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: सपने तथा संभावित फल,,,, 😳🤔
1- सांप दिखाई देना- धन लाभ
2- नदी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
3- नाच-गाना देखना- अशुभ समाचार मिलने के योग
4- नीलगाय देखना- भौतिक सुखों की प्राप्ति
5- नेवला देखना- शत्रुभय से मुक्ति
6- पगड़ी देखना- मान-सम्मान में वृद्धि
7- पूजा होते हुए देखना- किसी योजना का लाभ मिलना
8- फकीर को देखना- अत्यधिक शुभ फल
9- गाय का बछड़ा देखना- कोई अच्छी घटना होना
10- वसंत ऋतु देखना- सौभाग्य में वृद्धि
11- स्वयं की बहन को देखना- परिजनों में प्रेम बढऩा
12- बिल्वपत्र देखना- धन-धान्य में वृद्धि
13- भाई को देखना- नए मित्र बनना
14- भीख मांगना- धन हानि होना
15- शहद देखना- जीवन में अनुकूलता
16- स्वयं की मृत्यु देखना- भयंकर रोग से मुक्ति
17- रुद्राक्ष देखना- शुभ समाचार मिलना
18- पैसा दिखाई- देना धन लाभ
19- स्वर्ग देखना- भौतिक सुखों में वृद्धि
20- पत्नी को देखना- दांपत्य में प्रेम बढ़ना
21- स्वस्तिक दिखाई देना- धन लाभ होना
22- हथकड़ी दिखाई देना- भविष्य में भारी संकट
23- मां सरस्वती के दर्शन- बुद्धि में वृद्धि
24- कबूतर दिखाई देना- रोग से छुटकारा
25- कोयल देखना- उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति
26- अजगर दिखाई देना- व्यापार में हानि
27- कौआ दिखाई देना- बुरी सूचना मिलना
28- छिपकली दिखाई देना- घर में चोरी होना
29- चिडिय़ा दिखाई देना- नौकरी में पदोन्नति
30- तोता दिखाई देना- सौभाग्य में वृद्धि
31- भोजन की थाली देखना- धनहानि के योग
32- इलाइची देखना- मान-सम्मान की प्राप्ति
33- खाली थाली देखना- धन प्राप्ति के योग
34- गुड़ खाते हुए देखना- अच्छा समय आने के संकेत
35- शेर दिखाई देना- शत्रुओं पर विजय
36- हाथी दिखाई देना- ऐेश्वर्य की प्राप्ति
37- कन्या को घर में आते देखना- मां लक्ष्मी की कृपा मिलना
38- सफेद बिल्ली देखना- धन की हानि
39- दूध देती भैंस देखना- उत्तम अन्न लाभ के योग
40- चोंच वाला पक्षी देखना- व्यवसाय में लाभ
41- स्वयं को दिवालिया घोषित करना- व्यवसाय चौपट होना
42- चिडिय़ा को रोते देखता- धन-संपत्ति नष्ट होना
43- चावल देखना- किसी से शत्रुता समाप्त होना
44- चांदी देखना- धन लाभ होना
45- दलदल देखना- चिंताएं बढऩा
46- कैंची देखना- घर में कलह होना
47- सुपारी देखना- रोग से मुक्ति
48- लाठी देखना- यश बढऩा
49- खाली बैलगाड़ी देखना- नुकसान होना
50- खेत में पके गेहूं देखना- धन लाभ होना
51- किसी रिश्तेदार को देखना- उत्तम समय की शुरुआत
52- तारामंडल देखना- सौभाग्य की वृद्धि
53- ताश देखना- समस्या में वृद्धि
54- तीर दिखाई- देना लक्ष्य की ओर बढऩा
55- सूखी घास देखना- जीवन में समस्या
56- भगवान शिव को देखना- विपत्तियों का नाश
57- त्रिशूल देखना- शत्रुओं से मुक्ति
58- दंपत्ति को देखना- दांपत्य जीवन में अनुकूलता
59- शत्रु देखना- उत्तम धनलाभ
60- दूध देखना- आर्थिक उन्नति
61- धनवान व्यक्ति देखना- धन प्राप्ति के योग
62- दियासलाई जलाना- धन की प्राप्ति
63- सूखा जंगल देखना- परेशानी होना
64- मुर्दा देखना- बीमारी दूर होना
65- आभूषण देखना- कोई कार्य पूर्ण होना
66- जामुन खाना- कोई समस्या दूर होना
67- जुआ खेलना- व्यापार में लाभ
68- धन उधार देना- अत्यधिक धन की प्राप्ति
69- चंद्रमा देखना- सम्मान मिलना
70- चील देखना- शत्रुओं से हानि
71- फल-फूल खाना- धन लाभ होना
72- सोना मिलना- धन हानि होना
73- शरीर का कोई अंग कटा हुआ देखना- किसी परिजन की मृत्यु के योग
74- कौआ देखना- किसी की मृत्यु का समाचार मिलना
75- धुआं देखना- व्यापार में हानि
76- चश्मा लगाना- ज्ञान में बढ़ोत्तरी
77- भूकंप देखना- संतान को कष्ट
78- रोटी खाना- धन लाभ और राजयोग
79- पेड़ से गिरता हुआ देखना किसी रोग से मृत्यु होना
80- श्मशान में शराब पीना- शीघ्र मृत्यु होना
81- रुई देखना- निरोग होने के योग
82- कुत्ता देखना- पुराने मित्र से मिलन
83- सफेद फूल देखना- किसी समस्या से छुटकारा
84- उल्लू देखना- धन हानि होना
85- सफेद सांप काटना- धन प्राप्ति
86- लाल फूल देखना- भाग्य चमकना
87- नदी का पानी पीना- सरकार से लाभ
88- धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाना- यश में वृद्धि व पदोन्नति
89- कोयला देखना- व्यर्थ विवाद में फंसना
90- जमीन पर बिस्तर लगाना- दीर्घायु और सुख में वृद्धि
91- घर बनाना- प्रसिद्धि मिलना
92- घोड़ा देखना- संकट दूर होना
93- घास का मैदान देखना- धन लाभ के योग
94- दीवार में कील ठोकना- किसी बुजुर्ग व्यक्ति से लाभ
95- दीवार देखना- सम्मान बढऩा
96- बाजार देखना- दरिद्रता दूर होना
97- मृत व्यक्ति को पुकारना- विपत्ति एवं दुख मिलना
98- मृत व्यक्ति से बात करना- मनचाही इच्छा पूरी होना
99- मोती देखना- पुत्री प्राप्ति
100- लोमड़ी देखना- किसी घनिष्ट व्यक्ति से धोखा मिलना
101- गुरु दिखाई देना- सफलता मिलना
102- गोबर देखना- पशुओं के व्यापार में लाभ
103- देवी के दर्शन करना- रोग से मुक्ति
104- चाबुक दिखाई देना- झगड़ा होना
105- चुनरी दिखाई देना- सौभाग्य की प्राप्ति
106- छुरी दिखना- संकट से मुक्ति
107- बालक दिखाई देना- संतान की वृद्धि
108- बाढ़ देखना- व्यापार में हानि
109- जाल देखना- मुकद्में में हानि
110- जेब काटना- व्यापार में घाटा
111- चेक लिखकर देना- विरासत में धन मिलना
112- कुएं में पानी देखना- धन लाभ
113- आकाश देखना- पुत्र प्राप्ति
114- अस्त्र-शस्त्र देखना- मुकद्में में हार
115- इंद्रधनुष देखना- उत्तम स्वास्थ्य
116- कब्रिस्तान देखना- समाज में प्रतिष्ठा
117- कमल का फूल देखना- रोग से छुटकारा
118- सुंदर स्त्री देखना- प्रेम में सफलता
119- चूड़ी देखना- सौभाग्य में वृद्धि
120- कुआं देखना- सम्मान बढऩा
121- अनार देखना- धन प्राप्ति के योग
122- गड़ा धन दिखाना- अचानक धन लाभ
123- सूखा अन्न खाना- परेशानी बढऩा
124- अर्थी देखना- बीमारी से छुटकारा
125- झरना देखना- दु:खों का अंत होना
126- बिजली गिरना- संकट में फंसना
127- चादर देखना- बदनामी के योग
128- जलता हुआ दीया देखना- आयु में वृद्धि
129- धूप देखना- पदोन्नति और धनलाभ
130- रत्न देखना- व्यय एवं दुख
131- चंदन देखना- शुभ समाचार मिलना
132- जटाधारी साधु देखना- अच्छे समय की शुरुआत
133- स्वयं की मां को देखना- सम्मान की प्राप्ति
134- फूलमाला दिखाई देना- निंदा होना
135- जुगनू देखना- बुरे समय की शुरुआत
136- टिड्डी दल देखना- व्यापार में हानि
137- डाकघर देखना- व्यापार में उन्नति
138- डॉक्टर को देखना- स्वास्थ्य संबंधी समस्या
139- ढोल दिखाई देना- किसी दुर्घटना की आशंका
140- मंदिर देखना- धार्मिक कार्य में सहयोग करना
141- तपस्वी दिखाई- देना दान करना
142- तर्पण करते हुए देखना- परिवार में किसी बुर्जुग की मृत्यु
143- डाकिया देखना- दूर के रिश्तेदार से मिलना
144- तमाचा मारना- शत्रु पर विजय
145- विवाह होते हुए देखना- शोक होना
146- दवात दिखाई देना- धन आगमन
147- नक्शा देखना- किसी योजना में सफलता
148- नमक देखना- स्वास्थ्य में लाभ
149- कचहरी देखना- विवाद में पडऩा
150- पगडंडी देखना- समस्याओं का निराकरण
151- आंख खुजाना- धन लाभ
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जन्म, मृत्यु और पुनर्जन्म किसे कहते हैं?

अधिकतर लोगों को यह प्रश्न कठिन या धार्मिक लग सकते हैं क्योंकि उन्होंने वेद, उपनिषद या गीता को नहीं पढ़ा है। उसमें शाश्वत प्रश्नों के शाश्वत उत्तर है।

जैसे कोई पूछ सकता है कि जन्म क्या है? हो सकता है कि आपके पास उत्तर हो कि किसी आत्मा का किसी शरीर में प्रवेश करना जन्म है, लेकिन यह सही उत्तर नहीं है।

आत्मा का भी सूक्ष्म शरीर होता ‌‌है। इसीलिए कहते हैं कि आत्मा के सूक्ष्म शरीर को लेकर स्थूल शरीर से संबंध स्थापित हो जाना ही जन्म है। अब सवाल यह उठता है कि यह संबंध कैसे स्थापित होता है?

दरअसल, प्राणों के द्वारा यह संबंध स्थापित होता है। सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच प्राण प्राण सेतु की तरह या रस्सी के बंधन की तरह है। जन्म को जाति भी कहा जाता है। जैसे उदाहरणार्थ.: वनस्पति जाति, पशु जाति, पक्षी जाति और मनुष्य जाति। जन्म को जाति कहते हैं। कर्मों के अनुसार जीवात्मा जिस शरीर को प्राप्त होता है वह उसकी जाति कहलाती है।

जन्म के बाद मृत्यु क्या है?
इसका उत्तर जन्म के उत्तर में ही छिपा हुआ है। दरअसल, सूक्ष्म शरीर और स्थूल शरीर के बीच जो प्राणों का संबंध स्थापित है उसका संबंध टूट जाना ही मृत्यु है। प्रश्न यह भी है कि प्राण क्या है? आपके भीतर जो वायु का आवागमन हो रहा है वह प्राण है। प्राण को प्राणायाम से सेहतमंद बनाए रखा जा सकता है। प्राण के निकल जाने से व्यक्ति को मृत घोषित किया जाता है। यदि प्राणायाम द्वारा प्राण को शुद्ध और दीर्घ किया जा सके तो व्यक्ति की आयु भी दीर्घ हो जाती है।

जिस तरह हमारे शरीर के बाहर कई तरह की वायु विचरण कर रही है उसी तरह हमारे शरीर में भी कई तरह की वायु विचरण कर रही है। वायु है तो ही प्राण है। अत: वायु को प्राण भी कहा जाता है। वैदिक ऋषि विज्ञान के अनुसार कुल 28 तरह के प्राण होते हैं। प्रत्येक लोक में 7-7 प्राण होते हैं। जिस तरह ब्राह्माण में कई लोकों की स्थिति है जैसे स्वर्ग लोक (सूर्य या आदित्य लोक), अं‍तरिक्ष लोक (चंद्र या वायु लोक), पृथिवि (अग्नि लोक) लोक आदि, उसी तरह शरीर में भी कई लोकों की स्थिति है।

मृत्यु के बाद पुनर्जन्म क्या है?
उपनिषदों के अनुसार एक क्षण के कई भाग कर दीजिए उससे भी कम समय में आत्मा एक शरीर छोड़ तुरंत दूसरे शरीर को धारण कर लेता है।

यह सबसे कम समयावधि है। सबसे ज्यादा समायावधि है 30 सेकंड। सूक्ष्म शरीर को धारण किए हुए आत्मा का स्थूल शरीर के साथ बार-बार संबंध टूटने और बनने को पुनर्जन्म कहते हैं।

कर्म और पुनर्जन्म एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। कर्मों के फल के भोग के लिए ही पुनर्जन्म होता है तथा पुनर्जन्म के कारण फिर नए कर्म संग्रहीत होते हैं। इस प्रकार पुनर्जन्म के दो उद्देश्य हैं- पहला, यह कि मनुष्य अपने जन्मों के कर्मों के फल का भोग करता है जिससे वह उनसे मुक्त हो जाता है। दूसरा, यह कि इन भोगों से अनुभव प्राप्त करके नए जीवन में इनके सुधार का उपाय करता है जिससे बार-बार जन्म लेकर जीवात्मा विकास की ओर निरंतर बढ़ती जाती है तथा अंत में अपने संपूर्ण कर्मों द्वारा जीवन का क्षय करके मुक्तावस्था को प्राप्त होती है।
पूजा कब ” आडम्बर ” मे परिवर्तित हो जाती है इसका हमे भान नहीं रहता।पूजा को ठीक से समझने के लिये हमे ” समर्पण ” को समझना आवश्यक है क्योंकि समर्पण के बिना पूजा संभव नहीं है ।भक्त एवं ज्ञानी दोनो समर्पण करते हैं लेकिन दोनो के समर्पण मे थोड़ा किन्तु मूलभूत अन्तर होता है।भक्त जब समर्पण करता है तो उसका समर्पण ” परमात्मा ” के प्रति होता है।उसमे परमात्मा का पता है लेकिन ज्ञानी जब समर्पण करता है तो वह शुद्ध समर्पण होता है, वह किसी के प्रति नही होता ,बस समर्पण की प्रक्रिया घटती है।जबतक भक्त का समर्पण ज्ञानी के समर्पण मे रूपान्तरित न हो जाय ,बात नही बनती है ।आरम्भ में भक्त के समर्पण में परमात्मा मौजूद रहता है जिसके प्रति वह समर्पण करता है किन्तु बाद में ऐसी घड़ी भी आती है जब भक्त व भगवान एक दूसरे मे लीन हो जाते है तब शुद्ध समर्पण रह जाता है और पूजा पूर्णता को प्राप्त होती है।एक तो भक्त का समर्पण है जो ” प्रेम” से उत्पन्न होता है और दूसरा ज्ञानी का समर्पण है जो ” बोध ” से पैदा होता है इसीलिए ज्ञानी भक्त के समर्पण को समझ नही पाता ।हमारे देश मे किसी भी स्थान पर वृक्ष आदि के नीचे किसी अनगढ़ अमूर्त पत्थर को रखकर रंग दिया जाता है ,सिन्दूर लगा दिया जाता है और उसके सामने बैठकर पुष्प चढाकर भक्त पूजा शुरु कर देता है ।ज्ञानी को इस प्रक्रिया पर हंसी आती है लेकिन भक्त कहता है कि बिना सहारे के कैसे पूजा करें? कोई आलंबन चाहिए, कोई बहाना चाहिए ।मूल बात तो पूजा का भाव है लेकिन पत्थर के सहारे पूजा आसान हो जाती है ।जैसे हम छोटे बच्चे को सिखाते है ” ग” से गणेश या ” ग” से गदहा ।यह तो बहाना है , सहारा है उसे भाषा सिखाने का ।बच्चा एक बार सीख – समझ जायेगा तो फिर इस सहारे को छोड़ देगा ,बार- बार “ग” से गणेश थोड़े ही दोहरायेगा ।इसी तरह पूजा के लिये प्रारंभिक स्थिति में सहारा चाहिये होता है ,भक्त को पत्थर का सहारा मिलता है जिसपर वह अपना प्रेम उड़ेल देता है और पत्थर ही उसके लिये परमात्मा हो जाता है।समस्या तो तब उत्पन्न होती है जब हम इस सहारे पर ही अटक जाते हैं, “ग” गणेश से आगे नही बढते और पूजा अधूरी रह जाती है और उसकी जगह आडंबर ले लेता है ।भक्त की पूजा तब तक पूर्ण नही होती जब तक वह सहारे को नही छोड़ता यानी जब भक्त और परमात्मा एक हो जाते हैं और शुद्ध समर्पण शेष रह जाता है ।दरअसल पूजा सिर्फ कर्मकांड ही नही बल्कि ” भावावस्था ” का नाम है. : पेड़ो के बारे मे महत्वपूर्ण जानकारी।
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♡. पेड़ धरती पर सबसे पुरानें living organism हैं, और ये कभी भी ज्यादा उम्र की वजह से नही मरते.
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♡. हर साल 5 अऱब पेड़ लगाए जा रहे है लेकिन हर साल 10 अऱब पेड़ काटे भी जा रहे हैं.
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♡. एक पेड़ दिन में इतनी ऑक्सीजन देता है कि 4 आदमी जिंदा रह सकें.
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♡.देशों की बात करें, तो दुनिया में सबसे ज्यादा पेड़ रूस में है उसके बाद कनाडा में उसके बाद ब्राज़ील में फिर अमेरिका में और उसके बाद भारत में केवल 35 अऱब पेड़ बचे हैं.
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♡.दुनिया की बात करें, तो 1 इंसान के लिए 422 पेड़ बचे है. लेकिन अगर भारत की बात करें,तो 1 हिंदुस्तानी के लिए सिर्फ 28 पेड़ बचे हैं.
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♡. पेड़ो की कतार धूल-मिट्टी के स्तर को 75% तक कम कर देती है. और 50% तक शोर को कम करती हैं.
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♡. एक पेड़ इतनी ठंड पैदा करता है जितनी 1 A.C 10 कमरों में 20 घंटो तक चलने पर करता है. जो इलाका पेड़ो से घिरा होता है वह दूसरे इलाकों की तुलना में 9 डिग्री ठंडा रहता हैं.
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♡. पेड़ अपनी 10% खुराक मिट्टी से और 90% खुराक हवा से लेते है. एक पेड़ में एक साल में2,000 लीटरपानीधरती से चूस लेता हैं.
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♡. एक एकड़ में लगे हुए पेड़ 1 साल में इतनीCo2सोख लेते है जितनीएक कार 41,000 km चलने परछोड़ती हैं.
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♡. दुनिया की 20% oxygen अमेजन के जंगलो द्वारा पैदा की जाती हैं. ये जंगल 8 करोड़ 15लाख एकड़ में फैले हुए हैं.
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♡. इंसानो की तरह पेड़ो को भी कैंसर होती है.कैंसर होने के बाद पेड़ कम ऑक्सीजन देने लगते हैं.
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♡. पेड़ की जड़े बहुत नीचे तक जा सकती है. दक्षिण अफ्रिका में एक अंजीर के पेड़ की जड़े 400 फीट नीचे तक पाई गई थी.
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♡. दुनिया का सबसे पुराना पेड़स्वीडन के डलारना प्रांतमें है.टीजिक्कोनाम का यह पेड़ 9,550 साल पुराना है. इसकी लंबाई करीब 13 फीट हैं.
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♡.किसी एक पेड़ का नाम लेना मुश्किल है लेकिन तुलसी, पीपल, नीम और बरगद दूसरों के मुकाबले ज्यादा ऑक्सीजन पैदा करते हैं.

