हर इंसान के दो चहरे होते हैं, एक उसका वास्तविक चेहरा दूसरा वह चेहरा जिसका उपयोग वह दूसरों को दिखाने के लिए करता है। यह एक से अधिक हो सकते हैं।। हर परिस्थिति के लिये अलग अलग बुरा आदमी जो मानता है, कि में बुरा हूँ, उसका केवल एक चेहरा होता है। उसका ठीक होना बहुत आसान है।। अच्छा आदमी कई चेहरों का प्रयोग करता है। किस किस चेहरे का इलाज करेंगे जो दिखाई देता है।। अगर उसे ठीक करेंगे तो यह मुखोटे पर हो जाएगा वह खुद तो वैसे का वैसा ही रह जाएगा। आपकी सारी चेष्टा व्यर्थ हो जायेगी।।
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[: एक ज्ञानी व्यक्ति और संसारी में यही फर्क है। कि ज्ञानी मरते हुए भी हँसता है।। और संसारी जीते हुए भी मरता है। ज्ञान हँसना नहीं सिखाता, बस रोने का कारण मिटा देता है। ऐसे ही अज्ञान रोना नहीं देता बस हँसने के कारणों को मिटा देता है। ज्ञान इसलिए हर स्थिति में प्रसन्न रहता है कि वो जानता है जो मुझे मिला, वह कभी मेरा था ही नहीं और जो कुछ मुझसे छूट रहा है, वह भी मेरा नहीं है। परिवर्तन ही दुनिया का शाश्वत सत्य है।। संसारी इसलिए रोता है, उसकी मान्यता में जो कुछ उसे मिला है उसी का था और उसी के दम पर मिला है। जो कुछ छूट रहा है सदा सर्वदा यह उस पर अपना अधिकार मान कर बैठा है। बस यही अशांत रहने का कारण है। मूढ़ता में नहीं ज्ञान में जियो ताकि आप हर स्थिति में प्रसन्न रह सकें।।
[: आज के समय में मानव के लिए सबसे पहली विचारणीय बात यही है, कि वह दुनिया की सुनी सुनाई बातों के पीछे न लगकर विचार करे कि किस तरह हम आत्म- तत्व तक पहुँच सकते हैं।। कर्म वही सार्थक है, जो हमे आत्म- ज्ञान तक पहुँचा दे। यदि आत्मज्ञान की प्राप्ति हो गई तभी कर्म सार्थक है।। और एक नवीन जागृति की ओर हम बढ सकते हैं, नहीं तो हमारी दशा उन भेडो से बेहतर नहीं जो एक के पीछे एक कुएँ में गिरती चली जाती हैं। परमात्मा ने मनुष्य को बुद्धि दी है।। विचार करने के लिए, सार- असार जानने के लिए, उचित- अनुचित का फैसला करने के लिए देखना यह नहीं है। कि लोग क्या कर रहे हैं, विचार करना है।। कि हमारे महापुरुषो ने धार्मिक ग्रंन्थो एवं धार्मिक स्थानो के द्वारा हमें किस आचरण को धारण करने की शिक्षा दी है। वह कौन सा आचरण हैं, जिसे करने के पश्चात अन्य कुछ भी जानना शेष नहीं रह जाता।।