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😊 जैसी करनी – वैसा फल
😏 आज नहीं तो कल- निश्चित फल
भले बनो और भला ही करो; पीछे जो हुआ सो हुआ अब आगे का ध्यान रखो ! हमारा एक पुण्य कर्म हमारे अनंत जन्मों के पापों को मिटा सकता है, तो एक दुष्कर्म न जाने कितने ही दुःखमय जन्म लेने का कारण बन सकता है !
एक गाँव के एक जमींदार ठाकुर बहुत वर्षों से बीमार थे । कोई डॉक्टर कोई वैद्य नहीं छोड़ा कोई टोने-टोटके करने वाला नहीं छोड़ा लेकिन कहीं से भी आराम नहीं आया !
एक दिन एक संत गाँव में आये उनके दर्शनार्थ ठाकुर भी वहाँ गये प्रणाम किया, कहा – बाबा मै जमींदार हूँ.. गाँव का इतने बीघे जमीन है.. इतना सब कुछ होने के बावजूद मुझे असाध्य रोग है, जो कहीं से भी ठीक नहीं होता ! बाबा ने पूछा – क्या रोग है आपको ? कहता है – बाबा मुझे पेट मे असहनीय दर्द होता है, खाना पचता नहीं है, दिल में इतना दर्द होता है, जो कि बर्दाश्त नहीं होता । ऐसी अवस्था में ऐसा लगता है, जैसे मेरे प्राण ही निकल जायेंगे !
बाबा ने आँख बंद कर ली शांत बैठ गये। थोड़ी देर बाद बोले – बुरा तो नहीं मानोगे एक बात पूछूँ ?
ठाकुर – नहीं महाराज, पूछिये !
बाबा- किसी का इतना दिल तो नहीं दुखाया जिसका भोग आज तुम भोग रहे हो ? आपके दुःख देने से वो इतना दुखी हुआ हो जिसके कारण आप इतनी पीड़ा झेल रहे हो ?
ठाकुर – नहीं बाबा !
बाबा – याद करो तनिक सोचो किसी का अधिकार तो नहीं छीना हुआ? किसी की पीठ में छुरा तो नहीं मारा हुआ? किसी के पेट से रोटी तो नहीं छीनी हुई? किसी का हिस्सा खुद तो नहीं संभाला हुआ ?
उसने बाबा की बात पूरी होने पर कहा – मेरी एक विधवा भाभी है, जो कि मायके में रहती है.. हिस्सा मांगती थी.. नहीं दिया । यह सोचकर कि कल को सब कुछ अपने भाईयों को दे देगी, इसका क्या पता ?
बाबा ने कहा – आज से उसे हर महीने सौ रूपए भेजने शुरू करो !
यह उस समय की बात है, जब सौ रूपए में पूरा परिवार पल जाता था ! उसने कुछ रूपए भेजना शुरू कर दिया !
दो-तीन हफ़्तों के बाद उसने बाबा से आकर कहा – मैं पचहत्तर प्रतिशत तक ठीक हूँ !
बाबा ने मन ही मन सोचा कि यह पूरा ठीक होना चाहिये था.. ऐसा क्यों नहीं हुआ ? पूछा – कितने रूपए भेजते थे ?
ठाकुर – पचीस रूपए !
बाबा – क्यों ? इसी कारण आपका रोग पूरा ठीक नहीं हुआ ! बाबा ने आगे कहा – उसका पूरा अधिकार उसे लौटाओ । वो अपने पैसे को जैसे मर्जी खर्च करे, जिसे मर्ज़ी दे, यह उसका विषय है.. यह तुम्हारा विषय नहीं है !जानते हो वो कितना दुखी होती रही । तभी आपको इतनी जलन हो रही है, सोचा है ?
ठाकुर ने अब सौ रूपए महीना भेजना शुरू किया साथ ही रोग भी ठीक हो गया !
साधकजनो ऐसे असाध्य रोग हैं, तो सोचना इस बारे में कि किसी का हमने हक तो नहीं छीना हुआ ? किसी की पीठ में छुरा तो नहीं घोंपा हुआ ? किसी का इतना दिल तो नहीं दुखाया हुआ, जो बेचारा इतना बेबस होगा? और कुछ कह भी न सकता होगा ? उस बेचारे के अन्दर से आह निकल रही है, जो आपके अंदर रोग पैदा कर रही है, जलन पैदा कर रही है !
जमींदार ने बाबा की बात मानी और सुखी हो गया और जो अपनी मनवाता है वह दुखी रहता है । धन्यवाद 🙏
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