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नवरात्रि में माँ की उपासना के लिये दुर्गा सप्तशती अनुष्ठान विधि
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दुर्गा सप्तशती के अध्याय पाठन से कामनापूर्ति।
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1- प्रथम अध्याय- हर प्रकार की चिंता मिटाने के लिए।
2- द्वितीय अध्याय- मुकदमा झगडा आदि में विजय पाने के लिए।
3- तृतीय अध्याय- शत्रु से छुटकारा पाने के लिये।
4- चतुर्थ अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिये।
5- पंचम अध्याय- भक्ति शक्ति तथा दर्शन के लिए।
6- षष्ठम अध्याय- डर, शक, बाधा ह टाने के लिये।
7- सप्तम अध्याय- हर कामना पूर्ण करने के लिये।
8- अष्टम अध्याय- मिलाप व वशीकरण के लिये।
9- नवम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
10- दशम अध्याय- गुमशुदा की तलाश, हर प्रकार की कामना एवं पुत्र आदि के लिये।
11- एकादश अध्याय- व्यापार व सुख-संपत्ति की प्राप्ति के लिये।
12- द्वादश अध्याय- मान-सम्मान तथा लाभ प्राप्ति के लिये।
13- त्रयोदश अध्याय- भक्ति प्राप्ति के लिये।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने और सिद्ध करने की मुख्य विधियाँ
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सामान्य विधि 👇

नवार्ण मंत्र जप और सप्तशती न्यास के बाद तेरह अध्यायों का क्रमशः पाठ, प्राचीन काल में कीलक, कवच और अर्गला का पाठ भी सप्तशती के मूल मंत्रों के साथ ही किया जाता रहा है। आज इसमें अथर्वशीर्ष, कुंजिका मंत्र, वेदोक्त रात्रि देवी सूक्त आदि का पाठ भी समाहित है जिससे साधक एक घंटे में देवी पाठ करते हैं।

वाकार विधि 👇

यह विधि अत्यंत सरल मानी गयी है। इस विधि में प्रथम दिन एक पाठ प्रथम अध्याय, दूसरे दिन दो पाठ द्वितीय, तृतीय अध्याय, तीसरे दिन एक पाठ चतुर्थ अध्याय, चौथे दिन चार पाठ पंचम, षष्ठ, सप्तम व अष्टम अध्याय, पांचवें दिन दो अध्यायों का पाठ नवम, दशम अध्याय, छठे दिन ग्यारहवां अध्याय, सातवें दिन दो पाठ द्वादश एवं त्रयोदश अध्याय करके एक आवृति सप्तशती की होती है।

संपुट पाठ विधि 👇

किसी विशेष प्रयोजन हेतु विशेष मंत्र से एक बार ऊपर तथा एक नीचे बांधना उदाहरण हेतु संपुट मंत्र मूलमंत्र-1, संपुट मंत्र फिर मूलमंत्र अंत में पुनः संपुट मंत्र आदि इस विधि में समय अधिक लगता है।

सार्ध नवचण्डी विधि 👇

इस विधि में नौ ब्राह्मण साधारण विधि द्वारा पाठ करते हैं। एक ब्राह्मण सप्तशती का आधा पाठ करता है। (जिसका अर्थ है- एक से चार अध्याय का संपूर्ण पाठ, पांचवे अध्याय में ”देवा उचुः- नमो देव्ये महादेव्यै” से आरंभ कर ऋषिरुवाच तक, एकादश अध्याय का नारायण स्तुति, बारहवां तथा तेरहवां अध्याय संपूर्ण) इस आधे पाठ को करने से ही संपूर्ण कार्य की पूर्णता मानी जाती है। एक अन्य ब्राह्मण द्वारा षडंग रुद्राष्टाध्यायी का पाठ किया जाता है। इस प्रकार कुल ग्यारह ब्राह्मणों द्वारा नवचण्डी विधि द्वारा सप्तशती का पाठ होता है। पाठ पश्चात् उत्तरांग करके अग्नि स्थापना कर पूर्णाहुति देते हुए हवन किया जाता है जिसमें नवग्रह समिधाओं से ग्रहयोग, सप्तशती के पूर्ण मंत्र, श्री सूक्त वाहन तथा शिवमंत्र ‘सद्सूक्त का प्रयोग होता है जिसके बाद ब्राह्मण भोजन,’ कुमारी का भोजन आदि किया जाता है। वाराही तंत्र में कहा गया है कि जो ”सार्धनवचण्डी” प्रयोग को संपन्न करता है वह प्राणमुक्त होने तक भयमुक्त रहता है, राज्य, श्री व संपत्ति प्राप्त करता है।

