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गूलर

परिचय:गूलर का पेड़ सारे संसार मे बहुत प्रसिद्ध है। पके हुए गूलर की सब्जी बनायी जाती है। गूलर की छाया ठंडी और सुखकारी होती है। गूलर की लकड़ी बहुत मजबूत और चिकनी होती है। गूलर के फलों का आकार अंजीर के फल जैसा होता है। गूलर का पेड़ अधिकतर झरने या पानी के स्थान के आस-पास होता है। गूलर के पेड़ के पास कुंआ खोदने से पानी जल्दी निकल आता है। गूलर की छाया में खुदे हुए कुंऐ का पानी बहुत गुणकारी होता है और इसमें बहुत से रोगों को नष्ट करने के गुण पाये जाते हैं।

गूलर का पेड़ 6 मीटर से 12 मीटर तक ऊंचा होता है। गूलर का तना, मोटा, लम्बा, तथा टेढ़ा होता है। गूलर की छाल लाल व मटमैली रंग की होती है। गूलर के पत्ते 3 से 5 इंच लम्बे, 1.5 से 3 इंच चौडे़, नुकीले, चिकने और चमकीले होते हैं। इसके फूल अक्सर दिखाई नहीं देते हैं। गूलर के फल गर्मी के मौसम में 1 से 2 इंच व्यास के गोलाकार अंजीर के फल के समान होते हैं तथा ये गुच्छों में होते हैं। गूलर के कच्चे फल हरे रंग और पके फल लाल रंग के होते हैं। गूलर के फल को थोड़ा सा दबाते ही वह फूट जाता है और इसमें सूक्ष्म कीटाणु भी पाये जाते हैं। गूलर के पेड़ के सभी अंगों में दूध भरा होता है और यदि इसके किसी भी भाग को धारदार चीज से काटते हैं तो उस भाग से दूध निकलने लगता है। इसका दूध जब शुरू-शुरू में निकलता है तो वह सफेद रंग का होता है लेकिन हवा के संपर्क में आते ही कुछ ही देर में पीला हो जाता है। इसके दूध का उपयोग औषधियों के रूप में किया जा सकता है क्योंकि इसमें रोगों को ठीक करने की शक्ति होती है।

गूलर का वृक्ष: गूलर की प्रकृति ठंडी होती है तथा यह घाव को भरने वाला होता है। यह रूखा तथा स्वाद में मीठा, फीका तथा भारी होता है। यह कफ,पित्त, अतिसार और योनि रोग को ठीक करता है।

गूलर की छाल:गूलर की छाल की प्रकृति ठंडी होती है। इसके छाल में दूध भर रहता है तथा यह स्वाद में फीकी होती है। यह गर्भ के लिए लाभकारी तथा घावों को भरने वाली होती है।

कच्चे गूलर: कच्चे गूलर स्तंभक, फीके और गुणकारी होते हैं तथा यह प्यास को खत्म करने वाला, पित्त, कफ और रक्तविकार को भी दूर करने वाला होता है।

साधारण गूलर:गूलर के फल स्वाद में मीठे तथा फीके होते हैं। साधारण गूलर की प्रकृति ठंडी होती हैं। यह पित्त, प्यास और मोह को उत्पन्न करने वाला होता है उल्टी, रक्तस्राव और प्रदर रोग को यह ठीक कर सकता है।

पके गूलर: पके गूलर स्वाद में फीका तथा मीठा होता है। यह पेट में कीडे़पैदा करने वाला होता है। इसकी प्रकृति ठंडी होती है। रक्तदोष (खून की खराबी), पित्त, जलन, सांस रोग तथा बेहोशी को यह नष्ट करता है। यह भूख को बढ़ाने वाला होता है। यह कफ को उत्पन्न करने वाला तथा भोजन करने की रुचि को बढ़ाने वाला होता है। यह प्यास और थकावटको दूर करने वाला होता है। यह सूखी खांसी और शरीर की जकड़न को दूर कर सकता है। गूलर के लकड़ी के राख को गर्मी के मौसम में होने वाले घावों पर लगाने से लाभ मिलता है।

पुरानेगूलर:पुराने गूलर स्वाद में फीके तथा खट्टे होते हैं। यह शरीर में मांस की वृद्धि करने वाला होता है तथा यह खून की खराबी को दूर करने वाला होता है।

