इलेक्ट्रोप्लेटिंग (विद्युत लेपन) के जनक – ऋषि अगस्त्य
1805 में लुइगी ब्रुगनैटली की इलेक्ट्रोप्लेटिंग की खोज से हजारो वर्ष पूर्व अगस्त्य संहिता में विद्युत का उपयोग इलेक्ट्रोप्लेटिंग ( #Electroplating) के लिए करने का भी विवरण मिलता है। उन्होंने बैटरी द्वारा तांबा या सोना या चांदी पर पॉलिश चढ़ाने की विधि निकाली। अत: अगस्त्य को कुंभोद्भव ( Battery Bone) भी कहते हैं। जितनी भी आज सोने चांदी आदि धातुओं की पोलिश और इनका पानी चढ़ाने की विधि है सब इसी से निकली है।
कृत्रिमस्वर्णरजतलेप: सत्कृतिरुच्यते।
यवक्षारमयोधानौ सुशक्तजलसन्निधो॥
आच्छादयति तत्ताम्रं
स्वर्णेन रजतेन वा।
सुवर्णलिप्तं तत्ताम्रं
शातकुंभमिति स्मृतम्॥ -5 (अगस्त्य संहिता)
अर्थात- कृत्रिम स्वर्ण अथवा रजत के लेप को सत्कृति कहा जाता है। लोहे के पात्र में सुशक्त जल (तेजाब का घोल) इसका सान्निध्य पाते ही यवक्षार (सोने या चांदी का नाइट्रेट) ताम्र को स्वर्ण या रजत से ढंक लेता है। स्वर्ण से लिप्त उस ताम्र को शातकुंभ अथवा स्वर्ण कहा जाता है। (इसका उल्लेख शुक्र नीति में भी है)
आज जितने भी सोने, चांदी की प्लेटेड चीजों, इलेक्ट्रॉनिक इंडस्ट्री के सामान से लेकर जो कुछ भी आपको दिख रहा है सब ऋषि अगस्त्य के इसी इलेक्ट्रोप्लेटिंग के आविष्कार के बाद ही सम्भव हो सका है।