शतचण्डी विधि 👇

मां की प्रसन्नता हेतु किसी भी दुर्गा मंदिर के समीप सुंदर मण्डप व हवन कुंड स्थापित करके (पश्चिम या मध्य भाग में) दस उत्तम ब्राह्मणों (योग्य) को बुलाकर उन सभी के द्वारा पृथक-पृथक मार्कण्डेय पुराणोक्त श्री दुर्गा सप्तशती का दस बार पाठ करवाएं। इसके अलावा प्रत्येक ब्राह्मण से एक-एक हजार नवार्ण मंत्र भी करवाने चाहिए। शक्ति संप्रदाय वाले शतचण्डी (108) पाठ विधि हेतु अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी तथा पूर्णिमा का दिन शुभ मानते हैं। इस अनुष्ठान विधि में नौ कुमारियों का पूजन करना चाहिए जो दो से दस वर्ष तक की होनी चाहिए तथा इन कन्याओं को क्रमशः कुमारी, त्रिमूर्ति, कल्याणी, रोहिणी, कालिका, शाम्भवी, दुर्गा, चंडिका तथा मुद्रा नाम मंत्रों से पूजना चाहिए। इस कन्या पूजन में संपूर्ण मनोरथ सिद्धि हेतु ब्राह्मण कन्या, यश हेतु क्षत्रिय कन्या, धन के लिए वेश्य तथा पुत्र प्राप्ति हेतु शूद्र कन्या का पूजन करें। इन सभी कन्याओं का आवाहन प्रत्येक देवी का नाम लेकर यथा ”मैं मंत्राक्षरमयी लक्ष्मीरुपिणी, मातृरुपधारिणी तथा साक्षात् नव दुर्गा स्वरूपिणी कन्याओं का आवाहन करता हूं तथा प्रत्येक देवी को नमस्कार करता हूं।” इस प्रकार से प्रार्थना करनी चाहिए। वेदी पर सर्वतोभद्र मण्डल बनाकर कलश स्थापना कर पूजन करें। शतचण्डी विधि अनुष्ठान में यंत्रस्थ कलश, श्री गणेश, नवग्रह, मातृका, वास्तु, सप्तऋषी, सप्तचिरंजीव, 64 योगिनी 50 क्षेत्रपाल तथा अन्याय देवताओं का वैदिक पूजन होता है। जिसके पश्चात् चार दिनों तक पूजा सहित पाठ करना चाहिए। पांचवें दिन हवन होता है।

इन सब विधियों (अनुष्ठानों) के अतिरिक्त प्रतिलोम विधि, कृष्ण विधि, चतुर्दशीविधि, अष्टमी विधि, सहस्त्रचण्डी विधि (१००८) पाठ, ददाति विधि, प्रतिगृहणाति विधि आदि अत्यंत गोपनीय विधियां भी हैं जिनसे साधक इच्छित वस्तुओं की प्राप्ति कर सकता है।

कुछ लोग दुर्गा सप्तशती के पाठ के बाद हवन खुद की मर्जी से कर लेते है और हवन सामग्री भी खुद की मर्जी से लेते है ये उनकी गलतियों को सुधारने के लिए है।
दुर्गा सप्तशती के वैदिक आहुति की सामग्री।

