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: रोग निवारण के कुछ पारंपरिक उपाय? मानो न मानो आपकी इच्छा तर्क वितर्क न करें।

जिस घर में जब कोई रोग आ जाता है तो उस रोगी के साथ साथ उस घर के सभी व्यक्ति भी मानसिक रूप से चिंता और आशांति का अनुभव करने लगते है , लेकिन कुछ छोटी छोटी बातो को ध्यान में रखकर हम हालत पर काबू पा सकते है , शीघ्र स्वास्थ्य लाभ प्राप्त कर सकते है ।

1.यदि आपके परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तो अगर संभव हो तो उसे सोमवार को डॉक्टर को दिखाएँ और उसकी दवा की पहली खुराक भगवान शिव को अर्पित करके कुछ राशी भी चड़ा दें और रोगी व्यक्ति के शीघ्र स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना करें , व्यक्ति के बहुत जल्दी ही ठीक हो जाने की सम्भावना बन जाती है ।

2.हर पूर्णिमा को किसी भी शिव मंदिर में भगवान भोलेनाथ से अपने परिवार को निरोग रखने की प्रार्थना रखें ,तत्पश्चात मंदिर में और गरीबों में कुछ ना कुछ फल,मिठाई और नगद दान अवश्य दें ।

3.रोगी व्यक्ति को मंगलवार और शनिवार किसी भी दिन हनुमान जी की मूर्ति से सिंदूर लेकर उसके माथे पर लगाने से उसका दिल मजबूत होता है और रोगी जल्दी स्वस्थ भी होता है ।

4.यदि कोई बीमार व्यक्ति प्रात: काल एक गिलास पानी लेकर पूर्व दिशा की ओर मुंह करके खड़े होकर एँ मन्त्र का 21 बार जाप करके पी जाय एवं ईश्वर से अपने रोग को दूर करने के लिए प्रार्थना करें तो शीघ्र ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है। यह प्रयोग सोमवार से शुरू करके रविवार तक लगातार 7 दिन तक करना चाहिए ।

5.अशोक के वृक्ष की ताजा तीन पत्तियों को प्रतिदिन प्रातः चबाने से चिंताओं से मुक्ति मिलती है और स्वास्थ्य भी उत्तम बना रहता है ।

6.यदि किसी बीमार व्यक्ति का रोग ठीक ना हो रहा हो तो उसके तकिये के नीचे सहदेई और पीपल की जड़ रखने से बीमारी जल्दी ठीक होती है ।

7.यदि किसी रोगी को मृत्युतुल्य पीड़ा हो रही हो , तो जौ के आटे ( बाजार में यह आसानी से उपलब्ध है ) में काले तिल और सरसों का तेल मिला कर रोटी बना कर रोगी के ऊपर से 7 बार उतार कर किसी भैंसे को खिलाएं त्वरित लाभ मिलता है ।

8.सूर्य जब भी मेष राशी में ( 13 से 15 अप्रैल ) में प्रवेश करें तो प्रात: काल नीम की ताजी कपोलें गुड़ व मसूर के साथ पीस कर खाने से वर्ष भर रोग दूर रहते है , यह घर के सभी छोटे बड़े व्यक्तियों को खाना चाहिए ।

9.यदि कोई व्यक्ति लम्बे समय से बीमार है तो उसे घर के दक्षिण पश्चिम कोने ( नैत्रत्य कोण ) के कमरे में दक्षिण दिशा में सर रखकर सुलाएं , उनकी दवाएं और जल कमरे के ईशान कोण में रखें । ध्यान रखें रोगी व्यक्ति अपनी दवाएं और अपना खाना पीना ईशान कोण अथवा पूर्व की तरफ मुंह करके ही खाएं ।

10.यदि घर का कोई व्यक्ति अधिक समय से बीमार हो तो उसके तकिये के नीचे मणिक्य रखने से वह जल्दी स्वस्थ होता है ।

11.सभी रोगों में पीपल की सेवा से बहुत लाभ प्राप्त होता है , रविवार को छोड़कर नियमित रूप से पीपल के वृक्ष पर प्रात: मीठा जल चड़ाकर उसकी जड़ जो छूकर अपने माथे से लगायें पुरुष पीपल की 7 परिक्रमा करें स्त्री ना करें और अपने रोग को दूर करने की प्रार्थना करें अति शीघ्र लाभ मिलता है ।

12.यदि आपके परिवार में कोई लम्बे समय से बीमार है तो आप प्रति माह कम से कम एक बार किसी भी अस्पताल में जाकर गरीबों में अपनी सामर्थ्यानुसार दवा एवं फलों का वितरण अवश्य करें, इससे रोगी को भी लाभ होगा और घर के अन्य सभी सदस्य भी निरोगी रहेंगे। यह बहुत ही चमत्कारी और सिद्ध प्रयोग है ।

13.यदि आप कभी किसी भी बीमार व्यक्ति को देखने जाएँ तो फूल और फल लेकर अवश्य जाएँ और यदि संभव हो तो कुछ ना कुछ नकद राशी भी अवश्य दें , इससे आपके परिवार का सदैव रोगों से बचाव होगा ।