रंग: गूलर का कच्चा फल हरे रंग का तथा पका हुआ फल लाल या पीले रंग का होता है।

स्वाद: कच्चे गूलर का स्वाद फीका और पके गूलर का स्वाद मीठा होता है।

स्वरूप: गूलर का पेड़ बड़ा होता है। इसमें फूल होते तो है पर दिखाई नहीं पड़ते। गूलर के मोटी-मोटी टहेनियों पर फल लगते हैं। इसके टहनियों के छालों तथा किसी भी भाग की लकड़ी को काटने से दूध निकलता है।

प्रकृति: इसकी प्रकृति ठंडी होती है।

हानिकारक: गूलर का अधिक मात्रा में सेवन करने से बुखार पैदा हो सकता है।

दोषों को दूर करने वाला: अनीसून गूलर के गुणों को सुरक्षित रखकर इसमें मौजूद दोषों को दूर करता है।

मात्रा: गूलर के कच्चे फल का चूर्ण 10 से 20 ग्राम तथा इसका काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर और इसका दूध 10 से 15 बूंद की मात्रा में सेवन किया जा सकता है।

गुण: गूलर घाव को भरने वाला, हडि्डयों के रोगों को ठीक करने वाला, कफ, पित्त, अतिसार और योनि रोगों को ठीक करने वाला होता है। गूलर की छाल बहुत ही ठंडी, दूध को बढ़ाने वाली, गर्भ के लिए लाभकारी और कठिन से कठिन घावों को भरने वाली होती है। गूलर के छोटे और मुलायम फल शीघ्रपतन को दूर करने वाला होता है। यह प्यास, पित्त, कफ और रुधिर के रोगों को खत्म करने वाला होता है। गूलर के कुछ बड़े फल पित्त, कफ, रुधिर के रोगों को दूर करते हैं। यह खून के स्राव को रोकने, उल्टी को बंद करने और प्रदर रोग ठीक करने वाला होता है। गूलर के अधिक बड़े फल भूख को बढ़ाने वाला होता है तथा शरीर के मांस को बढ़ाने में यह लाभकारी है । यह खून को खराब को भी दूर करता है।

आर्युवेदिक मतानुसार: गूलर स्वाद में मीठा, कषैला, भारी तथा इसकी प्रकृति ठंडी होती है। पित्त, कफ, रक्तविकार को यह नष्ट करता है। गर्भ से सम्बंधित रोग,रक्तप्रदर, मधुमेह, आंखों के रोग, अतिसार, सूखा रोग, पेशाब से सम्बंधित रोग तथा प्रमेह रोग को यह ठीक कर सकता है। इसके सेवन से शरीर में ताकत की वृद्धि होती है तथा हडि्डयों को जोड़ने में यह लाभकारी है।

यूनानी चिकित्सकों के अनुसार: गूलर दूसरे दर्जे में गर्म और पहले दर्जे में गीला होता है। यह आंखों के रोग, सीने के दर्द, सूखी खांसी, गुर्दे और तिल्ली के दर्द, सूजन, खूनी बवासीर, खून की खराबी, रक्तातिसार (खूनी दस्त), कमर दर्द एवंफोड़े-फुन्सियों को ठीक करने में लाभकारी होता है

वैज्ञानिक मतानुसार:गूलर का रासायनिक विश्लेषण करने पर यह पता चला है कि इसके फल में कार्बोहाइड्रेट 49 प्रतिशत, रंजक द्रव्य 8.5 प्रतिशत, भस्म 6.5 प्रतिशत, अलब्युमिनायड 7.4 प्रतिशत, वसा 5.6 प्रतिशत, आर्द्रता 13.6 प्रतिशत पाया जाता है। इसमें कुछ मात्रा में फास्फोरस व सिलिका भी पाया जाता है। इसकी छाल में 14 प्रतिशत टैनिन और दूध में 4 से 7.4 प्रतिशत तक रबड़ होता है।

       *गूलर का पका फल खाने में मीठा लगता है। मीठा होने के कारण इसमें कीड़ें आसानी से लग जाते हैं। इसका सेवन करने से पहले इसे अच्छी तरह से देख लें कि कहीं इसमें कीड़े तो नहीं हैं यदि कीड़े लगे हों तो उन्हें निकालकर गूलर के सही भाग को सुखाकर उपयोग में लेना चाहिए। गूलर के पकने के दिनों इसका एक-दो फल नियमित रूप से दो हफ्ते तक खाया जाए तो कई प्रकार के आंखों के रोगों से बचा जा सकता है।*

