दुर्गा सप्तशती – क्या, क्यों और कैसे?
मार्कण्डेय पुराण में ब्रहदेव ने मनुष्य जाति की रक्षा के लिए एक परम गुप्त, परम उपयोगी और मनुष्य का कल्याणकारी देवी कवच एवं व देवी सुक्त बताया है और कहा है कि जो मनुष्य इन उपायों को करेगा, वह इस संसार में सुख भोग कर अन्त समय में बैकुण्ठ को जाएगा।
ब्रहदेव ने कहा कि जो मनुष्य दुर्गा सप्तशती का पाठ करेगा उसे सुख मिलेगा। देवीभगवत पुराण के अनुसार माँ जगदम्बा का अवतरण श्रेष्ठ पुरूषो की रक्षा के लिए हुआ है। जबकि श्रीं मद देवीभागवत के अनुसार वेदों और पुराणों कि रक्षा के और दुष्टों के दलन के लिए माँ जगदंबा का अवतरण हुआ है। इसी तरह से ऋगवेद के अनुसार माँ दुर्गा ही आद्ध शक्ति है, उन्ही से सारे विश्व का संचालन होता है और उनके अलावा और कोई अविनाशी नही है।
इसीलिए नवरात्रि के दौरान नव दुर्गा के नौ रूपों का ध्यान, उपासना व आराधना की जाती है तथा नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां दुर्गा के एक-एक शक्ति रूप का पूजन किया जाता है।
नवरात्रि के दौरान श्री दुर्गा सप्तशती के पाठ को अत्यधिक महत्वपूर्ण माना गया है। इस दुर्गा सप्तशती को ही शतचण्डि, नवचण्डि अथवा चण्डि पाठ भी कहते हैं और रामायण के दौरान लंका पर चढाई करने से पहले भगवान राम ने इसी चण्डी पाठ का आयोजन किया था, जो कि शारदीय नवरात्रि के रूप में आश्विन मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथी तक रहती है।
हालांकि पूरे साल में कुल 4 बार आती है, जिनमें से दो नवरात्रियों को गुप्त नवरात्रि के नाम से जाना जाता है, जिनका अधिक महत्व नहीं होता, जबकि अन्य दो नवरात्रियों में भी एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार शारदीय नवरात्रि का ज्यादा महत्व इसलिए है क्योंकि देवताओं ने इस मास में देवी की अराधना की थी, जिसके परिणामस्वरूप मां जगदम्बा ने दैत्यों का वध कर देवताओं को फिर से स्वर्ग पर अधिकार दिलवाया था।
मार्कडेय पुराण के अनुसार नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के जिन नौ शक्तियों की पूजा-आराधना की जाती है, उनके नाम व संक्षिप्त महत्व इस प्रकार से है-
मां दुर्गा का शैल पुत्री रूप, जिनकी उपासना से मनुष्य को अन्नत शक्तियां प्राप्त होती हैं तथा उनके अाध्यात्मिक मूलाधार च्रक का शोधन होकर उसे जाग्रत कर सकता है, जिसे कुण्डलिनी-जागरण भी कहते है।
मां दुर्गा का ब्रहमचारणी रूप, तपस्या का प्रतीक है। इसलिए जो साधक तप करता है, उसे ब्रहमचारणी की पूजा करनी चाहिए।
च्रदघण्टा, मां दुर्गा का तीसरा रूप है और मां दुर्गा के इस रूप का ध्यान करने से मनुष्य को लौकिक शक्तिया प्राप्त होती हैं, जिससे मनुष्य को सांसारिक कष्टों से छुटकारा मिलता है।
मां दुर्गा की चौथी शक्ति का नाम कूष्माण्डा है और मां के इस रूप का ध्यान, पूजन व उपासना करने से साधक को रोगों यानी आधि-व्याधि से छुटकारा मिलता है।
माँ जगदम्बा के स्कन्दमाता रूप को भगवान कार्तिकेय की माता माना जाता है, जो सूर्य मण्डल की देवी हैं। इसलिए इनके पुजन से साधक तेजस्वी और दीर्घायु बनता है।
कात्यानी, माँ दुर्गा की छठी शक्ति का नाम है, जिसकी उपासना से मनुष्य को धर्म, अर्थ, काम और अन्त में मोक्ष, चारों की प्राप्ति होती है। यानी मां के इस रूप की उपासना करने से साधक की सभी मनोकामनाऐं पूरी होती हैं।
मां जगदीश्वरी की सातवीं शक्ति का नाम कालरात्रि है, जिसका अर्थ काल यानी मुत्यृ है और मां के इस रूप की उपासना मनुष्य को मुत्यृ के भय से मुक्ति प्रदान करती है तथा मनुष्य के ग्रह दोषों का नाश होता है।
आठवी शक्ति के रूप में मां दुर्गा के महागौरी रूप की उपासना की जाती है, जिससे मनुष्य में देवी सम्पदा और सद्गुणों का विकास होता है और उसे कभी आर्थिक संकट का सामना नहीं करना पडता।
