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🌺हर्निया
Hernia
🌺परिचय-
आंत का अपने स्थान से हट जाना या उतर जाना ही हर्निया कहलाता है। यह कभी अंडकोष में उतर जाती है तो कभी पेड़ु या नाभि के नीचे खिसक जाती है। यह स्थान के हिसाब से कई तरह की होती है जैसे- स्टैगुलेटेड, अम्बेलिकन आदि। जब आंत अपने स्थान से अलग होती है तो रोगी को काफी दर्द और कष्ट का अनुभव होता है।
इसे छोटी आंत का बाहर निकलना भी कहा जाता है। खासतौर पर यह पुरुषों में वक्षण नलिका से बाहर निकलकर अंडकोष में आ जाती है। स्त्रियों में यह वंक्षण तंतु लिंगामेन्ट के नीचे एक सूजन के रूप में रहती है। इस सूजन की एक खास विशेषता है कि नीचे से दबाने से यह गायब हो जाती है और छोड़ने पर वापस भी आ जाती है। इस रोग में कम से कम भोजन करना चाहिए। इससे कब्ज नहीं बनता है। इस बात का खासतौर पर ध्यान रखें कि मलत्याग करते समय जोर न लगे क्योंकि इससे आंत और ज्यादा खिसक जाती है।
🥀हर्निया रोग स्त्री-पुरुष दोनों को हो सकता है। यह रोग 3 प्रकार का होता है-
🍃वेक्षण हर्निया (इंग्वाइनल हर्नियां)
🍃नाभि हर्निया (अम्बिलाइकल)
🍃जघनास्थिक हर्निया (फीमोरल हर्निया)
🍃वेक्षण हर्निया (इंग्वाइनल हर्निया)-
🥀इस तरह का हर्निया रोग जांघ के जोड़ में होता है तथा इसमें अंडकोष जांघ की पतली नली की सहायता से अंडकोष में खिसक जाते हैं। ऐसी स्थिति अधिकतर जन्म से पहले होती है। हर्निया से पीड़ित अंग के अंडकोष में खिसक जाने के कारण उसका आकार बढ़ जाता है। अंडकोष में सूजन के कारण हर्निया व हाइड्रोसिल में अंतर करना कठिन हो जाता है। यह अधिकतर बाहरी हर्निया होता है और सामान्यता पुरुषों में पाया जाता है। लगभग 70 प्रतिशत हर्निया इसी प्रकार का होता है।
🌼नाभि हर्निया (अम्बिलाइकल हर्निया)-
यह भी एक सामान्य हर्निया का ही एक रूप है। इस हर्निया रोग के होने की मात्रा 8 से 10 प्रतिशत होती है। यह जन्म के समय या शैशवकाल में होता है। यह किसी मोटे व्यक्ति या जिनके पेट की मांसपेशियां कमजोर हो या बड़े उम्र के व्यक्ति को होता है। इसमें हर्निया की थैली नाभि से बाहर उभर आती है क्योंकि यही पेट की कमजोर मांसपेशी रहती है।
🌼जघनास्थिक हर्निया (फीमोरल हर्निया)-
यह हर्निया 20 प्रतिशत लोगों में होता है। यह रोग पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक होता है। इस रोग में पेट के पदार्थ जंघा के सामने जांघ की पैर में जाने वाली धमनी में स्थित मुंह द्वारा बाहर आ जाते हैं। यह धमनी पैर में खून की आपूर्ति करती है।
🌹कारण-
हर्निया रोग अनेक कारणों से उत्पन्न होता है। यह रोग पेट की मांसपेशियों या स्नायुओं (नर्वसस्टिम) की जन्मजात कमजोरी या बच्चे में विकास के क्रम की शुरुआती अवस्था में उत्पन्न होता है।
🌻जब कोई स्त्री या पुरुष बिना सावधानी के झटके के साथ किसी वजनदार वस्तु को उठाते हैं, तो मांसपेशियां व स्नायु फट जाते हैं और हर्निया उभर आता है।
पेट की ऐसी स्थिति, जिसमें पेट के अन्दर का दबाव बढ़ जाता है, के कारण हर्निया रोग उत्पन्न होता है। बूढ़े व्यक्ति में पुरुष ग्रंथि के कारण, मूत्र मार्ग में रुकावट आना, धूम्रपान करने वाले व्यक्ति में उत्पन्न खांसी तथा अधिक कब्ज के कारण हर्निया रोग उत्पन्न होता है।
🌹हमेशा एक ही स्थिति में बैठने के कारण, शारीरिक व्यायाम की कमी के कारण, पेट की मांसपेशियों की कमजोरी, मोटापा तथा जरूरत से अधिक भोजन करने के कारण भी हार्निया रोग हो जाता है। ऐसी स्थितियों में पेट की मांसपेशियां नीचे की ओर दबाव डालने लगती हैं जिससे पेट पूर्ण रूप से बाहर निकल आता है।
🥀गर्भावस्था तथा प्रसव (बच्चे के जन्म) के समय पेट में दबाव बढ़ने से भी हर्निया रोग हो जाता है।
🌹यौगिक क्रिया द्वारा रोग की चिकित्सा-
योगाभ्यास के द्वारा हार्निया रोग को ठीक किया जाता है। यह अत्यंत लाभकारी साधना है तथा सभी हार्निया रोगियों को इसका अभ्यास प्रतिदिन करना चाहिए।
🥀षट्क्रिया (हठयोग क्रिया)
इस रोग में नेति क्रिया करें तथा सप्ताह में एक बार लघु शंख प्रक्षालन क्रिया का अभ्यास करें।स्नेहा समूह
छाती, पेट, कटि व पैरों के लिए यौगिक क्रिया का अभ्यास करें-
🌼आसन
पवन मुक्तासन या उत्तानपादासन या सर्वांगासन या पश्चिमोतान आसन या मत्स्यासन या व्रजासन या शशांकासन। इनमें से किसी एक आसन का अभ्यास करें।
,🍂मुद्रा व बंध
इसमें अश्विनी मुद्रा या वज्रोली मुद्रा या मूल बंध का अभ्यास करें।
🌾प्राणायाम
भ्रामरी प्राणायाम या अंतर कुंभक के साथ भस्त्रिका प्राणायाम या अनुलोम-विलोम प्राणायाम का अभ्यास करें।
समय
🥀इस योगाभ्यास को प्रतिदिन 30 मिनट तक करें।
प्रेक्षा
इसमें प्राणायाम का अभ्यास करते हुए पेट की मांसपेशियां, आंतें, मलाशय, मलाशय की मांसपेशियों व गुदा नलिका का मन में ध्यान करना चाहिए।
अनुप्रेक्षा (मन के विचार)
🍂सांस क्रिया के साथ मन में विचार करें- ´´पेट की मांसपेशियां शक्तिशाली हो रही हैं तथा रोग धीरे-धीरे ठीक हो रहा है।´´
🌷विशेष-
हर्निया रोग को दूर करने के लिए बताई गए यौगिक क्रिया में षट्क्रिया का अभ्यास सावधानी से किसी योग चिकित्सक की देख-रेख में करना चाहिए। इसमें प्राणायाम का अभ्यास करते हुए पेट के अंगों के विषय में ध्यान करना चाहिए तथा वह ठीक हो रहा है, ऐसा अनुभव करना चाहिए।
🌺हर्निया का कारण : Hernia Ka Karan