14.रोगी व्यक्ति को पान में गुलाब की सात पंखुडियां खिलाने से अगर उसको कोई नजर लगी है तो उससे छुटकारा मिलता है और दवा भी जल्दी असर करती है ।

15..यदि कोई व्यक्ति मरणासन्न अवस्था में हो उसके बचने की कोई आशा ना हो परन्तु उसके प्राण भी नहीं निकल रहें हो तो उसके हाथ से नमक का दान करवाना चाहिए ।

  1. स्वस्थ शरीर के लिए एक रुपये का सिक्का लें। रात को उसे सिरहाने रख कर सो जाएं। प्रातः इसे ष्मशान की सीमा में फेंक आएं। शरीर स्वस्थ रहेगा।
  2. यदि कोई व्यक्ति काफी समय से बीमार है तो एक नारियल से उसकी नज़र उतार कर उस नारियल को तंदूर/अंगीठी/हवनकुंड अथवा किसी तसले में आग जलाकर उसमें जलाने से रोगी अति शीघ्र स्वस्थ होने लगता है ।
  3. सात जटा वाले नारियल शुक्ल पक्ष के सोमवार को ॐ नमा शिवाये मन्त्र का जाप करते हुए नदी में प्रवाहित करने से उस व्यक्ति के घर से रोग और दरिद्रता का नाश होता है ।
  4. रोगी के पीने वाले जल में थोड़ा सा गंगाजल मिला दीजिये ,वह जब भी जल पिए उसे वह जल ही पीने को दिया जाय……. शीघ्र स्वास्थ्य लाभ मिलेगा ।
  5. जिस व्यक्ति की तबियत ख़राब रहती है उसके पलंग की पाए में चाँदी के तार में एक गोमती चक्र बांध दें स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानी दूर होने लगेगी । ( गोमती चक्र को पहले गंगाजल में धोकर घर के मंदिर में रखकर तिलक लगाकर धुप/दीप/अगरबत्ती दिखाकर शुद्ध कर लें।)
  6. एक देसी पान,गुलाब का फूल और ग्यारह बताशे बीमार व्यक्ति के ऊपर से 31 बार उतार कर किसी चौराहे पर रख दें ध्यान रहे कोई टोके नहीं ….व्यक्ति को शीघ्रता से स्वास्थ्य लाभ मिलने लगेगा ।
  7. यदि कोई व्यक्ति तमाम इलाज के बाद भी बीमार रहता है तो पुष्य नक्षत्र में सहदेवी की जड़ उसके पास रखिये …..रोग दूर लगेगा ।

23.पीपल के वृक्ष को प्रातः 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी वार से शुरू करके 7 दिन तक करें। बीमार व्यक्ति को आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।

