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🙏 “आजका सदचिंतन” 🙏
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भगवान के सच्चे भक्त कैसे बने ?
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आध्यात्मिक लक्ष्य की पूर्ति करने के लिए अग्रसर हुए हम धर्मप्रेमी-ईश्वरभक्त लोगों के कंधों पर लौकिक कर्तव्यों की पूर्ति भी एक बड़ा उत्तरदायित्व है।
ईश्वर को हम पूजें और उसकी प्रजा से प्रेम करें, भगवान का अर्चन करें और उसकी वाटिका को, दुनिया को सुरम्य बनाएँ तभी हम उसके सच्चे भक्त कहला सकेंगे, तभी उसका सच्चा प्रेम प्राप्त करने के अधिकारी हो सकेंगे।

     *विचार क्रांति अभियान*

🙏 सबका जीवन मंगलमय हो 🙏
: परमात्मा की प्राप्ति करनी है तो संसार की अनुकूलता और प्रतिकूलता दोनों को सहना पड़ेगा। दोनों से ऊँचा उठना ही पड़ेगा। न अनुकूलता में राजी होना है, न प्रतिकूलता में राजी होना है, प्रत्युत भगवान की मरजी में राजी होना है। न अनुकूलता ठहरेगी न प्रतिकूलता ठहरेगी–यह बिल्कुल निश्चित पक्की बात है। किसी के भी जीवन में अनुकूलता भी नहीं ठहरी, और प्रतिकूलता भी नहीं ठहरी। अनुकूलता-प्रतिकूलता आती-जाती रहती है। पक्की बात, सच्ची बात, कल्याण की बात, उद्धार की बात, सुधार की बात है–अनुकूलता-प्रतिकूलता को सह लो। साधु हो या गृहस्थ हो, भाई हो या बहन हो, पढ़ा-लिखा हो या अपढ़ हो, विद्वान हो या मूर्ख हो, यह काम सबको करना है।

शरीर के अनुकूल-प्रतिकूल, मन के भी अनुकूल-प्रतिकूल, बुद्धि के भी अनुकूल-प्रतिकूल, सिद्धांत के भी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थिति आती है, तो उसमें सम होना ही पड़ेगा, तभी संसार से ऊँचा उठोगे, तभी परमात्मा की प्राप्ति होगी।

Զเधॆ Զเधॆ🙏🙏

     *कई बार प्राप्ति से नहीं अपितु आपके त्याग से आपके जीवन का मूल्यांकन किया जाता है। माना कि जीवन में पाने के लिए बहुत कुछ है मगर इतना ही पर्याप्त नहीं क्योंकि यहाँ खोने को भी बहुत कुछ है। बहुत चीजें जीवन में अवश्य प्राप्त कर लेनी चाहियें मगर बहुत सी चीजें जीवन में त्याग भी देनी चाहियें।*

      *प्राप्ति ही जीवन की चुनौती नहीं, त्याग भी जीवन के लिए एक चुनौती है। अतः जीवन दो शर्तों पर जिया जाना चाहिए। पहली यह कि जीवन में कुछ प्राप्त करना और दूसरी यह कि जीवन में कुछ त्याग करना।*

       *एक जीवन को पूर्ण करने के लिए आपको प्राप्त करना ही नहीं अपितु त्यागना भी है और आत्म-चिन्तन के बाद क्या प्राप्त करना है और क्या त्याग करना है ? यह भी आप सहज ही समझ जायेंगे। एक फूल को सबका प्रिय बनने के लिए खुशबू तो लुटानी ही पड़ती है।*

जय श्री कृष्ण🙏🙏
❗❗ ( पहले और आज ) ❗❗
ज़रा ग़ौर से पढ़ें………।

👪 पहले लोग सुबह पूजा-पाठ के लिये उठते थे ।
👉 और आज ऑफ़िस के लिये ।

🙇पहले लोग सुबह रामायण पढ़ा करते थे ।
👉 और आज मैसेज ।

🙇 पहले लोग दान-धर्म के लिये मेहनत करते थे ।
👉और आज धन के लिए ।

🙇 पहले लोग भजन- भक्ति के लिए तत्पर रहते थे ।
👉 और आज मूवी और म्यूज़िक के लिए ।

🙇 पहले महिलायें घर की शोभा थी।
👉 और आज बाज़ार की।

😔पहले बच्चे माँ बाप का कहना मानते थे।
👉और आज माँ बाप बच्चों का ।

🙇हमें आज ही अपने आप को बदलना होगा ।

डिलीट करने से पहले किसी एक को सैन्ड ज़रूर करें।

इन्सान घर 🏡 बदलता है।

👔 कपड़ा बदलता है ।

🚶🏃👫 सम्बन्ध बदलता है ।

👬 मित्र बदलता है । फिर भी परेशान क्यों रहता है ??

😨 क्यों कि वो स्वयं को नहीं बदलता ,,,,,,,,,,,,,,

🌞 दिन में हर समय प्रभु का नाम लेने की आदत बनाओ ,,,,,,,।
: सवर्णों में एक जाति आती है ब्राह्मण

आरोप ये लगे कि ब्राह्मणों ने जाति का बटवारा किया!

उत्तर:- सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद जो अपौरुषेय जिसका संकलन वेदव्यास जी ने किया। जो मल्लाहिन के गर्भ से उत्पन्न हुए।

18-पुराण, महाभारत, गीता सब व्यास विरचित है जिसमें वर्णव्यवस्था और जाति व्यवस्था दी गई है। रचनाकार व्यास ब्राह्मण जाति से नही थे।

ऐसे ही कालीदासादि कई कवि जो वर्णव्यवस्था और जाति-व्यवस्था के पक्षधर थे और जन्मजात ब्राह्मण नहीं थे।

मेरा प्रश्न:- कोई एक भी ग्रन्थ का नाम बतलाइए जिसमें जातिव्यवस्था लिखी गई हो और ब्राह्मण ने लिखा हो?

शायद एक भी नही मिलेगा। मुझे पता है आप मनु स्मृति का ही नाम लेंगे, जिसके लेखक मनु महाराज थे, जोकि क्षत्रिय थे, मनु स्मृति जिसे आपने कभी पढ़ा ही नहीं और पढ़ा भी तो टुकड़ों में! कुछ श्लोकों को जिसके कहने का प्रयोजन कुछ अन्य होता है और हम समझते अपने विचारानुसार है। मनु स्मृति पूर्वाग्रह रहित होकर सांगोपांग पढ़ें।छिद्रान्वेषण की अपेक्षा गुणग्राही बनकर स्थिति स्पष्ट हो जाएगी।

अब रही बात कि ब्राह्मणों ने क्या किया? तो सुनें!

यंत्रसर्वस्वम् (इंजीनियरिंग का आदि ग्रन्थ)-भरद्वाज,

वैमानिक शास्त्रम् (विमान बनाने हेतु)-भरद्वाज,

सुश्रुतसंहिता (सर्जरी चिकित्सा)-सुश्रुत,

चरकसंहिता (चिकित्सा) -चरक,

अर्थशास्त्र(जिसमें सैन्यविज्ञान, राजनीति, युद्धनीति, दण्डविधान, कानून आदि कई महत्वपूर्ण विषय हैं)- कौटिल्य,

आर्यभटीयम् (गणित)-आर्यभट्ट।_

ऐसे ही छन्दशास्त्र, नाट्यशास्त्र, शब्दानुशासन, परमाणुवाद, खगोल विज्ञान, योगविज्ञान सहित प्रकृति और मानव कल्याणार्थ समस्त विद्याओं का संचय अनुसंधान एवं प्रयोग हेतु ब्राह्मणों ने अपना पूरा जीवन भयानक जंगलों में, घोर दरिद्रता में बिताए। उसके पास दुनियाँ के प्रपंच हेतु समय ही कहाँ शेष था? कोई बताएगा समस्त विद्याओं में प्रवीण होते हुए भी, सर्वशक्तिमान् होते हुए भी ब्राह्मण ने पृथ्वी का भोग करने हेतु गद्दी स्वीकारा हो…?

विदेशी मानसिकता से ग्रसित कमनिष्ठों (वामपंथियों) ने कुचक्र रचकर गलत तथ्य पेश किए ।आजादी के बाद इतिहा संरचना इनके हाथों सौपी गई और ये विदेश संचालित षड़यन्त्रों के तहत देश में जहर बोने लगे।

ब्राह्मण हमेशा से यही चाहता रहा है कि हमारा राष्ट्र शक्तिशाली हो अखण्ड हो, न्याय व्यवस्स्था सुदृढ़ हो। सर्वे भवन्तु सुखिन:सर्वे सन्तु निरामया: सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दु:ख भाग्भवेत्। का मन्त्र देने वाला ब्राह्मण, वसुधैव कुटुम्बकम् का पालन करने वाला ब्राह्मण सर्वदा काँधे पर जनेऊ कमर में लंगोटी बाँधे एक गठरी में लेखनी, मसि, पत्ते, कागज, और पुस्तक लिए चरैवेति-चरैवेति का अनुशरण करता रहा। मन में एक ही भाव था लोक कल्याण!