विभिन्न रोगों में उपयोग:

1. वायु से अंग जकड़ना: गूलर का दूध जकड़न वाले अंग पर लगाकर इस पर रूई चिपकाएं इससे लाभ मिलेगा।

2. रक्तपित्त (खूनी पित्त):पके हुए हुए गूलर, गुड़ या शहद के साथ खाना चाहिए अथवा गूलर की जड़ को घिसकर चीनी के साथ खाने से लाभ मिलेगा और रक्तपित्त दोष दूर हो जाएगा।

हर प्रकार के रक्तपित्त में गूलर की छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम तथा उसका फल 2 से 4 ग्राम तथा गूलर का दूध 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा के रूप में सेवन करने से लाभ मिलता है

3. सिंगिया के जहर: गूलर की छाल के रस में घी मिलाकर गर्म करके रोगी को इसका सेवन कराने से सिंगिया का जहर उतर जाता है।

4. आंखों में दर्द: गूलर के दूध से आंखों पर लेप करें इससे आंखों का दर्द दूर होता है

5. फोडे़: फोड़े पर गूलर का दूध लगाकर उस पर पतला कागज चिपकाने से फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है।

6. अतिसार (दस्त):गूलर की 4-5 बूंद दूध को बताशे में डालकर दिन में 3 बार सेवन करने से अतिसार (दस्त) के रोग में लाभ मिलता है।

आंव या अतिसार (दस्त) में गूलर की जड़ के चूर्ण को 3 से 5 ग्राम की मात्रा में ताजे फल के साथ दिन में दो बार सेवन करने से लाभ मिलता है।

अतिसार (दस्त) और ग्रहणी के रोग में 3 ग्राम गूलर के पत्तों का चूर्ण और 2 दाने कालीमिर्च के थोड़े से चावल के पानी के साथ बारीक पीसकर, उसमें कालानमक और छाछ मिलाकर फिर इसे छान लें और इसे सुबह-शाम सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।

गूलर की 10 ग्राम पत्तियां को बारीक पीसकर 50 मिलीलीटर पानी में डालकर रोगी को पिलाने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं।

7. बालातिसार और रक्तातिसार:बच्चों के अतिसार (दस्त) तथा रक्तातिसार (खूनी दस्त), वमन (उल्टी) और कमजोरी में गूलर का दूध 10 बूंद सुबह और शाम दूध में मिलाकर सेवन कराएं इससे लाभ मिलता है।

10 से 20 ग्राम गूलर के दूध को बताशे मिलाकर खाने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) की बीमारी समाप्त हो जाती है।

गूलर का पानी पीने से रक्तातिसार (खूनी दस्त) ठीक हो जाता है।

8. गर्भवती स्त्री को दस्त होना: गूलर की जड़ का पानी गर्भवती स्त्री को सेवन कराएं इससे उसका अतिसार रोग ठीक हो जाता है।

9. गर्मी:पके हुए कीड़े रहित गूलरों में पीसी हुई मिश्री डालकर सुबह के समय खाने से गर्मी में राहत मिलती है।

गूलर के दूध में मिश्री डालकर पीने से हर प्रकार की गर्मी से मुक्ति मिलती है।

10. गर्मी के कारण जीभ पर छाले पड़ना: गर्मी के कारण जीभ पर छाले होने पर गूलर के कांटे और मिश्री को पीसकर सेवन करने से लाभ मिलता है।

11. बच्चों के शरीर से गर्मी का प्रभाव अधिक होना: गूलर के रस में मिश्री डालकर बच्चों को पिलाने से शीतला (चेचक) की गर्मी दूर होती है।

12. भस्मक (बार-बार भूख लगना): भस्मक रोग (बार-बार भूख लगना) में गूलर की जड़ का रस चीनी के साथ पिलाने से लाभ मिलता है।

13. बिच्छू का जहर: जहां पर बिच्छू ने काटा हो उस स्थान पर गूलर के अंकुरों को पीसकर लगाए इससे जहर चढ़ता नहीं है और दर्द से आराम मिलता है।

