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ज्योतिष शास्त्र का मानव जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। ईश्वर ने प्रत्येक मानव की आयु की रचना उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार की है, जिसे कोई भी नहीं बदल सकता विशेषरूप से मनुष्य के जीवन की निम्नांकित तीन घटनाओं को कोई नहीं बदल सकता: 1. जन्म 2. विवाह 3. मृत्यु। ज्योतिष विद्या इन्हीं तीनों पर विशेष रूप से प्रकाश डालती है, यद्यपि इन तीनों के अतिरिक्त जीवन से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण बिदुओं से भी संबंधित है। कारण है कि यह एक ब्रह्म विद्या है। ज्योतिष शास्त्र को वेद के नेत्र के रूप में स्वीकार किया गया है। यह भारतीय ऋषि-महर्षियों के त्याग, तपस्या एवं बुद्धि की देन है। इसका गणित-भाग विश्व-मानव मस्तिष्क की वैज्ञानिक प्राप्ति का मूल है तथा फलित भाग उसका फल-फूल। ज्योतिष अपने विविध भेदों के माध्यम से समाज की सेवा करता आया है और करता रहेगा। यह सत्य है कि जिस किसी वस्तु, व्यक्ति या ज्ञान का विशेष प्रभाव समाज पर पड़ता है, उसका विरोध भी उसी स्तर पर होता है। ज्योतिष ने अपने ज्ञान के माध्यम से समाज को जितना अधिक प्रभावित किया है, उतने ही प्रखर रूप से इसकी आलोचना भी की गई। आलोचनाओं से निखर कर इसने अपने गणित-ज्ञान से विश्व को उद्घोषित किया तथा आकाश में रहने वाले ग्रहों, नक्षत्रों बिंबों तथा रश्मियों के प्रभावों का अध्ययन किया। इन प्रभावों से समाज में होने वाले परिवर्तन को देखा और समझा। ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों के प्राणी पर पड़ने वाले प्रभावों को जानने के लिए मनीषियों ने ब्रह्मांड रूपी भचक्र में विचरने वाले ग्रहों का कुंडली के भचक्र के रूप में साक्षात्कार कर उसके माध्यम से जन-जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों का विश्लेषण किया, जिसे ‘फलित ज्योतिष’ की संज्ञा दी गई जो अपने आप में सत्य और विज्ञान-सम्मत है। किंतु प्रश्न यह है कि आकश में भ्रमण करने वाले ग्रहों का प्रभाव सृष्टि जड़ चेतन पर भी पड़ता है। ब्रह्मांड में अपनी रश्मियों को बिखेरने वाले ग्रह सांसारिक जीवों तथा वस्तुओं पर अपना अमिट प्रभाव डालते हैं, जिसका मूर्त रूप सागर मे उठने वाले ज्वार-भाटा का मूल कारण ‘चंद्रमा’ के प्रभाव को मानते हैं। तरल पदार्थ पर चंद्रमा का प्रभाव विशेष रूप से पड़ता है। फाइलेरिया बीमारी का एक तीव्र वेग भी एकादशी से पूर्णिमा तक अधिक होता है। ज्योतिष चंद्रमा को रुधिर का कारक मानता है। चं्रदमा जल में अपना प्रभाव डालकर जिस तरह उसमें उथल-पुथल मचाता है, उसी तरह से शरीर रक्त प्रवाह में भी अपना प्रभाव प्रदान कर मानव को रोगी बना देता है। वनस्पतियों पर यदि ध्यान दिया जाय तो चंद्रोदय होते ही कुमदिनी पुष्पित होती ह तथा कमल संकुंचित। सूर्योदय होने पर कमल प्रस्फुटित तथा कुमदिनीं संकुंचित। इससे स्पष्ट होता है कि सूर्य तथा चंद्रमा का इन दोनों पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। ‘उद्मिज्जज्ञ सरलिनोंस’ ने अपनी पुष्पवाटिका में फूलों की ऐसी पंक्ति बैठा ली थी, जो बारी-बारी से खिलकर घड़ी का कार्य करती थी। पशु-पक्षियों पर भी ग्रहों का स्पष्ट प्रभाव दृष्टि गोचर होता है। उदाहरणार्थ बिल्ली की आंख की पुतली, चंद्रमा की कलानुसार घटती-बढ़ती रहती है। कुत्तों की काम वासना आश्विन-कार्तिक में जागृत होती है। अनेक पशु-पक्षी पर ग्रहों, तारों का प्रभाव अदृश्य रूप से पड़ता है, जो उनके क्रिया कलापों से उद्भाषित हो जाता है। पक्षियों की वाणी से घटनाओं की पूर्व सूचना हो जाती है। आदिवासी लोग बहुत कुछ इसी पर निर्भर रहते हैं। ज्योतिषशास्त्र के आचार्यों ने अपनी अन्वेषणात्मक बुद्धि से ग्रहों के पड़ने वाले प्रभावों को पूर्ण रूप से परखा तथा उसके विषय में समाज को उचित मार्ग-दर्शन प्रदान किया। आज इस बात की आवश्यकता है कि हम इस शास्त्र के ज्ञान को सही सरल और सुबोध बनाकर मानव-समाज के समक्ष प्रस्तुत करें। शास्त्र वर्णित नियमानुसार यदि फलादेश किया जाए, जो प्रत्यक्ष रूप से घटित हो, तो इस शास्त्र को विज्ञान कहने में किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। फलादेश की प्रक्रिया: फलित ज्योतिष के विस्तार एवं विधाओं को देखने से ज्ञात होता है कि महर्षियों ने अपनी-अपनी सूझ-बूझ से अन्वेषण किया। परिणामतः उनके भेद-उपभेद होते चले गये। अतएव इसमें जातक, तांत्रिक, संहिता, केरल, समुद्रिक, अंक, मुहूर्त, रमल, शकुन, स्वर इत्यादि उपभेदों में भी अनेक सिद्धांतों का प्रचलन हुआ। मात्र जातक को ही लिया जाये, तो उसमें भी अनेक सिद्धांत प्रचलित हुए जिनमें केशव और पराशर को मूर्धन्य माना गया है। ग्रहों, राशियों, नक्षत्रों की मौलिक प्रकृति, गुणतत्व-दोष कारक तत्व इत्यादि में लगभग सभी का मतैक्य है, परंतु फलकथन की विधि, दृष्टि, योग और दशादि के विचार में सबमें मतांतर है। ज्योतिषशास्त्र में महर्षि पराशर ने ग्रहों के शुभा-शुभत्व के निर्णय का वैज्ञानिक दृष्टि से फलादेश करने की विधियों, राजयोग, सुदर्शन पद्धति, दृष्टि तथा विश्लेषण किया है, उतना ‘अन्यत्र’ नहीं है। उन्होंने ग्रहों के अधिकाधिक शुभाशुभत्व का अलग से निर्णय किया है। ‘राजयोग’ के बारे में भी उनका विचार स्वतंत्र तथा सुलझा हुआ है। यद्यपि वराहमिहिर आदि आचार्यों ने भी इस पर अपना प्रभाव कम नहीं डाला है, फिर भी पराशर के विचार की तुलना में इनका विचार गौण है। अतः समीक्षकों ने ‘फलौ पराशरी स्मृति’ तक कह दिया है। पराशर के अनुसार ग्रहों के फल दो प्रकार के होते हैं। 1. अदृढ़ कर्मज 2. दृढ़ कर्मज अदृढ कर्मज फल गोचर ग्रह कृति है, जो शांत्यादि अनुष्ठान से परिवर्तनशील होता है। परंतु दृढ़ कर्मज फल ग्रह की दशा, भाव आदि से उत्पन्न होता है, जो अमिट होता है। अतः आधुनिक ज्योतिषियों के द्वारा अभिव्यक्त गोचर फल स्थायित्व से रहित होता है। जब तक गोचर का ग्रह प्रबल योग कारक रहता है, तब तक शुभ फल की प्राप्ति होती है। जब प्रतिकूल हो जाता है, तब उस फल का भी विनाश हो जताा है। हां, यह कहना उचित प्रतीत नहीं होता कि नक्षत्र दशा का फल नहीं मिलता है।
: 🔥👉मंत्रों के जप या स्मरण के वक्त सामान्य पवित्रता का ध्यान रखें। जैसे घर में हो तो देवस्थान में बैठकर, कार्यालय में हो तो पैरों से जूते-चप्पल उतारकर इन मंत्र और देवताओं का ध्यान करें। इससे आप मानसिक बल पाएंगे,जो आपकी ऊर्जा को जरूर बढ़ाने वाले साबित होंगे। गुरु जन एवं विद्वान ज्योतिष के सानिध्य में मंत्र अधिक फलदाई होते हैं कृपया उनके सानिध्य में रहकर ही मंत्र जाप शुरू करें जिससे आपको उचित लाभ मिल सकेगा l
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[🔱⚜🌹Mantra🌹⚜🔱
🔥👉मंत्र’ का अर्थ होता है मन को एक तंत्र में बांधना। यदि अनावश्यक और अत्यधिक विचार उत्पन्न हो रहे हैं और जिनके कारण चिंता पैदा हो रही है, तो मंत्र सबसे कारगर औषधि है। आप जिस भी ईष्ट की पूजा, प्रार्थना या ध्यान करते हैं उसके नाम का मंत्र जप सकते हैं।
🔥👉मंत्र 3 प्रकार के हैं- सात्विक, तांत्रिक और साबर। सभी मंत्रों का अपना-अलग महत्व है। प्रतिदिन जपने वाले मंत्रों को सात्विक मंत्र माना जाता है। आओ जानते हैं ऐसे कौन से मंत्र हैं जिनमें से किसी एक को प्रतिदिन जपना चाहिए जिससे मन की शक्ति ही नहीं बढ़ती, बल्कि सभी संकटों से मुक्ति भी मिलती है।
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: 🔥👉सिद्धि और मोक्षदायी गायत्री मंत्र :-

🔥।।ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।।🔥

🔥अर्थ :-🔥
🕉उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अंत:करण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।🛐

🔥👉मंत्र प्रभाव :-🔥

यह दुनिया का एकमात्र ऐसा मंत्र है, जो ईश्वर के प्रति, ईश्वर का साक्षी और ईश्वर के लिए है। यह मंत्रों का मंत्र सभी हिन्दू शास्त्रों में प्रथम और ‘महामंत्र’ कहा गया है। हर समस्या के लिए मात्र यह एक ही मंत्र कारगर है। बस शर्त यह है कि इसे जपने वाले को शुद्ध और पवित्र रहना जरूरी है अन्यथा यह मंत्र अपना असर छोड़ देता है।
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[ ये 6 तरह के विनाशकारी शाप फलीभूत हो जाते हैं अपने आप. __मनुष्य भी परमात्मा की तरह का एक छोटा संकल्प है, जिस प्रकार परमात्मा सारे ब्रह्माण्ड को अपने संकल्प में घेरे रहता है, उसी प्रकार एक व्यक्ति एक निश्चित क्षेत्र के प्राणों को अपने संकल्प द्वारा एक तरह के अणुओं में परिवर्तित कर सकता है। यह संकल्प यदि विध्वंसक हो तो उसकी प्रतिक्रिया भी विध्वंस की हो जाती है
आशीर्वाद और शाप को दुआ एवं बद्दुआ भी कहते हैं। आपके हर तरह के बोल, वचन या आपके विचार शाप या आशीर्वद ही है। याद रखें 10 आशीर्वादों को मात्र एक शाप नष्ट कर देता है। हो सकता है कि कई लोग खुद के बारे में या दूसरों के बारे में नाकारात्मक सोच रखते हो। यह भी हो सकता है कि गुस्सा आने पर कुछ लोग अपने ही घर परिवार के लोगों या दोस्तों के बारे में गलत सोचते या बोलते रहते हैं। लेकिन उन्हें यह नहीं मालूम रहता है कि इसका बुरा असर खुद पर भी होने वाला है।
हालांकि एक समय विशेष में दिए गए शाप या आशीर्वाद निश्चित ही फलीभूत हो जाते हैं।

विशेष समय : आठ प्रहर के किसी भी संधिकाल में कहे गए वचन, विचार या खयाल सत्य होने की क्षमता रखते हैं। उक्त संधिकाल में से प्रात: और संध्या की संधि तो सबसे महत्वपूर्ण होती है।

यही कारण है कि उक्त काल में व्यक्ति को भजन, कीर्तन, पूजा, पाठ या प्रार्थना करने की सलाह दी जाती है। क्योंकि उक्त समय में प्रकृति बहुत ही संवेदनशील रहती है और आपके वचन और विचार को ग्रहण करके वह उसे सत्य करने में लग जाती है। यह आलेख धर्म के कुछ प्रवचनों को सुनकर लिखा गया है।
पहला विनाशकारी शाप : भूलकर भी आप अपने या दूसरों के बच्चों को गालियां न दें, ना ही कोसें। अक्सर माता-पिता बच्चों को उनकी आज्ञा न मानने पर, पढ़ाई न पढ़ने पर कहते हैं कि तू न ही होता तो अच्छा था, या घर से चला जा, मर ही जाए तो अच्छा था। पता नहीं कहां से नक्षत्री पैदा हो गया है। नहीं पढ़ेगा तो बर्बाद हो जाएगा।

उपरोक्त कई तरह की बातें लोग बच्चों को कहते रहते हैं और ऐसा एक बार नहीं कई बार कहते हैं। बच्चों का मन कच्चा होता है उनके मन में ऐसी बातें घर कर जाती है और अंतत: वे उसी अनुसार जीने लगते हैं जैसा कि आपने शाप दिया। इसका प्रभाव यह होता है कि बच्चा खुद को अपराधी महसूस करता तो करता ही है और वह यह भी सोचने लगता है कि अच्‍छा होता कि मैं पैदा ही नहीं होता या दूसरो के घर पैदा होता। इससे धीरे धीरे सचमुच ही उसका पढ़ना, लिखना बंद होने लगता है। ऐसे बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं या कि बड़े होकर अपने माता पिता से विद्रोह कर चले जाते हैं।
दूसरा विनाशकारी शाप : कुलहंता उसे भी कहते हैं तो अपने कुल के नाश के बारे में सोचता रहता है। घर में थोड़े से भी वाद विवाद पर सभी मर जाएं तो अच्छा है- ऐसे वचन बोलता रहता है। महाभारत में ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं जिसमें वे किसी न किसी के नाश के बारे में ही सोचते रहते हैं। अंतत: सभी का नाश हो जाता है। सर्वनाश हो जाता है।
नाश हो जाने या विनाश हो जाने की कल्पना करना, इसके बारे में सोचना या अपने ही घर परिवार के विनाश का शाप देना बहुत ही विनाशकारी साबित होता है। यह अंत: तरह ऐसी परिस्थितियां निर्मित करता है जिसका बारे में व्यक्ति ने पहले ही शाप दे रखा है। लेकिन उसे विश्वास तब होता है जबकि वैसा ही घटित होने लगता है। आप जो कहते हैं वही आपकी ओर लौट कर आता है।
तीसरा विनाशकारी शाप : अक्सर किसी समस्या से ग्रस्त या रोगी व्यक्ति समस्या के समाधान या रोग से मुक्ति के विपरित यह सोचते रहते हैं कि अच्छा है कि मुझे मौत आ जाए। बहुत ज्यादा गंभीर बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति के बारे में कुछ लोग यह भी बोलते रहते हैं कि अच्छे है कि भगवन इसे जल्दी उपर उठा ले। यह सोच घातक होती है उन लोगों के लिए भी जो ऐसा दूसरों के बारे में सोच रहे हैं।

चौथा विनाशकारी शाप : ऐसा लोगों की संख्या अधिक है जिन्हें ‘काली जुबान’ का कहा जाता है जो अक्सर दूसरों के बारे में बुरा-बुरा ही बोलते रहते हैं। ऐसे लोगों से यदि आपका विवाद हो जाए तो वे तुरंत ही आपको शाप देने लगेंगे। अच्छा है कि ऐसे लोगों की पहचान करके उनसे जितनी जल्दी हो सके दूर चले जाएं या उनसे दोस्ती बंद कर दें। ऐसे लोगों को आप कुछ भी कहें वे किसी भी बात में बुराई ढूंढ ही लेंगे।

ऐसे लोगों की पहचान यह है कि वे अक्सर कहते हैं कि फला फला व्यक्ति का कभी भला नहीं होगा, वो तो तड़फ-तड़फ कर मरेगा, वो तो कुत्ते की मौत मरेगा। अरे वो तो जिंदगी में कुछ नहीं कर सकता। ऐसे लोगों की सोच नकारात्मक होती है। वे आपकी हर बात को काटने में माहिर होते हैं।

यदि आप उनसे कहेंगे कि ये कोर्स कर लेते हैं तो वे कहेंगे कोई फाइदा नहीं, अच्‍छा ये कारोबार कर लेते हैं तो कहेंगे कि उसमें तो तूझे भारी नुकसान होगा। उनसे कहो कि ये नौकरी कर लेते हैं तो कहेंगे नौकरी में कोई दम नहीं। इस तरह से उनके मुंह से सिर्फ नकारात्मक ही वचन निकलेंगे। ऐसा लोग खुद शापित होते हैं और दूसरों को भी शाप देते रहते हैं।

पांचवां विनाशकारी शाप : इसके लक्षण बताते हैं कि एक दिन ये जेल जरूर जाएगा। किसी व्यक्ति ने कोई छोटा अपराध किया या बड़ा उससे लोग कहते हैं देख तूझे तेरे किए का दंड अवश्य मिलेगा। तूछे जेल जाना होगा। भले ही उस व्यक्ति ने बहुत ही मामूली सा अपराध किया हो लेकिन उसे भयानक दंड मिलने की चेतावनी दी जाती है। उसे सरकार दंड दे या न दे लेकिन उसे फिर दंड जरूर मिलता है।

हो सकता है कि वह किसी दूसरे केस में पकड़ा जाए और फिर उस पर केस चला और उसको जेल भी हो गई। उसका शाप सिद्ध हो गया। उसने सच बात कही। अपराधी को अपराध से बचाने के लिए अथवा उसको समझाने के लिए व्यक्ति उसको डांटता है, रोकता है। फिर भी वह नहीं मानता है तो फिर उसको कहता है कि– देख तू नहीं मानता, तुझे दंड मिलेगा और तू जेल जाएगा, ये तो होगा ही।

छठा विनाशकारी शाप : यदि आपने किसी गरीब, भिखारी, अबला या बच्चे का दिल दुखाया है तो उसके दिल से आपके लिए जो बद्दुआ निकलेगी उससे आपको कोई नहीं बचा सकता।
जितना असर उसकी दुआ में होता है उतना ही असर उसकी बद्दुआ में होता है। आशीर्वाद और शाप उच्च आत्माओं, पवित्र आत्माओं के लिए कोई बड़ी बात नहीं पर समझदार लोग उसे लाभान्वित भी हो सकते हैं और किसी दीन-दुखी की ‘बद्दुआ’ से बच भी सकते हैं।
अंत में जानिए शाप मुक्ति उपाय..