ऐसा नहीं कि लोक कल्याण हेतु मात्र ब्राह्मणों ने ही काम किया। बहुत सारे ऋषि, मुनि, विद्वान्, महापुरुष अन्य वर्णों के भी हुए जिनका महत् योगदान रहा है। किन्तु आज ब्राह्मण के विषय में ही इसलिए कह रहा हूँ कि जिस देश की शक्ति के संचार में ब्राह्मणों के त्याग तपस्या का इतना बड़ा योगदान रहा।

जिसने मुगलों यवनों, अंग्रेजों और राक्षसी प्रवृत्ति के लोंगों का भयानक अत्याचार सहकर भी यहाँ की संस्कृति और ज्ञान को बचाए रखा। वेदों, शास्त्रों को जब जलाया जा रहा था तब ब्राह्मणों ने पूरा का पूरा वेद और शास्त्र कण्ठस्थ करके बचा लिया और आज भी वे इसे नई पीढ़ी में संचारित कर रहे हैं वे सामान्य कैसे हो सकते हैं..? उन्हें सामान्य जाति का कहकर आरक्षण के नाम पर सभी सरकारी सुविधाओं से रहित क्यों रखा जाता है?

मुझे किसी जाति विशेष से द्वेष नही है। मैने शास्त्रों को जीने का प्रयास किया है अत: जातिगत छुआछूत को पाप मानता हूँ।

मैंने शास्त्रों को पढ़ा है अत: परस्त्रियों को मातृवत्, पराये धन को लोष्ठवत् और सबको आत्मवत् मानता हूँ! लेकिन मेरा सबसे निवेदन:-

गलत तथ्यों के आधार पर हमें क्यों सताया जा रहा है?हमारे धर्म के प्रतीक शिखा और यज्ञोपवीत, वेश भूषा का मजाक क्यों बनाया जा रहा हैं?

हमारे मन्त्रों और पूजा पद्धति का उपहास होता है और आप सहन कैसे करते हैं? विश्व की सबसे समृद्ध और एकमात्र वैज्ञानिक भाषा संस्कृत को हम भारतीय हेय दृष्टि से क्यों देखते है।

इसके अलावा देश की आज़ादी की लड़ाई में ब्राह्मण समाज का योगदान भुलाया नहीं जा सकता है। चाहे वो मंगल पांडेय हो, या चंद्रशेखर आज़ाद या गोपाल कृष्ण गोखले या झांसी की रानी लक्ष्मीबाई या बाल गंगाधर तिलक। ऐसे लाखों नाम है जो आपको मिल ही जायेंगे।

मैं मानता हूं कि शायद कुछ ब्राह्मणों ने जातपात किया होगा, लेकिन सिर्फ 10% के आधार पर पूरे सम्प्रदाय को गाली देना किसी भी तरह से सही नहीं है। देश मे आजकल हर कोई मेहनत की खा रहा है। और सबको हक़ है अपने अधिकारों के लिए बोलने का, वरना फिर किसी ने सही ही लिखा था कि “Brahmins are New Dalits of India”

अगर किसी को सीखना है तो अमेरिका के अश्वेत लोगों से सीखो, जो बिना किसी सरकारी मदद के अब वहां सम्मान और बराबरी का जीवन जी रहे है। सिर्फ किसी को कोसने से किसी का कोई भला नहीं होने वाला है।
5⃣2⃣ जीवन-ज्योति 🌞
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प्रत्येक घर में एक रसोई होती है, और इस रसोई में एक डॉक्टर छुपा बैठा होता है, बिना फीस वाला । आइए आज अपने उसी डॉक्टर से आपका परिचय करायें ।
💼 1- केवल सेंधा नमक का प्रयोग करने पर आप थायराइड और ब्लडप्रेशर से बचे रह सकते हैं, यही नहीं, आपका पेट भी ठीक रहेगा ।
💼 2- कोई भी रिफाइंड न खाकर तिल, सरसों, मूंगफली या नारियल के तेल का प्रयोग आपके शरीर को कई बीमारियों से बचायेगा, रिफाइंड में कई हानिकारक कैमिकल होते हैं ।
💼 3- सोयाबीन की बड़ी को दो घंटे भिगोकर मसलकर झाग निकालने के बाद ही प्रयोग करें, यह झाग जहरीली होती है ।
💼 4- रसोई में एग्जास्ट फैन अवश्य लगवायें, इससे प्रदूषित हवा बाहर निकलती रहेगी ।
💼 5- ज्यादा से ज्यादा मीठा नीम/कढ़ी पत्ता खाने की चीजों में डालें, सभी का स्वास्थ्य सही रहेगा ।
💼 6- भोजन का समय निश्चित करें, पेट ठीक रहेगा ।
💼 7- भोजन के बीच बात न करें, भोजन ज्यादा पोषण देगा ।
💼 8- भोजन से पहले पिया गया पानी अमृत, बीच का सामान्य और अंत में पिया गया पानी ज़हर के समान होता है ।
💼 9- बहुत ही आवश्यक हो तो भोजन के साथ गुनगुना पानी ही पियें, यह निरापद होता है ।
💼 10- सवेरे दही का प्रयोग अमृत, दोपहर में सामान्य व रात के खाने के साथ दही का प्रयोग ज़हर के समान होता है ।
💼 11- नाश्ते में अंकुरित अन्न शामिल करें, पोषण, विटामिन व फाईबर मुफ्त में प्राप्त होते रहेंगे ।
💼 12- चीनी कम-से-कम प्रयोग करें, ज्यादा उम्र में हड्डियां ठीक रहेंगी । भोजन में गुड़शक्कर का प्रयोग बढ़ायें ।
💼 13- छौंक में राई के साथ कलौंजी का प्रयोग भी करें, फायदे इतने कि लिखे नहीं जा सकते ।
💼 14- एक डस्टबिन रसोई के अंदर और एक बाहर रखें, सोने से पहले रसोई का कचरा बाहर के डस्टबिन में डालना न भूलें ।
💼 15- करेले, मेथी और मूली यानि कड़वी सब्जियां भी खाएं, रक्त शुद्ध होता रहेगा ।
💼 16- पानी मटके के पानी से अधिक ठंडा न पियें, पाचनदांत ठीक रहेंगे ।
💼 17- पानी का फिल्टर RO वाला हानिकारक है, UV वाला ही प्रयोग करें ।सस्ता भी , बढ़िया भी ।
💼 18- बिना कलौंजी वाला अचार न खायें, यह हानिकारक होता है ।
💼 19- माइक्रोवेव, ओवन का प्रयोग न करें, यह कैंसर कारक है ।
💼 20- खाने की ठंडी चीजें ( आइस क्रीम) कम से कम खायें, ये पेट की पाचक अग्नि कम करती हैं, दांत खराब करती हैं ।
🏌‍♂
सब स्वस्थ, सुखी व नीरोग रहें,
इसी कामना के साथ.
🌞
🙏
साभार
🌹 मंगलमय हो जीवन सबका 🌹
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उन मित्रों को forward करना न भूलें, जिनकी आप चिंता करते हैं..
: 🍀🌴जीरे के कमाल🌴🍀

अब तक जीरा  सब्जी मे तड़का लगाने के रूप में उपयोग में लाया जा रहा है।

इसके अलावा भी जीरा कितना गुणकारी है।।हमने जो परिणाम जीरे से मिले है उनको भी आपके साथ शेयर कर रहे हैं
👉 अल्सर/खाने की नली मे जख्म–
खाना खाते हुए अक्सर दर्द होने लगता है डॉक्टर बहुत सारे टेस्ट करवाते है।जैसे-एन्डोस्कोपी-2100₹का होता है।
अल्सर को ठीक करने के लिए बहुत पैसा लगाना पड़ता है। फिर भी ठीक होने का नाम नही।
लेकिन हमारे जीरे में उसको केवल 2-3दिन मे ठीक करने की अद्भुत क्षमता है।
बस 30-40दाना /1पिंच जीरा खूब चबाइए ।व पीछे से गुनगुना पानी पीजिये।रोजाना सुबह खाली पेट।
चमत्कार होगा।
👉=एसिडिटी/जलन/तेजाब–अक्सर सुबह उठ कर तेजाब का केप्सूल लेते बहुत को देखा होगा। लेकिन 1 पिंच जीरा सुबह चबाकर गुनगुना पानी पिंना शुरू करेंगे तो तेजाब बनने की समस्या जाती रहेगी। 👉कार या बस के सफर मे उल्टी–* कोई भी टोटका काम नही आएगा।बस जीरा चबाएं।चमत्कार देखें।
👉बदहजमी–स्वाद स्वाद में कुछ ज्यादा खा गए। घबराएं नही जीरा भी चबा लें। 
👉बार बार प्यास–अक्सर पकोड़े खाने के बाद बार बार प्यास लगने लगती है।पानी से पेट भर जाता है।लेकिन प्यास फिर भी जाने का नाम नहीं लेती।
जीरा चबाएं ।गले से नीचे उतरते ही जीरा जलन भी शांत करेगा व प्यास को भी।
👉गैस--जीरा खाइये जनाब इसको भी चलता कर देगा।

👍भयँकर दस्त लगे हो तो 1 चमच्च जीरा चबाये ,5 मिंट बाद गुनगुना पानी पिला दे ,दस्त तुरन्त बन्द होंगे।

👉 आंखों में एलर्जी हो , खुजली चलती हो तो जीरे का पानी देना शुरू करे।

👉 हाथ पैरों में जलन होती हो जीरे का सेवन अधिक करे ।

👉लिवर के सभी रोगों में भुना जीरा ,सलाद के साथ ज्यादा ले तो सभी दिक्कते दूर होगी।


: ,🌷गर्भ क्यों नहीं ठहरता है, गर्भ न ठहरने के कारण, गर्भधारण न होने के कारण, इन वजहों से नहीं ठहरता है गर्भ,स्नेहा समुह