सिद्धीदात्री, मां दुर्गा की अन्तिम शक्ति का नाम है जो कि नवरात्रि के अन्तिम दिन पूजी जाती हैं और नाम के अनुरूप ही माँ सिद्धीदात्री, मनुष्य को समस्त प्रकार की सिद्धि प्रदान करती हैं जिसके बाद मनुष्य को किसी और प्रकार की जरूरत नही रह जाती।
हिन्दु धर्म की मान्यतानुसार दुर्गा सप्तशती में कुल 700 श्लोक हैं जिनकी रचना स्वयं ब्रह्मा, विश्वामित्र और वशिष्ठ द्वारा की गई है और मां दुर्गा के संदर्भ में रचे गए इन 700 श्लोकों की वजह से ही इस ग्रंथ का नाम दुर्गा सप्तशती है।
दुर्गा सप्तशती मूलत: एक जाग्रत तंत्र विज्ञान है। यानी दुर्गा सप्तशती के श्लोकों का अच्छा या बुरा असर निश्चित रूप से होता है और बहुत ही तीव्र गति से होता है।
दुर्गा सप्तशती में अलग-अलग जरूरतों के अनुसार अलग-अलग श्लोकों को रचा गया है, जिसके अन्तर्गत मारण-क्रिया के लिए 90, मोहन यानी सम्मोहन-क्रिया के लिए 90, उच्चाटन-क्रिया के लिए 200, स्तंभन-क्रिया के लिए 200 व विद्वेषण-क्रिया के लिए 60-60 मंत्र है।
चूंकि दुर्गा सप्तशती के सभी मंत्र बहुत ही प्रभावशाली हैं, इसलिए इस ग्रंथ के मंत्रों का दुरूपयोग न हो, इस हेतु भगवान शंकर ने इस ग्रंथ को शापित कर रखा है, और जब तक इस ग्रंथ को शापोद्धार विधि का प्रयोग करते हुए शाप मुक्त नहीं किया जाता, तब तक इस ग्रंथ में लिखे किसी भी मंत्र तो सिद्ध यानी जाग्रत नहीं किया जा सकता अौर जब तक मंत्र जाग्रत न हो, तब तक उसे मारण, सम्मोहन, उच्चाटन आदि क्रिया के लिए उपयोग में नहीं लिया जा सकता।
हालांकि इस ग्रंथ का नवरात्रि के दौरान सामान्य तरीके से पाठ करने पर पाठ का जो भी फल होता है, वो जरूर प्राप्त होता है, लेकिन तांत्रिक क्रियाओं के लिए यदि इस ग्रंथ का उपयोग किया जा रहा हो, तो उस स्थिति में पूरी विधि का पालन करते हुए ग्रंथ को शापमुक्त करना जरूरी है।
इस संदर्भ में एक पौराणिक कथा है कि एक बार भगवान शिव की पत्नी माता पार्वती को किसी कानणवश बहुत क्रोध आ गया, जिसके कारण माँ पार्वती ने राैद्र रूप धारण कर लिया और मां पार्वती का इसी क्रोधित रूप को हम मां काली के नाम से जानते हैं।
कथा के अनुसार मां काली के रूप में क्रोधातुर मां पार्वती पृथ्वी पर विचरन करने लगी और सामने आने वाले हर प्राणी को मारने लगी। इससे सुर-असुर, देवी-देवता सभी भयभीत हो गए और मां काली के भय से मुक्त होने के लिए ब्रम्हाजी के नेतृत्व में सभी भगवान शिव के पास गए औन उनसे कहा कि- हे भगवन भाेले नाथ… आप ही देवी काली को शांत कर सकते हैं और यदि आपने ऐसा नहीं किया, तो सम्पूर्ण पृथ्वी का नाश हो जाएगा, जिससे इस भूलोक में न कोई मानव होगा न ही जीव जन्तु।
भगवान शिव ने ब्रम्हाजी को जवाब दिया कि- अगर मैंने एेसा किया तो बहुत ही भयानक असर होगा। सारी पृथ्वी पर दुर्गा के रूप मंत्रो से भयानक शक्ति का उदय होगा और दावन इसका दुरूपयोग करना शुरू कर देंगे, जिससे सम्पूर्ण संसार में आसुरी शक्तियो का वास हो जाएगा।
ब्रम्हाजी ने फिर भगवान शिव से प्रार्थना की कि- हे भगवान भूतेश्वर… आप रौद्र रूप में देवी को शांत कीजिए और इस दौरान उदय होने वाले मां दुर्गा के रूप मंत्रों को शापित कर दीजिए, ताकि भविष्य में कोई भी इसका दुरूपयोग न कर सके।
वहीं भगवान नारद भी थे जिन्होने ब्रम्हाजी से पूछा कि- हे पितामह… अगर भगवान शिव ने उदय होने वाले मां दुर्गा के रूप मंत्रों को शापित कर दिया, तो संसार में जिसको सचमुच में देवी रूपों की आवश्यकता होगी, वे लोग भी मां दुर्गा के तत्काल जाग्रत मंत्र रूपों से वंचित रह जाऐंगे। उनके लिए क्या उपाय है, ताकि वे इन जाग्रत मंत्रों का फायदा ले सकें?