14. विसूचिका: विसूचिका (हैजा) के रोगी को गूलर का रस पिलाने से रोगी को आराम मिलता है।

15. कर्णशूल: गूलर और कपास के दूध को मिलाकर कान पर लगाने से कान का दर्द ठीक हो जाता है।

16. कंठमाला (गले में गिल्टी होना): गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को पीसकर इसे मीठे या दही मिला दें और इसमें मिश्री मिलाकर रोजाना 1 बार सेवन करें इससे कंठमाला के रोग से मुक्ति मिलती है।

17. शीतला (चेचक): गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को गाय के ताजे दूध में पीसकर इसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर चेचक से पीड़ित रोगी को पिलाये इससे उसका यह रोग ठीक हो जाएगा।

18. नाक से खून बहना: पके गूलर में चीनी भरकर घी में तलें, इसके बाद इस पर काली मिर्च तथा इलायची के दानों का आधा-आधा ग्राम चूर्ण छिड़कर प्रतिदिन सुबह के समय में सेवन करें तथा इसके बाद बैंगन का रस मुंह पर लगाएं इससे नाक से खून गिरना बंद हो जाता है।

19. नाक के रोग: गूलर का पेड़, शाल पेड़, अर्जुन पेड़, और कुड़े के पड़े की पेड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर चटनी बना लें। इन सब चीजों का काढ़ा भी बनाकर रख लें। इसके बाद इस चटनी तथा इससे 4 गुना ज्यादा घी और घी से 4 गुना ज्यादा काढ़े को कढ़ाही में डालकर पकाएं। पकने पर जब घी के बराबर मात्रा रह तो इसे उतार कर छान लें। अगर नाक पक गई हो तो इस घी को नाक पर लगाने से बहुत जल्दी आराम मिलता है।

20. बच्चों के गाल पर सूजन होना: बच्चों के गाल की सूजन को दूर करने के लिए उनके गाल पर गूलर के दूध का लेप करें इससे लाभ मिलेगा।

21. सूजन: भिलावें की धुएं से उत्पन्न हुई सूजन को दूर करने के लिए गूलर की छाल को पीसकर इससे सूजन वाली भाग पर लेप करें।

22. गांठ: शरीर के किसी भी अंग पर गांठ होने की अवस्था में गूलर का दूध उस अंग पर लगाने से लाभ मिलता है।

23. बच्चों का आंव: गूलर के दूध की 5-6 बूंदे चीनी के साथ बच्चे को देने से बच्चों के आंव ठीक हो जाते हैं।

24. प्यास अधिक लगना: गूलर की छाल अथवा कच्चे फल को पानी में घिसकर इस पानी को पीने से बुखार या अन्य किसी कारण से तेज लगने वाली प्यास बंद हो जाती है।

गूलर के पके फलों का रस पीने से अथवा इसका काढ़ा पीने से पित्तज के कारण उत्पन्न तेज प्यास शान्त हो जाती है।

गूलर के कच्चे फलों को पीसकर और छानकर पानी के साथ पीने से किसी भी प्रकार से बढ़ी हुई प्यास शान्त हो जाती है

25. खांसी:रोगी को बहुत तेज खांसी आती हो तो गूलर का दूध रोगी के मुंह के तालू पर रगड़ने से आराम मिलता है।

गूलर के फूल, कालीमिर्च और ढाक की कोमल कली को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 5 ग्राम शहद में मिलाकर रोजाना 2-3 बार चाटने से खांसी ठीक हो जाती है।

26. उपदंश (फिरंग): 40 ग्राम गूलर की छाल को 1 लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर पीने से उपदंश की बीमारी ठीक हो जाती है।

27. घाव:शरीर के अंगों में घाव होने पर गूलर की छाल से घाव को धोएं इससे घाव जल्दी ही भर जाते हैं।

गूलर के पत्तों को छांया में सूखाकर इसे पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इसके बाद घाव को साफ करकें इसके ऊपर इस चूर्ण को छिड़के तथा इस चूर्ण में से 5-5 ग्राम की मात्रा सुबह तथा शाम को पानी के साथ सेवन करें इससे लाभ मिलेगा

गूलर के दूध में बावची को भिगोंकर इसे पीस लें और 1-2 चम्मच की मात्रा में रोजाना इससे घाव पर लेप करें इससे घाव जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।