🌸महिला के लिए प्रेगनेंसी का होना जितना खास होता है उतना ही महिला परेशान तब होती है जब उसका गर्भ नहीं ठहरता है। ज्यादातर कपल शादी के एक या दो साल में फैमिली प्लान करने लगते हैं, और यदि वो अभी बच्चा नहीं चाहते हैं तो इसके लिए वो सुरक्षा का इस्तेमाल करते है ताकि महिला का गर्भ न ठहरे। लेकिन कुछ कपल ऐसे भी होते है जो अपनी फैमिली को आगे बढ़ाना चाहते हैं लेकिन महिला का गर्भ नहीं ठहर पाता है। ऐसे में महिलाओं के लिए यह बहुत बड़ी परेशानी का कारण होता है।

💐क्योंकि यदि प्रेगनेंसी होने में ज्यादा समय लगता है तो सभी के ताने सुन सुन कर महिला और परेशान रहने लगती है। लेकिन इसका इलाज आपके परेशान होने से नहीं होता है। बल्कि आपको सबसे पहले इसका कारण पता करना चाहिए की आपको प्रेगनेंसी क्यों नहीं हो रही है। क्योंकि महिला के गर्भ ठहरने का कोई एक कारण नहीं होता है, बल्कि ऐसे बहुत से कारण होते हैं जब महिला का गर्भ नहीं ठहर पाता है। और यह कारण महिला के साथ कई बार पुरुष से जुड़ा भी हो सकता है।

🌻गर्भ क्यों नहीं ठहरता है

गर्भ न ठहरने का कारण आपकी कोई शारीरिक समस्या, तनाव से जुडी कोई परेशानी, या गर्भाशय से जुडी कोई समस्या हो सकती है। इसके अलावा गर्भ न ठहरने के कई और भी कारण हो सकते हैं। तो आइये अब विस्तार से जानते हैं की महिला का गर्भ क्यों नहीं ठहरता है।

,🥀फैलोपियन ट्यूब से जुडी समस्या

प्रेगनेंसी के लिए फैलोपियन ट्यूब एक अहम भूमिका निभाती है क्योंकि पुरुष के शुक्राणु अंडे का निषेचन इसी ट्यूब में करते हैं। जिससे महिला का गर्भ ठहरता है लेकिन यदि फैलोपियन ट्यूब से जुडी कोई परेशानी हो तो इसके कारण महिला के गर्भ ठहरने में परेशानी हो सकती है।स्नेहा समुह

🌹उम्र अधिक होने पर

महिला के गर्भ न ठहरने का एक कारण उनकी बढ़ती उम्र भी हो सकती है। क्योंकि जैसे जैसे उम्र बढ़ती है वैसे वैसे अंडाशय में अंडे बनने कम होने लगते हैं, जिसके कारण उम्र बढ़ने के साथ महिला के गर्भ ठहरने के चांस भी कम हो सकते हैं।

🥀आपका आहार भी हो सकता है कारण

कुछ ऐसी चीजे होती है जो प्रेगनेंसी के दौरान वर्जित होती हैं क्योंकि उनके सेवन से गर्भ के गिरने का खतरा रहता है। लेकिन यदि आप उन्ही खाद्य पदार्थो का सेवन अधिक करती है जैसे की कच्चा पपीता, अनानास, अंगूर, ज्यादा गर्म तासीर वाली चीजे, कटहल, आदि। तो इसके कारण भी आपके गर्भ न ठहरने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है।स्नेहा समुह

🌹इनफर्टिलिटी

यह समस्या पुरुषो से जुडी हो सकती है जैसे की पुरुष के शुक्राणुओं की संख्या निर्मित शुक्राणुओं की संख्या से कम हो। इसके अलावा इसका कारण यह भी हो सकता है की महिला के शुक्राणु निर्मित तो होते हो लेकिन महिला के अंडाणुओं तक नहीं पहुँच पाते हो जिसके कारण निषेचन न होने की वजह से महिला के गर्भ न ठहरने की परेशानी का अनुभव करना पड़े।

🌾गर्भाशय से जुडी समस्या

कई बार ऐसा होता है की महिला के गर्भाशय से जुडी परेशानी के कारण गर्भ नहीं ठहर पाता है, जैसे की महिला यदि अधिक गर्भनिरोधक गोलियों का सेवन करती है तो इसके कारण गर्भाशय की झिल्ली कमजोर हो जाती है, बार बार गर्भपात होने के कारण गर्भाशय से जुडी समस्या हो जाती है, या महिला डॉक्टर से बिना राय लिए ही अन्य दवाइयों का अधिक सेवन करती है तो इससे भी गर्भशय पर बुरा असर पड़ता है।

🌺अंडो का निर्माण न होने के कारण

महिला के अंडाशय में अंडो के निर्माण में होने वाली गड़बड़ी के कारण भी महिला के गर्भ को ठहरने में समस्या का सामना करना पड़ सकता है। इसका कारण महिला का किसी बिमारी से ग्रसित होना हो सकता है जैसे की थायरॉयड आदि।
🥀स्नेहा आयूर्वेद ग्रुप
🍃बेहतर सम्बन्ध न होने के कारण

यदि आप ऐसा सोचते हैं की एक बार शारीरिक रूप से आप करीब आ जाते हैं तो आपका गर्भधारण हो जाता है तो यह बिल्कुल गलत होता है। क्योंकि प्रेगनेंसी के लिए बेहतर सम्बन्ध और सही समय यानी ओवुलेशन पीरियड पर सम्बन्ध बनाना जरुरी होता है, जिससे आपके प्रेग्नेंट होने के चांस बढ़ जाते हैं। इसीलिए यदि आप बेहतर सम्बन्ध नहीं बनाते हैं तो इसके कारण भी महिला का गर्भधारण नहीं होता है, और इस दौरान आपको किसी भी तरह की सुरक्षा का इस्तेमाल भी नहीं करना चाहिए।

💐वजन

आपका मोटापा या दुबलापन भी गर्भ न ठहरने का एक कारण हो सकता है, ऐसे में प्रेगनेंसी के लिए आपको अपने वजन को नियंत्रित रखना चाहिए न तो आपका वजन आवश्यकता से अधिक होना चाहिए और न ही कम।

💐दवाइयों का सेवन

यदि आप तनाव या मानसिक परेशानी से जुडी दवाइयों का सेवन करते हैं तो इसके कारण भी आपके गर्भ को ठहरने में परेशानी हो सकती है। ऐसे में प्रेगनेंसी के लिए एक बार इसके लिए डॉक्टर से जरूर बात करनी चाहिए।

🌺तो यह हैं कुछ कारण जिनकी वजह से महिला को गर्भ न ठहरने की समस्या का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में आपको इसके लिए डॉक्टर से राय जरूर लेनी चाहिए और इसके पीछे के सही कारण का पता करना चाहिए।स्नेहा समुह
: *षट्कर्म (शरीर शुद्धि क्रिया) क्या है इसके फायदे और अभ्यास विधि

षट्कर्म क्रिया क्या है ? / इसका महत्त्व : शरीरस्थ विषाक्त द्रव्यों को बाहर निकालकर, उनकी आन्तरिक सफाई हेतु षट्कर्मों का प्रयोग किया जाता है । इनसे शरीर का सुचारू रूप से संचालन संभव होता है। ये क्रियाएँ ‘हठ-योग’ के अन्तर्गत मानी जाती हैं।

षट् कर्मों के नाम निम्नांकित हैं – 1. नेति, 2. धौति, 3. बस्ति, 4. नौलि, 5. कपालभाति और 6. त्राटक

यद्यपि ये क्रियाएँ सरल हैं तथापि इनका अभ्यास केवल पुस्तक में पढ़कर करने में कठिनाई हो सकती है। अतः इनका प्रारम्भ किसी सुयोग्य अनुभवी गुरु (हठयोगी) की देख-रेख में ही करना उचित है।

१- नेति क्रिया :नेति दो प्रकार की होती है-1. सूत्रनेति और 2. जलनेति ।

सूत्रनेति – कच्चे सूत का मुलायम बिना गाँठ वाला तथा बँटा हुआ एक लम्बा धागा लें । उसके एक सिरे को हाथ में पकड़े रखें और दूसरे सिरे पर उसी की एक छोटी गेंडुली-सी बना लें । जो नासा-छिद्रों में आसानी से जा सके। फिर उस गेंडुली को उस नासा-छिद्र में रखें, जिसमें होकर श्वास चल रही हो। गेंडुली को धीरे-धीरे भीतर की ओर सुड़कते हुए दीर्घ श्वास लेते रहें। ऐसा करने से वह सूत की गेंडुली नासाछिद्र में प्रविष्ट होकर मुख मार्ग से निकल जाएगी। इसी विधि द्वारा दूसरे नासा-छिद्र में भी सूत के दूसरे सिरे को प्रविष्ट कराएँ। जब वह भी बाहर निकल आए तब दोनों सिरों को पकड़कर कुछ देर तक धीरे-धीरे इस प्रकार चलायें कि भारी कष्ट का अनुभव न हो । उक्त क्रिया से दोनों नासा छिद्रों और मस्तिष्क की सफाई हो जाती है।

जलनेति- एक टोंटीदार बर्तन में गुनगुना पानी लेकर थोड़ा-सा नमक मिलाएँ। फिर माथे को थोड़ा-सा पीछे की ओर झुकाकर जिस नासा छिद्रा से श्वास चल रही हो उसमें अथवा बाँये नासा छिद्र में उस बर्तन की टोंटी लगा दें तथा इससे निकलने वाले पानी को बिना किसी रुकावट के थोड़ा-सा नाक के भीतर सुड़कें और उसे मुख द्वारा बाहर निकाल दें । यही क्रिया दूसरे नासारन्ध्र से भी करें । तदुपरान्त ‘भस्त्रिका प्राणायाम’ को करके नाक को अवश्य सुखालें ।

