओं से देवी की अराधना होती हैं। देवी उच्छिष्ट मातंगी नाम से जानी जाती हैं।
प्राणतोषिनी तंत्र के अनुसार, एक बार पार्वती देवी ने, अपने पति भगवान शिव से अपने पिता हिमालय राज के यहाँ जा अपने माता तथा पिता से मिलने की अनुमति मांगी। परन्तु भगवान शिव नहीं चाहते थे की वो उन्हें अकेले छोड़ कर जाये। परन्तु, शिव जी के सन्मुख बार बार प्रार्थना करने पर, उन्होंने देवी को अपने पिता हिमालय राज के यहाँ जाने की अनुमति दे दी। साथ ही शिव जी ने एक शर्त भी राखी, की वो शीघ्र ही माता-पिता से मिलकर वापस कैलाश आ जाएगी। तदनंतर पार्वती की माता ने एक बगुला भेजा, अपनी पुत्री पार्वती को कैलाश से लेन हेतु। कुछ दिन पश्चात् भगवान शिव बिना पार्वती के विरक्त हो गए तथा उन्हें वापस लाने का उपाय सोचने लगे। शिव जी ने अपना भेष एक आभूषण के व्यापारी के रूप में बदल तथा हिमालय राज के घर गए। शिव जी इस भेष में देवी पार्वती की परीक्षा लेना चाहते थे, वे पार्वती के सन्मुख गए और अपनी इच्छा अनुसार आभूषणो का चुनाव करने के लिया कहा। पार्वती जी ने जब कुछ आभूषणो का चुनाव कर लिया, शिव जी ने आभूषणो के मूल्य के बदले उन से सम्भोग की इच्छा प्रकट की। देवी पार्वती अत्यंत क्रोधित हुई तथा अपनी अलौकिक शक्तिओ से उन्होंने पहचान लिया। तदनंतर देवी सम्भोग हेतु तैयार हो गई तथा व्यापारी से कुछ दिनों बाद आने का निवेदन किया। कुछ दिनों पश्चात् देवी पार्वती भी भेष बदल कर, शिव जी के सन्मुख कैलाश पर्वत पर गई। भगवान शिव अपने नित्य संध्योपासना के तैयारी कर रहे थे। देवी पार्वती लाल वस्त्र धारण कर, बड़ी बड़ी आँखें कर, श्याम वर्ण तथा दुबले शरीर से युक्त अपने पति शिव जी के सन्मुख प्रकट हुई। भगवान शिव ने देवी से उनका परिचय पूछा, देवी ने उत्तर दिया कि वह एक चांडाल की कन्या हैं तथा तपस्या करने आई हैं। भगवान शिव ने देवी को पहचान लिया तथा कहाँ वो तपस्वी को तपस्या का फल प्रदान करने वाले हैं। यह कहते हुए उन्होंने देवी का हाथ पकड़ लिया और प्रेम में मग्न हो गए। तत्पश्चात्, देवी ने भगवान शिव से वार देने का निवेदन किया तथा शिव जी ने उन्हें इसी रूप चांडालिनी से अवस्थित होने का अशिर्वाद प्रदान किया तथा कई अलौकिक शक्तियां प्रदान की।
देवी चांडालिनी हैं तथा भगवान शिव चांडाल, जो श्मशान घाटो में शव दाह से सम्बंधित कार्य करते हैं।
नारदपंचरात्र के अनुसार, कैलाशपति भगवान शिव को चांडाल तथा देवी शिवा को ही उछिष्ट चांडालिनी कहा गया हैं। एक बार मातंग मुनि ने, सभी जीवो को वश में करने हेतु, नाना प्रकार के वृक्षों से परिपूर्ण वन में देवी श्री विद्या त्रिपुरा की आराधना की। मातंग मुनि के कठिन साधना से संतुष्ट हो देवी त्रिपुर सुंदरी ने अपने नेत्रों से एक श्याम वर्ण की सुन्दर कन्या का रूप धारण किया। इन्हें राज मातंगी कहा गया तथा ये भी देवी मातंगी का ही एक स्वरूप हैं। तभी देवी मतंग कन्या के नाम से भी जानी जाती हैं। देवी के सन्मुख बैठा तोता ह्रीं वर्ण का उचारण करता है, जो बीजाक्षर का प्रतिक हैं। कमल सृष्टि का, शंख पात्र ब्रह्मरंध, मधु अमृत, शुक या तोता शिक्षा का प्रतिक हैं।

      

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