  1. किसी कब्र या दरगाह पर सूर्यास्त के पश्चात् तेल का दीपक जलाएं। अगरबत्ती जलाएं और बताशे रखें, फिर वापस मुड़ कर न देखें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा।
  2. धोबी के घर से तुरंत धुलकर आये वस्त्रों को मन ही मन रोगी के अच्छे स्वास्थ्य की प्रार्थना करते हुए रोगी के शरीर से स्पर्श करा देने से बहुत जल्दी आराम मिलता है ।
  3. हर माह के प्रथम सोमवार को सुबह सवेरे अपने ईष्ट देव का नाम लेते हुए थोड़ी सी पीली सरसों अपने सर पर से 7 बार घुमाकर घर से बाहर फ़ेंक दें …..रोग आपके पास भी नहीं आयेंगे ।
  4. यदि घर में आपकी माता जी को निरंतर कोई रोग सता रहा है तो सोमवार के दिन 121 किसी भी साइज़ के पेड़े लेकर बच्चो और गरीबों में बाँट दें ……निश्चय ही रोग में आराम मिलेगा ।
  5. अशोक के ताजे तीन पत्ते सुबह सुबह रोजाना बिना कुछ खाए चबाये जाएँ तो व्यक्ति शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ रहता है ….इसके सेवन से रोग और चिन्ताओं का भी नाश होता है।
  6. सदैव ध्यान दें भैया दूज (यम दीतिया) के दिन बहन के घर उसके हाथ से बना भोजन करने से, गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु के घर/मंदिर से प्रसाद लेकर खाने से, बसंत पंचमी के दिन पत्नी के हाथ से बने पीले चावल खाने से एवं मात्र नवमी के दिन माँ के हाथ से बना भोजन करने से व्यक्ति निरोगी रहता है उसकी आयु में निसंदेह वृद्धि होती है।
  7. स्वस्थ जीवन जीने के लिये रात्रि को अपने सिरहाने पानी किसी लोटे या गिलास में रख दें। सुबह उसे पी कर बर्तन को उल्टा रख दें तथा दिन में भी पानी पीने के बाद बर्तन को उल्टा रखने से व्यक्ति सदैव स्वस्थ बना रहता है।
  8. बाजार से कपास के थोड़े से फूल खरीद लें। रविवार शाम 5 फूल, आधा गिलास पानी में साफ कर के भिगो दें। सोमवार को प्रात: उठ कर फूल को निकाल कर फेंक दें तथा बचे हुए पानी को पी जाएं। जिस पात्र में पानी पीएं, उसे कहीं पर भी उल्टा कर के रख दें। कुछ ही दिनों में आश्चर्यजनक स्वास्थ्य लाभ अनुभव करेंगे।
  9. रात्रि के समय शयन कक्ष में कपूर जलाने से पितृ दोष का नाश होता है, घर में शांति बनी रहती है, बुरे स्वप्न नहीं आते है और सभी प्रकार के रोगों से भी छुटकारा मिलता है ।
  10. पूर्णिमा के दिन रात्रि में घर में खीर बनाएं। ठंडी होने पर उसका मंदिर में मां लक्ष्मी को भोग लगाएं एवं चन्द्रमा और अपने पितरों का मन ही मन स्मरण करें और कुछ खीर काले कुत्तों को दे दें। ऐसा वर्ष भर पूर्णिमा में करते रहने से घर में सुख शांति, निरोगिता एवं हर्ष और उल्लास का वातावरण बना रहता है धन की कभी भी कमी नहीं रहती है ।
  11. घर में कोई बीमार हो जाए तो उस रोगी को शहद में चन्दन मिला कर चटाएं |
  12. यदि घर में पुत्र बीमार हो तो कन्याओं को हलवा खिलाएं एवं पीपल के पेड़ की लकड़ी को सिरहाने रखें।
  13. जिस घर में स्त्रीवर्ग को निरन्तर स्वास्थ्य की पीड़ाएँ रहती हो, उस घर में तुलसी का पौधा लगाकर उसकी श्रद्धापूर्वक देखशल करने, संध्या के समय घी का दीपक जलाने से रोग पीड़ाएँ शीघ्र ही समाप्त होती है।
  14. यदि घर में किसी की तबियत ज्यादा ख़राब लग रही है तो रविवार के दिन बूंदी के सवा किलो लड्डू किसी भी धार्मिक स्थान चड़ा कर उसका कम से कम 75% वहीँ पर प्रसाद के रूप में बांटे।
  15. अगर परिवार में कोई परिवार में कोई व्यक्ति बीमार है तथा लगातार दवा सेवन के पश्चात् भी स्वास्थ्य लाभ नहीं हो रहा है, तो किसी भी रविवार से लगातार 3 दिन तक गेहूं के आटे का पेड़ा तथा एक लोटा पानी व्यक्ति के सिर के ऊपर से उसार कर जल को पौधे में डाल दें तथा पेड़ा गाय को खिला दें। इन 3 दिनों के अन्दर व्यक्ति अवश्य ही स्वस्थ महसूस करने लगेगा। अगर इस अवधि में रोगी ठीक हो जाता है, तो भी इस प्रयोग को अवश्य पूरा करना चाहिए।
  16. पीपल के वृक्ष को प्रात: 12 बजे के पहले, जल में थोड़ा दूध मिला कर सींचें और शाम को तेल का दीपक और अगरबत्ती जलाएं। ऐसा किसी भी दिन से शुरू करके 7 दिन तक करें ( अगर सोमवार से शुरू करें तो अति उत्तम होगा )। रोग से ग्रस्त व्यक्ति को जल्दी ही आराम मिलना प्रारम्भ हो जायेगा।
  17. शुक्रवार रात को मुठ्ठी भर काले साबुत चने भिगोयें। शनिवार की शाम उन्हें छानकर काले कपड़े में एक कील और एक काले कोयले के टुकड़े के साथ बांध दें । फिर इस पोटली को रोगी के ऊपर से 7 बार वार कर किसी तालाब या कुएं में फेंक दें। ऐसा लगातार 3 शनिवार करें। बीमार व्यक्ति शीघ्र अच्छा हो जायेगा|
  18. यदि कोई प्राणी कहीं देर तक बैठा हो और उसके हाथ या पैर सुन्न हो जाएँ तो जो अंग सुन्न हो गया हो, उस पर उंगली से 27 का अंक लिख दीजिये, उसका सुन्न अंग तुरंत ठीक हो जाएगा।
  19. काले तिल और जौ का आटा तेल में गूंथकर एक मोटी रोटी बनाकर उसे अच्छी तरह सेंकें। गुड को तेल में मिश्रित करके जिस व्यक्ति के मरने की आशंका हो, उसके सिर पर से 7 बार उतार कर मंगलवार या शनिवार को किसी भैंस को खिला दें।यह क्रिया करते समय ईश्वर से रोगी को शीघ्र स्वस्थ करने की प्रार्थना करते रहें।
  20. गुड के गुलगुले सवाएं लेकर उसे 7 बार रोगी के सर से उतार कर मंगलवार या शनिवार व इतवार को चील-कौए को डाल दें, रोगी को तुरंत राहत मिलने लगती है।
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    मिटटी के लाभकारी परिणाम !!
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    ज्योतिष शास्त्र में मिट्टी को मंगल का कारक कहा जाता है। मंगल के दोष निवारण के लिए मिट्टी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इतना ही नहीं मिट्टी को सुख-शांति और सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है। प्राकृतिक चिकित्सा विज्ञान में मिट्टी को बहुत ही अच्छा कहा जाता है। कई बीमारियों का इलाज भी मिट्टी से किया जाता है। यही नहीं मिट्टी के बर्तनों में बना खाना स्वास्थ्य के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मिट्टी के वर्तन में खाना पकाने और उसमें खाना खाने से मंगल ग्रह के दोषों से भी मुक्ति मिलती है और घर में सुख समृद्धि भी बढ़ती है। शास्त्रों के अनुसार घर में मिट्टी से बनी कुछ विशेष चीजें रखने से जीवन में सुख-शांति आती है और किस्मत से जुड़ी परेशानियां दूर हो होती हैं। _*भगवान की मूर्ति*_ साधारणतया भगवान की मूर्तियां विभिन्न धातुओं में बनाई जाती है लेकिन शास्त्रों के अनुसार घर के मंदिर में मिट्टी से बनी हुई भगवान की मूर्ति बहुत ही शुभ रहती है। मिट्टी की मूर्ति की पूजा करने से धर में सूख और शांति का वातावरण रहता है साथ ही घर में मिट्टी के भगवान रखने से मनोकामनाएं भी जल्दी पूरी होती हैं। ऐसा करने से घर-परिवार में कभी धन का अभाव नहीं रहता है। _*दीपकः*_ शास्त्रों के अनुसार घर में सुबह-शाम दीपक जलाना चाहिए और यदि ये दीपक मिट्टी के होंगे तो ज्यादा शुभ परिणाम देता है। घर के आंगन में या तुलसी के पास मिट्टी का दीपक जलाने से घर में सुख समृद्धि बनी रहती है। यही कारण है कि दीपावली के दिन भी लक्ष्मी जी के लिए मिट्टी का दीपक ही जलाया जाता है। _*बर्तनः*_ शास्त्रों के अनुसार मिट्टी के बर्तन का प्रयोग करने से मंगल ग्रह के दोष दूर होते हैं। शास्त्रों के अनुसार घर में मिट्टी से ही बने बर्तन रखना चाहिए। इन बर्तनों का उपयोग करने से मंगल ग्रह के दोष दूर होते हैं। विज्ञान की दृष्टि से देखें तो मिट्टी के बर्तन में बना खाना अन्य धातुओं से बने वर्तन की तुलना में अधिक फायदेमंद होता है। _*मटकाः*_ शास्त्रों के अनुसार मिट्टी का घडा कई प्रकार के वास्तु दोष को दूर करता है। इतना ही नहीं मिट्टी का घड़ा घर में रखने से मंगल ग्रह के दोषों भी कम होते हैं। वहीं यदि स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो मिट्टी के घड़े का पानी फ्रिज के पानी की तुलना में कई गुना अधिक फायदेमंद होता है। यही कारण है शास्त्रों में भी मिट्टी का घड़ा घर में रखने के लिए कहा जाता है। _*पक्षीः*_ शास्त्रों के अनुसार घर की उत्तर-पूर्वी दिशा में मिट्टी से बने पक्षी रखने से किसी भी प्रकार की नकारात्मकता नहीं पनप पाती है। मिट्टी के पक्षी जैसे कबूतर, चिड़िया, कोयल, तोता आदि रख सकते हैं। इस छोटे से उपाय का प्रयोग प्रयोग करने मात्र से जीवन में आने वाली अनेक परेशानियों से छुटकारा जाया जा सकता है।
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    पैरालिसिस यानि लकवा या पक्षाघात