प्रथम अध्याय-👉 एक पान देशी घी में भिगोकर 1 कमलगट्टा, 1 सुपारी, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गुग्गुल, शहद यह सब चीजें सुरवा में रखकर खडे होकर आहुति देना।

द्वितीय अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, गुग्गुल विशेष

तृतीय अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 38 शहद

चतुर्थ अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं.1से11 मिश्री व खीर विशेष,
चतुर्थ अध्याय- के मंत्र संख्या 24 से 27 तक इन 4 मंत्रों की आहुति नहीं करना चाहिए। ऐसा करने से देह नाश होता है। इस कारण इन चार मंत्रों के स्थान पर ओंम नमः चण्डिकायै स्वाहा’ बोलकर आहुति देना तथा मंत्रों का केवल पाठ करना चाहिए इनका पाठ करने से सब प्रकार का भय नष्ट हो जाता है।

पंचम अध्ययाय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 9 मंत्र कपूर, पुष्प, व ऋतुफल ही है।

षष्टम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक सं. 23 भोजपत्र।

सप्तम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक सं. 10 दो जायफल श्लोक संख्या 19 में सफेद चन्दन श्लोक संख्या 27 में इन्द्र जौं।

अष्टम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार श्लोक संख्या 54 एवं 62 लाल चंदन।

नवम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या श्लोक संख्या 37 में 1 बेलफल 40 में गन्ना।

दशम अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 5 में समुन्द्र झाग 31 में कत्था।

एकादश अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 2 से 23 तक पुष्प व खीर श्लोक संख्या 29 में गिलोय 31 में भोज पत्र 39 में पीली सरसों 42 में माखन मिश्री 44 मेें अनार व अनार का फूल श्लोक संख्या 49 में पालक श्लोक संख्या 54 एवं 55 मेें फूल चावल और सामग्री।

द्वादश अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 10 मेें नीबू काटकर रोली लगाकर और पेठा श्लोक संख्या 13 में काली मिर्च श्लोक संख्या 16 में बाल-खाल श्लोक संख्या 18 में कुशा श्लोक संख्या 19 में जायफल और कमल गट्टा श्लोक संख्या 20 में ऋीतु फल, फूल, चावल और चन्दन श्लोक संख्या 21 पर हलवा और पुरी श्लोक संख्या 40 पर कमल गट्टा, मखाने और बादाम श्लोक संख्या 41 पर इत्र, फूल और चावल।

त्रयोदश अध्याय👉 प्रथम अध्याय की सामग्री अनुसार, श्लोक संख्या 27 से 29 तक फल व फूल।
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नवरात्रि विशेष ……..