नेति क्रिया से होने वाले लाभ- नेति की उपरोक्त दोनों क्रियाओं से सर्दी, खाँसी, छींक, आँख, नाक और कान के समस्त रोगों में लाभ होता है तथा मस्तिष्क सक्रिय होकर बुद्धि और विवेक विकसित होते हैं। इस क्रिया द्वारा नाक तथा मस्तिष्क की भली-भाँति सफाई हो जाने से सुषुम्ना को जाग्रत करने में भी सहायता मिलती है।

२- धौति क्रिया : लगभग सवा अथवा डेढ़ किलो गुनगुना पानी लेकर उसमें लगभग 10 ग्राम नमक मिला दें। फिर उस पूरे पानी को धीरे-धीरे पीएँ ।

तत्पश्चात् अपने हाथ की तर्जनी और मध्यमा-इन दो अँगुलियों को जीभ पर रगड़ें। ऐसा करने से वमन (कै या उल्टी) होगी तथा उससे पेट का सारा पानी बाहर निकल आएगा।

उक्त क्रिया को 7-8 दिन के अन्तर से दोहराना चाहिए।

धौति क्रिया से होने वाले लाभ – धौति की उक्त क्रिया से-श्वास नली, नाक, कान, आँख, पेट तथा आँतों की भली भाँति सफाई हो जाती है तथा बवासीर, भगन्दर जैसे गुप्तरोग एवं मानसिक बीमारियों में लाभ होता है।

३- बस्ति क्रिया : किसी बड़े बर्तन में पानी भरकर उसमें कमर तक जल में बैठ जाएँ तथा दोनों पैर फैलाकर एक 4 इंच लम्बी तथा लगभग आध इंच व्यास की पोली नली गुदा मार्ग में प्रविष्ट कर, अश्विनी मुद्रा बनाएँ। इस क्रिया में गुदा संकुचन द्वारा पानी ऊपर को चढ़ाया जाता है अर्थात् गुदा द्वारा पानी को बार-बार ऊपर (गुदा के भीतर) खींचने की प्रक्रिया की जाती है। फिर ‘नौलिक्रिया’ द्वारा पेट की आँतों को इधर-उधर घुमाते हुए मन्थन किया जाता है तथा अन्त में ‘मयूरासन’ द्वारा पेट पर शरीर का पूरा दबाव डालकर सम्पूर्ण जल को ‘दस्त’ (मल-विसर्जन) के रूप में, गुदा मार्ग से ही बाहर निकाल दिया जाता है।

बस्ति क्रिया से होने वाले लाभ – यह क्रिया योगियों के लिए ‘एनिमा’ जैसी है। इससे बड़ी आँत की सफाई होकर पेट स्वच्छ और मुलायम हो जाता है।

४-नौली कर्म :नौलि कर्म को करने से हमारे पेट के सभी रोग दूर हो जाते हैं। नौलि कर्म में पेट की मांसपेशियों को दाएं-बाएं व ऊपर-नीचे चलाया जाता है, जिससे पेट की मांसपेशियों की मालिश होती है। इसे करते समय आंखों को पेट पर टिकाकर रखें। इस क्रिया का षट्कर्मों में महत्वपूर्ण स्थान माना गया है।

नौलि कर्म की विधि :• नौलि कर्म के लिए पहले सीधे खड़े हो जाएं व अपने दोनों पैरों के बीच १ या २ फीट की दूरी रखें। अब आगे झुककर दोनों हाथों को घुटनों पर रखकर खड़े हो जाएं। अब अपनी आंखों को पेट पर टिकाकर उड्डीयान बंध करें।

• सांस को बाहर छोड़ कर पेट को बार-बार फुलाएं तथा पिचकाएं। इस क्रिया को १२ दिनों तक करें।

• इसके बाद अभ्यास करते समय सांस छोड़ते हुए पेट को खाली करें और फिर पेट को ढीला छोड़ते हुए मांसपेशियों को अन्दर की ओर खींचें और नाभि को भी अन्दर की ओर खींचें। फिर पेट के दाएं-बाएं भाग को छोड़कर बीच वाले भाग को ढीला करें। पेट के बीच में नलियां निकालने की कोशिश करें।

• इसके बाद सांस अन्दर लें और फिर सांस छोड़कर नौली निकालने की कोशिश करें। इस तरह पेट की मांसपेशियां सिकोड़कर नलियों की तरह बन जायेगी। अब सांस लेते और छोड़ते हुए नालियों (पेट में उभरी सभी नलियां) को दाईं जांघ पर जोड़ देकर दाईं ओर करें और फिर बाईं जांघ पर जोर देकर बाईं ओर करें। इस तरह नलियों को दोनों ओर लौटाने की क्रिया 3-3 बार करें। इसका अभ्यास होने के बाद नलियों को बाईं ओर ले जाकर ऊपर की ओर करें और फिर दाईं ओर लाकर नीचे की ओर करें। इस तरह इसे फिर बाईं ओर लाकर नीचे की ओर और दाईं ओर लाकर ऊपर की ओर करें। इस प्रकार से मांसपेशियों को घुमाने से एक चक्र पूरा हो जायेगा। इस प्रकार से इस क्रिया में नलियों को घुमाने की गति को तेज करते हुए इसे अधिक से अधिक बार घुमाने का प्रयास करें।

सावधानी –नौलि कर्म को शौच जाने के बाद तथा भोजन करने से पहले करें। इस क्रिया को प्रातः काल करना लाभकारी होता है। नौलि कर्म कठिन है इसलिए इसे सावधानी से और किसी योग के शिक्षक की देखरेख में करें। पेटदर्द, डायरिया तथा पेट की कोई भी अन्य बीमारी होने पर इसका अभ्यास न करें। अल्सर, आंतों के विकार व आंतों में सूजन होने पर इसका अभ्यास हानि पहुंचा सकता है।

नौलि क्रिया से रोगों में लाभ – नौलि कर्म से पेट की सभी मांसपेशियों की मालिश हो जाती है, जिससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं। इसके अभ्यास से आंते मजबूत होती है, ज्वर, यकृत, वृक्क, तिल्ली (प्लीहा) का बढ़ना, वायु गोले का दर्द आदि रोग नहीं होते हैं। यह वात, पित्त व कफ से उत्पन्न होने वाले रोगों को दूर करता है। यह आंतों को साफ कर मल को निकालता है, कब्ज को दूर करता है तथा वायु को वश में करता है। यह क्रिया पाचन शक्ति को बढ़ाता है, अजीर्ण को खत्म कर भूख को खुलकर लाता है। मोटापा घटाता है, मन को प्रसन्न रखता है तथा शरीर को स्वस्थ बनाए रखता है। यह मंदाग्नि को खत्म कर जठरग्नि को बढ़ाती है तथा कमर दर्द को दूर करती है।

यह आसन स्त्रियों के लिए भी लाभकारी होता है। इससे मासिकधर्म संबंधित बीमारियां दूर होती हैं।

५- कपाल-भाति : पद्मासन में बैठकर जल्दी-जल्दी श्वास लें और छोडें । श्वास छोड़ने की क्रिया का निरन्तर निरीक्षण करते रहें। ‘पूरक’ की अपेक्षा ‘रेचक’ में केवल एक तिहाई समय ही लगाएँ। रेचक इतनी शीघ्रता से किये जाएँ कि उनकी संख्या क्रमशः बढ़ती हुई 1 मिनट में 120 तक जा पहुँचे। पूरक तथा रेचक के समय केवल उदर-पेशियों में ही हरकत हो तथा वक्षःस्थल की पेशियाँ संकुचित बनी रहें। इस क्रिया में बीच में तनिक भी विराम न हो । आरम्भ में एक सेकेण्ड में एक रेचक तथा बाद में दो और तीन रेचक करने चाहिए। प्रातः और सायं 11-11 रेचकों के चक्र चलाते हुए प्रति सप्ताह एक चक्र की वृद्धि करनी चाहिए। प्रत्येक चक्र के बाद थोड़ा विश्राम (सामान्य श्वासोच्छ्वास) भी उचित है। चक्र पूरा करने से पहले रुकना नहीं चाहिए।

कपाल-भाति से होने वाले लाभ – इस अभ्यास से कपालस्थ नासा-छिद्रों तथा श्वसन संस्थान के अन्य सभी भागों की सफाई हो जाती है।

प्राणवायु की अधिकाधिक प्राप्ति से शरीरस्थ विषाक्त तत्त्व बाहर निकल जाते हैं। पेट की पेशियों तथा उनसे सम्बन्धित अंगों की मालिश हो जाती है। धमनी की क्रियाशीलता बढ़कर रक्त शुद्ध हो जाता है। श्वास नली तथा मस्तिष्क की भली-भाँति सफाई हो जाती है । पर्याप्त शक्ति लगाने के कारण पसीना आने से सम्पूर्ण शरीर स्वच्छ हो जाता है। इसका नियमित रूप से प्रतिदिन अभ्यास करने से मुख-मण्डल चमकने लगता है।

