ॐ श्री परमात्मने नमः ॐ श्री गुरूवे नमः
जलपान:——–
(जल पान करने के नियम्)
वैसे जलपान के नियम् मानव प्रकृति के अनुसार भिन्न -भिन्न है बहुत विस्तृत है परन्तु विशेष नियम नीचे है जादा ग्यान के लिये प्रश्नात्मक टीप्पडी करे समय मिलने पर उत्तर देने का प्रयास किया जायेगा ।
“जय सच्चिदानंद”
– :: श्लोक ::-
अजीर्णेभेषजं वारि जीर्णे वारि बलप्रदम्।
भोजने चामृतं वारि भोजनान्ते विषप्रदम्।।
अर्थात् अजीर्ण होने पर जलपान औषधवत् काम करता है। भोजन के पच जाने पर अर्थात् दो घंटे बाद पानी पीना बलदायक होता है। भोजन के मध्यकाल में पानी पीना अमृत के समान और भोजन के अंतकाल में विष के समान अर्थात् पाचनक्रिया के लिए हानिकारक होता है।’
जठराग्नि प्रदीप्त रखने के लिए भोजन करते समय थोड़ा-थोड़ा पानी बार-बार पीना चाहिए। भोजन से पहले पानी पीने से जठराग्नि मंद हो जाती है, शरीर कृश हो जाता है। भोजन के बाद तुरंत पानी पीने से स्थूलता आती है परंतु भोजन के बीच में पानी पीने से पाचनक्रिया ठीक होती है, धातुसाम्य व शरीर का संतुलन बना रहता है।
भोजन रूखा-सूखा नहीं होना चाहिए। भोजन में पानी का उपयोग, द्रव-तरल व स्निग्ध पदार्थों का समावेश सही मात्रा में हो। पतली दाल, सब्जी, कढ़ी, रस, छाछ आदि का सेवन करने से पानी की आवश्यक मात्रा की पूर्ति अपने आप हो जाती है।
नोट:-
कडी मे खटास के लिये दही न मिलाये कुछ और मिलाले क्योकि दही गरम करना आहार विरूद्ध है परन्तु दही मिलाते है तो बार बार गरम न करे और कम सेवन करे
रात को दही न खाये गर्मी मे कम सेवन करे। ऐसा आयुर्वेद कहता है ।