नवरात्र का रहष्य <<
…..चान्द्रमास के अनुसार चार नवरात्र होते है – आषाढ शुक्लपक्ष मे आषाढी नवरात्र , आश्विन शुक्लपक्ष मेँ शारदीय नवरात्र , माघशुक्ल पक्ष मेँ शिशिर नवरात्र एवं चैत्र शुक्ल पक्ष मे बासिन्तक नवरात्र ।
तथापि परंपरा से दो नवरात्र – चैत्र एवं आश्विन मास मे सर्वमान्य है ।
….. चैत्रमास मधुमास एवं आश्विनमास ऊर्ज मास नाम से प्रसिद्ध है जो शक्ति के पर्याय है …,
…अतः शक्ति आराधना हेतु इस काल खण्ड को नवरात्र शब्द से सम्बोधित किया गया है …,…नवानां रात्रीणां समाहारः अर्थात् नौ रात्रियो का समूह …..
….. रात्रि का तात्पर्य है विश्रामदात्री , सुखदात्री के साथ एक अर्थ जगदम्बा भी है,।
..,रात्रिरुपयतो देवी दिवरुपो महेश्वरः …..
तंत्रग्रन्थोँ मेँ तीन रात्रि कालरात्रि (महाशिवरात्रि ) फाल्गुन कृष्णपक्ष चतुर्दशी महाकाली की रात्रि , मोहरात्रि आश्विन शुक्लपक्ष अष्टमी महासरस्वती की रात्रि , महारात्रि कार्तिक कृष्णपक्ष अमावश्या महालक्ष्मी की रात्रि ……
… एक अंक से सृष्टि का आरम्भ है । सम्पूर्ण मायिक सृष्टि का विस्तार आठ अंक तक ही है .,,
…,इससे परे ब्रह्म है जो नौ अंक का प्रतिनिधित्व करता है .अस्तु नवमी तिथि के आगमन पर शिव शक्ति का मिलन होता है ।
शक्ति सहित शक्तिमान को प्राप्त करने हेतु भक्त को नवधा भक्ति का आश्रय लेना पडता है , जीवात्मा नौ द्वार वाले पुर(शरीर) का स्वामी है – नवछिद्रमयो देहः . इन छिद्रो को पार करता हुआ जीव ब्रह्मत्व को प्राप्त करता है .-…,
अतः नवरात्र की प्रत्येक तिथि के लिए कुछ साधन ज्ञानियो द्वारा नियत किये गये है …..
प्रतिपदा – इसे शुभेच्छा कहते है । जो प्रेम जगाती है प्रेम बिना सब साधन व्यर्थ है , अस्तु प्रेम को अबिचल अडिग बनाने हेतु शैलपुत्री का आवाहन पूजन किया जाता है । अचल पदार्थो मे पर्वत सर्वाधिक अटल होता है ।
द्वितीया – धैर्यपूर्वक द्वैतबुद्धि का त्याग करके ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए माँ ब्रह्मचारिणी का पूजन करना चाहिए ।
तृतीया – त्रिगुणातीत (सत , रज ,तम से परे) होकर माँ चन्द्रघण्टा का पूजन करते हुए मन की चंचलता को बश मेँ करना चाहिए ।
चतुर्थी – अन्तःकरण चतुष्टय मन ,बुद्धि , चित्त एवं अहंकार का त्याग करते हुए मन, बुद्धि को कूष्माण्डा देवी के चरणोँ मेँ अर्पित करेँ ।
पंचमी – इन्द्रियो के पाँच विषयो अर्थात् शब्द रुप रस गन्ध स्पर्श का त्याग करते हुए स्कन्दमाता का ध्यान करेँ ।
षष्ठी – काम क्रोध मद मोह लोभ एवं मात्सर्य का परित्याग करके कात्यायनी देवी का ध्यान करे ।
सप्तमी – रक्त , रस माँस मेदा अस्थि मज्जा एवं शुक्र इन सप्त धातुओ से निर्मित क्षण भंगुर दुर्लभ मानव देह को सार्थक करने के लिए कालरात्रि देवी की आराधना करेँ ।
अष्टमी – ब्रह्म की अष्टधा प्रकृति पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश मन बुद्धि एवं अहंकार से परे महागौरी के स्वरुप का ध्यान करता हुआ ब्रह्म से एकाकार होने की प्रार्थना करे ।
नवमी – माँ सिद्धिदात्री की आराधना से नवद्वार वाले शरीर की प्राप्ति को धन्य बनाता हुआ आत्मस्थ हो जाय ।
……. पौराणिक दृष्टि से आठ लोकमाताएँ हैं तथा तन्त्रग्रन्थोँ मेँ आठ शक्तियाँ है…,
1 ब्राह्मी – सृष्टिक्रिया प्रकाशित करती है ।
2 माहेश्वरी – यह प्रलय शक्ति है ।
3 कौमारी – आसुरी वृत्तियोँ का दमन करके दैवीय गुणोँ की रक्षा करती है ।
4 वैष्णवी – सृष्टि का पालन करती है ।
5 वाराही – आधार शक्ति है इसे काल शक्ति कहते है ।
6 नारसिंही – ये ब्रह्म विद्या के रुप मेँ ज्ञान को प्रकाशित करती है
7 ऐन्द्री – ये विद्युत शक्ति के रुप मेँ जीव के कर्मो को प्रकाशित करती है ।
8 चामुण्डा – पृवृत्ति (चण्ड) निवृत्ति (मुण्ड) का विनाश करने वाली है ।