६- त्राटक : इस क्रिया में रीढ़ की हड्डी को सीधा रखते हुए पद्मासन से बैठकर बिना पलक झपकाए नासाग्र तथा भूमध्य भाग पर एकटक देखते रहने का अभ्यास बढ़ाया जाता है। ऐसा करते समय आरम्भ में पलकें जल्दी-जल्दी झपकाई जाती हैं परन्तु धैर्य तथा दृढ आत्म विश्वास के साथ पलक झपकने के अनन्तर आँखों को थोड़ा विश्राम देकर अभ्यास को बढ़ाते जाना चाहिए। जब नासाग्र तथा भूमध्य भाग पर दृष्टि स्थिर होने लगे तब अपनी आँखों की सीध में लगभग 2 फुट की दूरी पर किसी छोटे बिन्दु को निश्चित कर उस पर ध्यान जमाने का अभ्यास करना चाहिए। रात्रि के समय घृत अथवा अरण्डी के तेल का दीपक जलाकर उसकी लौ पर तब तक त्राटकनिर्निमेष दृष्टि से देखने का अभ्यास करना चाहिए। जब तक कि आँखों से आँसू न गिरने लगें । आँसू निकलने पर थोड़ा-सा विश्राम करने के बाद पुनः यही अभ्यास दोहराना चाहिए। जब दीपक की लौ पर दृष्टि स्थिर हो जाए तब अपने से 2 फुट की दूरी पर एक दर्पण आँखों की सीध में रखकर उसमें अपनी आँख के प्रतिबिम्ब वाली पुतली के मध्य-बिन्दु पर दृष्टि जमाने का अभ्यास करना चाहिए। फिर रात्रि में चन्द्रमा पर दृष्टि जमाने का अभ्यास करें। जब पर्याप्त समय तक निर्निमेष दृष्टि से देखने का अभ्यास हो जाए तब ऊषाकाल में किसी बगीचे में बैठकर किसी विकसित पुष्प पर दृष्टि जमाने का अभ्यास करें । उक्त प्रकार से बिना पलक झपकाए दृष्टि जमाने के अभ्यास को निरन्तर बढ़ाते जाना चाहिए

त्राटक से होने वाले लाभ –

उक्त अभ्यास से आँखों के रोग नष्ट होकर दृष्टिशक्ति तीव्र होती है। मन शान्त होता है। इच्छाशक्ति तीव्र होती है और प्राणवायु सुव्यवस्थित बनी रहती है। त्राटक का अभ्यास सिद्ध हो जाने पर अभ्यासी व्यक्ति अपनी इच्छाशक्ति को दृढ़ बनाकर जिस किसी प्राणी की आँखों-से-आँखें मिलाकर उसे जो भी आदेश देता है, उसका पालन करने के लिए वह बाध्य हो जाता है

हिप्नोटिज्म तथा सम्मोहन क्रिया के साधकों के लिए ‘त्राटक’ में पारंगत होना अति आवश्यक है

विशेष-हठ-योग के उक्त षटकर्म ‘कुण्डलिनी जागरण में भी सहायक सिद्ध होते हैं।


🌹

निरोगी रहने हेतु महामन्त्र

मन्त्र 1 :-

• भोजन व पानी के सेवन प्राकृतिक नियमानुसार करें

• ‎रिफाइन्ड नमक,रिफाइन्ड तेल,रिफाइन्ड शक्कर (चीनी) व रिफाइन्ड आटा ( मैदा ) का सेवन न करें

• ‎विकारों को पनपने न दें (काम,क्रोध, लोभ,मोह,इर्ष्या,)

• ‎वेगो को न रोकें ( मल,मुत्र,प्यास,जंभाई, हंसी,अश्रु,वीर्य,अपानवायु, भूख,छींक,डकार,वमन,नींद,)

• ‎एल्मुनियम बर्तन का उपयोग न करें ( मिट्टी के सर्वोत्तम)

• ‎मोटे अनाज व छिलके वाली दालों का अत्यद्धिक सेवन करें

• ‎भगवान में श्रद्धा व विश्वास रखें

मन्त्र 2 :-

• पथ्य भोजन ही करें ( जंक फूड न खाएं)

• ‎भोजन को पचने दें ( भोजन करते समय पानी न पीयें एक या दो घुट भोजन के बाद जरूर पिये व डेढ़ घण्टे बाद पानी जरूर पिये)

• ‎सुबह उठेते ही 2 से 3 गिलास गुनगुने पानी का सेवन कर शौच क्रिया को जाये

• ‎ठंडा पानी बर्फ के पानी का सेवन न करें

• ‎पानी हमेशा बैठ कर घुट घुट कर पिये

• ‎बार बार भोजन न करें आर्थत एक भोजन पूणतः पचने के बाद ही दूसरा भोजन करें

भाई राजीव दीक्षित जी के सपने स्वस्थ भारत समृद्ध भारत और स्वदेशी भारत स्वावलंबी भारत स्वाभिमानी भारत के निर्माण में एक पहल आप सब भी अपने जीवन मे भाई राजीव दीक्षित जी को अवश्य सुनें

स्वदेशीमय भारत ही हमारा अंतिम लक्ष्य है :- भाई राजीव दीक्षित जी

मैं भारत को भारतीयता के मान्यता के आधार पर फिर से खड़ा करना चाहता हूँ उस काम मे लगा हुआ हूँ

: गर्मी में फोड़े-फुंसी, जुएं जैसी समस्याओं को दूर करेंगे ये पत्ते…

1 नीम : नीम की 10-12 पत्तियों को पीसकर सुबह खाली पेट पीने से गर्मी की घमौरियों व चर्मरोग का शमन होता है। नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर सिर धोने से बाल झड़ना रुक जाता है व जुएं, लीख मर जाते हैं। 
2 तुलसी : तुलसी के 8-10 पत्तों को पीसकर चीनी में मिलाकर पीने से लू नहीं लगती है। अगर लू लग गई है तो आराम मिल जाता है। रोज प्रातः खाली पेट तुलसी के चार पत्ते नियमित खाने से बीमारी नहीं होती है। 
3 बबूल : बबूल की पत्तियों को उबालकर उसे पानी में मिलाकर कुल्ला करने से दांत व मसूड़े मजबूत होते हैं। बबूल की पत्तियों का रस निकालकर सरसों के तेल में मिलाकर लगाने से गर्मी के फोड़े-फुंसी में आराम मिलता है। 
4 बड़ : बड़ के दूध में एक नींबू का रस मिलाकर सिर में आधे घंटे तक लगा रहने दें। फिर सिर को गुनगुने पानी से धो लें। इससे बालों का झड़ना बंद हो जाता है व बाल तेजी से बढ़ते हैं। 
5 बेर : बेर की पत्तियों व नीम की पत्तियों को बारीक पीसकर उसमें नींबू का रस मिलाकर बालों में लगा लें व दो घंटे बाद बालों को धो लें। इसका एक माह तक प्रयोग करने से नए बाल उग आते हैं व बाल झड़ना बंद हो जाते हैं।
🌹याददाश्त बढ़ाने के लिए अचूक रामबाण नुस्खे ———
_🥀_____________________________
🍁बार-बार भूलने की समस्या केवल बूढ़े लोगों के साथ ही नहीं बल्कि जवान लोगों के साथ भी होती है। दरअसल भूलने का मुख्य कारण एकाग्रता की कमी है। स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए दिमाग को सक्रिय रखना आवश्यक है। अगर आपके साथ भी यही समस्या है कमजोर स्मरण शक्ति आपके लिए परेशानी का कारण बनी हुई है, तो नीचे लिखे घरेलू उपायों को जरुर अपनाएं।
-🌺 अखरोट स्मरण शक्ति बढाने में सहायक है। 20 ग्राम अखरोट और साथ में 10 ग्राम किशमिश रोजाना लेना चाहिये।

  • 🌸अलसी का तेल आपकी एकाग्रता बढाता है, आपकी स्मरण शक्ति तेज करता है तथा सोचने समझने की शक्ति को भी बढ़ाता है। नियमित रूप से अलसी के तेल के सेवन से आपको मष्तिष्क सम्बन्धी कोई विकार नहीं रहेगा।
    🌻- ब्रह्मी दिमागी शक्ति बढाने की मशहूर जड़ी-बूटी है। इसका एक चम्मच रस नित्य पीना हितकर है। इसके 7 पत्ते चबाकर खाने से भी वही लाभ मिलता है। ये दिमाग की शक्ति घटने पर रोक लगती है।
    -🌻 बादाम 9 नग रात को पानी में गलाएं। सुबह छिलके उतारकर बारीक पीस कर पेस्ट बना लें। अब एक गिलास दूध गरम करें और उसमें बादाम का पेस्ट घोलें। इसमें 3 चम्मच शहद भी डालें। जाने पर उतारकर मामूली गरम हालत में पीएं। यह मिश्रण पीने के बाद दो घंटे तक कुछ न लें
    : 🙏🏻🙏🏻🌹🌹🕉🕉💐💐🧘‍♂🧘‍♂🧘‍♀🧘‍♀🧘‍♂🧘‍♂🌹🌹

