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आप सत्य को पा सकते हैं। लेकिन खतरा यह है।। कि शास्त्रों के सुंदर और मोहक वचन भ्रांति दे सकते हैं।। ऐसा लग सकता है, कि पा लिया हर चीज तो मालूम है। यहाँ ऐसा कौन है।। जो ब्रह्म के संबंध में बड़ी बड़ी बातें न कर सके, जो सारे जगत को माया न कह सके उसका जीवन चाहे कुछ कहता हो लेकिन वह दोहराए चले जा रहा है,कि जगत माया है, ब्रह्मा सत्य है। यह बातें कोरी बातें हैं।। सत्य को पाने के लिए उधार का ज्ञान काम नहीं आता। वह स्वयँ ही साधना होता है।।

                *!! !!*

: ये बात तो सत्य है कि भक्त के जीवन में भी दुख बहुत होते हैं लेकिन ये बात भी सत्य है कि प्रभु भक्त के चेहरे पर कभी मायूसी नहीं रहती है।। भक्ति दुख नहीं मिटाती है बस दुख सहने की क्षमता को इतना बढ़ा देती है कि बड़े से बड़ा दुख भी उसके आगे बौना ही नजर आता है। भक्ति जीवन का श्रृंगार है। भक्ति वो प्रसाधन है जो जीवन के सौंदर्य को बढ़ा देता है।। प्रभु श्री राम स्वयं माँ शबरी से कहते हैं, कि-
भगति हीन नर सोहइ कैसा।
बिनु जल बारिद देखिअ जैसा॥
जैसे बिना जल के बादल शोभाहीन एवं अनुपयोगी हो जाता है, उसी प्रकार भक्तिहीन मानव का जीवन भी समझा जाना चाहिए। प्रभु चरणों में विश्वास हमारे अंदर की सकारात्मकता को बनाए रखकर हमारे आत्मबल को मजबूत बनाता है।। सत्य कहें तो भक्ति ही किसी व्यक्ति के अंदर साहस पैदा करती है। हनुमानजी महाराज ऐसे ही साहसी और बलशाली नहीं बन गये।। सच पूछो तो भक्ति के प्रताप से ही वो साहसी औ बलशाली भी बन पाये हैं। स्वकल्याण और पर सेवा की भावना दृढ़ हो, इसके लिए भी भक्ति महारानी का सुदृढ़ आश्रय अनिवार्य हो जाता है।।
[: कितना अजीब है, ना दिसंबर और जनवरी का रिश्ता जैसे पुरानी यादों और नए वादों का किस्सा दोनों काफी नाज़ुक है दोनो मे गहराई है।। दोनों वक़्त के राही है, दोनों ने ठोकर खायी है, यूँ तो दोनों का है।वही चेहरा, वही रंग, उतनी ही तारीखें और उतनी ही ठंड पर पहचान अलग है।। दोनों की अलग है। अंदाज और अलग हैं।। ढंग एक अन्त है। एक शुरुआत जैसे रात से सुबह और सुबह से रात एक दूसरे मे याद है। दूसरे मे आस, एक को है।। तजुर्बा, दूसरे को विश्वास दोनों जुड़े हुए है ऐसे धागे के दो छोर के जैसे, पर देखो दूर रहकर भी साथ निभाते है, कैसे जो दिसंबर छोड़ के जाता है। उसे जनवरी अपनाता है।। और जो जनवरी के वादे है। उन्हें दिसम्बर निभाता है। कैसे जनवरी से दिसम्बर के सफर मे 11 महीने लग जाते है।। लेकिन दिसम्बर से जनवरी बस ऐक पल मे पहुंच जाते है। जब ये दूर जाते है तो हाल बदल देते है।। और जब पास आते है। तो साल बदल देते है।। देखने मे ये साल के महज दो महीने ही तो लगते है। लेकिन सब कुछ बिखेरने और समेटने का वो कायदा भी रखते है।। दोनों ने मिलकर ही तो बाकी महीनों को बांध रखा है। अपनी जुदाई को दुनिया के लिए एक त्यौहार बना रखा है।।

||🥊”चार रत्न”🥊||


एक वृद्ध संत ने अपने जीवन की अंतिम घड़ीयों को नज़दीक देख अपने बच्चों को अपने पास बुलाया और कहा: मैं तुम बच्चों को चार कीमती रत्न दे रहा हूँ, मुझे पूर्ण विश्वास है कि यदि तुम इन्हें सम्भाल कर रखोगे तो पूरी ज़िन्दगी इनकी सहायता से अपना जीवन आनंदमय तथा श्रेष्ठ बना पाओगे।
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1~पहला रत्न है: “माफी” :~
हमारे लिए कोई कुछ भी कहे, हमे उसकी बात को कभी अपने मन में नहीं बिठाना हैं और ना ही उसके लिए कभी किसी प्रतिकार की भावना मन में रखना हैं, बल्कि उसे माफ़ कर देना हैं।
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2~दूसरा रत्न है: “भूल जाना” :~
अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना, कभी भी उस किए गए उपकार का प्रतिलाभ मिलने की उम्मीद अपने मन में नहीं रखना।
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3~तीसरा रत्न है: “विश्वास” :~
हमे अपनी महेनत और उस परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वास रखना हैं, क्योंकि हम कुछ नहीं कर सकते.. जब तक उस सृष्टि नियंता के विधान में नहीँ लिखा होगा। परमपिता परमात्मा पर रखा गया विश्वास ही हमे अपने जीवन के हर संकट से बचा पाएगा और सफल करेगा।
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4~चौथा रत्न है: “वैराग्य” :~
हमेशा यह याद रखे कि जब हमारा जन्म हुआ है तो निशिचत ही हमें एक दिन मरना ही है। इसलिए किसी के लिए अपने मन में लोभ-मोह न रखे।

जब तक तुम ये चार रत्न अपने पास सम्भालकर रखोगे, तुम खुश और प्रसन्न रहोगे।
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सत्य कथन यहीं हैं कि जीवन को सुखी बनाना हो तो उपरोक्त युक्ति को ही अपनाना होगा..!!
🙏🏼🙏🏻🙏🏾जय जय श्री राधे🙏🙏🏽🙏🏿

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