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व्यवहारिक जीवन में “मन” हमारा कितना शक्तिशाली मित्र या शत्रु बन सकता हैं??

जब भी हम साधना या ध्यान करने बैठते हैं तो सबसे बड़ी बाधा जो खड़ी करता है वह होता है – हमारा मन। तो क्या मन हमारा शत्रु है?

उपरोक्त तथ्य के अनुसार हमारा मन हमेशा हमारे लिए बाधक होता है? यदि हां तो ऐसा क्यों है?

यहां पर समस्या मन नहीं, असली समस्या हमारे द्वारा “मन” के इस्तेमाल करने की क्षमता की सबसें बड़ी कमी है।

आध्यात्मिकता’ साधना में जो कुछ हमें महसूस होता है उसका आधार “मन” ही होता है।”मन” के कारण ही हम समझ पा रहे हैं कि सामने बाला व्यक्ति हमसें क्या बात कर रहा है;और वह उस समय सत्य झूठ का निर्णय ले लेता है!यदि उसका निर्णय सकारात्मक है तो वह हमारा सबसे बड़ा मित्र है,लेकिन यदि किसी पूर्वाग्रह के चलतें(गलत धारणाऐं और मान्यताऐं)शुद्ध और सत्य बात को भी गलत समझकर नकारात्मक निर्णय कर लेता है तो ऐसी अबस्था मे “मन” हमारा सबसे बड़ा शत्रु बन जाता हैं।

छोटी-बड़ी चीजे़ं,जैसे हमारा घर, और परिवार;इन सभी को मानसिक तौर पर तोड़ें और फिर फिर निरीक्षण करें कि ऐसा करनें से हमारे मन हमें कितना आहत करता हैैं?आहत होनें का मुख्य कारण है कि घर परिवार से हमनें अपनी कितनी पहचान जोड़ रखी है??

व्यवहारिक जीवन मे अनेकों ऐसी घटनायें अच्छी बुरी घटती रहतीं है;लेकिन हम ध्यान नहीं देतें है?

व्यवहारिक जीवन में अच्छी बुरी घट रहीं सभी घटनाओं को गौर से देखना समझना होगा और तभी हम सही समझ पायेंगे कि और हमारा मन हमारा कितना शत्रु है या मित्र?

व्यवहारिक जीवन में हम जो भी हैं,अपने मन के कारण ही हैं, है न? यदि हम अपना हाल बुरा कर लेते हैं, तोक्षवह हमारी ही वजह से होता है। अगर हम मन के निर्णय के बगैर जीना चाहते हैं तो यह बहुत सरल है,यहां हमें सबसें पहलें अपने “मन” से पूरवागृहों यानी गलत धारणाओं को खत्म करनीं होगी।

दरअसल मन कोई समस्या नहीं है। समस्या यह है कि हमें इसे संभालना नहीं आता। इसलिए हम मन का दोष देते रहतें है। हमें समझना होगा कि हम कितनी अक्षमता से इसके साथ पेश आ रहे हैं। अगर हम किसी चीज़ को समझे या जाने बिना, उससे पेश आने की कोशिश करते हैं, तो यह हमारे लिए परेशानी का कारण ही बनेगी?किसी भी चीज़ को इस्तेमाल करने से पहले सीखना ही होगा??

उदाहरण के तौर पर अगर धान उगाने की अगर बात करें, तो हमें क्या लगता है कि यह एक बहुत बड़ी बात है? एक सीधा-सादा किसान भी धान उगा लेता है। लेकिन अगर मैं कुछ धान और उपयुक्त भूमि में धान उगा कर देखते हैं तो हम देखेंगे कि हमारी कितनी बुरी हालत हो गई हैं?इसका कारण मन नहीं है ;इसका कारण मन का पूर्वागृह होगा कि उसे धान उगाने का कोई अनुभव ही नहीं था केवल सुना और देखा था।व्यवहारिक जीवन मे दुखों का सबसें बड़ा कारण हमारी यही आदतें होतीं है।

हमनें बहुत सारी गलत धारणाओं से अपने आपको जोड़ रखा है और मन इन्हीं धारणाओं के चलतें कार्य करना शुरू करके हमें परेशानी मे डालता रहता है।
इसकी वजह यह नहीं है कि धान उगाना मुश्किल काम है, बल्कि इसकी मुख्य वजह यह है कि हमें यह काम करना नहीं आता। सारी परेशानी की जड़ यही है। ठीक इसी तरह, किसी खाली जगह की तरह मन को खाली रखना भी मुश्किल काम नहीं है, यह सबसे आसान काम है। पर आपको इसकी समझ नहीं है इसलिए ऐसा करना कठिन लगता है। जीवन इस तरह काम नहीं करता। अगर हम किसी काम को अच्छी तरह करने की योग्यता पाना चाहते हैं, तो हमें उसे अच्छी तरह समझना होगा; वरना हम एकाध बार चाहे दुर्घटनावश सफल हो भी जाएं, पर हर बार हमारा तरीका कारगर नहीं होगा।

दरअसल मन कोई समस्या नहीं है। समस्या यह है कि हमें इसे संभालना नहीं आता। इसलिए मन का दोष न देखें, यह देखें कि हम कितने अक्षमता से इसके साथ पेश आ रहे हैं।क्या सही, क्या ग़लत, क्या उचित और क्या अनुचित है?क्या भगवान और क्या शैतान,यह सब कुछ प्रचलित धारणाओं के संदर्भ में हमारे अपने जीवन के बगैर अनुभव से जाना है।यदि यह सही रूप से अपने जीवन मे उपयोग करके जाना होता तो इसके लिये एक सही मार्गदर्शक की जरूरत पड़नी ही होगी बरना गलत उपयोग से जीवन का बहुत बड़ा भाग खपा बैठेंगे और परिणाम शून्य होगा?