आयुर्वेद के अनुसार पैरालिसिस यानि लकवा या पक्षाघात एक वायु रोग है, जिसके प्रभाव से संबंधित अंग की शारीरिक प्रतिक्रियाएं, बोलने और महसूस करने की क्षमता खत्म हो जाती हैं। आयुर्वेद में पैरालिसिस के 5 प्रकार बताए गए हैं और इसके लिए कोई विशेष कारण जिम्मेदार नहीं होता, बल्कि इसके कई कारण हो सकते हैं।

कारण, प्रकार और उपाय –
आयुर्वेद के अनुसार पक्षाघात के प्रकार : 
1 अर्दित : सिर्फ चेहरे पर लकवे का असर होना अर्दित यानि फेशियल पेरेलिसिस कहलाता है। इसमें सिर, नाक, होठ, ढोड़ी, माथा, आंखें तथा मुंह स्थिर होकर मुख प्रभावित होता है और स्थिर हो जाता है।
2 एकांगघात : इसे एकांगवात भी कहते हैं। इस रोग में मस्तिष्क के बाहरी भाग में समस्या होने से एक हाथ या एक पैर कड़क हो जाता है और उसमें लकवा हो जाता है। यह समस्या सुषुम्ना नाड़ी में भी हो सकती है। इस रोग को एकांगघात यानि मोनोप्लेजिया कहते हैं।
कारण : युवावस्था में अत्यधिक भोग विलास, नशीले पदार्थों का सेवन, आलस्य आदि से स्नायविक तंत्र धीरे-धीरे कमजोर होता जाता है। जैसे-जैसे आयु बढ़ती जाती है, इस रोग के आक्रमण की आशंका भी बढ़ती जाती है। सिर्फ आलसी जीवन जीने से ही नहीं, बल्कि इसके विपरीत अति भागदौड़, क्षमता से ज्यादा परिश्रम या व्यायाम, अति आहार आदि कारणों से भी लकवा होने की स्थिति बनती है।