आठ आसुरी शक्तियाँ –
1 मोह – महिषासुर
2 काम – रक्तबीज
3 क्रोध – धूम्रलोचन
4 लोभ – सुग्रीव
5 मद मात्सर्य – चण्ड मुण्ड
6 राग द्वेष – मधु कैटभ
7 ममता – निशुम्भ
8 अहंकार – शुम्भ

,… अष्टमी तिथि तक इन दुगुर्णो रुपी दैत्यो का संहार करके नवमी तिथि को प्रकृति पुरुष का एकाकार होना ही नवरात्र का आध्यात्मिक रहस्य है ।नौ ही क्यो ?
………..
भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च ।
अहंकार इतीयं मे प्रकृतिरष्टधा ।

कहकर भगवान ने आठ प्रकृतियोँ का प्रतिपादन किया है इनसे परे केवल ब्रह्म ही है अर्थात् आठ प्रकृति एवं एक ब्रह्म ये नौ हुए जो परिपूर्णतम है।

नौ देवियाँ , शरीर के नौ छिद्र , नवधा भक्ति ,नवरात्र ये सभी पूर्ण हैँ।
नौ के अतिरिक्त संसार मे कुछ नहीँ है इसके अतिरिक्त जो है वह शून्य (0) है ।
इसीलिए तुलसी जी ने नौ दोहो चौपाईयो मे नाम वन्दना की है ..
किसी भी अंक को नौ से गुणाकरने पर गुणन फल
का योग नौ ही होता है .,….

अतः नौ ही परिपूर्ण है ।
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💥सिद्धि विनायक💥
नवरात्र में विशेष प्रस्तुति : क्या गर्भवती महिलाओं को व्रत रखना चाहिए ? क्या वृद्ध और बीमार लोगों को भी व्रत रखना चाहिए ? क्या के दौरान वृद्ध, गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बिमार व्यक्तियों को भी खाने-पीने से परहेज़ रखना चाहिए ? – SHOULD OLD, SICK, PREGNANT & CHILDREN ALSO ABSTAIN FROM TAKING FOOD/WATER, Etc. DURING FASTS ? :

नोट : हमने पिछले कुछ दिनों में कई अन्य उपयोगी लेख, जैसे नवरात्र के लिए महूरत, विशेष उपाय सावधानियां, और भी कई लेख दुर्लभ जानकारी वाले लिखे हैं. कुछ अन्य लेख इस दिनों में लिखेंगे. अगर नहीं पढ़े, तो कृपया उन्हें भी देख लें.

वृद्ध और बीमार लोगों को भी व्रत रखना चाहिए ?
शास्त्रों के अनुसार, वृद्ध, गर्भवती महिलाओं, बच्चों और बिमार व्यक्तियों को व्रत रखने से छूट है, विशेषकर अगर उनकी शारीरिक स्थिति इस प्रकार के व्रत आदि को झेलने की स्थिति में नहीं है.

विशेष :
व्रत भाव से होता है. बहुत कठोर व्रत रखने से भाग्य में कोई चमत्कारी परिवर्तन नहीं हो जायेगा. व्रत कई प्रकार के होते हैं – कुछ लोग अन्न का ग्रहण नहीं करते, कुछ लोग केवल फल और दूध आदि ले लेते हैं. कुछ अन्य केवल जल ग्रहण करते हैं. व्यक्ति को व्रत अपनी आयु, शारीरिक क्षमता और व्यवसाय/पारिवारिक कर्तव्यों आदि को ध्यान में रखकर, जो आसानी से हो सके, वही करना चाहिए.
कई ऐसे व्रत भी हैं, जिन्हें करने से (यह हमारे विचार हैं) भगवान शायद अधिक प्रसन्न हों – जैसे झूठ न बोलना, किसी को धोखा न देना, कोई बुरी आदत छोड़ना – और हो सके, तो सामर्थ्य अनुसार, किसी भूखे को भोजन, जरूरतमंद को दवाई, किसी स्कूल/कालेज में पढ़ने वाले की फीस, किताबों आदि में सहायता, आदि-2.
किसी मांगने वाले को पैसे दे देना, हमारे विचार में कोई बढ़िया दान नहीं है.