28. सूजाक: गूलर की जड़ के रस में चीनी और काला जीरा मिलाकर सेवन करने से सूजाक रोग ठीक होता है।

29. प्रदर:गूलर के फूलों के चूर्ण को छानकर उसमें शहद एव मिश्री मिलाकर गोली बना लें। रोजाना 1 गोली का सेवन करने से 7 दिन में प्रदर रोग से छुटकार मिल जाता है।

गूलर के पके फल को छिलके सहित खाकर ऊपर से ताजे पानी पीयें इससे श्वेत प्रदर रोग ठीक हो जाता है।

गूलर के फलों के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग में आराम मिलता है।

30. रक्तप्रदर (खूनी मासिकधर्म आना):रक्तप्रदर में गूलर की छाल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में या फल 2 से 4 की मात्रा में सुबह-शाम चीनी मिले दूध के साथ सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है तथा रक्तप्रदर रोग ठीक हो जाता है।

20 ग्राम गूलर की ताजी छाल को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें जब यह 50 मिलीलीटर की मात्रा में बच जाए तो इसमें 25 ग्राम मिश्री और 2 ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिलाकर सेवन करें इससे रक्तप्रदर रोग में लाभ मिलता है।

पके गूलर के फलों को सुखाकर इसे कूटे और पीसकर छानकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर किसी ढक्कनदार बर्तन में भर कर रख दें। इसमें से 6 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम दूध या पानी के साथ सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।

पके गूलर के फल को लेकर उसके बीज को निकाल कर फेंक दें, जब उसके फल शेष रह जायें तो उसका रस निकाल कर शहद के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ मिलता है। रोगी इसके सब्जी का सेवन भी कर सकते हैं।

1 चम्मच गूलर के फल का रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में न केवल रक्त प्रदर ठीक होता है बल्कि मासिकधर्म में खून अधिक आने की तकलीफ भी दूर होती है।

31. श्वेत प्रदर:रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल खाने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है

गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर इससे लेप करें। इससे श्वेत प्रदर रोग में आराम मिलता है।

1 किलो कच्चे गूलर लेकर इसके 3 भाग कर लें। इसमें से कच्चे गूलर 1 भाग उबाल लें और इनकों पीसकर 1 चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा इसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें। इस प्रकार शेष 2 भागों से इसी प्रकार की क्रिया 2 दिनों तक करें इससे श्वेत प्रदर रोग की अवस्था में आराम मिलता है।

10-15 ग्राम गूलर की छाल को पीसकर, 250 मिलीलीटर पानी में डालकर पकाएं। पकने के बाद 125 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर इसे छान लें और इसमें मिश्री व लगभग 2 ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें तथा भोजन में इसके कच्चे फलों का काढ़ा बनाकर सेवन करें श्वेत प्रदर रोग में लाभ मिलता है।

32. मधुमेह :- 1 चम्मच गूलर के फलों के चूर्ण को 1 कप पानी के साथ दोनों समय भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से पेशाब में शर्करा आना बंद हो जाता है। इसके साथ ही गूलर के कच्चे फलों की सब्जी नियमित रूप से खाते रहना अधिक लाभकारी होता है। मधुमेह रोग ठीक हो जाने के बाद इसका सेवन करना बंद कर दें

गूलर के पत्तों को पानी के साथ पीसकर शर्बत बनाकर पीने से मधुमेह रोग में लाभ मिलता है।

गूलर के ताजे फल को खाकर ऊपर से ताजे पानी पीये इससे मधुमेह रोग में आराम मिलता है।

33. शिशु का दुबलापन: गूलर का दूध कुछ बूंदों की मात्रा में मां या गाय-भैंस के दूध के साथ मिलाकर नियमित रूप से कुछ महीने तक रोजाना 1 बार बच्चों को पिलाने से शरीर हृष्ट-पुष्ट और सुडौल बनाता है लेकिन गूलर के दूध बच्चों उम्र के अनुसार ही उपयोग में लेना चाहिए।

34. दांत: गूलर की छाल के काढे़ से गरारे करते रहने से दांत और मसूड़ों के सारे रोग दूर होकर दांत मजबूत होते हैं।

35. रक्तस्राव (खून का बहना):नाक से, मुंह से, योनि से, गुदा से होने वाले रक्तस्राव में गूलर के दूध की 15 बूंदे 1 चम्मच पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है।