🙏इस बरसात में कम से कम एक पेड़ अवश्य लगायें🙏
स्वयं जगें लोगों को जगाएं…मिलकर पर्यावरण बचाएँ
🙏 जय प्रकृति.🙏🏻
[जानिए आपके प्राण कहाँ से निकलेंगे…

प्रत्येक व्यक्ति अलग इंद्रिय से मरता है।किसी की मौत आंख से होती है, तो आंख खुली रह जाती है—हंस आंख से उड़ा। किसी की मृत्यु कान से होती है। किसी की मृत्यु मुंह से होती है, तो मुंह खुला रह जाता है।

अधिक लोगों की मृत्यु जननेंद्रिय से होती है, क्योंकि अधिक लोग जीवन में जननेंद्रिय के आसपास ही भटकते रहते हैं, उसके ऊपर नहीं जा पाते।

आपकी जिंदगी जिस इंद्रिय के पास जीयी गई है, उसी इंद्रिय से मौत होगी। औपचारिक रूप से हम मृतक को जब मरघट ले जाते हैं तो उसकी कपाल—क्रिया करते हैं, उसका सिर तोड़ते हैं। वह सिर्फ प्रतीक है। पर समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु उस तरह होती है। समाधिस्थ व्यक्ति की मृत्यु सहस्रार से होती है।

जननेंद्रिय सबसे नीचा द्वार है। जैसे कोई अपने घर की नाली में से प्रवेश करके बाहर निकले। सहस्रार, जो तुम्हारे मस्तिष्क में है द्वार, वह श्रेष्ठतम द्वार है।

जननेंद्रिय पृथ्वी से जोड़ती है, सहस्रार आकाश से। जननेंद्रिय देह से जोड़ती है, सहस्रार आत्मा से। जो लोग समाधिस्थ हो गए हैं, जिन्होंने ध्यान को अनुभव किया है, जो बुद्धत्व को उपलब्ध हुए हैं, उनकी मृत्यु सहस्रार से होती है।

उस प्रतीक में हम अभी भी कपाल—क्रिया करते हैं। मरघट ले जाते हैं, बाप मर जाता है, तो बेटा लकड़ी मारकर सिर तोड़ देता है। मरे—मराए का सिर तोड़ रहे हो!

प्राण तो निकल ही चुके, अब काहे के लिए दरवाजा खोल रहे हो? अब निकलने को वहां कोई है ही नहीं। मगर प्रतीक, औपचारिक, आशा कर रहा है बेटा कि बाप सहस्रार से मरे; मगर बाप तो मर ही चुका है।

यह दरवाजा मरने के बाद नहीं खोला जाता, यह दरवाजा जिंदगी में खोलना पड़ता है। इसी दरवाजे की तलाश में सारे योग, तंत्र की विद्याओं का जन्म हुआ। इसी दरवाजे को खोलने की कुंजियां हैं योग में, तंत्र में।

इसी दरवाजे को जिसने खोल लिया, वह परमात्मा को जानकर मरता है। उसकी मृत्यु समाधि हो जाती है। इसलिए हम साधारण आदमी की कब्र को कब्र कहते हैं, फकीर की कब्र को समाधि कहते हैं—समाधिस्थ होकर जो मरा है।

प्रत्येक व्यक्ति उस इंद्रिय से मरता है, जिस इंद्रिय के पास जीया। जो लोग रूप के दीवाने हैं, वे आंख से मरेंगे; इसलिए चित्रकार, मूर्तिकार आंख से मरते हैं। उनकी आंख खुली रह जाती है। जिंदगी—भर उन्होंने रूप और रंग में ही अपने को तलाशा, अपनी खोज की। संगीतज्ञ कान से मरते हैं। उनका जीवन कान के पास ही था।

उनकी सारी संवेदनशीलता वहीं संगृहीत हो गई थी। मृत्यु देखकर कहा जा सकता है—आदमी का पूरा जीवन कैसा बीता। अगर तुम्हें मृत्यु को पढ़ने का ज्ञान हो, तो मृत्यु पूरी जिंदगी के बाबत खबर दे जाती है कि आदमी कैसे जीया; क्योंकि मृत्यु सूचक है, सारी जिंदगी का सार—निचोड़ है—आदमी कहां जीया।

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मृत्यु के समय जीव के साथ क्या घटित हो रहा होता है उसका वहां अन्य लोगों को अंदाज़ नही हो पाता । लेकिन घटनाएं तेज़ी से घटती हैं । मृत्यु के समय व्यक्ति की सबसे पहले वाक उसके मन में विलीन हो जाती है ।उसकी बोलने की शक्ति समाप्त हो जाती है।

उस समय वह मन ही मन विचार कर सकता है लेकिन कुछ बोल नहीं सकता । उसके बाद दृष्टिऔर फिरश्रवण इन्द्रिय मन में विलीन हो जाती हैं । उस समय वह न देख पाता है, न बोल पाता है और न ही सुन पाता है ।/

उसके बाद मन इन इंद्रियों के साथ प्राण में विलीन हो जाता है उस समय सोचने समझने की शक्ति समाप्त हो जाती है, केवल श्वास-प्रश्वास चलती रहती है ।

इसके बाद सबके साथ प्राण सूक्ष्म शरीर मे प्रवेश करता है । फिर जीव सूक्ष्म रूप से पृथ्वी, अग्नि, जल, वायु और आकाश (पञ्च तन्मात्राओं) का आश्रय लेकर हृदय देश से निकलने वाली 101 नाड़ियों में से किसी एक में प्रवेश करता है ।

हृदय देश से जो 101 नाड़ियां निकली हुई है, मृत्यु के समय जीव इन्हीं में से किसी एक नाड़ी में प्रवेश कर देह-त्याग करता है । मोक्ष प्राप्त करने वाला जीव जिस नाड़ी में प्रवेश करता है, वह नाड़ी हृदय से मस्तिष्क तक फैली हुई है । जो मृत्यु के समय आवागमन से मुक्त नहीं हो रहे होते वे जीव किसी दूसरी नाड़ी में प्रवेश करते हैं ।

जीव जब तक नाड़ी में प्रवेश नही करता तब तक ज्ञानी और मूर्ख दोनों की एक गति एक ही तरह की होती है । नाड़ी में प्रवेश करने के बाद जीवन की अलग अलग गतियां होती हैं।

श्री आदि शंकराचार्य जी का कथन है कि ‘जो लोग ब्रह्मविद्या की प्राप्ति करते हैं वो मृत्यु के बाद देह ग्रहण नही करते, बल्कि मृत्यु के बाद उनको मोक्ष प्राप्त हो जाता है’ । श्री रामानुज स्वामी का कहना है ‘ब्रह्मविद्या प्राप्त होने के बाद भी जीव जीव देवयान पथ पर गमन करने के बाद ब्रह्म को प्राप्त हो जाता है, उसके बाद मुक्त हो जाता है’ ।

देवयान पथ के संदर्भ में श्री आदि शंकराचार्य जी ने स्पष्ट उल्लेख किया है कि ‘जो सगुण ब्रह्म की उपासना करते हैं वे ही सगुण ब्रह्म को प्राप्त होते हैं और जो निर्गुण ब्रह्म की उपासना कर ब्रह्मविद्या प्राप्त करते हैं वे लोग देवयान पथ से नहीं जाते’।

अग्नि के सहयोग से जब स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है, उस समय सूक्ष्म शरीर नष्ट नहीं हुआ करता ।

मृत्यु के बाद शरीर का जो भाग गर्म महसूस होता है, वास्तव में उसी स्थान से सूक्ष्म शरीर देह त्याग करता है । इसलिए वह स्थान थोड़ा गर्म महसूस होता है ।

गीता के अनुसार जो लोग मृत्यु के अनंतर देवयान पथ से गति करते हैं उनको ‘अग्नि’ और ‘ज्योति’ नाम के देवता अपने अपने अधिकृत स्थानों के द्वारा ले जाते हैं । उसके बाद ‘अह:’ अथवा दिवस के अभिमानी देवता ले जाते हैं । उसके बाद शुक्ल-पक्ष व उत्तरायण के देवता ले जाते हैं ।

थोड़ा स्पष्ट शब्दों में कहे तो देवयान पथ में सबसे पहले अग्नि-देवता का देश आता है फिर दिवस-देवता, शुक्ल-पक्ष, उत्तरायण, वत्सर और फिर आदित्य देवता का देश आता है । देवयान मार्ग इन्हीं देवताओं के अधिकृत मार्ग से ही होकर गुजरता है ।

उसके बाद चन्द्र, विद्युत, वरुण, इन्द्र, प्रजापति तथा ब्रह्मा, क्रमशः आदि के देश पड़ते हैं । जो ईश्वर की पूजा-पाठ करते हैं, भक्ति करते हैं वो इस मार्ग से जाते हैं और उनका पुनर्जन्म नहीं होता तथा वो अपने अभीष्ट के अविनाशी धाम चले जाते हैं ।

पितृयान मार्ग से भी चन्द्रलोक जाना पड़ता है, लेकिन वो मार्ग थोड़ा अलग होता है । उस पथ पर धूम, रात्रि, कृष्ण-पक्ष, दक्षिणायन आदि के अधिकृत देश पड़ते हैं। अर्थात ये सब देवता उस जीव को अपने देश के अधिकृत स्थान के मध्य से ले जाते हैं।

चन्द्रलोक कभी अधिक गर्म तो कभी अतरिक्त शीतल हो जाता है । वहां अपने स्थूल शरीर के साथ कोई नहीं रह सकता, लेकिन अपने सूक्ष्म शरीर (जो मृत्यु के बाद मिलता है) कि साथ चन्द्रलोक में रह सकता है ।

जो ईश्वर पूजा नहीं करते, परोपकार नही करते, हर समय केवल इन्द्रिय सुख-भोग में अपना जीवन व्यतीत करते हैं, वे लोग मृत्यु के बाद न तो देवयान पथ से और न ही पितृयान पथ से जाते है बल्कि वे पशु योनि
(जैसी उनकी आसक्ति या वासना हो) में बार बार यही जन्म लेकर यही मरते रहते हैं ।

जो लोग अत्यधिक पाप करते है, निरीह और असहायों को सताने में जिनको आनंद आता है, ऐसे नराधमों की गति (मृत्य के बाद) निम्न लोकों में यानी कि नरक में होती है । यहां ये जिस स्तर का कष्ट दूसरों को दिए होते हैं उसका दस गुणा कष्ट पाते हैं । विभिन्न प्रकार के नरकों का वर्णन भारतीय ग्रंथों में दिया गया है ।

अतः नारायण का स्मरण सदैव करें।समय बीतता जा रहा है।जीवन क्षणभंगुर है।

🙏🙏
[ 🕉🕉🕉🕉🕉सौभाग्यलक्ष्मी प्रयोग 🕉🕉🕉🕉

अगर साधक नित्य प्रातः उठ कर स्नान आदि सी निवृत हो कर कमलगट्टे की माला से उत्तर दिशा की तरफ मुह कर निम्न मंत्र की एक माला मंत्र जाप करे तो साधक का भाग्योदय होने लगता है तथा उसे सभी क्षेत्रो मे अनुकूलता प्राप्त होने लगती है. साधक इसमें किसी भी वस्त्र का प्रयोग कर सकता है. इस प्रयोग को शुक्रवार से शुरू करना चाहिए

📿ॐ श्रीं सौभाग्यलक्ष्मी भाग्योदय सिद्धिं श्रीं नमः 📿

साधक इस मंत्र का १ महीने तक नियमित जाप करे तो उत्तम है. वैसे साधक जितने दिन तक चाहे इस मंत्र की १ माला जाप सुबह कर सकता है
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[नाथपंथ और शाबरी विद्या क्या है (संक्षिप्त परिचय) |

सत नमो आदेश! गुरूजी को आदेश!

                जन सामान्य का मानना है किनाथ संप्रदाय का जन्म सातवी सताब्दी केआसपास हुआ है, यह बात एक दम झूठहै ! नाथ संप्रदाय तो सतयुग से चला आरहा है! यह जरूर कहा जा सकता है किनाथ संप्रदाय सातवी सताब्दी में बहुतफला फूला और इस सारे विश्व में सूर्य कीतरह चमकने लगा !

नाथ संप्रदाय के संस्थापक स्वयंभगवान आदिनाथ शिव है! उन्ही से प्रेरितहोकर भगवान दत्तात्रेय ने जन कल्याण केलिए नाथ संप्रदाय की रचना की. प्रथमनाथ सहस्त्रार्जुन थे ! सहस्त्रार्जुन भगवानदत्तात्रेय के प्रथम शिष्य थे और वो प्रथमनाथ थे ! मेरे मित्र सिद्ध श्री. विक्रांतनाथजी के गुरूदेव सिद्ध श्री. रक्खारामजी कहते थे कि नाथ का अर्थहोता है न अथ अर्थात जिस से ऊपर कुछन हो पर लोग नाथ का अर्थ स्वामी के रूपमें मान लेते है!

सतयुग में नवनाथ इस प्रकार थे :

१. आदिनाथ

२. दत्तात्रेय

३. सहस्त्रार्जुन

४. देवदत

५. जड्भरत

६. नागार्जुन

७. मत्स्येन्द्रनाथ

८. जालंधरनाथ

९. गोरक्षनाथ

      स्कंदपुराण और नारदपुराण में नारदब्रह्म संवाद में लिखा है कि एक बार माँपार्वती ने शिव से कहा जिस जगह आप हैउस जगह मै भी हूँ ! मेरे बिना आप कुछभी नहीं इस लिए मेरी सत्ता ही प्रधान है !भगवान शिव ने कहा देवी जिस जगहघड़ा होता है उस जगह मृतिका होती हैपर जिस जगह मृतिका हो उस जगह घड़ाभी हो ये जरूरी तो नहीं पर माँ पार्वतीनहीं मानी !

     माँ पार्वती के घमंड का नाश करने केलिए भगवान शिव ने गोरक्षनाथ के रूप मेंअवतार लिया और योग विद्या का प्रचारकिया ! योग विद्या भगवान गोरक्षनाथ कीविद्या मानी जाती है ! अघोर विद्याभगवान शिव की विद्या मानी जाती है !योनि साधना माँ भगवती की विद्या मानीजाती है ! इन तीनो विद्याओ का मिश्रण हीनाथ संप्रदाय है ! नाथ संप्रदाय की श्रेष्ठताइसी बात से सिद्ध होती है कि सतयुग मेंराक्षसराज रावण को नाथ योगीसहस्त्रार्जुन ने ६ महीने तक अपनी बगलमें दबाकर शिव की तपस्या की थी औरबाद में सहस्त्रार्जुन की क़ैद से उन्हेंभगवान परशुराम ने छुडाया था !

