रुद्राक्ष ,,,,,,
रुद्राक्ष दो शब्दों के मेल से बना है, पहला रूद्र जिसका अर्थ है भगवान शिव और दूसरा अक्ष इसका अर्थ होता है आंसू। माना जाता है की रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसुओं से हुई है| रुद्राक्ष भगवान शिव के नेत्रों से प्रकट हुई वह मोती स्वरूप बूँदें हैं जिसे ग्रहण करके समस्त प्रकृति में आलौकिक शक्ति प्रवाहित हुई तथा मानव के हृदय में पहुँचकर उसे जागृत करने में सहायक हो सकी।ये पेड़ दक्षिण एशिया में मुख्यतः जावा, मलयेशिया, ताइवान, भारत एवं नेपालमें पाए जाते हैं। भारत में ये असम, अरुणांचल प्रदेश और देहरादून में पाए जाते हैं। रुद्राक्ष के फल से छिलका उतारकर उसके बीज को पानी में गलाकर साफ किया जाता है। इसके बीज ही रुद्राक्ष रूप में माला आदि बनाने में उपयोग में होती हैं। कहा जाता है कि सती की मृत्युपर शिवजी को बहुत दुख हुआ औरउनके आंसू अनेक स्थानों पर गिरे जिससे रुद्राक्ष की उत्पत्ति हुई।आइये दर्शन करते हैं भारत के प्रसिद्ध शिव मंदिरों केरुद्राक्ष सामान्यतया पांचमुखी पाए जाते हैं, लेकिन एक से चैदहमुखी रुद्राक्ष का उल्लेख शिव पुराण, पद्म पुराण आदि में मिलता है। रुद्राक्ष के मुख की पहचान उसे बीच से दो टुकड़ों में काट कर की जा सकती है। रुद्राक्ष को मुखों के आधार पर उनका वर्गीकरण किया गया है और इन्हीं के अनुरूप उनके फल होते हैं। आइये जानते है अलग-अलग मुखों के रुद्राक्षों के कुछ रोचक तथ्य।ये हैं रुद्राक्ष के कुछ दिलचस्प तथ्यभगवान शिवने रुद्राक्ष उत्पत्ति की कथा पार्वती जी से कही है। एक समय भगवानशिवजी ने एक हजार वर्ष तक समाधि लगाई। समाधि में से व्युत्थान होने पर जब उनका मन बाह्य जगतमें आया, तब जगत के कल्याण की कामना वाले महादेव ने अपनी आंख बंद कीं। तभी उनके नेत्र से जल के बिंदु पृथ्वी पर गिरे। उन्हीं से रुद्राक्ष के वृक्ष उत्पन्न हुए और वे शिव की इच्छा से भक्तों के हित के लिएसमग्र देश में फैल गए। उन वृक्षों पर जो फल लगे वे ही रुद्राक्ष हैं।वे पापनाशक, पुण्यवर्धक, रोगनाशक, सिद्धिदायक तथा भोग मोक्ष देने वाले हैं। रुद्राक्ष जैसे ही भद्राक्ष भी हुए। रुद्राक्ष श्वेत, लाल, पीले तथा काले वर्ण वाले होते हैं। ब्राह्मण क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रों को श्वेत आदि के क्रम से ही पहनने चाहिए। रुद्राक्ष फलप्रद हैं। जितनेछोटे रुद्राक्ष होंगे उतने ही अधिक फलप्रद हैं।