भगवान नारद के इस सवाल के जवाब में भगवान शिव ने दुर्गा सप्तशती को शापमुक्त करने की पूरी विधि बताई, जो कि अग्रानुसार है और इस विधि का अनुसरण किए बिना दुर्गा सप्तशती के मारण, वशीकरण, उच्चाटन जैसे मंत्रों को सिद्ध नहीं किया जा सकता न ही दुर्गा सप्तशती के पाठ का ही पूरा फल मिलता है।
[: नवरात्र,माता भगवती की आराधना का श्रेष्ठ समय क्यों??????
भारत में आज हम महिलाओं को सशक्त करने की बात करते हैं. महिला सशक्तिकरण की बयार चल रही है और इसी समय आया है नवरात्र का पर्व. एक ऐसा पर्व जो हमारी संस्कृति में महिलाओं के गरिमामय स्थान को दर्शाता है।
नारी मूलत: शक्ति है. वह असीम ऊर्जा है, जिसके बिना संरचना, पोषण, रक्षा और आनंद की कल्पना नहीं की जा सकती. नवरात्र में हम उसी नारी शक्ति को पूजते हैं. भारतीय दर्शन ने मां दुर्गा के माध्यम से नारी-शक्ति को महत्व दिया है।
पुराणों में नवरात्र, मान्यता है कि नवरात्र में महाशक्ति की पूजा कर श्रीराम ने अपनी खोई हुई शक्ति पाई. इसलिए इस समय आदिशक्ति की आराधना पर विशेष बल दिया गया है. मार्कंडेय पुराण के अनुसार, दुर्गा सप्तशती में स्वयं भगवती ने इस समय शक्ति-पूजा को महापूजा बताया है।
कलश स्थापना, देवी दुर्गा की स्तुति, सुमधुर घंटियों की आवाज, धूप-बत्तियों की सुगंध – यह नौ दिनों तक चलने वाले साधना पर्व नवरात्र का चित्रण है. हमारी संस्कृति में नवरात्र पर्व की साधना का विशेष महत्व है. नवरात्र पूजा पर्व वर्ष में दो बार आता है, एक चैत्र माह में, दूसरा आश्विन माह में।
नवरात्र में ईश-साधना और अध्यात्म का अद्भुत संगम होता है. आश्विन माह की नवरात्र में रामलीला, रामायण, भागवत पाठ, अखंड कीर्तन जैसे सामूहिक धार्मिक अनुष्ठान होते हैं. यही वजह है कि नवरात्र के दौरान प्रत्येक इंसान एक नए उत्साह और उमंग से भरा दिखाई पडता है।
वैसे तो ईश्वर का आशीर्वाद हम पर सदा ही बना रहता है, किन्तु कुछ विशेष अवसरों पर उनके प्रेम, कृपा का लाभ हमें अधिक मिलता है। पावन पर्व नवरात्र में देवी दुर्गा की कृपा, सृष्टि की सभी रचनाओं पर समान रूप से बरसती है। इसके परिणामस्वरूप ही मनुष्यों को लोक मंगल के क्रिया-कलापों में आत्मिक आनंद की अनुभूति होती है।
नवरात्र को दो भागों में बांटा जा सकता है। पहले भाग में नवरात्र में की जाने वाली देवी की साधना और उपासना को रखा जा सकता है। दूसरे भाग में व्रत और उपवास की प्रक्रिया रखी जा सकती है। ऐसा माना जाता है कि परमानंद की प्राप्ति तभी संभव है, जब दोनों भागों की प्रक्रियाओं का विधिवत पालन किया जाए।
नवरात्रके नौ दिनों में स्वयं के बुरे विचार, क्रोध, छल-कपट, ईष्र्या आदि जैसे बुरे गुणों पर नियंत्रण किया जाता है। यदि आप इन नौ दिनों में मानव कल्याण में रत रहते हैं, तो अनुष्ठान का महत्व और अधिक बढ जाता है।