कलयुग में भगवान दत्तात्रेय नेदोबारा नाथ पंथ का गठन किया औरनवनाथों का संघ स्थापित किया ! आगेचलकर नवनाथो में ८४ सिद्ध हुए ! ८४सिद्धो के माध्यम से नाथ पंथ का बहुतप्रचार हुआ ! नवनाथो में १२ पंथ हुए है !प्रत्येक पंथ में नवनाथों की प्रणाली अलगअलग है ! 

नवनाथों के नाम इस प्रकार है :

१.आदिनाथ

२.उदयनाथ

३.सत्यनाथ

४.संतोषनाथ

५.अचम्भेनाथ

६.गज कंथडनाथ

७.चौरंगीनाथ

८.मत्स्येन्द्रनाथ

९.गोरक्षनाथ

हमारे महाराष्ट्र में प्रचलित नवनाथ इस प्रकार है :

१.गोरक्षनाथ

२.जालिंदरनाथ

३.चर्पटीनाथ

४.अडबंगनाथ

५.कानिफनाथ

६.मच्छिंद्रनाथ

७.चौरंगीनाथ

८.रेवणनाथ

९.भर्तुहरीनाथ

नाथ सम्प्रदाय में १२ पंथ हुए जो इसप्रकार है :

१. सत्यनाथी (सतनाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन उत्तरांचल में निवास करते है !

२. रामनाथी (राम के ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन हरियाणा और नेपाल में निवासकरते है !

३.पागलपंथी ( पाकल ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन पाकिस्तान और हरियाणा मेंनिवास करते है !

४.पाव पंथ (पावक ) – इनके मूल प्रवर्तकभगवान शिव है और इस पंथ के योगीजनराजस्थान में निवास करते है ! इनकासम्बन्ध जालंधरनाथ से बताया जाता है !

५. धर्मनाथ ( धर्मनाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन नेपाल और उत्तरप्रदेश में निवासकरते है !

६. माननाथी ( मानोनाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक भगवान शिव है और इस पंथ केयोगीजन राजस्थान में निवास करते है !

७.कपलानी (कपिलपंथ ) – इनके मूलप्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ केयोगीजन बंगाल और हरियाणा में निवासकरते है !

८.गंगानाथी ( गंगनाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ केयोगीजन बंगाल और पंजाब में निवासकरते है !

९.नटेश्वरी ( दरयानाथी ) – इनके मूलप्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ केयोगीजन कश्मीर , पंजाब और पाकिस्तानमें निवास करते है !

१०.आई-पंथ ( आई के ) – इनके मूलप्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इस पंथ केयोगीजन बंगाल, हरियाणा और पंजाब मेंनिवास करते है !

११. वैराग पंथ ( भर्तृहरि वैराग ) – इनकेमूल प्रवर्तक गुरु गोरक्षनाथ है और इसपंथ का सम्बन्ध योगी भर्तृहरि जी के साथबताया जाता है ! इस पंथ के योगीजनराजस्थान में निवास करते है !

१२. रावलपंथी – इनके मूल प्रवर्तक गुरुगोरक्षनाथ है और इनका सम्बन्ध सिद्धरावलनाथ से बताया जाता है ! इस पंथ केयोगीजन पाकिस्तान और अफगानिस्थानमें निवास करते है !

इन १२ पंथो के अलावा भी नाथपंथ में कुछ पंथ पाए जाते है जिनमें सेकुछ मुख्य पंथ इस प्रकार है – कंथडपंथी, बन पंथ, ध्वज पंथ, पंख पंथ,वारकरी पंथ, कायिक नाथी, तारक नाथी ,पायल नाथी आदि ऐसे अनेक पंथ है जोनाथ सम्प्रदाय से सम्बन्ध रखते है ! यहअपने आप को शिव पंथ और गोरक्ष पंथके अनुयायी बताते है, वास्तव में यह पंथ१२ पंथो के ही उप पंथ है जिन में औघडसेवडा और कुछ सूफी पंथ भी है जिनकाप्रसार मुस्लिम योगियो में हुआ है ! नाथपंथ मांस मदिरा का विरोध करता है परकुछ अघोर संत है जो मांस मदिरा काप्रयोग करते है जो अघोर संतो के लिएवर्जित नहीं है क्यूंकि वे स्वयं शिव कास्वरुप है और पाप पुण्य से ऊपर उठ जातेहै !

इस प्रकार गुरु शिष्य परम्परा सेअनेक पंथ बन गए है , कुछ पंथ गुप्त हुएऔर कुछ प्रकट है ! नाथ पंथ में कुछ योगीगृहस्थ होते है और कुछ ब्रह्मचारी रहते है !अतः नाथ पंथ का पूरा विवरण माँसरस्वती के लेखन से भी परे की बात है !१२ पंथो में आई पंथ को श्रेष्ठ माना गया हैऔर सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ “ गुरु ग्रन्थसाहिब “ जी के जपुजी साहिब में भी आईपंथ की प्रशंसा की गयी है और १२ पंथोमें श्रेष्ठ माना गया है ! “ जपुजी साहिब ”में लिखा है – “ मुंदा संतोख सरम पटझोली ध्यान की करे भिभूत, किन्था कालकुआरी काया जुगत धंधा परतीत, आईपंथी सगल जमाती मन जीते जगजीत,आदेश तीसे आदेश, आद अनिल अनादअनाहद जुग जुग इको भेस ”

अब बात करते है शाबर मंत्रोंकी. हर कोई संस्कृत मंत्रोंका उच्चारण ठीक तरह से नहीं कर पाता और संस्कृत मन्त्रोंको सिद्ध करते वक्त बहुत सारे कठोर नियमोंका पालन करना होता है. इस बात को ध्यान में रखते हुए जनकल्याण हेतु नवनाथ और चौरासी सिद्धोंद्वारा आम बोलचाल की भाषाओमे शाबर मंत्रोंका निर्माण किया गया. ये मंत्र लगभग सभी भाषाओमे पाए जाते है. शाबर मन्त्रोंको किसीभी जाती या धर्म के स्त्री पुरुष गुरुदेवकीकृपासे बड़ी आसानीसे सिद्ध कर सकते है.

ईश्वर आप सब पर अपनी कृपा दृष्टी बनाएं रखे 
[जन्मपत्री के सभी द्वादश भावों में शनि, भू संपत्ति से संबंधित क्या-क्या अच्छे बुरे परिणाम देता हैं जानिये👇
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प्रथम 👉 भाव में शनि के होने पर तथा साथ ही शनि के मंदे होने पर गरीबी एवं चारों तरफ बर्बादी होती है। इसके साथ ही यदि मंगल भी चतुर्थ खाने में हो तो जमीन-जायदाद भी नष्ट करते हैं।

द्वितीय 👉 भाव में होने पर मकान जब भी बने और जैसा भी बने, बनने देना चाहिये क्योंकि इसे इखाली हो तो मकान शुभ फल देता है। सी स्थिति में शुभ माना गया है नहीं तो नुकसान करते हैं।

तृतीय 👉 खाने में होने पर भूखंड पर तीन कुत्ते पालने चाहिए, ऐसा करने से मकान बनने की संभावना काफी बढ़ जाती है और परिणाम भी शुभ मिलते हैं।

चतुर्थ 👉 खाने में होने पर मकान अपने नाम का नहीं बनवाना चाहिये, ऐसा करना शुभ रहता है नहीं तो बर्बादी शुरू कर देता है।

पांचवें 👉 भाव का शनि संतान हानि देता है। अतः शुभ परिणाम के लिए ऐसे लोगों को भैंसा आदि दान करने के पश्चात ही मकान की नींव डालनी चाहिए तथा यदि हो सके तो 48 वर्ष की उम्र के पश्चात ही मकान बनवाना शुभ रहता है।

छठे 👉 भाव में होने पर लड़कियों के रिश्तेदारों को परेशानी पैदा करता है। अतः उम्र के 36 या 39 वर्ष के पश्चात् ही मकान बनवाना शुभ रहता है।

सप्तम 👉 भाव में होने पर अशुभ परिणाम मिलते हैं। अतः लाभ हेतु पुश्तैनी या बने-बनाये मकान में ही रहना चाहिये।

अष्टम 👉 भाव में होने पर तथा राहु-केतु के अनुकूल होने पर मकान बनवाना शुभ रहता है। यदि राहु-केतु मंदे हों तो अपना मकान नहीं बनवाना चाहिये अन्यथा कर्ज के साथ सम्पति हानि होती है।

नवम 👉 भाव में हो तो तीन से अधिक मकान नहीं बनाने चाहिए।

दसवें भाव 👉 का शनि मकान का काम पूरा होते ही धन हानि शुरू कर देता है। अतः ऐसे जातकों को मकान का कार्य पूरा ही नहीं होने देना चाहिये अर्थात् मकान में कोई-न-कोई काम अधूरा रखना चाहिए ताकि धन हानि न हो।

एकादश 👉 भाव का शनि शुभ परिणाम दे, इसके लिए उम्र के 55 वें वर्ष के पश्चात मकान बनवाना चाहिये।

द्वादश 👉 भाव में होने पर मकान तो आसानी से बनता है, लेकिन ऐसे जातकों को यह ध्यान में रखना चाहिये कि मकान का कार्य आरंभ होने के पश्चात् कार्य को बीच में रोकना शुभ नहीं है, मकान का कार्य पूरा करके छोड़ें। इसके अलावा चार कोने वाला (वर्गाकार/आयताकार) मकान लेना/ बनवाना ही शुभ रहता है।
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[ प्रतिवर्ष 31 मार्च को आपको अपनी वार्षिक आय व्यय का विवरण, आयकर विभाग को देना होता है । जैसे आपको प्रतिवर्ष अपना आय व्यय का हिसाब देना होता है , उसी प्रकार से आपने अपने जीवन में कितने शुभ कर्म किए और कितने अशुभ कर्म किए, इन कर्मों का भी हिसाब आपको ईश्वर को देना होता है।
वैसे तो प्रतिदिन हर क्षण ईश्वर हमारे कर्मों को देखता है , उनका हिसाब रखता है । फिर भी मोटी भाषा में संसार में ऐसा बोला जाता है, कि आपको जीवन की समाप्ति पर अपने कर्मों का हिसाब ईश्वर को देना है।
हमारे इस जीवन के कर्मों में से कुछ कर्मों का फल, ईश्वर हमें इसी जन्म में देता है । और जिन कर्मों का फल हमें इस जन्म में नहीं मिल पाया, उनका फल अगले जन्म में देता है।
अब जो भी व्यवस्था हो, आखिर हमारे कर्मों का हिसाब तो होगा ही । इस व्यवस्था के मुख्य मुख्य 3 नियम जान लीजिये।
1- यदि आपने अपने जीवन में अच्छे कर्म अधिक किए हैं , तो अगला जन्म उत्तम विद्वानों , बुद्धिमानों, धनवानों आदि के घर में मिलेगा ।
2- यदि अच्छे बुरे कर्म समान मात्रा में किए हैं, तो सामान्यमनुष्य के घर में, अर्थात किसी मजदूर परिवार में जन्म मिलेगा ।
3- यदि आपने अशुभ कर्म अधिक कर दिए, तो फिर अगले जन्म में पशु पक्षी कीड़ा मकौड़ा, वृक्ष आदि योनि में जाकर दंड भोगना पड़ेगा।
इसलिए अच्छी प्रकार से विचार करें , कि किस प्रकार के कर्म करने चाहिएँ, ताकि भविष्य में अगले जन्मों में दुख न भोगना पड़े और सुख ही मिले –
🥀मानसिक शक्ति बढ़ाने वाले आहार
🌻मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य

🌸आपका मस्तिष्‍क बेहतर काम करे इसके लिए जरूरी है आप उसे जरूरी पोषण दें। ये जरूरी पोषण आपको अपने आहार के जरिये ही मिल सकता है। इसलिए जरूरी है कि आप ऐसे खाद्य पदार्थ चुनें जो आपके मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य का खयाल रखें।

🍁आहार का मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर होता है गहरा असर।
🍃ओमेगा फैटी 3 एसिड देता है दिमाग को शक्ति।
🍂अखरोट, और बादाम है मस्तिष्‍क के लिए जरूरी।
🍂वसा युक्‍त आहार से दूर रहना है आपके लिए फायदेमंद।

🌻तनाव और थका देने वाला काम हमारी जिंदगी का हिस्‍सा बन गया है। इसका असर हमारी सेहत पर भी पड़ने लगा है। काम के अधिक बोझ के चलते चिंता और अवसाद जैसे रोजमर्रा की बात हो गई हो। इन परेशानियों को नियंत्रण में रखना जरूरी है, क्‍योंकि अगर ये समस्‍यायें बढ़ जाएं तो इसका असर किसी के भी शारीरिक स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ता है।

🍁कई अन्‍य कारणों की तरह आपके आहार का भी आपकी सेहत पर गहरा असर पड़ता है। आपको स्‍वस्‍थ अहार का सेवन करना चाहिये। संतुलित और पौष्टिक आहार ही स्‍वस्‍थ जीवन का आधार है। सप्‍लीमेंट्स पर जितना हो सके, कम निर्भर रहना चाहिये। जंक फूड और अधिक वसा युक्‍त खाना आपकी शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए अच्‍छा नहीं होता। ऐसे में आपको इन खाद्य पदार्थों के सेवन से बचना चाहिये। इसके साथ ही तनावरहित और खुश रहने के लिए आपको नियमित व्‍यायाम भी करना चाहिये।

🌺अपनी आहार योजना में इन चीजों को शामिल कर आप अपने मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य को दुरुस्‍त रख सकते हैं।

🍂1. ओमेगा फैटी 3 एसिड से भरपूर आहार

थकान, अवसाद और सिक्र‍िजोफ्रेनिया आदि जैसी परेशानियों को दूर करने के लिए आपको रोजाना ओमेगा फैटी-3 आधारित आहार का सेवन करना चाहिये। ओमेगा फैटी-3 एसिड हमारे शरीर में पर्याप्‍त मात्रा में नहीं बनता। इसलिए आपको आहार के माध्‍यम से ही इसकी पूर्ति करनी पड़ती है। इसके लिए आपको सालमन मछली, अखरोट, अंडे और कनोला ऑयल का सेवन करना चाहिये। ओमेगा 3 न्यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन का स्राव करता है जो सीखने और संज्ञानात्‍मक कार्य करने की क्षमता में इजाफा करता है।

🌾2. प्रोटीन युक्‍त खाद्य पदार्थ

प्रोटीन हमारे शरीर को कॉम्‍प्‍लेक्‍स कार्बोहाइड्रेट मुहैया कराते हैं। जो हमारे शरीर के निर्माण में मदद करते हैं। इसके साथ ही ये न्‍यूरोट्रांसमीटर सेरोटोनिन का भी निर्माण करते हैं। इससे चिंता, अवसाद और इससे जुड़ी समस्‍यायें कम होती हैं। प्रोटीन के लिए आपको डेयरी उत्‍पाद, अंडे की सफेदी, चिकन, बीन्‍स, पनीर और सोयाबीन की फलियों का सेवन करना चाहिये।स्नेहा समूह

🌺3. कार्बोहाइड्रेट

हमारे मस्तिष्‍क को ग्‍लूकोज की जरूरत होती है। यह तन-मन के लिए ईंधन के तौर पर काम करता है। ग्‍लूकोज की कम मात्रा आपके मूड में बदलाव ला सकती है। सामान्‍य कार्बोहाइड्रेट की तुलना में कॉम्‍प्‍लेक्‍स कार्बोहाइड्रेट ज्‍यादा उपयोगी होता है। यह ग्‍लूकोज को धीरे-धीरे से स्रावित करता है जिससे आपको लंबे समय तक पेट भरे होने का अहसास होता है। कॉम्‍प्‍लेक्‍स कार्बोहाइड्रेट आपको गेहूं उत्‍पादों, ओट्स, जौ, बीन्‍स आदि से मिल सकता है।

🌼4. फॉलिए एसिड और विटामिन बी

चिंता, अवसाद, अनिद्रा और थकान का संबंध फॉलिक एसिड और विटामिन बी से होता है। इन लक्षणों को दूर करने के लिए आपको हरे पत्‍तेदार सब्जियों जैसे, पालक, ब्रोकली आदि को अपने आहार में शामिल करना चाहिए। ब्रोकली में सेलेनियम भी भरपूर मात्रा में होता है, जो मानसिक सुकून पहुंचाने का काम करता है। सेलेनियम की कमी से मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर बुरा असर पड़ता है। इससे उबरने के लिए आपको चिकन, साबुत अनाज के उत्‍पाद और अखरोट आदि का सेवन करना चाहिए।


🥀5. तरल पदार्थ

मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य के लिए पर्याप्‍त मात्रा में पानी पीना बहुत जरूरी है। निर्जलीकरण की अवस्‍था आने पर शरीर कोशिकाओं से पानी सोखने लगता है। इसके साथ ही आपको कैफीन युक्‍त पेय पदार्थों के अधिक सेवन से भी बचना चाहिए। इन पदार्थों का अधिक सेवन आपको उच्‍च रक्‍तचाप, अवसाद और कई अन्‍य समस्‍यायें भी दे सकता है। इसलिए आपको नारियल और नींबू पानी जैसे पेय पदार्थों का सेवन करना चाहिए। चाय और कॉफी जैसे पेय पदार्थों का सेवन सीमित मात्रा में ही करना चाहिये।