यहां शाप मुक्ति के कुछ उपाय बताए जा रहे हैं। उनमें से किसी एक उपाय को विद्वान पंडित से विधि जानकर करेंगे तो लाभ मिलेगा।

1.गायत्री मं‍त्र या गायत्री-शापविमोचन का पाठ
2.दुर्गा सप्तशती का पाठ
3.चण्डिका शाप विमोचन मंत्र का जाप
4.हनुमान चालीसा और बजरंग बाण
[: 🌹 संकल्प शक्ति 🌹

  • संकल्प की  ध्वनि सुनाई नहीं देती पर इतनी तेज होती है कि  विश्व के किसी भी  भू  भाग  व  चंद्रमा और सूर्य आदि में  क्रांति  कर सकती है ।

-आप विचारो को ऐसे समझो ये शब्द है और जैसे ही किसी व्यक्ति के बारे सोचते है वह सुन रहा है ।  चाहे उसे हम जानते  है या नहीं जानते । क्योंकि यह बोल सूक्ष्म होते है और सुनने वाला  वह सही शब्द तो नहीं समझता परंतु उसके मन पर प्रभाव करेगा और उसे हमारे विचार  के अनुसार महसूस होगा और वह वही रिअकट  करेगा ।

-इस लिये आप अपने पर ध्यान रखो मै जो सोच  रहा हूं  दुसरा उसे  सुन रहा है । अतः ध्यान रखो क्या यह शब्द मै उसे मुख से बोल सकता हूं । अगर नहीं बोल सकता  तो सोचना  भी  नहीं । क्यीकि  वह  आप का हर विचार   सुन रहा है ।  यहां ज्ञानी अज्ञानी का भेद नहीं है । ❤
[ ✅ आरोग्य…🍃

विटामिन “E” का महत्व-

विटामिन “ई” शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत बनाए रखने, शरीर को एलर्जी से बचाए रखने की, कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित रखने में प्रमुख भूमिका निभाता है। विटामिन ई वसा में घुलनशील विटामिन है। यह एक एंटीऑक्सीडेंट के रूप में भी कार्य करता है। इसके आठ रूप होते हैं। इसकी कमी से जनन शक्ति में कमी आ जाती है।
👉 मुख्य स्रोत- विटामिन ई अंडे, सूखे, मेवे, बादाम और अखरोट, सूरजमुखी के बीज, हरी पत्तेदार सब्जियां, शकरकंद, सरसों में पासा जाता है। इसके अलावा विटामिन ई वनस्पति तेल, गेंहू, हरे साग, चना, जौ, खजूर, चावल के मांड़ में पाया जाता है।


[ मोटापे और पेट की चर्बी गलने के लिए 3 चमत्कारी औषधियाँ

अलसी
ये पेट की चर्बी को कम करने में मदद करता है क्योंकि इसमें ओमेगा 3 फैटी एसिड और फाइबर भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं। इसका यूज करने के लिए बीज को4 मिनट तक गर्म करना होगा ।

जीरा
सूखा हुआ जीरा लें, अगर आपको लगता है कि उसमें नमी है तो उसे धूप में सुखा लें। जीरा मेटाबॉलिज्म को बूस्ट करता है और इम्यून सिस्टम को मजबूत करता है। जिससे चर्बी घटती है।

अजवाइन
अजवाइन पेट के लिए बहुत फायदेमंद होती है। ये भी चर्बी घटाने में मदद करती है।

3 औषधियों का कारगर चूर्ण बनाने का तरीका
इस चूर्ण को बनाने के लिए आपको
3 चम्मच असली के बीज,
2 चम्मच जीरे,
2 चम्मच अजवाइन को लेना है।
अलसी का बीज सिके हुए होंगे।
इन तीनों को अच्छे से मिलाकर पीस लें। अब चूर्ण तैयार हो जाएगा। ये चूरन पेट की चर्बी को तेजी से पिघलाएगा।

चूर्ण सेवन करने का तरीका
इस चुर्ण को लेते वक्त ये ध्यान रखना है कि आपको खाना खाने के बाद और पहले गुनगुन पानी ही लेना है। इसके साथ ही पूरे दिन पर्याप्त पानी पीना होगा। एक चम्मच चूर्ण को गुनगुने पानी के साथ डेली नाश्ता करने से पहले लेना है। डेली यूज से पेट की चर्बी 10 दिनों में ही कई किलो तक कम हो जाएगी। अगर और जल्दी रिजल्ट चाहते हैं तो इसे दिन में दो बार ले सकते हैं। एक चम्मच सुबह नाश्ते के पहले और एक चम्मच रात को खाने से पहले ले सकते हैं। चूरन लेते वक्त ये रखें ध्यान की इस चूर्ण को लेते वक्त ये ठंडी चीजों का सेवन करना होगा क्योंकि अलसी खाने में गर्म होती है।

पेट कम करने के उपाय

  1. सवेरे उठ के खाली पेट करेले का जूस पीने से आप चर्बी को आसानी से पिघला सकते है|
  2. दिन भर गर्म पानी का सेवन करे. गर्म पानी में नींबू और अदरक का रस हो तो और भी बेहतर है. काली मिर्च डाले तो गुण और बढ़ जाएँगे| गर्म चाय, बिना दूध और शक्कर के आप सेवन करे तो भी यह फ़ायदा मिलेगा. गर्म पानी से पाचन तंत्र सुधर जाता है और गतिविधि बढ़ती है| जिस से आप का शरीर चर्बी को अच्छी तरह से उपयोग करके जला देता है|
  3. इन सभी पेट की चर्बी कम करने के तरीके आसान तो है मगर समय लगता है और आप को परहेज करना जरूरी है| नमक कम करे, तले हुए और बाजारू चीज़ो का सेवन ना करे, सफ़ेद शक्कर को बिल्कुल बंद करे, धूम्रपान बंद कर दे

व्यायाम

  1. हर रोज 2 घंटे तक तेज चलने का रखे तो पेट कम कैसे करे की समस्या का हल अपने आप निकल आएगा|
  2. मोटापा कम करने के तरीके में एक तरीका यह है की आप इतना व्यायाम करे की आप का शरीर चर्बी को पिघालने लगे. इस के लिए एरोबिक्स करे 30 मिनिट्स तक वेट लिफ्टिंग करे और हो सके तो दौड़ लगाए. पेट कम करने के लिए व्यायाम बहुत ही ज़रूरी है. दवाई या जड़ी बूटी से ही लाभ नहीं आता है|
  3. आहार के साथ व्यायाम हो तो अवश्य आप के मोटापे में फ़र्क दिखाई देगा|
  4. पेट कम करने के लिए योगासन बहुत ही फयदेमंद है. सवेरे उठ के 20 मिनिट तक आप कोई एक या दो योगासन, जो आप के लिए अनुकूल है और आसान है वो ही करे|
  5. योगा में वक्रासना, भुजंगासन, त्रिकोनसन, पाशचिमोत्तासन, गरुर्ढआसन, उत्कतसना, अर्धचंदारसना और शलभासना जैसे आसन वजन नियंत्रण करने में और मोटापा कम करने में मदद करते है, कई आसन कठिन हैं ज़्यादा उम्र हो जाने पर जो आसन कर सकते है वही करें, मगर नियमित करे|
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करो योग, रहो निरोगः🌹😊🙏

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मियादी, मोतीझरा, टाइफाइड का इलाज

टाइफाइड जिसे हम हिंदी language में मियादी बुखार, मोतीझरा बुखार और ग्रामीण क्षेत्र में महाराज बुखार कहते हैं हम यहां इसके बारे में आपको पूरी information & guide देंगे. यह बुखार ज्यादातर सामान्य बुखार आने पर उसकी देखभाल नहीं करने से होता हैं. इसके साथ ही इसके और भी बहुत से कारण होते हैं.

लेकिन ज्यादातर मोतीझरा, मियादी बुखार सामान्य बुखार आने पर उसकी ठीक से देखभाल नहीं करना, बुखार की दवाई के पुरे Course का सेवन नहीं करना, बुखार के समय देख रेख से नहीं रहना, ठंडा पानी पीना व नहाना, अगर आपको सामान्य बुखार है और आप इन छोटी-छोटी बातों को ध्यआन नही रखेगे तो आपका बुखार मियादी बुखार मए बदल जायेगा

आप इस पोस्ट को पूरा निचे तक जरूर पड़ें, जल्दबाजी न करे.

इसके साथ ही टाइफाइड बुखार Salmonellae typhi bacteria से होने वाले infection के कारण होता हैं. या यूं कहें की देख रेख न रखने से शरीर में यह बैक्टीरिया अपना प्रभाव जमा लेता हैं जिसकी वजह से बुखार टाइफाइड में बदल जाता हैं.

यह बैक्टीरिया इंसान के शरीर के intestines और bloodstream body parts में रहता हैं. यह बैक्टीरिया छुआछूद, बीमार व्यक्ति का झूठा पानी पिने आदि से भी दूसरे व्यक्ति के शरीर में पहुंच जाता हैं, और उसे भी बीमार कर देता हैं.

Salmonellae typhi bacteria सिर्फ इंसान के शरीर में ही पाया जाता हैं और इसके infection भी सिर्फ मानव शरीर को ही हो सकते हैं बाकी किसी भी जानवर को टाइफाइड बुखार नहीं हो सकता हैं. इस मियादी, मोतीझरा टाइफाइड का उपचार समय पर न होने से हर साल 1-4 मरीज मारे जाते हैं

Salmonellae typhi bacteria इंसान के शरीर में मुंह के जरिये शरीर में प्रवेश करता हैं. यह 15-20 दिनों तक Intestine में रहता हैं. इस बिच यह अपने आपको प्रभावी बना लेता हैं और फिर intestinal wall और bloodstream पर आक्रमण करता हैं. ऐसी situation में मरीज (patients) को खून की जांच या पेशाब की जांच करवा लेना चाहिए. ऐसा करने पर रोगी समय रहते टाइफाइड का देसी, आयुर्वेदिक उपचार या होम्योपैथिक ट्रीटमेंट करवा सकता हैं. लेकिन इन सब से पहले उसे टाइफाइड की जांच जरूर करवा लेना चाहिए. अब आपने टाइफाइड क्या होता है और क्यों होता है इस विषय में अच्छे से जान ही लिए अब हम आपको इसके लक्षण और कारण के बारे में बताएंगे

हमारे देश भारत में टाइफाइड की definition होती हैं – बुखार बिगड़ जाना. यानी सामान्य बुखार आने पर उसकी ठीक से देखभाल व इलाज न करवाने पर बुखार बिगड़ जाता है. इससे बैक्टीरिया और बढ़ जाते है और फिर रोगी को परास्त कर देते हैं.

टाइफाइड का इलाज के उपाय और आयुर्वेदिक नुस्खे

टाइफाइड होने की वजह (कारण)

यह बुखार गन्दा पानी पिने से भी होता है

ख़राब बासी भोजन करने पर

Expired foods का सेवन करने से

किसी बीमार ब्यक्ति का झूठा पानी पिने से

यात्रा करते समय पिए जाने वाली दूषित पानी से

घर व Kitchen में साफ़ सफाई न रखने से

सामान्य बुखार होने पर उसकी देखभाल न करने से

सर्दी खांसी जुकाम को अनदेखा करने से

सामान्य बुखार आने पर उपचार नहीं करवाने से

आदि वह छोटी-छोटी आदतें जिनपर हम बीमार होने पर ध्यान नहीं देते हैं

अब बारी आती हैं मोतीझरा टाइफाइड के लक्षणों के बारे में जानने की. इस विषय में हर एक व्यक्ति को जानना चाहिए ताकि जब भी उसे बुखार आये तो वह अपने लक्षणों को देख कर यह पहचान सके की कहीं उसे टाइफाइड बुखार तो नहीं हो गया हैं. ज्यादातर लोग इसी वजह से मारे जाते हैं वह समय पर इस बुखार के लक्षण को जान नहीं पाते और जब उन्हें इसका आभास होता है तब तक टाइफाइड बुखार के इलाज के लिए बड़ी देर हो जाती हैं .

लक्षण (Typhoid Signs)

Salmonellae typhi Bacteria के प्रभावी होने के 1-2 सप्ताह बाद से यह शरीर में लक्षण दिखाने लगता हैं. शारीरिक कमजोरी व धीमा बुखार आने लगता हैं आदि निचे पूरा पढ़िए.

भूख खुलकर नहीं लगना, बहुत बार तो भूख का आभास ही नहीं होता

सिर में दर्द होना

शरीर के सभी हिस्से हाथ, पैर, कमर आदि दर्द करने लगते हैं

पूरा शरीर थकान से भर जाता हैं. थोड़ा सा काम करने पर भी भारी थकान होने लगती हैं

104 degree का बुखार आना

पुरे दिन भर हल्का धीमा बुखार बने रहना

धीमा बुखार शरीर हल्का गर्म रहना टाइफाइड बुखार होने का सबसे बड़ा लक्षण होता हैं

दस्त लगना

धीरे-धीरे कुछ सप्ताह के बाद 24 घंटे बुखार बने रहना

Medical Treatment

टाइफाइड बुखार के लिए Antibiotics होते हैं जिनके जरिये अब जल्द ही इस बुखार से छुटकारा पाया जा सकता हैं. पहले के समय में एंटीबायोटिक्स नही हुआ करते थे इसलिए ज्यादातर टाइफाइड के मरीज मर जाय करते थे. जैसे ही आपको अपने शरीर में टाइफाइड के लक्षण दिखाई देने लगे तो तुरंत अपने नजदीकी डॉक्टर को दिखाए व खून पेशाब की जांच करवाये.

गर्मी आने पर पूरी तरह से पसीने को आने दें

जब तक आप पूरी तरह ठीक न हो जाओ तब तक न नाहये

समय पर दवाइयों का सेवन करे

इस बिच अगर बुखार में कोई सुधर न लगे तो फिर से खून की जांच करवाये

टाइफाइड के घरेलु उपाय व नुस्खे से आप कई हद तक इसे नियंत्रित कर सकते है व छुटकारा पा सकतेह है. और इसके साथ ही इन घरेलु नुस्खे के जरिये आप जल्दी से जल्दी ठीक हो सकते हैं यानी Recovery हासिल कर सकते हैं. इन नुस्खे व आयुर्वेदिक उपाय को अपनाने से बुखार के दौरान आपको कमजोरी महसूस नहीं होगी. मुंह भी ख़राब नहीं होगा.

तुलसी का काढ़ा पिए

20 तुसली के पत्ते

5 ग्राम रस गिलोय वाली निम का

छोटी पीपर के 10 टुकड़े

सोंठ 10 ग्राम

इन सब को आपस में अच्छे से मिला लें, 1 ग्लास में इन सब चीजों को डालकर अच्छे से उबाल लें. यह काढ़ा सभी तरह के बुखार में बहुत असरकारी होता हैं. इसका सेवन करने के बाद पानी न पिए. न कुछ खाये.

आयुर्वेदिक क्वाथ काढ़ा

4-5 मुनक्का

8-10 अंजीर

1-2 ग्राम खूबकला

इन तीनो को बताई गई मात्रा में लेकर चटनी की पट्टी पर पीसले. इसको अच्छे से पीसने के बाद इसको खा ले. सिर्फ ५-६ दिनों तक इसका सेवन करने पर आपको टाइफाइड बुखार ख़त्म हो जायेगा. यह बाबा रामदेव द्वारा बताया गया हैं.

लौंग का इस्तेमाल करे

सर्दी खांसी जुकाम आदि को झट से ख़त्म करने वाला लौंग टाइफाइड बुखार में भी बहुत असरकारी होता हैं. इसमे बहुत से एंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो की विषैले बैक्टीरिया को ख़त्म करने में बहुत मदद करते हैं. बुखार में इसका सेवन उलटी, घबराहट और दस्त में भी मदद करता हैं.

इसका उपयोग करने का तरीका

5-7 लौंग लें और 8 Cup पानी में मिलाये

अब इसे तब तक उबाले जब तक यह पानी आधा न रह जाए

अच्छे से उबाल लेने के बाद जब यह ठंडा हो जाए तो इसका सेवन कर ले

रोजाना इस घरेलु उपाय का सेवन करने से टाइफाइड में बहुत फायदा होता हैं.

किशमिश यानी बड़े मुनक्का

बड़े किशमिश

इसका उपयोग भी बहुत ही आसान हैं सिर्फ आपको रात को सोते समय एक बड़े कप में ठंडा पानी भरकर उसमे किशमिश (बड़े मुनक्का) डालना होती हैं. फिर अगली सुबह उठकर इसका सेवन करना होता हैं. बस इतने से प्रयोग के जरिये आप टाइफाइड बुखार से छुटकारा पा सकते हैं.

अगर आपको इस नुस्खे को अपना ने में कोई संकोच हैं तो आप market में जाकर बड़े किशमिश लेकर आये और इनका दिन में कभी भी जितना चाहे उतना सेवन करे. इनके सेवन से आपको बुखार में बहुत लाभ होगा. यह सालों से अपनाये जा रहा टाइफाइड का उपायहैं जो की बहुत ही असरकारी होता हैं.

शहद का उपयोग

टाइफाइड में शहद का नुस्खा भी बहुत आसान हैं सिर्फ थोड़ी सी शहद को हलके गर्म पानी में मिलाकर सेवन करना होता हैं. इसका आप दिन में कभी भी प्रयोग कर सकते हैं. यह टाइफाइड बुखार के लिए बहुत असरकारी नुस्खा है, इसे जरूर अपनाये.

तुलसी के पत्ते

तुलसी की 20 पत्तियां लें, इसमे थोड़ा सा अदरक का रस मिलाये और थोड़ा सा पानी डालकर इसे अच्छे उबाले. जब यह उबलकर आधा रह जाए तो इसको पि ले (स्वाद के लिए इसमे आप थोड़ी सी शहद भी मिला सकते हैं). दिन में 3 बार इसका सेवन करने से टाइफाइड बुखार में बड़े असरकारी परिणाम होते हैं.

इसके अलावा आप इस प्रयोग को भी कर सकते हैं – 8-10 तुलसी के पत्तों को लेकर इनका रस निकाल लें. फिर इसमे थोड़ी से कालीमिर्च मिलाकर इसका सेवन करे. इसका सेवन भी दिन में 3 बार करना चाहिए

लहसुन है देसी इलाज टाइफाइड में

लहसुन टाइफाइड के देसी इलाज के लिए सबसे असरकारी उपाय में गिना जाता हैं. लहसुन में antimicrobial properties होती हैं जो की उस बैक्टीरिया को ख़त्म करती हैं जिससे टाइफाइड बुखार पैदा होता हैं. इसके साथ ही यह शरीर में मौजूद खराब Toxins को ख़त्म करने में भी मदद करता हैं.

garlic

लहसुन के इस नुस्खे का उपयोग भी बहुत आसान हैं. रोजाना खाली पेट 2 लहसुन की कलियों का सेवन करना होता हैं. इसके रोजाना के सेवन से टाइफाइड के बैक्टीरिया का खात्मा होता हैं.

इसके साथ ही आप लहसुन को भूनकर, 1 कप दूध, व 1 कप पानी इनको आपस में मिलाकर अच्छे से उबाल लें जब तक यह 1/4 न रह जाए इसे उबालते रहे. इसका दिन में 3 बार सेवन करना होता हैं.

छोटे बच्चे और गर्भवती महिलाये लहसुन के इन उपाय का प्रयोग ने करे..

बबुल बार्क काढ़ा : टाइफाइड के उपचार

बबुल बार्क में बहुत से औषधीय गुण होते हैं. इन गुणों की मदद से बहुत से दर्द में राहत पाई जा सकती हैं. इसलिए इस औषधि का उपयोग gonorrhea, leucorrhoea, dysentery और diabetes जैसी बिमारियों में भी किया जाता हैं. इसके साथ ही यह diarrhea, Cancer, सर्दी जुकाम, नाक कान दर्द और बुखार से शरीर में होने वाली ऐठन को मिटाने के लिये सर्वोत्तम माना जाता हैं.

इन सब बिमारियों के उपचार के साथ यह टाइफाइड के लिए अच्छा भी अच्छी नुस्खा है. यह Salmonellae typhi Bacteria को ख़त्म करने मैं बड़ी मदद करता हैं. यह 100% प्राकृतिक रेमेडी हैं.

कैसे उपयोग करे

बाबुल छाल – 60 ग्राम

2 ग्लास पानी

काली मिर्च का पाउडर – थोड़ा सा लें

सबसे पहले बबुल की छाल को पानी में अच्छे से मिलाकर घोल लें, इसके बाद इसे आग पर उबाले

इसे तब तक उबाले जब तक की यह उबलकर 1 कप जितना न हो जाए

जब यह 1 कप रह जाए तो इसमे काली मिर्च का पाउडर मिलाये

अब इसे थोड़ा ठंडा होने दें. जब यह पिने योग्य हो जाए तो इसका सेवन कर लें.

आपको इस आयुर्वेदिक घरेलु उपाय का दिन में 3 बार 3 दिनों तक भोजन करने से पहले उपयोग करना होगा. यह आपको बहुत आराम देगा.