कब्ज, झटका, तेज खांसी, गिरना, चोट लगना, दबाव पड़ना, मल त्यागते समय जोर लगाने से या पेट की दीवार कमजोर हो जाने से आंत कहीं न कहीं से बाहर आ जाती है और इन्ही कारणों से वायु जब अंडकोषों में जाकर, उसकी शिराओं नसों को रोककर, अण्डों और चमड़े को बढ़ा देती है जिसके कारण अंडकोषों का आकार बढ़ जाता है। वात, पित्त, कफ, रक्त, मेद और आंत इनके भेद से यह सात तरह का होता है।

,🌺हर्निया के प्रमुख लक्षण

★ वातज रोग में अंडकोष मशक की तरह रूखे और सामान्य कारण से ही दुखने वाले होते हैं।
★ पित्तज में अंडकोष पके हुए गूलर के फल की तरह लाल, जलन और गरमी से भरे होते हैं।
★ मूत्रज के अंडकोष बड़े होने पर पानी भरे मशक की तरह शब्द करने वाले, छूने में नरम, इधर-उधर हिलते रहने वाले और दर्द से भरे होते है। अंत्रवृद्धि में अंडकोष अपने स्थान से नीचे की ओर जा पहुंचती हैं। फिर संकुचित होकर वहां पर गांठ जैसी सूजन पैदा होती है।
★ कफज में अंडकोष ठंडे, भारी, चिकने, कठोर, थोड़े दर्द वाले और खुजली से भरे होते हैं।
★ मेदज के अंडकोष नीले, गोल, पके ताड़फल जैसे सिर्फ छूने में नरम और कफ-वृद्धि के लक्षणों से भरे होते हैं।
★ कफज में अंडकोष ठंडे, भारी, चिकने, कठोर, थोड़े दर्द वाले और खुजली से भरे होते हैं।

