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कुण्डलिनी शक्ति सब में होती है

कुण्डलिनी को लोग अद्भुत ,अविश्वसनीय और व्यक्ति विशेष से सम्बंधित ऊर्जा के रूप में देखते हैं ,जबकि यह सभी में होती भी है और सभी में क्रियाशील भी होती है ।लोग इसे जाग्रत करने की बात करते हैं जबकि यह सदैव जाग्रत होती है ,हाँ इसका ऊर्ध्वगमन लाखों में किसी एक में हो पाता है ।जिसे लोग कुण्डलिनी जागरण कहते हैं वह वास्तव में एक चक्र से दुसरे चक्र की ऊर्जा का एकीकरण होता है ।कुण्डलिनी तो एक सार्वभौम चेतना शक्ति है जो जीवन ऊर्जा संचारित करती है और हमे जीवित रखती है ।यह सभी जीवों में भी होती है किंतु बस मनुष्य ही ज्ञानवान होने से इसे चक्र भेदीकरण से एक से दुसरे चक्र तक समान रूप से इसे प्रवाहित कर मुक्ति का मार्ग बना पाता है ।
कुण्डलिनी ऊर्जा चक्रों ,ग्रंथियों ,नलिकाओं और नाड़ियों के माध्यम से प्रवाहित होती हुई शरीर के चारो ओर आभा मंडल का निर्माण कर देती है ।सामान्यतः यह ऊर्जा बायीं ओर से ,दाहिनी ओर को शरीर में चक्राकार घूमती हुई ऊपर की ओर अथवा नीचे की ओर जाती है ।भूमध्य रेखा से उत्तर की ओर यदि साधक है तो यह ऊर्जा उत्तर की ओर ( उत्तरायण ) अनुभव होती है और यदि साधक भूमध्यरेखा से दक्षिण की ओर हो तो यह दक्षिणायन प्रतीत होती है।
इस ऊर्जा के प्रयोग में हम अपने शरीर की जीवन ऊर्जा प्रवाहित कर संसारी और आध्यात्मिक जीवन चर्या के बीच एक संतुलन लाते हैं ।इस प्रकार का संतुलन लाने के लिए अवरुद्ध भावनाओं और प्रकृति विरुद्ध कर्म कर लेने के कारण उतपन्न विभिन्न प्रकार के ऊर्जा अवरोधों को समाप्त करना होता है ।कुण्डलिनी ऊर्जा का प्रभाव शरीर ,भावनाओं ,मष्तिष्क तथा चेतना आदि सभी पर पड़ता है इसलिए यह तनाव से मुक्ति ,स्वस्थ होने की अनुभूति ,सुरक्षा तथा शान्ति जैसे लाभकारी प्रभाव उतपन्न करती है ।इससे व्यक्तिगत सुधार तो होता ही है ,अध्यात्म में प्रवृत्ति भी बढ़ती है ।
सभी में सतत प्रवाहित कुण्डलिनी ऊर्जा के मात्र भ्रमण का अनुभव प्राप्त करने पर जो बातें अब तक दार्शनिक सिद्धांत जैसी प्रतीत हो रही होती हैं वे थोड़े से जागरूक क्षणों के पश्चात आपको इस प्रक्रिया के क्रियात्मक सत्य से साक्षात्कार करा देती हैं ।जिस व्यक्ति ने अपनी बौद्धिक विचार परिधि बना रखी है ,अथवा जो रूढ़ और एक विचार धारा में बंध चूका है उसे थोड़ा अधिक समय लग जाता है ।
जिन लोगों की पूर्वाग्रह युक्त भाव धारा होती है उन्हें उसे तोड़कर शरीर के वीणा के तारों की झंकार को समझने में थोड़ा समय लग जाता है और उन्हें भिन्न भिन्न प्रकार की अनुभूतियां होती हैं ,चूंकि कुण्डलिनी ऊर्जा जागरण अथवा उसे महसूस करने के समय साधक अनवरुद्ध तंत्रिकाओं द्वारा ऊर्जा को ग्रहण भी करता है या उनसे सम्बन्ध भी बनाता है और उसका प्रसारण भी करता है ।
योग की ध्यान साधना वास्तव में कुण्डलिनी के ऊर्जा प्रवाह का ही अनुभव होता है ।ध्यान के अनुभव व्यक्ति के ऊर्जा प्रवाह पर निर्भर करते हैं ।यहाँ जो कुछ भी अनुभव होता है ,जो कुछ भी उपलब्धि प्राप्त होती है वह सब कुछ व्यक्ति की प्रवाहित कुण्डलिनी ऊर्जा और अवचेतन में संग्रहित ज्ञान पर आधारित होता है ।ध्यान कुण्डलिनी ऊर्जा के प्रवाह को अनुभव करने और सांसारिक शरीरी जगत से आध्यात्मिक पारलौकिक जगत के बीच संतुलन बनाने की प्रक्रिया है जिसका नियंत्रण खुद व्यक्ति की कुण्डलिनी ऊर्जा ही करती है और उपलब्धि भी यही दिलाती है ।..

       

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