टाइफाइड का जौ से आयुर्वेदिक इलाज

जौ गेहूं

कैसे करे इसका उपयोग

सुखी जौ – 1 बड़ा चमचा

सुखी बाजरा – 1 बड़ा चमचा

सूखे चने (Gram) – 1 बड़ा चमचा

सबसे पहले सुखी जौ, सुखी बाजरा और सूखे चने को अच्छे से भून लें (Fry) कर लें

इनको भूनकर पाउडर बनाओ

अब चने, बाजरा और जौ को सामान मात्रा में लें

इसके बाद इन्हें गुड़ के syrup या शहद के साथ मिला लें

फिर रोजाना दिन में 3 बार 3 दिनों तक इसका सेवन करे

अमरुद के फूल

इसका उपयोग कैसे करे

7 अमरुद के फूल

1 कप बकरी का बिना उबला हुआ दूध

आपको सबसे पहले अमरुद के फूलों को बारीक पिसना हैं

इसको पीसने के बाद इसमे बकरी का दूध मिला देना हैं.

अब इन दोनों को अच्छे से Mix कर लें

Mix करने के तुरंत बाद ही इसका सेवन करले (बाद में यह गुणकारी नहीं होता)

इसका सेवन हमेशा पेट खाली होने पर ही करे

दिन में 3 बार 3 दिनों तक खाना खाने से पहले इस आयुर्वेदिक देसी नुस्खे का टाइफाइड के लिए उपयोग जरूर करे.

बेल के पत्तों से करे आयुर्वेदिक इलाज

बेल के पत्तों का उपयोग कैसे करे

8 बेल के पत्ते लें

इन पत्तो को लेकर अच्छे से बारीक पीस लें, भून लें

अब इन पत्तों में से निकलने वाले रस को अलग किसी ग्लास में भर लें

आप इसमे थोड़ा पानी भी मिला सकते हैं

अब मोतीझरा बुखार के लिए यह आयुर्वेदिक नुस्खा तैय्यार हो चूका हैं. रोजाना इसका दिन में 3 बार 4 दिनों तक 1 चम्मच रस लेकर

सेवन करना हैं.

करेले के पेड़ की पत्तियां

करेले की पत्तियां सभी तरह के भुखार में बहुत उपयोगी होती हैं. इनके कड़वेपन में बुखार ख़त्म करने के अनूठे गुण पाए जाते हैं. इसके लिए करेले की पत्तियों के रस को दिन में 2 बार पिए. इसका सेवन आपको तब तक करना हैं जब तक आपकी तबियत पूरी ठीक न हो जाए.

निम्बू भी है रामबाण

इसमे बहुत मात्रा में Vitamin C होता हैं जौ की टाइफाइड बुखार के दौरान पाचन तंत्र में होने वाली गड़बड़ को ठीक करने में बहुत मदद करता हैं. आप चाहे तो इसका रोजाना सुबह के समय भी उपयोग कर सकते हैं.

नींबू को निचोड़कर इसका रस निकाल लें और इसमे थोड़ी सी शहद मिलाये. अब एक ग्लास पानी में इन दोनो को मिलाकर अच्छे से Mix कर के इसका सेवन करे.

Dehydration से बचने के लिए Orange Juice

संतरे में तरह-तरह के Vitamins और Minerals होते हैं जो की शारीरिक कमजोरी को दूर करने के साथ-साथ पाचन तंत्र को स्वस्थ करता हैं. इसके साथ ही यह टाइफाइड बुखार में शांति देता हैं जिससे रोगी का मन लगा रहता हैं उसे उदासी नहीं घेरती.
Abhay Nahar Jain
इसका उपयोग भी बड़ा आसान हैं दिन में 3-4 बार संतरे का रस का सेवन करना होता हैं बस. यह आपको बुखार से होने वाली सभी तरह की परेशानियों से छुटकारा दिला सकता हैं.

अदरक और सेब

टाइफाइड बुखार में ज्यादातर Dehydration की समस्या का सामना करना पड़ता हैं. और Dehydration से छुटकारा दिलाने में अदरक और सेब दोनों बहुत उपयोगी होते हैं. इसके साथ ही यह दोनों शरीर के ख़राब पदार्थ (Toxins) को बहार निकालने में बहुत मदद करते हैं.

ऐसे करे उपयोग

1 चम्मच अदरक का रस

1 ग्लास सेब का रस

सबसे पहले अदरक के रस को सेब के रस में मिलाये

अब दोनों को अच्छे से mix कर लें

Mix करने के तुरंत बाद ही इसका सेवन कर ले (बाद में यह असरकारी नहीं होगा इसलिए तुरंत पिले)

जब भी आपको Dehydration से सम्बंधित परेशानी हो तो आपको इसका सेवन करते रहना चाहिए. जितना ज्यादा इसका सेवन

करेंगे उतना ही Dehydration से बचे रहेंगे.

अनार का रस

Dehydration से बचने के लिए अनार के रस का भी सहारा लिया जा सकता हैं. यह भी अदरक व सेब के जितना ही प्रभावकारी होता हैं. इसको आप बड़ी आसानी से घर पर या बाजार से प्राप्त कर सकते हैं. इसमे सिर्फ आपको अनार के रस का सेवन करना होता हैं. यह Dehydration में लाभदायक व असरकारी टाइफाइड का आयुर्वेदिक इलाज हैं. इसके बुरे परिणाम नही होते.

नारियल पानी भी है टाइफाइड का सही उपाय

नारियल पानी में sodium, calcium, potassium, magnesium, fats, electrolyte, और carbohydrates बहुत अधिक मात्रा में पाए जाते हैं. इसका सेवन Metabolism को भी बढ़ाता हैं. जैसा की हम सब जानते हैं बीमारी हालात में हमारा शरीर बहुत नाजुक व कमजोर हो जाता हैं तो ऐसी स्थिति में नारियल का घरेलु उपाय सबसे बेहतर होता हैं. यह तुरंत शरीर को नई ऊर्जा से भर देता हैं.

सिर पर पट्टी रखना

सिर पर पट्टी रखने का यह उपाय कई सालों से अपनाया जाता आ रहा हैं. यह शरीर के तामपान को कम करता हैं व तेज बुखार से छुटकारा दिलाने में बहुत मदद करता हैं.

एक हलके कपडे को लेकर ठन्डे पानी में भिगो लें

आप इस कपडे में बर्फ के टुकड़ों को बारीक़ पीसकर भी रख सकते हैं

इसके बाद इस पट्टी को सिर पर रख लें

जब तक तेज बुखार उतर न जाए तब तक आप इस पट्टी को सिर पर रख कर रखे

सिर के साथ-साथ आप इस ठन्डे पानी की पट्टी को हाथ व पैरों के पंजो पर भी रख सकते हैं.

ज्यादा पानी पिए

यह एक स्वाभाविक बात हैं की जब आपको तेज बुखार आएगा तो आपके शरीर में से पसीना निकलेगा और अगर ऐसी अवस्था में आपके शरीर में पानी की कमी होगी तो आप डिहाइड्रेशन के शिकार हो सकते हैं. दूसरी बात यह की बीमारी अवस्था में ज्यादा पानी पिने से शरीर में मौजूद खराब Toxins भी बाहर निकल जाते हैं. इसलिए आपको पानी का ज्यादा सेवन करना चाहिए. अगर आप पानी नहीं पीना चाहते तो इसकी जगह पर ऊपर बताये गए फलों के रस का सेवन कर सकते हैं.

Apple Cider Vinegar

टाइफाइड बुखार में सेब के सिरके का उपयोग भी बहुत असरकारी होता हैं. इसमे बड़ी मात्रा में acidic property होती हैं जो की इस तरह के बुखार में बहुत फायदेमंद रहती हैं.

केले खाये (Banana)

टाइफाइड बुखार में केले का सेवन भी बहुत लाभदायक होता हैं. टाइफाइड से होने वाली कमजोरी को दूर करने के लिए इसका उपयोग भी किया जा सकता हैं. आप एक ग्लास दूध में केले को Mix कर के भी सेवन कर सकते हैं.

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[अपामार्ग (चिचड़ी) के चमत्कारिक प्रयोग | Apamarg (Achyranthes Aspera)

अपामार्ग (चिचड़ी) के चमत्कारिक प्रयोग | Apamarg (Achyranthes Aspera)

विष पर :- *जानवरों के काटने व सांप, बिच्छू, जहरीले कीड़ों के काटे स्थान पर अपामार्ग के पत्तों का ताजा रस लगाने और पत्तों का रस 2 चम्मच की मात्रा में 2 बार पिलाने से विष का असर तुरंत घट जाता है और जलन तथा दर्द में आराम मिलता है।

*इसके पत्तों की पिसी हुई लुगदी को दंश के स्थान पर पट्टी से बांध देने से सूजन नहीं आती और दर्द दूर हो जाता है। सूजन चढ़ चुकी हो तो शीघ्र ही उतर जाती है

*ततैया, बिच्छू तथा अन्य जहरीले कीड़ों के दंश पर इसके पत्ते का रस लगा देने से

जहर उतर जाता है। काटे स्थान पर बाद में 8-10 पत्तों को पीसकर लुगदी बांध देते हैं। इससे व्रण (घाव) नहीं होता है”

दांतों का दर्द :- *अपामार्ग की शाखा (डाली) से दातुन करने पर कभी-कभी होने वाले तेज दर्द खत्म हो जाते हैं तथा मसूढ़ों से खून का आना बंद हो जाता है।

*अपामार्ग के फूलों की मंजरी को पीसकर नियमित रूप से दांतों पर मलकर मंजन करने से दांत मजबूत हो जाते हैं। पत्तों के रस को दांतों के दर्द वाले स्थान पर लगाने से दर्द में राहत मिलती है। तने या जड़ की दातुन करने से भी दांत मजबूत होते हैं एवं मुंह की दुर्गन्ध नष्ट होती है।

*इसके 2-3 पत्तों के रस में रूई का फोया बनाकर दांतों में लगाने से दांतों के दर्द में लाभ पहुंचता है तथा पुरानी से पुरानी गुहा को भरने में मदद करता है।

*अपामार्ग की ताजी जड़ से प्रतिदिन दातून करने से दांत मोती की तरह चमकने लगते हैं। इससे दांतों का दर्द, दांतों का हिलना, मसूढ़ों की कमजोरी तथा मुंह की दुर्गन्ध दूर हो जाती है।”

प्रसव सुगमता से होना :- *प्रसव में ज्यादा विलम्ब हो रहा हो और असहनीय पीड़ा महसूस हो रही हो, तो रविवार या पुष्य नक्षत्र वाले दिन जड़ सहित उखाड़ी सफेद अपामार्ग की जड़ काले कपड़े में बांधकर प्रसूता के गले में बांधने या कमर में बांधने से शीघ्र प्रसव हो जाता है। प्रसव के तुरंत बाद जड़ शरीर से अलग कर देनी चाहिए, अन्यथा गर्भाशय भी बाहर निकल सकता है। जड़ को पीसकर पेड़ू पर लेप लगाने से भी यही लाभ मिलता है। लाभ होने के बाद लेप पानी से साफ कर दें।

*चिरचिटा (अपामार्ग) की जड़ को स्त्री की योनि में रखने से बच्चा आसानी से पैदा होता है।

*पाठा, कलिहारी, अडूसा, अपामार्ग इनमें से किसी एक औषधि की जड़ के तैयार लेप को नाभि, नाभि के नीचे के हिस्से पर लेप करने से प्रसव सुखपूर्वक होता है। प्रसव पीड़ा प्रारम्भ होने से पहले अपामार्ग के जड़ को एक धागे में बांधकर कमर में बांधने से प्रसव सुखपूर्वक होता है, परंतु प्रसव होते ही उसे तुरंत हटा लेना चाहिए।

*अपामार्ग की जड़ तथा कलिहारी की जड़ को लेकर एक पोटली मे रखें। फिर स्त्री की कमर से पोटली को बांध दें। प्रसव आसानी से हो जाता है।”

स्वप्नदोष :- अपामार्ग की जड़ का चूर्ण और मिश्री बराबर की मात्रा में पीसकर रख लें। 1 चम्मच की मात्रा में दिन में 3 बार 1-2 हफ्ते तक सेवन करें।

मुंह के छाले :- अपामार्ग के पत्तों का रस छालों पर लगाएं।

शीघ्रपतन :- अपामार्ग की जड़ को अच्छी तरह धोकर सुखा लें। इसका चूर्ण बनाकर 2 चम्मच की मात्रा में लेकर 1 चम्मच शहद मिला लें। इसे 1 कप ठंडे दूध के साथ नियमित रूप से कुछ हफ्तों तक सेवन करने से वीर्य बढ़ता है।

संतान प्राप्ति के लिए :- अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को एक चम्मच की मात्रा में दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित रूप से 21 दिन तक सेवन करने से गर्मधारण होता है। दूसरे प्रयोग के रूप में ताजे पत्तों के 2 चम्मच रस को 1 कप दूध के साथ मासिक-स्राव के बाद नियमित सेवन से भी गर्भ स्थिति की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।

मोटापा :- अधिक भोजन करने के कारण जिनका वजन बढ़ रहा हो, उन्हें भूख कम करने के लिए अपामार्ग के बीजों को चावलों के समान भात या खीर बनाकर नियमित सेवन करना चाहिए। इसके प्रयोग से शरीर की चर्बी धीरे-धीरे घटने भी लगेगी।

कमजोरी :- अपामार्ग के बीजों को भूनकर इसमें बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर पीस लें। 1 कप दूध के साथ 2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम नियमित सेवन करने से शरीर में पुष्टता आती है।

APAMARG_SEEDSसिर में दर्द :- अपामार्ग की जड़ को पानी में घिसकर बनाए लेप को मस्तक पर लगाने से सिर दर्द दूर होता है।

मलेरिया से बचाव :- अपामार्ग के पत्ते और कालीमिर्च बराबर की मात्रा में लेकर पीस लें, फिर इसमें थोड़ा-सा गुड़ मिलाकर मटर के दानों के बराबर की गोलियां तैयार कर लें। जब मलेरिया फैल रहा हो, उन दिनों एक-एक गोली सुबह-शाम भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से इस ज्वर का शरीर पर आक्रमण नहीं होगा। इन गोलियों का दो-चार दिन सेवन पर्याप्त होता है।

गंजापन :- सरसों के तेल में अपामार्ग के पत्तों को जलाकर मसल लें और मलहम बना लें। इसे गंजे स्थानों पर नियमित रूप से लेप करते रहने से पुन: बाल उगने की संभावना होगी।

खुजली :- अपामार्ग के पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फूल और फल) को पानी में उबालकर काढ़ा तैयार करें और इससे स्नान करें। नियमित रूप से स्नान करते रहने से कुछ ही दिनों में खुजली दूर जाएगी।

आधाशीशी (आधे सिर में दर्द) :- इसके बीजों के चूर्ण को सूंघने मात्र से ही आधाशीशी, मस्तक की जड़ता में आराम मिलता है। इस चूर्ण को सुंघाने से मस्तक के अंदर जमा हुआ कफ पतला होकर नाक के द्वारा निकल जाता है और वहां पर पैदा हुए कीड़े भी झड़ जाते हैं।

बहरापन :- अपामार्ग की साफ धोई हुई जड़ का रस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में तिल को मिलाकर आग में पकायें। जब तेल मात्र शेष रह जाये तब छानकर शीशी में रख लें। इस तेल की 2-3 बूंद गर्म करके हर रोज कान में डालने से कान का बहरापन दूर होता है।

आंखों के रोग :- *आंख की फूली में अपामार्ग की जड़ के 2 ग्राम चूर्ण को 2 चम्मच शहद के साथ मिलाकर दो-दो बूंद आंख में डालने से लाभ होता है।

*धुंधला दिखाई देना, आंखों का दर्द, आंखों से पानी बहना, आंखों की लालिमा, फूली, रतौंधी आदि विकारों में इसकी स्वच्छ जड़ को साफ तांबे के बरतन में, थोड़ा-सा सेंधानमक मिले हुए दही के पानी के साथ घिसकर अंजन रूप में लगाने से लाभ होता है।”

खांसी :- *अपामार्ग की जड़ में बलगमी खांसी और दमे को नाश करने का चामत्कारिक गुण हैं। इसके 8-1

APAMARG_plant0 सूखे पत्तों को बीड़ी या हुक्के में रखकर पीने से खांसी में लाभ होता है।

*अपामार्ग के चूर्ण में शहद मिलाकर सुबह-शाम चटाने से बच्चों की श्वासनली तथा छाती में जमा हुआ कफ दूर होकर बच्चों की खांसी दूर होती है।

*खांसी बार-बार परेशान करती हो, कफ निकलने में कष्ट हो, कफ गाढ़ा व लेसदार हो गया हो, इस अवस्था में या न्यूमोनिया की अवस्था में आधा ग्राम *अपामार्ग क्षार व आधा ग्राम शर्करा दोनों को 30 ग्राम गर्म पानी में मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से 7 दिन में बहुत ही लाभ होता है।

*श्वास रोग की तीव्रता में अपामार्ग की जड़ का चूर्ण 6 ग्राम व 7 कालीमिर्च का चूर्ण, दोनों को सुबह-शाम ताजे पानी के साथ लेने से बहुत लाभ होता है।

विसूचिका (हैजा) :- *अपामार्ग की जड़ के चूर्ण को 2 से 3 ग्राम तक दिन में 2-3 बार शीतल पानी के साथ सेवन करने से तुरंत ही विसूचिका नष्ट होती है। अपामार्ग के 4-5 पत्तों का रस निकालकर थोड़ा जल व मिश्री मिलाकर देने से विसूचिका में अच्छा लाभ मिलता है।

*अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़, 4 कालीमिर्च, 4 तुलसी के पत्तें। इन सबको पीसकर तथा पानी में घोलकर इतनी ही मात्रा में बार-बार पिलाएं।

*कंजा की जड़, अपामार्ग की जड़, नीम की अंतरछाल, गिलोय, कुड़ा की छाल-इन सबको समान मात्रा में लेकर काढ़ा बनायें। शीतल होने पर 10-10 ग्राम की मात्रा में 3 दिन सेवन कराने से हैजा का प्रभाव शांत हो जाता है।”

बवासीर :- *अपामार्ग के बीजों को पीसकर उनका चूर्ण 3 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम चावलों के धोवन के साथ देने से खूनी बवासीर में खून का आना बंद हो जाता है।

*अपामार्ग की 6 पत्तियां, कालीमिर्च 5 पीस को जल के साथ पीस छानकर सुबह-शाम सेवन करने से बवासीर में लाभ हो जाता है और उसमें बहने वाला रक्त रुक जाता है।

*पित्तज या कफ युक्त खूनी बवासीर पर अपामार्ग की 10 से 20 ग्राम जड़ को चावल के धोवन के साथ पीस-छानकर 2 चम्मच शहद मिलाकर पिलाना गुणकारी हैं।

*अपामार्ग की जड़, तना, पत्ता, फल और फूल को मिलाकर काढ़ा बनायें और चावल के धोवन अथवा दूध के साथ पीयें। इससे खूनी बवासीर में खून का गिरना बंद हो जाता है।

*अपामार्ग का रस निकालकर या इसके 3 ग्राम बीज का चूर्ण बनाकर चावल के धोवन (पानी) के साथ पीने से बवासीर में खून का निकलना बंद हो जाता है।”

उदर विकार (पेट के रोग) :- *अपामार्ग पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) को 20 ग्राम लेकर 400 ग्राम पानी में पकायें, जब चौथाई शेष रह जाए तब उसमें लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर चूर्ण तथा एक ग्राम कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से पेट का दर्द दूर हो जाता है।

*पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का काढ़ा 50-60 ग्राम भोजन के पूर्व सेवन से पाचन रस में वृद्धि होकर दर्द कम होता है। भोजन के दो से तीन घंटे पश्चात पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ती) का गर्म-गर्म 50-60 ग्राम काढ़ा पीने से अम्लता कम होती है तथा श्लेष्मा का शमन होता है। यकृत पर अच्छा प्रभाव होकर पित्तस्राव उचित मात्रा में होता है, जिस कारण पित्त की पथरी तथा बवासीर में लाभ होता है।”

भस्मक रोग (भूख का बहुत ज्यादा लगना) :- *भस्मक रोग जिसमें बहुत भूख लगती है और खाया हुआ अन्न भस्म हो जाता है परंतु शरीर कमजोर ही बना रहता है, उसमें अपामार्ग के बीजों का चूर्ण 3 ग्राम दिन में 2 बार लगभग एक सप्ताह तक सेवन करें। इससे निश्चित रूप से भस्मक रोग मिट जाता है।

*अपामार्ग के 5-10 ग्राम बीजों को पीसकर खीर बनाकर खिलाने से भस्मक रोग मिट जाता है। यह प्रयोग अधिक से अधिक 3 बार करने से रोग ठीक होता है। इसके 5-10 ग्राम बीजों को खाने से अधिक भूख लगना बंद हो जाती है