🍃भोजन तथा परहेज :

★🥀 चावल, चना, मसूर, मूंग और अरहर की दाल, परवल, बैगन, गाजर, सहजन, अदरक तरकारियां तथा गर्म करके ठंडा किया हुआ थोड़ा दूध पीना फायदेमंद है। लहसुन, शहद, लाल चावल, गाय का मूत्र गाजर, जमीकंद, मट्ठा, पुरानी शराब, गर्म पानी से नहाना और हमेशा लंगोट बांधे रहने से लाभ मिलता है।

★ 🌺इनसे बचे :- उड़द, दही, पिट्ठी के पदार्थ, पोई का साग, नये चावल, पका केला, ज्यादा मीठा भोजन, समुद्र देश के पशु-पक्षियों का मांस, स्वभाव विरुद्ध अन्नादि, हाथी घोड़े की सवारी, ठंडे पानी से नहाना, धूप में घूमना, मल और पेशाब को रोकना, पेट दर्द में खाना और दिन में सोना नहीं चाहिए।

,🍂हर्निया का आयुर्वेदिक घरेलु उपचार :

१🍂. मारू बैंगन : मारू बैगन को भूभल में भूनकर बीच से चीरकर फोतों यानी अंडकोषों पर बांधने से अंत्रवृद्धि व दर्द दोनों बंद होते हैं। बच्चों की अंडवृद्धि के लिए यह उत्तम है।

२. 🌼छोटी हरड़ : छोटी हरड़ को गाय के मूत्र में उबालकर फिर एरंडी के तेल में तल लें। इन हरड़ों का पाउडर बनाकर कालानमक, अजवायन और हींग मिलाकर 5 ग्राम मात्रा मे सुबह-शाम हल्के गर्म पानी के साथ खाने से या 10 ग्राम पाउडर का काढ़ा बनाकर खाने से आंत्रवृद्धि की विकृति खत्म होती है।

३.🌺 समुद्रशोष : समुद्र शोष विधारा की जड़ को गाय के मूत्र मे पीसकर लेप करने करने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।
४🌻. त्रिफला : इस रोग में मल के रुकने की विकृति ज्यादा होती है। इसलिए कब्ज को खत्म करने के लिए त्रिफला का पाउडर 5 ग्राम रात में हल्के गर्म दूध के साथ लेना चाहिए।

५.🥀 अजवायन : अजवायन का रस 20 बूंद और पोदीने का रस 20 बूंद पानी में मिलाकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।

६🌸. सम्भालू : सम्भालू की पत्तियों को पानी में खूब उबालकर उसमें थोड़ा-सा सेंधानमक मिलाकर सेंकने से आंत्रवृद्धि शांत होती है।

७🍁. दूध : उबाले हुए हल्के गर्म दूध में गाय का मूत्र और शक्कर 25-25 ग्राम मिलाकर खाने से अंडकोष में उतरी आंत्र अपने आप ऊपर चली जाती है।

८.🌻 गोरखमुंडी : गोरखमुंडी के फलों की मात्रा के बराबर मूसली, शतावरी और भांगर लेकर कूट-पीसकर पाउडर बनायें। यह पाउडर 3 ग्राम पानी के साथ खाने से आंत्रवृद्धि में फायदा होता है।

९. 🌸हरड़ : हरड़, मुलहठी, सोंठ 1-1 ग्राम पाउडर रात को पानी के साथ खाने से लाभ होता है।

१🍂०. लाल चंदन : लाल चंदन, मुलहठी, खस, कमल और नीलकमल इन्हें दूध में पीसकर लेप करने से पित्तज आंत्रवृद्धि की सूजन, जलन और दर्द दूर हो जाता है।

११. 🌼देवदारू : देवदारू के काढ़े को गाय के मूत्र में मिलाकर पीने से कफज का अंडवृद्धि रोग दूर होता है।

१२. 🌷सफेद खांड : सफेद खांड और शहद मिलाकर दस्तावर औषधि लेने से रक्तज अंडवृद्धि दूर होती है।