व्रत के दौरान सावधानियां :

गर्भवती महिलायें :
यदि आप स्वस्थ है और कोई कमज़ोरी नहीं महसूस कर रहीं हैं ख़ास कर पहली तिमाही में तो आप उपवास रख सकती हैं। हालांकि, यह करने से पहले अपनी डॉक्टर से बात अवश्य करें ।
बेहतर होगा, कि आप दूध, फल आदि का सेवन करते रहे.

उपरोक्त सभी के लिए :

  • व्रत के दौरान भी शुगर लेवल चेक करते रहें (मधुमेह से पीड़ित व्यक्ति).
  • वृद्ध लोगों को इस बात का विशेष ख्याल रखना चाहिए कि शरीर में पानी की कमी न होने पाए। इसके लिए प्यास लगने पर पर्याप्त मात्रा में पानी पिएं।
  • आपका वजन अधिक है तो तरल पदार्थ खूब लें जैसे सूप, फैट फ्री दूध, मट्ठा, मौसमी, लौकी का जूस आदि।
  • आपके शरीर में खून की कमी है तो हरी सब्जियां, फल, दूध व इससे बने पदार्थ अवश्य लें। – आप किसी बीमारी से पीड़ित हैं तो दवा बंद न करें। इसे नियमित रूप से लेते रहें।

विशेष :

  1. नाख़ून काटना, बाल कटवाना, (यह अलग-२ क्षेत्र/समाज के अनुसार अलग-२ प्रथा के अनुसार होता है. जैसा आप के परिवार में चला आ रहा है, उसे चलने दे सकते हैं), दिन में निद्रा, मैथुन, शराब, मांस, आदि से इन दिनों परहेज करना चाहिए।
  2. व्रत शरीर को आराम देने के लिए भी किया जाता है. इसमें दे-दना-दन सिंघाड़े के आटे की पूड़ियाँ, पराँठे, आलू की टिक्की, चाट,, खोये की बर्फी, मालपूये (मुँह में पानी आ गया या नहीं ? – चिन्ता न करें, हम आज/कल में इनको बनाने की विधि भी पोस्ट करेंगे ! 🙂 🙂 :)) — आ…हा..आ ……… अरे भाई मज़ा तो लें, पर कुछ दया अपने पेट पर भी बनाये रखें, गरीबों की सहायता करने की सलाह दी है, डाक्टरों की नहीं ! 🙂 :
    🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃🌼🍃🌼
    आप का आज का दिन मंगलमयी हो – आप स्वस्थ रहे, सुखी रहे – इस कामना के साथ।

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[नवरात्र क्या है ?

  *नव दुर्गा रहस्य*

पूज्यपाद गुरुदेव भगवान के श्रीचरणों में कोटि-कोटि नमन

(सभी आदरणीय जनों और मित्रों को नव वर्ष और नवरात्र के पावन अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं)

 *'नवरात्र' क्या है। यह चैत्र और आश्विन माह में ही क्यों पड़ता है ? इस समय ऋतू परिवर्तन होने का क्या कारण है ? उसका नवरात्र से क्या सम्बन्ध है? इस अवधि में भौतिक जगत में हलचल क्यों मचने लगती है ?*