*अपामार्ग के बीजों को कूट छानकर, महीन चूर्ण करें तथा बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर, तीन-छ: ग्राम तक सुबह-शाम पानी के साथ प्रयोग करें। इससे भी भस्मक रोग ठीक हो जाता है।”

वृक्कशूल (गुर्दे का दर्द) :- अपामार्ग (चिरचिटा) की 5-10 ग्राम ताजी जड़ को पानी में घोलकर पिलाने से बड़ा लाभ होता है। यह औषधि मूत्राशय की पथरी को टुकड़े-टुकड़े करके निकाल देती है। गुर्दे के दर्द के लिए यह प्रधान औषधि है।

योनि में दर्द होने पर :- अपामार्ग (चिरचिटा) की जड़ को पीसकर रस निकालकर रूई को भिगोकर योनि में रखने से योनिशूल और मासिक धर्म की रुकावट मिटती है।

गर्भधारण करने के लिए :- *अनियमित मासिक धर्म या अधिक रक्तस्राव होने के कारण से जो स्त्रियां गर्भधारण नहीं कर पाती हैं, उन्हें ऋतुस्नान (मासिक-स्राव) के दिन से उत्तम भूमि में उत्पन्न अपामार्ग के 10 ग्राम पत्ते, या इसकी 10 ग्राम जड़ को गाय के 125 ग्राम दूध के साथ पीस-छानकर 4 दिन तक सुबह, दोपहर और शाम को पिलाने से स्त्री गर्भधारण कर लेती है। यह प्रयोग यदि एक बार में सफल न हो तो अधिक से अधिक तीन बार करें।

*अपामार्ग की जड़ और लक्ष्मण बूटी 40 ग्राम की मात्रा में बारीक पीस-छानकर रख लेते हैं। इसे गाय के 250 ग्राम कच्चे दूध के साथ सुबह के समय मासिक-धर्म समाप्त होने के बाद से लगभग एक सप्ताह तक सेवन करना चाहिए। इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।”

रक्तप्रदर :- *अपामार्ग के ताजे पत्ते लगभग 10 ग्राम, हरी दूब पांच ग्राम, दोनों को पीसकर, 60 ग्राम पानी में मिलाकर छान लें, तथा गाय के दूध में 20 ग्राम या इच्छानुसार मिश्री मिलाकर सुबह-सुबह 7 दिन तक पिलाने से अत्यंत लाभ होता है। यह प्रयोग रोग ठीक होने तक नियमित करें, इससे निश्चित रूप से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है। यदि गर्भाशय में गांठ की वजह से खून का बहना होता हो तो भी गांठ भी इससे घुल जाता है।

*10 ग्राम अपामार्ग के पत्ते, 5 दाने कालीमिर्च, 3 ग्राम गूलर के पत्ते को पीसकर चावलों के धोवन के पानी के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ होता है।”

व्रण (घावों) पर :- घावों विशेषकर दूषित घावों में अपामार्ग का रस मलहम के रूप में लगाने से घाव भरने लगता है तथा घाव पकने का भय नहीं रहता है।

संधिशोथ (जोड़ों की सूजन) :- जोड़ों की सूजन एवं दर्द में अपामार्ग के 10-12 पत्तों को पीसकर गर्म करके बांधने से लाभ होता है। संधिशोथ व दूषित फोड़े फुन्सी या गांठ वाली जगह पर पत्ते पीसकर लेप लगाने से गांठ धीरे-धीरे छूट जाती है।

बुखार :- अपामार्ग (चिरचिटा) के 10-20 पत्तों को 5-10 कालीमिर्च और 5-10 ग्राम लहसुन के साथ पीसकर 5 गोली बनाकर 1-1 गोली बुखार आने से 2 घंटे पहले देने से सर्दी से आने वाला बुखार छूटता है।

श्वासनली में सूजन (ब्रोंकाइटिस) :- जीर्ण कफ विकारों और वायु प्रणाली दोषों में अपामार्ग (चिरचिटा) की क्षार, पिप्पली, अतीस, कुपील, घी और शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करने से वायु प्रणाली शोथ (ब्रोंकाइटिस) में पूर्ण लाभ मिलता है।

दमा या श्वास रोग :- *अपामार्ग के बीजों को चिलम में भरकर इसका धुंआ पीते हैं। इससे श्वास रोग में लाभ मिलता है।

*अपामार्ग का चूर्ण लगभग आधा ग्राम को शहद के साथ भोजन के बाद दोनों समय देने से गले व फेफड़ों में जमा, रुका हुआ कफ निकल जाता है।

*अपामार्ग (चिरचिटा) का क्षार 0.24 ग्राम की मात्रा में पान में रखकर खाने अथवा 1 ग्राम शहद में मिलाकर चाटने से छाती पर जमा कफ छूटकर श्वास रोग नष्ट हो जाता है।

*चिरचिटा की जड़ को किसी लकड़ी की सहायता से खोद लेना चाहिए। ध्यान रहे कि जड़ में लोहा नहीं छूना चाहिए। इसे सुखाकर पीस लेते हैं। यह चूर्ण लगभग एक ग्राम की मात्रा में लेकर शहद के साथ खाएं इससे श्वास रोग दूर हो जाता है।

*अपामार्ग (चिरचिटा) 1 किलो, बेरी की छाल 1 किलो, अरूस के पत्ते 1 किलो, गुड़ दो किलो, जवाखार 50 ग्राम सज्जीखार लगभग 50 ग्राम, नौसादर लगभग 125 ग्राम सभी को पीसकर एक किलो पानी में भरकर पकाते हैं। पांच किलो के लगभग रह जाने पर इसे उतार लेते हैं। डिब्बे में भरकर मुंह बंद करके इसे 15 दिनों के लिए रख देते हैं फिर इसे छानकर सेवन करें। इसे 7 से 10 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सेवन करें। इससे श्वास, दमा रोग नष्ट हो जाता है।

स्वस्थ व समृद्ध भारत निर्माण हेतु
जिसे उपजाते नही अपने आप उपज जाता है भरपूर मात्रा में वह औषधि गुणों से भरपूर
वन्देमातरम
[: नाभी

कुदरत की एक अद्भुत देन है
एक 62 वर्ष के बुजुर्ग को अचानक बांई आँख से कम दिखना शुरू हो गया। खासकर रात को नजर न के बराबर होने लगी।जाँच करने से यह निष्कर्ष निकला कि उनकी आँखे ठीक है परंतु बांई आँख की रक्त नलीयाँ सूख रही है। रिपोर्ट में यह सामने आया कि अब वो जीवन भर देख नहीं पायेंगे।…. मित्रो यह सम्भव नहीं है..
मित्रों हमारा शरीर परमात्मा की अद्भुत देन है…गर्भ की उत्पत्ति नाभी के पीछे होती है और उसको माता के साथ जुडी हुई नाडी से पोषण मिलता है और इसलिए मृत्यु के तीन घंटे तक नाभी गर्म रहती है।
गर्भधारण के नौ महीनों अर्थात 270 दिन बाद एक सम्पूर्ण बाल स्वरूप बनता है। नाभी के द्वारा सभी नसों का जुडाव गर्भ के साथ होता है। इसलिए नाभी एक अद्भुत भाग है।
नाभी के पीछे की ओर पेचूटी या navel button होता है।जिसमें 72000 से भी अधिक रक्त धमनियां स्थित होती है
नाभी में गाय का शुध्द घी या तेल लगाने से बहुत सारी शारीरिक दुर्बलता का उपाय हो सकता है।

  1. आँखों का शुष्क हो जाना, नजर कमजोर हो जाना, चमकदार त्वचा और बालों के लिये उपाय…
    सोने से पहले 3 से 7 बूँदें शुध्द घी और नारियल के तेल नाभी में डालें और नाभी के आसपास डेढ ईंच गोलाई में फैला देवें।
  2. घुटने के दर्द में उपाय
    सोने से पहले तीन से सात बूंद अरंडी का तेल नाभी में डालें और उसके आसपास डेढ ईंच में फैला देवें।
  3. शरीर में कमपन्न तथा जोड़ोँ में दर्द और शुष्क त्वचा के लिए उपाय :-
    रात को सोने से पहले तीन से सात बूंद राई या सरसों कि तेल नाभी में डालें और उसके चारों ओर डेढ ईंच में फैला देवें।
  4. मुँह और गाल पर होने वाले पिम्पल के लिए उपाय:-
    नीम का तेल तीन से सात बूंद नाभी में उपरोक्त तरीके से डालें।
    नाभी में तेल डालने का कारण
    हमारी नाभी को मालूम रहता है कि हमारी कौनसी रक्तवाहिनी सूख रही है,इसलिए वो उसी धमनी में तेल का प्रवाह कर देती है।
    जब बालक छोटा होता है और उसका पेट दुखता है तब हम हिंग और पानी या तैल का मिश्रण उसके पेट और नाभी के आसपास लगाते थे और उसका दर्द तुरंत गायब हो जाता था।
    बस यही काम है तेल का।

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[🌾चंद्रप्रभा वटी के 10 जबरदस्त फायदे
🍂★ चंद्रप्रभा वटी, को 37 पदार्थों के योग से बनाया गया है। यह एक बहुत ही लोकप्रिय और प्रभावी दवा है जो की बहुत से रोगों में दी जाती है। ‘चंद्र’ का मतलब है चंद्रमा और ‘प्रभा’ का मतलब है चमक। तो इसका शाब्दिक अर्थ है वो दवा या टेबलेट जो शरीर में चमक लाए। ये दवा कई नामी आयुर्वेदिक कंपनियों द्वारा निर्मित की जाती है।
★💐 चंद्रप्रभा वटी को मधुमेह और मूत्र रोगों में प्रयोग किया जाता है। यह मूत्रेंद्रिय और वीर्य-विकारों की सुप्रसिद्ध औषधी है। इसका उपयोग शरीर में चमक लाता है और बल, ताकत और शक्ति बढती है।स्नेहा समूह
🌻★ यह दवा बलवर्धक, पोषक, कांतिवर्धक, और मूत्रल है।
🌻★ चंद्रप्रभा वटी सूजाक के कारण होने वाली दिक्कतों को नष्ट करती है। पुराने सूजाक में इसका उपयोग होता है। सूजाक के कारण होने वाले फोड़े, फुंसी, खुजली आदि में इस दवा को चन्दनासव या सारिवाद्यासव के साथ दिया जाता है।
🌻★ यह दवा शरीर से विष को निकालती है और धातुओं का शोधन करती है।
★🌻 किसी कारण से जब शुक्रवाहिनी और वातवाहिनी नाड़ियाँ कमज़ोर हो जाती हैं तब इस स्थिति में वीर्य अपने आप ही निकल जाता है जैसे की स्वप्नदोष (night fall) पेशाब के साथ वीर्य जाना (discharge of semen with urine ) ऐसे में इस दवा को गिलोय के काढ़े के साथ दिया जाना चाहिए। यह दवा पुरुष जननेंद्रिय विकारों में अच्छा प्रभाव दिखाती है।
🌻★ इस का प्रयोग स्त्री रोगों gynecological problems में भी होता है। यह गर्भाशय को शक्ति देती है और उसकी वकृति को दूर करती है।
★🌻 सुजाक, उपदंश आदि में यह प्रभावी है।
🌻★ स्त्रियों में होने वाले अन्य समस्यों जैसे की पूरे शरीर में दर्द (full body pain), मासिक में दर्द , १०-१२ दिनों का मासिक धर्म आदि में यह दवा अशोक घृत के साथ दी जाती है।
🌻★ मूत्र रोगों में जैसे की बहुमूत्र, मूत्रकृच्छ, मूत्राघात , मूत्राशय में किसी तरह की विकृति, पेशाब में जलन (burning sensation while urination), पेशाब का लाल रंग, पेशाब में दुर्गन्ध, पेशाबी में चीनी (sugar in urine), श्वेत प्रदर, किडनी की पथरी (kidney stones ), पेशाब में एल्ब्यूमिन, रुक रुक के पेशाब आना, मूत्राशय की सूजन (inflammation of urinary bladder), आदि में ये बहुत ही अच्छा प्रभाव दिखाती है।
★ 🌻जब मूत्र कम मात्रा में बने और मूत्राघात हो तो इसका प्रयोग पुनर्नवासव या लोध्रासव के साथ किया जाता है।
🌻★ वात के अधिक होने पर कब्ज़ और मन्दाग्नि हो जाती है जो ज्यादा दिन रहने पर भूख न लगना, अपच, ज्यादा प्यास, कमजोरी आदि दिक्कतें पैदा करती हैं। इसमें में भी इस दवा का प्रयोग अच्छा असर दिखाता है।
सही माने में सुखी सुरक्षित 💐

एक व्यक्ति धन- सम्पति संग्रह कर आसक्त(attachment) होता है। सोचता है, इनके सहारे मेरा भविष्य सुरक्षित रहेगा।

अनागत काल(future) में मुझे कोई कष्ट नही होगा।एक व्यक्ति पुत्र-कलत्र, बंधू- बांधव संग्रह कर आसक्त होता है। सोचता है इनके सहारे मेरा अनिष्ट नही होगा। संकट में भाई शरण देगा, पुत्र रक्षा करेगा।लेकिन जब दिन पलटते हैं तो अपने को असहाय पाता है। न संग्रहित धन काम आता है, न पुत्र, बंधू रक्षा कर पाते हैं। अपने कर्म- संस्कारो का दुखद प्रतिफल स्वयं ही भुगतना पड़ता है। किंचित भी सुखी नही रह पाता।

🌺एक व्यक्ति धर्मपूर्वक परिवार पोषण करता हुआ शील का पालन करता है, समाधि का अभ्यास करता है, प्रज्ञा में स्थित होता है, विपश्यना साधना द्वारा राग, द्वेष और मोह का संवर करता है, और इस प्रकार धर्म संग्रह करता है, धर्म की शरण जाता है। उसके भी कभी दिन पलटते है, पूर्व के दूषित कर्मो के दुखद फल आते हैं।न धन काम आता है, न भाई साथ देता है, न पुत्र रक्षा करता है।

परंतु संग्रह किया हुआ धर्म सहायक बनता है, आचरण द्वारा रक्षा किया हुआ धर्म रक्षा करता है। धर्म धैर्य के साथ संकट का सामना करता है। बुरे दिन देर तक टिक नही पाते। खोया हुआ धन लौट आता है, आँख बदले हुए भाई बंधु फिर मिल जाते हैं।मुँह फेरे हुए पुत्र फिर आज्ञाकारी हो जाते हैं। सारा वातावरण अनुकूल हो जाता है।

ऐसा व्यक्ति सही माने में सुखी सुरक्षित रहता है…इस लोक में भी, परलोक में भी और सारे लोको के परे भी।
[ 🙏 आजका सदचिंतन 🙏
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सद्भावनाएं बढ़ने से दुर्भावनाएं घटेगी
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आमतौर पर हमें प्रशंसक की भूमिका प्रस्तुत करते रहना चाहिए, जिससे उनके सद्गुण बढ़ें। साहस, आत्मविश्वास बढ़ाकर ही किसी को श्रेष्ठता के कठिन सन्मार्ग पर चलाया जाना संभव हो सकता है।
दमन और दंड से, निंदा और तिरस्कार से कोई दुर्गुण दब तो जाते हैं, पर अवसर मिलने पर वे प्रतिहिंसा के साथ और भी भयंकर रूप में प्रकट होते हैं। सदभावनाएँ बढ़ने से दुर्भावनाएं घटती ही हैं। सुधार का यही मार्ग अधिक प्रमाणिक और सुनिश्चित सिद्ध होता है।

     *विचार क्रांति अभियान*

🙏 सबका जीवन मंगलमय हो🙏


: 👉 काया से नहीं, प्राणों से प्यार करें:-

जो हमें प्यार करता हो, उसे हमारे मिशन से भी प्यार करना चाहिए। जो हमारे मिशन की उपेक्षा, तिरस्कार करता है लगता है वह हमें ही उपेक्षित-तिरस्कृत कर रहा है। व्यक्तिगत रूप से कोई हमारी कितनी ही उपेक्षा करे, पर यदि हमारे मिशन के प्रति श्रद्धावान् है, उसके लिए कुछ करता, सोचता है तो लगता है मानो हमारे ऊपर अमृत बिखेर रहा है और चंदन लेप रहा है। किंतु यदि केवल हमारे व्यक्तित्त्व के प्रति ही श्रद्धा है, शरीर से ही मोह है, उसी की प्रशस्ति पूजा की जाती है और मिशन की बात उठाकर ताक पर रख दी जाती है तो लगता है हमारे प्राण का तिरस्कार करते हुए केवल शरीर पर पंखा ढुलाया जा रहा हो।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति, अगस्त १९६९, पृष्ठ ९, १०


👉 आत्म विकास की सामान्य प्रक्रिया

कई व्यक्ति कम से कम समय में अधिक से अधिक बढ़-चढ़कर उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए आतुर होते और आकुल व्याकुल बनते देखे गए हैं। ऐसे लोगों के लिए बच्चों वाले बालू के महल और टहनियाँ गाड़कर बगीचा खड़ा करने जैसा कौतुक रचना पड़ता है या फिर बाजीगरों जैसा छद्म भरा कौतूहल दिखाकर अबोधजनों को चमत्कृत करना पड़ता है। आँखों में चकाचौंध उत्पन्न करने का रूप धारा करने में नाटक कर्त्ता ही प्रवीण होते हैं। उन्हीं को मुखौटे लगाना, मेकअप करना और साजसज्जा से अलंकृत होना आता है। शालीनता के रहते बचकानी योजना बन नहीं सकती। कार्यान्वित होने का तो कभी अवसर ही नहीं आता। स्थाई निर्माणों में देर लगती हैं। स्नातक, इंजीनियर, डॉक्टर, पहलवान बनने में भी समय लगता है। जमीन से गढ़ा खजाना मिलने पर धनवान बनने वाले सुने तो जाते हैं, पर देखे नहीं गए। देवता के वरदान अथवा जादू मंत्र से किसी ने ऋद्धि-सिद्धि अर्जित नहीं की है। अंतराल को जगाने, दृष्टिकोण बदलने और गतिविधियों को सुनियोजित आदर्शवादी बनाने-संकल्पों पर आरूढ़ रहने से ही इस स्तर का विकास हो सकता है, जिसमें बहुविधि सफलताओं के फल-फूल लगें। विभूतियों के चमत्कारी उभार उभरें।

अदूरदर्शी तत्काल सम्पन्नता व सफलता से भरे पूरे अवसर उपलब्ध करना चाहते हैं। प्रकृति क्रम से यह संभव नहीं। उसमें कर्म और फल के बीच अंतर अवधि रहने का विधान है। नौ महीने माँ के पेट में रहने के उपरांत ही भ्रूण इस स्थिति तक पहुँचता है कि प्रसवकाल की कठिनाई सह सके और नये वातावरण में रह सकने की जीवट से सज्जित हो सके। जो इन तथ्यों को अनदेखा करते हैं और अपनी हठवादिता को ही अपनाये रहते हैं। उन्हें इसकी पूर्ति के लिए छद्मों का सहारा लेना पड़ता है। किसी को प्रलोभन देकर या दबाव से विवश करके ही वाहवाही का पुलिंदा हथियायो जा सकता है। काँच के बने नगीने ही सस्ते बिकते हैं। असली हीरा खरीदना हो तो उसके लिए समूचित मूल्य जुटाया जाना चाहिए। फसल से घर भरने के लिए किसान जैसी तत्परता अपनाई जानी चाहिए और बोने से लेकर काटने तक की लम्बी अवधि में धैर्यपूर्वक प्रतीक्षा करनी चाहिए।

आत्मिक प्रगति के लिए दुष्प्रवृत्तियों का निराकरण, सुसंस्कारों का अभिवर्धन हेतु दुहरा पुरुषार्थ अपनाया जाना चाहिए। इसका प्रथम चरण है- संयम, साधना और दूसरा- उदार संलगनता। इन दोनों के लिए आवश्यक श्रद्धा विश्वास अंतराल में पक सके, इसके लिए योगाभ्यास स्तर की तपश्चर्याओं का आश्रय लेना चाहिए। यों इस प्रकार के क्रिया कृत्यों विश्वास पर न रखने वाले व्यक्ति अपनी समूची क्रियाशीलता और सद्भावना उच्च स्तरीय क्रिया- कलापों में नियोजित करके समग्र जीवन को साधनामय बना सकते हैं।