6🌺. विटामिन बी1 और जिंक

शरीर में यदि विटामिन बी1 और जिंक की कमी हो जाए तो इसका असर मूड परिवर्तन और मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ता है। व्‍यक्ति को अवसाद, चिंता, थकान, क्रोध, उच्‍च रक्‍तचाप आदि परेशानियां हो सकती हैं। अल्‍कोहल युक्‍त पदार्थों का अधिक सेवन इस प्रकार की परेशानी का कारण बन सकता है। सी-फूड, मटर, अंडा, दूध और दही आदि में जिंक और विटामिन बी1 भरपूर मात्रा में होता है।

🍂तो, हमारे आहार का हमारे मानसिक स्‍वास्‍थ्‍य पर गहरा असर पड़ता है। इसलिए इन खाद्य पदार्थों का सेवन कर आप अपने दिमाग को तंदुरुस्‍त रख सकते हैं।
[ 🥀लिप ग्लॉस से न सिर्फ आपके होंठ खूबसूरत लगते हैं, बल्कि उनमें नमी भी बनी रहती है। यही कारण है कि अगर आप लिप ग्लॉस का इस्तेमाल करती हैं, तो आपके होंठ सॉफ्ट रहते हैं। मगर बाजार में मिलने वाले ज्यादातर लिप ग्लॉस में केमिकल्स मिले होते हैं, जिससे कई बार प्रयोग करने पर होंठ काले पड़ जाते हैं और भद्दे लगने लगते हैं। लिप ग्लॉस आप घर पर भी आसानी से बना सकती हैं। ये पूरी तरह से प्राकृतिक होता है और इससे आपके होठों को कोई नुकसान भी नहीं होता है। आइए आपको बताते हैं कि घर पर किस तरह लिप ग्लॉस बनाएं।

🌼क्यों फटते हैं आपके होंठ
अगर आप लगातार होंठों को चाटते रहते हैं तोये आपके होंठो के फटने का एक बड़ा कराण बन सकता है। मुंह की लार हाज़मे के एंजाइम से बनी होती है और इससे सुरक्षा कवच खराब हो जाता है। खूब पानी पीने से होंठों को नमी मिलती है। होंठों को चाटने की बजाय ढेर सारा पानी पीते रहें।

🌾किन सामानों की पड़ेगी जरूरत
🍃ऑयल
🍃वैक्स
🌾फ्लेवर के लिए मिंट ऑयल, लैवेंडर ऑयल या 🍃शहद (मनपसंद फ्लेवर)
🍃मनपसंद फूड कलर
🍃नारियल का तेल
🍃छोटा कंटेनर
🌹कैसे बनाएं लिप ग्लॉस
🌻सबसे पहले एक बर्तन में वैक्स व पिपरमिंट ऑयल को गरम करें और उसे लगातार चलाते रहें।
🍂जब वैक्स पूरी तरह से पिघल जाए तब उसे आंच से उतार दें।
🌾अगर आपको वैक्स आसानी से नहीं मिल रहा है, तो इसकी जगह पेट्रोलियम जैली का प्रयोग करें।
याद रहे जब भी आप वैक्स में कोई भी फूड कलर डाल रहीं हों तो वैक्स गर्म हो। इससे मिश्रण अच्छे तरीके से वैक्स में मिल जाता है और रंग भी आ जाता है।
🍂इस मिश्रण में एक चम्मच तेल और फूड कलर मिला कर अच्छी तरह से चलाएं। आप चाहें तो इसमें शहद या वेनिला फ्लेवर भी मिला सकती हैं, जिससे लिप ग्लॉस खुश्बूदार, चमकदार लगने लगेगा।
🌸इस मिश्रण को 20 मिनट व एक घंटे के लिए फ्रिज में रख दें।
🌻इस मिश्रण के गाढ़ा हो जाने के बाद इसे कंटेनर में डाल दें। आपका लिप ग्लॉस अब तैयार है।

💐क्यों फायदेमंद है ये स्पेशल लिप ग्लॉस
इस प्राकृतिक लिप ग्लॉस से आपके होंठों को सूरज की अल्ट्रावॉइलेट किरणों से सुरक्षा मिलेगी। आपके लिप कभी काले नहीं पड़ेंगे। लिप ग्लॉस में मॉश्चरराइजर मिलाने के लिए विटामिन ई का प्रयोग कर सकती हैं। अगर आप मेंथाल फ्लैवर चाहती हैं तो किसी मेडिकल स्टोर से मेंथाल फ्लेवर ले सकती हैं। लिप ग्लॉस को एसपीएफ युक्त बनाना है तो सनस्क्रीन का प्रयोग भी कर सकती हैं। लेकिन सनस्क्रीन के इस्तेमाल के पहले यह जांच लें कि यह होंठों के लिए अच्छा है या नहीं।

🍂हाथ से न लगाएं लिप बाम
उंगलियों से लिप बाम लगाने का सबसे बड़ा नुकसान ये होता है कि अक्सर हमारी उंगलियों पर बीमारियां फैलाने वाले कई बैक्टीरिया और वायरस चिपके होते हैं। इन बैक्टीरिया को देख पाना संभाव नहीं होता है। आप जाने कितनी चीजों को छूते है और उसके बाद होंठों पर उंगली से लिपबाम लगा लेते है, जिससे बैक्टीरिया होंठ पर पंहुच जाते है।  जिससे शरीर में भी बैक्टीरिया चले जाते है जो सेहत को नकसान पंहुचाते है। अगर आप भी उंगलियों से लगाया जाने वाला लिप-बाम यूज करती हैं तो अभी भी मौका है उसे बदल डालिए।स्नेहा समूह
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आयुर्वेद उपचार ग्रुप 9920732545
पेट और मुंह के अल्सर में रामबाण है ये घरेलू उपाय

क्या है अल्सर?

ज्यादा तीखा खाने, एसिटिडी व संक्रमण से कई बार हमारे पेट व मुंह में घाव हो जाता है। जिसे हम अल्सर कहते हैं। कई बार अल्सर के बढ़ने पर खून भी निकलने लगता है। इसे ठीक करने के लिए घरेलू उपचार एक कारगर उपाय है।

पेट का अल्सर दूर करने के उपाय

शहद – ये एक तरह का एंटी ऑक्सीडेंट है। इसे चाटने से तुरंत आराम मिलता है। इसमें संक्रमण के बैक्टीरिया खत्म करने की ताकत होती है। अल्सर को जल्दी ठीक करने के लिए शुद्ध व देसी शहद का इस्तेमाल करना चाहिए।

पेट का अल्सर दूर करने के उपाय

मेथीदाना – पेट की दिक्कत दूर करने के लिए मेथीदाना एक सर्वोत्म उपाय है। एक चम्मच मेथीदाने को एक गिलास पानी में 5 मिनट तक उबालना चाहिए। इसके बाद पानी को छान कर ठंडा करें। इसमें आधा चम्मच शहर घोलें। इस मिश्रण को रोजना दिन में एक बार खाली पेट पीने से अल्सर जल्दी ठीक हो जाता है।

पेट का अल्सर दूर करने के उपाय

पुदीना – इसमें घाव भरने की क्षमता होती है, इसलिए पुदीने की पत्तियों को धोकर उसे डेढ़ ग्लास पानी में उबालना चाहिए। जब पानी आधा रह जाए, तब उसमें चुटकी भर नमक मिलाकर पीना चाहिए। इस प्रक्रिया से पेट के घाव भरने में मदद मिलती है।

पेट का अल्सर दूर करने के उपाय

पत्तागोभी – पेट का अल्सर ठीक करने के लिए पत्तागोभी एक रामबाण उपाय है। पत्तागोभी को कद्दूकस से घिस कर उसका रस निकाल लें। इसमें चुटकी भर नमक मिलाकर रोजाना रात में सोने से पहले लें। इस रस को लगातार चार दिन तक लेना चाहिए। इससे पेट की शिथिलता दूर होती है और घाव जल्दी भरता है।

पेट का अल्सर दूर करने के उपाय

केला – इसमें संक्रमण को दूर करने की क्षमता होती है। रोजाना सुबह के नाश्ते के बाद एक केला खाने से घाव भरने लगते है। साथ ही पेट की मांसपेशियों को भी ताकत मिलती है। ये बैक्टीरियों को फैलने से भी रोकता है।

पेट का अल्सर दूर करने के उपाय

एलोवेरा – इसका जूस घाव को जल्दी ठीक करने में मदद करता है। इसके लगातार सेवन से दर्द भी कम होता है। रोजाना दिन में एक से दो बार एलोवेरा जूस के एक चम्मच को आधे गिलास पानी में मिलाकर पीना चाहिए। इससे अल्सर जल्दी ठीक होता है।

पेट का अल्सर दूर करने के उपाय

बकरी का दूध – पेट का घाव ठीक करने के लिए बकरी का दूध भी काफी लाभकारी है। रोजाना दिन में तीन बार बकरी का दूध पीना चाहिए। याद रहें कि दूध कच्चा हो, उबला हुआ न हो। इससे घाव में चिकनाई पहुंचती है और अल्सर जल्दी ठीक होता है।

मुंह का अल्सर दूर करने के उपाय

दही – इसमें एंटी ऑक्सिटेंड गुण होता है। मुंह के घाव भरने के लिए हर रोज एक कटोरी दही व एक केला खाना चाहिए। इससे मुंह के बैक्टीरिया खत्म होते हैं और नई खाल बनाने में मदद करते हैं।

मुंह का अल्सर दूर करने के उपाय

आंवला – आंवले को पीसकर इसका पाउडर बनाएं और इसमें एक चम्मच पानी डालकर गाढा घोल बनाएं। आप चाहे तो बाजार में उपलब्ध आंवला पाउडर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इस मिश्रण को छाले पर हल्के हाथों से लगाएं। 5 मिनट बाद साफ पाानी से कुल्ला कर लें। घाव भरने में मदद मिलेगी।

मुंह का अल्सर दूर करने के उपाय

तुलसी – इसमें एंटी वायरल, एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल जैसे गुण होते हैं। इसलिए तुलसी की चार से पांच पत्तियों को दिन में दो बार चबाइएं। इसके बाद थोड़ा सा पानी पी लीजिए। मंुह का अल्सर चार-पांच दिनों में ठीक हो जाएगा।

मुंह का अल्सर दूर करने के उपाय

धनिया पत्ती – हरी धनिया पत्ती को धो लें। इसे डंठल समेत धीरे-धीरे चबाएं। ये क्रिया 10 मिनट तक करें। इससे मुंह के बैक्टीरिया खत्म होंगे और सांसों की बदबू भी दूर होगी। चूंकि हरी धनिया में फॉलिक एसिड, विटामिन बी1, बी2 और बी6 की मात्रा ज्यादा होती है, जो घाव को जल्दी भरने में मदद करता है।

मुंह का अल्सर दूर करने के उपाय

चमेली के पत्ते – अल्सर ठीक करने के लिए ये भी एक बेहतर उपाय है। चमेली के पत्ते को धोकर पीस लें। इस मिश्रण को छाले पर 5 से 7 मिनट लगाकर रखें। फिर साफ पाानी से धो लें। इससे घाव जल्दी भर जाएगा

मुंह का अल्सर दूर करने के उपाय

सौंफ – इसके सेवन से मुंह की बदबू चली जाती है और सांसों को ताजगी मिलती है। मुंह में छाले होने पर एक चम्मच सौंफ को थोड़ी मिलाकर धीरे-धीरे चबाएं। सौंफ के रस से दर्द भी कम हो जाता है व घाव भी भर जाते हैं।

मुंह का अल्सर दूर करने के उपाय

टमाटर – मुंह का अल्सर जल्दी ठीकर करने के लिए टमाटर के रस का सेवन करें। दिन में दो से तीन बार टमाटर के रस को पिएं। साथ ही इसमें आधा गिलास पानी मिलाकर चार-पांच बार कुल्ला करें व ज्यादा से ज्यादा कच्चा टमाटर खाएं।

मुंह का अल्सर दूर करने के उपाय

नारियल – इसमें विटामिन ई प्रचुर मात्रा में होता है। इसलिए नारियल को पीसकर उसका दूध निकाल लें। अब इसमें एक चम्मच शहर मिलाकर इससे दिन में तीन बार कुल्ला करें। अल्सर जल्दी ठीक हो जाएगा।

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अल्‍सर से बचने के घरेलू नुस्‍खे

हालांकि दूध पीने से गैस्ट्रिक एसिड बनाता है, लेकिन आधा कप ठंडे दूध में आधा नीबू निचोड़कर पिया जाए तो वह पेट को आराम देता है।पोहा अल्‍सर के लिए बहुत फायदेमंद घरेलू नुस्‍खा है, इसे बिटन राइस भी कहते हैं। पोहा और सौंफ को बराबर मात्रा में मिलाकर चूर्ण बना लीजिए, 20 ग्राम चूर्ण को 2 लीटर पानी में सुबह घोलकर रखिए, इसे रात तक पूरा पी जाएं। यह घोल नियमित रूप से सुबह तैयार करके दोपहर बाद या शाम से पीना शुरू कर दें। इस घोल को 24 घंटे में समाप्‍त कर देना है, अल्‍सर में आराम मिलेगा।पत्ता गोभी और गाजर को बराबर मात्रा में लेकर जूस बना लीजिए, इस जूस को सुबह-शाम एक-एक कप पीने से पेप्टिक अल्सर के मरीजों को आराम मिलता है।अल्‍सर के मरीजों के लिए गाय के दूध से बने घी का इस्तेमाल करना फायदेमंद होता है।  अल्‍सर के मरीजों को बादाम का सेवन करना चाहिए, बादाम पीसकर इसका दूध बना लीजिए, इसे सुबह-शाम पीने से अल्‍सर ठीक हो जाता है।सहजन (ड्रम स्टिक) के पत्‍ते को पीसकर दही के साथ पेस्ट बनाकर लें। इस पेस्‍ट का सेवन दिन में एक बार करने से अल्‍सर में फायदा होता है।आंतों का अल्सर होने पर हींग को पानी में मिलाकर इसका एनीमा देना चाहिये, इसके साथ ही रोगी को आसानी से पचने वाला खाना चाहिए।अल्सर होने पर एक पाव ठंडे दूध में उतनी ही मात्रा में पानी मिलाकर देना चाहिए, इससे कुछ दिनों में आराम मिल जायेगा।छाछ की पतली कढ़ी बनाकर रोगी को रोजाना देनी चाहिये, अल्‍सर में मक्की की रोटी और कढ़ी खानी चाहिए, यह बहुत आसानी से पच जाती है।

अल्सर के रोगी को ऐसा आहार देना चाहिये जिससे पित्त न बने, कब्ज और अजीर्ण न होने पाये। इसके अलावा अल्‍सर के रोगी को अत्यधिक रेशेदार ताजे फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिए, जिससे अल्‍सर को जल्‍दी ठीक किया जा सके

बच्चों के पेट में दर्द क्या है? इसके कारण, लक्षण
कहते हैं बच्चों की हँसी में एक माँ को प्रकृति की सुंदरता दिखाई देती है। लेकिन जब माँ का नवजात शिशु रोता है तब यही माँ उसका रोना बंद करने के लिए हर संभव उपाय व प्रयास करती है। अगर इसके बाद भी बच्चा लगातार लंबे समय तक रोता रहे तो इसे पेट दर्द या उदरशूल होना माना जा सकता है। नन्हें बच्चों में उदरशूल क्यों होता है और इसके किस प्रकार दूर किया जा सकता है, इन सवालों के जवाब जननम आपको देने का प्रयास करते हैं।
जानिए : बच्चों में उदरशूल के कारण और इसके घरेलू उपचार

  1. उदरशूल के लक्षण�बोलना शुरू करने से पहले छोटे बच्चे अपनी खुशी और तकलीफ को हँसी और रोने के माध्यम ही व्यक्त करते हैं। कोई भी माँ तब परेशान हो जाती है जब उसका नन्हा शिशु बिना रोके लगातार रूप से रोता रहता है। ऐसा प्रायः तब होता है जब बच्चा उदरशूल या पेट के दर्द से परेशान होता है।�नवजात शिशु के पेट में उदरशूल की जांच आप निम्न लक्षणों के आधार पर कर सकतीं हैं:
    • बच्चे का हर समय गुमसुम रहना और दोपहर बाद या शाम के समय अधिक और अनियंत्रित रूप से रोते रहना;
    • रोते हुए बच्चे का चेहरा लाल हो जाना;
    • रोते हुए बच्चे का अपनी टाँगे पेट की ओर ले जाना और धनुष के आकार में करते हुए मोड़ लेना
    1. उदरशूल के कारण�सामान्य रूप से नवजात बच्चों के पेट में दर्द या उदरशूल का कोई व्यक्त या ज्ञात कारण नहीं होता है। फिर भी निम्न कारणों को उदरशूल होने का जिम्मेदार माना जा सकता है:
    • नवजात शिशु को दूध की असहिष्णुता (दूध हजम न होना)
    • किसी प्रकार की एलर्जी का होना
    • पाचन तंत्र का विकसित होना
  2. उदरशूल का घरेलू उपचार�शिशु को उदरशूल होने पर पारंपरिक घरेलू उपचार अधिकतर कारगर सिद्ध होते हैं, निम्न उपायों को आप भी आज़मा कर देख सकतीं हैं:
  • हींग का लेप:
  • नवजात शिशु की नाभि-क्षेत्र से गर्भनाल जब पूरी तरह हट जाती है तब यदि वह पेट दर्द से रो रहा है तब हल्का गर्म करके हींग का लेप किया जा सकता है। इसके लिए एक चम्मच सहने लायक गर्म पानी में पीसी हुई हींग को घोलकर उसका लेप लगाया जा सकता है। इससे अक्सर बच्चों के पेट दर्द में आराम आ जाता है।