आचरण में धारण करें

````````````````````````````````````````` जितनी दवाओं कि मूल्य वृद्धि हो रही है , उससे कही भारी मात्रा में बिमारियॉ बढ़ रही है | जन-जीवन में त्राही-त्राही मची हुई है , बहुत सारे लोग अंग्रेजी दवाओं के नाम मात्र से ही भयभित हो चुके है | उनके लिए वर्तमान समय में आयुर्वेदिक , होम्योंपैथिक और योगासन ही शेष रह चुका है , जिसपर सिर्फ निरास होकर ही विश्वास किया जा रहा है | यही विश्वास अगर सुरु से ही हम अपने बच्चों को दिलाए तो उनका जीवन आनन्दायक सिद्ध हो सकता है , पिता होने के नाते यही हमारा महत्वपूर्ण कर्तव्य है | |||||||||||||||||||||| धारण करें ::::::- ||||||||||||||||||||||(१):-भोजन बैठ करके , चबा-चबाकरके यानी दो-तीन बार मूह चलाकर और घुंट-घुंटकरके ही सदैंव जल को ग्रहण करना है , आदी हो जाना है | नास्ता या भोजन से ठिक ४० मिनट पहले बताये गये निर्देशानुसार जल ग्रहण करें , ताकि नास्ता या भोजन करने के दौरान जल का आवश्यकता ना पड़ें | ऐसे गले में फस गया या हिचकियॉ आ जाए तो हल्का एक-दो घुंट जल ग्रहण कर सकते है , नहीं तो भोजन के शेष होने के उपरान्त ही मुख् शुद्धि हेतु एक-दो घुंट लिया जा सकता है | सारा दिन में जब भी जल ग्रहण करना है , बताये गए निर्देशानुसार ही ग्रहण करना है | \\\\ लाभ //// किया हुआ भोजन सुन्दर तौर पर हजम होता है , शौच साफ-सहोता है , भूख खूलकर लगने लगती है , गहरी निंद्रा आती है , कभी गैंस कि सिकायत नहीं होगी व अगर गैंस हो तो उससे असानी से मुक्ती मिल जायेगी , सर का दर्द , गाठिया का दर्द या जोंड़ों के दर्द से छुटकारा मिल जायेगा , ब्लॉडप्रेसर , सुगर या अन्य छोटे-छोटे बिमारियों से भय खत्म हो जायेगा और आपकी छोटी सी बगिया खुशहाल रहेगी |
(२):- दो समय एक बार सूबह और एक बार रात में सोने से पहले दॉतों को ब्रस करके अवश्य सफाई करें , जब भी कुछ खाए तो अपने उंगुलियो से ब्रस की भॉती बढ़िया से दॉतों और मसुड़ों को मालिस करना ना भूले |
\\ लाभ////
` दॉत परमात्मा का दिया हुआ बहुल्य उपहार है , जिसके बदौलत हमें स्वाद् मिलती है , किसी भी खाद्य सामग्री को हम असानी से चबाते है और उसका वास्तविक स्वॉद लेंते है , इसे गवॉ देने के बाद फिर मिलनेवाली नहीं है और इसी के बदौलत अपने चेहरे कि रौनक आती है | (३):- रात में सोने से पहले सप्ताह में कम से कम दो दिन सरसों तेल का मालिस पूरे शरिर में अवश्य करें , सम्भव हो तो एक दिन बाद करके करें और भी सुन्दर होगा | \\\\ लाभ //// `````````````````` सारे दिन के भागादौंड़ भरी दिनचर्या में थकान होना स्वभाविक है , जिसे कुछ ही देर में थकान मिट जाता है , मन जो सुस्त हो जाता है उसे तरोताजा कर देता है , शरिर के सुस्त नस-नाड़ियॉ अपना कार्य करना प्रारम्भ कर देती है और सबेरा एक न्या उमंग भरा अनुभूति होता है और शरिर को भरपूर राहत मिलता है जो महत्वपूर्ण स्थान रखता है | (४):- सूबह और शाम दोंनो बेला शौच करने का अभ्यस्त होए , हो या ना हो अपने नियत समय से जाना बंद ना करें | सुरु-सुरु में दो-चार दिन कैसा-कैसा लगता हैस, फिर सब स्वभाविक हो जाता है | \\\\ लाभ // पेट एक ऐसा चिज है जहॉ से प्रत्येक बिमारियों की जन्म होती है , यू कहे तो यह रोगों का जन्मस्थल है | इसलिए हमें सदैव अपने शौच के प्रति सजग रहना चाहिए , जितना साफ-खुलासा शौच होगा उतना ही हमारे लिए लाभप्रद होगा |
🙏🏻🙏🏻🕉🕉💐💐🌹🌹
आज का संदेश

       किसी से बदला लेने का नहीं अपितु स्वयं को बदल डालने का विचार ज्यादा श्रेष्ठ है। महतवपूर्ण यह नहीं कि दूसरे आपको गलत कहते हैं अपितु यह कि आप स्वयं गलत नहीं करते हैं। 

      बदले की आग दूसरों को कम स्वयं को ज्यादा जलती है। बदले की आग उस मशाल की तरह है, जिसे दूसरों को जलाने से पहले स्वयं को जलना पड़ता है। इसलिए सहनशीलता और समत्व के शीतल जल से जितनी जल्दी हो सके इस आग को रोकना ही बुद्धिमत्ता है।

      बदले की भावना आपके समय को ही नष्ट नहीं करती अपितु आपके स्वास्थ्य तक को नष्ट कर जाती है। दुनिया को बदल पाना बड़ा मुश्किल है इसलिए स्वयं को बदलने में ऊर्जा लगाना ही सुखी होने का और सफल होने का एक मात्र उपाय है।

: 🌹⭐🌹🙏🌹⭐🌹

दूसरों को अपनी बात मानने के लिये बाध्य करना सबसे बड़ी अज्ञानता है। यहाँ हर आदमी एक दूसरे को समझाने में लगा हुआ है। हम सबको यही बताने में लगे हैं कि तुम ऐसा करो, तुम्हें ऐसा नहीं करना चाहिये था। तुम्हारे लिये ऐसा करना ठीक रहेगा।

     *ये सब अज्ञानी की अवस्थायें हैं ज्ञानी की नहीं। ज्ञानी की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि वह किसी को सलाह नहीं देता, वह मौन रहता है, मस्ती में रहता है, वह अपनी बात को मानने के लिए किसी को बाध्य नहीं करता है।*

    *इस दुनिया की सबसे बड़ी समस्या ही यही है कि यहाँ हर आदमी अपने आपको समझदार और चतुर समझता है और दूसरे को मूर्ख। सम्पूर्ण ज्ञान का एक मात्र उद्देश्य अपने स्वयं का निर्माण करना ही है। बिना आत्म सुधार के समाज सुधार किंचित संभव नहीं है। "" हम सुधरेंगे युग सुधरेगा ""*


*🙏🌹प्रणाम🌹 🙏*

: ‼ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नम:

ईश्वर द्वारा बनाई हुई सृष्टि कर्म पर ही आधारित है | जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल प्राप्त होता है | यह समझने की आवश्यकता है कि मनुष्य के द्वारा किया गया कर्म ही प्रारब्ध बनता है | जिस प्रकार किसान जो बीज खेत में बोता है उसे फसल के रूप में वहीं बाद में काटना पड़ता है | कोई भी मनुष्य अपने किए हुए कर्मों से एवं उससे मिलने वाले प्रतिफल से स्वयं को बचा नहीं सकता है | मनुष्य को कोई भी कर्म करने के पहले यह विचार अवश्य कर लेना चाहिए कि इसका फल क्या मिलेगा ? क्योंकि इतिहास गवाह है कि जिन्होंने जैसे कर्म किए हैं देर सवेर उसको उसका फल भुगतना ही पड़ा है | ईश्वर ने इस सृष्टि को कर्म प्रधान बनाया है ।इसलिये प्रत्येक मनुष्य को प्रतिदिन अपने किये हुये कर्मों पर विचार करके अपनी उन्नति का उपाय करना चाहिये | यहाँ कोई किसी के सुख – दुख के लिए उत्तरदायी नहीं होता है | हमारे धर्मशास्त्रों में लिखा :— “स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते ! स्वयं भ्रमति संसारे स्वयंतस्माद्विमुच्यते !!” अर्थात :- मनुष्य स्वयं कर्म करता है और स्वयं ही उसका फल भोगता है | वह स्वयं ही इस संसार सागर में डूबता रहता है तथा स्वयं ही प्रयास करके इससे मुक्त हो जाता है तथा मोक्ष को प्राप्त करता है | यदि मनुष्य अपने कर्मों के फल को भोगने से स्वयं को बचा पाता तो भगवान के अवतार माने जाने वाले मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम अपने पिता महाराज दशरथ की मृत्यु नहीं होने देते | योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण अभिमन्यु को बचा लेते | परंतु ऐसा नहीं हुआ क्योंकि प्राणी मात्र को अपने शुभ और अशुभ कर्मों का फल अवश्य भोगना पड़ता है |

आज के आधुनिक युग में मनुष्य कब क्या कर डालेगा इसका अनुमान लगाना भी मुश्किल कार्य है | आज चारों ओर छल , कपट , घात , प्रतिघात एवं विश्वासघात का ही बोलबाला दिखाई पड़ रहा है | परिवार से लेकर के समाज तक देश से लेकर के संपूर्ण विश्व में इन कर्मों का ही प्रसार आज देखने को मिल रहा है | तनिक जायदाद के लिए भाई – भाई के साथ विश्वासघात कर रहा है , पुत्र पिता के साथ छल कर रहा है,गुरुद्वारों में शिष्य अपने गुरु की गद्दी प्राप्त करने के लिए कपट का सहारा लेते हुए अपने ही सद्गुरु से घात कर रहे हैं | कुल मिलाकर जो भी कर्म आज मनुष्य के द्वारा किए जा रहे हैं या जो भी आज ऐसा कर रहे हैं उन सभी से मैं ” इतना ही कहना चाहूंगा कि आप आज जो बीज खेत में डाल रहे हैं कल उसी की फसल आपको काटना है आज जो आप अपने भाई के साथ कर रहे हैं , जो अपने पिता के साथ कर रहे हैं या जो अपने गुरु के साथ कर रहे हैं कल वही प्रतिफल आपको मिलेगा | आपके साथ भी कोई वैसा ही कर्म करने वाला इस संसार में प्रकट हो जाएगा | क्योंकि मानस में बाबा जी ने स्पष्ट लिख दिया है :- ” कर्म प्रधान विश्व रचि राखा ” कोई यदि यह सोचे कि आज जो मैं कर रहा हूं कल बहुत सुखी रहूंगा ऐसा कदापि नहीं हो सकता है संसार रूपी खेत में कर्म रूपी जैसा बीज मनुष्य के द्वारा डाला जाता है वैसी ही फसल मनुष्य को प्राप्त होती है यह अकाट्य है इसको कोई काट नहीं सकता |