आत्मिक विकास के लिए शरीर को स्वस्थ रखना परम आवश्यक है और शरीर को समुन्नत, समग्र, सुविकसित बनाने का सामान्य तरीका अत्यंत सरल और सामान्य है। शरीर स्वस्थता के लिए अकेला संयम भी अपना चमत्कार दिखाता है फिर अगर पौष्टिक भोजन और नियमित व्यायाम का सुयोग भी मिल जाय, तो समझना चाहिए सोना और सुगन्ध मिलने जैसी बात बन गई। वस्तुतः इन्द्रिय असंयम ही शरीर को रुग्णता और दुर्बलता के गर्त में गिराता है। मानसिक स्वास्थ्य को सुरक्षित रखने के लिए संतुलन अपने आपमें पूर्ण है। राग-द्वेष से आवेश, अवसाद से-लिप्सा, लालसा से-अहमन्यता और महत्त्वाकांक्षा से यदि अपने को बचाये रखा जा सके, तो कल्पना-शक्ति, विचार-शक्ति, निर्णय शक्ति न केवल सुरक्षित रहती है, वरन् बढ़ती भी रहती है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य


[ घर के मंदिर में शिखर या गुम्बद नही रखें:-

घर के पूजाघरों में लकड़ी या संगमरमर के मन्दिर होते हैंउनमें कुछ में शिखर या गुम्बद होते है। शायद आपके पूजाघर में भी ऐसा मन्दिर हो। लेकिन पूजाघर में बनाए गए मन्दिरों में गुम्बद या शिखर बनाना शास्त्रानुसार निषिद्ध है। घरों में बनाए या रखे जाने वाले मन्दिरों के विषय में—

शास्त्रानुसार पूजाघर के अन्दर रखे जाने वाले मन्दिरों में गुम्बद या शिखर नहीं होना चाहिए क्योंकि जिन मन्दिरों में गुम्बद या शिखर बनाया जाता है उनमें उस गुम्बद या शिखर पर कलश व ध्वजा चढ़ाना अनिवार्य होता है। हमारी वैदिक परम्परा में हमारे मन्दिरों के कलश व ध्वजा को मुक्ताकाश अर्थात् खुले आसमान के नीचे होना आवश्यक है। मन्दिर के कलश व ध्वजा के ऊपर छत इत्यादि का होना शास्त्रानुसार निषिद्ध है।

वैदिक परम्परा के अनुसार कलश व ध्वजा की तुलना में उससे ऊंचा कुछ भी नहीं होना चाहिए, इसीलिए हमारे प्राचीन मन्दिरों का परिसर बहुत विशाल हुआ करता था और मन्दिर उस परिसर के ठीक मध्य में होता था। ऐसा इसलिए क्योंकि वैदिक परम्परा में जहां तक मन्दिर के कलश व ध्वजा के दर्शन होते रहते हैं उतना क्षेत्र धर्मक्षेत्र के अन्तर्गत आता है।

ऐसी मान्यता है कि उस क्षेत्र में परमात्मा का प्रभामण्डल अधिक सक्रिय रूप में उपस्थित होता है। सनातन धर्मानुसार यदि किसी मन्दिर के केवल कलश व ध्वजा का दर्शन कर प्रणाम कर लिया जाए तो मन्दिर जाने का पुण्यफल प्राप्त हो जाता है। इसलिए घरों के पूजाघर में बने या रखे मन्दिरों में गुम्बद, शिखर, कलश व ध्वजा का लगाया जाना निषिद्ध है।🙏

हर हर महादेव
जय श्री राधेगोविन्द
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[: चिंता नही चिंतन कीजिये

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भारतवर्ष में सम्राट समुद्रगुप्त प्रतापी सम्राट हुए थे। लेकिन चिंताओं से वे भी नहीं बच सके। और चिंताओं के कारण परेशान से रहने लगे। चिंताओं का चिंतन करने के लिए एक दिन वन की ओर निकल पड़े।

वह रथ पर थे, तभी उन्हें एक बांसुरी की आवाज सुनाई दी। वह मीठी आवाज सुनकर उन्होनें सारथी से रथ धीमा करने को कहा और बांसुरी के स्वर के पीछे जाने का इशारा किया। कुछ दूर जाने पर समुद्रगुप्त ने देखा कि झरने और उनके पास मौजूद वृक्षों की आढ़ से एक व्यक्ति बांसुरी बजा रहा था। पास ही उसकी भेडें घांस खा रही थीं।

राजा ने कहा, ‘आप तो इस तरह प्रसन्न होकर बांसुरी बजा रहे हैं, जैसे कि आपको किसी देश का साम्राज्य मिल गया हो।’ युवक बोला, ‘श्रीमान आप दुआ करें। भगवान मुझे कोई साम्राज्य न दे। क्योंकि अभी ही सम्राट हूं। लेकिन साम्राज्य मिलने पर कोई सम्राट नहीं होता। बल्कि सेवक बन जाता है।’

युवक की बात सुनकर राजा हैरान रह गए। तब युवक ने कहा सच्चा सुख स्वतंत्रता में है। व्यक्ति संपत्ति से स्वतंत्र नहीं होता बल्कि भगवान का चिंतन करने से स्वतंत्र होता है। तब उसे किसी भी तरह की चिंता नहीं होती है। भगवान सूर्य किरणें सम्राट को देते हैं मुझे भी जो जल उन्हें देते हैं मुझे भी।

पढ़ें: धर्मराज युधिष्ठिर ने किया था अपने ही मामाश्री का वध

ऐसे में मुझमें और सम्राट में बस मात्र संपत्ति का ही फासला होता है। बाकी तो सब कुछ तो मेरे पास भी है। यह सुनकर युवक को राजा ने अपना परिचय दिया। युवक ये जान कर हैरान था। लेकिन राजा की चिंता का समाधान करने पर राजा ने उसे सम्मानित किया।

संक्षेप में

चिंता, मानव मस्तिष्क का ऐसा विकार है जो पूरे मन को झकझोर कर रख देता है। इसलिए चिंता नहीं चिंतन कीजिए, ये सोचिए आप ओरों से बेहतर क्यों हैं? इस सवाल का जबाव यदि आप स्वयं से पूछते हैं तो आपकी चिंताओं का निवारण स्वयं ही हो जाएगा।

🌹🙏🏻🚩 जय सियाराम 🚩🙏🏻🌹
🚩🙏🏻 जय श्री महाकाल 🙏🏻🚩
🌹🙏🏻 जय श्री पेड़ा हनुमान 🙏🏻🌹
🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩
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[
संसार में प्रायः प्रत्येक व्यक्ति यह मानता है, कि मैं बुद्धिमान हूं। मैं बहुत ज्ञानी हूँ। दूसरी ओर हम यह देखते हैं कि प्रायः सभी लोग दुखी हैं परेशान है चिंता ग्रस्त हैं ।
ये दोनों बातें परस्पर विपरीत हैं । क्योंकि शास्त्रों से हम यह सुनते पढ़ते जानते हैं कि जो ज्ञानी होता है , वह दुखी नहीं होता, चिंता ग्रस्त नहीं होता, प्रसन्न आनंदित होता है।
इसका अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति दुखी है, चिंतित है , परेशान है , वह ज्ञानी नहीं है; और जो ज्ञानी है, वह परेशान नहीं है ।
ऐसे ज्ञानी लोग बहुत कम मिलते हैं , जो पूरा दिन आनंदित रहते हैं , चिंताओं से मुक्त जीवन जीते हैं । तो किसी व्यक्ति को ज्ञान हुआ, या नहीं हुआ ? इसकी पहचान क्या? यही पहचान है , कि वह चिंतित नहीं होगा, प्रसन्नमुख होगा , कभी निराशा की बातें नहीं करेगा, सदा स्वयं उत्साह युक्त रहेगा तथा तथा दूसरों को भी उत्साहित करेगा ।
उसके पास ज्ञान की वह कला होगी कि वह जीवन में होने वाली घटनाओं का ठीक-ठीक विश्लेषण कर पाएगा , कि कौन सी घटना को महत्व देना है और कौन सी घटना की उपेक्षा करनी है? यदि व्यक्ति सभी घटनाओं को महत्व देगा, तो निश्चित रूप से दुखी होगा –
[: ओ३म्

      🌷स्वाध्याय से मनुष्य की बुद्धि एवं ज्ञानका विकास होता है। ईश्वर व जीव सहित जड़ सृष्टि वा ब्रह्माण्ड विषयक सभी शंकाओं व प्रश्नों का समाधान भी होता है। मनुष्य जन्म क्यों हुआ व हमारा भविष्य एवं परजन्म किन बातों से उन्नत व अवनत होते हैं, इसका ज्ञान भी हम स्वाध्याय से प्राप्त कर सकते हैं। ईश्वर, माता-पिता, समाज, देश व विश्व के प्रति हमारे क्या कर्तव्य हैं और उनका पालन किस प्रकार से किया जा सकता है, इसका ज्ञान भी हमें स्वाध्याय से मिलता है। मनुष्य जीवन का उद्देश्य दुःखों से पूर्ण निवृत्ति है। दुःखों से पूर्ण निवृत्ति का नाम मोक्ष है। इसकी प्राप्ति के लिए करणीय कर्तव्यों का विधान ऋषि दयानन्द जी के ग्रन्थों एवं दर्शन व उपनिषद आदि ग्रन्थों में मिलता है। जो मनुष्य वैदिक ग्रन्थों का अध्ययन करता है उसे ईश्वर, जीवात्मा, सृष्टि, उपासना सहित भौतिक विषयों का भी पूर्ण ज्ञान प्राप्त होता है। स्वाध्याय से मनुष्य देव, विद्वान, आर्य, ईश्वरभक्त, वेदभक्त, मातृपितृभक्त, आचार्यभक्त, देशभक्त, समाजसेवी व समाज सुधारक सहित आदर्श जीवन व चरित्र से पूर्ण मानव बनता है। मत-मतान्तर के ग्रन्थ मनुष्य का ऐसा विकास नहीं करते जैसा कि वेद व वैदिक साहित्य से होता है। हमारे विश्व प्रसिद्ध आदर्श महापुरुष राम, कृष्ण, दयानन्द, चाणक्य, शंकराचार्य जी आदि सभी वैदिक साहित्य की देन थे। इन लाभों को प्राप्त करने के लिए सभी मनुष्यों को वेद एवं वैदिक ग्रन्थों का नित्य प्रति स्वाध्याय अवश्य ही करना चाहिये जिससे उनका सम्पूर्ण विकास व उन्नति होगी और उनका जीवन ज्ञान की प्राप्ति से सुखी व सन्तुष्ट होगा। ऋषि दयानन्द जी ने लिखा है कि मनुष्य को जो सुख ज्ञान की प्राप्ति से मिलता है उतना व वैसा सुख धन व सुख के साधनों से भी नहीं मिलता। अतः स्वाध्याय से अपना ज्ञान बढ़ाना सब मनुष्यों का कर्तव्य है।

[: 100 रोग 100 ईलाज़

योग की कुछ 100 जानकारी जिसका ज्ञान सबको होना चाहिए
1.योग,भोग और रोग ये तीन अवस्थाएं है।

  1. लकवा – सोडियम की कमी के कारण होता है ।
  2. हाई वी पी में – स्नान व सोने से पूर्व एक गिलास जल का सेवन करें तथा स्नान करते समय थोड़ा सा नमक पानी मे डालकर स्नान करे ।
  3. लो बी पी – सेंधा नमक डालकर पानी पीयें ।
  4. कूबड़ निकलना– फास्फोरस की कमी ।
  5. कफ – फास्फोरस की कमी से कफ बिगड़ता है , फास्फोरस की पूर्ति हेतु आर्सेनिक की उपस्थिति जरुरी है । गुड व शहद खाएं
  6. दमा, अस्थमा – सल्फर की कमी ।
  7. सिजेरियन आपरेशन – आयरन , कैल्शियम की कमी ।
  8. सभी क्षारीय वस्तुएं दिन डूबने के बाद खायें
  9. अम्लीय वस्तुएं व फल दिन डूबने से पहले खायें
  10. जम्भाई– शरीर में आक्सीजन की कमी ।
  11. जुकाम – जो प्रातः काल जूस पीते हैं वो उस में काला नमक व अदरक डालकर पियें ।
  12. ताम्बे का पानी – प्रातः खड़े होकर नंगे पाँव पानी ना पियें ।
  13. किडनी – भूलकर भी खड़े होकर गिलास का पानी ना पिये ।
  14. गिलास एक रेखीय होता है तथा इसका सर्फेसटेन्स अधिक होता है । गिलास अंग्रेजो ( पुर्तगाल) की सभ्यता से आयी है अतः लोटे का पानी पियें, लोटे का कम सर्फेसटेन्स होता है ।
  15. अस्थमा , मधुमेह , कैंसर से गहरे रंग की वनस्पतियाँ बचाती हैं ।
  16. वास्तु के अनुसार जिस घर में जितना खुला स्थान होगा उस घर के लोगों का दिमाग व हृदय भी उतना ही खुला होगा ।
  17. परम्परायें वहीँ विकसित होगीं जहाँ जलवायु के अनुसार व्यवस्थायें विकसित होगीं ।
  18. पथरी – अर्जुन की छाल से पथरी की समस्यायें ना के बराबर है ।
  19. RO का पानी कभी ना पियें यह गुणवत्ता को स्थिर नहीं रखता । कुएँ का पानी पियें । बारिस का पानी सबसे अच्छा , पानी की सफाई के लिए सहिजन की फली सबसे बेहतर है ।
  20. सोकर उठते समय हमेशा दायीं करवट से उठें या जिधर का स्वर चल रहा हो उधर करवट लेकर उठें ।
  21. पेट के बल सोने से हर्निया, प्रोस्टेट, एपेंडिक्स की समस्या आती है ।
  22. भोजन के लिए पूर्व दिशा , पढाई के लिए उत्तर दिशा बेहतर है ।
  23. HDL बढ़ने से मोटापा कम होगा LDL व VLDL कम होगा ।
  24. गैस की समस्या होने पर भोजन में अजवाइन मिलाना शुरू कर दें ।
  25. चीनी के अन्दर सल्फर होता जो कि पटाखों में प्रयोग होता है , यह शरीर में जाने के बाद बाहर नहीं निकलता है। चीनी खाने से पित्त बढ़ता है ।
  26. शुक्रोज हजम नहीं होता है फ्रेक्टोज हजम होता है और भगवान् की हर मीठी चीज में फ्रेक्टोज है ।
  27. वात के असर में नींद कम आती है ।
  28. कफ के प्रभाव में व्यक्ति प्रेम अधिक करता है ।
  29. कफ के असर में पढाई कम होती है ।
  30. पित्त के असर में पढाई अधिक होती है ।
  31. आँखों के रोग – कैट्रेक्टस, मोतियाविन्द, ग्लूकोमा , आँखों का लाल होना आदि ज्यादातर रोग कफ के कारण होता है ।
  32. शाम को वात-नाशक चीजें खानी चाहिए ।
  33. प्रातः 4 बजे जाग जाना चाहिए
  34. सोते समय रक्त दवाव सामान्य या सामान्य से कम होता है ।
  35. व्यायामवात रोगियों के लिए मालिश के बाद व्यायाम , पित्त वालों को व्यायाम के बाद मालिश करनी चाहिए । कफ के लोगों को स्नान के बाद मालिश करनी चाहिए ।
  36. भारत की जलवायु वात प्रकृति की है , दौड़ की बजाय सूर्य नमस्कार करना चाहिए ।
  37. जो माताएं घरेलू कार्य करती हैं उनके लिए व्यायाम जरुरी नहीं ।
  38. निद्रा से पित्त शांत होता है , मालिश से वायु शांति होती है , उल्टी से कफ शांत होता है तथा उपवास ( लंघन ) से बुखार शांत होता है ।
  39. भारी वस्तुयें शरीर का रक्तदाब बढाती है , क्योंकि उनका गुरुत्व अधिक होता है ।
  40. दुनियां के महान वैज्ञानिक का स्कूली शिक्षा का सफ़र अच्छा नहीं रहा, चाहे वह 8 वीं फेल न्यूटन हों या 9 वीं फेल आइस्टीन हों ,
  41. माँस खाने वालों के शरीर से अम्ल-स्राव करने वाली ग्रंथियाँ प्रभावित होती हैं ।
  42. तेल हमेशा गाढ़ा खाना चाहिएं सिर्फ लकडी वाली घाणी का , दूध हमेशा पतला पीना चाहिए ।
  43. छिलके वाली दाल-सब्जियों से कोलेस्ट्रोल हमेशा घटता है ।
  44. कोलेस्ट्रोल की बढ़ी हुई स्थिति में इन्सुलिन खून में नहीं जा पाता है । ब्लड शुगर का सम्बन्ध ग्लूकोस के साथ नहीं अपितु कोलेस्ट्रोल के साथ है ।
  45. मिर्गी दौरे में अमोनिया या चूने की गंध सूँघानी चाहिए ।
  46. सिरदर्द में एक चुटकी नौसादर व अदरक का रस रोगी को सुंघायें ।
  47. भोजन के पहले मीठा खाने से बाद में खट्टा खाने से शुगर नहीं होता है ।
  48. भोजन के आधे घंटे पहले सलाद खाएं उसके बाद भोजन करें ।
  49. अवसाद में आयरन , कैल्शियम , फास्फोरस की कमी हो जाती है । फास्फोरस गुड और अमरुद में अधिक है
  50. पीले केले में आयरन कम और कैल्शियम अधिक होता है । हरे केले में कैल्शियम थोडा कम लेकिन फास्फोरस ज्यादा होता है तथा लाल केले में कैल्शियम कम आयरन ज्यादा होता है । हर हरी चीज में भरपूर फास्फोरस होती है, वही हरी चीज पकने के बाद पीली हो जाती है जिसमे कैल्शियम अधिक होता है ।
  51. छोटे केले में बड़े केले से ज्यादा कैल्शियम होता है ।
  52. रसौली की गलाने वाली सारी दवाएँ चूने से बनती हैं ।
  53. हेपेटाइट्स A से E तक के लिए चूना बेहतर है ।
  54. एंटी टिटनेस के लिए हाईपेरियम 200 की दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दे ।
  55. ऐसी चोट जिसमे खून जम गया हो उसके लिए नैट्रमसल्फ दो-दो बूंद 10-10 मिनट पर तीन बार दें । बच्चो को एक बूंद पानी में डालकर दें ।
  56. मोटे लोगों में कैल्शियम की कमी होती है अतः त्रिफला दें । त्रिकूट ( सोंठ+कालीमिर्च+ मघा पीपली ) भी दे सकते हैं ।
  57. अस्थमा में नारियल दें । नारियल फल होते हुए भी क्षारीय है ।दालचीनी + गुड + नारियल दें ।
  58. चूना बालों को मजबूत करता है तथा आँखों की रोशनी बढाता है ।
  59. दूध का सर्फेसटेंसेज कम होने से त्वचा का कचरा बाहर निकाल देता है ।
  60. गाय की घी सबसे अधिक पित्तनाशक फिर कफ व वायुनाशक है ।
  61. जिस भोजन में सूर्य का प्रकाश व हवा का स्पर्श ना हो उसे नहीं खाना चाहिए
  62. गौ-मूत्र अर्क आँखों में ना डालें ।
  63. गाय के दूध में घी मिलाकर देने से कफ की संभावना कम होती है लेकिन चीनी मिलाकर देने से कफ बढ़ता है ।
  64. मासिक के दौरान वायु बढ़ जाता है , 3-4 दिन स्त्रियों को उल्टा सोना चाहिए इससे गर्भाशय फैलने का खतरा नहीं रहता है । दर्द की स्थति में गर्म पानी में देशी घी दो चम्मच डालकर पियें ।
  65. रात में आलू खाने से वजन बढ़ता है ।
  66. भोजन के बाद बज्रासन में बैठने से वात नियंत्रित होता है ।
  67. भोजन के बाद कंघी करें कंघी करते समय आपके बालों में कंघी के दांत चुभने चाहिए । बाल जल्द सफ़ेद नहीं होगा ।
  68. अजवाईन अपान वायु को बढ़ा देता है जिससे पेट की समस्यायें कम होती है
  69. अगर पेट में मल बंध गया है तो अदरक का रस या सोंठ का प्रयोग करें
  70. कब्ज होने की अवस्था में सुबह पानी पीकर कुछ देर एडियों के बल चलना चाहिए ।
  71. रास्ता चलने, श्रम कार्य के बाद थकने पर या धातु गर्म होने पर दायीं करवट लेटना चाहिए ।
  72. जो दिन मे दायीं करवट लेता है तथा रात्रि में बायीं करवट लेता है उसे थकान व शारीरिक पीड़ा कम होती है ।
  73. बिना कैल्शियम की उपस्थिति के कोई भी विटामिन व पोषक तत्व पूर्ण कार्य नहीं करते है ।
  74. स्वस्थ्य व्यक्ति सिर्फ 5 मिनट शौच में लगाता है ।
  75. भोजन करते समय डकार आपके भोजन को पूर्ण और हाजमे को संतुष्टि का संकेत है ।
  76. सुबह के नाश्ते में फल , दोपहर को दहीरात्रि को दूध का सेवन करना चाहिए ।
  77. रात्रि को कभी भी अधिक प्रोटीन वाली वस्तुयें नहीं खानी चाहिए । जैसे – दाल , पनीर , राजमा , लोबिया आदि ।
  78. शौच और भोजन के समय मुंह बंद रखें , भोजन के समय टी वी ना देखें ।
  79. मासिक चक्र के दौरान स्त्री को ठंडे पानी से स्नान , व आग से दूर रहना चाहिए ।
  80. जो बीमारी जितनी देर से आती है , वह उतनी देर से जाती भी है ।
  81. जो बीमारी अंदर से आती है , उसका समाधान भी अंदर से ही होना चाहिए ।
  82. एलोपैथी ने एक ही चीज दी है , दर्द से राहत । आज एलोपैथी की दवाओं के कारण ही लोगों की किडनी , लीवर , आतें , हृदय ख़राब हो रहे हैं । एलोपैथी एक बिमारी खत्म करती है तो दस बिमारी देकर भी जाती है ।
  83. खाने की वस्तु में कभी भी ऊपर से नमक नहीं डालना चाहिए , ब्लड-प्रेशर बढ़ता है ।
    86 . रंगों द्वारा चिकित्सा करने के लिए इंद्रधनुष को समझ लें , पहले जामुनी , फिर नीला ….. अंत में लाल रंग ।
    87 . छोटे बच्चों को सबसे अधिक सोना चाहिए , क्योंकि उनमें वह कफ प्रवृति होती है , स्त्री को भी पुरुष से अधिक विश्राम करना चाहिए
  84. जो सूर्य निकलने के बाद उठते हैं , उन्हें पेट की भयंकर बीमारियां होती है , क्योंकि बड़ी आँत मल को चूसने लगती है ।
  85. बिना शरीर की गंदगी निकाले स्वास्थ्य शरीर की कल्पना निरर्थक है , मल-मूत्र से 5% , कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ने से 22 %, तथा पसीना निकलने लगभग 70 % शरीर से विजातीय तत्व निकलते हैं ।
  86. चिंता , क्रोध , ईर्ष्या करने से गलत हार्मोन्स का निर्माण होता है जिससे कब्ज , बबासीर , अजीर्ण , अपच , रक्तचाप , थायरायड की समस्या उतपन्न होती है ।
  87. गर्मियों में बेल , गुलकंद , तरबूजा , खरबूजा व सर्दियों में सफ़ेद मूसली , सोंठ का प्रयोग करें ।
  88. प्रसव के बाद माँ का पीला दूध बच्चे की प्रतिरोधक क्षमता को 10 गुना बढ़ा देता है । बच्चो को टीके लगाने की आवश्यकता नहीं होती है ।
  89. रात को सोते समय सर्दियों में देशी मधु लगाकर सोयें त्वचा में निखार आएगा
  90. दुनिया में कोई चीज व्यर्थ नहीं , हमें उपयोग करना आना चाहिए
  91. जो अपने दुखों को दूर करके दूसरों के भी दुःखों को दूर करता है , वही मोक्ष का अधिकारी है ।
  92. सोने से आधे घंटे पूर्व जल का सेवन करने से वायु नियंत्रित होती है , लकवा , हार्ट-अटैक का खतरा कम होता है ।
  93. स्नान से पूर्व और भोजन के बाद पेशाब जाने से रक्तचाप नियंत्रित होता है
    98 . तेज धूप में चलने के बाद , शारीरिक श्रम करने के बाद , शौच से आने के तुरंत बाद जल का सेवन निषिद्ध है
  94. त्रिफला अमृत है जिससे वात, पित्त , कफ तीनो शांत होते हैं । इसके अतिरिक्त भोजन के बाद पान व चूना । देशी गाय का घी , गौ-मूत्र भी त्रिदोष नाशक है ।
  95. इस विश्व की सबसे मँहगी दवा। लार है , जो प्रकृति ने तुम्हें अनमोल दी है ,इसे ना थूके ।