3 सर्वांगघात : इसे सर्वांगवात रोग भी कहते हैं। इस रोग में लकवे का असर शरीर के दोनों भागों पर यानी दोनों हाथ व पैरों, चेहरे और पूरे शरीर पर होता है, इसलिए इसे सर्वांगघात यानि डायप्लेजिया कहते हैं। 
4  अधरांगघात : इस रोग में कमर से नीचे का भाग यानी दोनों पैर लकवाग्रस्त हो जाते हैं। यह रोग सुषुम्ना नाड़ी में विकृति आ जाने से होता है। यदि यह विकृति सुषुम्ना के ग्रीवा खंड में होती है, तो दोनों हाथों को भी लकवा हो सकता है। जब लकवा ‘अपर मोटर न्यूरॉन’ प्रकार का होता है, तब शरीर के दोनों भाग में लकवा होता है।
5  बाल पक्षाघात : बच्चे को होने वाला पक्षाघात एक तीव्र संक्रामक रोग है। जब एक प्रकार का विशेष कीड़ा सुषुम्ना नाड़ी में प्रवेश कर उसे नुकसान पहुंचाता है तब सूक्ष्म नाड़ी और मांसपेशियों को आघात पहुंचता है, जिसके कारण उनके अतंर्गत आने वाली शाखा क्रियाहीन हो जाती है। इस रोग का आक्रमण अचानक होता है और यह ज्यादातर 6-7 माह की आयु से ले कर 3-4 वर्ष की आयु के बीच बच्चों को होता है।
घरेलू चिकित्सा
लकवा एक कठिन रोग है और इसकी चिकित्सा किसी रोग विशेषज्ञ चिकित्सक से ही कराई जानी चाहिए। इस रोग के प्रभाव को कम करने में सहायक घरेलू नुस्खे प्रस्तुत हैं। लेकिन यह सम्पूर्ण चिकित्सा करने वाला सिद्ध हो, यह जरूरी नहीं।

  1. बला मूल (जड़) का काढ़ा सुबह-शाम पीने से आराम होता है।
  2. उड़द, कौंच के छिलकारहित बीज, एरण्डमूल और अति बला, सब 100-100 ग्राम ले कर मोटा-मोटा कूटकर एक डिब्बे में भरकर रख लें। दो गिलास पानी में 6 चम्मच चूर्ण डालकर उबालें। जब पानी आधा गिलास बचे तब उतारकर छान लें और रोगी को पिला दें। यह काढ़ा सुबह व शाम को खाली पेट पिलाएं।
  3. लहसुन की 4 कली सुबह और शाम को दूध के साथ निगलकर ऊपर से दूध पीना चाहिए। लहसुन की 8-10 कलियों को बारीक काटकर एक कप दूध में डालकर खीर की तरह उबालें और शकर डालकर उतार लें। यह खीर रोगी को भोजन के साथ रोज खाना चाहिए।
  4. तुम्बे के बीजों को पानी में पीसकर लकवाग्रस्त अंग पर लेप करने से लाभ होता है।
  5. सौंठ और सेंधा नमक बराबर मात्रा में लेकर पीस लें। इस चूर्ण को नकसीर की भांति दिन में 2-3 बार सूंघने से लाभ होता है।
  6. जंगली कबूतर की बीट और आंकड़े (अर्क या मदार) का दूध बराबर मात्रा में लेकर खरल में घोटें। इसकी 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें। सुबह-शाम 1-1 गोली दूध के साथ लेने से लाभ होता है।
  7. कुचलादि वटी- शुद्ध कुचला 10 ग्राम, खरल में डालकर इसमें आवश्यक मात्रा में पानी डालकर अच्छी तरह घुटाई करें। जब महीन घुट जाए तब इसकी 1-1 रत्ती की गोलियां बना लें और छाया में सुखा लें। सुबह-शाम 1-1 गोली बने हुए सादे पान में रखकर एक माह तक सेवन करने से इस रोग में लाभ होता है।
  8. 1gm दाल चीनी
    10 gm काली मिर्च साबुत
    10gm तेज पत्ता
    10gm मगज
    10 gm मिश्री डला
    10 gm अखरोट गिरी
    10gm अलसी
    टोटल 61gm सभी सामान रसोई का ही है