�4. नाभि में सरसों का तेल�अकसर परिवार की बुजुर्ग महिलाएं नवजात शिशु के पेट दर्द को दूर करने के लिए गुनगुने सरसों के तेल की नाभि में मालिश भी करती हैं।

�5. पेट की सिंकाई�अगर एक छोटे रुमाल में थोड़ी सी अजवायन की पोटली बना कर उसे सहने लायक गर्म कर लें और उससे पेट की सिकाई करके पेट दर्द से रोते बच्चे को हँसाया जा सकता है।

�6. अजवायन का पानी
�नवजात बच्चे के पेट दर्द को दूर करने के साथ ही स्तनपान करवाने वाली माँ को अजवायन और सौंफ का पानी भी पीने को दें। यह पानी नवप्रसूता की पाचन शक्ति को ठीक रखती है और नवजात को पेट दर्द की शिकायत होने की संभावना कम हो जाती है।

�उदरशूल की तकलीफ से होने वाला नुकसान केवल इतना है की इससे बच्चा इतना रोता है कि उसके माता-पिता के आँसू भी आ सकते हैं। इसलिए जब भी आपको लगे कि आपका नन्हा चिराग पेट में दर्द के कारण रो रहा है तो ऊपर लिखे उपायों के साथ ही आप निम्न प्रयास भी जारी रखें:
* रोते बच्चे को कंधे से लगाकर उसे डकार दिलवाने की कोशिश करें;
* अगर संभव हो तब उसे अपनी गोद में उलटा लिटाकर हल्के हाथ से पीठ को थपथपाएँ;
* रोते बच्चे को हँसाने के लिए अगर आपको जोकर जैसी शक्लें और आवाजें निकालनी पड़ें, तो तुरंत करें। बिना फीस दिये किए जाने वाला यह शर्तिया इलाज है।
[ जय श्री कृष्ण
पेड़ उगाओ जीवन बचाओ


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एड़ी में दर्द कारण और उपचार
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एड़ी में दर्द बहुत कष्टकारी होता हैं। और ये किसी भी आयु के व्यक्ति और औरत या मर्द सभी को हो सकता हैं। एड़ी के दर्द होने के बहुत से कारण हो सकते हैं।

ऊंची एड़ी के सैंडल, गलत बूट, गलत जूती या हड्डी का बढ़ना या कोई पुरानी चोट भी इसका एक कारण हो सकता हैं।

आज हम आपको बताएँगे इस दर्द से छुटकारा पाने की युक्ति।

कारण :-
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ऊँची एड़ी की सेण्डल पहनना।

पैर का मुड़ जाना।

गिर जाना।

टाइट कपड़े पहनना।

नींद की गोलियाँ खाना।

मोटापा, मधुमेह जैसी बीमारियाँ होना।

पोषण का अभाव।

हार्मोन को प्रभावित करने वाली दवाइयाँ लेना या हार्मोन में एकदम परिवर्तन हो जाना।

चोट, कंकर-पत्थर का लग जाना।

माँस का कम हो जाना।

हड्डी का बढ़ जाना।

ज्यादा समय तक खड़े रहना।

पेट, कमर व पैरों की कोई क्रियाएँ नहीं करना।

ज्यादा खाना, पीना, सोना।

निवारण:-
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दर्द के समय ज्यादा चलना फिरना बंद कर एड़ी पर एक लेप बनाकर लगाएँ (हल्दी को तेल या तिल में पकाकर नमक, नीबू व प्याज डालें)।

स्पोर्ट्स जूते या आरामदायक जूते पहने।

गरम ठंडा पानी

गरम ठंडे पानी में पैर को बदल-बदल 3 बार रखें। गरम में पाँच मिनिट, ठंडे में तीन मिनिट। यह क्रिया सिर को गीला कर तथा पानी पीकर व स्टूल पर बैठकर करें।

काला तिल, ग्वारपाठा व अदरक
काली मिट्टी में काला तिल, ग्वारपाठा व अदरक डालकर गर्म करके बाँधने पर अद्भुत लाभ मिलता है।

अश्वगंधा

दर्द निवारण के लिए अश्वगंधा का चूर्ण 1-1 चम्मच दूध के साथ लेवें या अंकुरित मैथी दाना का प्रयोग करें।

ग्वारपाठा

सुबह ग्वारपाठा को छीलकर (50 ग्राम के लगभग) खाएँ।

अदरक

अदरक की सब्जी या चटनी खाएँ। पोदीना में पिण्ड खजूर डालकर चटनी बनाकर खाएँ।

भोजन

भोजन में आलु, ककड़ी, तोरई, सेव, आँवला, टमाटर, कच्चा पपीता, सहना फूल व पत्तागोभी, गुगल का प्रयोग अति लाभकारी है।

मेथी अजवायन कलौंजी और साबूत ईसबगोल

एक चम्मच मेथी, एक चम्मच अजवायन, एक चम्मच कलौंजी और एक चम्मच साबूत ईसबगोल को थोड़ा मिक्सी मे पीसकर सुबह खाली पेट एक चम्मच लें। इसी अनुपात से आप ज्यादा बनाकर रोजाना इस्तेमाल करिए।

एक ओर नुस्खा।
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जो पूर्ण रूप से कामयाब ।

नौशादर एक पीस (एक चौथाई छोटा चम्मच) , गवार पाठा – एक चौथाई छोटा चम्मच, और 1/4 चम्मच हल्दी। एक बर्तन में गवार पाठा धीमी आंच पर गरम करे, उस में नौशादर और हल्दी डाले, जब गवार पाठा पानी छोड़ने लगे तब उसे एक कॉटन के टुकड़े पर रख ले और थोड़ा ठंडा करे। जितना गरम सह सके, उसे एक कपडे पर रख कर एड़ी पर पट्टी की तरह बांध लीजिये, ये प्रयोग सोते समय करे क्योंकि इसे बाँध कर चलना नहीं है। ये प्रयोग कम से कम ३० दिन तक पुरे धैर्य से करे।

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[ कोलेस्ट्राल पर नियंत्रण सुपारी से

भोजन के बाद कच्ची सुपारी 20 से 40 मिनट तक चबाएँ फिर मुँह साफ़ कर लें। सुपारी का रस लार के साथ मिलकर रक्त को पतला करने जैसा काम करता है। जिससे कोलेस्ट्राल में गिरावट आती है और रक्तचाप भी कम हो जाता है।
: घरेलू नुस्‍खों से करें किडनी स्‍टोन का उपचार

किडनी स्‍टोन होने पर व्‍यक्ति को इतना अधिक दर्द होता है कि इससे उसकी दिनचर्या प्रभावित होती है और वह सामान्‍य काम भी नहीं कर पाता है। घरेलू उपचार से इसका दर्द दूर किया जा सकता है।

किडनी में स्‍टोन होने पर होता है असहनीय दर्द।किडनी में स्‍टोन होने पर पियें अधिक से अधिक पानी।तरबूज का सेवन करने से किडनी स्‍टोन होता है दूर।अनार को भी किडनी स्‍टोन में माना जाता है उपयोगी

किडनी में पथरी बेहद दर्दनाक होती है। कई बार तो दर्द इतना अधिक बढ़ जाता है कि व्‍यक्ति को अपना रोजमर्रा का काम करने में भी परेशानी होती है। ऐसे में आप कुछ घरेलू उपाय अपना सकते हैं।

नींबू का रस और ऑलिव ऑयल

नींबू के रस और ऑलिव ऑयल का मिश्रण कुदरती रूप से गॉलब्‍लेडर की पथरी को दूर करने में मदद करता है, लेकिन इसका इस्‍तेमाल किडनी की पथरी को दूर करने के लिए भी किया जाता है। नींबू में मौजूद सिट्र‍िक एसिड कैल्शियम आधारित किडनी स्‍टोर को तोड़ने में मदद करता है और साथ ही इसके आगे बढ़ने से भी रोकता है। 

कैसे करें उपयोग

चौथाई कप नींबू का रस लें।इतनी ही मात्रा में ऑलिव ऑयल मिला लें।इस मिश्रण को पी लें और इसके बाद खूब पानी पियें।दिन में दो तीन बार ऐसा करें। अगर पहली बार में ही किडनी स्‍टोन बाहर निकल जाए तो आपको इस उपचार की जरूरत नहीं है।

सावधानी: बड़े किडनी स्‍टोन में यह इलाज अधिक उपयोगी नहीं हो सकता। इस उपचार को आजमाने से पहले डॉक्‍टर से जरूर बात करें।

सेब का सिरका

सेब का सिरका भी किडनी स्‍टोन को दूर करता है। इसके साथ ही रक्‍त और पेशाब में क्षारीय प्रभाव भी डालता है।

कैसे करें उपयोग

एक कप गुनगुने पानी में दो चम्‍मच ऑर्गेनिक सेब के सिरके में एक चम्‍मच शहद मिला लें। इस मिश्रण को दिन में कुछ बार पियें।

अनार

अनार के जूस और बीज दोनों में किडनी स्‍टोन को दूर करने की क्षमता और गुण होते हैं। 

कैसे करें उपयोग

रोजाना एक अनार खायें या एक गिलास अनार का ताजा रस पियें। आप फ्रूट सलाद में भी अनार का सेवन कर सकते हैं।विकल्‍प के रूप में आप एक चम्‍मच अनार के बीज को पीसकर उसका पेस्‍ट बना लीजिये। इस पेस्‍ट को बीन्‍स के सूप के साथ खाइये। इस मिश्रण से किडनी का स्‍टोन समाप्‍त हो जाएगा।

तुलसी

तुलसी पूरी सेहत के लिए बहुत फायदेमंद होती है। किडनी के लिए भी इसका सेवन बेहद उपयोगी माना जाता है। तुलसी का सेवन करने से किडनी स्‍टोन पेशाब के रास्‍ते बाहर निकल जाता है। 

कैसे करें उपयोग

एक चम्‍मच तुलसी के रस में शहद मिला लें। पांच से छह महीने रोज सुबह इसका सेवन करें। अगर आप शहद नहीं मिलाना चाहते तो आप यूं ही दो तीन पत्‍ते तुलसी के चबाकर खा सकते हैं।आप चाहें तो तुलसी की चाय भी पी सकते हैं। उबलते हुए पानी में पांच छह पत्‍ते तुलसी के डालकर दस मिनट तक उबलिये। इसमें एक चम्‍मच शहद मिलाइये। ठंडा होने पर इसका सेवन कीजिये।

तरबूज

तरबूज भी किडनी स्‍टोन को दूर करने में मदद करता है। तरबूज में कैल्शियम और मैग्‍नीशियम बहुतायत में होता है। पोटेशियम किडनी को स्‍वस्‍थ रखता है। यह पेशाब में एसिड के स्‍तर को भी नियंत्रित रखता है। 

पोटेशिम के साथ ही इसमें काफी मात्रा में पानी भी होता है। इससे किडनी से स्‍टोन बाहर निकालने में मदद मिलती है। नियमित रूप से तरबूज का सेवन करने से आप किडनी स्‍टोन से बच सकते हैं। आप तरबूज के बीज भी खा सकते हैं।
[ 🌹माया और योगमाया में क्या अंतर है? 🌹💫

सबसे पहले यह समझ लीजिए कि माया और योगमाया यह दोनों भगवान की शक्ति है। जैसा की हम जानते हैं कि शक्ति और शक्तिमान से पृथक नहीं हो सकती। उदाहरण से समझिए आग और आग में जलाने की शक्ति। आग में जलाने की शक्ति होती है। तो आग को अलग कर दो और जलाने की शक्ति बची रहे ऐसा तो हो नहीं सकता। इसी प्रकार माया और योग माया दोनों भगवान की शक्ति है।

योग माया शक्ति क्या है?

योग माया भगवान की अंतरंग शक्ति है। यह भगवान की अपनी शक्ति है। भगवान के जितने भी कार्य होते हैं वह योग माया से होते हैं। जैसे भगवान जो भी लीला करते हैं वह योग माया के द्वारा करते हैं। भगवान जो कुछ भी सोचते हैं वह योग माया तुरंत उस चीज को कर देती है। जैसे कि आपने सुना होगा कि कृष्ण जब जन्म लिए तो द्वारपा सो गए, द्वार अपने आप खुल गए, यमुना ने मार्ग दे दिया, यह सब योग माया से होता है।

योग माया की पहचान!!!!!

जब भी भगवान की कोई चीज या कार्य असंभव हो और वह संभव हो रही है। तो आप समझ लीजिये की यह योग माया के द्वारा हुआ है। जैसे वेदों ने कहा कि भगवान स्वतंत्र हैं वह किसी के अधीन नहीं है। और वह यशोदा मैया के डंडे से डर जाते हैं और उनमें रस्सी से बंध जाते हैं। तो यह सर्वज्ञ भगवान सब कुछ जानने वाला भगवान, सर्वशक्तिमान भगवान, सबको मुक्त करने वाला और मैया के यशोदा के रस्सी से बंध जाते है, और माँ से मुक्त करने की विनती करते है, और वो भी अभिनय में नहीं!

वास्तव में, जैसे हम लोग माँ से डरते है, ऐसे ही। यह योग माया के कारण होता है। तो भगवान के जो लीलाएं हैं वह योगमाया से होती हैं। या ऐसा कह दो कि भगवान जो कुछ भी करते हैं, वह सब योग माया के कार्य होते हैं। और केवल भगवान नहीं जितने संत महात्मा हैं, जो सिद्ध हो चुके हैं, जिन महात्माओं ने भगवान की प्राप्ति कर ली है। वह भी योग माया की शक्ति से कार्य करते हैं।

योगमाया कैसे कार्य करती है?

योग माया की शक्ति कुछ ऐसी है कि कार्य माया के करते हैं, लेकिन उनको माया नहीं लगती। जैसे क्रोध करना यह माया का विकार है दोष है। लेकिन महापुरुष और भगवान भी क्रोध करते हैं, पर वह माया का क्रोध नहीं होता वह योगमाया का क्रोध होता है। देखने में लगता है कि भगवान क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है महापुरुष को क्रोध कर रहे हैं चेहरे पर गुस्सा है। लेकिन वो योग माया से क्रोध करते है और हम लोग कहते हैं कि यह संत भी माया के आधीन है। लेकिन वास्तविकता यह है कि वह योग माया से कार्य कर रहे हैं अर्थात् चेहरे पर क्रोध है लेकिन अंदर कुछ क्रोध नहीं है यह योग माया का विलक्षण बात है।

गोपियों को शंका – कृष्ण अखंड ब्रह्मचारी कैसे?

आप इस लेख में पहले पढ़ लीजिए। जिसमें गोपियों को शंका होती है कि श्री कृष्ण अखंड ब्रह्मचारी कैसे हैं और दुर्वासा जी ने अपने जीवन में दूब के अलावा कोई स्वाद नहीं लिया है? तो इस प्रश्न का उत्तर श्री कृष्ण देते हैं कि “यह कार्य योग माया से होते हैं, योग माया से माया के कार्य किए जाते हैं।

लेकिन वह भगवान और महापुरुष माया से परे रहते हैं।” दुर्वासा जी अनेक प्रकार के व्यंजन खाया हैं, यह माया का कार्य है, सबको दिख रहा है। लेकिन योग माया के कारण उनको यह माया का सामान का स्वाद उन्हें अनुभव नहीं होता। यही कार्य अर्जुन ने किया था, वह सब को मार रहा है दुनिया देख रही है कि हाँ! अर्जुन ने सबको मारा है। लेकिन वास्तव में अर्जुन ने किसी को नहीं मारा है। यह है योग माया के विलक्षणता।

माया क्या है?

माया भगवान की बहिरंग शक्ति है। माया भी भगवान की ही शक्ति है। लेकिन यह माया जो भगवान से विमुख जीव है या जो जीव भगवान को अपना नहीं मानते या अपना सब कुछ नहीं मानते या जिन जीवो को भगवत्प्राप्ति (भगवान की प्राप्ति) नहीं हुई है। उन पर यह माया हावी रहती है। जिन्होंने भगवान की प्राप्ति कर ली उनसे भगवान माया को हटा देते हैं और उन्हें योग माया की शक्ति दे देते हैं। जिससे वह महात्मा (संत, ऋषि मुनि) माया के कार्य करते हैं लेकिन माया से परे रहते हैं। माया के बारे में अधिक जानने के लिए पढ़े माया क्या है?

योग माया का स्वरूप!!!!!!!