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कैलाश पर्वत एक अनसुलझा रहस्य, कैलाश पर्वत के इन 8 रहस्यों से नासा भी हो चुका है हैरान!!

कैलाश पर्वत के रहस्य – कैलाश पर्वत, यह एतिहासिक पर्वत को आज तक हम सनातनी भारतीय लोग शिव का निवास स्थान मानते हैं। शास्त्रों में भी यही लिखा है कि कैलाश पर शिव का वास है।

किन्तु वहीँ नासा जैसी वैज्ञानिक संस्था के लिए कैलाश एक रहस्यमयी जगह है। नासा के साथ-साथ कई रूसी वैज्ञानिकों ने कैलाश पर्वत पर अपनी रिपोर्ट पेश की है।

उन सभी का मानना है कि कैलाश वाकई कई अलौकिक शक्तियों का केंद्र है। विज्ञान यह दावा तो नहीं करता है कि यहाँ शिव देखे गये हैं किन्तु यह सभी मानते हैं कि, यहाँ पर कई पवित्र शक्तियां जरुर काम कर रही हैं। तो आइये आज हम आपको कैलाश पर्वत से जुड़े हुए कुछ रहस्य बताते हैं।
कैलाश पर्वत के रहस्य

रहस्य 1– रूस के वैज्ञानिको का ऐसा मानना है कि, कैलाश पर्वत आकाश और धरती के साथ इस तरह से केंद्र में है जहाँ पर चारों दिशाएँ मिल रही हैं। वहीँ रूसी विज्ञान का दावा है कि यह स्थान एक्सिस मुंडी है और इसी स्थान पर व्यक्ति अलौकिक शक्तियों से आसानी से संपर्क कर सकता है। धरती पर यह स्थान सबसे अधिक शक्तिशाली स्थान है।

रहस्य 2 – दावा किया जाता है कि आज तक कोई भी व्यक्ति कैलाश पर्वत के शिखर पर नहीं पहुच पाया है। वहीँ 11 सदी में तिब्बत के योगी मिलारेपी के यहाँ जाने का दावा किया जाता रहा है। किन्तु इस योगी के पास इस बात के सबूत नहीं थे या फिर वह खुद सबूत पेश नहीं करना चाहता था। इसलिए यह भी एक रहस्य है कि इन्होनें यहाँ कदम रखा या फिर वह कुछ बताना नहीं चाहते थे।

रहस्य 3 – कैलाश पर्वत पर दो झीलें हैं और यह दोनों ही रहस्य बनी हुई हैं। आज तक इनका भी रहस्य कोई खोज नहीं पाया है। एक झील साफ़ और पवित्र जल की है। इसका आकार सूर्य के समान बताया गया है। वहीँ दूसरी झील अपवित्र और गंदे जल की है तो इसका आकार चन्द्रमा के समान है। ऐसा कैसे हुआ है यह भी कोई नहीं जानता है।

रहस्य 4 – यहाँ के आध्यात्मिक और शास्त्रों के अनुसार रहस्य की बात करें तो कैलाश पर्वत पे कोई भी व्यक्ति शरीर के साथ उच्चतम शिखर पर नहीं पहुच सकता है। ऐसा बताया गया है कि, यहाँ पर देवताओं का आज भी निवास हैं। पवित्र संतों की आत्माओं को ही यहाँ निवास करने का अधिकार दिया गया है।

रहस्य 5 – कैलाश पर्वत का एक रहस्य यह भी बताया जाता है कि जब कैलाश पर बर्फ पिघलती है तो यहाँ से डमरू जैसी आवाज आती है। इसे कई लोगों ने सुना है। लेकिन इस रहस्य को आज तक कोई हल नहीं कर पाया है।

रहस्य 6 – कई बार कैलाश पर्वत पर सात तरह के प्रकाश आसमान में देखें गयें है। इसपर नासा का ऐसा मानना है कि यहाँ चुम्बकीय बल है और आसमान से मिलकर वह कई बार इस तरह की चीजों का निर्माण करता है।

रहस्य 7 – कैलाश पर्वत दुनिया के 4 मुख्य धर्म का केंद्र माना गया है। यहाँ कई साधू और संत अपने देवों से टेलीपेथी से संपर्क करते हैं। असल में यह आध्यात्मिक संपर्क होता है।

रहस्य 8 – कैलाश पर्वत का सबसे बड़ा रहस्य खुद विज्ञान ने साबित किया है कि यहाँ पर प्रकाश और ध्वनी के बीच इस तरह का समागम होता है कि यहाँ से की आवाजें सुनाई देती हैं।

अब आप समझ गये होंगे कि, कैलाश पर्वत क्यों आज भी इतना धार्मिक और वैज्ञानिक महत्त्व रखे हुए है। हर साल यहाँ दुनियाभर से कई लोग अनुभव लेने आते हैं, और सनातन धर्म के लिए कैलाश सबसे बड़ा आदिकालीन धार्मिक स्थल भी बना हुआ है।

  *🚩 ॐ नमः शिवाय 🔱*

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[: मृत संजीवनी मंत्र
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हिंदू धर्म में दो मंत्रों महामृत्युंजय तथा गायत्री मंत्र की बड़ी भारी महिमा बताई गई हैं। कहा जाता है कि इन दोनों मंत्रों में किसी भी एक मंत्र का सवा लाख जाप करके जीवन की बड़ी से बड़ी इच्छा को पूरा किया जा सकता है चाहे वो अमीर आदमी बनने की इच्छा हो या अपना पूरा भाग्य ही बदलना हो।

लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि हमारे ऋषि-मुनियों ने इन दोनों मंत्रों को मिलाकर एक अन्य मंत्र महामृत्युंजय गायत्री मंत्र अथवा मृत संजीवनी मंत्र का निर्माण किया था। इस मंत्र को संजीवनी विद्या के नाम से जाना जाता है। इस मंत्र के जाप से मुर्दा को भी जिंदा करना संभव है बशर्ते गुरू से इसका सही प्रयोग सीख लिया जाए। हालांकि भारतीय ऋषि-मुनि इस मंत्र के जाप के लिए स्पष्ट रूप से मना भी करते हैं।

क्या है महामृत्युंजय गायत्री (संजीवनी) मंत्र

ऊँ हौं जूं स: ऊँ भूर्भुव: स्व: ऊँ त्रयंबकंयजामहे
ऊँ तत्सर्वितुर्वरेण्यं ऊँ सुगन्धिंपुष्टिवर्धनम
ऊँ भर्गोदेवस्य धीमहि ऊँ उर्वारूकमिव बंधनान
ऊँ धियो योन: प्रचोदयात ऊँ मृत्योर्मुक्षीय मामृतात
ऊँ स्व: ऊँ भुव: ऊँ भू: ऊँ स: ऊँ जूं ऊँ हौं ऊँ

ऋषि शुक्राचार्य ने इस मंत्र की आराधना निम्न रूप में की थी जिसके प्रभाव से वह देव-दानव युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए दानवों को सहज ही जीवित कर सकें।

महामृत्युंजय मंत्र में जहां हिंदू धर्म के सभी 33 देवताओं (8 वसु, 11 रूद्र, 12 आदित्य, 1 प्रजापति तथा 1 वषट तथा ऊँ) की शक्तियां शामिल हैं वहीं गायत्री मंत्र प्राण ऊर्जा तथा आत्मशक्ति को चमत्कारिक रूप से बढ़ाने वाला मंत्र है।

संजीवनी मंत्र के जाप में निम्न बातों का ध्यान रखें

(1) जपकाल के दौरान पूर्ण रूप से सात्विक जीवन जिएं।
(2) मंत्र के दौरान साधक का मुंह पूर्व दिशा की ओर होना चाहिए।
(3) इस मंत्र का जाप शिवमंदिर में या किसी शांत एकांत जगह पर रूद्राक्ष की माला से ही करना चाहिए।
(4) मंत्र का उच्चारण बिल्कुल शुद्ध और सही होना चाहिए साथ ही मंत्र की आवाज होठों से बाहर नहीं आनी चाहिए।
(5) जपकाल के दौरान व्यक्ति को मांस, शराब, सेक्स तथा अन्य सभी तामसिक चीजों से दूर रहना चाहिए। उसे पूर्ण ब्रहमचर्य के साथ रहते हुए अपनी पूजा करनी चाहिए।

महामृत्युंजय गायत्री (संजीवनी) मंत्र का जाप का अभ्यास केवल गुरु के सानिध्य में ही करना चाहिये।

आध्यात्म विज्ञान के अनुसार संजीवनी मंत्र के जाप से व्यक्ति में बहुत अधिक मात्रा में ऊर्जा पैदा होती है जिसे हर व्यक्ति सहन नहीं कर सकता। नतीजतन आदमी या तो कुछ सौ जाप करने में ही पागल हो जाता है तो उसकी मृत्यु हो जाती है। इसे गुरू के सान्निध्य में सीखा जाता है और धीरे-धीरे अभ्यास के साथ बढ़ाया जाता है। इसके साथ कुछ विशेष प्राणायाम और अन्य यौगिक क्रियाएं भी सिखनी होती है ताकि मंत्र से पैदा हुई असीम ऊर्जा को संभाला जा सके। इसीलिए इन सभी चीजों से बचने के लिए इस मंत्र की साधना किसी अनुभवी गुरू के दिशा- निर्देश में ही करनी चाहिए।

मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् सानुवाद
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एवमारध्य गौरीशं देवं मृत्युञ्जयमेश्वरं ।मृतसञ्जीवनं नाम्ना कवचं प्रजपेत् सदा ॥१॥
गौरीपति मृत्युञ्जयेश्र्वर भगवान् शंकरकी विधिपूर्वक आराधना करनेके पश्र्चात भक्तको सदा मृतसञ्जीवन नामक कवचका सुस्पष्ट पाठ करना चाहिये ॥१॥

सारात् सारतरं पुण्यं गुह्याद्गुह्यतरं शुभं । महादेवस्य कवचं मृतसञ्जीवनामकं ॥ २॥
महादेव भगवान् शङ्करका यह मृतसञ्जीवन नामक कवचका तत्त्वका भी तत्त्व है, पुण्यप्रद है गुह्य और मङ्गल प्रदान करनेवाला है ॥२॥

समाहितमना भूत्वा शृणुष्व कवचं शुभं । शृत्वैतद्दिव्य कवचं रहस्यं कुरु सर्वदा ॥३॥
[आचार्य शिष्यको उपदेश करते हैं कि – हे वत्स! ] अपने मनको एकाग्र करके इस मृतसञ्जीवन कवचको सुनो । यह परम कल्याणकारी दिव्य कवच है । इसकी गोपनीयता सदा बनाये रखना ॥३॥

वराभयकरो यज्वा सर्वदेवनिषेवितः । मृत्युञ्जयो महादेवः प्राच्यां मां पातु सर्वदा ॥४॥
जरासे अभय करनेवाले, निरन्तर यज्ञ करनेवाले, सभी देवतओंसे आराधित हे मृत्युञ्जय महादेव ! आप पर्व-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥४॥

दधाअनः शक्तिमभयां त्रिमुखं षड्भुजः प्रभुः ।सदाशिवोऽग्निरूपी मामाग्नेय्यां पातु सर्वदा ॥५॥
अभय प्रदान करनेवाली शक्तिको धारण करनेवाले, तीन मुखोंवाले तथा छ: भुजओंवाले, अग्रिरूपी प्रभु सदाशिव अग्रिकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥५॥

अष्टदसभुजोपेतो दण्डाभयकरो विभुः । यमरूपि महादेवो दक्षिणस्यां सदावतु ॥६॥
अट्ठारह भुजाओंसे युक्त, हाथमें दण्ड और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सर्वत्र व्याप्त यमरुपी महादेव शिव दक्षिण-दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥६॥

खड्गाभयकरो धीरो रक्षोगणनिषेवितः । रक्षोरूपी महेशो मां नैरृत्यां सर्वदावतु ॥७॥
हाथमें खड्ग और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, धैर्यशाली, दैत्यगणोंसे आराधित रक्षोरुपी महेश नैर्ऋत्यकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥७॥

पाशाभयभुजः सर्वरत्नाकरनिषेवितः । वरुणात्मा महादेवः पश्चिमे मां सदावतु ॥८॥
हाथमें अभयमुद्रा और पाश धाराण करनेवाले, शभी रत्नाकरोंसे सेवित, वरुणस्वरूप महादेव भगवान् शंकर पश्चिम- दिशामें मेरी सदा रक्षा करें ॥८॥

गदाभयकरः प्राणनायकः सर्वदागतिः । वायव्यां मारुतात्मा मां शङ्करः पातु सर्वदा ॥९॥
हाथोंमें गदा और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, प्राणोमके रक्षाक, सर्वदा गतिशील वायुस्वरूप शंकरजी वायव्यकोणमें मेरी सदा रक्षा करें ॥९॥

शङ्खाभयकरस्थो मां नायकः परमेश्वरः । सर्वात्मान्तरदिग्भागे पातु मां शङ्करः प्रभुः ॥१०॥
हाथोंमें शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले नायक (सर्वमार्गद्रष्टा) सर्वात्मा सर्वव्यापक परमेश्वर भगवान् शिव समस्त दिशाओंके मध्यमें मेरी रक्षा करें ॥१०॥

शूलाभयकरः सर्वविद्यानमधिनायकः । ईशानात्मा तथैशान्यां पातु मां परमेश्वरः ॥११॥
हाथोंमें शंख और अभयमुद्रा धारण करनेवाले, सभी विद्याओंके स्वामी, ईशानस्वरूप भगवान् परमेश्व शिव ईशानकोणमें मेरी रक्षा करें ॥११॥

ऊर्ध्वभागे ब्रःमरूपी विश्वात्माऽधः सदावतु । शिरो मे शङ्करः पातु ललाटं चन्द्रशेखरः॥१२॥
ब्रह्मरूपी शिव मेरी ऊर्ध्वभागमें तथा विश्वात्मस्वरूप शिव अधोभागमें मेरी सदा रक्षा करें । शंकर मेरे सिरकी और चन्द्रशेखर मेरे ललाटकी रक्षा करें ॥१२॥

भूमध्यं सर्वलोकेशस्त्रिणेत्रो लोचनेऽवतु । भ्रूयुग्मं गिरिशः पातु कर्णौ पातु महेश्वरः ॥१३॥
मेरे भौंहोंके मध्यमें सर्वलोकेश और दोनों नेत्रोंकी त्रिनेत्र भगवान् शंकर रक्षा करें, दोनों भौंहोंकी रक्षा गिरिश एवं दोनों कानोंको रक्षा भगवान् महेश्वर करें ॥१३॥

नासिकां मे महादेव ओष्ठौ पातु वृषध्वजः । जिह्वां मे दक्षिणामूर्तिर्दन्तान्मे गिरिशोऽवतु ॥१४॥
महादेव मेरी नासीकाकी तथा वृषभध्वज मेरे दोनों ओठोंकी सदा रक्षा करें । दक्षिणामूर्ति मेरी जिह्वाकी तथा गिरिश मेरे दाँतोंकी रक्षा करें ॥१४॥

मृतुय्ञ्जयो मुखं पातु कण्ठं मे नागभूषणः । पिनाकि मत्करौ पातु त्रिशूलि हृदयं मम ॥१५॥
मृत्युञ्जय मेरे मुखकी एवं नागभूषण भगवान् शिव मेरे कण्ठकी रक्षा करें । पिनाकी मेरे दोनों हाथोंकी तथा त्रिशूली मेरे हृदयकी रक्षा करें ॥१५॥