सभी को मिक्सी में पीस के बिलकुल पाउडर बना ले और 6gm की 10 पुड़िया बन जायेगी,एक पुड़िया हर रोज सुबह खाली पेट नवाये पानी से लेनी है और एक घंटे तक कुछ भी नही खाना है चाय पी सकते हो ऐड़ी से ले कर चोटी तक की कोई भी नस बन्द हो खुल जाएगी हार्ट पेसेंट भी ध्यान दे ये खुराक लेते रहो पूरी जिंदगी हार्टअटैक या लकवा से नही मरेगा गारंटीड।
तेल इस प्रकार बनाया जाता है−
9 वातनाशक तेल की मालिश करनी चाहिए। आयुर्वेद चिकित्सा में अभ्यंग−मालिश के लिए माषादि तेल, महानारायण तेल, बला तेल, ज्योतिष्मती तेल, (मालकाँगनी तेल) आदि प्रभावकारी बताए गए हैं लेकिन यहाँ पर एक सर्वाधिक प्रभावी व बनाने में सरल पक्षाघातनाशक तेल की विधि बताई जा रही है, जिसे हर कोई आसानी से बना सकता है व सभी प्रकार के लकवे या पक्षाघात तथा वात दरदा के अभिशाप से मुक्ति पा सकता है। तेल इस प्रकार बनाया जाता है−

