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तुलजा भवानी

 तुलजा भवानी माता का मंदिर एक अलौकिक शक्ति और दिव्यता । इस क्षेत्र की किलोमीटरों तक कि त्रिजियामे आज भी एक दिव्य ओरा है , शक्ति के उपासक उनकी अनुभूति करते है । यहां पर की गई प्रार्थना जीवन परिवर्तन कर देती है । महिष के वध की प्रतीक पूजा गोंदल आज भी अनेक चमत्कार देखने को मिलता है । शाक्त उपासको को अवश्य ही एकबार यहां तीर्थ करना चाहिए । 

कृतयुग में करदम नामक एक ब्राह्मण साधु थे,जिनकी अनुभूति नामक अत्यंत सुंदर व सुशील पत्नी थी। जब करदम की मृत्यु हुई तब अनुभूति ने सती होने का प्रण किया, पर गर्भवती होने के कारण उन्हें यह विचार त्यागना पड़ा तथा मंदाकिनी नदी के किनारे तपस्या प्रारंभ कर दी। इस दौरान कूकर नामक राजा अनुभूति को ध्यान मग्न देखकर उनकी सुंदरता पर आसक्त
हो गया तथा अनुभूति के साथ दुष्कर्म करने का प्रयास किया। इस दौरान अनुभूति ने माता से याचना की और
माँ अवतरित हुईं।

माँ के साथ युद्ध के दौरान कूकर एक महिष रूपी राक्षस में परिवर्तित हो गया और महिषासुर कहलाया। माँ ने महिषासुर का वध किया और यह पर्व ‘विजयादशमी’
कहलाया। इसलिए माँ को ‘त्वरिता’ नाम से भी जाना जाता है, जिसे मराठी में तुलजा भी कहते हैं। ऐसी मान्यता है कि असुरों का संहार करते समय
भगवती जगदंबा के मुख से 32 देवी शक्ति स्वरूप निकलीं। इसमें 12वीं देवी तुलजा भवानी हैं। वे
सतयुग की देवी हैं।

महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजापुर।
एक ऐसा स्थान जहाँ छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी माँ
तुलजा भवानी स्थापित हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व
अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में
प्रचलित हैं। तुलजा भवानी महाराष्ट्र के प्रमुख
साढ़े तीन शक्तिपीठों में से एक है तथा भारत के प्रमुख
इक्यावन शक्तिपीठ में से भी एक मानी जाती है।

मान्यता है कि शिवाजी को खुद देवी माँ ने तलवार
प्रदान की थी। अभी यह तलवार लंदन के संग्रहालय
में रखी हुई है। मंदिर की स्थिति यह मंदिर महाराष्ट्र के प्राचीन दंडकारण्य वनक्षेत्र में स्थित यमुनांचल पर्वत पर स्थित है। ऐसी जनश्रुति है कि इसमें स्थित तुलजा भवानी माता की मूर्ति स्वयंभू है। इस मूर्ति की एक और खास बात यह है कि यह मंदिर में स्थायी रूप से स्थापित न होकर ‘चलायमान’ है। साल में तीन बार इस प्रतिमा के साथ प्रभु महादेव, श्रीयंत्र तथा खंडरदेव की प्रदक्षिणापथ पर परिक्रमा करवाई जाती है।

तुलजा भवानी का मंदिर स्थापत्य इस मंदिर का स्थापत्य मूल रूप से हेमदपंथी शैली से प्रभावित है। इसमें प्रवेश करते ही दो विशालकाय महाद्वार नजर आते हैं। इनके बाद सबसे पहले कल्लोल तीर्थ स्थित है, जिसमें 108
तीर्थों के पवित्र जल का सम्मिश्रण है। इसमें उतरने के पश्चात थोड़ी ही दूरी पर गोमुख तीर्थ स्थित है, जहाँ जल
तीव्र प्रवाह के साथ बहता है। तत्पश्चात सिद्धिविनायक भगवान का मंदिर स्थापित है। मान्यता के अनुसार तीर्थों में स्नान के पश्चात सर्वप्रथम सिद्धिविनायक का दर्शन
करना चाहिए| तत्पश्चात एक सुसज्जित द्वार में प्रवेश करने के पश्चात मुख्य कक्ष (गर्भ गृह) में माता की स्वयंभू
प्रतिमा स्थापित है। गर्भगृह के पास ही एक चाँदी का पलंग स्थित है, जो माता की निद्रा के लिए है। इस पलंग के उलटी तरफ शिवलिंग स्थापित है, जिसे दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि माँ भवानी व शिव शंकर आमने-सामने बैठे हैं। यहाँ पर स्थित चाँदी के छल्ले वाले
स्तंभों के विषय में माना जाता है कि यदि आपके शरीर के किसी भी भाग में दर्द है, तो सात दिन लगातार इस
छल्ले को छूने से वह दर्द समाप्त हो जाता है।

इस मंदिर से जुड़ी एक जनश्रुति यह भी है कि यहाँ पर
एक ऐसा चमत्कारिक (चिंतामणि नामक) पत्थर विद्यमान है, जिसके विषय में यहमाना जाता है कि यह आपके सभी प्रश्नों का उत्तर सांकेतिक रूप में ‘हाँ’ या ‘नहीं’ में देता है। यदि आपके प्रश्न का उत्तर ‘हाँ’ है तो यह आपके दाहिनी ओर मुड़ जाता है और अगर ‘नहीं’ है तो यह बायीं दिशा में मुड़ जाता है। माना जाता है कि छत्रपति शिवाजी किसी भी युद्ध से पहले चिंतामणि के
पास अपने प्रश्नों के समाधान करने आते थे। माता की मूर्ति शालीग्राम पत्थर से निर्मित यह मूर्ति वस्तुतः स्वयंभू
मूर्ति मानी जाती है। इस मूर्ति के आठ हाथ हैं, जिनमें से एक हाथ से उन्होंने दैत्य के बाल पकड़े हैं तथा दूसरे
हाथों से वे दैत्य पर त्रिशूल से वार कर रही हैं। ऐसा प्रतीत
होता है कि माता महिषासुर राक्षस का वध कररही हैं।
माता की दाहिनी ओर उनका वाहन सिंह स्थापित है।
इस प्रतिमा के समीप ऋषि मार्कंडेय की प्रतिमा स्थापित है, जो पुराण पढ़ने की मुद्रा में है। माता के आठों हाथों में चक्र, गदा, त्रिशूल, अंकुश, धनुष व पाश आदि शस्त्र सुसज्जित हैं। प्रतिमा का इतिहास इतिहास में इस प्रतिमा का वर्णन मार्कंडेय पुराण के ‘दुर्गा सप्तशती’ नामक अध्याय में।उल्लिखित है। इस ग्रंथ की रचना स्वयं संत मार्कंडेय ने की थी। इस अध्याय में कर्म, भक्ति व ध्यान के संदर्भ में ज्ञान है। इस प्रतिमा की ऐतिहासिकता का दूसरा स्रोत भगवद् गीता भी है। तुलजा भवानी की पूजा
इस मंदिर की ख्याति मराठा राज्य में फैली और यह प्रतिदिन भोसलेनप्रशासकों की कुलदेवी के रूप में
पूजी जाने लगीं। छत्रपति शिवाजी अपने प्रत्येक युद्ध
के पहले माता से आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए यहाँ आते थे।

      

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