मनुष्य को कोई भी कर्म करने के पहले उसके प्रतिफल के विषय में अवश्य विचार कर लेना चाहिए कि हम जो करने जा रहे हैं इसका परिणाम क्या होगा | अन्यथा फिर मनुष्य को पछतावे के अलावा और कुछ नहीं प्राप्त होता |

🔱🌹जय श्री कृष्णा 🌹🔱
: शून्य के संधानकर्ता,
महान खगोलशास्त्री
आचार्य वराहमिहिर
को कोटि कोटि नमन,
वंदन💐💐💐💐

महाकवि काली दास महाकाल
के उपासक थे तथा इनके
समकालीन थे।

इनकी प्रेरणा से तथा सम्राट
विक्रमादित्य की सहायता
से खगोल विद्या का अध्ययन
करने के लिए आचार्य वाराह
मिहिर ने तत्कालीन हस्तिनापुर
में एक नक्षत्र स्तंभ की स्थापना
की थी जो कि तत्कालीन
स्थापत्य कला का अनुपम
एवं उत्कृष्ट उदहारण है।

आचार्य इस स्तंभ के ऊपर खड़े
होकर नक्षत्रों की गति,अवस्था
एवं उसके भविष्य में पड़ने वाले
प्रभाव का अध्ययन किया करते
थे।

आक्रांता कुतुबुद्दीन
ऐबक के काल में नक्षत्र
स्तंभ की ऊपर के परतों
को खुरच तेजो महालय
(ताजमहल) की भांति इसे
मुग़ल स्थापत्य कला बता
दिया गया।

इसके नाम का अनुवाद नक्षत्र
(क़ुतुब)स्तंभ(मीनार)कर दिया
गया।

वाराहमिहिर के तत्कालीन
हस्तिनापुर(दिल्ली)के निवास
स्थान को अब महरौली कहा
जाता है जो कि आचार्य के
नाम के अनुरूप ही है।

कुतुबुद्दीन ने मात्र चार वर्ष
शासन किया था और आज
के विज्ञान के लिए भी इतने
कम समय में ऐसे स्तंभ
का निर्माण असंभव है तो
कुतुबुद्दीन ने कैसे मात्र चार
वर्ष में उस स्तंभ का निर्माण
करा लिया,स्पष्टतः संदेह होता
है कि यह पूर्व कालिक था।

(जन्म-ई.पू 499,

  • मृत्यु ई.पू 587)

वराह मिहिर का जन्म उज्जैन
के समीप ‘कपिथा गाँव’ में एक
ब्राह्मण परिवार में हुआ था।

पिता आदित्यदास सूर्य
के उपासक थे।

उन्होंने मिहिर को(मिहिर
का अर्थ सूर्य)भविष्य शास्त्र
पढ़ाया था।

मिहिर ने राजा विक्रमादित्य
के पुत्र की मृत्यु 18 वर्ष
की आयु में होगी,यह
भविष्यवाणी की थी।

हर प्रकार की सावधानी रखने
के बाद भी मिहिर द्वारा बताये
गये दिन को ही राजकुमार की
मृत्यु हो गयी।

राजा ने मिहिर को बुला कर
कहा,’मैं हारा,आप जीते’।

मिहिर ने नम्रता से उत्तर दिया,
‘महाराज,वास्तव में तो मैं नहीं
‘खगोल शास्त्र’ के ‘भविष्य
शास्त्र’ का विज्ञान जीता है’।

महाराज ने मिहिर को मगध देश
का सर्वोच्च सम्मान वराह प्रदान
किया और उसी दिन से मिहिर
वराह मिहिर के नाम से जाने
जाने लगे।

भविष्य शास्त्र और खगोल
विद्या में उनके द्वारा किए
गये योगदान के कारण राजा
विक्रमादित्य द्वितीय ने वराह
मिहिर को अपने दरबार के
नौ रत्नों में स्थान दिया।

वराह मिहिर की मुलाक़ात
‘आर्यभट्ट’ के साथ हुई।

इस मुलाक़ात का यह प्रभाव
पड़ा कि वे आजीवन खगोल
शास्त्री बने रहे।

आर्यभट्ट वराह मिहिर के गुरु
थे,ऐसा भी उल्लेख मिलता है।

आर्यभट्ट की तरह वराह
मिहिर का भी कहना था
कि पृथ्वी गोल है।

विज्ञान के इतिहास में वह पहले
व्यक्ति थे जिन्होंने बताया कि
सभी वस्तुओं का पृथ्वी की ओर
आकर्षित होना किसी अज्ञात
बल का आभारी है।

सदियों बाद ‘न्यूटन’ ने इस
अज्ञात बल को ‘गुरुत्वाकर्षण
बल’ नाम दिया।

रचनाएँ;

वेद के एक अंग के रूप में
ज्योतिष की गणना होने के
कारण हमारे देश में प्राचीन
काल से ही ज्योतिष का
अध्ययन हुआ था।

वेद,वृद्ध गर्ग संहिता,
सुरीयपन्नति,आश्वलायन
सूत्र,पारस्कर गृह्य सूत्र,
महाभारत,मानव धर्मशास्त्र
जैसे ग्रंथों में ज्योतिष की
अनेक बातों का समावेश है।

वराह मिहिर का प्रथम पूर्ण ग्रंथ
‘सूर्य सिद्धांत’ था जो इस समय
उपलब्ध नहीं है।

वराह मिहिर ने ‘पंचसिद्धांतिक’
ग्रंथ में प्रचलित पांच सिद्धांतों –
पुलिश,रोचक,वशिष्ठ,सौर(सूर्य)
और पितामह का हेतु रूप से
वर्णन किया है।

उन्होंने चार प्रकार के माह
गिनाये हैं –
सौर,चन्द्र,वर्षीय और पाक्षिक।

भविष्य विज्ञान इस ग्रंथ का
दूसरा भाग है।

इस ग्रंथ में लाटाचार्य,सिंहाचार्य,
आर्यभट्ट,प्रद्युन्न,विजयनन्दी के
विचार उद्धृत किये गये हैं।

खेद की बात है कि आर्यभट्ट के
अतिरिक्त इनमें से किसी के ग्रंथ
उपलब्ध नहीं हैं।

वराह मिहिर के कथनानुसार
ज्योतिष शास्त्र ‘मंत्र’,’होरा’
और ‘शाखा’ इन तीन भागों
में विभक्त था।

होरा और शाखा का संबंध
फलित ज्योतिष के साथ है।

होरा और जन्म कुंडली
से व्यक्ति के जीवन संबंधी
फलाफल का विचार किया
जाता है।

शाखा में धूमकेतु,उल्कापात,
शकुन और मुहूर्त का वर्णन और
विवेचन है।

वराह मिहिर की’वृहत संहिता’
(400 श्लोक)फलित ज्योतिष
का प्रमुख ग्रंथ है।

इसमें मकान बनवाने,कुआँ,
तालाब खुदवाने,बाग़ लगाने,
मूर्ति स्थापना आदि के शगुन
दिए गये हैं।

विवाह तथा दिग्विजय के
प्रस्थान के समय के लिए
भी ग्रंथ लिखे हैं।

फलित ज्योतिष पर
‘बृहज्जातक’ नामक
एक बड़ा ग्रंथ लिखा।

ग्रह और नक्षत्रों की स्थिति
देखकर मनुष्य का भविष्य
बताना इस ग्रंथ का विषय है।

खगोलीय गणित और फलित
ज्योतिष के मिहिर(सूर्य)समान
वराह मिहिर का ज्ञान तीन भागों
में बंटा हुआ था-
-खगोल,भविष्य विज्ञान,
वृक्षायुर्वेद,.

वृक्षायुर्वेद के विषय में सही
गणनाओं से समृद्ध शास्त्र
उन्होंने लिखा है।

बोवाई,खाद बनाने की
विधियाँ,ज़मीन का चुनाव,
बीज,जलवायु,वृक्ष,समय
निरीक्षण से लेकर वर्षा
की आगाही आदि वृक्ष,
कृषि संबंधी अनेक विषयों
का विवेचन किया है।

वराह मिहिर का संस्कृत
व्याकरण पर अच्छा
प्रभुत्व था।

होरा शास्त्र,लघु जातक,
ब्रह्मस्फुट सिद्धांत,करण,
सूर्य सिद्धांत,आदि ग्रंथ वराह
मिहिर ने लिखे थे,ऐसा उल्लेख
देखने को मिलता है।

मृत्यु;

इस महान वैज्ञानिक की
मृत्यु ईस्वी सन् 587 में हुई।

वराह मिहिर की मृत्यु के बाद
ज्योतिष गणितज्ञ ब्रह्म गुप्त
(ग्रंथ- ब्रह्मस्फुट सिद्धांत,खण्ड
खाद्य),लल्ल(लल्ल सिद्धांत),
वराह मिहिर के पुत्र पृथुयशा
(होराष्ट पंचाशिका)और चतुर्वेद
पृथदक स्वामी,भट्टोत्पन्न,
श्रीपति,ब्रह्मदेव आदि ने
ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथों
पर टीका ग्रंथ लिखे।

तथ्य;

गुप्त काल के प्रसिद्ध
खगोल शास्त्री वराहमिहिर है।

इनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘वृहत्संहिता’
तथा ‘पञ्चसिद्धन्तिका’ है।

वृहत्संहिता में नक्षत्र-विद्या,
वनस्पतिशास्त्रम्,प्राकृतिक
इतिहास,भौतिक भूगोल
जैसे विषयों पर वर्णन है।

-#साभार_संकलित★

जयति पुण्य सनातन संस्कृति💐
जयति पुण्य भूमि भारत💐

सदा सर्वदा सुमंगल💐
हर हर महादेव💐
जय भवानी💐
जय श्री राम💐
: ब्रह्मा जी नारद जी से बोले -*
बेटा; सुनो मैं सत्व रज तम तीनों के विषय में कहता हूं इन गुणों का दीपक जैसा स्वभाव है उदाहरण के लिए दीपक प्रकाश फैलाकर वस्तुओं को दिखाता है तेल बत्ती और लो यह तीनों विरुद्ध धर्मी हैं अर्थात किसी का किसी से प्रेम नहीं है वैसे ही यहां बात समझ लेनी चाहिए विरुद्ध धर्मी तेल का अग्नि में संयोग होता है और बत्ती विरोधी तेल दोनों परस्पर आंख से सहयोग करके एकत्र होकर वस्तुओं को प्रकाशित करने लगते हैं!
: जानिये ॐ का रहस्य
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मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है। मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे मन व तन पर पड़ता है। मन्त्र का जाप एक मानसिक क्रिया है। कहा जाता है कि जैसा रहेगा मन वैसा रहेगा तन। यानि यदि हम मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तो हमारा शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा।