पञ्चवक्त्रः स्तनौ पातु उदरं जगदीश्वरः । नाभिं पातु विरूपाक्षः पार्श्वौ मे पार्वतीपतिः ॥१६॥
पञ्चवक्त्र मेरे दोनों स्तनोकी और जगदीश्वर मेरे उदरकी रक्षा करें । विरूपाक्ष नाभिकी और पार्वतीपति पार्श्वभागकी रक्षा करें ॥१६॥

कटद्वयं गिरीशौ मे पृष्ठं मे प्रमथाधिपः । गुह्यं महेश्वरः पातु ममोरू पातु भैरवः ॥१७॥
गिरीश मेरे दोनों कटिभागकी तथा प्रमथाधिप पृष्टभागकी रक्षा करें । महेश्वर मेरे गुह्यभागकी और भैरव मेरे दोनों ऊरुओंकी रक्षा करें ॥१७॥

जानुनी मे जगद्दर्ता जङ्घे मे जगदम्बिका । पादौ मे सततं पातु लोकवन्द्यः सदाशिवः ॥१८॥
जगद्धर्ता मेरे दोनों घुटनोंकी, जगदम्बिका मेरे दोनों जंघोकी तथा लोकवन्दनीय सदाशिव निरन्तर मेरे दोनों पैरोंकी रक्षा करें ॥१८॥

गिरिशः पातु मे भार्यां भवः पातु सुतान्मम । मृत्युञ्जयो ममायुष्यं चित्तं मे गणनायकः ॥१९॥
गिरीश मेरी भार्याकी रक्षा करें तथा भव मेरे पुत्रोंकी रक्षा करें । मृत्युञ्जय मेरे आयुकी गणनायक मेरे चित्तकी रक्षा करें ॥१९॥

सर्वाङ्गं मे सदा पातु कालकालः सदाशिवः । एतत्ते कवचं पुण्यं देवतानां च दुर्लभम् ॥२०॥
कालोंके काल सदाशिव मेरे सभी अंगोकी रक्षा करें । [ हे वत्स ! ] देवताओंके लिये भी दुर्लभ इस पवित्र कवचका वर्णन मैंने तुमसे किया है ॥२०॥

मृतसञ्जीवनं नाम्ना महादेवेन कीर्तितम् । सह्स्रावर्तनं चास्य पुरश्चरणमीरितम् ॥२१॥
महादेवजीने मृतसञ्जीवन नामक इस कवचको कहा है । इस कवचकी सहस्त्र आवृत्तिको पुरश्चरण कहा गया है ॥२१॥

यः पठेच्छृणुयान्नित्यं श्रावयेत्सु समाहितः । सकालमृत्युं निर्जित्य सदायुष्यं समश्नुते ॥२२॥
जो अपने मनको एकाग्र करके नित्य इसका पाठ करता है, सुनता अथावा दूसरोंको सुनाता है, वह अकाल मृत्युको जीतकर पूर्ण आयुका उपयोग करता है ॥ २२॥

हस्तेन वा यदा स्पृष्ट्वा मृतं सञ्जीवयत्यसौ । आधयोव्याध्यस्तस्य न भवन्ति कदाचन ॥२३॥
जो व्यक्ति अपने हाथसे मरणासन्न व्यक्तिके शरीसका स्पर्श करते हुए इस मृतसञ्जीवन कवचका पाठ करता है, उस आसन्नमृत्यु प्राणीके भीतर चेतनता आ जाती है । फिर उसे कभी आधि-व्याधि नहीं होतीं ॥२३॥

कालमृयुमपि प्राप्तमसौ जयति सर्वदा । अणिमादिगुणैश्वर्यं लभते मानवोत्तमः ॥२४॥
यह मृतसञ्जीवन कवच कालके गालमें गये हुए व्यक्तिको भी जीवन प्रदान कर ‍देता है और वह मानवोत्तम अणिमा आदि गुणोंसे युक्त ऐश्वर्यको प्राप्त करता है ॥२४॥

युद्दारम्भे पठित्वेदमष्टाविशतिवारकं । युद्दमध्ये स्थितः शत्रुः सद्यः सर्वैर्न दृश्यते ॥२५॥
युद्ध आरम्भ होनेके पूर्व जो इस मृतसञ्जीवन कवचका २८ बार पाठ करके रणभूमिमें उपस्थित होता है, वह उस समय सभी शत्रुऔंसे अदृश्य रहता है ॥२५॥

न ब्रह्मादीनि चास्त्राणि क्षयं कुर्वन्ति तस्य वै । विजयं लभते देवयुद्दमध्येऽपि सर्वदा ॥२६॥
यदि देवतऔंके भी साथ युद्ध छिड जाय तो उसमें उसका विनाश ब्रह्मास्त्र भी नही कर सकते, वह विजय प्राप्त करता है ॥२६॥

प्रातरूत्थाय सततं यः पठेत्कवचं शुभं । अक्षय्यं लभते सौख्यमिह लोके परत्र च ॥२७॥
जो प्रात:काल उठकर इस कल्याणकारी कवच सदा पाठ करता है, उसे इस लोक तथा परलोकमें भी अक्षय्य सुख प्राप्त होता है ॥२७॥

सर्वव्याधिविनिर्मृक्तः सर्वरोगविवर्जितः । अजरामरणो भूत्वा सदा षोडशवार्षिकः ॥२८॥
वह सम्पूर्ण व्याधियोंसे मुक्त हो जाता है, सब प्रकारके रोग उसके शरीरसे भाग जाते हैं । वह अजर-अमर होकर सदाके लिये सोलह वर्षवाला व्यक्ति बन जाता है ॥२८॥

विचरव्यखिलान् लोकान् प्राप्य भोगांश्च दुर्लभान् । तस्मादिदं महागोप्यं कवचम् समुदाहृतम् ॥२९॥
इस लोकमें दुर्लभ भोगोंको प्राप्त कर सम्पूर्ण लोकोंमें विचरण करता रहता है । इसलिये इस महागोपनीय कवचको मृतसञ्जीवन नामसे कहा है ॥२९॥

मृतसञ्जीवनं नाम्ना देवतैरपि दुर्लभम् ॥३०॥
यह देवतओंके लिय भी दुर्लभ है ॥३०॥
॥ इति वसिष्ठ कृत मृतसञ्जीवन स्तोत्रम् ॥
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[ कैसे पहचानें कि दैवीय शक्ति आपकी मदद कर रही है?


– इन 11 संकेतों से कर सकते हैं आभास

दुनिया में बहुत से लोग ऐसे हैं जिन्हें उनके जीवन में दैवीय सहायता मिलती है। किसी को ज्यादा तो किसी को कम। कुछ तो ऐसे हैं जिनके माध्यम से दैवीय शक्तियां अच्छा काम करवाती हैं। सवाल यह उठता है कि आम व्यक्ति कैसे पहचानें कि उसकी दैवीय शक्तियां मदद कर रही है या उसकी पूजा-पाठ-प्रार्थना का असर हो रहा है? इन 11 संकेतों से हम इसको महसूस कर सकते हैं-

1. अच्छा चरित्र

शास्त्र कहते हैं कि दैवीय शक्तियां सिर्फ उसकी ही मदद करती है, जो दूसरों के दुख को समझता है, जो बुराइयों से दूर रहता है, जो नकारात्मक विचारों से दूर रहता है, जो नियमित अपने इष्ट की आराधना करता है या जो पुण्य के काम में लगा हुआ है। यदि आप समझते हैं कि मैं ऐसा ही हूं तो निश्चित ही दैवीय शक्तियां आपकी मदद कर रही हैं। आपको बस थोड़ा सा इस बात पर ध्यान देने की जरूरत है कि आप अच्छे मार्ग पर हैं और आपको ऊपरी शक्तियां देख रही हैं।

2. ब्रह्म मुहूर्त

विद्वान लोग कहते हैं कि यदि आपकी आंखें प्रतिदिन ब्रह्म मुहूर्त में अर्थात् रात्रि 3 से 5 के बीच अचानक ही खुल जाती हैं तो आप समझ जाएं कि दैवीय शक्तियां आपके साथ हैं, क्योंकि यही वह समय होता है जबकि देवता लोग जाग्रत रहते हैं। यदि आप अपने बचपन से लेकर जवानी तक इस समय के बीच उठते रहे हैं तो समझ जाएं कि दैवीय शक्तियां आपके माध्यम से कुछ करवाना चाहती हैं या कि वे आपको एक अच्छी आत्मा समझकर यह संकेत दे रही हैं कि अब उठ जाओ। यह जीवन सोने के लिए नहीं है। आपको दुनिया में बहुत कुछ करना है। यह भी कहा जाता है कि सत्व गुण प्रधान लोग इस काल में स्वत: ही उठ जाते हैं। आयुर्वेद के अनुसार इस समय बहने वाली वायु को अमृततुल्य कहा गया है। यह अमृत वेला होती है। कहते हैं कि इस काल में दुनिया के मात्र 13 प्रतिशत लोगों की ही नींद खुलती है।

3. सपने में देव दर्शन

यदि आपको बारंबार मंदिर या किसी देव स्थान के ही सपने आते रहते हैं। सपने में आप आसमान में ही उड़ते रहते हैं या सपने में आप देवी-देवताओं से वार्तालाप करते रहते हैं तो आप समझ जाइए कि दैवीय शक्तियां आप पर मेहरबान हैं।

4. पूर्वाभास

यदि आपको आने वाली घटनाओं का पहले से ही ज्ञान हो जाता है या आपको पूर्वाभास हो जाता है तो आप समझ जाइए कि दैवीय शक्तियों की आप पर कृपा है।

5. पारिवारिक प्रेम

आपकी पत्नी, बेटा, बेटी और आपके सभी परिजन आपकी आज्ञा का पालन कर रहे हैं, वे सभी आपसे प्यार करते हैं एवं आप भी उनसे प्यार कर रहे हैं तो आप समझ जाइए कि दैवीय शक्तियां आप से प्रसन्न हैं।

6. भाग्य से भी तेज

जीवन में आपको अचानक से लाभ प्राप्त हो जाता है। आपके किसी भी कार्य में किसी भी प्रकार की आपको बाधा उत्पन्न नहीं होती है और सभी कुछ आपको बहुत आसानी से मिल जाता है, तो आप समझ जाइए कि दैवीय शक्तियां आपकी मदद कर रही हैं।

7. सुगंधित वातावरण का अहसास

यदि कभी-कभी आपको यह महसूस होता है कि मेरे आसपास कोई है या आपको बिना किसी कारण ही अपने आसपास सुगंध का अहसास हो तो समझ जाइए कि अलौकिक शक्तियां आपके आसपास आपकी मदद के लिए हैं।

8. सुहानी हवा

आप पूजा कर रहे हैं और यदि आपको लगे कि अचानक सुहानी हवा का झोंका या प्रकाश पुंज आ गया और शरीर में सिहरन दौडऩे लगे। ऐसा तो पहले कभी हुआ नहीं तो समझिए कि देवी या देवता आप पर प्रसन्न हैं।

9. ठंडी हवा का घेरा

भूमि पर रहते हुए भी कभी-कभी आपको यह अहसास हो कि मेरे आसपास बादल या ठंडी हवा का एक पुंज है जिसने मुझे घेरा हुआ है तो आप समझ जाइए कि अलौकिक या दैवीय शक्ति ने आपको घेर रखा है। ऐसा अक्सर बहुत ज्यादा पूजा-पाठ करने वाले व्यक्ति के साथ होता है।

10. रोशनी का पुंज

अचानक ही आपको तेज रोशनी का पुंज दिखाई दे जिसकी कि आप कल्पना भी नहीं कर सकते या आपको अचानक ही कानों में मधुर संगीत सुनाई दे और आप आश्चर्य करें कि यहां आसपास तो कोई संगीत बज ही नहीं रहा फिर भी वह कानों में सीटी बजने की तरह सुनाई दे, तो आप समझ जाइए कि आप दैवीय शक्ति के सान्निध्य में हैं। ऐसा अक्सर उन लोगों के साथ होता है, जो निरंतर ही अपने इष्टदेव का मंत्र जप कर रहे होते हैं।

11. किसी की आवाज सुनाई देना

आप रात्रि में गहरी नींद में सो रहे हैं और आपको लगता है कि किसी ने मुझे आवाज दी और आप अचानक ही उठ जाते हैं, लेकिन फिर आपको आभास होता है कि यहां तो कोई नहीं है। लेकिन आवाज तो स्पष्ट थी। ऐसा आपके साथ कई बार हो जाता है तो आप समझ जाइए कि आप पर किसी अलौकिक शक्ति की मेहरबानी है। ऐसे में आप हनुमानजी का ध्यान करें और धन्यवाद दें।

Pawan Garg
ज्योतिषी और हस्तरेखाविद
मो. 9839760662
नोट- अगर आप अपना भविष्य जानना चाहते हैं तो ऊपर दिए गए मोबाइल नंबर पर कॉल करके या व्हाट्स एप पर मैसेज भेजकर पहले शर्तें जान लेवें, इसी के बाद अपनी बर्थ डिटेल और हैंडप्रिंट्स भेजें।
[ ज्योतिष शास्त्र के कुछ अचूक उपाय-
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संसार में बहुत से लोग हैं जिन्हे अपने जन्म समय, जन्म तिथि और जन्म स्थान के बारे में न तो पता है न ही उन्होंने कभी अपनी जन्मपत्रिका ही बनवाई है। ऐसी स्थिति में ज्योतिष विद्या मानव जीवन की अनेक समस्याओं का हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस के उपायों के द्वारा बेहद अचूक परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।अगर आपको जन्म का विवरण पता नहीं है तो आपके परिवार का कुम्बे का कोई भी सदस्य का जन्म विवरण ऊपर से आपके बारे में पूर्ण सटीक बताया जा सकता है।

🔸धन प्राप्ति के उपाय-

नमक को कभी भी खुले बर्तन में न रखे।
प्रतिदिन पीपल की जड़ में जल डालें।
अपने घर के प्रत्येक दरवाज़े के कब्ज़े में तेल लगाये ताकि उनमें से ‘चू चू’ की आवाज़ ना आये।
भोजन तैयार करते समय पहली रोटी गाय के लिए और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए निकले।
जब भी अपनी बहन या बुआ को घर पर आमंत्रित करें तो उसे खाली हाथ न भेजें ।
जब भी घर का फ़र्श साफ़ करें तो उसमे थोड़ा सा नमक मिला लें।

🔸धन के ठहराव के लिए उपाय-

नोटों की गिनती कभी भी उँगलियों पर थूक लगा कर न करें।
कभी भी सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू न लगाये।
बुधवार के दिन किसी भी किन्नर को हैसियत दान दे कर उससे कुछ पैसे वापिस ले लें।
बुधवार को किसी को भी पैसे उधार न दें।

🔸शीघ्र विवाह हेतु उपाय –

हमेशा अपने से बड़े व्यक्तियों और बुज़ुर्गों का सम्मान करें।
जब भी आप स्नान करें तो उसमें थोड़ा सा हल्दी पाउडर मिला लें।
अगर हो सके तो अपने घर पर एक खरगोश पाले और हर बुधवार को उसे हरी घास खाने को दें।
नव-विवाहित व्यक्ति के पुराने वस्त्रों का उपयोग करें।
देवगुरु बृहस्पति का पूजन करें।
जब कभी भी आप के माता-पिता आपके लिए वर देखने जाएं उस दिन लाल वस्त्र धारण करें और उनके वापिस लौटने तक अपने बाल खुले रखें।
रात को सोने से पूर्व अपने सिर के पास आठ खजूर और प्रातःकाल उसे चलते पानी में बहा दें।
शनिवार की रात्रि चौराहे पर नया बंद ताला चाभी के साथ रख आयें।

🔸सुखी विवाहित जीवन के लिए उपाय-
अपने जीवन साथी को कम आय के लिए कभी भी ताने न मारें।
प्रतिदिन प्रातः केले और पीपल के पेड़ का पूजन करें।
हमेशा अपना मासिक वेतन अपनी पत्नी को दें और उससे कह दें कि इसका उपयोग करने से पहले एक बार इसे तिजोरी में रख ले।
अपनी पत्नी का सम्मान सदैव ‘लक्ष्मी’ की भाँति ही करें।
पति के भोजन करने के उपरान्त पत्नी को पति की जूठी थाली में से कुछ भोजन ग्रहण करना चाहिए।

🔸बच्चों की शिक्षा सम्बन्धी कुछ उपाय-

बच्चों को 11 तुलसी-पत्र के रस में मिश्री मिलाकर दें इससे उनकी एकाग्रता में वृद्धि होगी।
प्रतिदिन सूर्य भगवान को जल अर्पित करें।
प्रतिदिन 21 बार गायत्री मंत्र का उच्चारण करें।
विद्यार्थी अपने अध्ययन कक्ष में विद्या की देवी माँ सरस्वती का चित्र लगायें।
इमली की 22 पत्तियाँ लें उनमें से 11 पत्तियाँ सूर्य देवता को अर्पित कर दें और शेष अपनी पुस्तक में रख लें।
रात्रि सोने से पूर्व 11 बार “ॐ ऐं सरस्वत्यै नमः” मंत्र का उच्चारण करें।
अपने अध्ययन कक्ष में हरे रंग के परदे लगायें।

🔸 स्वयं में विश्वास उत्पन्न करने के लिए उपाय –

रविवार को लाल रंग के बैल को गुड़ खिलायें।
अपने घर के मंदिर में लाल रंग के बैल का खिलौना रखें।
प्रतिदिन अपने दांत फिटकरी पाउडर से साफ़ करें।
शक्कर मिश्रित जल सूर्य भगवान को अर्पित करें।

🔸 रोगों से छुटकारा पाने हेतु उपाय –

दवाइयाँ शुरु करने से पहले उन्हें कुछ समय के लिए शिव मंदिर में रख दें।
अपनी शयन करने की चारपाई के चारों पाँवों में चांदी की कील लगायें।
जब भी जल पिएं उसमे थोड़ा सा गंगा जल दाल लें।
प्रतिदिन प्रातः हनुमान चालीसा और बजरंग बाण का पाठ करें।
अपने बुरे कर्मों के पिता परमेश्वर से क्षमा याचना करें।

🔸व्यवसाय में वृद्धि हेतु उपचार-
एक लाल रंग के कपड़े में थोड़ा सा लाल चन्दन पाउडर बांधे और उसे अपनी तिजोरी में रखें।
अपने व्यवसाय में अपनी पत्नी को हिस्सेदार बनाये।
आप अपने पहले ग्राहक से जो भी धनराशि कमाते हैं उसमें से कुछ धनराशि किसी जरूरतमंद को अवश्य दान करें।
प्रातः अपने घर से आप जब व्यवसाय वाले स्थान पर जाने के लिए निकले तो रास्ते में कही और न रुक कर सीधा अपने व्यवसाय वाले स्थान पर ही जाएं ।

🔸नौकरी प्राप्त करने हेतु उपाय –

“ॐ श्रीं श्रीं क्री ग्लो गं गणपतये वर वरदाय मम नमः” इस मंत्र का प्रतिदिन 108 बार जप करें।
रोजगार हेतु साक्षात्कार के लिए जाते समय एक चम्मच दही-शक्कर खा कर जाएँ।
साक्षात्कार के लिए घर से निकलते समय पहले दाहिना पैर बाहर निकालें और अपने परिवा र के सदस्य से आपके ऊपर से साबुत मूंग घुमा कर बाहर फैंकने के लिए कहें।
जब भी साक्षात्कार के लिये जायें तो जो भी मंदिर पहले आप के रास्ते में आये वहां पर नारियल चढ़ाये।
शीघ्र नौकरी प्राप्त करने के लिए शनि सम्बन्धी कुछ उपाय करें।

🔸कर्ज़ से छुटकारा पाने हेतु उपाय-

अपने घर और व्यवसाय के स्थान का मध्य स्थान खाली और साफ़ रखें।
अपने घर में ख़राब हुई वस्तुएँ जैसे बिजली का ख़राब सामान, ख़राब घड़ियाँ और अन्य ख़राब सामान न रखें।
अपने ऋण के बारें में बार-बार बात न करें।
अपने घर के गंदे जल का निकास उत्तर पूर्व की ओर रखें।
अपने कर्मचारियों का ध्यान रखे और सम्मान करें।…..
[ इस तरह जानिए शुभ मुहूर्त क्या है…

