तपस्या जैसा फल कलयुग में प्रभु का नाम जपने से मिलता है।
तपस्या जैसा फल कलयुग में प्रभु का नाम जपने से मिलता है।
कलयुग में भगवान की प्राप्ति का सबसे सरल, किंतु प्रबल साधन उनका नाम जप ही बताया गया है। श्रीमद्भागवत का कथन है कि कलयुग दोषों का भंडार है। इसमें एक बहुत बड़ा सद्गुण यह है कि सतयुग में भगवान के ध्यान, तप और त्रेता युग में यज्ञ-अनुष्ठान, द्वापर युग में पूजा-अर्चना से जो फल मिलता था, कलयुग में वह पुण्य श्रीहरि के नाम-संकीर्तन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है। त्रेता युग में लोग सैकड़ों वर्ष यज्ञ करते थे तो उन्हें फल मिलता था, वो फल कलयुग में भगवान के नाम का कीर्तन करने मात्र से मिल जाता है। उक्त बातें चिंगराजपारा स्थित शिव शक्ति दुर्गा मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा में आचार्य ज्ञानप्रकाश पारासर ने कही।
उन्होंने शुक्रवार को श्रीमद् भागवत कथा के दौरान श्रद्धालुओं को परीक्षित श्राप, सुखदेव आगमन की कथा सुनाई। आचार्य पारासर ने कहा कि द्वापर युग के अंत में जब देवर्षि नारद ने ब्रह्माजी से कलयुग में कलि के प्रभाव से मुक्त होने का उपाय पूछा, तब सृष्टिकर्ता ने कहा कि आदिपुरुष भगवान नारायण के नामोच्चारण से मनुष्य कलयुग के दोषों को नष्ट कर सकता है। नारद जी के द्वारा उस नाम-मंत्र को पूछने पर हिरण्य गर्भ ब्रह्माजी ने बताया। कलयुग में तो केवल श्री हरि की गुण गाथाओं का गान करने से ही मनुष्य भवसागर की थाह पा जाते हैं। कलयुग में न तो योग और यज्ञ है और न ज्ञान ही है। श्री राम जी का गुणगान ही एकमात्र आधार है। अतएव सारे भरोसे त्यागकर जो श्रीरामजी को भजता है और प्रेम सहित उनके गुण समूहों को गाता है, वही भवसागर से तर जाता है। नाम का प्रताप कलयुग में प्रत्यक्ष है। नाम जप से बढ़कर कोई भी साधना नहीं है। इस भगवन नाम-जप की महिमा अनंत है। परम योगी शुकदेव, सिद्धगण, मुनिजन और समस्त योगी इस दिव्य नाम-जप के प्रसाद से ही ब्रह्मनंद का भोग करते हैं। नारद जी, भक्त प्रहलाद, ध्रुव, अंबरीष, हनुमान, अजामिल, गणिका, गिद्ध जटायु, केवट, भीलनी शबरी सभी ने इस भगवान नाम-जप के द्वारा भगवत प्राप्ति की है।