शरीर में कहीं से भी किसी कारण से रक्तस्राव (खून बहना) हो रहा हो तो गूलर के पत्तों का रस निकालकर वहां पर लगाएं इससे तुरन्त खून का आना बंद हो जाता है।

मुंह में छाले हो अथवा खून आता हो या खूनी बवासीर हो तो 1 चम्मच गूलर के दूध में इतनी ही पिसी हुई मिश्री मिलाकर रोजाना खाने से रक्तस्राव (खून बहना) होना बंद हो जाता है तथा इसके सेवन से मुंह के छाले भी ठीक हो जाते हैं।

36. सूखा (रिकेट्स) रोग: 5 बूंद गूलर के दूध को 1 बताशे पर डालकर इसका सेवन बच्चों को कराएं इससे सूखा रोग (रिकेटस) ठीक हो जाता है।

37. हृदय रोग: रोजाना पके हुए गूलर को खाकर उसके ऊपर से गर्म दूध पीने से हृदय रोग में लाभ मिलता है। गूलर लगातार खाते रहने से रक्तवाहनियों (खून की नसों) में लचक और कोमलता आती है।

38. जलना:जलने पर गूलर की हरी पत्तियां पीसकर लेप करने से जलन दूर हो जाती है।

गूलर के पत्तों को पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जलन मिट जाती है और छाले के निशान भी नही पड़ते।

39. पेशाब अधिक मात्रा में आना: 1 चम्मच गूलर के कच्चे फलों के चूर्ण को 2 चम्मच शहद और दूध के साथ सेवन करने से पेशाब का अधिक मात्रा में आने का रोग दूर हो जाता है।

40. पेशाब के साथ खून आना: पेशाब में खून आने पर गूलर की छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम या इसके फल 2 से 4 लेकर पीस लें और इसमें चीनी मिलाकर दूध के साथ खायें इससे यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।

41. मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) होना:प्रतिदिन सुबह गूलर के 2-2 पके फल रोगी को सेवन करने से मूत्रकच्छ (पेशाब की जलन) में लाभ मिलता है

गूलर के 8-10 बूंद को 2 बताशों में भरकर रोजाना सेवन करने से मूत्ररोग (पेशाब के रोग) तथा पेशाब करने के समय में होने वाले कष्ट तथा जलन दूर हो जाती है।

42. धातुदुर्बलता: 1 बताशे में 10 बूंद गूलर का दूध डालकर सुबह-शाम सेवन करने और 1 चम्मच की मात्रा में गूलर के फलों का चूर्ण रात में सोने से पहले लेने से धातु दुर्बलता दूर हो जाती है। इस प्रकार से इसका उपयोग करने से शीघ्रपतन रोग भी ठीक हो जाता है।

43. चोट लगने पर खून का बहना:गूलर के पत्तों का रस चोट लगे हुए स्थान पर लगने से खून बहना रुक जाता है।

गूलर के रस को रूई में भिगोकर इसे चोट पर रखकर पट्टी बांध लें इससे चोट जल्दी भरकर ठीक हो जाएगा।

44. खसरा:गूलर की जड़ के रस में मिश्री मिलाकर 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम रोगी को पिलाने से खसरा रोग ठीक हो जाता है।

गूलर के कच्चे फलों को छाया में सुखाकर, पीसकर चूर्ण बना लें। इसमें से 2-2 ग्राम चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ रोगी को खिलाने से खसरा रोग में लाभ मिलता है।

45. गर्भस्राव (गर्भाशय से खून का बहना): गूलर के फलों का चूर्ण 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करते रहने और सोते समय जड़ की छाल का चूर्ण 1 चम्मच 1 चम्मच मिश्री के साथ रोजाना सेवन करने से गर्भस्राव नहीं होता।

46. पेट दर्द:गूलर का फल पीसकर पेट पर लेप करने से पेट दर्द ठीक हो जाता है। पेट में गैस बनने तथा आंतों की सूजन में इस प्रकार से उपचार करना लाभदायक होता है।

गूलर का फल खाने से पेट का दर्द ठीक हो जाता है।

47. दमा:गूलर की पेड़ की छाल उतारकर छाया में सुखा लें और फिर इसे पीसकर चूर्ण बना लें और फिर इसे छानकर बोतल में भरकर ढक्कन लगाकर रख दें। इसमें से चूर्ण का सेवन प्रतिदिन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।