किसी भी कार्य का प्रारंभ करने के लिए शुभ लग्न और मुहूर्त को देखा जाता है। जानिए वह कौन-सा वार, तिथि, माह, वर्ष लग्न, मुहूर्त आदि शुभ है जिसमें मंगल कार्यों की शुरुआत की जाती है।

‘श्रेष्ठ दिन’

दिन और रात में दिन श्रेष्ठ है। वैदिक नियम अनुसार हर तरह का मंगल कार्य दिन में ही किया जाना चाहिए। अंतिम संस्कार और उसके बाद के क्रियाकर्म भी दिन में ही किए जाते हैं।

‘श्रेष्ठ मुहूर्त’

दिन-रात के 30 मुहूर्तों में ब्रह्म मुहूर्त ही श्रेष्ठ होता है। पुराने समय में जब बिजली नहीं होती थी तो लोग जल्दी सो जाते थे और ब्रह्म मुहूर्त में उठकर कार्य करने लगते थे। जबसे बिजली का अविष्कार हुआ तब से व्यक्ति की दिनचर्या ही बदल गई। ब्रह्म मुहूर्त में उठने के कई लाभ शास्त्रों में बताए गए हैं।

‘मुहूर्तों के नाम’

एक मुहूर्त 2 घड़ी अर्थात 48 मिनट के बराबर होता है। 24 घंटे में 1440 मिनट होते हैं। मुहूर्त सुबह 6 बजे से शुरू होता है:- रुद्र, आहि, मित्र, पितॄ, वसु, वाराह, विश्वेदेवा, विधि, सतमुखी, पुरुहूत, वाहिनी, नक्तनकरा, वरुण, अर्यमा, भग,गिरीश, अजपाद, अहिर, बुध्न्य, पुष्य, अश्विनी, यम, अग्नि, विधातॄ, क्ण्ड, अदिति जीव/अमृत, विष्णु, युमिगद्युति, ब्रह्म और समुद्रम।

‘श्रेष्ठ वार’

सात वारों में रवि, मंगल और गुरु श्रेष्ठ है। इनमें भी गुरुवार को सर्वश्रेष्ठ इसलिए माना गया है क्योंकि गुरु की दिशा ईशान है और ईशान में ही देवताओं का वास होता है।

‘श्रेष्ठ चौघड़िया’

दिन और रात के मिलाकर 7 चौघडि़या होते हैं जो वार अनुसार दिन और रात में बदलते रहते हैं। ये चौघड़िया है- शुभ, लाभ, अमृत, चर, काल, रोग, उद्वेग। शुभ, अमृत और लाभ चौघड़िया को ही श्रेष्ठ माना गया है उसमें भी शुभ चौघड़िया सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इसका स्वामी गुरु है। अमृत का चंद्रमा और लाभ का बुध है। प्रत्येक चौघड़िए की अवधि डेढ़ घंटा होती है। समयानुसार चौघड़िया को तीन भागों में बांटा जाता है शुभ, मध्यम और अशुभ चौघड़िया।

शुभ चौघडिया: शुभ (स्वामी गुरु), अमृत (स्वामी चंद्रमा), लाभ (स्वामी बुध)
मध्यम चौघडिया: चर (स्वामी शुक्र)
अशुभ चौघड़िया: उद्बेग (स्वामी सूर्य), काल (स्वामी शनि), रोग (स्वामी मंगल)

‘श्रेष्ठ पक्ष’

महीने में 15-15 दिन के दो पक्ष होते हैं। कृष्ण और शुक्ल पक्षों के दो मास में शुक्ल पक्ष श्रेष्ठ है। चंद्र के बढ़ने को शुक्ल और घटने को कृष्ण पक्ष कहते हैं। शुक्ल की पूर्णिमा और कृष्ण की अमावस्या होती है। दोनों पक्षों में शुक्ल पक्ष को ही शुभ कार्यों के श्रेष्ठ माना जाता है।

‘श्रेष्ठ एकादशी’

प्रत्येक पक्ष में एक एकादशी होती है इस मान में माह में दो एकादशी। प्रत्येक वर्ष 24 और अधिकमास हो तो 26 एकादशियां होती हैं। प्रत्येक एकादशी का अपना अलग ही लाभ और महत्व है। उनमें भी कार्तिक मास की देव प्रबोधिनी एकादशी श्रेष्ठ है। प्रदोष को भी श्रेष्ठ माना गया है।

‘श्रेष्ठ माह’

मासों में चैत्र, वैशाख, कार्तिक, ज्येष्ठ, श्रावण, अश्विनी, मार्गशीर्ष, माघ, फाल्गुन श्रेष्ठ माने गए हैं उनमें भी चैत्र और कार्तिक सर्वश्रेष्ठ है। हिन्दू मास के नाम:- चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन।

‘श्रेष्ठ पंचमी’

प्रत्येक माह में पंचमी आती है। उसमें माघ मास के शुक्ल पक्ष की बसंत पंचमी श्रेष्ठ है। सावन माह की नाग पंचमी भी श्रेष्ठ है।

‘श्रेष्ठ अयन’

छह माह का दक्षिणायन और छह का उत्तरायण होता है। दक्षिणायन और उत्तरायण मिलाकर एक वर्ष माना गया है। सूर्य जब दक्षिणायन होता है तो देव सो जाते हैं और उत्तरायण होता है तो देव उठ जाते हैं। अत: उत्तरायण श्रेष्ठ है।

‘श्रेष्ठ संक्रांति’

सूर्य की 12 संक्रांतियों में मकर संक्रांति ही श्रेष्ठ है। सूर्यदेव जब धनु राशि से मकर पर पहुंचते हैं तो
मकर संक्रांति मनाई जाती है। इस समय सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायन हो जाता है। सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं। 12 संक्रांतियों में से चार- मेष, कर्क, तुला और मकर संक्रांति महत्वपूर्ण हैं।

‘श्रेष्ठ ऋ‍तु’

छह ऋतुओं में वसंत और शरद ऋतु ही श्रेष्ठ है। 1. बसंत ऋतु, 2.ग्रीष्म ऋतु, 3.वर्षा ऋतु, 4.शरद ऋतु, 5.हेमन्त ऋतु, 6.शिशिर ऋतु।

‘श्रेष्ठ नक्षत्र’

नक्षत्र 27 होते हैं उनमें कार्तिक मास में पड़ने वाला पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ है। इसके अलावा अश्विनी, रोहिणी, मृगशिरा, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, अनुराधा, उत्तराषाढ़ा, श्रावण, धनिष्ठा, शतभिषा, उत्तरा भाद्रपद, रेवती नक्षत्र शुभ माने गए हैं।

शुभ मुहूर्त क्या है?

मुहूर्त दो तरह के होते हैं शुभ मुहूर्त और अशुभ मुहूर्त। शुभ को ग्राह्य समय और अशुभ को अग्राह्‍य समय कहते हैं। शुभ मुहूर्त में रुद्र, श्‍वेत, मित्र, सारभट, सावित्र, वैराज, विश्वावसु, अभिजित, रोहिण, बल, विजय, र्नेत, वरुण सौम्य और भग ये 15 मुहूर्त है।

रवि के दिन 14वां, सोमवार के दिन 12वां, मंगलवार के दिन 10वां, बुधवार के दिन 8वां, गुरु के दिन 6टा, शुक्रवार के दिन 4था और शनिवार के दिन दूसरा मुहूर्त कुलिक शुभ कार्यों में वर्जित हैं।
[: यज्ञ विशेष
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यज्ञ दो प्रकार के होते है- श्रौत और स्मार्त। श्रुति पति पादित यज्ञो को श्रौत यज्ञ और स्मृति प्रतिपादित यज्ञो को स्मार्त यज्ञ कहते है। श्रौत यज्ञ में केवल श्रुति प्रतिपादित मंत्रो का प्रयोग होता है और स्मार्त यज्ञ में वैदिक पौराणिक और तांत्रिक मंन्त्रों का प्रयोग होता है। वेदों में अनेक प्रकार के यज्ञों का वर्णन मिलता है। किन्तु उनमें पांच यज्ञ ही प्रधान माने गये हैं – 1. अग्नि होत्रम, 2. दर्शपूर्ण मासौ, 3. चातुर्म स्यानि, 4. पशुयांग, 5. सोमयज्ञ, ये पाॅंच प्रकार के यज्ञ कहे गये है, यह श्रुति प्रतिपादित है। वेदों में श्रौत यज्ञों की अत्यन्त महिमा वर्णित है। श्रौत यज्ञों को श्रेष्ठतम कर्म कहा है कुल श्रौत यज्ञो को १९ प्रकार से विभक्त कर उनका संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।

1👉 स्मार्त यज्ञः- विवाह के अनन्तर विधिपूर्वक अग्नि का स्थापन करके जिस अग्नि में प्रातः सायं नित्य हनादि कृत्य किये जाते है। उसे स्मार्ताग्नि कहते है। गृहस्थ को स्मार्ताग्नि में पका भोजन प्रतिदिन करना चाहिये।

2👉 श्रोताधान यज्ञः-
दक्षिणाग्नि विधिपूर्वक स्थापना को श्रौताधान कहते है। पितृ संबंधी कार्य होते है।

3👉 दर्शभूर्णमास यज्ञः-
अमावस्या और पूर्णिमा को होने वाले यज्ञ को दर्श और पौर्णमास कहते है। इस यज्ञ का अधिकार सपत्नीक होता है। इस यज्ञ का अनुष्ठान आजीवन करना चाहिए यदि कोई जीवन भर करने में असमर्थ है तो 30 वर्ष तक तो करना चाहिए।

4👉 चातुर्मास्य यज्ञः-
चार-चार महीने पर किये जाने वाले यज्ञ को चातुर्मास्य यज्ञ कहते है इन चारों महीनों को मिलाकर चतुर्मास यज्ञ होता है।

5👉 पशु यज्ञः-
प्रति वर्ष वर्षा ऋतु में या दक्षिणायन या उतरायण में संक्रान्ति के दिन एक बार जो पशु याग किया जाता है। उसे निरूढ पशु याग कहते है।

6👉 आग्रजणष्टि (नवान्न यज्ञ) :-
प्रति वर्ष वसन्त और शरद ऋतुओं नवीन अन्न से यज्ञ गेहूॅं, चावल से जा यज्ञ किया जाता है उसे नवान्न कहते है।

7👉 सौतामणी यज्ञ (पशुयज्ञ) :-
इन्द्र के निमित्त जो यज्ञ किया जाता है सौतामणी यज्ञ इन्द्र संबन्धी पशुयज्ञ है यह यज्ञ दो प्रकार का है। एक वह पांच दिन में पुरा होता है। सौतामणी यज्ञ में गोदुग्ध के साथ सुरा (मद्य) का भी प्रयोग है। किन्तु कलियुग में वज्र्य है। दूसरा पशुयाग कहा जाता है। क्योकि इसमें पांच अथवा तीन पशुओं की बली दी जाती है।

8👉 सोम यज्ञः-
सोमलता द्वारा जो यज्ञ किया जाता है उसे सोम यज्ञ कहते है। यह वसन्त में होता है यह यज्ञ एक ही दिन में पूर्ण होता है। इस यज्ञ में 16 ऋत्विक ब्राह्मण होते है।

9👉 वाजपये यज्ञः-
इस यज्ञ के आदि और अन्त में वृहस्पति नामक सोम यग अथवा अग्निष्टोम यज्ञ होता है यह यज्ञ शरद रितु में होता है।

10👉 राजसूय यज्ञः-
राजसूय या करने के बाद क्षत्रिय राजा समाज चक्रवर्ती उपाधि को धारण करता है।

11👉 अश्वमेघ यज्ञ:-
इस यज्ञ में दिग्विजय के लिए (घोडा) छोडा जाता है। यह यज्ञ दो वर्ष से भी अधिक समय में समाप्त होता है। इस यज्ञ का अधिकार सार्वभौम चक्रवर्ती राजा को ही होता है।

12👉 पुरूष मेघयज्ञ:-
इस यज्ञ समाप्ति चालीस दिनों में होती है। इस यज्ञ को करने के बाद यज्ञकर्ता गृह त्यागपूर्वक वान प्रस्थाश्रम में प्रवेश कर सकता है।

13👉 सर्वमेघ यज्ञ:-
इस यज्ञ में सभी प्रकार के अन्नों और वनस्पतियों का हवन होता है। यह यज्ञ चैंतीस दिनों में समाप्त होता है।

14👉 एकाह यज्ञ:-
एक दिन में होने वाले यज्ञ को एकाह यज्ञ कहते है। इस यज्ञ में एक यज्ञवान और सौलह विद्वान होते है।

15👉 रूद्र यज्ञ:-
यह तीन प्रकार का होता हैं रूद्र महारूद्र और अतिरूद्र रूद्र यज्ञ 5-7-9 दिन में होता हैं महारूद्र 9-11 दिन में होता हैं। अतिरूद्र 9-11 दिन में होता है। रूद्रयाग में 16 अथवा 21 विद्वान होते है। महारूद्र में 31 अथवा 41 विद्वान होते है। अतिरूद्र याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते है। रूद्रयाग में हवन सामग्री 11 मन, महारूद्र में 21 मन अतिरूद्र में 70 मन हवन सामग्र्री लगती है।

16👉 विष्णु यज्ञ:-
यह यज्ञ तीन प्रकार का होता है। विष्णु यज्ञ, महाविष्णु यज्ञ, अति विष्णु योग- विष्णु योग में 5-7-8 अथवा 9 दिन में होता है। विष्णु याग 9 दिन में अतिविष्णु 9 दिन में अथवा 11 दिन में होता हैं विष्णु याग में 16 अथवा 41 विद्वान होते है। अति विष्णु याग में 61 अथवा 71 विद्वान होते है। विष्णु याग में हवन सामग्री 11 मन महाविष्णु याग में 21 मन अतिविष्णु याग में 55 मन लगती है।

17👉 हरिहर यज्ञ:-
हरिहर महायज्ञ में हरि (विष्णु) और हर (शिव) इन दोनों का यज्ञ होता है। हरिहर यज्ञ में 16 अथवा 21 विद्वान होते है। हरिहर याग में हवन सामग्री 25 मन लगती हैं। यह महायज्ञ 9 दिन अथवा 11 दिन में होता है।

18👉 शिव शक्ति महायज्ञ:-
शिवशक्ति महायज्ञ में शिव और शक्ति (दुर्गा) इन दोनों का यज्ञ होता है। शिव यज्ञ प्रातः
काल और श शक्ति (दुर्गा) इन दोनों का यज्ञ होता है। शिव यज्ञ प्रातः काल और मध्याहन में होता है। इस यज्ञ में हवन सामग्री 15 मन लगती है। 21 विद्वान होते है। यह महायज्ञ 9 दिन अथवा 11 दिन में सुसम्पन्न होता है।

19👉 राम यज्ञ:-
राम यज्ञ विष्णु यज्ञ की तरह होता है। रामजी की आहुति होती है। रामयज्ञ में 16 अथवा 21 विद्वान हवन सामग्री 15 मन लगती है। यह यज्ञ 8 दिन में होता है।

20👉 गणेश यज्ञ:-
गणेश यज्ञ में एक लाख (100000) आहुति होती है। 16 अथवा 21 विद्वान होते है। गणेशयज्ञ में हवन सामग्री 21 मन लगती है। यह यज्ञ 8 दिन में होता है।

21👉 ब्रह्म यज्ञ (प्रजापति यज्ञ):-
प्रजापत्ति याग में एक लाख (100000) आहुति होती हैं इसमें 16 अथवा 21 विद्वान होते है। प्रजापति यज्ञ में 12 मन सामग्री लगती है। 8 दिन में होता है।

22👉 सूर्य यज्ञ:-
सूर्य यज्ञ में एक करोड़ 10000000 आहुति होती है। 16 अथवा 21 विद्वान होते है। सूर्य यज्ञ 8 अथवा 21 दिन में किया जाता है। इस यज्ञ में 12 मन हवन सामग्री लगती है।

23👉 दूर्गा यज्ञ:-
दूर्गा यज्ञ में दूर्गासप्त शती से हवन होता है। दूर्गा यज्ञ में हवन करने वाले 4 विद्वान होते है। अथवा 16 या 21 विद्वान होते है। यह यज्ञ 9 दिन का होता है। हवन सामग्री 10 मन अथवा 15 मन लगती है।

24👉 लक्ष्मी यज्ञ:-
लक्ष्मी यज्ञ में श्री सुक्त से हवन होता है। लक्ष्मी यज्ञ (100000) एक लाख आहुति होती है। इस यज्ञ में 11 अथवा 16 विद्वान होते है। या 21 विद्वान 8 दिन में किया जाता है। 15 मन हवन सामग्री लगती है।

25👉 लक्ष्मी नारायण महायज्ञ:-
लक्ष्मी नारायण महायज्ञ में लक्ष्मी और नारायण का ज्ञन होता हैं प्रात लक्ष्मी दोपहर नारायण का यज्ञ होता है। एक लाख 8 हजार अथ्वा 1 लाख 25 हजार आहुतियां होती है। 30 मन हवन सामग्री लगती है। 31 विद्वान होते है। यह यज्ञ 8 दिन 9 दिन अथवा 11 दिन में पूरा होता है।

26👉 नवग्रह महायज्ञ:-
नवग्रह महायज्ञ में नव ग्रह और नव ग्रह के अधिदेवता तथा प्रत्याधि देवता के निर्मित आहुति होती हैं नव ग्रह महायज्ञ में एक करोड़ आहुति अथवा एक लाख अथवा दस हजार आहुति होती है। 31, 41 विद्वान होते है। हवन सामग्री 11 मन लगती है। कोटिमात्मक नव ग्रह महायज्ञ में हवन सामग्री अधिक लगती हैं यह यज्ञ ९ दिन में होता हैं इसमें 1,5,9 और 100 कुण्ड होते है। नवग्रह महायज्ञ में नवग्रह के आकार के 9 कुण्डों के बनाने का अधिकार है।

27👉 विश्वशांति महायज्ञ:-
विश्वशांति महायज्ञ में शुक्लयजुर्वेद के 36 वे अध्याय के सम्पूर्ण मंत्रों से आहुति होती है। विश्वशांति महायज्ञ में सवा लाख (123000) आहुति होती हैं इस में 21 अथवा 31 विद्वान होते है। इसमें हवन सामग्री 15 मन लगती है। यह यज्ञ 9 दिन अथवा 4 दिन में होता है।

28👉 पर्जन्य यज्ञ (इन्द्र यज्ञ):-
पर्जन्य यज्ञ (इन्द्र यज्ञ) वर्षा के लिए किया जाता है। इन्द्र यज्ञ में तीन लाख बीस हजार (320000) आहुति होती हैं अथवा एक लाख 60 हजार (160000) आहुति होती है। 31 मन हवन सामग्री लगती है। इस में 31 विद्वान हवन करने वाले होते है। इन्द्रयाग 11 दिन में सुसम्पन्न होता है।

29👉 अतिवृष्टि रोकने के लिए यज्ञ:-
अनेक गुप्त मंत्रों से जल में 108 वार आहुति देने से घोर वर्षा बन्द हो जाती है।

30👉 गोयज्ञ:-
वेदादि शास्त्रों में गोयज्ञ लिखे है। वैदिक काल में बडे-बडे़ गोयज्ञ हुआ करते थे। भगवान श्री कृष्ण ने भी गोवर्धन पूजन के समय गौयज्ञ कराया था। गोयज्ञ में वे वेदोक्त दोष गौ सूक्तों से गोरक्षार्थ हवन गौ पूजन वृषभ पूजन आदि कार्य किये जाते है। जिस से गौसंरक्षण गौ संवर्धन, गौवंशरक्षण, गौवंशवर्धन गौमहत्व प्रख्यापन और गौसड्गतिकरण आदि में लाभ मिलता हैं गौयज्ञ में ऋग्वेद के मंत्रों द्वारा हवन होता है। इस में सवा लाख 250000 आहुति होती हैं गौयाग में हवन करने वाले 21 विद्वान होते है। यह यज्ञ 8 अथवा 9 दिन में सुसम्पन्न होता है।
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