  1. आँक के हरे पत्ते
  2. सेहुँड (थूहर)
  3. काले धतूरे के हरे पत्ते
  4. एरंड के हरे पत्ते
  5. बकायन या निर्गुंडी के हरे पत्ते
  6. सँभालू के हरे पत्ते
  7. सहजने के पत्ते
  8. भृंगराज के पत्ते
  9. महुए के पत्ते
  10. भाँग के पत्ते
  11. सहदेई
  12. असगंध के पत्ते
  13. मालकाँगनी के पत्ते या बीज।
    इन सभी को संभाग से लेकर कूट−पीसकर इनका रस निकाल लें। रस के वजन के बराबर मात्रा में काले तिल का तेल मिलाकर उसे एक कड़ाही में मंद आँच पर पकने दें। जब मात्र तेल बच रहे, तब ठंडा होने पर उसे छानकर बोतल में भर लें। पीड़ित अंग पर दो−तीन बार मालिश करते समय तेल में थोड़ा−सा पिप्पली एवं कालीमिर्च का चूर्ण मिला लें। लकवा, फालिज एवं संधिवात आदि सभी वात व्याधियों में यह अतीव लाभकारी सिद्ध होता है
  14. पक्षाघात में प्रायः रक्तचाप बढ़ा होता है । अतः चिकित्सक पहले रक्तचाप को कम करने की दवा देते है फिर पक्षाघात की चिकित्सा करते है ।
    ” समीर पन्नग रस ” अकेले ही पक्षाघात औऱ बढ़े हुए रक्तचाप को नियंत्रण में लाने में सफल होती है । आधी से एक रत्ती की मात्रा में शहद या अदरक के रस के साथ सुबह शाम दे ।
    अर्धांगवातारि रस 1 से 2 रत्ती त्रिकुट चूर्ण 4 रत्ती के साथ शहद में मिलाकर सुबह शाम कर नित्य दे । पक्षाघात अर्धांगवात आदि के देने में लाभदायी होता है ।
    एकांगवीर रस 1 से 2 गोली सुबह शाम शहद या महारास्नादि क्वाथ से सुबह शाम दे तो पक्षाघात , साइटिका ,एकांगवात आदि दूर होते है । इसके सेवन से चेतना शक्ति विहीन अंगों में भी रक्त संचार होता है ।
    अधोशाखागत पक्षाघात ( दोनों पाँव के पक्षाघात ) में प्रथम दिन 3 पीपल की फांट शहद या शर्करा के साथ दे , दूसरे दिन 6 इस तरह नित्य 3 पीपल बढाते जाए अर्थात दसवे दिन 30 पीपल की फांट दे । पुनः ग्यारवे दिन से 3 कम करते जाए अंतिम दिन मात्र 3 पीपल की ही फांट का प्रयोग करे , यह बहुत भरोसे का नुक्सा है ।
    जिव्हा की पक्षाघात में ” त्रिफल” की जड़ मुँह में रखकर चूसते रहने से लाभ होता है साथ ही जड़ की एक से दो तोला की मात्रा में फांट बनाकर नित्य दो वार देने से आंतरिक प्रयोग से भी लाभ होता है ।
    नोट – लकवा के लिए तेल और खाने की दवा मिलती है जो देशी है और घर पर कोरियर से भेजने की सुविधा उपलव्ध है ।
    लहसुन से चिकित्सा पक्षाघात(लकवा) की
    औषधि नं-1
    औषधि के लिये लहसुन बड़ी गांठ वाला जिसमें से अधिक रस निकाल सकें ले।
    विधि- लहसुन की आठ कली लेकर छील लें फिर इसे बारीक चटनी की तरह पीस लें फिर गाय का दूध लेकर उबाल लें, अब थोड़ा सा दूध अलग कर लें उसमें शक्कर मिला दें, जब यह दूध हल्का गरम रह जाय तो इस दूध में लहसुन मिलाकर पी जायें, ऊपर से इच्छा अनुसार जितना चाहें दूध पियें। परंतु ध्यान रखें लहसुन कभी
    खौलते दूध में न मिलावें वरना उसके गुण नष्ट हो जायेंगे। दिन में दो बार ये विधि करें। इस प्रकार दिन में दो बार इसका सेवन करें। तीन दिन तक दोनों समय लेने के बाद इसकी मात्रा बढ़ाकर 9 या 10 कलियां कर दें। एक हफ्ते बाद कम से कम 20 कली लहसुन लें। इसी तरह तीन बाद फिर बढ़ाकर 40 कली का रस दूध से लें। इसके बाद अब इनकी मात्रा घटाने का समय है जैसे-जैसे बढ़ाया वैसे-वैसे ही घटाते जाना है तीन-तीन दिन पर यानी-
    पहली बार – 8 कली लहसुन की लें लेत रहें
    बार तीन दिन बाद-10 कली लहसुन की लें लेते रहें
    बार 1 सप्ताह बाद – 20 कली लहसुन की लें लेते रहें
    बार 1 सप्ताह बाद- 40 कली लहसुन की लें लेते रहें
    इसका सेवन करने से और भी लाभ है पेशाब खुलकर होगा।
    दस्त साफ होने लगेगी शरीर की चेतना शक्ति बढ़ने लगेगी तथा पक्षाघात का असर धीरे-धीरे कम होने लगेगा। अगर उच्चरक्त चाप है तो यह प्रयोग काफी कारगर सिद्ध हो सकता है।
    औषधि नं-2
    मोटी पोथी वाला 1 मोटा दाना लहसुन का लेकर छीलकर पीस लें बारीक और इसे चाट लें ऊपर से गाय का दूध हल्का गर्म चीनी डालकर पी जायें। अब दूसरे दिन 2 लहसुन की चटनी चाट कर दूध पी जायें। तीसरे दिन तीन लहसुन, चौथे दिन चार कली इसी तरह से ग्यारह दिन तक 11 लहसुन पीसकर चाटें व दूध पी जायें। अब बारहवें दिन से 1-1 कली लहसुन की घटाती जायें तथा सेवन की विधि वहीं होगी। एक लहसुन की संख्या आ जाने पर बंद कर दें पीना। इससे हाई ब्लड प्रेशर का असर कम होगा। पक्षाघात का प्रभाव कम होगा। सर का भारी पन ठीक होगा। नींद अच्छी आयेगी। दस्त खुलकर होगा। भूख अच्छी लगेगी। (अगर आप सामान्य तरीके से रोज लहसुन खायें तो इसका खतरा ही नहीं होगा।)
    औषधि नं-3
    लहसुन व शतावर- 7-8 कली लहसुन, शतावर का चूर्ण 1 तोला दोनों को खरल में डालकर घोंट लें, आधा किलो दूध में शक्कर मिलाकर लहसुन शतावर पिसा हुआ मिलाकर पी जायें इसे लेने पर हल्का सुपाच्य भोजन लें। शरीर के हर अंग का भारी पन ठीक होगा साथ पक्षाघात में फायदा होगा। इसे 31 दिन लगातार लें।
    औषधि नं-4
    लहसुन,शतावर चूर्ण, असगंध चूर्ण- 1 चाय का बड़ा चशतावर चूर्ण, उतनी ही मात्रा में असगंध चूर्ण दोनों चूर्ण को दूध में मिलाकर पियें साथ दोपहर के भोजन के साथ लहसुन लें। लहसुन की मात्रा धीरे-धीरे बढ़ाते जायें, रोटी, आंवला, लहसुन का प्रयोग भोजन में अवश्य करें। शरीर की मालिश भी करें इन सभी विधियों से पक्षाघात में जल्दी व सरलता से मरीज ठीक होता है।
    औषधि नं-5
    लहसुन छीलकर पीस लें 3-4 कली, फिर उसमें उतनी ही मात्रा में शहद मिला कर चाटें। धीरे-धीरे लहसुन की मात्रा बढ़ाते जायें 1-1 कली करके कम से कम 11-11 कली तक पहुंचे साथ बराबर मात्रा में शहद भी मिलाकर चाटें। साथ लहसुन का रस किसी तेल में मिलाकर उस प्रभावित हिस्से पर लेप, मालिश हल्के हाथ से करें। लहसुन के रस को थोड़ा गरम करके लगायें धीरे-धीरे काफी फायदा पहुंचेगा लहसुन से रक्त संचार ठीक तरह से होता है।
    औषधि नं-6
    दो पोथी पूरी मोटे दाने वाले पीसकर रस निकाल लें अब इसे चार तोला तिल के तेल या सरसों के तेल में मिलाकर पकायें, जब सिर्फ तेल रह जाये तो छानकर इस तेल से सुबह, शाम मालिश करें लकवा, वात रोग मिट जायेगा। अगर आप तिल का तेल इस्तेमाल करें ज्यादा अच्छा होगा।