सितम्बर से मार्च तक की हर पूर्णमासी की रात में जितना खीर खा सकें, उतने दूध में चावल (इस खीर में अरबा चावल उत्तम माने जाते हैं) डालकर खीर बनाएं। इस खीर को कांसे की थाली में डालकर फैलाकर, इस पर ढाई चम्मच गूलर की छाल का चूर्ण चारो और छिड़क दें। खीर रात को नौ बजे तक तैयार कर लें। इसे रात को नौ बजे से सुबह के चार बजे तक खुले स्थान पर चांदनी में रखें। सुबह चार बजे के तुरन्त बाद इसे भर पेट खा लें। खीर खाने से पहले मंजन करके मुंह को साफ कर लें। आम के हरे पत्ते से खीर खाएं। इसके बाद धीरे-धीरे थकान नहीं हो तब तक घूमते रहें। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है

48. मर्दाना शक्तिवर्द्धक (सेक्स पावर को बढ़ाना):1 छुहारे की गुठली निकालकर उसमें गूलर के दूध की 25 बूंद भरकर सुबह रोजाना खाये इससे वीर्य में शुक्राणु बढ़ते हैं तथा संतानोत्पत्ति में शुक्राणुओं की कमी का दोष भी दूर हो जाता है।

1 चम्मच गूलर के दूध में 2 बताशे को पीसकर मिला लें और रोजाना सुबह-शाम इसे खाकर उसके ऊपर से गर्म दूध पीएं इससे मर्दाना कमजोरी दूर होती है।

पका हुआ गूलर सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में इसी के बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर किसी बोतल में भर कर रख दें। इस चूर्ण में से 2 चम्मच की मात्रा गर्म दूध के साथ सेवन करने से मर्दाना शक्ति बढ़ जाती है। 2-2 घंटे के अन्तराल पर गूलर का दूध या गूलर का यह चूर्ण सेवन करने से दम्पत्ति वैवाहिक सुख को भोगते हुए स्वस्थ संतान को जन्म देते हैं

49. भगन्दर: गूलर के दूध में रूई का फोहा भिगोंकर इसे नासूर और भगन्दर के ऊपर रखें और इसे प्रतिदिन बदलते रहने से नासूर और भगन्दर ठीक हो जाता है।

50. खूनी बवासीर:गूलर के पत्तों या फलों के दूध की 10 से 20 बूंदे को पानी में मिलाकर रोगी को पिलाने से खूनी बवासीर और रक्तविकार दूर हो जाते हैं। गूलर के दूध का लेप मस्सों पर भी लगाना लाभकारी है।

10 से 15 ग्राम गूलर के कोमल पत्तों को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। 250 ग्राम गाय के दूध की दही में थोड़ा सा सेंधानमक तथा इस चूर्ण को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खूनी बवासीर के रोग में लाभ मिलता है।

गुलर फलों की सब्जी बनाकर खाने से बवासीर ठीक होता है।

51. बाजीकरणार्थ (काम उत्तेजना):4 से 6 ग्राम गूलर के फल का चूर्ण और बिदारी कन्द का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर मिश्री और घी मिले हुए दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पौरुष शक्ति की वृद्धि होती है व बाजीकरण की शक्ति बढ़ जाती है। यदि इस चूर्ण का उपयोग इस प्रकार से स्त्रियां करें तो उनके सारे रोग ठीक हो जाएंगे।

गर्मी के मौसम में गूलर के पके फलों का शर्बत बनाकर पीने से मन प्रसन्न होता है और शरीर में शक्ति की वृद्धि होती है तथा कई प्रकार के रोग जैसे- कब्ज तथा खांसी और दमा आदि ठीक हो जाते हैं।

52. पित्त ज्वर: 5 से 10 ग्राम गूलर की ताजी जड़ के रस में चीनी मिलाकर सुबह-शाम पीने से पित्त ज्वर ठीक हो जाता है।

53. पित्त की जलन: 1 ग्राम गूलर की गोंद और 3 ग्राम चीनी को मिलाकर सेवन करें इससे पित्त की जलन दूर होती है।

54. पित्त विकार: गूलर के पत्तों को पीसकर शहद के साथ चाटने से पित्त विकार दूर होते हैं।