१३. 🌻वच : वच और सरसों को पानी में पीसकर लेप करने से सभी प्रकार के अंडवृद्धि रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाते हैं।

१४🌸. पारा : पारे की भस्म को तेल और सेंधानमक में मिलाकर अंडकोषों पर लेप करने से ताड़फल जैसी अंडवृद्धि भी ठीक हो जाती है।

१५.🌻 एरंड :
• एक कप दूध में दो चम्मच एरंड का तेल डालकर एक महीने तक पीने से अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।
• खरैटी के मिश्रण के साथ अरण्डी का तेल गर्मकर पीने से आध्यमान, दर्द, आंत्रवृद्धि व गुल्म खत्म होती है।
• रास्ना, मुलहठी, गर्च, एरंड के पेड की जड़, खरैटी, अमलतास का गूदा, गोखरू, पखल और अडूसे के काढ़े में एरंडी का तेल डालकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।
• इन्द्रायण की जड़ का पाउडर, एरंडी के तेल या दूध में मिलाकर पीने से अंत्रवृद्धि खत्म हो जाएगी।
• लगभग 250 मिलीलीटर गरम दूध में 20 मिलीलीटर एरंड का तेल मिलाकर एक महीने तक पीयें इससे वातज अंत्रवृद्धि ठीक हो जाती है।
• एरंडी के तेल को दूध में मिलाकर पीने से मलावरोध खत्म होता है।
• दो चम्मच एरंड का तेल और बच का काढ़ा बनाकर उसमें दो चम्मच एरंड का तेल मिलाकर खाने से लाभ होता है।

१६. 💐गुग्गुल : गुग्गुल एलुआ, कुन्दुरू, गोंद, लोध, फिटकरी और बैरोजा को पानी में पीसकर लेप करने से अंत्रवृद्धि खत्म होती है।

१७. 🌻कॉफी : बार-बार काफी पीने से और हार्निया वाले स्थान को काफी से धोने से हार्निया के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है।

१८🌺. तम्बाकू : तम्बाकू के पत्ते पर एरंडी का तेल चुपड़कर आग पर गरम कर सेंक करने और गरम-गरम पत्ते को अंडकोषों पर बांधने से अंत्रवृद्धि और दर्द में आराम होता है।

१९. 🌻कॉफी : बार-बार काफी पीने और हार्निया वाले स्थान को काफी से धोने से हार्नियां के गुब्बारे की वायु निकलकर फुलाव ठीक हो जाता है। मृत्यु के मुंह के पास पहुंची हुई हार्नियां की अवस्था में भी लाभ होता है।

२०.💐 मुलहठी : मुलहठी, रास्ना, बरना, एरंड की जड़ और गोक्षुर को बराबर मात्रा में लेकर, थोड़ा सा कूटकर काढ़ा बनायें। इस काढ़े में एरंड का तेल डालकर पीने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।

२१💐. बरियारी : लगभग 15 से 30 मिलीलीटर जड़ का काढ़ा 5 मिलीलीटर रेड़ी के तेल के साथ दिन में दो बार सेवन करने से लाभ होता है।

२२. 🌸रोहिनी : रोहिनी की छाल का काढ़ा 28 मिलीलीटर रोज 3 बार खाने से आंतों की शिथिलता धीरे-धीरे दूर हो जाती है।

२३. 🌸इन्द्रायण : इन्द्रायण के फलों का चूर्ण लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग या जड़ का पाउडर 1 से 3 ग्राम सुबह शाम खाने से फायदा होता है। अनुपात में सोंठ का चूर्ण और गुड़ का प्रयोग करते है।

• इन्द्रायण की जड़ का चूर्ण 4 ग्राम की मात्रा में 125 मिलीलीटर दूध में पीसकर छान लें तथा 10 मिलीलीटर अरण्डी का तेल मिलाकर रोज़ पीयें इससे अंडवृद्धि रोग कुछ ही दिनों में दूर हो जाता है।
• इन्द्रायण की जड़ और उसके फूल के नीचे की कली को तेल में पीसकर गाय के दूध के साथ खाने से आंत्रवृद्धि में लाभ होता है।
२४🌻. मोखाफल : मोखाफल कमर में बांधने से आंत उतरने की शिकायत मिट जाती है इसका दूसरा नाम एक सिरा रखा गया है। आदिवासी लोग बच्चों के अंडकोष बढ़ने पर इसके फल को कमर में भरोसे के साथ बांधते है जिससे लाभ भी होता है।

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