आयुर्वेदिक चिकित्सा

  • रसराज रस व वृहत वात चिंतामणि रस 5-5 ग्राम, एकांगीवीर रस, वात गजांकुश रस, पीपल 64 प्रहरी, तीनों 10-10 ग्राम। सबको मिलाकर पीसकर एकजान कर लें। इनकी 60 पुड़िया बना लें। सुबह-शाम 1-1 पुड़िया शहद के साथ एक माह सेवन करें। इसके एक घंटे बाद रास्नाशल्लकी वटी व महायोगराज गूगल स्वर्णयुक्त 2-2 गोली दूध के साथ लें। भोजन के बाद, दोनों वक्त, महारास्नादि काढ़ा और दशमूलारिष्ट 4-4 चम्मच आधा कप पानी में डालकर पिएं। मालिश के लिए महानारायण तेल, महामाष तेल व बला तेल- तीनों 50-50 मि.ली. लेकर एक ही शीशी में भरकर मिला लें। दिन में दो बार लकवाग्रस्त अंग पर यह तेल लगाकर मालिश करें।

पथ्य : लकवाग्रस्त रोगी के लिए गाय या बकरी का दूध व घी, पुराना चावल, गेहूं, तिल, परवल, सहिजन की फली, लहसुन, उड़द या मूंग की दाल, पका अनार, खजूर, मुनक्का, अंजीर, आम, फालसा आदि का सेवन करना, तेल मालिश करना और गर्म जल से स्नान करना व गर्म पानी पीना पथ्य यानि फायदेमंद है।


अपथ्य : उड़द व मूंग के अतिरिक्त सभी दालें, आलू, ठंडा जल, ठंडा स्थान, ठंडी हवा, सुपारी, तेज मिर्च-मसाले, वातकारक पदार्थ, खटाई, बासा भोजन, मैथुन करना और अपच रहना अपथ्य यानि नुकसान दायक है।



: 🌹पेशाब में जलन होने के उपचार और घरेलु आयुर्वेदिक उपाय

🌹पानी : पेशाब में जलन हो रही है तो सर्वप्रथम अपने शरीर में पानी की मात्रा बढ़ाएं। अधिक से अधिक मात्रा में पानी, जूस या सूप पिए ताकि मुत्र का प्रवाह बढ़ता रहे, जिससे इंफेक्शन बढ़ने का खतरा कम होगा। दिन में कम से कम 3 लीटर पानी अवश्य पीना चाहिए। यह समझ ले के आपने इतना पानी पीना चाहिए की आपकी पेशाब का रंग हमेशा सफ़ेद होना चाहिए। पेशाब का रंग पीला या लाल होने का मतलब आप पानी कम पि रहे हैं।

🌹नारियल पानी : नारियल पानी में गुड़ और धनिया मिलाकर भी आप पी सकते हैं। इससे पेट की गर्मी कम होती है।

🌹धनिया पाउडर : एक गिलास पानी में एक चम्मच धनिया पाउडर डालकर रात भर रखे और सुबह उसे छानकर उसमें शक्कर या गुड मिलाकर पी लीजिए।

🌹तरबूज : तरबूज खाने से भी पेशाब की जलन कम होती है।

🌹अनार : अनार का रस भी पेशाब की जलन कम करने में मदद करता है।

🌹ककड़ी :  ककड़ी खाने से पेशाब खुलकर लगती है। ककड़ी में क्षारीय तत्व पाए जाते हैं जो मूत्रवहः संस्थान का कार्य सुचारू ढंग से चलने में मदद करते हैं। ककड़ी खाने से पेशाब में जलन की समस्या में आराम मिलता है।

🌹चावल का पानी / मांड : आधा गिलास चावल के मांड में थोड़ी मिश्री मिलाकर पीने से भी पेशाब की जलन दूर होती है।

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🌻गैस्ट्रिक से परेशान हैं तो इस 7 उपायों से मिलेगा आराम

🌹3-4 तुलसी के पत्तों को एक कप के पानी में उबालें और फिर उस पानी को पिएं। ऐसा करने से आपको गैस की समस्या से राहत मिलती है।

🌹एक कप गर्म पानी में एक या दो छोटी चम्मच सौंफ के बीज को उबालें और फिर उस पानी को पिएं।

🌹कच्चे लौंग को चबाने से आपके गैस की समस्या दूर हो सकती है।

🌹भुने हुए जीरे को एक गिलास पानी में डालकर उबाल लें और खाना खाने के बाद इस पानी को पी लें।

🌹हींग से पेट फूलना, पेट दर्द और कब्ज जैसी कई पाचन संबंधी समस्याओं का इलाज कर सकते हैं। एक चुटकी हींग दिन में दो से तीन बार गर्म पानी के साथ ली जा सकती है।

🌹गर्म पानी के साथ नींबू का रस मिलाकर पीने से उल्टी, गैस और डकार से छुटकारा मिल सकता है। यह एक सफाई एजेंट के रूप में, एक रक्त शोधक के रूप में कार्य करता है और पित्त रस का उत्पादन करके शरीर में पाचन तेज करता है। सुबह एक गिलास ताजे पानी में नींबू का रस मिलाकर पीने से भी पाचनतंत्र मजबूत होता है।

🌹पानी में लहसुन को उबालकर उसमें काली मिर्च और जीरा डालें, इस घोल को ठंडा होने दें। इसे एक दिन में दो से तीन बार पीएं।

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