धरती, आकाश, वायुमंडल में परिवर्तन क्यों होने लगते हैं और इन परिवर्तनों के पीछे का रहस्य क्या है ? यह पर्व नौ दिन का क्यों होता है? इसका नाम ‘नवरात्र’ ही क्यों है नवदिवस क्यों नहीं ? इस अवसर को रात्रि के साथ जोड़ने की सार्थकता क्या है ?–आदि-आदि अनेकानेक प्रश्न हैं जो अपने पीछे अनेक रहस्य समेटे हुए हैं जिनकी वास्तविकता जानना हम-सभी लोगों को आवश्यक है।
हम भारत के सत्य सनातन धर्म के मानने वाले लोग प्राककाल से ही नवरात्र या नवदुर्गा पर्व को बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते आ रहे हैं। लेकिन हममें से अधिसंख्य लोग ऐसे हैं जो बिना इसकी वास्तविकता जाने ‘मक्षिका स्थाने मक्षिका’ वाली कहावत चरितार्थ करते रहते हैं। हम सब यही समझते हैं कि प्राचीन समय में जब अधर्म, पाप, अनाचार, अत्याचार बहुत बढ़ गया और असुरों के द्वारा देवों को सताया जाने लगा तो सारे देवों ने मिलकर अपने-अपने तेज से एक ऐसी दिव्य शक्ति का प्राकट्य किया जिसे ‘दुर्गा’ कहा गया। फिर इसी शक्ति स्वरूपा दुर्गा ने असुरों का विनाश किया। इस शक्ति के नौ विभिन्न रूपों को ही नवदुर्गा कहा गया।
दर असल इस पौराणिक आख्यान से थोडा हटकर एक अलग पहलू पर भी हमें विचार करना है जो वैज्ञानिक और खगोलीय तथ्यों को भी समेटे हुए है।

नवरात्र का पर्व वह पर्व है जिसमें नौ रात्रियों का समावेश है। (नवानाम रात्रीणाम समाहारः। नव +रात्रि=नवरात्रि। जहाँ नव रात्रियों की अवधि में जिस पर्व का आयोजन हो उस पर्व का नाम–‘नवरात्र’ कहलाता है।
यह समय एक विशिष्ट समय होता है। यह वह अवसर होता है जब ब्रह्माण्ड में असंख्य प्रकाश-धाराएँ हमारे ‘सौर मण्डल’ पर झरती हैं। ये प्रकाश धाराएँ एक दूसरे को काटते हुए अनेकानेक त्रिकोणाकृतियां बनाती हैं और एक-के-बाद एक अंतरिक्ष में विलीन होती रहती हैं। ये त्रिकोण आकृतियां बड़ी ही रहस्यपूर्ण होती है। ये भिन्न वर्ण, गुण, धर्म की होती हैं।
हिरण्यगर्भ संहिता के अनुसार ये प्रकाश-धाराएँ ‘ब्रह्माण्डीय ऊर्जाएं’ हैं। ये हमारे सौरमण्डल में प्रवेश कर और विभिन्न ग्रहों, नक्षत्रों, तारों की ऊर्जाओं से घर्षण करने के बाद एक विशिष्ट प्रभा का स्वरुप धारण कर लेती हैं। वैदिक विज्ञान के अनुसार ये दैवीय ऊर्जाएं हैं जो ‘इदम्’ से निकल कर ‘ईशम’ तक आती हैं। अध्यात्म शास्त्र में ‘इदम्’ को ‘परमतत्व’ कहा गया है। ‘ईशम’ का अर्थ है–‘इदम् ‘का कर्तारूप। अर्थात् इदम् निर्विकार, निर्गुण, निराकार अनन्त ब्रह्मस्वरुप है और ईशम है सगुण, साकार, ईश्वर रूप।