दुर्गा ,सीता ,काली ,राधा ,लक्ष्मी ,मंगला ,पार्वती का मूर्त रूप है योग माया। और इसी योगमाया से कृष्ण राधा का शरीर है राधा कृष्ण का। इसीलिए राधे श्याम हैं और सीता राम हैं। शंकर के घर भवानी है योगमाया। ये साधारण नारियां नहीं हैं दिव्या हैं। योगमाया के ही अभिनय स्वरूप प्रगट रूप में हैं। अतएव इन नारियों को नारी मत समझियेगा। ये चाहे तो स्त्री के रूप में रहे या पुरुष के रूप में। ये स्वेच्छा से किसी भी रूप को धारण कर सकती है।

तो योगमाया को स्त्री का रूप मत समझियेगा। योगमाया भगवान की शक्ति है, ये कोई भी स्वरूप में रह सकती है। योगमाया बिना किसी स्वरूप के भी भगवान और महापुरुष के साथ रहती है। जैसे नारद जी, तुलसीदास, इनके पास कोई स्त्री नहीं है, लेकिन योगमाया की शक्ति है।

Jay Shri Krishna 🙏🏻💫
: शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या की वास्तविकता
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👉शनि साढ़ेसाती क्या वास्तव में होती है, या ज्योतिषियों द्वारा बनाया गया एक हौआ ?
👉साढ़ेसाती, ढैय्या एवं शनि दशा के प्रभाव 👉कब कष्टदायी होती है साढ़ेसाती ?
क्या राजयोग भी देती हैं साढ़े साती ?

वास्तविकता, या भ्रम ?
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आज से 50-60 वर्ष पहले तक, शनि के बारे में लोग इतने भयभीत नहीं थे. पुराने शास्त्रों में भी इसका बहुत कम उल्लेख है. पर इन वर्षों में जगह- 2 शनि महाराज के मंदिर खुल गए हैं और इन मंदिरों में भीड़ भी बढ़ गई है. इस का एक प्रमुख कारण कुछ ज्योतिषियों द्वारा किया गया भ्रामक प्रचार है, जो उपायों, या कुछ यन्त्रों को बेचने के उद्देश्य से किया जाता है. आजकल सरसों/तिल आदि तेल भी बहुत महँगे हैं और उडद की (काली) दाल के दाम तो मोदी जी की सर्कार को बदनाम कर रहे हैं. ऐसे में जगह-२ शनि देव महाराज की मूर्तियां रख कर तेल और उडद बेच कर भी खूब कमाई कई लोग करते हैं.

पर इसका अर्थ यह भी नहीं, कि साढ़ेसाती और ढैय्या होती ही नहीं, जैसे कि कई अन्य ज्योतिषी कहते हैं.
दोनों ही वास्तविकता से दूर है – इसके प्रभाव को हौआ बताने वाले और इसके अस्तित्व को नकारने वाले !

शनि का प्रभाव👉 जैमिनी ऋषि के अनुसार कलियुग में शनि का सबसे ज्यादा प्रभाव है। शनि ग्रह स्थिरता का प्रतीक है। कार्यकुशलता, गंभीर विचार, ध्यान और विमर्श शनि के प्रभाव में आते हैं। यह शांत, सहनशील, स्थिर और दृढ़ प्रवृत्ति का होता है। उल्लास, आनंद, प्रसन्नता में गुण स्वभाव में नहीं है।
शनि को यम भी कहते हैं। शनि की वस्तुएं नीलम, कोयला, लोहा, काली दालें, सरसों का तेल, नीला कप़डा, चम़डा आदि है। यह कहा जा सकता है कि चन्द्र मन का कारक है तथा शनि बल या दबाव डालता है।

मेष राशि जहां नीच राशि है, वहीं शत्रु राशि भी और तुला जहां मित्र राशि है वहीं उच्च राशि भी है। शनि वात रोग, मृत्यु, चोर-डकैती मामला, मुकद्दमा, फांसी, जेल, तस्करी, जुआ, जासूसी, शत्रुता, लाभ-हानि, दिवालिया, राजदंड, त्याग पत्र, राज्य भंग, राज्य लाभ या व्यापार-व्यवसाय का कारक माना जाता है।

शनि की दृष्टि👉 शनि जिस राशि में स्थित होता है उससे तृतीय, सप्तम और दशम राशि पर पूर्ण दृष्टि रखता है। ऐसा भी माना जाता है, कि शनि जहाँ बैठता है, वहां तो हानि नहीं करता, पर जहाँ-२ उसकी दृष्टि पड़ती है, वहां बहुत हानि होती है (हालाँकि वास्तविकता में यह भी देखना पड़ता है, कि बैठने/दृष्टि का घर शनि के मित्र ग्रह का है, या शत्रु ग्रह, आदि)

साढ़ेसाती और ढैय्या कब और इनका जीवन पर प्रभाव प्रभाव ?👉 विश्व के 25 प्रतिशत व्यक्ति शनि की साढ़ेसाती और 16.66 प्रतिशत व्यक्ति इसकी ढैया के प्रभाव में सदैव रहते हैं। तो क्या 41.66 प्रतिशत व्यक्ति हमेशा शनि की साढ़ेसाती या ढैया के प्रभाव से ग्रस्त रहते हैं ?
क्या उन लोगों पर जो न शनि की साढ़ेसाती और न ही उनकी ढैया के प्रभाव में होते हैं कोई विशेष संकट नहीं आते ?

शनि की साढ़ेसाती तब शुरू होती है जब शनि गोचर में जन्म राशि से 12वें घर में भ्रमण करने लगता है, और तब तक रहती है जब वह जन्म राशि से द्वितीय भाव में स्थित रहता है। वास्तव में शनि जन्म राशि से 45 अंश से 45 अंश बाद तक जब भ्रमण करता है तब उसकी साढ़ेसाती होती है।
इसी प्रकार चंद्र राशि से चतुर्थ या अष्टम भाव में शनि के जाने पर ढैया आरंभ होती है। सूक्ष्म नियम के अनुसार जन्म राशि से चतुर्थ भाव के आरंभ से पंचम भाव की संधि तक और अष्टम भाव के आरंभ से नवम भाव की संधि तक शनि की ढैया होनी चाहिए।
नोट : साढ़ेसाती और ढैय्या हमेशा राशि – यानि कि जिस राशि में जन्म कुण्डली में चन्द्रमा स्थित होता है, उस से देखी जाती हैं.

भ्रम👉 शनि की साढ़े साती की शुरूआत को लेकर जहां कई तरह की विचारधाराएं मिलती हैं वहीं इसके प्रभाव को लेकर भी हमारे मन में भ्रम और कपोल कल्पित विचारों का ताना बाना बुना रहता है। जन-मानस में इसके बारे में बहुत सारे भ्रम भी व्याप्त हैं। यह किसी भी प्राणी को अकारण दंडित नहीं करता है। लोग यह सोच कर ही घबरा जाते हैं कि शनि की साढ़े साती शुरू हो गयी तो कष्ट और परेशानियों की शुरूआत होने वाली है। ज्योतिषशास्त्री कहते हैं जो लोग ऐसा सोचते हैं वे अकारण ही भयभीत होते हैंवास्तव में अलग अलग राशियों के व्यक्तियों पर शनि का प्रभाव अलग अलग होता है।

लक्षण और उपाय
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लक्षण👉 जिस प्रकार हर पीला दिखने वाला धातु सोना नहीं होता उस प्रकार जीवन में आने वाले सभी कष्ट का कारण शनि नहीं होता। आपके जीवन में सफलता और खुशियों में बाधा आ रही है तो इसका कारण अन्य ग्रहों का कमज़ोर या नीच स्थिति में होना भी हो सकता है। आप अकारण ही शनिदेव को दोष न दें फिर शनि के प्रभाव में कमी लाने हेतु आवश्यक उपाय करें।
ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या आने के कुछ लक्षण हैं जिनसे आप खुद जान सकते हैं कि आपके लिए शनि शुभ हैं या प्रतिकूल।
जैसे घर, दीवार का कोई भाग अचानक गिर जाता है। घर के निर्माण या मरम्मत में व्यक्ति को काफी धन खर्च करना पड़ता है।
घ्रर के अधिकांश सदस्य बीमार रहते हैं, घर में अचानक अग लग जाती है, आपको बार-बार अपमानित होना पड़ता है। घर की महिलाएं अक्सर बीमार रहती हैं, एक परेशानी से आप जैसे ही निकलते हैं दूसरी परेशानी सिर उठाए खड़ी रहती है। व्यापार एवं व्यवसाय में असफलता और नुकसान होता है। घर में मांसाहार एवं मादक पदार्थों के प्रति लोगों का रूझान काफी बढ़ जाता है। घर में आये दिन कलह होने लगता है। अकारण ही आपके ऊपर कलंक या इल्ज़ाम लगता है। आंख व कान में तकलीफ महसूस होती है एवं आपके घर से चप्पल जूते गायब होने लगते हैं, या जल्दी-जल्दी टूटने लगते हैं। इसके अलावा अकारण ही लंबी दूरी की यात्राएं करनी पड़ती है।
नौकरी एवं व्यवसाय में परेशानी आने लगती है। मेहनत करने पर भी व्यक्ति को पदोन्नति नहीं मिल पाती है। अधिकारियों से संबंध बिगड़ने लगते हैं और नौकरी छूट जाती है।
व्यक्ति को अनचाही जगह पर तबादला मिलता है। व्यक्ति को अपने पद से नीचे के पद पर जाकर काम करना पड़ता है। आर्थिक परेशानी बढ़ जाती है। व्यापार करने वाले को घाटा उठाना पड़ता है।
आजीविका में परेशानी आने के कारण व्यक्ति मानसिक तौर पर उलझन में रहता है। इसका स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है।
व्यक्ति को जमीन एवं मकान से जुड़े विवादों का सामना करना पड़ता है।
सगे-संबंधियों एवं रिश्तेदारों में किसी पैतृक संपत्ति को लेकर आपसी मनमुटाव और मतभेद बढ़ जाता है। शनि महाराज भाइयों के बीच दूरियां भी बढ़ा देते हैं।
शनि का प्रकोप जब किसी व्यक्ति पर होने वाला होता है तो कई प्रकार के संकेत शनि देते हैं। इनमें एक संकेत है व्यक्ति का अचानक झूठ बोलना बढ़ जाना।

उपाय👉 शनिदेव भगवान शंकर के भक्त हैं, भगवान शंकर की जिनके ऊपर कृपा होती है उन्हें शनि हानि नहीं पहुंचाते अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए। पीपल में सभी देवताओं का निवास कहा गया है इस हेतु पीपल को आर्घ देने अर्थात जल देने से शनि देव प्रसन्न होते हैं। अनुराधा नक्षत्र में जिस दिन अमावस्या हो और शनिवार का दिन हो उस दिन आप तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करें तो शनि के कोप से आपको मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए।
शनि के कोप से बचने हेतु आप हनुमान जी की आराधाना कर सकते हैं, क्योंकि शास्त्रों में हनुमान जी को रूद्रावतार कहा गया है। आप साढ़े साते से मुक्ति हेतु शनिवार को बंदरों को केला व चना खिला सकते हैं। नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी शनि की साढ़े साती के कुप्रभाव से आपको बचा सकता है अगर आप इनकी अंगूठी बनवाकर धारण करते हैं। लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल ये तमाम चीज़ें शनि ग्रह से सम्बन्धित वस्तुएं हैं, शनिवार के दिन इन वस्तुओं का दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।

साढ़े साती के कष्टकारी प्रभाव से बचने हेतु आप चाहें तो इन उपायों से भी लाभ ले सकते हैं👇

👉 शनिवार के दिन शनि देव के नाम पर व्रत रख सकते हैं।
👉 नारियल अथवा बादाम शनिवार के दिन सर से 11 बार उत्तर कर जल में प्रवाहित कर सकते हैं।
👉 नियमित 108 बार शनि की तात्रिक मंत्र का जाप कर सकते हैं स्वयं शनि देव इस स्तोत्र को महिमा मंडित करते हैं।
👉 महामृत्युंजय मंत्र काल का अंत करने वाला है आप शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो शनि के फंदे से आप मुक्त हो जाएंगे।
👉 किसी शनिवार की शाम जूते का दान करें।

साढ़े साती शुभ👉
शनि की ढईया और साढ़े साती का नाम सुनकर बड़े बड़े पराक्रमी और धनवानों के चेहरे की रंगत उड़ जाती है। लोगों के मन में बैठे शनि देव के भय का कई ठग ज्योतिषी नाज़ायज लाभ उठाते हैं। विद्वान ज्योतिषशास्त्रियों की मानें तो शनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते हैं। शनि की दशा के दौरान बहुत से लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभ-सम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है। कुछ लोगों को शनि की इस दशा के दौरान काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करनाहोता है। देखा जाय तो शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भीप्रदान करते हैं। हम विषय की गहराई में जाकर देखें तो शनि का प्रभाव सभी व्यक्ति परउनकी राशि कुण्डली में वर्तमान विभिन्न तत्वों व कर्म पर निर्भर करता है. अत: शनि के प्रभाव को लेकर आपको भयग्रस्त होने की जरूरत नहीं है। आइये हम देखे कि शनि किसी के लिए कष्टकर और किसी के लिए सुखकारी तो किसी को मिश्रित फल देने वाला कैसे होता है।

शनि की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है। अगर आपका लग्न वृष,मिथुन, कन्या, तुला, मकर अथवा कुम्भ है, तो शनि आपको नुकसान नहीं पहुंचाते हैं बल्कि आपको उनसे लाभ व सहयोग मिलता है. उपरोक्त लग्न वालों केअलावा जो भी लग्न हैं उनमें जन्म लेने वाले व्यक्ति को शनि के कुप्रभाव कासामना करना पड़ता है। ज्योतिर्विद बताते हैं कि साढ़े साती का वास्तविकप्रभाव जानने के लिए चन्द्र राशि के अनुसार शनि की स्थिति ज्ञात करने केसाथ लग्न कुण्डली में चन्द्र की स्थिति का आंकलन भी जरूरी होता है।