एक बार जब हम अपनी पहचान उन चीजों के रूप में स्थापित कर लें,जो हमारी नहीं हैं,तो मन एक एक्सप्रेस ट्रेन की तरह दौड़ेगा जिसे हम रोक नहीं सकते। चाहे जो करें, हम इसे रोक नहीं पाएंगे!!
हमे अपनी धारणाओं को बदलना ही होगा।धारणाओं को सभी चीज़ों से अलग करना होगा;तभी हम इस मन को कैसे रोक सकते हैं? हमने अपनी पहचान उन चीज़ों से जोड़ ली है, जो हमारी हैं ही नहीं।जब हम अपनी पहचान ऐसी किसी चीज़ से जोड़ते हैं,जो हमारी है ही नहीं हैं, तो हमारा मन बेलगाम भागेगा। अगर हम बहुत सारा तला हुआ भोजन करेंगे तो गैस बनेगी। अब अगर हम गैस को निकलने से रोकना चाहें तो नहीं रोक सकते। अगर हम उचित प्रकार का भोजन करेंगे, तो कुछ रोकने की जरूरत नहीं, शरीर को कोई परेशानी नहीं होगी। ऐसा ही हमारे मन के साथ भी होता है;हम गलत चीज़ों के साथ पहचान स्थापित कर लेते हैं। और फिर हमारे मन को भी रोकना कठिन हो जाता है।

मन को भागने की पूरी ऊर्जा देने के बाद उस पर ब्रेक लगाना चाहते हैं?तो यह ऐसे काम नहीं करेगा। यदि हमें किसी दोड़ते हुवे वाहन को ब्रेक लगानी हो तो पहले उसकी गति कम करके धीरे धीरे बंद करनी होगी।
अगर हम सभी चीज़ों से अपनी धारणाओं को तोड़ लें, जो हमारे अनुभव से नहीं हैं,केवल सुनी सुनाई है तो मन पूरी तरह से रिक्त और खाली हो जाएगा। अगर हम उसका इस्तेमाल करना चाहें तो कर सकते हैं, नहीं तो यह खाली ही रहेगा। हमारे मन को इसी तरह ही खाली होना चाहिए, इसके अलावा इसका कोई और काम भी नहीं है।
हमारी सबसे बड़ी गलती यह है कि हमनें बहुत सी ऐसी चीज़ों से अपनी पहचान जोड़ ली है, जो हमारी है ही नहीं हैं।

हमें इस तरह की हर पहचान से अपने आपको अलग होना ही होगा?इसके लिये हर दिन, सुबह दस मिनट लगाएं और देखें कि हमनें किन किन बातों से अपनी पहचान बना रखी हैं, जो कि हमारी नहीं हैं।

हम मन के ही कारण ही समझ पा रहे हैं कि कोन कैसे और क्या बात कर रहा है? तो यह हमारा मित्र है,तब हमें उसे अपना शत्रु नहीं समझना है?
हमकों यह देख कर हैरानी होती है कि हमनें कितनी हास्यास्पद चीज़ों से छोटी-बड़ी चीजे़ं, हमारा घर,हमारा परिवार; इन सभी को मानसिक तौर पर तोड़ें और फिर देखें। जिस चीज़ का भी टूटना हमकोंआहत करता हैैं, ये स्पष्ट है कि उससे हमनें पहचान जोड़ रखी है। एक बार आप किसी ऐसी चीज़ से पहचान जोड़ लेते हैं जो हम नहीं हैं,हमारा मन किसी एक्सप्रेस ट्रेन की तरह बन जाता है, और हमारे लाख चाहने पर भी रुकने का नाम ही नहीं लेता। यह कभी रुकेगा भी नहीं। मन को भागने की पूरी ऊर्जा देने के बाद उस पर ब्रेक लगाना चाहते हैं – यह ऐसे काम नहीं करेगा। हमकों किसी वाहन को ब्रेक लगानी हो तो पहले उसकी गति क्रमशः धीरे धीरे तो बंद करनी ही पड़ेगी;यदि तेज गति मे ब्रेक लगा दियें तो दुर्घटना होनीं तय हैं।यही हाल हमारे स्वभाव या “मन” का के शाथ हो रहा होता हैं।ज्यादातर हम लोग बगैर पूर्वाग्रह आदतों को बदलें विना स्वभाव के बिपरीत कार्य कर बैठतें हैं और इसलिये वह कार्य फैल होता है।

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