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पृथ्वी की गति का ग्रहों की भावगत व राशिगत स्थितियों पर क्या प्रभाव पड़ता है?

पृथ्वी की तीन प्रकार की गतियां होती है।

1 घूर्णन गति(दैनिक गति)

इसमें पृथ्वी अपने स्थिर अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती रहती है। जिससे सभी नव ग्रह पश्चिम की ओर चलते दिखाई देते है।इससे ग्रहों की राशिगत स्थितियों तो स्थिर रहती है। जबकि भावगत स्थितियां दाहिने हाथ की ओर विपरीत दिशा में ( घटते हुए क्रम में) बदलती रहती है।

2 परिक्रमण गति( वार्षिक गति)

इसमें पृथ्वी सूर्य के चारों ओर पश्चिम की ओर परिक्रमा करती रहती है। इसमें सभी नवग्रह पूर्व की ओर राशि चक्र पर आगे की ओर चलते दिखाई देते है। इसमें ग्रहों की राशिगत व भावगत स्थितियों में परिवर्तन बांए हाथ की ओर बढ़ते हुए क्रम में होता रहता है।

3 अयन गति

इसमें पृथ्वी का अक्ष अपनी कक्षा से 66.5 अंश झुके रहने के कारण यह अक्ष किसी अन्य अक्ष के चारों ओर पूर्व से पश्चिम की ओर परिक्रमा करता रहता है। ये परिक्रमा बहुत ही धीमी गति से होता है। 72 वर्षों में लगभग 1 अंश का परिवर्तन होता है। और इसकी वार्षिक गति 50.3″ है। पूरी परिक्रमा लगभग 26000 सालों में होती है।

इसमें पृथ्वी की घूर्णन गति की तरह ग्रहों की भावगत स्थिति नहीं बदलती है। केवल राशिगत स्थिति बदल जाती है। इसलिए सायन व निरयण दोनों में ग्रहों की
भावगत स्थितियां तो समान रहती है। जबकि राशियां अलग अलग।

ग्रहों की राशिगत स्थितियों को लेकर सायन व निरयण दोनों की अलग अलग धारणाएं है।

सायन में अयन गति के कारण ग्रहों के साथ साथ राशि चक्र भी चलायमान रहता है। जिसके कारण ग्रहों की राशियों में कोई परिवर्तन नहीं होता है।

सूर्य पथ विषुवत वृत्त को जिस बिंदु पर काटता है। उसको बसंत संपात बिंदु या चलायमान संपात बिंदु भी कहते है।
यह संपात बिंदु अयन गति के कारण 50″ प्रति वर्ष की दर से पश्चिम की ओर वक्र गति करता है। सायन में उसी बसंत संपात बिंदु को मेष राशि का प्रथम बिंदु मान लिया जाता है। जिससे सायन में अयन गति के कारण राशि चक्र चलायमान रहता है।

प्रति वर्ष 21 मार्च को बसंत संपात बिंदु पर सूर्य होता है। उस समय सूर्य पृथ्वी की भूमध्य रेखा के सीधे ऊपर होता है। उस समय पूरी पृथ्वी पर दिन रात समान होता है। और यहीं से सायन सौर वर्ष का प्रारंभ भी होता है। इसका औसत मान 365.2422 दिन होता है।

जबकि निरयण में मेष राशि का प्रथम बिंदु स्थिर रहता है।
यह स्थिर बिंदु एक तारा है जो चित्रा नक्षत्र के मध्य बिंदु से 180 अंश के कोण पर है। इसको निरयण का मेष राशि का प्रथम बिंदु कहते है।और यहीं से निरयण सौर वर्ष का प्रारंभ भी होता है।इसका औसत मान 365.2563 दिन होता है।

निरयण में अयन गति के कारण लग्न सहित सभी नव ग्रह पश्चिम की ओर चले जाते है। जिससे उनकी राशियां पीछे की ओर चली जाती है। इसलिए निरयण में लग्न व सभी नव ग्रहों की राशि में से अयनांश घटाकर उनकी राशिया पीछे की ओर कर ली जाती है।

उदाहरण के लिए यदि जब सूर्य बसंत संपात बिंदु पर हो और पृथ्वी की घूर्णन गति व परिक्रमण गति रुक जाए और केवल अयन गति हो तो पृथ्वी का उत्तरी ध्रुव विषुवत वृत्त पर पश्चिम की ओर परिक्रमा करता रहेगा। सूर्य सदा बसंत संपात बिंदु पर रहेगा। अर्थात भूमध्य रेखा के ऊपर होगा। पृथ्वी से देखने पर सूर्य एक ही जगह पर सदा स्थिर नजर आयेगा। केवल स्थिर राशि चक्र पर पश्चिम की ओर वक्र गति करता रहेगा। जिससे सूर्य सहित सभी नवग्रहों की भावगत स्थिति में तो कोई परिवर्तन नहीं होगा। लेकिन उनकी राशियां पीछे की ओर होती जायेगी। सायन में सब ग्रहों की राशि स्थिर रहेगी।

बसंत संपात बिंदु के वक्र गति के कारण इसकी स्थिर मेष राशि के प्रथम बिंदु से दूरियां बढ़ रही है। स्थिर बिंदु से चलायमान संपात बिंदु की कोणीय दूरी को अयनांश कहते है। 22 मार्च 285 को यह चलायमान संपात बिंदु, स्थिर बिंदु पर था। उस समय अयनांश का मान शून्य था। जिसके कारण सायन व निरयण दोनों की राशियां भी समान थी। लेकिन पृथ्वी की अयन गति के कारण तब से लेकर आज तक इस अयनांश का मान बढ़कर 24 अंश 8 कला हो गई है। जिसके कारण निरयण की राशियां भी 24 अंश 8 कला पीछे हो गई है।

निरयण राशि चक्र स्थाई राशि चक्र होने के कारण बहुत ही प्राचीन राशि चक्र है। और इसको 12 राशियों 27 नक्षत्रों और 108 चरणों में बांटा गया है। इसमें फलादेश भी बहुत सूक्ष्मता से होता है। जबकि सायान राशि चक्र बदला हुआ राशि चक्र होता है। जिसके कारण इसमें राशियों और नक्षत्रों का सही बंटवारा नहीं हो पाता। इससे फलादेश का भी कोई महत्व नहीं रह जाता है।

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