नवरात्र की नौ देवियां,नवरात्र के इन नौ दिनों में देवी के नौ अलग-अलग स्वरूपों की आराधना होती है. सच यही है कि शक्ति या ऊर्जा में यही क्षमता होती है कि वह स्वयं को अवसर के अनुकूल भिन्न-भिन्न रूपों में व्यक्त कर सके. मां जननी है। हम सबकी ही नहीं, बल्कि राम और कृष्ण तक की जननी है।
वह स्वयं को जिन अलग-अलग रूपों में अभिव्यक्त करती है, उसकी शुरुआत होती है दुर्गा के रूप में. मान्यता है कि मां दुर्गा ने लगातार नौ दिन और नौ रात तक युद्ध करके महिषासुर का वध किया था। यह उसके रक्षक का रूप है, लेकिन सौम्य रूप, जिन्हें हम आगे रक्षक के रौद्र रूप में भी पाते हैं. शक्ति के इस रूप को नाम दिया गया काली का।
इस रूप को हम दूसरे दिन पूजते हैं. तीसरे दिन यह मां ऐसे रूप में पूजी जाती है, जिसने संपूर्ण सृष्टि का सृजन किया है. तभी तो इन्हें जगदंबा कहा गया. चौथे दिन जगदंबा अन्नपूर्णा का रूप ले लेती हैं, ताकि अपने सृजित जगत का पेट भर सकें. उसे अन्न उपलब्ध करा सकें. इसके बाद यह नारी-शक्ति हमारे सामने सर्वमंगल, भैरवी, चंडिका, ललिता और भवानी के जिन रूपों में प्रकट होती हैं, उसका मूल उद्देश्य जगत का कल्याण करना होता है।
नवरात्र में हम शक्ति की देवी दुर्गा की उपासना करते हैं. इस दौरान कुछ भक्तगण नौ दिनों का उपवास रखते हैं, तो कुछ सिर्फ पहले और अंतिम दिन उपवास रखते हैं. दरअसल, त्यौहारों खासकर नवरात्र में उपवास का विशेष महत्व है. उपवास में उप का अर्थ है निकट और वास का मतलब निवास करना. कुल मिलाकर यह माना जाता है कि उपवास के माध्यम से ईश्वर से निकटता और बढ़ जाती है।
नवरात्र कथा, पौराणिक कथानुसार प्राचीन काल में दुर्गम नामक राक्षस ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी को प्रसन्न कर लिया. उनसे वरदान लेने के बाद उसने चारों वेद व पुराणों को कब्जे में लेकर कहीं छिपा दिया. जिस कारण पूरे संसार में वैदिक कर्म बंद हो गया।
इस वजह से चारों ओर घोर अकाल पड गया. पेड़-पौधे व नदी-नाले सूखने लगे. चारो ओर हाहाकार मच गया. जीव जंतु मरने लगे. सृष्टि का विनाश होने लगा।
सृष्टि को बचाने के लिए देवताओं ने व्रत रखकर नौ दिन तक मां जगदंबा की आराधना की और माता से सृष्टि को बचाने की विनती की. तब मां भगवती व असुर दुर्गम के बीच घमासान युद्ध हुआ. मां भगवती ने दुर्गम का वध कर देवताओं को निर्भय कर दिया. तभी से नवदुर्गा तथा नव व्रत का शुभारंभ हुआ।
पूजन विधि, पूजा करने से पहले सर्वप्रथम स्नान आदि नित्य कर्म से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहन कर अपने ईष्ट देवता को याद करें और फिर व्रत का ध्यान कर अपनी पूजा आरंभ करें।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके |
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणी नमोऽस्तुते ||
या देवी सर्वभूतेषु मातृरुपेण संस्थितः!
या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरुपेण संस्थितः!!
या देवी सर्वभूतेषु शान्तिरुपेण संस्थितः!
नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमस्तस्यैः नमो नमः!!