यह ज्योतिष का गूढ़ विषय है जिसका उत्तर कुण्डली में ढूंढा जा सकता है। साढ़े साती केप्रभाव के लिए कुण्डली में लग्न व लग्नेश की स्थिति के साथ ही शनि और चन्द्र की स्थिति पर भी विचार किया जाता है।
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[ भारत वर्ष का नामकरण-
१. भारत के ३ अर्थ -(१) उत्तरी गोलार्द्ध के नकशे के ४ भागों में एक। इनको भू-पद्म के ४ दल कहा गया है-
(विष्णु पुराण २/२)-भद्राश्वं पूर्वतो मेरोः केतुमालं च पश्चिमे। वर्षे द्वे तु मुनिश्रेष्ठ तयोर्मध्यमिलावृतः।२४।
भारताः केतुमालाश्च भद्राश्वाः कुरवस्तथा। पत्राणि लोकपद्मस्य मर्यादाशैलबाह्यतः।४०।
यहां भारत-दल का अर्थ है विषुवत रेखा से उत्तरी ध्रुव तक, उज्जैन (७५०४३’ पूर्व) के दोनों तरफ ४५-४५ अंश पूर्व-पश्चिम। इसके पश्चिम में इसी प्रकार केतुमाल, पूर्व में भद्राश्व तथा विपरीत दिशा में (उत्तर) कुरु, ९०-९० अंश देशान्तर में हैं। उज्जैन से ठीक ४५० पूर्व का पर्वत यव-द्वीप (जावा) में है। नकशे की पूर्व सीमा पर (विषुव से प्रायः ८० दक्षिण) होने के कारण इसे भी सुमेरु (८०६’ दक्षिण, १२००३५’ पूर्व) कहते हैं। पश्चिमी सीमा पर मिस्र का गिजा का पिरामिड है (३१० पूर्व)।
(२) हिमालय को पूर्व से पश्चिम समुद्र तक फैलाने पर उससे दक्षिण समुद्र तक को भारत कहा गया है। यह हिमालय तक सीमा होने के कारण हिमवान् या हिमवत् वर्ष भी कहा गया है। इसके ९ खण्ड हैं, जिनमें वर्तमान भारत को कुमारिका खण्ड कहते हैं। कुमारिका खण्ड के दक्षिण ध्रुव तक का समुद्र भी कुमारिका खण्ड ही है जिस प्रकार आज भारत महासागर कहते हैं।
विष्णु पुराण (२/१)-
हिमाह्वयं तु वै वर्षं नाभेरासीन् महात्मनः। तस्यर्षभोऽभवत् पुत्रो मेरुदेव्यां महाद्युतिः॥२७॥
ऋषभाद् भरतो जज्ञे ज्येष्ठः पुत्रशतस्य सः। कृत्वा राज्यं स्वधर्मेण तथेष्ट्वा विविधान् मखान्॥२८॥
ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषु गीयते। भरताय यतः पित्रा दतं प्रातिष्ठिता वनम्॥३२॥
स्कन्द पुराण, प्रभास खण्ड, अध्याय१७२-
भरतो नाम राजाभूदाग्नीध्रः प्रथितः क्षितौ। यस्येदं भारतं वर्षं नाम्ना लोकेषु गीयते॥१॥
भारतं नवधा कृत्वा पुत्रेभ्यः प्रददौ पृथक्। तेषां नामाङ्कितान्येव ततो द्वीपानि जज्ञिरे॥२॥
इन्द्रद्वीपः कसेरुश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्। नागद्वीपस्तथा सौम्यो गान्धर्वस्त्वथ वारुणः॥३॥
अयं तु नवमो द्वीपः कुमार्य्या संज्ञितः प्रिये। अष्टौ द्वीपाः समुद्रेण प्लाविताश्च तथापरे॥४॥
ग्रामादिदेश संयुक्ताः स्थिताः सागर-मध्यगाः। एक एव स्थितस्तेषां कुमार्य्याख्यस्तु साम्प्रतम्॥५॥
(३) कुमारिका खण्ड-प्रायः वर्तमान् भारत है। दक्षिण से देखने पर यह अधोमुख त्रिकोण है अतः तन्त्र के अनुसार शक्ति त्रिकोण है। शक्ति का मूल रूप कुमारी है, अतः भारत के ९ खण्डों में मुख्य होने से इसे कुमारिका कहते हैं। ऋषभ के पुत्र भरत के नाम पर इसे भारत कहा गया। प्रजा का या विश्व का भरण (अन्न द्वारा) करने के कारण भी इसे भारत कहते हैं-
मत्स्य पुराण, अध्याय ११४-अथाहं वर्णयिष्यामि वर्षेऽस्मिन् भारते प्रजाः। भरणच्च प्रजानां वै मनुर्भरत उच्यते।५।
निरुक्तवचनाच्चैव वर्षं तद् भारतं स्मृतम्। यतः स्वर्गश्च मोक्षश्च मध्यमश्चापि हि स्मृतः।६।
न खल्वन्यत्र मर्त्यानां भूमौकर्मविधिः स्मृतः। भारतस्यास्य वर्षस्य नव भेदान् निबोधत।७।
इन्द्रद्वीपः कशेरुश्च ताम्रपर्णो गभस्तिमान्। नागद्वीपस्तथा सौम्यो गन्धर्वस्त्वथ वारुणः।८।
अयं तु नवमस्तेषं द्वीपः सागरसंवृतः। योजनानां सहस्रं तु द्वीपोऽयं दक्षिणोत्तरः।९।
आयतस्तुकुमारीतो गङायाः प्रवहावधिः।तिर्यगूर्ध्वं तु विस्तीर्णः सहस्राणि दशैव तु।१०।
यस्त्वयं मानवो द्वीपस्तिर्यग् यामः प्रकीर्तितः। य एनं जयते कृत्स्नं स सम्राडिति कीर्तितः।१५।
२. भारत के नाम-
(१) भारत-इन्द्र के ३ लोकों में भारत का प्रमुख अग्रि (अग्रणी) होने के कारण अग्नि कहा जाता था। इसी को लोकभाषा में अग्रसेन कहते हैं। प्रायः १० युग (३६०० वर्षों) तक इन्द्र का काल था जिसमें १४ प्रमुख इन्द्रों ने प्रायः १००-१०० वर्ष शासन किया। इसी प्रकार अग्रि = अग्नि भी कई थे। अन्न उत्पादन द्वारा भारत का अग्नि पूरे विश्व का भरण करता था, अतः इसे भरत कहते थे। देवयुग के बाद ३ भरत और थे-ऋषभ पुत्र भरत (प्रायः ९५०० ई.पू.), दुष्यन्त पुत्र भरत (७५०० ई.पू.) तथा राम के भाई भरत जिन्होंने १४ वर्ष (४४०८-४३९४ ई.पू.) शासन सम्भाला था।
(१) पृथिव्याः सधस्थादग्निं पुरीष्यमङ्गिरस्वदा भराग्निं पुरीष्यमङ्गिरस्वदच्छेदोऽग्निंपूरीष्यमंगिरस्वद् भरिष्यामः। (वाजसनेयी यजुर्वेद ११/१६)
=अग्नि पृथ्वी पर सबके ऊपर है, वह अंगिरा के रूप में प्रकाश देता है, हमारा भरण तथा पूरण करता है। हमें शक्तिशाली अग्नि (अग्रणी) मिले जो हमारे भरण तथा उन्नति में समर्थ हो। उसे हम हवि (कर आदि) से भर देंगे।
(२) स यदस्य सर्वस्याग्र सृजत तस्मादग्रिर्ह वै तमग्निरित्याचक्षते परोक्षम्। शतपथ ब्राह्मण ६/१/१/११)
= सबसे प्रथम उत्पन्न होने के कारण यह अग्रि (नेता) हुआ, इसे परोक्ष में अग्नि कहा जाता है।
(३) तद्वा एनमग्रे देवानां (प्रजापतिः ) अजनयत । तस्मादग्रिरग्रिर्ह वै नामे तद्यग्निरिति। शतपथ ब्राह्मण २/२/४/२)
= प्रजापति ने देवों में इसे ही पहले बनाया, अतः यह अग्रि हुआ, जिसे परोक्ष में अग्नि कहा गया।
(४) विश्व भरण पोषण कर जोई । ताकर नाम भरत आस होई। (तुलसीदास कृत राम चरित मानस, बालकाण्ड)
= पूरे विश्व का भरण पोषन करनेवाले को भरत कहा जाता है।
(५) दिवा यान्ति मरुतो भूम्याऽग्निरयं वातो अंतरिक्षेण याति ।
अद्भिर्याति वरुणः समुद्रैर्युष्माँ इच्छन्तः शवसो नपातः । (ऋक् संहिता १/१६१/१४)
= देव आकाश की मरुत् अन्तरिक्ष की तथा अग्नि पृथ्वी की रक्षा करते हैं। वरुण जल के अधिपति हैं।
(६) तस्मा अग्निर्भारतः शर्म यं सज्ज्योक् पश्यात् सूर्यमुच्चरन्तम् ।
य इन्द्राय सुनवामेत्याह नरे नर्य्याय नृतमाय नॄणाम् । (ऋक् संहिता ४/२५/४)
= इन्द्र लोगों का कल्याण करता है, नेतृत्व करता है तथा सबसे अच्छा नेता है, दाता अग्नि उनको सुख दे जिससे हम सदा सूर्य का उदय देखें।
(७) अग्निर्वै भरतः । स वै देवेभ्यो हव्यं भरति। (कौषीतकि ब्राह्मण उपनिषद् ३/२)
= अग्नि भरत है क्योंकि यह देवों का भरण करता है (भोजन देता है)।
(८) एष (अग्निः) हि देवेभ्यो हव्यं भरति तस्मात् भरतोऽग्नि रित्याहुः । (शतपथ ब्राह्मण १/४/२/२, १/५/१/८, १/५/१९/८) = यह अग्नि देवों को भोजन देता है अतः इसे भरत अग्नि कहते हैं।
(९) अग्नेर्महाँ ब्राह्मण भारतेति । एष हि देवेभ्य हव्यं भरति । (तैत्तिरीय संहिता २/५/९/१, तैत्तिरीय ब्राह्मण३/५/३/१, शतपथ ब्राह्मण १/४/१/१)
= ब्रह्मा ने अग्नि को महान् कहा था क्योंकि यह देवों को भोजन देता है।
(१०) अग्निर्देवो दैव्यो होता..देवान् यक्षद् विद्वाँश्चिकितवान्…मनुष्यवद् भरत वद् इति। (शतपथ ब्राह्मण,१/५/१/५-७)
= अग्नि देवों को भोग देता है, यह देव तथा विद्वानों का पालन करता है, यह मनुष्य तथा भरत के जैसा है।
(११) अग्निर्जातो अथर्वणा विद्वद्विश्वानि काव्या ।
भुवद्दूतो विवस्वतो वि वो मदे प्रियो यमस्य काम्यो विवक्षसे । (ऋक्संहिता १०/२१/५)
= यह अग्नि अथर्वण ऋषि से उत्पन्न हुआ, जो विश्व तथा काव्य (रचना) को जानता है। यह देवों का आवाहन करता है तथा सभी काम्यों को यज्ञ द्वारा उत्पन्न करता है।
(१२) त्वमग्ने यज्ञानां होता विश्वेषां हितः। देवेभिर्मानुषे जने। (ऋक्संहिता ६/१६/१- भरद्वाजो बार्हस्पत्यः)
= हे अग्नि! तुम विश्व के हित के लिये यज्ञ करते हो अतः देवों ने मनुष्यों के लिये दिया।
(१३) यो अग्निः सप्त मानुषः श्रितो विश्वेषु सिन्धुषु । तमागन्म त्रिपस्त्यं मन्धातुर्दस्युहन्तममग्निं यज्ञेषु पूर्व्यम् नभन्तामन्यके समे । (ऋक्संहिता ८/३९/८-नाभाकः काण्वः)
= जो अग्नि ७ मनुष्यों (होता), सभी समुद्रों ३ लोकों में रहकर उनका पालन करता है, उसे पाकर हम कष्ट तथा शत्रुओं को नष्ट करें।
(१४) त्वां दूतमग्ने अमृतं युगे युगे हव्यवाहं दधिरे पायुमीड्यम् ।
देवासश्च मर्तासश्च जागृविं विभुं विश्पतिं नमसा नि षेदिरे । (ऋक्संहिता ६/१५/८)
= हे अग्नि! देवों तथा मनुष्यों ने तुमको दूत बनाया है। तुम हव्य का वहन करते हो, सदा सावधान हो तथा लोकों का पालन करते हो, हम तुमको नमस्कार करते हैं।
(१५) विभूषन्नग्न उभयाँ अनु व्रता दूतो देवानां रजसी समीयसे ।
यत् ते धीतीं सुमतिमावृणीमहेऽध स्मा नस्त्रिवरूथः शिवो भव । (ऋक्संहिता ६/१५/९)
= हे अग्नि! तुम भूमि तथा आकाश में मनुष्यों तथा देवों का दूत होने से प्रशंसनीय हो\ हमारे मन, बुद्धि, तन की रक्षा करो तथा सुख दो।
(१६) अग्निर्होता गृहपतिः स राजा विश्वा वेद जनिमा जातवेदाः ।
देवानामुत यो मर्त्यानां यजिष्ठः स प्र यजतामृतावा ॥ (ऋक़् ६/१५/१३ )
=अग्नि देवों का होता, तेजस्वी तथा गृहपति है। वह सबको जानता है तथा देव-मनुष्यों का पूजनीय है। वह देवों को यज्ञ द्वारा सन्तुष्ट करे।
(१७) आग्निरगामि भारतो वृत्रहा पुरुचेतनः । दिवोदासस्य सत्पतिः । (ऋक्संहिता ६/१६/१९)
= अग्नि भरतों का रक्षक, वृत्र आदि असुरों का नाशक, दिवोदास (काशिराज) तथा सज्जनों का स्वामी है।
(१८) उदग्ने भारत द्युमदजस्रेण दवीद्युतत् । शोचा वि भाह्यजर । ॥ (ऋक़् ६/१६/४५)
= हे भारत अग्नि। तुम तेजस्वी तथा युवक हो, हमारी चिन्ता दूर करो।
(१९) त्वामीळे अध द्विता भरतो वाजिभिः शुनम् । ईजे यज्ञेषु यज्ञियम् ॥ (ऋक़् ६/१६/४)
= अग्नि! हम तुम्हारी पूजा करते हैं, क्योंकि तुम भरत हो, पोषण करनेवालों में इन्द्र तथा यज्ञों में यज्ञीय (फल) हो।
(२०) भरणात्प्रजनाच्चैष मनुर्भरत उच्यते । एतन्निरुक्त वचनाद् वर्षं तद् भारतं स्मृतम् ।
यस्त्वयं मानवो द्वीपस्तिर्यगग्यामः प्रकीर्तितः । य एनं जयते कृत्स्नं स सम्राडिति कीर्तितः ।
(मत्स्य पुराण ११४/५,६,१५, वायु पुराण ४५/७६, ८६)
= लोकों के भरण तथा पालन के कारण इस देश का मनु (शासक) भरत कहा जाता है। निरुक्त परिभाषा के अनुसार भी इस देश को भारत कहा गया है। मनु का यह विख्यात देश दक्षिण में त्रिकोण तथा उत्तर में चौड़ा है। जो इस देश को पूरी तरह जीत लेता है, उसे सम्राट् कहा जाता है।
(२१) हमारे देश के लोगों की इच्छा रहती है कि लोगों का भरण करें, अतः यह देश भारत है-
दातारो नोभिवर्धन्तां वेदाः सन्तति रेव च । श्रद्धा च नो मा व्यगमत् बहुदेयं च नो स्त्विति। अन्नं च नो बहु भवेदतिथींश्च लभेमहि । याचिताश्च न सन्तु मा च याचिष्म कञ्चन ।
= दाताओं, वेद तथा सन्तति की वृद्धि हो, हमारी श्रद्धा कम नहीं होतथा दान के लिये हमारे पास पर्याप्त धन हो। हमारे पास बहुत अन्न हो तथा अतिथि आवें। दूसरे हमसे मांगें, हमें मांगने की जरूरत नहीं हो।
भारत के बारे में यही विचार सभी ग्रीक लेखकों के भी हैं, पर उन लोगों को इसका आकार का पता नहीं था, इसे चौकोर लिखा है।
Megasthenes: Indika
http://projectsouthasia.sdstate.edu/docs/history/primarydocs/Foreign_Views/GreekRoman/Megasthenes-Indika.htm
FRAGMENT I OR AN EPITOME OF MEGASTHENES. (Diod. II. 35-42.)
(35.) India, which is in shape quadrilateral, has its eastern as well as its western side bounded by the great sea,
(36.) The inhabitants, in like manner, having abundant means of subsistence, exceed in consequence the ordinary stature, and are distinguished by their proud bearing……. while the soil bears on its surface all kinds of fruits which are known to cultivation, it has also under ground numerous veins of all sorts of metals, for it contains much gold and silver, and copper and iron in no small quantity, and even tin and other metals, which are employed in making articles of use and ornament, as well as the implements and accoutrements of war. In addition to cereals, there grows throughout India much millet, which is kept well watered by the profusion of river-streams, and much pulse of different sorts, and rice also, and what is called bosporum, as well as many other plants useful for food, of which most grow spontaneously. The soil yields, moreover, not a few other edible products fit for the subsistence of animals, about which it would be tedious to write. It is accordingly affirmed that famine has never visited India, and that there has never been a general scarcity in the supply of nourishing food. For, since there is a double rainfall in the course of each year,–one in the winter season, when the sowing of wheat takes place as in other countries, and the second at the time of the summer solstice, which is the proper season for sowing rice and bosporum, as well as sesamum and millet–the inhabitants of India almost always gather in two harvests annually; …..
(38.) It is said that India, being of enormous size when taken as a whole, is peopled by races both numerous and diverse, of which not even one was originally of foreign descent, but all were evidently indigenous; and moreover that India neither received a colony from abroad, nor sent out a colony to any other nation. …
(२) अजनाभ-विश्व सभ्यता के केन्द्र रूप में इसे अजनाभ वर्ष कहते थे। इसके शासक को जम्बूद्वीप के राजा अग्नीध्र (स्वयम्भू मनु पुत्र प्रियव्रत की सन्तान) का पुत्र नाभि कहा गया है।
विष्णु पुराण, खण्ड २, अध्याय १-जम्भूद्वीपेश्वरो यस्तु आग्नीध्रो मुनिसत्तम॥१५॥
पित्रा दत्तं हिमाह्वं तु वर्षं नाभेस्तु दक्षिणम्॥१८॥
हिमाह्वयं तु वै वर्षं नाभेरासीन्महात्मनः। तस्यर्षभॊऽभवत् पुत्रो मेरुदेव्यां महाद्युतिः॥२७॥
ततश्च भारतं वर्षमेतल्लोकेषु गीयते। भरताय यतः पित्रा दत्तं प्रातिष्ठिता वनम्॥३२॥
विष्णु पुराण, खण्ड ४, अध्याय १९-दुष्यन्ताश्चक्रवर्ती भरतोऽभूत्॥१०॥
(३) हिमवत वर्ष- भौगोलिक खण्ड के रूप में इसे हिमवत वर्ष कहा गया है क्योंकि यह जम्बू द्वीप में हिमालय से दक्षिण समुद्र तक का भाग है। अलबरूनी ने इसे हिमयार देश कहा है (प्राचीन देशों के कैलेण्डर में उज्जैन के विक्रमादित्य को हिमयार का राजा कहा है जिसने मक्का मन्दिर की मरम्मत कराई थी)
(४) इन्दु-आकाश में सृष्टि विन्दु से हुयी, उसका पुरुष-प्रकृति रूप में २ विसर्ग हुआ-जिसका चिह्न २ विन्दु हैं। विसर्ग का व्यक्त रूप २ विन्दुओं के मिलन से बना ’ह’ है। इसी प्रकार भारत की आत्मा उत्तरी खण्ड हिमालय में है जिसका केन्द्र कैलास विन्दु है। यह ३ विटप (वृक्ष, जल ग्रहण क्षेत्र) का केन्द्र है-विष्णु विटप से सिन्धु, शिव विटप (शिव जटा) से गंगा) तथा ब्रह्म विटप से ब्रह्मपुत्र। इनको मिलाकर त्रिविष्टप = तिब्बत स्वर्ग का नाम है। इनका विसर्ग २ समुद्रों में होता है-सिन्धु का सिन्धु समुद्र (अरब सागर) तथा गंगा-ब्रह्मपुत्र का गंगा-सागर (बंगाल की खाड़ी) में होता है। हुएनसांग ने लिखा है कि ३ कारणों से भारत को इन्दु कहते हैं-(क) उत्तर से देखने पर अर्द्ध-चन्द्राकार हिमालय भारत की सीमा है, चन्द्र या उसका कटा भाग = इन्दु। (ख) हिमालय चन्द्र जैसा ठण्ढा है। (ग) जैसे चन्द्र पूरे विश्व को प्रकाशित करता है, उसी प्रकार भारत पूरे विश्व को ज्ञान का प्रकाश देता है। ग्रीक लोग इन्दु का उच्चारण इण्डे करते थे जिससे इण्डिया शब्द बना है।
(५) हिन्दुस्थान-ज्ञान केन्द्र के रूप में इन्दु और हिन्दु दोनों शब्द हैं-हीनं दूषयति = हिन्दु। १८ ई. में उज्जैन के विक्रमादित्य के मरने के बाद उनका राज्य १८ खण्डों में भंट गया और चीन, तातार, तुर्क, खुरज (कुर्द) बाह्लीक (बल्ख) और रोमन आदि शक जातियां। उनको ७८ ई. में विक्रमादित्य के पौत्र शालिवाहन ने पराजित कर सिन्धु नदी को भारत की पश्चिमी सीमा निर्धारित की। उसके बाद सिन्धुस्थान या हिन्दुस्थान नाम अधिक प्रचलित हुआ। देवयुग में भी सिधु से पूर्व वियतनाम तक इन्द्र का भाग था, उनके सहयोगी थे-अफगानिस्तान-किर्गिज के मरुत्, इरान मे मित्र और अरब के वरुण तथा यमन के यम।
(६) कुमारिका-अरब से वियतनाम तक के भारत के ९ प्राकृतिक खण्ड थे, जिनमें केन्द्रीय खण्ड को कुमारिका कहते थे। दक्षिण समुद्र की तरफ से देखने पर यह अधोमुख त्रिकोण है जिसे शक्ति त्रिकोण कहते हैं। शक्ति (स्त्री) का मूल रूप कुमारी होने के कारण इसे कुमारिका खण्ड कहते हैं। इसके दक्षिण का महासागर भी कुमारिका खण्ड ही है जिसका उल्लेख तमिल महाकाव्य शिलप्पाधिकारम् में है। आज भी इसे हिन्द महासागर ही कहते हैं।
(७) लोकपाल संस्था-२९१०२ ई.पू. में ब्रह्मा ने ८ लोकपाल बनाये थे। यह उनके स्थान पुष्कर (उज्जैन से १२ अंश पश्चिम बुखारा) से ८ दिशाओं में थे। यहां से पूर्व उत्तर में (चीन, जापान) ऊपर से नीचे, दक्षिण पश्चिम (भारत) में बायें से दाहिने तथा पश्चिम में दाहिने से बांये लिखते थे जो आज भी चल रहा है।
बाद के ब्रह्मा स्वायम्भुव मनु की राजधानी अयोध्या थी, और लोकपालों का निर्धारण भारत के केन्द्र से हुआ। पूर्व से दाहिनी तरफ बढ़ने पर ८ दिशाओं (कोण दिशा सहित) के लोकपाल हैं-इन्द्र, अग्नि, यम, निर्ऋति, वरुण, मरुत्, कुबेर, ईश। इनके नाम पर ही कोण दिशाओं के नाम हैं-अग्नि, नैर्ऋत्य, वायव्य, ईशान।
इन्द्रो वह्निः पितृपतिर्नैर्ऋतो वरुणो मरुत्। कुबेर ईशः पतयः पूर्वादीनां दिशाः क्रमात्॥ (अमरकोष१/३/२)
अतः बिहार से वियतनाम और इण्डोनेसिया तक इन्द्र के वैदिक शब्द आज भी प्रचलित हैं। इनमें ओड़िशा में विष्णु और जगन्नाथ सम्बन्धी, काशी (भोजपुरी) में शिव, मिथिला में शक्ति, गया (मगध) में विष्णु के शब्द हैं। शिव-शक्ति (हर) तथा विष्णु (हरि) क्षेत्र तथा इनकी भाषाओं की सीमा आज भी हरिहर-क्षेत्र है। इन्द्र को अच्युत-च्युत कहते थे, अतः आज भी असम में राजा को चुतिया (च्युत) कहते हैं। इनका नाग क्षेत्र चुतिया-नागपुर था जो अंग्रेजी माध्यम से चुटिया तथा छोटा-नागपुर हो गया। ऐरावत और ईशान सम्बन्धी शब्द असम से थाइलैण्ड तक, अग्नि सम्बन्धी शब्द वियतनाम. इण्डोनेसिया में हैं। दक्षिण भारत में भी भाषा क्षेत्रों की सीमा कर्णाटक का हरिहर क्षेत्र है। उत्तर में गणेश की मराठी, उत्तर पूर्व के वराह क्षेत्र में तेलुगु, पूर्व में कार्त्तिकेय की सुब्रह्मण्य लिपि तमिल, कर्णाटक में शारदा की कन्नड़, तथा पश्चिम में हरिहर-पुत्र की मलयालम।
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: अंजीर से 40 बीमारियों का इलाज