ये ऊर्जाएं ईशम से निकल कर अपने को तीन तत्वों में विभक्त कर लेती हैं। ये तत्व हैं–अग्नि, आप (जल) और आदित्य। आदित्य भी अपने को तीन तत्वों में विभक्त कर लेता है। ये तत्व है–आकाश, वायु और पृथ्वी। इस प्रकार पांच रूप(अग्नि, जल, वायु, आकाश और पृथ्वी)–ये पंचतत्व के रूप में जाने गए हैं। शोध और अनुसन्धान के द्वारा आज यह स्पष्ट रूप से सिद्ध हो चुका है कि ‘तत्व’ ही ऊर्जा रूप में बदल जाता है। तत्व ही ऊर्जा है और ऊर्जा ही तत्व है। इन ऊर्जाओं के गुण- धर्म अलग-अलग होते हैं।
आज का विज्ञान इन्हें ही ‘इलेक्ट्रॉन’, ‘प्रोटॉन’ और ‘न्यूट्रॉन’ के नाम से पुकारता है। ज्योतिष के हिसाब से ये ही ज्ञानशक्ति, बलशक्ति और क्रियाशक्ति हैं। कालांतर में उपासना पद्धति विकसित होने पर उपासना प्रसंग में ये ही महासरस्वस्ती, महालक्ष्मी और महाकाली के रूप में स्वीकार की गयीं। इनके वाहक रूप में ब्रह्मा, विष्णु और महेश की कल्पना की गयी। इन्हें तंत्र में ‘पंचमुंडी’ आसन कहा गया है
हिरण्यगर्भ संहिता के अनुसार ये पांचों ऊर्जाएं सौर मण्डल में प्रवेश कर ‘सौरऊर्जा’ का रूप धारण कर लेती हैं तथा नौ भागों में विभाजित हो जाती हैं और नौ मंडलों का अलग-अलग निर्माण कर लेती हैं। ये नौ मंडल ही ज्योतिष के ‘नवग्रह’ हैं। इन ग्रहों से विभिन्न वर्णों की रश्मियाँ झरती हैं जो समस्त चराचर जगत को अपने प्रभाव में ले लेती हैं। इन्हीं से जीवों की उत्पत्ति होती है, प्राणियों में जीवन का संचार होता है। पृथ्वी पर भी इन्हीं से जीवन, जल, वायु, वनस्पति, खनिज, रत्न, धातु तथा विभिन्न पदार्थो का निर्माण हुआ है। पञ्चतत्वों के संयोजन में विभिन्न क्रमों के बदलाव से विभिन्न पदार्थ की रचना वैज्ञानिकों के अनुसार ये ऊर्जाएं पृथ्वी पर उत्तरी ध्रुव की ओर से क्षरित होती हैं और पृथ्वी को यथोचित पोषण देने के बाद दक्षिणी ध्रुव की ओर से होकर निकल जाती हैं। इसी को वैज्ञानिक लोग ‘मेरुप्रभा’ कहते हैं। इसी ‘मेरुप्रभा ‘के कारण पृथ्वी का चुम्बकत्व होता है। मनुष्य के अन्दर भी अपना चुम्बकत्व उसी के फलस्वरूप होता है। मनुष्य शरीर में रीढ़ की हड्डी के भीतर सुषुम्ना नाड़ी होती है। यहाँ पर परम शून्यता रहती है। इसीलिए इसे ‘शून्य नाड़ी’ भी कहा गया है। यहाँ स्थित वह परमशून्य उस परम तत्व का ही रूप है जो अनादि काल से मनुष्य के शरीर में सुप्तावस्था में रहता आया है। नवरात्र के दिनों में मनुष्य को अनायास ही एक अलौकिक अवसर हाथ लग जाता है जब उसकी चेतना में आलोड़न होने लगता है। इस समय मनुष्य के अन्दर चुम्बकीय शक्ति में भी वृद्धि हो जाती है।
समस्त सनातन धर्मावलम्बियों शक्ति उपासको को नवरात्र पावन पर्व की अनंत मंगल शुभकामनाएं मां भगवती असीम कृपा करुणा बरसाए विश्व का कल्याण हो

नारायण श्रीनारायण

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