55. शिशु की नाल या खेड़ी निकालना: गूलर की छाल 20 ग्राम की मात्रा में लेकर चावल के धोवन के साथ पीसकर सेवन करने से नाल (खेड़ी, अपरा) तुरन्त बाहर निकल जाती है और आराम मिलता है।

56. अतिक्षुधा (भस्मक, भूख अधिक लगना): 10 ग्राम गूलर की छाल को स्त्री के दूध में मिलाकर पीने से भस्मक रोग ठीक हो जाता है।

57. वमन (उल्टी): गूलर के दूध की 10 बूंदे सुबह और शाम दूध में मिलाकर बच्चों को पिलाने से बच्चों को उल्टी आना बंद हो जाता है।

58. गर्भपात रोकना:गर्भावस्था में खून का बहना और गर्भपात होने के लक्षण दिखाई दें तो तुरन्त ही गूलर की छाल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में अथवा 2 से 4 गूलर के फल को पीसकर इसमें चीनी मिलाकर दूध के साथ पीएं। जब तक रोग के लक्षण दूर न हो तब तक इसका प्रयोग 4 से 6 घंटे पर उपयोग में लें।

गूलर की जड़ अथवा जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भस्राव अथवा गर्भपात होना बंद हो जाता है।

59. आंव (पेचिश):5 से 10 ग्राम गूलर की जड़ का रस सुबह-शाम चीनी मिले दूध के साथ सेवन करने से आमातिसार (पेचिश) ठीक हो जाता है।

बताशे में गूलर के दूध की 4-5 बूंदे डालकर रोगी को खिलाने से आमातिसार (आंव) ठीक हो जाता है।

गूलर के पके फल खायें इससे पेचिश रोग ठीक हो जाता है।

गूलर को गर्म जल में उबालकर छान लें और इसे पीसकर रोटी बना लें फिर इसे खाएं इससे पेचिश में लाभ होता है।

60. जिगर का रोग:10 ग्राम की मात्रा में जंगली गुलर की जड़ की छाल पीसकर गाय के मूत्र में मिला लें और इसे छानकर 25 ग्राम की मात्रा में रोजाना पीने से से यकृत वृद्धि खत्म जाती है।

120-360 मिलीग्राम कठगूलर की छाल या फल सुबह-शाम सेवन करने से जिगर के रोग में लाभ मिलता है। ध्यान रहे इसे अधिक मात्रा में न सेवन करें इससे उल्टी आ सकती है।

61. प्रसव होने में देर होना: प्रसव में देरी हो तो गूलर की छाल को कूटकर पानी में अच्छी तरह पकाकर प्रसूता स्त्री को पिलाएं इससे प्रसव होने में आसानी हो जाती है।

62. वीर्य रोग:गूलर का दूध बताशे छिड़कर खाने से वीर्य शुद्ध होता है।

पकी गूलर का चूर्ण शहद या सेंधा नमक के साथ खाने से भी वीर्य शुद्ध होता है।

63. योनि संकोचन: गूलर के गूदे को बारीक पीसकर कपड़े से छान लें, फिर इस पीसे चूर्ण को शहद में मिलाकर योनि पर लगाएं तथा अन्त में सूखने के बाद हल्के गर्म पानी से धो लें इससे आराम मिलता है।

64. उरूस्तम्भ (जांघ का सुन्न होना): हरड़ व शुद्ध गूलर को खाने के बाद ऊपर से गाय के पेशाब को पीये इससे जांघों की सूजन व दर्द दूर हो जाता है।

65. शरीर को शक्तिशाली बनाना: लगभग 100 ग्राम की मात्रा में गूलर के कच्चे फलों का चूर्ण बनाकर इसमें 100 ग्राम मिश्री मिलाकर रख दें। अब इस चूर्ण में से लगभग 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना दूध के साथ लेने से शरीर को भरपूर ताकत मिलती है।

66. बच्चों के रोग: गूलर, बड़, पाखर, बेत और जामुन की छाल (खाल), मुलेठी, मंजीठ, चंदन, खस और पद्माक को बारीक पीसकर लेप बना लें। इस लेप को बच्चों के शरीर की त्वचा पर लगाने से सूजन, जलन, लाली, विस्फोटक, पीड़ा और अन्य रोग ठीक हो जाते हैं।

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूर्णतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

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