  1. कब्ज- अगर आपको कब्ज की समस्या है तो अंजीर का सेवन बेहद लाभकारी माना जाता है।
  2. दमा- दमा जिसमें कफ (बलगम) निकलता हो उसमें अंजीर खाना लाभकारी है। इससे कफ बाहर आ जाता है तथा रोगी को शीघ्र ही आराम भी मिलता है।
  3. प्यास की अधिकता- बार-बार प्यास लगने पर अंजीर का सेवन करें।
  4. मुंह के छाले- अंजीर का रस मुंह के छालों पर लगाने से आराम मिलता है।
  5. प्रदर रोग- अंजीर का रस 2 चम्मच शहद के साथ प्रतिदिन सेवन करने से दोनों प्रकार के प्रदर रोग नष्ट हो जाते हैं।
  6. दांतों का दर्द- अंजीर का सेवन करने से दांतों का दर्द दूर हो जाता है।
  7. पेशाब का अधिक आना- 3-4 अंजीर खाकर, 10 ग्राम काले तिल चबाने से यह कष्ट दूर होता है।
  8. मुंहासे- कच्चे अंजीर का दूध मुंहासों पर 3 बार लगाएं।
  9. त्वचा रोग- अंजीर को खाने से दाद, दिनाय (खुजली युक्त फुंसी) और चमड़ी के सारे रोग ठीक हो जाते है।
  10. दुर्बलता- पके अंजीर का सेवन 40 दिनों तक नियमित करने से शारीरिक दुर्बलता दूर हो जाती है।
  11. रक्तवृद्धि और शुद्धि हेतु- 10 मुनक्के और 5 अंजीर 200 मिलीलीटर दूध में उबालकर खा लें। फिर ऊपर से उसी दूध का सेवन करें। इससे रक्तविकार दूर हो जाता है।
  12. पेचिश और दस्त- अंजीर का काढ़ा पीने से दस्त और पेचिश की समस्या से निजात मिलती है।
  13. खून की कमी- अंजीर से शरीर में खून बढ़ता है। अंजीर की जड़ और डालियों की छाल का उपयोग औषधि के रूप में होता है।
  14. जीभ की सूजन- सूखे अंजीर का काढ़ा बनाकर उसका लेप करने से गले और जीभ की सूजन पर लाभ होता है।
  15. पुल्टिश- ताजे अंजीर कूटकर, फोड़े आदि पर बांधने से शीघ्र आराम होता है।
  16. दस्त साफ लाने के लिए- दो सूखे अंजीर सोने से पहले खाकर ऊपर से पानी पीना चाहिए। इससे सुबह साफ दस्त होता है।
  17. क्षय यानी टी.बी के रोग- इस रोग में अंजीर खाना चाहिए। हर रोज खाने के लिए 2 से 4 अंजीर का प्रयोग कर सकते हैं।
  18. फोड़े-फुंसी- अंजीर की पुल्टिस बनाकर फोड़ों पर बांधने से यह फोड़ों को पकाती है।
  19. गिल्टी- अंजीर को चटनी की तरह पीसकर गर्म करके पुल्टिस बनाकर बांधने से गिल्टी जल्दी पक जाती है।
  20. सफेद कुष्ठ- अंजीर के पत्तों का रस श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) पर सुबह और शाम को लगाने से लाभ होता है।
  21. गले के भीतर की सूजन- सूखे अंजीर को पानी में उबालकर लेप करने से गले के भीतर की सूजन मिटती है।
  22. श्वासरोग- अंजीर और गोरख इमली के एक साथ सेवन करने से श्वासरोग का कष्ट दूर होता है।
  23. खून और वीर्यवद्धक- अंजीर खाने से कमजोर शक्ति वालों के खून और वीर्य में वृद्धि होती है।
  24. शरीर की गर्मी- सुबह के समय भीगे हुए अंजीर खाने से शरीर की गर्मी निकल जाती है और रक्तवृद्धि होती है।
  25. जुकाम- पानी में 5 अंजीर को डालकर उबाल लें और इसे छानकर इस पानी को गर्म-गर्म सुबह और शाम को पीने से जुकाम में लाभ होता है।
  26. फेफड़ों के रोग- फेफड़ों के रोगों में पांच अंजीर एक गिलास पानी में उबालकर छानकर सुबह-शाम पीना चाहिए।
  27. मसूढ़ों से खून का आना- अंजीर को पानी में उबालकर इस पानी से रोजाना दो बार कुल्ला करें।
  28. तिल्ली रोग- अंजीर 20 ग्राम को सिरके में डुबोकर सुबह और शाम रोजाना खाने से तिल्ली ठीक हो जाती है।
  29. खांसी- अंजीर का सेवन करने से सूखी खांसी दूर हो जाती है।
  30. गुदा चिरना- इस तरह की समस्या में सूखे अंजीर को उबालकर खाएं।
  31. बवासीर- रात को भिगोकर रखने के बाद अंजीरों को मसलकर प्रतिदिन सुबह खाली पेट खाने से अर्श (बवासीर) रोग दूर होता है
  32. कमर दर्द- अंजीर की छाल कूटकर रात को पानी में भिगो दें। सुबह इसके बचे रस को छानकर पिला दें। इससे कमर दर्द में लाभ होता है।
  33. आंवयुक्त पेचिश- पेचिश तथा आवंयुक्त दस्तों में अंजीर का काढ़ा बनाकर पीने से रोगी को लाभ होता है।
  34. अग्निमान्द्य (अपच) होने पर- अंजीर को सिरके में भिगोकर खाने से भूख न लगना और अफारा दूर हो जाता है।
  35. प्रसव के समय की पीड़ा- प्रसव के समय में 15-20 दिन तक रोज दो अंजीर दूध के साथ खाने से लाभ होता है।
  36. बच्चों का यकृत बढ़ना- 1 अंजीर सुबह-शाम बच्चे को देने से यकृत रोग की बीमारी से आराम मिलता है।
  37. सिर का फोड़ा- फोड़ों और उसकी गांठों पर सूखे अंजीर या हरे अंजीर को पीसकर पानी में औटाकर गुनगुना करके लगाएं।
  38. दाद- अंजीर का दूध लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
  39. सिर का दर्द- सिरके या पानी में अंजीर के पेड़ की छाल की भस्म मिलाकर सिर पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
  40. सर्दी अधिक लगना- अंजीर के सेवन से से सर्दी या शीत के कारण होने वाले हृदय और दिमाग के रोगों में बहुत ज्यादा फायदा मिलता है।
    : अमरूद के पत्ते खाने के फायदे
  41. अमरूद के पत्ते खाने से पेट में जमा विषैले और टाॅक्सिस पदार्थों का दुष्प्रभाव कम हो जाता है। और पेट दर्द से छुटकारा मिलता है।
  42. अमरूद की पत्तियों को उबालकर पानी को ठंडा करके गरारे करने से दांत दर्द, मसूड़ों की सूजन और मुंह के छाले बहुत जल्दी ठीक हो जाते हैं।
  43. अमरूद की ताजी-ताजी पत्तियों को चबाकर खाने से एलर्जी और खाज, खुजली की समस्या खत्म हो जाती है।
  44. अमरूद की पत्तियां खाने से खून में शुगर का लेवल कंट्रोल में रहता है। इसलिए अमरूद की पत्तियां डायबिटीज के रोगियों के लिए बहुत फायदेमंद होती है।
  45. अमरूद के पत्तों की चाय बनाकर पीने से शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर कंट्रोल हो जाएगा।
  46. अमरूद के पत्तों को पानी में उबालकर पानी को ठंडा करके पीने से डेंगू बुखार खत्म हो जाएगा।
  47. अमरूद के पत्ते खाने से दमा रोग खत्म हो जाता है।
  48. अमरूद के पत्तों को खाने से चेहरे की समस्याएं जैसे दाग-धब्बे, मुंहासे और झुर्रियां आदि से छुटकारा मिलता है। चेहरे पर चमक आती है। और चेहरा हमेशा जवां दिखता है।
    [ पीपल के पत्ते के फायदे: त्वचा के लिए गुणकारी
    त्वचा पर दाद, खुजली और खाज होने पर आप इस पेड़ के पत्तों का सेवन करें। पीपल के पेड़ के पत्तों को खाने से त्वचा से जुड़ी कई समस्याओं को सही किया जा सकता है। पत्ते खाने के अलावा आप चाहें तो पत्तों का काढ़ा भी बनाकर पी सकते हैं। वहीं चेहरे पर मुहांसे या फोड़े-फुंसी होने पर आप पीपल की छाल को घिसकर इनपर लगा लें। ऐसा करने से मुहांसे एकदम सही हो जाएंगी।

पीपल के पत्ते के फायदे: जुकाम को करे दूर
सर्दी-जुकाम होने पर आप पीपल के कुछ पत्तों को लेकर उन्हें धूप में सूखा लें। जब ये पत्ते अच्छे से सूख जाएं तो आप इन्हें पीस लें और इनमें मिश्री मिल दें। फिर आप पानी के अंदर इस मिश्रण को डाल दें और पानी को अच्छे से उबालकर काढ़ा बना लें। इस काढ़े को पीने से जुकाम जल्द ही सही हो जाएगा। आप चाहें तो इस काढ़े के अंदर अदरक को भी डाल सकते हैं।

पीपल के पत्ते के फायदे: नकसीर की समस्या से मिले निजात
अक्सर गर्म के मौसम में लोगों को नाक से खून आ जाता है। नाक से खून आने पर आप पीपल के ताजे पत्ते का रस निकल लें और फिर इस रस को नाक के अंदर डाल लें। नाक के अंदर इस रस को डालने से खून निकलना बंद हो जाएगा। नाक के अंदर पीपल के पत्ते का रस डालने के अलावा आप चाहें तो पीपल के पेड़ के पत्तों को सूंघ भी सकते हैं। पीपल के पत्ते को सूंघने से नाकसीर की समस्या से निजात मिल जाती है।

पीपल के पत्ते के फायदे: तनाव करे दूर
पीपल के पेड़ के पत्ते खाने से तनाव की समस्या भी सही हो जाती है। जिन लोगों को भी तनाव रहता है वो लोग बस रोज एक पीपल के पत्ते को चबा लें। इसे चबाने से आपका तनाव दूर हो जाएगा। दरअसल पीपल के पत्ते के अंदर एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में पाया जाता है और ये तत्व तनाव कम करने में कारगर साबित होता है।

पीपल के पत्ते के फायदे: शरीर जवां बना रहे
जो लोग नियमित रूप से पीपल के पेड़ के पत्ते खाते हैं, उन लोगों का शरीर हमेशा यंग रहता है और बढ़ती उम्र में भी वो एकदम फिट रहते हैं। इसलिए आप भी पीपल के पत्तों को खाकर अपने आपको जवां और फिट रख सकते है।

पीपल के पत्ते के फायदे: चोट के घाव को भरे
चोट के घाव को सही करने में पीपल के पत्ते काफी सहायक सिद्ध होते हैं और पीपल के पत्ते का लेप लगाते ही घाव तुरंत सही हो जाता है। लेप तैयार करने के लिए आप पीपल के पत्ते को अच्छे से पीस लें और इसके अंदर सरसों का तेल और हल्दी मिलाकर इसे घाव पर लगा लें। आप इस लेप को दिन में दो बार चोट पर लगाएं। इस लेप को लगाने से घाव सही हो जाएगा। पत्ते के अलावा आप पीपले केे पेड़ की छाल का लेप भी घाव पर लगा सकते हैं। छाल का लेप लगाने से भी घाव सही हो जाता है।

पीपल के पत्ते के फायदे: विष के असर को करे कम
अगर कोई जहरीला जीव-जंतु आपको काट ले तो आप तुरंत काटने वाली जगह पर पीपल के पत्ते का रस लगा लें। पीपल के पत्ते का रस लगाने से जहर का असर कम होने लग जाएगा।

पीपल के पत्ते के फायदे: पेट का दर्द हो सही
पेट में दर्द होने पर आप पीपल के पेड़ के पत्तों को सेवन करें। पीपल के पेड़ के पत्तों को खाने से पेट दर्द से तुरंत राहत मिल जाती है। आप बस कुछ पीपल के पेड़ के पत्तों को साफ कर लें और इन्हें अच्छे से पीस लें। फिर आप इनके अंदर गुड को मिला दें और इस मिश्रण का सेवन आप दिन में दो बार करें ले। इस मिश्रण को खाने से आपका पेट का दर्द तुरंत सही हो जाएगा।

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