मन को स्वस्थ्य रखने के लिए मन्त्र का जाप करना आवश्यक है। ओम् तीन अक्षरों से बना है। अ, उ और म से निर्मित यह शब्द सर्व शक्तिमान है। जीवन जीने की शक्ति और संसार की चुनौतियों का सामना करने का अदम्य साहस देने वाले ओम् के उच्चारण करने मात्र से विभिन्न प्रकार की समस्याओं व व्याधियों का नाश होता है।

सृष्टि के आरंभ में एक ध्वनि गूंजी ओम और पूरे ब्रह्माण्ड में इसकी गूंज फैल गयी। पुराणों में ऐसी कथा मिलती है कि इसी शब्द से भगवान शिव, विष्णु और ब्रह्मा प्रकट हुए। इसलिए ओम को सभी मंत्रों का बीज मंत्र और ध्वनियों एवं शब्दों की जननी कहा जाता है।

इस मंत्र के विषय में कहा जाता है कि, ओम शब्द के नियमित उच्चारण मात्र से शरीर में मौजूद आत्मा जागृत हो जाती है और रोग एवं तनाव से मुक्ति मिलती है।

इसलिए धर्म गुरू ओम का जप करने की सलाह देते हैं। जबकि वास्तुविदों का मानना है कि ओम के प्रयोग से घर में मौजूद वास्तु दोषों को भी दूर किया जा सकता है।
ओम मंत्र को ब्रह्माण्ड का स्वरूप माना जाता है। धार्मिक दृष्टि से माना जाता है कि ओम में त्रिदेवों का वास होता है इसलिए सभी मंत्रों से पहले इस मंत्र का उच्चारण किया जाता है जैसे
ओम नमो भगवते वासुदेव, ओम नमः शिवाय।

आध्यात्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि नियमित ओम मंत्र का जप किया जाए तो व्यक्ति का तन मन शुद्घ रहता है और मानसिक शांति मिलती है। ओम मंत्र के जप से मनुष्य ईश्वर के करीब पहुंचता है और मुक्ति पाने का अधिकारी बन जाता है।

: वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ३म् ईश्वर का मुख्य नाम है. योग दर्शन में यह स्पष्ट है. यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ, म. प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है. जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है।

“म” से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं. वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ३म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं.

१. अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनावरहित हो जाता है।

२. अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ओ३म् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं!

३. यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है।

४. यह हृदय और खून के प्रवाह को संतुलित रखता है।

५. इससे पाचन शक्ति तेज होती है।

६. इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है।

७. थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं।

८. नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है. रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी।

९ कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मजबूती आती है.
इत्यादि!

ॐ के उच्चारण का रहस्य?

ॐ है एक मात्र मंत्र, यही है आत्मा का संगीत
ओम का यह चिन्ह ‘ॐ’ अद्भुत है। यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है। बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है। ब्रह्म का अर्थ होता है विस्तार, फैलाव और फैलना। ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं। यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है।

ॐ को ओम कहा जाता है। उसमें भी बोलते वक्त ‘ओ’ पर ज्यादा जोर होता है। इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं। यही है √ मंत्र बाकी सभी × है। इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं। यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है। अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं। इसे अनहद भी कहते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड में यह अनवरत जारी है।

तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी। हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांती महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम।

साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है। फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है। जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है। परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना।

*त्रिदेव और त्रेलोक्य का प्रतीक :
ॐ शब्द तीन ध्वनियों से बना हुआ है- अ, उ, म इन तीनों ध्वनियों का अर्थ उपनिषद में भी आता है। यह ब्रह्मा, विष्णु और महेश का प्रतीक भी है और यह भू: लोक, भूव: लोक और स्वर्ग लोग का प्रतीक है।

*बीमारी दूर भगाएँ : तंत्र योग में एकाक्षर मंत्रों का भी विशेष महत्व है। देवनागरी लिपि के प्रत्येक शब्द में अनुस्वार लगाकर उन्हें मंत्र का स्वरूप दिया गया है। उदाहरण के तौर पर कं, खं, गं, घं आदि। इसी तरह श्रीं, क्लीं, ह्रीं, हूं, फट् आदि भी एकाक्षरी मंत्रों में गिने जाते हैं।

सभी मंत्रों का उच्चारण जीभ, होंठ, तालू, दाँत, कंठ और फेफड़ों से निकलने वाली वायु के सम्मिलित प्रभाव से संभव होता है। इससे निकलने वाली ध्वनि शरीर के सभी चक्रों और हारमोन स्राव करने वाली ग्रंथियों से टकराती है। इन ग्रंथिंयों के स्राव को नियंत्रित करके बीमारियों को दूर भगाया जा सकता है।

*उच्चारण की विधि : प्रातः उठकर पवित्र होकर ओंकार ध्वनि का उच्चारण करें। ॐ का उच्चारण पद्मासन, अर्धपद्मासन, सुखासन, वज्रासन में बैठकर कर सकते हैं। इसका उच्चारण 5, 7, 10, 21 बार अपने समयानुसार कर सकते हैं। ॐ जोर से बोल सकते हैं, धीरे-धीरे बोल सकते हैं। ॐ जप माला से भी कर सकते हैं।

*इसके लाभ : इससे शरीर और मन को एकाग्र करने में मदद मिलेगी। दिल की धड़कन और रक्तसंचार व्यवस्थित होगा। इससे मानसिक बीमारियाँ दूर होती हैं। काम करने की शक्ति बढ़ जाती है। इसका उच्चारण करने वाला और इसे सुनने वाला दोनों ही लाभांवित होते हैं। इसके उच्चारण में पवित्रता का ध्यान रखा जाता है।

*शरीर में आवेगों का उतार-चढ़ाव :
प्रिय या अप्रिय शब्दों की ध्वनि से श्रोता और वक्ता दोनों हर्ष, विषाद, क्रोध, घृणा, भय तथा कामेच्छा के आवेगों को महसूस करते हैं। अप्रिय शब्दों से निकलने वाली ध्वनि से मस्तिष्क में उत्पन्न काम, क्रोध, मोह, भय लोभ आदि की भावना से दिल की धड़कन तेज हो जाती है जिससे रक्त में ‘टॉक्सिक’पदार्थ पैदा होने लगते हैं। इसी तरह प्रिय और मंगलमय शब्दों की ध्वनि मस्तिष्क, हृदय और रक्त पर अमृत की तरहआल्हादकारी रसायन की वर्षा करती है।

कम से कम 108 बार ओम् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनाव रहित हो जाता है। कुछ ही दिनों पश्चात शरीर में एक नई उर्जा का संचरण होने लगता है। । ओम् का उच्चारण करने से प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल और नियन्त्रण स्थापित होता है। जिसके कारण हमें प्राकृतिक उर्जा मिलती रहती है। ओम् का उच्चारण करने से परिस्थितियों का पूर्वानुमान होने लगता है।

ओम् का उच्चारण करने से आपके व्यवहार में शालीनता आयेगी जिससे आपके शत्रु भी मित्र बन जाते है। ओम् का उच्चारण करने से आपके मन में निराशा के भाव उत्पन्न नहीं होते है।

आत्म हत्या जैसे विचार भी मन में नहीं आते है। जो बच्चे पढ़ाई में मन नहीं लगाते है या फिर उनकी स्मरण शक्ति कमजोर है। उन्हें यदि नियमित ओम् का उच्चारण कराया जाये तो उनकी स्मरण शक्ति भी अच्छी हो जायेगी और पढ़ाई में मन भी लगने लगेगा।
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